क्या आपको सचमुच क्षमा माँगने की ज़रूरत है?
‘मैं कभी क्षमा नहीं माँगता,’ जॉर्ज बर्नर्ड शॉ ने लिखा। ‘जो हो गया सो हो गया,’ शायद दूसरे कहें।
संभवतः हम ख़ुद भी ग़लती स्वीकार करने से झिझकते हैं इस डर से कि कहीं नाक न कट जाए। शायद हम यह सफ़ाई देते हैं कि ग़लती दूसरे व्यक्ति की है। या शायद हम क्षमा माँगने का इरादा तो रखें लेकिन उसे तब तक के लिए टाल दें जब तक कि हम नहीं सोचते कि मामला अंततः दब गया है।
तो फिर, क्या क्षमा माँगना ज़रूरी है? क्या इससे सचमुच कुछ लाभ हो सकता है?
प्रेम हमें क्षमा माँगने के लिए विवश करता है
भाईचारे का प्रेम यीशु मसीह के सच्चे अनुयायियों का पहचान चिन्ह है। उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३५) शास्त्र मसीहियों से आग्रह करता है कि “तन मन लगाकर एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो।” (१ पतरस १:२२) गहरा प्रेम हमें क्षमा माँगने के लिए विवश करता है। क्यों? क्योंकि मानव अपरिपूर्णता अवश्य ही भावनाओं को चोट पहुँचाती है जो प्रेम के आड़े आती है यदि उसको भरा न जाए।
उदाहरण के लिए, मसीही कलीसिया में किसी के साथ व्यक्तिगत मतभेद के कारण, हम शायद उस व्यक्ति से बात करना पसन्द न करें। यदि नाराज़गी हमने पैदा की है, तो एक प्रेममय सम्बन्ध फिर से कैसे बनाया जा सकता है? अधिकांश मामलों में, क्षमा माँगने और फिर स्नेहिल ढंग से बातचीत करने की कोशिश करने के द्वारा। हम अपने संगी विश्वासियों के प्रेम के ऋणी हैं, और जब हम कहते हैं कि नाराज़गी पैदा करने के लिए हमें खेद है, तब हम उसमें से कुछ ऋण चुकता कर देते हैं।—रोमियों १३:८.
सचित्रित करने के लिए: मारी कारमॆन और पाकी दो मसीही स्त्रियाँ हैं जिनकी एक पुरानी मित्रता थी। लेकिन, क्योंकि मारी कारमॆन ने कुछ हानिकर गपशप पर विश्वास कर लिया, पाकी के साथ उसकी मित्रता ठंडी पड़ गयी। बिना कुछ कहे, उसने पाकी को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। लगभग एक साल बाद, मारी कारमॆन को पता चला कि वह गपशप झूठी थी। उसकी प्रतिक्रिया क्या थी? प्रेम ने उसे प्रेरित किया कि पाकी के पास जाए और इतनी बुरी तरह व्यवहार करने के लिए नम्रतापूर्वक गहरा खेद व्यक्त करे। उन दोनों ने आँसुओं की नदियाँ बहा दीं, और तब से वे पक्की सहेलियाँ हैं।
जबकि हमें शायद यह न लगे कि हमने कोई ग़लत काम किया है, फिर भी क्षमा माँगना किसी ग़लतफ़हमी को दूर कर सकता है। मानवॆल याद करता है: “कई साल पहले मेरी पत्नी और मैं हमारी एक आध्यात्मिक बहन के घर में रहे जिस दौरान वह अस्पताल में भरती थी। हमने उसकी बीमारी के दौरान उसकी और उसके बच्चों की मदद करने के लिए अपना भरसक किया। लेकिन घर लौटने पर, उसने एक मित्र से शिक़ायत की कि हमने घर का ख़र्च ठीक से नहीं चलाया था।
“हम उसके पास गए और समझाया कि शायद हमारी युवावस्था और अनुभव की कमी के कारण, हमने चीज़ों की देखरेख वैसे नहीं की जैसे उसने की होती। उसने तुरन्त यह कहकर प्रतिक्रिया दिखायी कि वह हमारी ऋणी है और कि हमने उसके लिए जो कुछ किया है उसके लिए वह सचमुच आभारी है। समस्या का हल हो गया। उस अनुभव ने मुझे ग़लतफ़हमियाँ होने पर नम्रतापूर्वक क्षमा माँगने का महत्त्व सिखाया।”
यहोवा ने इस दम्पति को प्रेम दिखाने और ‘मेल मिलाप की बातों का प्रयत्न करने’ के लिए आशिष दी। (रोमियों १४:१९) प्रेम में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना भी सम्मिलित है। पतरस हमें “सहानुभूति” दिखाने की सलाह देता है। (१ पतरस ३:८, NW) यदि हमारे पास सहानुभूति है, तो इसकी संभावना अधिक है कि किसी विचारहीन कथनी या करनी के द्वारा हमने जो पीड़ा दी है उसे हम समझेंगे और हम क्षमा माँगने के लिए प्रेरित होंगे।
“दीनता से कमर बान्धे रहो”
कभी-कभार विश्वासयोग्य मसीही प्राचीनों के बीच भी गरमागरमी हो सकती है। (प्रेरितों १५:३७-३९ से तुलना कीजिए।) इन अवसरों पर क्षमा माँगना बहुत लाभकारी होगा। लेकिन कौन-सी बात एक ऐसे प्राचीन या किसी अन्य मसीही की मदद करेगी जो क्षमा माँगना कठिन पाता है?
इसकी कुंजी है नम्रता। प्रेरित पतरस ने सलाह दी: “एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो।” (१ पतरस ५:५) हालाँकि यह सही है कि अधिकांश झगड़ों में दोनों पक्षों का दोष होता है, फिर भी नम्र मसीही को स्वयं अपनी कमियों की चिन्ता होती है और वह उन्हें स्वीकार करने के लिए तत्पर रहता है।—नीतिवचन ६:१-५.
जिससे क्षमा माँगी जा रही है उसे भी नम्र तरीक़े से इसको स्वीकार करना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, आइए मान लेते हैं कि दो पुरुष जिन्हें बात करनी है दो अलग-अलग पहाड़ों की चोटियों पर खड़े हैं। उनके बीच की खाई के कारण जो उन्हें अलग करती है, बातचीत असंभव है। लेकिन, जब उनमें से एक पुरुष नीचे घाटी में उतरता है और दूसरा उसके उदाहरण की नक़ल करता है, तब वे आसानी से बातचीत कर सकते हैं। उसी प्रकार, यदि दो मसीहियों को अपने बीच एक मतभेद दूर करने की ज़रूरत है, तो यूँ कह सकते हैं, उन्हें ऐसा करना चाहिए कि दोनों ही नम्रतापूर्वक एक दूसरे को घाटी में मिलें, और उपयुक्त क्षमा माँगें।—१ पतरस ५:६.
विवाह में क्षमा-याचनाओं का बहुत महत्त्व है
दो अपरिपूर्ण व्यक्तियों का विवाह अवश्य ही क्षमा माँगने के अवसर प्रदान करता है। और यदि पति-पत्नी दोनों के पास सहानुभूति है, तो यह उन्हें क्षमा माँगने के लिए उकसाएगी यदि उन्होंने विचारहीनता से कुछ कहा या किया है। नीतिवचन १२:१८ बताता है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” ‘बिना सोचविचार की चुभन’ वापस तो नहीं ली जा सकती, परन्तु उसे सच्ची क्षमा माँगकर मिटाया जा सकता है। निःसंदेह, यह सतत ध्यान और प्रयास की माँग करता है।
अपने विवाह के बारे में बोलते हुए, सूज़ॆनa कहती है: “जैक* का और मेरा विवाह हुए २४ साल हो गए हैं, लेकिन हम अब भी एक दूसरे के बारे में नयी बातें सीख रहे हैं। दुःख की बात है कि कुछ समय पहले, हम अलग हो गए और कुछ सप्ताह अलग रहे। लेकिन, हमने प्राचीनों की शास्त्रीय सलाह को सुना और फिर से एकसाथ हो गए। अब हमें एहसास हुआ है कि क्योंकि हमारे व्यक्तित्व बहुत भिन्न हैं, तीव्र मतभेद होने की संभावना है। जब ऐसा होता है, तब हम जल्दी से क्षमा माँग लेते हैं और दूसरे व्यक्ति का दृष्टिकोण समझने की सचमुच पूरी कोशिश करते हैं। मुझे यह कहने में ख़ुशी होती है कि हमारा विवाह काफ़ी हद तक सुधर गया है।” जैक कहता है: “हमने उन क्षणों को पहचानना भी सीख लिया है जब हम सहजता से अशांत हो जाते हैं। ऐसे समय पर हम एक दूसरे के साथ अधिक संवेदनशीलता से व्यवहार करते हैं।”—नीतिवचन १६:२३.
क्या आपको क्षमा माँगनी चाहिए यदि आप सोचते हैं कि आपकी ग़लती नहीं है? जब गहरी भावनाओं का सम्बन्ध होता है, तब इस बारे में निष्पक्ष होना कठिन होता है कि दोष किसका है। लेकिन महत्त्वपूर्ण बात है विवाह में शान्ति। एक इस्राएली स्त्री, अबीगैल पर विचार कीजिए जिसके पति ने दाऊद के साथ दुर्व्यवहार किया। जबकि उसके पति की मूर्खता का दोष उस पर नहीं लगाया जा सकता था, फिर भी उसने क्षमा माँगी। “अपनी दासी का अपराध क्षमा कर,” उसने याचना की। दाऊद ने उसके साथ विचारशीलता से व्यवहार करने के द्वारा प्रतिक्रिया दिखायी, और नम्रतापूर्वक स्वीकार किया कि यदि वह न आती तो उसने निर्दोष लहू बहा दिया होता।—१ शमूएल २५:२४-२८, ३२-३५.
उसी प्रकार, जून नाम की एक मसीही स्त्री, जो ४५ साल से विवाहित है, महसूस करती है कि एक सफल विवाह क्षमा माँगने में पहल करने की तत्परता की माँग करता है। वह कहती है: “मैं अपने आपको कहती हूँ कि हमारा विवाह एक व्यक्ति के रूप में मेरी भावनाओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है। सो जब मैं क्षमा माँगती हूँ, तब मैं महसूस करती हूँ कि मैं विवाह में योग दे रही हूँ।” जिम नाम का एक वृद्ध पुरुष बताता है: “मैं छोटी-मोटी बातों के लिए भी अपनी पत्नी से क्षमा माँगता हूँ। जब से उनका एक बड़ा ऑपरेशन हुआ है, वह जल्दी से व्यथित हो जाती हैं। सो मैं साधारणतया उन पर बाँहें डालकर कहता हूँ, ‘माफ़ करना, प्रिय। मैं आपको परेशान नहीं करना चाहता था।’ सींचे गए पौधे की तरह, वह तुरन्त खिल उठती हैं।”
यदि हमने उस व्यक्ति को चोट पहुँचायी है जिसे हम सबसे अधिक प्रेम करते हैं, तो जल्दी से क्षमा माँगना बहुत प्रभावकारी होता है। मीलाग्रोस इससे सहृदय सहमत है, और कहती है: “मैं आत्म-विश्वास की कमी से पीड़ित हूँ, और मेरे पति का एक कठोर शब्द मुझे परेशान कर देता है। लेकिन जब वह क्षमा माँगते हैं, तब मैं तुरन्त बेहतर महसूस करती हूँ।” उपयुक्त ही, शास्त्र हमसे कहता है: “मनभावने वचन मधुभरे छत्ते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।”—नीतिवचन १६:२४.
क्षमा माँगने की कला का अभ्यास कीजिए
यदि हम ज़रूरी होने पर क्षमा माँगने की आदत डाल लें, तो संभवतः हम पाएँगे कि लोग अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाएँगे। और शायद वे स्वयं भी क्षमा माँगेंगे। जब हमें लगता है कि हमने किसी को परेशान कर दिया है, तब क्यों न क्षमा माँगने का दस्तूर बना लें बजाय इसके कि ग़लती स्वीकार करने से बचने के लिए कोई कसर न छोड़ें? संसार क्षमा-याचना को कमज़ोरी का चिन्ह मान सकता है, लेकिन यह वास्तव में मसीही प्रौढ़ता का प्रमाण देता है। निःसंदेह, हम उनके समान नहीं होना चाहेंगे जो कुछ ग़लती स्वीकार तो करते हैं परन्तु अपनी ज़िम्मेदारी को यथासंभव कम करते हैं। उदाहरण के लिए, क्या हम कभी दिखावटी रूप से क्षमा माँगते हैं? यदि हम देर से पहुँचते हैं और बहुत क्षमा माँगते हैं, तो क्या हम अपनी समयनिष्ठा को सुधारने का निश्चय करते हैं?
तो फिर, क्या हमें सचमुच क्षमा माँगने की ज़रूरत है? जी हाँ, ज़रूरत है। हम अपने लिए और दूसरों के लिए ऐसा करने को बाध्य हैं। क्षमा माँगना अपरिपूर्णता के द्वारा उत्पन्न हुई पीड़ा को कम करने में मदद दे सकता है, और यह बिगड़े सम्बन्ध बना सकता है। हमारी हर क्षमा-याचना नम्रता में एक सबक़ है और हमें दूसरों की भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनने के लिए प्रशिक्षित करती है। फलस्वरूप, संगी विश्वासी, विवाह-साथी, और दूसरे हमें अपने स्नेह और भरोसे के योग्य व्यक्ति समझेंगे। हमारे पास मन की शान्ति होगी, और यहोवा परमेश्वर हमें आशिष देगा।
[फुटनोट]
a ये उनके असली नाम नहीं हैं।
[पेज 23 पर तसवीरें]
सच्ची क्षमा-याचनाएँ मसीही प्रेम को बढ़ावा देती हैं