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अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल दोप्रहरीदुर्ग—1994 | नवंबर 1
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८, ९. पहला पतरस ५:६-११ से क्या सांत्वना प्राप्त की जा सकती है?
८ पतरस ने आगे कहा: “इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है। सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं। अब परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिस ने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करेगा। उसी का समराज्य युगानुयुग रहे। आमीन।”—१ पतरस ५:६-११.
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अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल दोप्रहरीदुर्ग—1994 | नवंबर 1
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१०. पहला पतरस ५:६, ७ कौन-से तीन गुणों की ओर संकेत करता है जो चिन्ता को कम करने में मदद कर सकते हैं?
१० पहला पतरस ५:६, ७ तीन गुणों की ओर संकेत करता है जो चिन्ता का सामना करने में हमारी मदद कर सकते हैं। एक है नम्रता, या “मन की दीनता।” आयत ६ “उचित समय पर” अभिव्यक्ति के साथ समाप्त होती है, जो धैर्य की ज़रूरत दिखाता है। आयत ७ दिखाती है कि हम भरोसे के साथ अपनी सारी चिन्ता परमेश्वर पर डाल सकते हैं ‘क्योंकि उस को हमारा ध्यान है,’ और ये शब्द यहोवा पर पूरा भरोसा रखने का प्रोत्साहन देते हैं। सो आइए देखें कि किस प्रकार नम्रता, धैर्य, और परमेश्वर पर पूरा भरोसा चिन्ता को कम करने में मदद कर सकते हैं।
कैसे नम्रता मदद कर सकती है
११. चिन्ता का सामना करने में नम्रता किस प्रकार हमारी मदद कर सकती है?
११ यदि हम नम्र हैं, तो हम स्वीकार करेंगे कि परमेश्वर के विचार हमारे विचारों से कहीं ज़्यादा ऊँचे हैं। (यशायाह ५५:८, ९) नम्रता हमें यहोवा के सर्व-समाविष्ट दृष्टिकोण की तुलना में हमारी सीमित विचार-क्षमता को स्वीकार करने में मदद देती है। वह उन बातों को देखता है जिन्हें हम नहीं समझते, जैसे धर्मी पुरुष अय्यूब के मामले में दिखाया गया। (अय्यूब १:७-१२; २:१-६) “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे” अपने आपको नम्र बनाने के द्वारा हम सर्वोच्च सर्वसत्ताधारी के सम्बन्ध में अपनी दीन स्थिति स्वीकार कर रहे हैं। क्रमशः, यह हमें उन परिस्थितियों का सामना करने में मदद करता है जिन्हें वह अनुमति देता है। हमारे हृदय शायद तात्कालिक राहत के लिए तरसते हैं, लेकिन क्योंकि यहोवा के गुण पूर्ण संतुलन में हैं, वह जानता है कि ठीक किस समय और कैसे हमारे पक्ष में कार्य करना है। सो, छोटे बच्चों के समान, आइए यहोवा का बलवन्त हाथ थामे रहें, विश्वस्त होकर कि वह हमारी चिन्ताओं का सामना करने में हमारी मदद करेगा।—यशायाह ४१:८-१३.
१२. यदि हम नम्रता से इब्रानियों १३:५ के शब्दों पर अमल करते हैं तो भौतिक सुरक्षा के बारे में चिन्ता पर क्या प्रभाव हो सकता है?
१२ नम्रता में परमेश्वर के वचन की सलाह पर अमल करने की तत्परता सम्मिलित है, जो अकसर चिन्ता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हमारी चिन्ता भौतिक लक्ष्यों में गहरे उलझाव के कारण हुई है, तो अच्छा होगा कि हम पौलुस की सलाह पर विचार करें: “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि [परमेश्वर] ने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।” (इब्रानियों १३:५) नम्रता से ऐसी सलाह पर अमल करने के द्वारा बहुतों ने अपने आप को भौतिक सुरक्षा के बारे में अत्यधिक चिन्ता से मुक्त किया है। जबकि उनकी आर्थिक स्थिति में शायद सुधार न आया हो, यह उनके विचारों पर हावी होकर उन्हें आध्यात्मिक नुक़सान नहीं पहुँचाती।
धैर्य की भूमिका
१३, १४. (क) धैर्यपूर्ण धीरज के सम्बन्ध में, अय्यूब ने क्या उदाहरण प्रदान किया? (ख) धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना हमारे लिए क्या कर सकता है?
१३ पहला पतरस ५:६ में अभिव्यक्ति “उचित समय पर” धैर्यपूर्ण धीरज की ज़रूरत सुझाती है। कभी-कभी एक समस्या लम्बे समय तक बनी रहती है, और यह चिन्ता को बढ़ा सकता है। ख़ासकर ऐसी स्थिति में हमें बातों को यहोवा के हाथ में छोड़ने की ज़रूरत है। शिष्य याकूब ने लिखा: “हम धीरज धरनेवालों को धन्य कहते हैं: तुम ने ऐयूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करुणा और दया प्रगट होती है।” (याकूब ५:११) अय्यूब ने आर्थिक बरबादी झेली, मृत्यु में दस बच्चे खोए, एक घिनौनी बीमारी से कष्ट सहा, और झूठी सांत्वना देनेवालों द्वारा उस की झूठी निन्दा की गयी। ऐसी परिस्थितियों में कुछ हद तक चिन्ता सामान्य होती।
१४ बहरहाल, अय्यूब धैर्यपूर्ण धीरज में अनुकरणीय था। यदि हम विश्वास की कठिन परीक्षा से ग़ुजर रहे हैं, तो राहत के लिए हमें शायद ठहरना पड़े, जैसे वह भी ठहरा। लेकिन अंत में अय्यूब को उसके दुःख से राहत देकर और प्रचुरता में प्रतिफल देकर, परमेश्वर ने उसके पक्ष में कार्य किया। (अय्यूब ४२:१०-१७) धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना हमारे धीरज को विकसित करता है और उसके प्रति हमारी भक्ति की गहराई को प्रकट करता है।—याकूब १:२-४.
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