हियाव न छोड़िए!
“हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों ६:९.
१, २. (क) किन तरीक़ों से एक सिंह शिकार करता है? (ख) इब्लीस विशेषकर किनका शिकार करने में दिलचस्पी रखता है?
एक सिंह विभिन्न तरीक़ों से शिकार करता है। कभी-कभी वह अपने शिकार को पानी के गड्ढों पर या आम रास्तों पर घात करेगा। लेकिन कभी-कभी, जंगल में तस्वीरें (अंग्रेज़ी) पुस्तक कहती है, एक सिंह “केवल एक स्थिति का फ़ायदा उठाता है—उदाहरण के लिए, एक सोते हुए ज़ेबरा के बछड़े को देखना।”
२ प्रेरित पतरस समझाता है कि हमारा “विरोधी इब्लीस गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” (१ पतरस ५:८, फुटनोट) यह जानते हुए कि उसका शेष समय थोड़ा है, शैतान यहोवा की सेवा करने से मनुष्यों को दूर रखने के लिए उन पर और भी ज़्यादा दबाव डाल रहा है। लेकिन, यह ‘गर्जनेवाला सिंह’ विशेषकर यहोवा के सेवकों का शिकार करने में दिलचस्पी रखता है। (प्रकाशितवाक्य १२:१२, १७) शिकार करने के उसके तरीक़े पशु-जगत के उसके समरूप के तरीक़ों के समान हैं। वह कैसे?
३, ४. (क) यहोवा के सेवकों का शिकार करते वक़्त शैतान किन तरीक़ों का इस्तेमाल करता है? (ख) क्योंकि ये “कठिन समय” हैं, कौन-से सवाल उठते हैं?
३ कभी-कभी, शैतान घात करने की कोशिश करता है—सताहट या विरोध जिसका लक्ष्य हमारी खराई को तोड़ना होता है ताकि हम यहोवा की सेवा करना छोड़ दें। (२ तीमुथियुस ३:१२) लेकिन, सिंह की तरह, दूसरे समयों पर इब्लीस केवल एक स्थिति का फ़ायदा उठाता है। वह हमारे निरुत्साहित होने या थक जाने तक इन्तज़ार करता है, और फिर हमारी कमज़ोर भावात्मक अवस्था से लाभ उठाने की कोशिश करता है ताकि वह हमें हियाव छोड़ने पर मजबूर करे। हमें सहज शिकार नहीं बनना चाहिए!
४ फिर भी, हम पूरे मानव इतिहास की सबसे कठिन अवधि में जी रहे हैं। इस “कठिन समय” में, हम में से अनेक लोग शायद कभी-कभी निरुत्साहित या उदास महसूस करें। (२ तीमुथियुस ३:१) तब, हम इतना थक जाने से कैसे दूर रह सकते हैं कि हम इब्लीस के लिए सहज शिकार बन जाएँ? जी हाँ, हम प्रेरित पौलुस की उत्प्रेरित सलाह का पालन कैसे कर सकते हैं: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे”?—गलतियों ६:९.
जब दूसरे हमें निराश करते हैं
५. कौन-सी बात दाऊद के थक जाने का कारण हुई, लेकिन उसने क्या नहीं किया?
५ बाइबल समय में, यहोवा के सबसे वफ़ादार सेवकों ने भी शायद उदासी महसूस की हो। “मैं कराहते कराहते थक गया,” भजनहार दाऊद ने लिखा। “मैं अपनी खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। मेरी आंखें शोक से बैठी जाती हैं।” दाऊद ने इस तरह क्यों महसूस किया? “मेरे सब सतानेवालों के कारण,” उसने समझाया। दूसरों के दुःखदायी कार्यों ने दाऊद के दिल को इतना दुःख पहुँचाया कि उसके आँसू रोके-नहीं-रुके। फिर भी, संगी मनुष्यों ने उसके साथ जो किया था उसकी वजह से दाऊद यहोवा से दूर नहीं हुआ।—भजन ६:६-९.
६. (क) दूसरों की कथनी या करनी द्वारा हम कैसे प्रभावित हो सकते हैं? (ख) कुछ लोग अपने आपको इब्लीस के लिए कैसे सहज शिकार बना लेते हैं?
६ समान रीति से, दूसरों की कथनी या करनी शायद हमारे दिल को काफ़ी दुःख पहुँचाने के द्वारा हमारे थक जाने का कारण हो जाए। “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है,” नीतिवचन १२:१८ कहता है। जब विचारहीन व्यक्ति एक मसीही भाई या बहन है, तो ‘तलवार का घाव’ गहरा हो सकता है। मानवी प्रवृत्ति शायद नाराज़ हो जाने की, संभवतः नाराज़गी मन में रखने की होती है। यह विशेषकर सच होता है यदि हम महसूस करते हैं कि हमारे साथ निर्दयता से या अन्यायपूर्वक व्यवहार किया गया है। नाराज़ करनेवाले व्यक्ति से बात करना शायद हम कठिन पाएँ; हम शायद जानबूझकर उससे दूर रहें। नाराज़गी से उदास होकर, कुछ लोगों ने हियाव छोड़ दिया है और मसीही सभाओं में आना बन्द कर दिया है। दुःख की बात है, वे ऐसा करने के द्वारा ‘इब्लीस [फुटनोट] को अवसर देते हैं’ कि वह सहज शिकार के तौर पर उनका फ़ायदा उठाए।—इफिसियों ४:२७.
७. (क) जब दूसरे हमें निराश करते या चोट पहुँचाते हैं तो हम इब्लीस के हाथ में लगाम देने से कैसे दूर रह सकते हैं? (ख) हमें नाराज़गी को क्यों दूर करना चाहिए?
७ जब दूसरे हमें निराश करते या चोट पहुँचाते हैं तब हम कैसे इब्लीस के हाथ में लगाम देने से दूर रह सकते हैं? हमें कोशिश करनी चाहिए कि मन में नाराज़गी न रखें। इसके बजाय, मेलमिलाप करने या मामले को यथाशीघ्र निपटाने की पहल कीजिए। (इफिसियों ४:२६) कुलुस्सियों ३:१३ हमसे आग्रह करता है: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे . . . के अपराध क्षमा करो।” जब वो व्यक्ति जिन्होंने नाराज़ किया है ग़लती स्वीकारते हैं और वास्तव में शर्मिंदा हैं, तो क्षमा विशेषकर उपयुक्त है। (भजन ३२:३-५ और नीतिवचन २८:१३ से तुलना कीजिए।) फिर भी, यह हमारी मदद करता है यदि हम ध्यान में रखते हैं कि क्षमा करने का अर्थ यह नहीं है कि हम दूसरों की ग़लतियों को अनदेखा करें या कम दिखाएँ। क्षमा करने में नाराज़गी को दूर करना सम्मिलित है। ढोने के लिए नाराज़गी एक भारी बोझ है। यह हमारे विचारों में घर बना सकती है जिससे हमारी ख़ुशी छिन सकती है। यह हमारे स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है। विषमता में, जहाँ उपयुक्त हो, वहाँ क्षमा हमारे ख़ुद के लाभ के लिए कार्य करती है। ऐसा हो कि हम दाऊद की तरह, अन्य मनुष्यों ने जो हमसे कहा या हमारे साथ किया है उसकी वजह से कभी हियाव न छोड़ें और न यहोवा से दूर हों!
जब हम ग़लती करते हैं
८. (क) कभी-कभी कुछ लोग क्यों विशेषकर दोषी महसूस करते हैं? (ख) दोष-भावनाओं में इतना डूब जाना कि हम अपने आपसे हार मान लें, में क्या ख़तरा है?
८ “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं,” याकूब ३:२ कहता है। जब हम चूक जाते हैं, तो दोषी महसूस करना स्वाभाविक है। (भजन ३८:३-८) दोष की भावनाएँ विशेषकर प्रबल हो सकती हैं यदि हम शरीर की किसी कमज़ोरी से लड़ रहे हैं और समय-समय पर उसी कमज़ोरी को दोहराते हैं।a एक मसीही जिन्होंने इस प्रकार के संघर्ष का सामना किया, समझाती हैं: “यह जाने बग़ैर कि मैंने एक अक्षम्य पाप किया है या नहीं, मैं जीते रहना नहीं चाहती थी। मैंने महसूस किया कि मुझे यहोवा की सेवा में और प्रयास करने का फ़ायदा नहीं है क्योंकि संभवतः मेरे लिए वैसे भी बहुत देर हो चुकी है।” जब हम दोष-भावनाओं में इतना डूब जाते हैं कि हम अपने आपसे हार मान लेते हैं, तब हम इब्लीस को एक मौक़ा देते हैं—और वह इसका जल्दी से फ़ायदा उठा सकता है! (२ कुरिन्थियों २:५-७, ११) दोष-भावना के बारे में एक ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण की शायद ज़रूरत हो।
९. हमें परमेश्वर की दया में क्यों विश्वास होना चाहिए?
९ जब हम पाप करते हैं तो कुछ हद तक दोष-भावना महसूस करना उपयुक्त है। लेकिन, कभी-कभी दोष की भावनाएँ बनी रहती हैं क्योंकि एक मसीही महसूस करता है कि वह कभी परमेश्वर की दया के क़ाबिल नहीं होगा। फिर भी, बाइबल हमें स्नेहपूर्वक आश्वासन देती है: “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।” (१ यूहन्ना १:९) यह विश्वास करने का क्या कोई ठोस कारण है कि परमेश्वर हमारे मामले में ऐसा नहीं करेगा? याद कीजिए कि अपने वचन में यहोवा कहता है कि वह “क्षमा करने को तत्पर” है। (भजन ८६:५, NHT; १३०:३, ४) चूँकि वह झूठ बोल नहीं सकता, वह वैसा करेगा जैसे उसका वचन प्रतिज्ञा करता है, बशर्ते कि हम उसके सामने एक पश्चातापी हृदय के साथ आएँ।—तीतुस १:२.
१०. एक पुरानी प्रहरीदुर्ग ने शरीर की एक कमज़ोरी से संघर्ष करने के बारे में कौन-सा हृदयस्पर्शी आश्वासन प्रकाशित किया?
१० आपको क्या करना चाहिए यदि आप एक कमज़ोरी से संघर्ष कर रहे हैं और उसे दोहराते हैं? हियाव न छोड़िए! यह ज़रूरी नहीं है कि उसे दोहराने की वजह से जो प्रगति आप पहले ही कर चुके हैं वह व्यर्थ हो जाए। इस पत्रिका के फरवरी १५, १९५४, (अंग्रेज़ी) के अंक ने यह हृदयस्पर्शी आश्वासन पेश किया: “हम [शायद] अपने आप को किसी ऐसी बुरी आदत में कई बार लड़खड़ाते और गिरते हुए पाएँगे जो हमारे एहसास से भी ज़्यादा हमारी पुरानी जीवन-रीति में गहराई से बैठ गयी है। . . . निराश मत होइए। यह निष्कर्ष मत निकालिए कि आपने एक अक्षम्य पाप किया है। शैतान चाहेगा कि आप इस तरह से तर्क करें। यह सच्चाई कि आप दुःखी और अपने आप से अप्रसन्न महसूस करते हैं अपने आप में सबूत है कि आप ज़्यादा दूर नहीं गए हैं। परमेश्वर की ओर उसकी क्षमा और शोधन तथा सहायता के लिए नम्रतापूर्वक और निष्कपटता से मुड़ने से कभी मत थकिए। उसके पास ऐसे जाइए जैसे एक बच्चा संकट में अपने पिता के पास जाता है, चाहे एक ही कमज़ोरी पर कितनी बार ही क्यों न हो, और यहोवा अपने अपात्र अनुग्रह की वजह से आपको उदारता से सहायता देगा और, यदि आप निष्कपट हैं, तो वह आपको यह एहसास दिलाएगा कि आपके पास एक शुद्ध अंतःकरण है।”
जब हम महसूस करते हैं कि हम पर्याप्त नहीं कर रहे हैं
११. (क) राज्य-प्रचार कार्य में हिस्सा लेने के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए? (ख) सेवकाई में हिस्सा लेने के बारे में कुछ मसीही कौन-सी भावनाओं से संघर्ष करते हैं?
११ राज्य-प्रचार कार्य एक मसीही के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण भाग अदा करता है, और उसमें हिस्सा लेना आनन्द लाता है। (भजन ४०:८) लेकिन, कुछ मसीही सेवकाई में ज़्यादा कर पाने में असमर्थ होने के बारे में बहुत दोषी महसूस करते हैं। यह सोचते हुए कि यहोवा को लगता है कि हम कभी काफ़ी नहीं करते, ऐसी दोष-भावना हमारे आनन्द को भी कम कर सकती है और हमारे हियाव छोड़ने का कारण हो सकती है। उन भावनाओं पर ग़ौर कीजिए जिनसे कुछ लोग संघर्ष करते हैं।
“क्या आप जानते हैं कि ग़रीबी कितनी समय-नाशक है?” एक मसीही बहन ने लिखा जो अपने पति के साथ तीन बच्चों की परवरिश कर रही हैं। “जितना हो सके मुझे उतनी बचत करनी पड़ती है। इसका अर्थ है कि किफ़ायती दुकानों में, या जहाँ भारी छूट है वहाँ ढूँढना या यहाँ तक कि कपड़े सिलने में समय बिताना। मैं हर सप्ताह एकाध घंटा [डिस्काऊंट फूड] कूपन्स् पर भी काम करती हूँ—उन्हें काटने, फ़ाइल करने, और उनका धंधा करने में। कभी-कभी मैं ये सब करने की वजह से बहुत दोषी महसूस करती हूँ और यह सोचती हूँ कि मुझे इस समय को क्षेत्र सेवा में बिताना चाहिए।”
“मैं सोचती थी कि मैं वास्तव में यहोवा से काफ़ी प्रेम नहीं करती,” चार बच्चों और एक अविश्वासी पति वाली एक बहन ने समझाया। “सो मैंने यहोवा की सेवा करने में संघर्ष किया। मैंने बहुत मेहनत की, लेकिन मैंने कभी महसूस नहीं किया कि वह काफ़ी था। मेरे पास आत्म-योग्यता की कोई भावना नहीं थी, सो मैं यह कल्पना नहीं कर सकती थी कि कैसे यहोवा उसके प्रति मेरी सेवा को कभी स्वीकार कर सकता है।”
एक मसीही जिन्होंने पूर्ण-समय सेवा को छोड़ना आवश्यक पाया, ने कहा: “मुझसे यह विचार बरदाश्त नहीं हुआ कि मैं यहोवा की सेवा पूर्ण-समय करने की मेरी वचनबद्धता में असफल हो रही थी। आप कल्पना नहीं कर सकते कि मैं कितनी निराश थी! उसे याद करके मैं अब रोती हूँ।”
१२. सेवकाई में ज़्यादा करने में असमर्थ होने के बारे में कुछ मसीही क्यों बहुत दोषी महसूस करते हैं?
१२ यथासंभव पूरी तरह से यहोवा की सेवा करने की इच्छा रखना स्वाभाविक है। (भजन ८६:१२) लेकिन क्यों कुछ लोग ज़्यादा करने में समर्थ नहीं होने के बारे में बहुत दोषी महसूस करते हैं? कुछ लोगों के लिए, ऐसा लगता है कि यह संभवतः जीवन में अप्रिय अनुभवों से परिणित, अयोग्यता की सामान्य भावना से सम्बद्ध है। अन्य मामलों में, यहोवा हमसे जो अपेक्षा करता है उसके बारे में एक अवास्तविक दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप अनुपयुक्त दोष-भावना हो सकती है। “मैंने सोचा था कि यदि आप तब तक कार्य नहीं करते जब तक कि आप पस्त नहीं हो जाते, तो आप पर्याप्त नहीं करते हैं,” एक मसीही ने स्वीकारा। परिणामस्वरूप, उन्होंने अपने लिए बेहद ऊँचे स्तर रखे—और फिर और भी दोषी महसूस किया जब वो उन तक पहुँचने में असमर्थ हुईं।
१३. यहोवा हमसे क्या अपेक्षा करता है?
१३ यहोवा हमसे क्या अपेक्षा करता है? सरल शब्दों में कहें तो, यहोवा यह अपेक्षा करता है कि हम उसकी सेवा एकनिष्ठ होकर करें, और उतना करें जितना हमारी परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं। (कुलुस्सियों ३:२३) लेकिन, हम जो करना चाहते हैं और जो हम वास्तव में कर सकते हैं उसमें शायद एक बड़ा फ़र्क हो। शायद हमें उम्र, स्वास्थ्य, शारीरिक शक्ति, या पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ जैसे तत्व सीमित कर दें। फिर भी, जब हम अपना भरसक करते हैं, तब हम शायद आश्वस्त महसूस करें कि यहोवा के प्रति हमारी सेवा एकनिष्ठ है—किसी ऐसे व्यक्ति की सेवा से न ज़्यादा न कम एकनिष्ठ, जिनका स्वास्थ्य और परिस्थिति उन्हें पूर्ण-समय सेवकाई में रहने की अनुमति देते हैं।—मत्ती १३:१८-२३.
१४. आप क्या कर सकते हैं यदि आपको यह निर्धारित करने में मदद की ज़रूरत है कि आप अपने आपसे वास्तव में कितनी अपेक्षा कर सकते हैं?
१४ तब, आप यह कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि आप अपने आप से वास्तव में क्या अपेक्षा कर सकते हैं? आप शायद किसी भरोसेमन्द, प्रौढ़ मसीही दोस्त, संभवतः एक प्राचीन या एक अनुभवी बहन से विषय की चर्चा करना चाहें, जो आपकी क्षमताओं, आपकी सीमा-बन्धनों, और आपकी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को जानते हों। (नीतिवचन १५:२२) याद रखिए कि परमेश्वर की नज़रों में एक व्यक्ति के तौर पर आपका मूल्य इससे नहीं नापा जाता है कि आप क्षेत्र सेवकाई में कितना करते हैं। यहोवा के सभी सेवक उसके लिए बहुमूल्य हैं। (हाग्गै २:७; मलाकी ३:१६, १७) प्रचार कार्य में आप जो करते हैं वह शायद दूसरे जो करते हैं उससे ज़्यादा या कम हो, लेकिन जब तक कि वह आपके सर्वोत्तम को प्रकट करता है, यहोवा प्रसन्न है, और आपको दोषी महसूस करने की कोई ज़रूरत नहीं है।—गलतियों ६:४.
जब हमसे बहुत माँग की जाती है
१५. किन तरीक़ों से कलीसिया प्राचीनों से बहुत माँगा जाता है?
१५ “जिसे बहुत दिया गया है,” यीशु ने कहा, “उस से बहुत मांगा जाएगा।” (लूका १२:४८) निश्चय ही उन से ‘बहुत माँगा जाता है’ जो कलीसिया प्राचीनों के तौर पर सेवा करते हैं। पौलुस की तरह वे अपने आपको कलीसिया के लिए ख़र्च करते हैं। (२ कुरिन्थियों १२:१५) उनको भाषण तैयार करने होते हैं, रखवाली भेंट करनी होती हैं, न्यायिक मामले सँभालने होते हैं—ये सब स्वयं अपने परिवारों की उपेक्षा किए बिना करना होता है। (१ तीमुथियुस ३:४, ५) कुछ प्राचीन राज्यगृह बनाने में मदद करने, अस्पताल सम्पर्क समिति में सेवा करने, और सम्मेलनों तथा अधिवेशनों में अपनी सेवा अर्पित करने में भी व्यस्त हैं। ये परिश्रमी, समर्पित पुरुष ऐसी ज़िम्मेदारियों के बोझ तले थक जाने से कैसे दूर रह सकते हैं?
१६. (क) यित्रो ने मूसा को कौन-सा व्यावहारिक हल पेश किया? (ख) कौन-सा गुण एक प्राचीन को दूसरों के साथ उपयुक्त ज़िम्मेदारियों को बाँटने में समर्थ करेगा?
१६ जब मूसा, एक नम्र और विनीत व्यक्ति, दूसरों की समस्याओं को निपटाने में अपने आपको थका रहा था, तब उसके ससुर, यित्रो ने एक व्यावहारिक हल पेश किया: अन्य योग्य पुरुषों के साथ कुछ ज़िम्मेदारियों को बाँटो। (निर्गमन १८:१७-२६; गिनती १२:३) “नम्र लोगों में बुद्धि होती है,” नीतिवचन ११:२ कहता है। नम्र होने का अर्थ है अपनी सीमा-बन्धनों को पहचानना और स्वीकारना। एक नम्र व्यक्ति दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपने में अनिच्छुक नहीं होता है, ना ही वह डरता है कि अन्य योग्य पुरुषों के साथ उपयुक्त ज़िम्मेदारियों को बाँटने से वह किसी तरह नियंत्रण खोता है।b (गिनती ११:१६, १७, २६-२९) इसके बजाय, वह प्रगति करने में उनकी मदद करने के लिए उत्सुक है।—१ तीमुथियुस ४:१५.
१७. (क) कलीसिया सदस्य प्राचीनों के बोझ को कैसे हलका कर सकते हैं? (ख) प्राचीनों की पत्नियाँ क्या त्याग करती हैं, और हम उन्हें कैसे दिखा सकते हैं कि हम उनके प्रति कम मूल्यांकन नहीं दिखाते?
१७ कलीसिया सदस्य प्राचीनों के बोझ को हलका करने में बहुत कुछ कर सकते हैं। यह समझते हुए कि प्राचीनों को अपने परिवार की देखरेख करनी होती है, दूसरे लोग प्राचीनों के समय और ध्यान की अनुचित माँग नहीं करेंगे। ना ही वे प्राचीनों की पत्नियों द्वारा किए गए स्वैच्छिक त्याग के प्रति कम मूल्यांकन दिखाएँगे जब वे कलीसिया के साथ अपने पतियों को निःस्वार्थता से बाँटती हैं। तीन बच्चों की एक माँ, जिनका पति एक प्राचीन के तौर पर सेवा करते हैं, ने समझाया: “उस अतिरिक्त बोझ के बारे में मैं कभी शिकायत नहीं करती, जिसे मैं परिवार में स्वेच्छा से ढोती हूँ ताकि मेरे पति एक प्राचीन के तौर पर सेवा कर सकें। मैं जानती हूँ कि उनकी सेवा करने की वजह से हमारे परिवार पर यहोवा की आशिष भरपूर है, और उनके देने से मैं कुढ़ती नहीं हूँ। फिर भी, वास्तव में, जितना मैं अन्यथा करती उसकी तुलना में मुझे अकसर ज़्यादा पत्ते बटोरने पड़ते हैं और हमारे बच्चों को ज़्यादातर अनुशासन देना पड़ता है, क्योंकि मेरे पति व्यस्त हैं।” दुःख की बात है, इस बहन ने पाया कि कुछ लोग, उनके अतिरिक्त भार के लिए मूल्यांकन दिखाने के बजाय असंवेदनशील टिप्पणियाँ किए जैसे, “आप पायनियर-कार्य क्यों नहीं कर रहीं?” (नीतिवचन १२:१८) जो वे करने में समर्थ नहीं हैं उसके लिए उनकी आलोचना करने के बजाय जो वे कर रहे हैं उसकी सराहना करना कितना बेहतर है!—नीतिवचन १६:२४; २५:११.
क्योंकि अन्त अब तक नहीं आया है
१८, १९. (क) अनन्त जीवन की दौड़ में यह, दौड़ना बन्द करने का समय क्यों नहीं है? (ख) यरूशलेम के मसीहियों को प्रेरित पौलुस ने कौन-सी समयोचित सलाह दी?
१८ जब एक धावक जानता है कि वो एक लम्बी दौड़ के अन्त के निकट है, तो वो हियाव नहीं छोड़ते। उनका शरीर शायद धीरज की अपनी सीमा पर होगा—थकित, अत्यधिक गर्म, और निर्जलित—लेकिन अन्त के इतने क़रीब होकर दौड़ना बन्द करने का समय नहीं है। उसी तरह, मसीहियों के तौर पर हम जीवन के इनाम की एक दौड़ में हैं, और हम अन्तिम रेखा के बहुत क़रीब हैं। यह हमारे लिए दौड़ना बन्द करने का समय नहीं है!—१ कुरिन्थियों ९:२४; फिलिप्पियों २:१६; ३:१३, १४ से तुलना कीजिए।
१९ पहली शताब्दी में मसीहियों ने एक समान स्थिति का सामना किया। तक़रीबन सा.यु. ६१ में, प्रेरित पौलुस ने यरूशलेम के मसीहियों को लिखा। समय निकला जा रहा था—दुष्ट “पीढ़ी,” धर्मत्यागी यहूदी रीति-व्यवस्था का जल्द ही “अन्त” होनेवाला था। यरूशलेम के मसीहियों को विशेषकर सतर्क और वफ़ादार रहना था; जब वे शहर को डेरा डाली हुई सेनाओं से घिरा हुआ देखते तब उन्हें उस में से भाग जाने की ज़रूरत थी। (लूका २१:२०-२४, ३२) तब, पौलुस की उत्प्रेरित सलाह समयोचित थी: “थक कर निरुत्साहित न हो जाओ।” (इब्रानियों १२:३, NHT) यहाँ प्रेरित पौलुस ने दो सुस्पष्ट क्रियाओं का इस्तेमाल किया: “थक कर” (कामनो) और “निरुत्साहित न हो जाओ” (इकलायोमाइ)। एक बाइबल विद्वान के मुताबिक़, ये यूनानी शब्द “अरस्तू ने ऐसे धावकों के लिए इस्तेमाल किए जो अन्तिम रेखा पार करने के बाद पूरी तरह से ढीले और पस्त हो जाते हैं। [पौलुस की पत्री] के पाठक तब भी दौड़ में थे। उन्हें असमय हियाव नहीं छोड़ना है। उन्हें थकावट की वजह से अपने आपको बेहोश होकर पस्त हो जाने नहीं देना है। एक बार फिर तकलीफ़ का सामना करते वक़्त लगन की माँग की जाती है।”
२०. पौलुस की सलाह आज हमारे लिए समयोचित क्यों है?
२० पौलुस की सलाह आज हमारे लिए कितना समयोचित है! बढ़ते दबावों का सामना करते वक़्त, ऐसे समय हो सकते हैं जब हम एक थके हुए धावक की तरह महसूस करें जिसके पैर लगभग हार माननेवाले हैं। लेकिन अन्तिम रेखा के इतने निकट, हमें हियाव नहीं छोड़ना है! (२ इतिहास २९:११) यही तो हमारा विरोधी, ‘गरजनेवाला सिंह’ चाहता है कि हम करें। शुक्र है कि यहोवा ने ऐसे प्रबन्ध किए हैं जो “थके हुए को बल” देते हैं। (यशायाह ४०:२९) ये क्या हैं और हम इनसे फ़ायदा कैसे उठा सकते हैं, इसकी चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
[फुटनोट]
a उदाहरण के लिए, कुछ लोग शायद एक ऐसी व्यक्तित्व आदत को नियंत्रित करने में संघर्ष करें, जिसने गहराई से जड़ पकड़ ली है, जैसे कि गर्म मिज़ाज, या हस्तमैथुन की समस्या पर विजय पाना।—वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित सजग होइए! (अंग्रेज़ी), मई २२, १९८८, पृष्ठ १९-२१; नवम्बर ८, १९८१, पृष्ठ १६-२०; और युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर (अंग्रेज़ी), पृष्ठ १९८-२११ देखिए।
b अक्तूबर १५, १९९२, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) अंक के पृष्ठ २०-३ पर दिया गया लेख “प्राचीनों—ज़िम्मेदारी सौंपिए!” देखिए।
आपका जवाब क्या है?
◻ जब दूसरे हमें निराश करते या चोट पहुँचाते हैं, तो हम हियाव छोड़ने से कैसे दूर रह सकते हैं?
◻ दोष-भावना का कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण हमें हियाव छोड़ने से दूर रखेगा?
◻ यहोवा हमसे क्या अपेक्षा करता है?
◻ नम्रता कलीसिया प्राचीनों को थक जाने से कैसे दूर रख सकती है?
◻ इब्रानियों १२:३ में पौलुस की सलाह आज हमारे लिए क्यों समयोचित है?