बाइबल की किताब नंबर 61—2 पतरस
लेखक: पतरस
लिखने की जगह: बाबुल (?)
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 64
जब पतरस ने अपनी दूसरी पत्री लिखी, तब उसे एहसास था कि उसकी मौत करीब है। उसे अपने संगी मसीहियों की बहुत फिक्र थी, इसलिए वह उन्हें यह याद दिलाना चाहता था कि अपनी सेवा में लगे रहने के लिए सही ज्ञान का होना कितना ज़रूरी है। क्या इस बात में कोई शक है कि प्रेरित पतरस ने ही अपने नाम की यह दूसरी पत्री लिखी थी? जी नहीं। अगर खुद पत्री की जाँच की जाए, तो यह साफ हो जाता है कि इसका लेखक कौन है। लेखक कहता है कि वह “शमौन पतरस [है] जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है।” (2 पत. 1:1) और वह कहता है कि यह ‘दूसरी पत्री है जो मैं तुम्हें लिखता हूं।’ (3:1) वह अपने बारे में बताता है कि वह यीशु मसीह के रूपांतरण का चश्मदीद गवाह था और इस बारे में वह एक चश्मदीद गवाह की तरह ही ब्यौरा देता है। यह ऐसा सम्मान था जो पतरस के अलावा, याकूब और यूहन्ना को मिला भी था। (1:16-21) पतरस इस बात का भी ज़िक्र करता है कि यीशु ने उसकी मौत की भविष्यवाणी की थी।—2 पत. 1:14; यूह. 21:18, 19.
2 कुछ आलोचक कहते हैं कि दूसरी पत्री पतरस ने नहीं लिखी। वे इसकी यह वजह देते हैं कि पहला और दूसरा पतरस की लेखन-शैली अलग है। लेकिन यह कोई ठोस वजह नहीं, क्योंकि दोनों पत्रियों का विषय और लिखने का मकसद अलग है। और दूसरी बात, पतरस ने अपनी पहली पत्री ‘विश्वासयोग्य भाई सिलवानस के हाथ’ लिखवायी थी और हो सकता है उसे विचारों को वाक्यों में पिरोने की थोड़ी-बहुत छूट दी गयी हो। लेकिन ऐसा मालूम होता है कि दूसरी पत्री सिलवानस के हाथ नहीं लिखवायी गयी थी। इस वजह से दोनों पत्रियों की लेखन-शैली में फर्क हो सकता है। (1 पत. 5:12) इसके अलावा, कुछ लोग कहते हैं कि यह पत्री बाइबल के संग्रह का हिस्सा नहीं है, क्योंकि चर्च के “फादरों ने इससे ना के बराबर हवाले दिए।” लेकिन कार्थेज में हुई तीसरी धर्मसभा से पहले, कई विद्वान मानते थे कि दूसरा पतरस बाइबल की सूची का हिस्सा है।
3 पतरस की दूसरी पत्री कब लिखी गयी थी? मुमकिन है कि इसे लगभग सा.यु. 64 में पहली पत्री के लिखे जाने के थोड़े समय बाद, बाबुल या उसके आस-पास के इलाके में लिखा गया था। लेकिन इस बात का कोई पक्का सबूत नहीं है, खासकर इसके लिखने की जगह के बारे में। दूसरा पतरस लिखे जाने के दौरान, पौलुस की ज़्यादातर पत्रियाँ कलीसियाओं में पढ़ी जा रही थीं। इन पत्रियों से पतरस भी वाकिफ था और वह इन्हें ईश्वर-प्रेरित और “पवित्र शास्त्र” का हिस्सा मानता था। पतरस की दूसरी पत्री उन सभी को लिखी गयी थी, ‘जिन्होंने हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।’ इसमें वे लोग भी शामिल थे, जिन्हें पहला पतरस लिखा गया था और जिन्हें पतरस ने सुसमाचार सुनाया था। पहला पतरस की तरह, दूसरा पतरस भी कई कलीसियाओं को ध्यान में रखकर लिखा गया था।—2 पत. 1:1; 3:1; 3:15, 16; 1 पत. 1:1.
क्यों फायदेमंद है
8 सचमुच, सही ज्ञान का होना कितना ज़रूरी है! पतरस ने इब्रानी शास्त्र का सही-सही ज्ञान हासिल किया था। इसलिए वह अपनी दलीलों में इस ज्ञान का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल कर पाया। उसने गवाही दी कि यह शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया था। उसने कहा: “कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।” उसने यह भी बताया कि पौलुस के पास जो बुद्धि थी, वह उसे ‘मिली’ थी। (1:21; 3:15) ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का अध्ययन करने और सही ज्ञान को थामे रहने से हमें बेशुमार फायदे मिलेंगे। हम सच्चाई में ठंडे नहीं पड़ेंगे और उन लोगों के जैसा नज़रिया नहीं रखेंगे, जो पतरस के मुताबिक यह कहते हैं: “सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से था”। (3:4) ना ही हम झूठे शिक्षकों के बिछाए जाल में फँसेंगे, जिनके बारे में पतरस ने अध्याय 2 में बताया। हमें लगातार पतरस और दूसरे बाइबल लेखकों की चितौनियों पर ध्यान देना चाहिए। इनकी मदद से हम ‘सत्य में बने’ रह पाएँगे। साथ ही, हम अटल इरादे और धीरज से “हमारे उद्धारकर्त्ता प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते” जाएँगे।—1:12; 3:18, NHT.
9 हमें “परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु के [सही] ज्ञान” में बढ़ते जाना चाहिए। इसके लिए पतरस हमें उन मसीही गुणों को पैदा करने की जी-तोड़ कोशिश करने की सलाह देता है, जो अध्याय 1 की आयत 5-7 में दिए गए हैं। फिर वह 1 आयत 8 में बताता है: “यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो [ये] तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी।” वाकई, परमेश्वर के सेवकों के लिए यह क्या ही ज़बरदस्त बढ़ावा है कि वे इन अंतिम दिनों में जोश के साथ अपनी सेवा में लगे रहें।—1:2.
10 यह कितना ज़रूरी है कि हम यहोवा की “बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं” पाने के लिए अपना भरसक करें। इसलिए पतरस अभिषिक्त मसीहियों को उकसाता है कि वे अपनी आँख राज्य पर लगाए रखें। वह कहता है: “अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे। बरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे।” फिर पतरस इस बात की तरफ ध्यान खींचता है कि किस तरह मसीह अपने राज्य में महिमा से भरपूर होगा। इस सिलसिले में, वह रूपांतरण के दर्शन का ज़िक्र करता है और आगे कहता है: “हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा।” सच, यहोवा के शानदार राज्य के बारे में की गयी एक-एक भविष्यवाणी पूरी होकर रहेगी! इसलिए हम पूरे यकीन के साथ पतरस के इन शब्दों को दोहरा सकते हैं, जो उसने यशायाह की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए कहे थे: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।”—2 पत. 1:4, 10, 11, 19; 3:13; यशा. 65:17, 18.