“सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो”
“सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; . . . सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो।”—1 पतरस 4:7, 8.
यीशु जानता था कि उसके प्रेरितों के साथ उसके आखिरी चंद घंटों का एक-एक पल कितना अनमोल है। उसे मालूम था कि आगे चलकर प्रेरितों के साथ क्या होगा। उन्हें एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी पूरी करनी थी, मगर यह काम करते वक्त वे लोगों की नफरत और ज़ुल्म का शिकार होते, ठीक जैसे उसके साथ हुआ था। (यूहन्ना 15:18-20) इसलिए यीशु ने इस आखिरी रात को उन्हें यह सलाह दी कि वे “एक दूसरे से प्रेम” करें, और यह बात उसने एक बार नहीं बल्कि कई बार कही।—यूहन्ना 13:34, 35; 15:12, 13, 17.
2 उस रात, जो प्रेरित मौजूद थे उनमें पतरस भी एक था। उसने यीशु की कही बात की अहमियत को अच्छी तरह समझा। सालों बाद, जब यरूशलेम के नाश का समय करीब आया, तब उसने मसीहियों को लिखे खत में ज़ोर देकर बताया कि आपस में प्यार होना क्यों बहुत ज़रूरी है। उसने सलाह दी: “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है . . . सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो।” (1 पतरस 4:7, 8) आज इस संसार के “अन्तिम दिनों में” जीनेवालों के लिए भी पतरस के ये शब्द, गहरा अर्थ रखते हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) “अधिक प्रेम” का मतलब क्या है? दूसरों से हमें अधिक प्रेम क्यों रखना चाहिए? और हम ऐसा प्रेम कैसे दिखा सकते हैं?
“अधिक प्रेम”—यह क्या है?
3 कई लोगों का मानना है कि प्रेम एक ऐसी भावना है जो दिल से अपने आप उमड़नी चाहिए। लेकिन पतरस ने यहाँ जिस प्रेम की बात की है, उसका मनचाहा मतलब नहीं निकाला जा सकता। यह प्रेम सबसे उम्दा किस्म का होता है। पहले पतरस 4:8 में दिया गया शब्द “प्रेम,” यूनानी शब्द अघापि का अनुवाद है। इसका मतलब निःस्वार्थ प्रेम है जिसे सिद्धांतों के मुताबिक दिखाया जाता है। एक किताब कहती है कि “अघापि प्रेम दिखाने के लिए एक इंसान खुद को हुक्म दे सकता है क्योंकि यह अपने आप पैदा नहीं होता, इसके लिए मन में ठान लेने की ज़रूरत होती है।” यह इंसानी फितरत है कि हम हमेशा अपने स्वार्थ के बारे में सोचते हैं, इसलिए हमें याद दिलाए जाने की ज़रूरत है कि हम एक-दूसरे से प्यार करें, और ऐसा हम परमेश्वर के उसूलों के मुताबिक करें।—उत्पत्ति 8:21; रोमियों 5:12.
4 लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमें सिर्फ अपना फर्ज़ निभाने के लिए एक-दूसरे से प्यार करना है। अघापि में स्नेह और भावना भी ज़ाहिर करना शामिल है। पतरस ने कहा कि हमें ‘एक दूसरे से अधिक [शाब्दिक अर्थ है, “बढ़ाना”] प्रेम रखना’ चाहिए।a (किंगडम इंटरलीनियर) मगर ऐसा प्रेम दिखाने में बड़ी मेहनत लगती है। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “अधिक” किया गया है, उसके बारे में एक विद्वान कहता है: “इस शब्द से मन में एक ऐसे खिलाड़ी की तसवीर उभरती है जो दौड़ में अंतिम रेखा के करीब आ पहुँचा है और इसलिए वह अपनी बची-खुची ताकत का पूरा-पूरा इस्तेमाल करता है और दौड़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देता है।”
5 ज़ाहिर है कि हमें सिर्फ उस वक्त प्यार नहीं करना है जब यह हमारे लिए आसान होता है, या बस गिने-चुनों को ही प्यार नहीं दिखाना है। मसीही प्रेम की माँग है कि हम अपने दिल को ‘बड़ा करें’ यानी तब भी दूसरों से प्यार करें जब हमारे लिए बहुत मुश्किल होता है। (2 कुरिन्थियों 6:11-13) बेशक अपने अंदर ऐसा प्यार बढ़ाने के लिए हमें बहुत कोशिश करनी होगी, ठीक जैसे एक खिलाड़ी को अपना हुनर निखारने के लिए अच्छी तालीम लेनी पड़ती है और मेहनत करने की ज़रूरत होती है। हमें हर कीमत पर एक-दूसरे से ऐसा प्यार करना होगा। क्यों? इसके कम-से-कम तीन कारण हैं।
हमें एक-दूसरे से क्यों प्रेम करना चाहिए?
6 पहला कारण, “क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है।” (1 यूहन्ना 4:7) इस मनभावने गुण की शुरूआत यहोवा से होती है और उसी ने पहले हमसे प्यार किया। प्रेरित यूहन्ना कहता है: “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।” (1 यूहन्ना 4:9) परमेश्वर ने अपने बेटे यीशु को एक इंसान के रूप में “भेजा।” फिर यीशु ने धरती पर सेवा की और सूली पर अपनी जान कुरबान कर दी। परमेश्वर ने यह सारा इंतज़ाम इसलिए किया ताकि ‘हम जीवन पाएं।’ जब परमेश्वर ने हमें इतने महान तरीके से प्यार दिखाया तो हमारी क्या ज़िम्मेदारी बनती है? यूहन्ना कहता है: “जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।” (1 यूहन्ना 4:11) गौर कीजिए कि यूहन्ना लिखता है, “जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया।” (तिरछे टाइप हमारे।) जी हाँ, परमेश्वर ने सिर्फ आपसे नहीं बल्कि हमसे, हम सबसे प्यार किया है। तो बात बिलकुल साफ है: अगर परमेश्वर हमारे मसीही भाई-बहनों से प्यार करता है, तो हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम उनसे प्यार करें।
7 दूसरा कारण, ये देखते हुए कि “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है,” हमें पहले से कहीं ज़्यादा अपने भाइयों से प्यार करना है और मुसीबत की घड़ी में उन्हें सहारा देना है। (1 पतरस 4:7) आज हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) दुनिया के बिगड़ते हालात, बाढ़, भूकंप जैसे हादसों और विरोध की वजह से हमें कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं। ऐसे दौर में हमें पहले से कहीं ज़्यादा एक-दूसरे के करीब रहने की ज़रूरत है। आपस में गहरा प्यार हमें एकता की मज़बूत डोर में बाँधेगा और ‘एक दूसरे की चिन्ता’ करने के लिए उकसाएगा।—1 कुरिन्थियों 12:25, 26.
8 तीसरा कारण, हम नहीं चाहते कि हमारा फायदा उठाने के लिए “शैतान को अवसर” मिले। (इफिसियों 4:27) शैतान हमेशा इस ताक में रहता है कि हमारे भाई-बहनों की असिद्धता, यानी उनकी कमज़ोरियों, खामियों और गलतियों का इस्तेमाल करके हमें ठोकर खिलाए। अगर किसी भाई या बहन ने बिना सोचे-समझे हमारे खिलाफ कुछ कह दिया या हमारे साथ रूखा व्यवहार किया, तो क्या हम बुरा मानकर कलीसिया से दूर चले जाएँगे? (नीतिवचन 12:18) अगर हमें अपने भाई-बहनों से गहरा प्यार होगा तो हम ऐसा कभी नहीं करेंगे! ऐसा प्यार शांति और एकता बनाए रखने में हमारी मदद करेगा ताकि हम ‘कन्धे से कन्धा मिलाकर’ परमेश्वर की सेवा कर सकें।—सपन्याह 3:9.
दूसरों के लिए प्रेम कैसे दिखाएँ
9 प्रेम दिखाने की शुरूआत घर से होनी चाहिए। यीशु ने कहा था कि उसके सच्चे चेले अपने आपसी प्यार से ही पहचाने जाएँगे। (यूहन्ना 13:34, 35) सच्चे मसीहियों को न सिर्फ कलीसिया में बल्कि परिवार में भी प्यार दिखाना चाहिए—पति-पत्नी को आपस में, माता-पिताओं और बच्चों को आपस में। अपने परिवार के सदस्यों के लिए सिर्फ दिल में प्यार महसूस करना काफी नहीं है; बल्कि इस तरह ज़ाहिर भी करना चाहिए कि उन्हें फायदा हो।
10 पति-पत्नी कैसे दिखा सकते हैं कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं? जो पति अपनी पत्नी से सच्चा प्यार करता है वह उसे अपनी बातों और कामों से एहसास दिलाएगा कि वह उसे दिलो-जान से चाहता है। ऐसा वह घर की चारदीवारी में और लोगों के सामने भी करेगा। वह उसके साथ गरिमा से पेश आएगा, उसके विचारों और नज़रिए पर ध्यान देगा और उसके जज़बात का खयाल रखेगा। (1 पतरस 3:7) वह खुद से ज़्यादा अपनी पत्नी की खैरियत के बारे में सोचेगा, उसकी शारीरिक और आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने और उसकी भावनाओं का लिहाज़ करने की पूरी कोशिश करेगा। (इफिसियों 5:25, 28) और जो पत्नी अपने पति से सच्चा प्यार करती है, वह उसका गहरा “आदर” करेगी, फिर चाहे पति कभी-कभी उसकी उम्मीदों पर खरा न भी उतरे। (इफिसियों 5:22, 33, आर.ओ.वी.) वह अपने पति का साथ देगी, उसके अधीन रहेगी और उससे हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करेगी, बल्कि उसके साथ मिलकर हमेशा आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देगी।—उत्पत्ति 2:18; मत्ती 6:33.
11 माता-पिताओ, आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं? माना कि आप उनके खाने-पहनने की ज़रूरतें पूरी करने में जो कड़ी मेहनत करते हैं, वह आपके प्यार का सबूत है। (1 तीमुथियुस 5:8) लेकिन बच्चों के लिए सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान का बंदोबस्त करना काफी नहीं। अगर आप चाहते हैं कि वे बड़े होकर सच्चे परमेश्वर से प्यार करें और उसकी सेवा करें, तो उन्हें आध्यात्मिक बातों की तालीम देना भी ज़रूरी है। (नीतिवचन 22:6) इसका मतलब यह है कि पूरे परिवार को मिलकर बाइबल का अध्ययन करने, प्रचार में हिस्सा लेने और सभाओं में जाने के लिए एक समय तय करना चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 6:4-7) ये सारे काम बिना नागा करने के लिए आपको कुछ त्याग करने पड़ेंगे, खासकर इसलिए कि आज हम कठिन समय में जी रहे हैं। अपने बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतों का ख्याल रखने और उसके लिए मेहनत करने के ज़रिए आप अपने प्यार का सबूत देते हैं। क्योंकि ऐसा करके आप दिखाते हैं कि आप उनकी सदा की भलाई चाहते हैं।—यूहन्ना 17:3.
12 अपने बच्चों की भावनाओं का खयाल रखना भी माता-पिता के प्यार का सबूत है। बच्चों का मन फूल-सा नाज़ुक होता है, उन्हें यकीन दिलाए जाने की ज़रूरत है कि वे आपके लिए बहुत प्यारे हैं। बच्चों को बताइए कि आप उनसे प्यार करते हैं, और उन्हें चूमिए, गले लगाइए क्योंकि इससे उन्हें एहसास होगा कि वे प्यार के लायक हैं और उनकी भी अहमियत है। सच्चे दिल से और प्यार से उन्हें शाबाशी दीजिए। तब वे जान पाएँगे कि आप उनकी मेहनत पर गौर करते और उसकी कदर करते हैं। उन्हें प्यार से अनुशासन दीजिए क्योंकि इससे वे समझ पाएँगे कि आपको उनकी फिक्र है कि वे कैसे इंसान बन रहे हैं। (इफिसियों 6:4) इन सभी बढ़िया तरीकों से प्यार ज़ाहिर करने से परिवार खुशहाल होगा और एकता में बँधेगा, और इन अंतिम दिनों में आनेवाले दबावों का अच्छी तरह सामना कर पाएगा।
13 प्यार हमें दूसरों की गलतियों को नज़रअंदाज़ करने के लिए उकसाता है। याद कीजिए कि जब पतरस ने मसीहियों को ‘एक दूसरे से अधिक प्रेम रखने’ की सलाह दी तो उसने यह भी बताया कि ऐसा करना क्यों बहुत ज़रूरी है: “क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” (1 पतरस 4:8) यहाँ पापों को “ढांप” देने का मतलब गंभीर पापों को “ढांप” देना नहीं है। गंभीर पापों के बारे में हमें कलीसिया के ज़िम्मेदार भाइयों को बताना चाहिए और उन्हें ऐसे मामले निपटाने चाहिए। (लैव्यव्यवस्था 5:1; नीतिवचन 29:24) हठीले पापियों को अपने दुष्ट कामों में लगे रहने या मासूम लोगों को नुकसान पहुँचाने की इजाज़त देना, प्यार और बाइबल के उसूलों के खिलाफ होगा।—1 कुरिन्थियों 5:9-13.
14 हमारे भाई-बहन जो गलतियाँ करते हैं वे ज़्यादातर बड़ी नहीं होतीं। देखा जाए तो हम सब कभी-कभी अपने कामों या शब्दों से चूक जाते हैं, एक-दूसरे को निराश कर देते हैं, यहाँ तक कि ठेस भी पहुँचाते हैं। (याकूब 3:2) इसलिए क्या दूसरों की गलतियों का ढिंढोरा पीटना सही होगा? इससे फायदा तो कुछ नहीं होगा मगर कलीसिया में फूट ज़रूर पड़ जाएगी। (इफिसियों 4:1-3) अगर हम प्यार के उसूल पर चलते हैं, तो हम अपने किसी भी भाई या बहन की “चुगली” नहीं करेंगे। (भजन 50:20) जिस तरह एक दीवार पर पलस्तर लगाने या रंग-रोगन करने से उसकी खामियाँ छिप जाती हैं, उसी तरह प्यार भी दूसरों की खामियों को ढांप देता है।—नीतिवचन 17:9.
15 प्रेम हमें ऐसे लोगों की मदद करने को उकसाएगा जो बड़ी तकलीफ में हैं। आज इन अंतिम दिनों में हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं, इसलिए कभी-कभी हमारे भाई-बहनों पर ऐसी आफत आ सकती है कि हमें रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ें देकर उनकी मदद करनी पड़े। (1 यूहन्ना 3:17, 18) मसलन, क्या हमारी कलीसिया के किसी सदस्य को पैसे का भारी नुकसान हुआ है या उसकी नौकरी छूट गयी है? तो हमसे जितना हो सके रुपए-पैसे या दूसरी चीज़ों से हम उसकी मदद कर सकते हैं। (नीतिवचन 3:27, 28; याकूब 2:14-17) क्या किसी बुज़ुर्ग विधवा बहन के घर को मरम्मत की ज़रूरत है? तो हम खुद आगे बढ़कर उसकी कुछ मदद कर सकते हैं।—याकूब 1:27.
16 हम सिर्फ उन लोगों से प्यार नहीं करते जो हमारे करीब रहते हैं। कभी-कभी हमें खबर मिलती है कि दूसरे देशों में रहनेवाले परमेश्वर के सेवक भयानक तूफान, भूकंप या दंगे-फसाद का शिकार हुए हैं। ऐसे में उन्हें खाने, कपड़े और दूसरी चीज़ों की सख्त ज़रूरत हो सकती है। उनकी मदद करने के लिए हम यह नहीं देखते कि वे किस जाति या जनजातीय समूह के हैं। हमें अपने “भाइयों की पूरी बिरादरी से प्रेम” है। (1 पतरस 2:17, NW) इसलिए जब ऐसे वक्त पर राहत पहुँचाने का इंतज़ाम किया जाता है, तो हम पहली सदी की कलीसियाओं की तरह मदद देने के लिए फौरन आगे आते हैं। (प्रेरितों 11:27-30; रोमियों 15:26) जब हम इन तरीकों से प्यार दिखाते हैं, तो हम एकता के बंधन को मज़बूत करते हैं जो हमें इन अंतिम दिनों में बाँधे हुए है।—कुलुस्सियों 3:14.
17 प्रेम हमें दूसरों को परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाने के लिए उकसाता है। यीशु की मिसाल पर ध्यान दीजिए। उसने लोगों को क्यों प्रचार किया और सिखाया? जब उसने लोगों की भीड़ को देखा तो उन पर “तरस खाया” क्योंकि उनकी आध्यात्मिक हालत बहुत खराब थी। (मरकुस 6:34) झूठे धर्म के चरवाहों ने उनकी सही देखभाल नहीं की थी और उन्हें गुमराह कर रखा था, जबकि उन्हें चाहिए था कि वे लोगों को आध्यात्मिक सच्चाइयाँ सिखाएँ और उनमें आशा जगाएँ। लोगों की हालत देखकर यीशु को उन पर बहुत दया आयी और उनके लिए प्यार उमड़ आया। इसलिए उसने “परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार” सुनाकर उन्हें सांत्वना दी।—लूका 4:16-21, 43.
18 आज भी कई लोगों को आध्यात्मिक मायनों में नज़रअंदाज़ और गुमराह किया गया है और उन्हें भविष्य की कोई उम्मीद नहीं है। यीशु की तरह, हमें ऐसे लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को समझना है जिन्होंने अब तक सच्चे परमेश्वर को नहीं जाना है। तब प्यार और दया हमें उकसाएगी कि हम उन्हें राज्य की खुशखबरी सुनाएँ। (मत्ती 6:9, 10; 24:14) अंत आने में अब ज़्यादा समय नहीं है, इसलिए जीवन देनेवाले संदेश का प्रचार करना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।—1 तीमुथियुस 4:16.
“सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है”
19 याद कीजिए कि पतरस ने एक-दूसरे से प्रेम रखने की सलाह देने से पहले यह कहा: “सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है।” (1 पतरस 4:7) बहुत जल्द इस दुष्ट संसार की जगह धार्मिकता की नयी दुनिया आएगी। (2 पतरस 3:13) इसलिए आज का यह वक्त धीमे पड़ने का नहीं है। यीशु ने हमें आगाह किया: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े।”—लूका 21:34, 35.
20 इसलिए आइए हम हमेशा ‘जागते रहें’ और ध्यान दें कि हम समय की धारा में कहाँ हैं। (मत्ती 24:42) शैतान हमें भटकाने के लिए जो चालें चलता है, उनसे खबरदार रहें। नफरत से भरी यह दुनिया हमें दूसरों से प्यार करने से कभी रोकने न पाए। सबसे बढ़कर, हम सच्चे परमेश्वर यहोवा के और भी करीब आते जाएँ, जिसका मसीहाई राज्य जल्द ही इस धरती पर उसके महान उद्देश्य को पूरा करेगा।—प्रकाशितवाक्य 21:4, 5.
[फुटनोट]
a कुछ बाइबल अनुवादों में 1 पतरस 4:8 कहता है कि हमें एक-दूसरे को “सच्चे दिल से,” “दिल की गहराइयों” से प्यार करना चाहिए।
अध्ययन के लिए सवाल
• अपने चेलों से जुदा होने से पहले यीशु ने उन्हें क्या सलाह दी, और क्या बात दिखाती है कि पतरस ने उसकी अहमियत समझी? (पैरा. 1-2)
• “अधिक प्रेम” का मतलब क्या है? (पैरा. 3-5)
• हमें एक-दूसरे से क्यों प्यार करना चाहिए? (पैरा. 6-8)
• आप दूसरों के लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं? (पैरा. 9-18)
• आज धीमे पड़ने का वक्त क्यों नहीं है, और हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए? (पैरा. 19-20)
[पेज 29 पर तसवीर]
जो परिवार एकता के मज़बूत बंधन में बंधा हो वह इन अंतिम दिनों में आनेवाले दबावों का अच्छी तरह सामना कर पाएगा
[पेज 30 पर तसवीर]
प्रेम हमें ऐसे लोगों की मदद करने के लिए उकसाता है जो बड़ी मुसीबत में हैं
[पेज 31 पर तसवीर]
दूसरों को परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाना प्यार का एक सबूत है