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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (1 थिस्सलुनीकियों-प्रकाशितवाक्य)
bsi08-2 पेज 22-24

बाइबल की किताब नंबर 62—1 यूहन्‍ना

लेखक: प्रेरित यूहन्‍ना

लिखने की जगह: इफिसुस या उसके आस-पास

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 98

यीशु मसीह के चहेते प्रेरित यूहन्‍ना को धार्मिकता से बहुत प्यार था। इसलिए वह यीशु की सोच को अच्छी तरह समझ पाया। यही वजह है कि उसने अपनी किताबों में प्यार पर बार-बार ज़ोर दिया। मगर इसका यह मतलब नहीं कि यूहन्‍ना जज़बाती था। यीशु ने उसके बारे में कहा था कि वह “बूअनरगिस” यानी “गर्जन का पुत्र” है। (मर. 3:17) दरअसल यूहन्‍ना ने सच्चाई और धार्मिकता की पैरवी करने के मकसद से ही तीन पत्रियाँ लिखी थीं। उस वक्‍त धर्मत्याग जड़ पकड़ने लगा था, ठीक जैसे प्रेरित पौलुस ने भविष्यवाणी की थी। यूहन्‍ना की पत्रियाँ शुरू के मसीहियों को ऐन मौके पर मिली थीं, क्योंकि इनकी मदद से वे “दुष्ट” यानी शैतान के हमलों का डटकर मुकाबला कर सके।—2 थिस्स. 2:3, 4; 1 यूह. 2:13, 14; 5:18, 19.

2 यूहन्‍ना की पत्रियों में दी जानकारी से पता चलता है कि इन्हें मत्ती और मरकुस की सुसमाचार की किताबों के बहुत समय बाद लिखा गया था। उस वक्‍त तक मिशनरी सेवक पतरस और पौलुस भी अपनी-अपनी पत्रियाँ लिख चुके थे। यूहन्‍ना की पत्रियों में यहूदी धर्म का कोई ज़िक्र नहीं मिलता, जो मसीही कलीसिया के शुरूआती दिनों में बहुत बड़ा खतरा बना हुआ था। इसके अलावा, इनमें इब्रानी शास्त्र का एक भी हवाला नहीं दिया गया। इसके बजाय, यूहन्‍ना “अन्तिम समय” और “बहुत से मसीह के विरोधी” के उठ खड़े होने की बात करता है। (1 यूह. 2:18) वह अपने पढ़नेवालों को “हे मेरे बालको” और खुद को “प्राचीन” कहकर बुलाता है। (1 यूह. 2:1, 12, 13, 18, 28; 3:7, 18; 4:4; 5:21; 2 यूह. 1; 3 यूह. 1) ये सारी बातें इशारा करती हैं कि इन पत्रियों को बहुत समय बाद लिखा गया था। पहला यूहन्‍ना 1:3, 4 से मालूम होता है कि यूहन्‍ना की सुसमाचार की किताब भी इसी दौरान लिखी गयी थी। आम तौर पर माना जाता है कि यूहन्‍ना की मौत से कुछ समय पहले यानी लगभग सा.यु. 98 में उसकी तीन पत्रियों का लिखा जाना पूरा हुआ था। और इन्हें इफिसुस या उसके आस-पास के इलाके में लिखा गया था।

3 पहला यूहन्‍ना को प्रेरित यूहन्‍ना ने ही लिखा था। यह हमें कैसे पता? क्योंकि यह पत्री, सुसमाचार की चौथी किताब से बहुत मेल खाती है, जिसका लेखक यूहन्‍ना ही था। मिसाल के लिए, यूहन्‍ना अपनी पत्री की शुरूआत में कहता है कि उसने खुद अपनी आँखों से “उस जीवन के वचन . . . अनन्त जीवन” को देखा था, “जो पिता के साथ था, और हम पर प्रगट हुआ।” ये शब्द और यूहन्‍ना की सुसमाचार की किताब के शुरूआती शब्द करीब-करीब एक-जैसे हैं। मूराटोरी खंड और दूसरी सदी के लेखक, आइरीनियस, पॉलिकार्प और पेपीअस इस पत्री के सच होने के सबूत देते हैं।a यूसेबियस (लगभग सा.यु. 260-342) के मुताबिक, पहला यूहन्‍ना की सच्चाई पर कभी सवाल नहीं उठाया गया।b लेकिन गौर कीजिए कि बाइबल के कुछ पुराने अनुवादों में अध्याय 5 की आयत 7 के आखिर में और 8 के शुरू में ये शब्द जोड़े गए हैं: “स्वर्ग में, पिता, वचन और पवित्र आत्मा, और ये तीनों एक हैं ये तीन पृथ्वी पर साक्षी देते हैं।” (किंग जेम्स वर्शन) मगर ये शब्द प्राचीन यूनानी हस्तलिपियों में कहीं नहीं पाए जाते, तो ज़ाहिर-सी बात है कि इन्हें त्रियेक की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जोड़ा गया था। आजकल की कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट बाइबलों में ये शब्द मुख्य पाठ में नहीं दिए गए हैं।—1 यूह. 1:1, 2.c

4 यूहन्‍ना के दिनों में, “बहुत से मसीह के विरोधी” उठ खड़े हुए थे और उसके ‘प्रियों,’ उसके ‘लड़कों’ को सच्चाई से दूर ले जाने के लिए फुसला रहे थे। उनकी गलत शिक्षाओं से भाइयों की हिफाज़त करने के लिए ही यूहन्‍ना ने यह पत्री लिखी थी। (2:7, 18) मसीह के इन विरोधियों पर शायद यूनानी फलसफों का असर था। ऐसा ही एक फलसफा था नॉस्टिकवाद, जिसके माननेवालों का दावा था कि उन्हें परमेश्‍वर से रहस्यमयी ज्ञान मिला था।d यूहन्‍ना ने इस तरह की झूठी शिक्षाओं का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए तीन विषयों पर बारीकी से चर्चा की: पाप, प्यार और मसीह के विरोधी। उसने पाप के बारे में और हमारे पापों के प्रायश्‍चित के लिए यीशु के बलिदान के पक्ष में जो बातें कहीं, उससे पता चलता है कि मसीह के विरोधी खुद को धर्मी समझ रहे थे। वे यह दावा कर रहे थे कि उनमें पाप नहीं और ना ही उन्हें यीशु के छुड़ौती बलिदान की ज़रूरत है। उनके “ज्ञान” (NW) ने उन्हें स्वार्थी बना दिया था, उनमें ज़रा-भी प्यार नहीं रह गया था। इस फंदे से खबरदार करने के साथ-साथ, यूहन्‍ना ने बार-बार सच्चे मसीही प्यार पर ज़ोर दिया। इसके अलावा, यूहन्‍ना ने उनकी झूठी शिक्षाओं को गलत साबित करने के लिए समझाया कि यीशु ही मसीह है, धरती पर आने से पहले वह स्वर्ग में था और परमेश्‍वर के बेटे के नाते वह धरती पर इंसान बनकर आया, ताकि उस पर विश्‍वास करनेवालों को उद्धार दिला सके। (1:1, 2, 7-10; 2:1, 2, 22; 4:2, 3, 14, 15, 16-21) यूहन्‍ना ने इन झूठे शिक्षकों को सीधे-सीधे ‘मसीह का विरोधी’ कहा। साथ ही, उसने परमेश्‍वर की संतान और शैतान की संतान को पहचानने के कई तरीके भी बताए।—2:18, 22; 4:3.

5 यह पत्री किसी खास कलीसिया के नाम नहीं थी, इसलिए ऐसा मालूम होता है कि इसे पूरी मसीही बिरादरी के लिए लिखा गया था। और-तो-और इसकी शुरूआत में न तो सलाम कहा गया, ना ही आखिर में कोई शुभकामनाएँ दी गयीं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि पहला यूहन्‍ना एक पत्री नहीं, एक लेख है। मूल भाषा में, इस पत्री में “तुम” का इस्तेमाल बहुवचन में किया गया है, जो दिखाता है कि लेखक ने यह पत्री किसी एक व्यक्‍ति को नहीं बल्कि एक समूह को लिखी थी।

क्यों फायदेमंद है

11 पहली सदी के आखिरी सालों की तरह, आज भी “बहुत से मसीह के विरोधी” उठ खड़े हुए हैं और इनसे सच्चे मसीहियों को खबरदार रहने की ज़रूरत है। उन्हें उस “समाचार” को थामे रहना चाहिए, ‘जो उन्होंने आरम्भ से सुना था और उन्हें एक दूसरे से प्रेम रखना’ चाहिए। इतना ही नहीं, उन्हें परमेश्‍वर में और सच्ची शिक्षाओं में बने रहना, बोलने का हियाव रखना और धार्मिकता के काम करना चाहिए। (2:18, 27-29; 3:11) इससे भी ज़रूरी है कि वे “शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका [के] घमण्ड” से दूर रहने की चेतावनी मानें। ये ऐसी बुराइयाँ हैं, जिन्होंने मसीही होने का दम भरनेवाले ज़्यादातर लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। सच्चे मसीही संसार और इसकी अभिलाषाओं को ठोकर मारते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि ‘जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलते हैं वे सर्वदा बने रहेंगे।’ आज जहाँ देखो वहाँ संसार की अभिलाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, लोगों में प्यार कम नफरत ज़्यादा है और अलग-अलग पंथ उभर रहे हैं। ऐसे में, बाइबल का अध्ययन करके परमेश्‍वर की मरज़ी जानना और उस पर चलना हमारे लिए वाकई फायदेमंद है!—2:15-17.

12 पहला यूहन्‍ना हमारे फायदे के लिए इन बातों में साफ-साफ फर्क बताता है: परमेश्‍वर की ज्योति और शैतान के अंधकार के बीच, जो सच्चाई को ढा देता है; जीवन देनेवाली परमेश्‍वर की शिक्षाओं और मसीह-विरोधियों की गुमराह करनेवाली शिक्षाओं के बीच; प्यार और नफरत के बीच। यह ऐसा प्यार है, जो मसीही कलीसिया में इसलिए पाया जाता है क्योंकि वह पिता और पुत्र में एक बनी रहती है। जबकि यह नफरत कैन की नफरत की तरह, उन लोगों में पायी जाती है, जो ‘हमारा साथ छोड़ गए ताकि यह प्रकट हो जाए कि वे सब हमारे नहीं हैं।’ (नयी हिन्दी बाइबिल) (1:5-7; 2:8-11, 19, 22-25; 3:11, 12, 23, 24) ये फर्क समझने के बाद, हमारी दिली तमन्‍ना होनी चाहिए कि हम “संसार पर जय प्राप्त” करेंगे। हम यह कैसे कर सकते हैं? अपना विश्‍वास मज़बूत करने के ज़रिए। साथ ही, ‘परमेश्‍वर से प्रेम’ रखने यानी उसकी आज्ञाओं को मानने के ज़रिए।—5:3, 4.

13 ‘परमेश्‍वर से प्रेम,’ हमें कदम उठाने के लिए उकसाता है। इसी बात पर पूरी पत्री में बड़े ही खूबसूरत तरीके से ज़ोर दिया गया है। अध्याय 2 में बताया गया है कि संसार से प्रेम करने और पिता से प्रेम करने के बीच ज़मीन-आसमान का फर्क है। इसके बाद, इस बात पर ध्यान दिलाया गया है कि “परमेश्‍वर प्रेम है।” (4:8, 16) परमेश्‍वर कामों से अपना प्रेम ज़ाहिर करता है। इसका सबसे ज़बरदस्त सबूत उसने तब दिया, जब उसने अपने “पुत्र को जगत का उद्धारकर्त्ता” बनने के लिए भेजा। (4:14) इससे हमें भी प्यार दिखाने का बढ़ावा मिलता है, ठीक जैसे प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा था: “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” (4:19) हमारा प्यार भी पिता और पुत्र की तरह होना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें अपना प्यार कामों से दिखाना चाहिए और दूसरों की खातिर कुरबान हो जाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जिस तरह यीशु ने हमारे लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी, “हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए।” जी हाँ, हमें अपने भाइयों के लिए अपना हृदय कठोर नहीं कर लेना चाहिए। इसके बजाय, अपनी बातों के साथ-साथ अपने “काम और सत्य के द्वारा” भी प्यार दिखाना चाहिए। (3:16-18) यूहन्‍ना की पत्री साफ बताती है कि सच्चे ज्ञान के साथ-साथ यही प्यार परमेश्‍वर के संग चलनेवालों को पिता और पुत्र के साथ अटूट रिश्‍ते में बाँधता है। (2:5, 6) प्यार के इस अटूट रिश्‍ते का आनंद राज्य के वारिस उठाते हैं। उनसे यूहन्‍ना कहता है: “हम उसी में स्थित हैं, जो सत्य है, क्योंकि हम उसके पुत्र यीशु मसीह में स्थिर हैं। परम पिता ही सच्चा परमेश्‍वर है और वही अनन्त जीवन है।”—5:20, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

[फुटनोट]

a दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया, भाग 2, सन्‌ 1982, जी. डब्ल्यू ब्रामिली द्वारा संपादित, पेज 1095-6.

b चर्च का इतिहास (अँग्रेज़ी), III, XXIV, 17.

c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2, पेज 1019.

d नया बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी), दूसरा संस्करण, सन्‌ 1986, जे. डी. डगलस द्वारा संपादित, पेज 426, 604.

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