गीत 13
धन्यवाद की प्रार्थना
(भजन 95:2)
1. र-हम-दिल य-हो-वा ला-यक़ ता-रीफ़ के
कर-ते ऐ मा-लिक फ़र्-याद हम तुझ-से
झुक-ते अब सिज-दे में सुन ले दु-आ
सौं-पा है ख़ुद को ली ते-री प-नाह।
हैं हम कम-ज़ोर और ख़-ता कर-ते रोज़
माँ-गें हम मा-फ़ी और कर-ते अफ़-सोस
बे-टे के ख़ून से लि-या तू-ने मोल
चाह-ते हैं तुझ-से न-सी-हत अन-मोल।
2. ख़ुश हैं वो जिन-को तू आँ-गन में ला-या
स-मझ दे-कर उ-न्हें रौ-शन कि-या।
ते-रा व-चन है ह-मा-रा चि-राग़
मं-दिर में ते-रे रह-ना है आ-बाद।
बा-ज़ू-ए-ता-क़त ते-री बे-मि-साल
अप-ने भक्-तों का तू र-खे ख़-याल
मुक्-ति के दा-ता आ-ए ते-रा राज
हो-गी ना देर ये ऐ-लाँ क-रें आज।
3. हर त-रफ़ छा-ए ख़ु-शी की फ़ि-ज़ा
सा-री धर-ती पर हो ते-री पू-जा।
ते-रा राज आ-ता बर-क-तें ले-कर
दुख, मा-तम, मौत और हर दर्द मि-टा-कर।
यी-शु बु-रा-ई सब दूर क-रे-गा
हर दिल ख़ु-शी से तब झूम उ-ठे-गा।
बु-लंद आ-वाज़ में हम गा-एँ गुन-गान
“शु-क्रि-या ते-रा, य-हो-वा म-हा-न!”