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न्याय सिंहासन के सामने आपकी स्थिति क्या होगी?प्रहरीदुर्ग—1995 | अक्टूबर 15
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दिया।’ (इफिसियों १:२०-२२) क्योंकि तब यीशु के पास मसीहियों पर राज अधिकार था, पौलुस लिख सका कि यहोवा ने “हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।”—कुलुस्सियों १:१३; ३:१.
१५, १६. (क) हम क्यों कहते हैं कि यीशु सा.यु. ३३ में परमेश्वर के राज्य का राजा नहीं बना? (ख) परमेश्वर के राज्य में यीशु ने शासन करना कब शुरू किया?
१५ लेकिन उस समय, यीशु ने अन्य जातियों पर राजा और न्यायी के रूप में कार्य नहीं किया। वह परमेश्वर के पास बैठा था, और उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब वह परमेश्वर के राज्य के राजा के रूप में कार्य करता। उसके बारे में पौलुस ने लिखा: “स्वर्गदूतों में से उस ने किस से कब कहा, कि तू मेरे दहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के नीचे की पीढ़ी न कर दूं?”—इब्रानियों १:१३.
१६ यहोवा के साक्षियों ने काफ़ी सबूत प्रकाशित किया है कि प्रतीक्षा करने का यीशु का समय १९१४ में समाप्त हुआ, जब वह अदृश्य स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य का शासक बना। प्रकाशितवाक्य ११:१५, १६, १८ कहता है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” “और अन्य-जातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा।” जी हाँ, अन्य जातियों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक दूसरे पर अपना क्रोध व्यक्त किया। (लूका २१:२४) युद्ध, भुईंडोल, मरियाँ, खाद्य पदार्थों की कमी, और इसी क़िस्म की बातें जो हमने १९१४ से देखी हैं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यीशु अब परमेश्वर के राज्य में शासन कर रहा है, और संसार का अन्तिम अन्त निकट है।—मत्ती २४:३-१४.
१७. अब तक हम ने कौन-से मुख्य मुद्दे स्थापित कर लिए हैं?
१७ एक संक्षिप्त पुनर्विचार के रूप में: कहा जा सकता है कि परमेश्वर राजा के रूप में सिंहासन पर बैठता है, लेकिन एक और अर्थ में वह अपने सिंहासन पर न्याय करने के लिए बैठ सकता है। सामान्य युग ३३ में, यीशु परमेश्वर के दहिने हाथ बैठा, और वह अब उस राज्य का राजा है। लेकिन क्या यीशु, जो अब राजा के रूप में शासन कर रहा है, न्यायी के रूप में भी कार्य करता है? और इससे हमें क्यों फ़र्क पड़ना चाहिए, ख़ासकर इस समय?
१८. इसका क्या प्रमाण है कि यीशु न्यायी भी होता?
१८ यहोवा ने, जिसके पास न्यायी नियुक्त करने का अधिकार है, यीशु को एक न्यायी के रूप में चुना, क्योंकि वह यहोवा के स्तरों पर ठीक बैठता है। यीशु ने यह दिखाया जब वह लोगों के आध्यात्मिक रूप से जीवित होने के बारे में बोल रहा था: “पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।” (यूहन्ना ५:२२) फिर भी, यीशु की न्यायिक भूमिका में उस क़िस्म के न्याय से अधिक सम्मिलित है, क्योंकि वह जीवतों का और मरे हुओं का न्यायी है। (प्रेरितों १०:४२; २ तीमुथियुस ४:१) एक बार पौलुस ने कहा: “[परमेश्वर] ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य [यीशु] के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।”—प्रेरितों १७:३१; भजन ७२:२-७.
१९. यीशु के बारे में यह बोलना क्यों सही है कि वह न्यायी के रूप में बैठता है?
१९ अतः क्या हम यह निष्कर्ष निकालने में सही हैं कि न्यायी की विशिष्ट भूमिका में यीशु एक महिमा के सिंहासन पर बैठता है? जी हाँ। यीशु ने प्रेरितों से कहा: “नई उत्पत्ति से जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती १९:२८) हालाँकि यीशु अभी उस राज्य का राजा है, मत्ती १९:२८ में उल्लिखित उसकी अतिरिक्त गतिविधि में सहस्राब्दि के दौरान सिंहासन पर बैठकर न्याय करना सम्मिलित होगा। उस समय वह पूरी मानवजाति, धर्मी और अधर्मी दोनों का न्याय करेगा। (प्रेरितों २४:१५) इसे मन में रखना सहायक है क्योंकि अब हम यीशु की एक नीतिकथा की ओर अपना ध्यान मोड़ते हैं जो हमारे समय और हमारे जीवन से सम्बन्धित है।
वह नीतिकथा क्या कहती है?
२०, २१. यीशु के प्रेरितों ने क्या पूछा जो हमारे समय से सम्बन्ध रखता है, और इससे क्या प्रश्न उठता है?
२० यीशु के मरने से कुछ ही समय पहले उसके प्रेरितों ने उससे पूछा: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३) ‘अन्त आने’ से पहले पृथ्वी पर होनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में यीशु ने पूर्वबताया। उस अन्त के कुछ ही समय पहले, राष्ट्र “मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।”—मत्ती २४:१४, २९, ३०.
२१ लेकिन, उन राष्ट्रों के लोगों का क्या हश्र होगा जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आता है? आइए भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा से पता लगाते हैं, जो इन शब्दों के साथ शुरू होती है: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके साम्हने इकट्ठी की जाएंगी।”—मत्ती २५:३१, ३२.
२२, २३. कौन-से मुद्दे दिखाते हैं कि भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति १९१४ में नहीं शुरू हुई?
२२ क्या यह नीतिकथा तब लागू होती है जब १९१४ में यीशु राज सत्ता में बैठा, जो कि हम लम्बे अरसे से समझते रहे हैं? मत्ती २५:३४ राजा के रूप में उसका उल्लेख करता है, तो यह तर्कसंगत है कि यह नीतिकथा १९१४ में यीशु के राजा बनने के समय से लागू होती है। लेकिन इसके तुरन्त बाद उसने कौन-सा न्याय किया? यह ‘सब जातियों’ का न्याय नहीं था। इसके बजाय, उसने अपना ध्यान ‘परमेश्वर का घर’ होने का दावा करनेवालों की ओर मोड़ा। (१ पतरस ४:१७ फुटनोट) मलाकी ३:१-३ के सामंजस्य में, यहोवा के संदेशवाहक के रूप में यीशु ने पृथ्वी पर बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों की न्यायिक रूप से जाँच की। यह मसीहीजगत पर न्यायिक दण्ड का भी समय था, जिसने झूठमूठ ‘परमेश्वर का घर’ होने का दावा किया।c (प्रकाशितवाक्य १७:१, २; १८:४-८) फिर भी कोई बात यह नहीं दिखाती कि उस समय, या उसके बाद, यीशु अंततः भेड़ों या बकरियों के रूप में सब जातियों के लोगों का न्याय करने के लिए बैठा।
२३ यदि हम नीतिकथा में यीशु की गतिविधि का विश्लेषण करते हैं, तो हम उसे अंततः सब जातियों का न्याय करते हुए देखते हैं। नीतिकथा यह नहीं दिखाती कि यह न्याय-कार्य कई सालों की लम्बी अवधि तक चलेगा, मानो इन पिछले दशकों के दौरान मरनेवाले हर व्यक्ति का न्याय किया गया हो कि वह अनन्त मृत्यु के योग्य है या अनन्त जीवन के। ऐसा लगता है कि हाल के दशकों में मरनेवाले अधिकांश लोग मानवजाति की सामान्य क़ब्र में गए हैं। (प्रकाशितवाक्य ६:८; २०:१३) लेकिन, यह नीतिकथा उस समय के बारे में बताती है जब यीशु ‘सब जातियों’ के लोगों का न्याय करता है जो उस समय जीवित हैं और उसके न्यायदण्ड के कार्यान्वयन का सामना करते हैं।
२४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति कब होगी?
२४ दूसरे शब्दों में, नीतिकथा भविष्य की ओर संकेत करती है जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा। वह उस समय जीवित लोगों का न्याय करने के लिए बैठेगा। उसका न्याय इस बात पर आधारित होगा कि इन लोगों ने अपने आपको किस रूप में दिखाया है। उस समय “धर्मी और दुष्ट का भेद” स्पष्ट रूप से स्थापित हो चुका होगा। (मलाकी ३:१८) न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने का असल काम एक सीमित समय में पूरा किया जाएगा। यीशु, व्यक्तियों के बारे में जो प्रकट हो चुका है उस पर आधारित न्यायसंगत फ़ैसले सुनाएगा।—२ कुरिन्थियों ५:१० भी देखिए।
२५. मनुष्य के पुत्र का महिमा के सिंहासन पर बैठने के बारे में बात करते समय मत्ती २५:३१ क्या चित्रित कर रहा है?
२५ तो फिर, इसका अर्थ है कि यीशु का न्याय के लिए ‘अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होना,’ जो मत्ती २५:३१ में उल्लिखित है, उस भावी समय पर लागू होता है जब यह शक्तिशाली राजा राष्ट्रों पर न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए बैठेगा। जी हाँ, मत्ती २५:३१-३३, ४६ का न्यायिक दृश्य, जिसमें यीशु सम्मिलित है दानिय्येल अध्याय ७ के दृश्य के तुल्य है, जहाँ न्यायी की अपनी भूमिका निभाने के लिए सत्ताधारी राजा, अति प्राचीन विराजमान हुआ।
२६. इस नीतिकथा की कौन-सी नयी व्याख्या सामने आती है?
२६ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा को इस प्रकार समझना दिखाता है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय सुनाया जाना भविष्य में होगा। यह मत्ती २४:२९, ३० में उल्लिखित “क्लेश” के शुरू होने और मनुष्य के पुत्र के ‘अपनी महिमा में आने’ के बाद होगा। (मरकुस १३:२४-२६ से तुलना कीजिए।) उस समय, जब सम्पूर्ण दुष्ट व्यवस्था अपने अन्त पर होगी, यीशु मुक़द्दमा चलाएगा और न्यायदण्ड सुनाएगा और कार्यान्वित करेगा।—यूहन्ना ५:३०; २ थिस्सलुनीकियों १:७-१०.
२७. यीशु की अन्तिम नीतिकथा के बारे में हमें क्या जानने की दिलचस्पी होनी चाहिए?
२७ यह यीशु की नीतिकथा के समय के बारे में हमारी समझ को स्पष्ट करता है, जो दिखाती है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय कब होगा। लेकिन यह हम पर, जो जोश के साथ राज्य सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, कैसे प्रभाव करता है? (मत्ती २४:१४) क्या यह हमारे कार्य को कम महत्त्वपूर्ण बना देता है, या क्या यह ज़िम्मेदारी का ज़्यादा भार लाता है? आइए अगले लेख में देखें कि हम कैसे प्रभावित होते हैं।
[फुटनोट]
a दानिय्येल ७:१०, २६ में “न्यायी” अनुवादित शब्द एज्रा ७:२६ और दानिय्येल ४:३७; ७:२२ में भी पाया जाता है।
b मसीहियों द्वारा एक दूसरे को कचहरी ले जाने के सम्बन्ध में पौलुस ने पूछा: “क्या उन्हीं को बैठाओगे [अर्थात्, न्यायी ठहराओगे] जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं?”—१ कुरिन्थियों ६:४.
c वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ ५६, ७३, २३५-४५, २६० देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ यहोवा राजा और न्यायी दोनों के रूप में कैसे कार्य करता है?
◻ ‘सिंहासन पर विराजमान होने’ के कौन-से दो अर्थ हो सकते हैं?
◻ मत्ती २५:३१ के समय के बारे में हम पहले क्या कहते थे, लेकिन एक समंजित दृष्टिकोण का क्या आधार है?
◻ जैसा मत्ती २५:३१ संकेत करता है, मनुष्य का पुत्र अपने सिंहासन पर कब विराजमान होता है?
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भेड़ों और बकरियों के लिए क्या भविष्य?प्रहरीदुर्ग—1995 | अक्टूबर 15
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भेड़ों और बकरियों के लिए क्या भविष्य?
“जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह [लोगों को] एक दूसरे से अलग करेगा।”—मत्ती २५:३२.
१, २. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा में हमें दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए?
यीशु मसीह निश्चय ही पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ शिक्षक था। (यूहन्ना ७:४६) उसके सिखाने का एक तरीक़ा था नीतिकथाओं, या दृष्टान्तों का प्रयोग। (मत्ती १३:३४, ३५) ये सरल थे फिर भी गहरी आध्यात्मिक और भविष्यसूचक सच्चाइयों को बताने में प्रभावशाली।
२ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा में यीशु ने उस समय की ओर संकेत किया जब वह एक ख़ास हैसियत से कार्य करता: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और . . .।” (मत्ती २५:३१) हमें इसमें दिलचस्पी होनी चाहिए क्योंकि यह दृष्टान्त इस प्रश्न के बारे में यीशु के उत्तर का अन्तिम भाग है: “तेरी उपस्थिति का और रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३, NW) लेकिन इसका हमारे लिए क्या अर्थ है?
३. इससे पहले अपने उपदेश में, यीशु ने क्या कहा कि बड़े क्लेश के शुरू होने के तुरन्त बाद क्या होगा?
३ यीशु ने पूर्वबताया कि बड़े क्लेश के शुरू होने के “बाद तुरन्त” असाधारण घटनाएँ होंगी, घटनाएँ जिनकी हम प्रतीक्षा करते हैं। उसने कहा कि तब “मनुष्य के पुत्र का चिन्ह” दिखाई देगा। इससे “पृथ्वी के सब कुलों के लोग” अत्यधिक प्रभावित होंगे जो “मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।” मनुष्य का पुत्र “अपने दूतों” के साथ
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