गीत 32
अटल बनो, डटे रहो!
1. फै-ली है दे-खो दह-शत हर क-हीं
हो-गा कल क्या कर-ते फ़ि-क्र स-भी।
है ज़-रू-री र-हें बे-ख़ौफ़, अ-टल
याह की से-वा में हर पल।
(कोरस)
हर दिन ड-टे हम र-हें
ना हम दुन्-या में फँ-सें।
ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।
2. खीं-चे ज़-मा-ना अप-नी ओर ह-में
हो दु-रु-स्त मन तो किस-का ज़ोर च-ले?
था-मे र-खें याह की बा-तों को हम
डग-म-गा-ए ना क़-दम।
(कोरस)
हर दिन ड-टे हम र-हें
ना हम दुन्-या में फँ-सें।
ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।
3. हों-ठों का फल है च-ढ़ा-ना ह-में
काम है ब-हुत हम ढी-ले ना प-ड़ें।
हम अ-गर मं-ज़िल पे र-खें न-ज़र
जा-एँ-गे दिन ये गु-ज़र।
(कोरस)
हर दिन ड-टे हम र-हें
ना हम दुन्-या में फँ-सें।
ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।
(लूका 21:9; 1 पत. 4:7 भी देखिए।)