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गीत 32

अटल बनो, डटे रहो!

(1 कुरिंथियों 15:58)

1. फै-ली है दे-खो दह-शत हर क-हीं

हो-गा कल क्या कर-ते फ़ि-क्र स-भी।

है ज़-रू-री र-हें बे-ख़ौफ़, अ-टल

याह की से-वा में हर पल।

(कोरस)

हर दिन ड-टे हम र-हें

ना हम दुन्‌-या में फँ-सें।

ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।

2. खीं-चे ज़-मा-ना अप-नी ओर ह-में

हो दु-रु-स्त मन तो किस-का ज़ोर च-ले?

था-मे र-खें याह की बा-तों को हम

डग-म-गा-ए ना क़-दम।

(कोरस)

हर दिन ड-टे हम र-हें

ना हम दुन्‌-या में फँ-सें।

ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।

3. हों-ठों का फल है च-ढ़ा-ना ह-में

काम है ब-हुत हम ढी-ले ना प-ड़ें।

हम अ-गर मं-ज़िल पे र-खें न-ज़र

जा-एँ-गे दिन ये गु-ज़र।

(कोरस)

हर दिन ड-टे हम र-हें

ना हम दुन्‌-या में फँ-सें।

ता-क़त सच से पा-के याह से व-फ़ा क-रें।

(लूका 21:9; 1 पत. 4:7 भी देखिए।)

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