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  • ‘विश्‍वास की बातों से अपना पालन-पोषण करना’
    राज-सेवा—2005 | जनवरी
    • ‘विश्‍वास की बातों से अपना पालन-पोषण करना’

      परमेश्‍वर की भक्‍ति करते हुए ज़िंदगी बिताने में कड़ी मेहनत लगती है। (1 तीमु. 4:7-10) ऐसे में अगर हम अपनी ताकत पर भरोसा करें, तो हम ज़्यादा दूर नहीं चल पाएँगे बल्कि जल्द ही थक जाएँगे या लड़खड़ाकर गिर जाएँगे। (यशा. 40:29-31) इसलिए हमें यहोवा से ताकत पाने की ज़रूरत है और इसका एक तरीका है, ‘विश्‍वास की बातों से अपना पालन-पोषण करना।’—1 तीमु. 4:6.

      2 भरपूर आध्यात्मिक भोजन: यहोवा अपने वचन और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें भरपूर आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराता है। (मत्ती 24:45) क्या इसका फायदा उठाने के लिए हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं? क्या हम रोज़ बाइबल पढ़ते हैं? क्या हम समय तय करके निजी अध्ययन और मनन करते हैं? (भज. 1:2, 3) इस तरह पौष्टिक आध्यात्मिक आहार लेने से हमें ताकत मिलती है और शैतान के संसार के उन दबावों से हमारी हिफाज़त होती है जिनसे हम कमज़ोर पड़ सकते हैं। (1 यूह. 5:19) अगर हम अपने दिमाग को अच्छी बातों से भरेंगे और उन्हें अपने जीवन में लागू करेंगे, तो बेशक यहोवा हमारे साथ होगा।—फिलि. 4:8, 9.

      3 यहोवा हमें कलीसिया की सभाओं के ज़रिए भी मज़बूत करता है। (इब्रा. 10:24, 25) इन सभाओं में हमें जो आध्यात्मिक हिदायतें और भाई-बहनों का बढ़िया साथ मिलता है, उनसे हम इतना मज़बूत होते हैं कि परीक्षाओं में दृढ़ खड़े रह पाते हैं। (1 पत. 5:9, 10) एक जवान मसीही कहती है: “दिन भर स्कूल में आनेवाले दबावों का सामना करते-करते मेरे हौसले पस्त हो जाते हैं। लेकिन सभाएँ मेरे लिए रेगिस्तान में हरे-भरे बाग की तरह होती हैं। वहाँ जाने पर मैं तरो-ताज़ा महसूस करती हूँ और अगले दिन स्कूल में आनेवाली समस्याओं का सामना करने के लिए मुझे शक्‍ति मिलती है।” सभाओं में हाज़िर होने के लिए हम जी-जान से जो मेहनत करते हैं, उसके बदले हमें आशीष ज़रूर मिलती है।

      4 सच्चाई का ऐलान करना: दूसरों को प्रचार करना, यीशु के लिए भोजन के बराबर था। इससे उसे नयी ताकत मिलती थी। (यूह. 4:32-34) उसी तरह, जब हम दूसरों को परमेश्‍वर के शानदार वादों के बारे में बताते हैं, तो हममें भी नया जोश भर आता है। प्रचार में लगे रहने से हमारा दिलो-दिमाग, पूरी तरह परमेश्‍वर के राज्य और उसके ज़रिए जल्द मिलनेवाली आशीषों पर लगा रहता है। जी हाँ, प्रचार से हमें वाकई बहुत ताज़गी मिलती है।—मत्ती 11:28-30.

      5 यह हमारे लिए कितनी बड़ी आशीष है कि हम उस आध्यात्मिक भोजन का पूरा-पूरा फायदा उठा पा रहे हैं, जो आज यहोवा अपने लोगों को भरपूर मात्रा में दे रहा है! इसलिए आइए हम खुशी-खुशी और बुलंद आवाज़ में अपने परमेश्‍वर की महिमा करते रहें।—यशा. 65:13, 14.

  • तरक्की करनेवाले बाइबल अध्ययन चलाना
    राज-सेवा—2005 | जनवरी
    • तरक्की करनेवाले बाइबल अध्ययन चलाना

      भाग 5: कितनी जानकारी पर चर्चा करें, यह तय करना

      यीशु ने अपने चेलों को सिखाते वक्‍त, इस बात का ध्यान रखा कि उनकी कुछ सीमाएँ हैं। इसलिए उसने “उन की समझ के अनुसार” उन्हें सिखाया। (मर. 4:33; यूह. 16:12) उसी तरह आज परमेश्‍वर के वचन के सिखानेवालों को तय करने की ज़रूरत है कि बाइबल अध्ययन चलाते वक्‍त, एक समय के अंदर कितनी जानकारी पर चर्चा करना सही होगा। यह फैसला, अध्ययन चलानेवाले शिक्षक और बाइबल विद्यार्थी, दोनों की काबिलीयत और हालात पर निर्भर है।

      2 मज़बूत विश्‍वास पैदा कीजिए: कुछ विद्यार्थी शायद जानकारी को एक ही बार में समझ जाएँ, जबकि दूसरों को ज़्यादा समय लग सकता है। हम नहीं चाहते कि ढेर सारी जानकारी को जल्द-से-जल्द पूरा करने के चक्कर में, हम इस अहम बात को नज़रअंदाज़ कर दें कि विद्यार्थी को जानकारी साफ-साफ समझ में आयी है या नहीं। हर विद्यार्थी को एक मज़बूत नींव की ज़रूरत है जिस पर वह परमेश्‍वर के वचन से मिले अपने नए विश्‍वास को और भी बढ़ा सके।—नीति. 4:7; रोमि. 12:2.

      3 हफ्ते-दर-हफ्ते अध्ययन चलाते वक्‍त, आपको अपने विद्यार्थी की मदद करनी चाहिए ताकि वह परमेश्‍वर के वचन से सीखी बातों को अच्छी तरह समझकर उन्हें कबूल कर सके। इसके लिए जितना ज़रूरी है, उतना समय बिताएँ। जानकारी पर फटाफट चर्चा न करें जिससे वह सिखायी जा रही सच्चाइयों से पूरा फायदा न उठा सके। इसके बजाय, अध्ययन के दौरान काफी समय दें ताकि वह मुख्य मुद्दों पर ठीक से ध्यान दे सके, साथ ही उन खास आयतों की जाँच कर सके जो बाइबल शिक्षाओं की बुनियाद हैं।—2 तीमु. 3:16, 17.

      4 विषय से मत भटकिए: अध्ययन के दौरान हम न तो कम समय में ढेर सारी जानकारी पूरा करना चाहते हैं, ना ही विषय से भटकना चाहते हैं। इसलिए अगर विद्यार्थी को ज़ाती मामलों के बारे में लंबी-चौड़ी बातें करने की आदत है, तो हम उससे कह सकते हैं कि ये बातें हम अध्ययन के बाद करेंगे।—सभो. 3:1.

      5 दूसरी तरफ, सच्चाई के लिए जोश होने की वजह से अगर हममें बोलते रहने की आदत है, तो अध्ययन के दौरान इस आदत पर काबू पाना हमारे लिए चुनौती हो सकती है। (भज. 145:6, 7) माना कि कभी-कभार कोई मुद्दा या अनुभव बताना फायदेमंद हो सकता है, मगर हम नहीं चाहते कि ऐसे मुद्दे या अनुभव इतने लंबे या ढेर सारे हों कि विद्यार्थी, बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं का सही ज्ञान लेने से ही चूक जाए।

      6 अगर हम हर अध्ययन के दौरान सही मात्रा में जानकारी पर चर्चा करेंगे, तो हम अपने बाइबल विद्यार्थी को ‘यहोवा के प्रकाश में चलने’ में मदद दे रहे होंगे।—यशा. 2:5.

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