प्रचार के दौरान सूझ-बूझ से काम लीजिए
मसीह यीशु ने अपने चेलों को इस बारे में कारगर और सही हिदायतें दी थीं कि उन्हें कैसे प्रचार करना है। वह जानता था कि बदलते हालात के मुताबिक उन्हें अपने प्रचार करने के तरीकों में फेरबदल करना होगा। मिसाल के लिए, जब उसने अपने बारह चेलों को पहली बार प्रचार करने के लिए भेजा, तो उसने उन्हें कुछ हिदायतें दीं, जिन्हें हम मत्ती 10:9, 10 में पढ़ सकते हैं। (लूका 9:3) ये हिदायतें उस वक्त के लिए सही थीं। मगर बाद में हालात बदल गए। पहले लोग उनका संदेश सुनते थे, मगर अब लोग उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। इसलिए हम लूका 22:35-37 में पाते हैं कि यीशु ने अपने चेलों को कुछ अलग हिदायतें दीं। उसी तरह, आज हमें भी हालात के मुताबिक अपने प्रचार करने के तरीकों में फेरबदल करने की ज़रूरत है।
2 हमारा मकसद है, लोगों को परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाना और नेकदिल लोगों को ढूँढ़ना। यहोवा के सेवक इस काम में ज़ोर-शोर से लगे हुए हैं और उनके काम पर यहोवा की आशीष साफ ज़ाहिर है। मगर जहाँ तक लोगों की बात है, तो सभी हमारे इरादे को नहीं समझते या वे हमारे शांति के संदेश को कबूल करना नहीं चाहते। और-तो-और, शैतान इब्लीस नहीं चाहता कि खुशखबरी लोगों तक पहुँचे और इस वजह से वह हम पर कई विरोध लाता है। (1 पत. 5:8; प्रका. 12:12, 17) इसलिए हमारे लिए यह ज़रूरी है कि हम सूझ-बूझ और खरी बुद्धि से काम लें, खासकर तब जब हम घर-घर जाकर प्रचार करते हैं। (नीति. 3:21, 22) भले ही आपके इलाके में अब तक कोई विरोध न आया हो, मगर बुद्धिमानी इसी में है कि आप सूझ-बूझ और खरी बुद्धि से काम लें, ताकि आगे चलकर समस्या का सामना न करना पड़े।—नीति. 22:3.
3 प्रचार की सभाएँ: अगर हम पुस्तक अध्ययन से जुड़े इंतज़ामों को मानें, तो हम प्रचार में जानेवाले समूह को छोटा बनाए रखने में मदद देंगे। ये समूह प्रचार की सभा के लिए किसी भाई या बहन के घर इकट्ठा हो सकते हैं। मगर ध्यान रहे कि इन भाई-बहनों का घर कट्टरपंथियों या ऐसे लोगों के इलाके में न हो, जो अपने धर्म में गहरी आस्था रखते हैं। अगर सभाएँ रखने के लिए ज़्यादा जगहें नहीं हैं, तो राज्य घर का इस्तेमाल करना अक्लमंदी होगी, क्योंकि वहाँ आस-पास रहनेवाले लोग हमें आते-जाते देखने के आदी हो गए हैं। या फिर आप प्रचार के इलाके से थोड़ी दूर किसी जगह पर इकट्ठा हो सकते हैं। प्रचार के इलाके में जाने से पहले सारे इंतज़ाम किए जाने चाहिए, ताकि भाई-बहन दो-दो करके चुपचाप प्रचार के लिए निकल जाएँ। प्रचार के इलाके में सभी का एक-साथ जमा होना, ज़ोर-ज़ोर से बातें करना या दूसरे तरीकों से लोगों का ध्यान खींचना, बुद्धिमानी नहीं होगी। जो लोग अपनी-अपनी गाड़ियाँ लेकर आते हैं, वे उन्हें प्रचार के इलाके से थोड़ी दूर खड़ी कर सकते हैं, ताकि उन पर ऐसे लोगों की नज़र न पड़े, जो हमारे लिए बेवजह मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।
4 आँखें खुली रखिए और आस-पास के माहौल पर नज़र रखिए: देखा गया है कि जब कोई विरोध आता है, जिसमें भीड़-की-भीड़ प्रचारकों पर टूट पड़ती है, तो उसकी शुरूआत बस एक व्यक्ति से होती है। पहले तो यह व्यक्ति हम पर नज़र रखता है और फिर भीड़ को इकट्ठा करता है। ऐसे हालात न उठें, इसके लिए हमें होशियार रहने और आँखें खुली रखने की ज़रूरत है। जो प्रचारक घर-मालिक से बात नहीं कर रहा होता है, उसे घर-मालिक का ध्यान भटकाए बगैर चारों तरफ नज़र रखनी चाहिए। (मत्ती 10:16) अगर आप पाते हैं कि कोई आप पर खास नज़र रख रहा है, या आपकी तरफ देखते हुए मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा है, तो बेहतर होगा कि आप बातचीत वहीं खत्म करके इलाके से चुपचाप निकल जाएँ। (नीति. 17:14) पहले से ही यह इंतज़ाम किया जा सकता है कि जब ऐसे हालात उठते हैं, तो हम किसी दूसरे इलाके में जाकर प्रचार कर सकते हैं। ये सब कदम उठाने के लिए प्रौढ़ता और बुद्धि की ज़रूरत होती है, इसलिए अच्छा होगा अगर नए प्रचारक हमेशा तजुरबेकार प्रचारकों के साथ काम करें।
5 साफ-सुथरे, पर भीड़ से अलग नहीं: प्रचार में सूझ-बूझ से काम लेने और दूसरों का ध्यान अपनी तरफ न खींचने में एक और बात शामिल है। वह है हमारा पहनावा। बेशक, हम प्रचार में हमेशा साफ-सुथरे और शालीन कपड़े पहनते हैं। मगर हम जिस समाज में रहते हैं वहाँ के लोगों जैसे कपड़े पहनना, बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है। हम नहीं चाहते कि हम भीड़ से बिलकुल अलग दिखें। वरना लोग हमें विदेशी समझकर हमारे संदेश को ठुकरा देंगे। ज़ाहिर है कि यीशु भी अपने ज़माने के लोगों की तरह ही कपड़े पहनता था। यह हम इसलिए कह सकते हैं, क्योंकि उसकी पहचान कराने के लिए यहूदा को उसे चूमना पड़ा। वाकई, जहाँ तक पहनावे की बात है, यीशु भीड़ से अलग नहीं दिखा। (मत्ती 26:48; मर. 14:44) हम भी इस मामले में ध्यान दे सकते हैं। और जब कोई इस सिद्धांत के मुताबिक कुछ फेरबदल करने का चुनाव करता है, तो दूसरों को उसके फैसले का आदर करना चाहिए। बेशक, हम ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते, जिससे कि प्रचार में लोग हमारी वजह से ठोकर खाएँ।—2 कुरि. 6:3.
6 अगर हम प्रचार में सूझ-बूझ से काम लें, तो हम काफी समस्याओं को उठने से बचा पाएँगे। नतीजा, इन अंतिम दिनों के मुश्किल-भरे दौर में भी हम यहोवा की इच्छा पूरी करने में लगे रह पाएँगे, जिससे उसकी महिमा होगी।