गीत 8
प्रभु का संध्या-भोज
1. पाक शाम है नि-सान चौ-दह्-वीं की
याह तू-ने इक् आ-शा जो दी।
थी फ़-सह की वो रात, कि-या मेम-ने का घात
हु-आ फिर इस्-रा-एल आ-ज़ाद।
यी-शु की ब-लि की झ-लक थी
और ते-रे इं-साफ़ की थी माँग
याद र-हे-गी ये शाम, दि-या यी-शु ने दाम
है क़-बूल ह-में ये इं-त-ज़ाम।
2. दर पे ते-रे आ-ए य-हो-वा
कर-ने शु-क्रि-या-दा ते-रा।
जब हम पा-पी ही थे, दि-या बे-टा तू-ने
इज़-हार अप-ने प्यार का कि-या।
एह-सान ते-रा दिल से हम मान-ते
यी-शु के भी हैं क़-दर-दान
जिस-ने रा-स्ता खो-ला, तुझ-से रिश्-ता जु-ड़ा
कि स-दा का पा-एँ जी-वन दान।
(लूका 22:14-20; 1 कुरिं. 11:23-26 भी देखिए।)