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प्रभु का संध्या-भोज

(मत्ती 26:26-30)

1. पाक शाम है नि-सान चौ-दह्‌-वीं की

याह तू-ने इक्‌ आ-शा जो दी।

थी फ़-सह की वो रात, कि-या मेम-ने का घात

हु-आ फिर इस्‌-रा-एल आ-ज़ाद।

यी-शु की ब-लि की झ-लक थी

और ते-रे इं-साफ़ की थी माँग

याद र-हे-गी ये शाम, दि-या यी-शु ने दाम

है क़-बूल ह-में ये इं-त-ज़ाम।

2. दर पे ते-रे आ-ए य-हो-वा

कर-ने शु-क्रि-या-दा ते-रा।

जब हम पा-पी ही थे, दि-या बे-टा तू-ने

इज़-हार अप-ने प्यार का कि-या।

एह-सान ते-रा दिल से हम मान-ते

यी-शु के भी हैं क़-दर-दान

जिस-ने रा-स्ता खो-ला, तुझ-से रिश्‌-ता जु-ड़ा

कि स-दा का पा-एँ जी-वन दान।

(लूका 22:14-20; 1 कुरिं. 11:23-26 भी देखिए।)

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