अपने नाम जैसा यरूशलेम
‘जो मैं सृजने पर हूं उसमें सर्वदा के लिए आनन्दित हो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को आनन्द का कारण होने के लिए सृजूंगा।’ —यशायाह ६५:१८, NHT.
१. परमेश्वर के चुने हुए नगर के लिए एज्रा कैसा महसूस करता था?
यहूदी याजक एज्रा परमेश्वर के वचन का गहन अध्ययन करने की वज़ह से यहोवा की सच्ची उपासना के साथ यरूशलेम के नाते को अच्छी तरह जानता था और उसकी दिल से कदर करता था। (व्यवस्थाविवरण १२:५; एज्रा ७:२७) उसने ईश्वर-प्रेरणा से बाइबल का जो भाग लिखा उससे परमेश्वर के नगर के लिए उसका प्यार नज़र आता है। ये भाग हैं पहला और दूसरा इतिहास और एज्रा। पूरी बाइबल में यरूशलेम का नाम ८०० से ज़्यादा बार आता है और एज्रा द्वारा लिखे गए इतिहास के इन लेखों में इस संख्या का एक-चौथाई पाया जाता है।
२. यरूशलेम नाम के अर्थ में हम कौन-सी भविष्यवाणी देख सकते हैं?
२ बाइबल में इस्तेमाल की गयी इब्रानी भाषा में, शब्द “यरूशलेम” एक द्विवचन है। यह द्विवचन अकसर उन चीज़ों के लिए इस्तेमाल किया जाता था जिनके जोड़े होते हैं जैसे आँखें, कान, हाथ और पैर। इस दोहरे रूप में, यरूशलेम का नाम उस शांति की भविष्यवाणी समझा जा सकता था जो परमेश्वर के लोगों को दो तरीकों से मिलेगी—आध्यात्मिक और शारीरिक। बाइबल यह नहीं बताती कि एज्रा यह बात पूरी तरह समझा या नहीं। लेकिन एक याजक के नाते, परमेश्वर के साथ शांति का रिश्ता कायम रखने में यहूदियों की मदद करने के लिए वह जो कुछ कर सकता था उसने किया। और बेशक यरूशलेम को उसके नाम, यानी “दोहरी शांति का डेरा [या, आधार],” जैसा बनाने के लिए उसने जी-जान से मेहनत की।—एज्रा ७:६.
३. कितने साल गुज़रने के बाद हम फिर से एज्रा और उसके कामों के बारे में पढ़ते हैं और हम उसे क्या करता हुआ पाते हैं?
३ एज्रा के यरूशलेम आने के १२ साल बाद नहेमायाह यरूशलेम आया, लेकिन बाइबल यह नहीं बताती कि इन १२ सालों के दौरान खुद एज्रा कहाँ था। उस वक्त इस्राएल जाति का आध्यात्मिक रूप से बहुत ही बुरा हाल था। इससे लगता है कि एज्रा वहाँ मौजूद नहीं था। लेकिन, एक बार फिर हम एज्रा को यरूशलेम की शहरपनाह बन जाने के बाद उसी नगर में एक वफादार याजक के नाते सेवा करता हुआ पाते हैं।
शानदार सभा का दिन
४. इस्राएलियों के सातवें महीने के पहले दिन का क्या महत्त्व था?
४ त्योहारों के खास महीने तिशरी से थोड़े ही समय पहले यरूशलेम की शहरपनाह पूरी की गयी। तिशरी महीना इस्राएल के धार्मिक कैलेंडर में सातवाँ महीना था। तिशरी का पहला दिन नए चाँद का विशेष त्योहार था जिसे नरसिंगा फूँकने का त्योहार कहा जाता था। उस दिन, जब यहोवा को बलिदान चढ़ाए जाते थे तब याजक नरसिंगा फूँकते थे। (गिनती १०:१०; २९:१) यह दिन इस्राएलियों को तिशरी के १०वें दिन पड़नेवाले सालाना प्रायश्चित्त के दिन के लिए और उसी महीने की १५ से २१ तारीख तक चलनेवाले खुशियों भरे बटोरन के पर्व के लिए तैयार करता था।
५. (क) एज्रा और नहेमायाह ने “सातवें महीने के पहिले दिन” का किस तरीके से अच्छा इस्तेमाल किया? (ख) इस्राएली रोने क्यों लगे?
५ “सातवें महीने के पहिले दिन” “सब इस्राएली” इकट्ठे हुए, शायद नहेमायाह और एज्रा ने उन्हें आने का प्रोत्साहन दिया था। पुरुष, स्त्रियाँ और “जितने सुनकर समझ सकते थे” उन सबको वहाँ बुलाया गया था। और छोटे बच्चे भी वहाँ मौजूद थे और सुन रहे थे जब “भोर से दो पहर तक” एज्रा एक मंच पर खड़ा होकर व्यवस्था पढ़ता रहा। (नहेमायाह ८:१-४) बीच-बीच में, लेवी पढ़े जा रहे भागों का अर्थ लोगों को समझा रहे थे। इसकी वज़ह से इस्राएली रो पड़े क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि परमेश्वर की व्यवस्था को मानने से वे और उनके बाप-दादा किस हद तक दूर चले गए थे।—नहेमायाह ८:५-९.
६, ७. यहूदियों को रोने से चुप कराने के लिए नहेमायाह ने जो किया उससे मसीही क्या सीख सकते हैं?
६ लेकिन यह वक्त दुःखी होने या रोने का नहीं था। यह पर्व का दिन था और लोगों ने तभी-तभी यरूशलेम की शहरपनाह बनाने का काम पूरा किया था। इसलिए नहेमायाह ने उन्हें सही नज़रिया रखने में मदद की, उसने कहा: “जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिये कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिये पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।” आज्ञा मानकर, “सब लोग खाने, पीने, बैना भेजने और बड़ा आनन्द मनाने को चले गए, क्योंकि जो व्चन उनको समझाए गए थे, उन्हें वे समझ गए थे।”—नहेमायाह ८:१०-१२.
७ आज परमेश्वर के लोग इस वृत्तांत से बहुत कुछ सीख सकते हैं। जिन लोगों को सभाओं और सम्मेलनों में सिखाने का सुअवसर मिलता है उन्हें इस वृत्तांत को याद रखना चाहिए। गलतियाँ सुधारने के लिए कभी-कभी ज़रूरी सलाहें देने के अलावा ऐसे मौकों पर परमेश्वर की माँगों को पूरा करने से मिलनेवाले फायदों और आशीषों पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। अच्छे कामों की सराहना की जाती है और धीरज धरते रहने का प्रोत्साहन दिया जाता है। इन सभाओं से घर लौटते वक्त परमेश्वर के लोगों का दिल खुशी से भरा होना चाहिए क्योंकि उन्हें परमेश्वर के वचन से प्रोत्साहन देनेवाली शिक्षा मिलती है।—इब्रानियों १०:२४, २५.
एक और आनंद भरी सभा
८, ९. सातवें महीने के दूसरे दिन कौन-सी खास सभा हुई और इससे परमेश्वर के लोगों को क्या-क्या फायदा हुआ?
८ उस खास महीने के दूसरे दिन, “समस्त प्रजा के पितरों के घराने के मुख्य मुख्य पुरुष और याजक और लेवीय लोग, एज्रा शास्त्री के पास व्यवस्था के वचन ध्यान से सुनने के लिये इकट्ठे हुए।” (नहेमायाह ८:१३) एज्रा ने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था।” इसलिए वह पूरी तरह इस सभा को चलाने के लिए काबिल था। (एज्रा ७:१०) बेशक, इस सभा ने दिखाया कि परमेश्वर के लोगों को किस-किस बात में और ज़्यादा अच्छी तरह व्यवस्था वाचा का पालन करने की ज़रूरत थी। सबसे पहली चिंता इस बात की थी कि पास आ रहे झोंपड़ियों के पर्व को मनाने के लिए सही तरीके से तैयारियाँ कैसे की जाएँ।
९ एक हफ्ते तक चलनेवाले इस पर्व को एकदम सही तरीके से मनाया गया और सब लोग, तरह-तरह के पेड़ों की टहनियों और पत्तियों से झोपड़ियाँ बनाकर उनमें रहे। लोगों ने ये झोपड़ियाँ अपने घरों की छतों पर, अपने आँगनों में, मंदिर के आँगन में और यरूशलेम के चौराहों पर बनायीं। (नहेमायाह ८:१५, १६) लोगों को इकट्ठा करने और उनको परमेश्वर की व्यवस्था से पढ़कर सुनाने का यह कितना अच्छा मौका था! (व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१३ से तुलना कीजिए।) ऐसा हर दिन किया जाता था, पर्व के “पहले दिन से लेकर अन्तिम दिन तक” और इसकी वज़ह से परमेश्वर ने लोगों ने “बड़ा आनन्द मनाया।”—नहेमायाह ८:१७, १८, NHT.
हमें परमेश्वर के भवन को नहीं छोड़ना चाहिए
१०. सातवें महीने के २४वें दिन एक खास सभा का प्रबंध क्यों किया गया?
१० परमेश्वर के लोगों के बीच गंभीर गलतियों को सुधारने के लिए सही मौके और जगह को ध्यान में रखा जाना चाहिए। एज्रा और नहेमायाह को महसूस हुआ होगा कि यही वह मौका है, इसलिए उन्होंने तिशरी महीने की २४वीं तारीख को उपवास रखे जाने का प्रबंध किया। एक बार फिर परमेश्वर की व्यवस्था पढ़ी गयी जिससे लोगों ने खुलकर अपने-अपने पाप कबूल किए। उसके बाद लेवियों ने याद दिलाया कि कैसे परमेश्वर ने अपने भटके हुए लोगों के साथ व्यवहार किया, फिर बहुत ही सुंदर शब्दों में उन्होंने यहोवा की महिमा की और ‘सच्चाई की वाचा’ बाँधी जिस पर हाकिम, लेवी और याजकों ने अपनी मुहर लगायी।—नहेमायाह ९:१-३८.
११. किस ‘सच्चाई की वाचा’ को पूरा करने के लिए यहूदियों ने शपथ खायी?
११ सब लोगों ने मिलकर यह शपथ खायी कि वे ‘सच्चाई की’ यह लिखित ‘वाचा’ पूरी करेंगे कि वे सच्चे “परमेश्वर की . . . व्यवस्था पर चलेंगे।” और उन्होंने ‘उस देश के लोगों’ के साथ ब्याह-शादी न करने का फैसला किया। (नहेमायाह १०:२८-३०) इसके अलावा, यहूदियों ने सब्त को मानने, सच्ची उपासना के लिए हर साल धन देने, बलिदान चढ़ाने के लिए लकड़ी देने, अपने भेड़-बकरियों के पहलौठों को बलि चढ़ाने और अपने खेतों की पहली उपज मंदिर के भंडार को दान देने की शपथ खायी। इससे ज़ाहिर होता है कि वे ‘अपने परमेश्वर के भवन को न छोड़ने’ का संकल्प कर चुके थे।—नहेमायाह १०:३२-३९.
१२. आज परमेश्वर के भवन को न छोड़ने में क्या बात शामिल है?
१२ आज यहोवा के लोगों को उसके महान आध्यात्मिक मंदिर के आँगन में “उस की [पवित्र] सेवा” करने का सम्मान मिला है और यह बेहद ज़रूरी है कि वे इसमें लापरवाही न दिखाएँ। (प्रकाशितवाक्य ७:१५) इसमें यहोवा की उपासना की बढ़ोतरी के लिए दिन-रात दिल से प्रार्थना करना शामिल है। ऐसी प्रार्थनाओं के मुताबिक जीना यह माँग करता है कि हम मसीही सभाओं की तैयारी करें और उनमें भाग लें, सुसमाचार प्रचार के इंतज़ामों में हिस्सा लें और दिलचस्पी दिखानेवालों के पास वापस जाएँ और हो सके तो उनके साथ बाइबल अध्ययन शुरू करें। बहुत-से लोग जो परमेश्वर के भवन को छोड़ना नहीं चाहते वे प्रचार के काम के लिए और सच्ची उपासना की जगहों के खर्चे के लिए दान देते हैं। जहाँ राज्यगृह की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है वहाँ हम इन्हें बनवाने के अलावा इन्हें साफ-सुथरा रखने में भी हाथ बँटा सकते हैं। परमेश्वर के आत्मिक घर के लिए प्रेम दिखाने का एक अच्छा तरीका है, संगी विश्वासियों में शांति बढ़ाने की कोशिश करना और ऐसे किसी भी भाई-बहन की मदद करना जिसे भौतिक या आध्यात्मिक मदद की ज़रूरत है।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०; इब्रानियों १३:१५, १६.
खुशियों भरा उद्घाटन
१३. यरूशलेम की शहरपनाह के उद्घाटन से पहले किस मामले पर जल्द-से-जल्द ध्यान दिए जाने की ज़रूरत थी और कई लोगों ने कैसे एक अच्छी मिसाल कायम की?
१३ नहेमायाह के दिनों में जिस ‘सच्चाई की वाचा’ पर मुहर लगाई गयी थी, उसने प्राचीनकाल में परमेश्वर के लोगों को यरूशलेम की शहरपनाह के उद्घाटन के लिए तैयार किया। लेकिन एक और मामला था जिस पर जल्द-से-जल्द ध्यान देने की ज़रूरत थी। अब यरूशलेम १२ फाटकोंवाली बड़ी शहरपनाह में सुरक्षित था, मगर उसमें रहनेवाले लोग बहुत कम थे। कुछ इस्राएली वहाँ रहते थे, पर फिर भी “नगर तो लम्बा चौड़ा था, परन्तु उस में लोग थोड़े थे।” (नहेमायाह ७:४) इस समस्या को हल करने के लिए, लोगों ने “चिट्ठियां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्र नगर है, बस जाएं।” इस इंतज़ाम को लोगों ने खुशी से माना, इसलिए “जिन्हों ने अपनी ही इच्छा से यरूशलेम में बास करना चाहा उन सभों को लोगों ने आशीर्वाद दिया।” (नहेमायाह ११:१, २) यह आज के उन सच्चे उपासकों के लिए कितनी अच्छी मिसाल है जिनके हालात उन्हें इस बात की इजाज़त देते हैं कि वे उन इलाकों में जाएँ जहाँ प्रौढ़ मसीहियों की ज़्यादा ज़रूरत है!
१४. यरूशलेम की शहरपनाह के उद्घाटन के दिन क्या हुआ?
१४ यरूशलेम की शहरपनाह के उद्घाटन के बड़े दिन के लिए ज़रूरी तैयारियाँ जल्द ही शुरू हो गयीं। यहूदा के आस-पास के नगरों से संगीतकार और गवैये इकट्ठे किए गए। इनके दो बड़े दल बनाए गए जो धन्यवाद देते और इन दोनों दलों के पीछे एक-एक जुलूस था। (नहेमायाह १२:२७:३१, ३६, ३८) गायकों के ये दल और जुलूस शहरपनाह के उस भाग से शुरू हुए जो मंदिर से सबसे दूर था, शायद तराई के फाटक से, और वे विपरीत दिशाओं में चलते हुए आए और परमेश्वर के भवन के पास आकर मिले। “उसी दिन लोगों ने बड़े बड़े मेलबलि चढ़ाए, और आनन्द किया; क्योंकि परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनन्दित किया था; स्त्रियों ने और बालबच्चों ने भी आनन्द किया। और यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक फैल गई।”—नहेमायाह १२:४३.
१५. यरूशलेम की शहरपनाह के समर्पण का आनंद हमेशा तक क्यों नहीं बना रहा?
१५ बाइबल इस खुशियों भरे उत्सव की तारीख नहीं बताती। मगर फिर भी यरूशलेम के फिर से बसाए जाने में यह एक बहुत ही बड़ी घटना थी। बेशक, नगर के अंदर अब भी निर्माण का बहुत-सा काम बाकी था। कुछ समय बाद, यरूशलेम के नागरिकों का आध्यात्मिक बातों के लिए लगाव कम हो गया और वे परमेश्वर के नज़रों में गिर गए। मिसाल के तौर पर, जब नहेमायाह दूसरी बार इस नगर में आया तब उसने पाया कि परमेश्वर का भवन फिर से छोड़ दिया गया है और इस्राएली फिर से विधर्मी स्त्रियों से ब्याह-शादी करने लगे हैं। (नहेमायाह १३:६-११, १५, २३) इन्हीं बुराइयों के बारे में भविष्यवक्ता मलाकी ने भी अपनी किताब में लिखा। (मलाकी १:६-८; २:११; ३:८) सो यरूशलेम की शहरपनाह के समर्पण का आनंद हमेशा तक नहीं बना रहा।
अनंतकाल तक आनंद करने की वज़ह
१६. किन अहम घटनाओं के घटने का परमेश्वर के लोग बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं?
१६ आज, यहोवा के लोग उस वक्त की बाट जोह रहे हैं जब परमेश्वर अपने सब दुश्मनों पर जय पाएगा। इसकी शुरूआत ‘बड़े बाबुल’ के विनाश से होगी जो एक ऐसा लाक्षणिक नगर है जिसमें सब किस्म के झूठे धर्म शामिल हैं। (प्रकाशितवाक्य १८:२, ८) झूठे धर्म के अंत के साथ, आनेवाले भारी क्लेश का पहला दौर शुरू होगा। (मत्ती २४:२१, २२) इसके अलावा, भविष्य में एक अहम और बहुत बड़ी घटना घटेगी—“नये यरूशलेम” के १,४४,००० नागरिकों से बनी दुल्हन के साथ प्रभु यीशु मसीह का स्वर्ग में ब्याह रचाया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य १९:७; २१:२) हम यह नहीं बता सकते कि यह स्वर्गीय मिलन कब होगा, मगर इसमें कोई शक नहीं कि यह खुशियों भरा समाँ होगा।—अगस्त १५, १९९० की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) का पृष्ठ ३०-१ देखिए।
१७. नए यरूशलेम के पूरे होने के बारे में हम क्या जानते हैं?
१७ मगर हम यह जानते हैं कि नया यरूशलेम जल्द ही पूरा हो जाएगा। (मत्ती २४:३, ७-१४; प्रकाशितवाक्य १२:१२) यह पृथ्वी के यरूशलेम नगर जैसा नहीं होगा, यह कभी-भी किसी को निराश नहीं करेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इसके सारे नागरिक आत्मा से अभिषिक्त, परखे हुए और शुद्ध किए हुए, यीशु मसीह के चेले हैं। अपनी मौत तक वफादार रहकर उनमें से हरेक हमेशा-हमेशा के लिए इस बात का सबूत दे चुका होगा कि वह सारे विश्व के महाराजाधिराज यहोवा परमेश्वर का वफादार है। बाकी इंसानों के लिए, जो आज जीवित हैं या मर गए हैं, यह क्या ही अहमियत रखता है!
१८. हमें ‘सर्वदा के लिए आनन्दित और हर्षित’ क्यों होना चाहिए?
१८ गौर कीजिए कि जब नया यरूशलेम यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास दिखानेवाले मनुष्यों पर ध्यान देता है तब क्या होता है। प्रेरित यूहन्ना ने लिखा, “देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य २१:२-४) इसके अलावा, मानवजाति को सिद्धता तक पहुँचाने के लिए परमेश्वर इस नगर जैसी सरकार का इस्तेमाल करेगा। (प्रकाशितवाक्य २२:१, २) ‘परमेश्वर जो सृजने पर है उसमें सर्वदा के लिए आनन्दित और हर्षित होने’ के ये कितने बढ़िया कारण हैं!—यशायाह ६५:१८, NHT.
१९. वह आध्यात्मिक बाग क्या है जिसमें मसीहियों को इकट्ठा किया गया है?
१९ लेकिन, पछतावा करनेवाले मनुष्यों को परमेश्वर से मदद पाने के लिए तब तक इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सन् १९१९ में, यहोवा ने १,४४,००० के आखिरी सदस्यों को आध्यात्मिक परादीस या बगीचे में इकट्ठा करना शुरू किया, जिसमें परमेश्वर के आत्मा के फल बड़ी तादाद में फलते हैं, जैसे कि प्रेम, आनंद और शांति। (गलतियों ५:२२, २३) इस आध्यात्मिक बाग में सबसे बढ़िया बात है इसके अभिषिक्त निवासियों का विश्वास। ये निवासी सारी दुनिया में परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने में आगे-आगे रहे हैं और इन्होंने बहुत ज़्यादा फल पैदा किया है। (मत्ती २१:४३; २४:१४) इसका नतीजा है, करीब साठ लाख ‘अन्य भेड़’ जो पृथ्वी पर जीने की आशा रखती हैं। इन्हें भी इस आध्यात्मिक बाग में अंदर आने दिया गया है और वे भी फलदायक काम का आनंद लेती हैं। (यूहन्ना १०:१६, NW) वे इस काम के योग्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने यहोवा परमेश्वर को उसके बेटे, यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास के आधार पर समर्पण किया है। नए यरूशलेम के भावी सदस्यों के साथ संगति से अन्य भेड़ों को सचमुच बहुत आशीषें मिली हैं। इस तरह, अभिषिक्त मसीहियों के साथ अपने व्यवहार से यहोवा ने “नई पृथ्वी” के लिए एक पक्की नींव डाल दी है। यह “नई पृथ्वी” परमेश्वर से डरनेवाले मनुष्यों का ऐसा समाज होगा जो स्वर्गीय राज्य के पार्थिव क्षेत्र के वारिस होंगे।—यशायाह ६५:१७; २ पतरस ३:१३.
२०. नया यरूशलेम अपने नाम जैसा कैसे साबित होगा?
२० यहोवा के लोग अपने आध्यात्मिक बाग में जिस शांति का मज़ा ले रहे हैं वही शांति जल्द ही पृथ्वी पर एक सचमुच के बाग में महसूस की जाएगी। यह तब होगा जब नया यरूशलेम मानवजाति को आशीष देने के लिए स्वर्ग से उतरता है। दो तरीकों से, परमेश्वर के लोग यशायाह ६५:२१-२५ में वादा की गयी शांति का मज़ा लेंगे। जिन अभिषिक्त लोगों ने स्वर्गीय नए यरूशलेम में अपनी जगह हासिल नहीं की है और ‘अन्य भेड़’ के लोग आज इस आध्यात्मिक बाग में साथ-साथ यहोवा की उपासना करते हुए उससे मिलनेवाली शांति का मज़ा ले रहे हैं। और यह शांति पृथ्वी पर असली बाग में फैल जाएगी, जब ‘परमेश्वर की इच्छा जैसी स्वर्ग में वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी होगी।’ (मत्ती ६:१०) जी हाँ, परमेश्वर का आलीशान स्वर्गीय नगर अपने नाम, यरूशलेम जैसा साबित होगा जिसका मतलब है ‘दोहरी शांति की बुनियाद।’ इससे महान सृजनहार यहोवा परमेश्वर की और नए यरूशलेम के दूल्हे और राजा यीशु मसीह की अनंतकाल तक महिमा होती रहेगी।
क्या आपको याद है?
◻ जब नहेमायाह ने यरूशलेम में लोगों को इकट्ठा किया तब इसका क्या नतीजा हुआ?
◻ परमेश्वर के भवन को न छोड़ने के लिए प्राचीन यहूदियों को क्या करना था और हमसे क्या करने की माँग की जाती है?
◻ “यरूशलेम” अनंतकाल की शांति और खुशी लाने में कैसे शामिल है?
[पेज 23 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
यरूशलेम के फाटक
संख्याएँ आज इन जगहों की ऊँचाई मीटर के हिसाब से बताती हैं
मछली फाटक
पुराना फाटक
एप्रैमी फाटक
कोनेवाला फाटक
चौड़ी शहरपनाह
चौक
तराई का फाटक
नयी बस्ती
पहले की उत्तरी शहरपनाह
दाऊदपुर
कूड़ाफाटक
हिन्नोम की तराई
राजगढ़
भेड़फाटक
पहरुओं का फाटक
मंदिर का इलाका
निरीक्षण फाटक
घोड़ाफाटक
ओपेल
चौक
जलफाटक
गीहोन का सोता
सोते का फाटक
राजा की बारी
एनरोगेल
टाइरोपियन (बीच की) तराई
किद्रोन की घाटी
७४०
७३०
७३०
७५०
७७०
७७०
७५०
७३०
७१०
६९०
६७०
६२०
६४०
६६०
६८०
७००
७२०
७४०
७३०
७१०
६९०
६७०
यरूशलेम के विनाश और नहेमायाह द्वारा इसकी शहरपनाह को फिर से बनाने में अगुवाई लेने के वक्त शायद यरूशलेम की शहरपनाह यहाँ तक थी