गीत 21
ख़ुश हैं रहमदिल!
1. र-हम-दिल भा-ए या-ह को
य-हो-वा ख़ुद र-हम-दिल जो!
उस-ने र-खी ऐ-सी मि-साल
हो-ता जिस-से इं-साँ ब-हाल।
उस-ने चु-का-या भा-री दाम
कर-के अ-ज़ीज़ बे-टा क़ुर-बान।
र-हम के क़ा-बिल हम न थे
फिर भी ना छो-ड़ा है ह-में!
2. जो चल-ते हैं र-हम की राह
उन पे क-रम याह का रह-ता।
र-हम जब औ-रों पे क-रें
बच्-चे हम सब याह के ब-नें।
यी-शु ग-या पास या-ह के
मा-फ़ी मि-ली तब से ह-में।
रह-मो-क-रम की ये बा-तें
चा-रों त-रफ़ हम फै-ला-एँ!
3. र-हम य-हो-वा की ख़ू-बी
हर काम में उस-के है दिख-ती।
लोग प्यार य-हो-वा का जा-नें
र-हम से जब न्याय वो क-रे।
लि-बास र-हम का हम पह-नें
कि जँच-ता ये इं-सा-नों पे।
द-या दि-खा-एँ गर सब-को
मा-ने मु-बा-रक याह हम-को!
(लूका 6:36; रोमि. 12:8; याकू. 2:13 भी देखिए।)