गीत 47
ख़ुशखबरी का ऐलान करो
1. ख़-बर सु-ना-नी है बाद्-शा-हत की ह-में
था भेद म-गर य-हो-वा ने खो-ला इ-से।
कि-या इ-रा-दा ला-ए-गा हु-कू-मत वो
बद-हा-ली से रि-हा-ई दे-गा इं-साँ को।
इक वंश को तय कि-या पह-ले अ-दन बाग़ में
स-मय पे फिर उ-से पह-ना दि-या ताज याह ने
कि बन-के रा-जा मर-ज़ी याह की वो क-रे
अ-के-ला ना वो, साथ है अब दुल्-हन उस-के।
2. र-हम दि-खा-या है य-हो-वा ने हम पे
स-ज़ा-ए-मौत ह-टा दी है इं-सा-नों से।
मि-टे-गा ज-ल्द क-लंक य-हो-वा के नाम से
फिर छा-ए-गा स-माँ ख़ु-शी का धर-ती पे।
ये ख़ुश ख़-बर सु-ना-ने का मि-ला मौ-क़ा
फ़-रि-श्ते भी हैं साथ ह-मा-रे ये भू-लें ना।
हु-कू-मत का हक़-दार य-हो-वा ही जग में
तो आ-ओ ये ग-ली-ग-ली ऐ-लाँ क-रें।
(मर. 4:11; प्रेरि. 5:31; 1 कुरिं. 2:1, 7 भी देखिए।)