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  • ‘जाओ और लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ’

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  • ‘जाओ और लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ’
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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  • प्रेषितों की किताब पर एक नज़र
  • एक किताब जो अध्ययन करने में बहुत काम आएगी
  • “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • प्रेरितों किताब की झलकियाँ
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2008
  • उसने “अच्छी तरह गवाही दी”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • यहोवा के उत्साही गवाह अग्रसर हैं!
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 1 पेज 6-12

अध्याय 1

‘जाओ और लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ’

प्रेषितों की किताब पर एक नज़र और आज हमारे लिए इसके मायने

1-6. यहोवा के साक्षी कैसे अलग-अलग हालात में प्रचार करते हैं? एक अनुभव बताकर समझाइए।

घाना में रहनेवाली रिबेका यहोवा की एक साक्षी है। जब वह स्कूल में थी, तो उसने स्कूल को अपने प्रचार का इलाका बनाया था। उसके बैग में हमेशा बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ होती थीं। ब्रेक के वक्‍त वह मौके ढूँढ़कर दूसरे बच्चों को गवाही देती थी। वह अपनी क्लास के कई बच्चों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू कर पायी।

2 अफ्रीका के पूर्वी तट से थोड़ी दूर मेडागास्कर द्वीप पर एक पति-पत्नी पायनियर सेवा करते थे। वे दोनों अकसर तपती धूप में करीब 25 किलोमीटर पैदल चलकर एक गाँव में जाते थे। वहाँ पर वे दिलचस्पी रखनेवाले कई लोगों का बाइबल अध्ययन कराते थे।

3 परागुए के साक्षियों ने 15 अलग-अलग देशों से आए स्वयंसेवकों के साथ मिलकर एक नाव बनायी, ताकि परागुए और पराना नदी के आस-पास रहनेवाले लोगों को गवाही दे सकें। यह नाव इतनी बड़ी थी कि इसमें 12 लोग रह सकते थे। इसकी मदद से वे उन इलाकों में जाकर प्रचार कर पाए जहाँ पहुँचना मुमकिन नहीं है।

4 दुनिया के उत्तरी कोने में बसे अलास्का में साक्षियों ने एक अनोखे मौके का फायदा उठाया। गरमियों के मौसम में अलग-अलग देशों से कई लोग जहाज़ पर सफर करके यहाँ घूमने आते हैं। उन लोगों को गवाही देने के लिए साक्षियों ने बंदरगाह पर अलग-अलग भाषाओं में किताबों-पत्रिकाओं के स्टॉल लगाए। यही नहीं, अलास्का में दूर-दूर के गाँवों में प्रचार करने के लिए भाई-बहनों ने हवाई जहाज़ का भी इस्तेमाल किया। इसकी मदद से वे अल्यूट, अथाबास्कन, चिमशियान और क्लिंकेट समुदाय के लोगों को खुशखबरी सुना पाए।

5 अमरीका के टेक्सस राज्य में लैरी जिस नर्सिंग होम में रहता था उसी को उसने प्रचार का इलाका बना लिया। दरअसल उसके साथ एक दुर्घटना हुई थी जिस वजह से वह चल-फिर नहीं सकता था। उसे हमेशा व्हीलचेयर पर रहना पड़ता था। फिर भी उसे जब भी मौका मिलता वह लोगों को गवाही देता था। वह उन्हें परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाता और यकीन के साथ बताता कि एक दिन परमेश्‍वर के राज में वह दोबारा चल-फिर पाएगा।​—यशा. 35:5, 6.

6 म्यानमार में कुछ साक्षियों को एक सम्मेलन के लिए उत्तरी म्यानमार जाना था। इसके लिए उन्हें मांडले शहर से नाव पर तीन दिन का सफर करना था। सफर के दौरान वे प्रचार करने का कोई भी मौका गँवाना नहीं चाहते थे, इसलिए वे अपने साथ किताबें-पत्रिकाएँ ले गए और मुसाफिरों को देते गए। रास्ते में जब भी उनकी नाव किसी गाँव या कसबे के पास रुकती, तो वे फौरन नाव से उतरकर वहाँ की बस्तियों में जाते और फटाफट किताबें-पत्रिकाएँ बाँटकर लौट आते थे। इस बीच नए मुसाफिर नाव पर चढ़ते और साक्षियों को उन्हें भी प्रचार करने का मौका मिल जाता।

7. यहोवा के सेवक किन-किन तरीकों से गवाही देते हैं? उनका मकसद क्या है?

7 जैसा कि हमने इन अनुभवों में देखा, यहोवा के जोशीले सेवक पूरी दुनिया में उसके “राज के बारे में अच्छी तरह गवाही” दे रहे हैं। (प्रेषि. 28:23) वे घर-घर जाकर, सड़कों पर, चिट्ठियाँ लिखकर और फोन पर लोगों को गवाही देते हैं। यही नहीं, बस में सफर करते वक्‍त, पार्क में टहलते वक्‍त, नौकरी की जगह ब्रेक के वक्‍त और हरेक मौके पर परमेश्‍वर के राज के बारे में लोगों से बात करते हैं। भले ही गवाही देने के उनके तरीके अलग-अलग हैं मगर उनका मकसद एक है, जहाँ कहीं भी लोग मिलें उन्हें खुशखबरी सुनाना।​—मत्ती 10:11.

8, 9. (क) प्रचार काम में हुई बढ़ोतरी क्यों किसी चमत्कार से कम नहीं है? (ख) इससे कौन-सा सवाल उठता है? जवाब जानने के लिए हमें क्या करना होगा?

8 क्या आप भी उन लाखों प्रचारकों में से एक हैं जो 235 से ज़्यादा देशों में खुशखबरी सुना रहे हैं? अगर हाँ, तो आप खुश हो सकते हैं कि इस काम में आपका भी हाथ है! दुनिया-भर में प्रचार काम में जो बढ़ोतरी हुई है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं। यहोवा के साक्षियों के सामने कई बड़ी-बड़ी रुकावटें आयीं। यहाँ तक कि कुछ सरकारों ने उनके काम को रोकने की कोशिश की और उन पर ज़ुल्म किए, फिर भी वे परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देते रहे।

9 ज़रा सोचिए, इस काम को रोकने की इतनी कोशिश की गयी, शैतान ने भी जमकर विरोध किया, फिर भी यह काम क्यों नहीं रुका? जानने के लिए हमें इतिहास के पन्‍ने पलटने होंगे और पहली सदी के मसीहियों के बारे में जानना होगा। वह इसलिए कि आज हम यहोवा के साक्षी वही काम कर रहे हैं जो उन्होंने शुरू किया था।

सबसे ज़रूरी काम

10. यीशु ने किस काम में खुद को पूरी तरह लगा दिया था? इस काम के बारे में वह क्या जानता था?

10 यीशु ने मसीही मंडली की शुरूआत की थी और उसने परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने में खुद को पूरी तरह लगा दिया था। एक मौके पर उसने कहा, “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) अपनी मौत से कुछ समय पहले उसने भविष्यवाणी की थी कि राज का संदेश “सब राष्ट्रों में” प्रचार किया जाएगा। (मर. 13:10) इसलिए वह जानता था कि जो काम उसने शुरू किया है वह अकेला उसे पूरा नहीं कर पाएगा। तो फिर यह काम कैसे होता और कौन इसे करता?

यीशु लोगों की एक भीड़ से बात कर रहा है।

“जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।”​—मत्ती 28:19

11. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी बड़ी ज़िम्मेदारी दी? उसे पूरा करने के लिए उनके पास क्या-क्या मदद मौजूद थी?

11 जब यीशु दोबारा ज़िंदा हुआ और अपने चेलों के सामने आया तो उसने उन्हें यह बड़ी ज़िम्मेदारी दी, “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्‍ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। और देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।” (मत्ती 28:19, 20) “मैं . . . तुम्हारे साथ रहूँगा,” ऐसा कहकर यीशु उन्हें यकीन दिला रहा था कि प्रचार और चेला बनाने के काम में वह हमेशा उनका साथ देगा। चेलों को वाकई उसकी मदद की ज़रूरत थी क्योंकि यीशु ने कहा था, “सब राष्ट्रों के लोग तुमसे नफरत करेंगे।” (मत्ती 24:9) चेलों के पास एक और मदद मौजूद थी। स्वर्ग जाने से पहले यीशु ने कहा था कि उन्हें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति दी जाएगी जिससे ताकत पाकर वे “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों” में भी गवाही दे सकेंगे।​—प्रेषि. 1:8.

12. अब कौन-से अहम सवाल उठते हैं? इन सवालों के जवाब जानना क्यों बेहद ज़रूरी है?

12 अब कुछ अहम सवाल उठते हैं: क्या पहली सदी के प्रेषितों और दूसरे मसीहियों ने अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लिया? क्या उस छोटे-से समूह ने ज़ुल्मों के दौरान भी परमेश्‍वर के राज की अच्छी तरह गवाही दी? क्या चेला बनाने के काम में यहोवा ने उनकी मदद की? और क्या वाकई उसकी पवित्र शक्‍ति से उन्हें ताकत मिलती रही? इस तरह के सवालों के जवाब प्रेषितों की किताब में दिए गए हैं और इनके जवाब जानना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है। वह इसलिए कि प्रचार करने की ज़िम्मेदारी सभी सच्चे मसीहियों की है, अंत के समय में जीनेवाले हम मसीहियों की भी। यीशु ने बताया था कि प्रचार का काम “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक” चलता रहेगा। इसलिए हम प्रेषितों की किताब में दर्ज़ इतिहास जानना चाहते हैं।

प्रेषितों की किताब पर एक नज़र

13, 14. (क) प्रेषितों की किताब का लेखक कौन है? उसने सारी जानकारी कहाँ से हासिल की? (ख) इस किताब में क्या-क्या बताया गया है?

13 प्रेषितों की किताब किसने लिखी थी? किताब में कहीं भी लेखक का नाम नहीं दिया गया है। लेकिन इसके शुरूआती शब्दों से साफ पता चलता है कि इस किताब को और लूका की खुशखबरी की किताब को एक ही व्यक्‍ति ने लिखा था। (लूका 1:1-4; प्रेषि. 1:1, 2) इसलिए पुराने समय से लूका को ही प्रेषितों की किताब का लेखक माना जाता है। वह “प्यारा भाई, वैद्य लूका” के नाम से जाना जाता था और वह एक अच्छा इतिहासकार भी था। (कुलु. 4:14) इस किताब में लगभग 28 सालों का इतिहास दर्ज़ है। यानी ईसवी सन्‌ 33 में यीशु के स्वर्ग लौटने से लेकर करीब ईसवी सन्‌ 61 तक, जब पौलुस को रोम में कैद से रिहा किया गया। कुछ वाकयों में लूका ने शब्द “वे” का इस्तेमाल करते-करते शब्द “हम” का इस्तेमाल किया है। इससे पता चलता है कि प्रेषितों में दर्ज़ कई घटनाओं को उसने खुद अपनी आँखों से देखा था। (प्रेषि. 16:8-10; 20:5; 27:1) लूका चाहता था कि वह जो भी जानकारी दे, वह एकदम सही-सही हो। इसलिए कोई भी घटना के बारे में लिखने से पहले उसने ज़रूर पौलुस, बरनबास, फिलिप्पुस और दूसरे लोगों से बात की होगी जो उस वक्‍त मौजूद थे।

14 प्रेषितों की किताब में क्या-क्या बताया गया है? लूका ने अपनी खुशखबरी की किताब में यीशु की बातों और उसके कामों के बारे में लिखा था, जबकि प्रेषितों की किताब में उसने उसके चेलों की बातों और उनके कामों को दर्ज़ किया। प्रेषितों की किताब ऐसे लोगों का इतिहास बताती है जिन्हें दुनिया “कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी” समझती थी, मगर उन्होंने जो काम किए वे हैरान कर देनेवाले थे। (प्रेषि. 4:13) चंद शब्दों में कहें तो परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी यह किताब बताती है कि मसीही मंडली की शुरूआत कैसे हुई और यह कैसे बढ़ती गयी। इसमें लिखा है कि पहली सदी के मसीहियों ने प्रचार के कौन-कौन-से तरीके अपनाए और इस काम को उन्होंने किस नज़र से देखा। (प्रेषि. 4:31; 5:42) प्रेषितों की किताब दिखाती है कि खुशखबरी फैलाने में पवित्र शक्‍ति ने कैसे एक अहम भूमिका निभायी। (प्रेषि. 8:29, 39, 40; 13:1-3; 16:6; 18:24, 25) बाइबल की बाकी किताबों की तरह यह किताब भी बाइबल के खास विषय पर ज़ोर देती है। वह है कि परमेश्‍वर के राज के ज़रिए यीशु मसीह यहोवा के नाम पर लगा कलंक मिटाएगा। साथ ही, यह बताती है कि कड़े-से-कड़े विरोध के बावजूद राज का संदेश तेज़ी से फैलता गया।​—प्रेषि. 8:12; 19:8; 28:30, 31.

15. प्रेषितों की किताब का अध्ययन करने से हमें क्या फायदे होंगे?

15 वाकई, प्रेषितों की किताब का अध्ययन करने से हमें बहुत खुशी मिलेगी और हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा। जब हम पहली सदी के मसीही भाई-बहनों के बारे में पढ़ेंगे कि उन्होंने कैसे जोश और हिम्मत के साथ गवाही दी, तो हम भी उनके जैसा बनना चाहेंगे। हम ‘चेला बनाने’ की अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छे-से निभा पाएँगे। यह किताब जिसे आप पढ़ रहे हैं, इसलिए तैयार की गयी है कि आप प्रेषितों की किताब का बारीकी से अध्ययन कर सकें।

एक किताब जो अध्ययन करने में बहुत काम आएगी

16. इस किताब का मकसद क्या है?

16 यह किताब किस मकसद से तैयार की गयी है? इसके तीन मकसद हैं, (1) हमें यकीन दिलाना कि यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति देकर प्रचार काम में हमारी मदद करता है। (2) पहली सदी के चेलों की मिसाल बताकर प्रचार के लिए हमारा जोश बढ़ाना। और (3) हमारे दिल में यहोवा के संगठन के लिए आदर बढ़ाना और उन भाइयों के लिए भी जो प्रचार काम की और मंडली की देखरेख करते हैं।

17, 18. (क) इस किताब में जानकारी किस तरह पेश की गयी है? (ख) इसकी कुछ खासियतें बताइए, जो निजी अध्ययन में आपके काम आ सकती हैं।

17 इस किताब में जानकारी किस तरह पेश की गयी है? इसे आठ भागों में बाँटा गया है और हर भाग में प्रेषितों की किताब के कुछ अध्यायों पर चर्चा की गयी है। इसमें एक-एक करके आयतों को नहीं समझाया गया है। इसके बजाय, इसमें बताया है कि प्रेषितों की किताब में दर्ज़ घटनाओं से हम क्या सीखते हैं और उसे हम अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं। हर अध्याय में शीर्षक के बाद एक-दो वाक्यों में उस अध्याय का खास मुद्दा बताया गया है। इसके बाद कुछ आयतों का ज़िक्र किया गया है और अध्याय में उन्हीं आयतों पर चर्चा की गयी है।

18 इस किताब की और भी कुछ खासियतें हैं, जो निजी अध्ययन करते वक्‍त आपके काम आएँगी। जैसे, इसमें खूबसूरत तसवीरें हैं। उन तसवीरों को देखकर आप कल्पना कर पाएँगे कि प्रेषितों की किताब में दर्ज़ घटनाएँ कैसे घटी होंगी। कई अध्यायों में बक्स भी दिए हैं, जिनमें विषय से जुड़ी ज़्यादा जानकारी दी गयी है। कुछ बक्स में बाइबल के ऐसे किरदारों के बारे में बताया गया है, जिनके विश्‍वास से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। दूसरे कुछ बक्स में प्रेषितों की किताब में बतायी जगहों, घटनाओं, रीति-रिवाज़ों या दूसरे किरदारों के बारे में ज़्यादा जानकारी दी गयी है।

एक भाई एक पति-पत्नी को बता रहा है कि उन्हें कहाँ प्रचार करना है।

वक्‍त बहुत कम है, प्रचार का अपना इलाका अच्छी तरह पूरा कीजिए

19. समय-समय पर हमें किस बात की जाँच करनी चाहिए?

19 इस किताब की मदद से आप ईमानदारी से खुद की जाँच कर पाएँगे। हो सकता है, आप बरसों से प्रचार कर रहे हों, फिर भी समय-समय पर यह देखना अच्छा होगा कि आप किन बातों को पहली जगह दे रहे हैं और मसीही सेवा के बारे में आपका नज़रिया क्या है। (2 कुरिं. 13:5) खुद से पूछिए, ‘क्या मुझे हमेशा इस बात का एहसास रहता है कि प्रचार के लिए बहुत कम समय रह गया है? (1 कुरिं. 7:29-31) क्या मैं पूरे यकीन और जोश के साथ खुशखबरी सुनाता हूँ? (1 थिस्स. 1:5, 6) क्या मैं प्रचार और चेला बनाने के काम में पूरा-पूरा हिस्सा ले रहा हूँ?’​—कुलु. 3:23.

20, 21. आज प्रचार करना पहले से भी ज़्यादा ज़रूरी क्यों हो गया है? हमारा इरादा क्या होना चाहिए?

20 आइए हम हमेशा याद रखें कि हमें एक बहुत ज़रूरी काम सौंपा गया है, प्रचार करना और चेले बनाना। यह काम और भी ज़रूरी होता जा रहा है क्योंकि दुनिया का अंत तेज़ी से नज़दीक आ रहा है। आज पहले से कहीं ज़्यादा लोगों की ज़िंदगी दाँव पर लगी है। हम नहीं जानते कि अच्छा मन रखनेवाले और कितने लोग हैं, जो हमारा संदेश सुनेंगे और कदम उठाएँगे। (प्रेषि. 13:48) इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें उनकी मदद करनी है।​—1 तीमु. 4:16.

21 इस काम को करने में हम पहली सदी के जोशीले प्रचारकों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आप इस किताब का ध्यान से अध्ययन करेंगे और यह आपके अंदर प्रचार के लिए और भी जोश और हिम्मत भर देगी। हम दिल से दुआ करते हैं कि आपने “परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही” देने का जो इरादा किया है, वह और भी पक्का होता जाए।​—प्रेषि. 28:23.

पहली सदी की कुछ खास तारीखें, जब मसीही धर्म फैलता गया

  1. 33

    यीशु ज़िंदा किया गया

    यीशु ने चेला बनाने का काम सौंपा

    पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी

    मसीही मंडली की शुरूआत हुई

  2. क.a 33-34

    स्तिफनुस मारा गया

    इथियोपिया के खोजे ने बपतिस्मा लिया

  3. क. 34

    तरसुस का शाऊल मसीही बना

  4. क. 34-36

    दमिश्‍क में शाऊल ने प्रचार किया

  5. क. 36

    मसीह का चेला बनने के बाद पौलुस पहली बार यरूशलेम आया

    यरूशलेम में पौलुस, पतरस से मिला (गला. 1:18)

  6. 36

    कुरनेलियुस मसीही बना

    गैर-यहूदी मसीही बनने लगे

  7. क. 41

    मत्ती की खुशखबरी की किताब लिखी गयी

    पौलुस ने “तीसरे स्वर्ग” का दर्शन देखा (2 कुरिं. 12:2)

  8. क. 44

    अगबुस ने अकाल की भविष्यवाणी की

    (जब्दी का बेटा) याकूब मारा गया

    पतरस जेल में डाला गया, चमत्कार से रिहा हुआ

  9. 44

    हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम की मौत हुई

  10. क. 46

    भविष्यवाणी के मुताबिक अकाल पड़ा

    पौलुस राहत का सामान लेकर यरूशलेम आया

  11. क. 47-48

    पौलुस का पहला मिशनरी दौरा

  12. क. 49

    अंताकिया में खतने का मसला उठा

    यरूशलेम में बैठक हुई

    पौलुस ने पतरस को फटकारा (गला. 2:11-14)

  13. क. 49-52

    पौलुस का दूसरा मिशनरी दौरा

    बरनबास और मरकुस ने कुप्रुस में प्रचार किया

  14. क. 49-50

    सम्राट क्लौदियुस ने यहूदियों को रोम से देश-निकाला दे दिया

  15. क. 50

    लूका त्रोआस में पौलुस से जाकर मिला

    पौलुस ने दर्शन में मकिदुनिया के एक आदमी को देखा

    पौलुस फिलिप्पी गया

    फिलिप्पी मंडली की शुरूआत हुई

    थिस्सलुनीके मंडली की शुरूआत हुई

    पौलुस एथेन्स गया

  16. क. 50-52

    पौलुस कुरिंथ गया

    1 थिस्सलुनीकियों की किताब लिखी गयी

    गलातियों की किताब लिखी गयी

  17. क. 51

    2 थिस्सलुनीकियों की किताब लिखी गयी

  18. क. 52-56

    पौलुस का तीसरा मिशनरी दौरा

  19. क. 52-55

    पौलुस इफिसुस गया

  20. क. 55

    1 कुरिंथियों की किताब लिखी गयी

    तीतुस को कुरिंथ भेजा गया

    2 कुरिंथियों की किताब लिखी गयी

  21. क. 56

    रोमियों की किताब लिखी गयी

    त्रोआस में पौलुस ने युतुखुस को ज़िंदा किया

    पौलुस और लूका कैसरिया में फिलिप्पुस के यहाँ ठहरे

    यरूशलेम में पौलुस को गिरफ्तार किया गया

  22. क. 56-58

    कैसरिया में पौलुस को हिरासत में लिया गया

    लूका की खुशखबरी की किताब लिखी गयी

  23. क. 58

    फेलिक्स की जगह फेस्तुस ने ली

  24. 58

    हेरोदेस अग्रिप्पा द्वितीय के सामने पौलुस की सुनवाई

  25. क. 59-61

    रोम में पहली बार पौलुस कैद किया गया

  26. क. 60-61

    कुलुस्सियों की किताब लिखी गयी

    इफिसियों की किताब लिखी गयी

    फिलेमोन की किताब लिखी गयी

    फिलिप्पियों की किताब लिखी गयी

  27. क. 60-65

    मरकुस की खुशखबरी की किताब लिखी गयी

  28. क. 61

    प्रेषितों की किताब लिखी गयी

    इब्रानियों की किताब लिखी गयी

  29. क. 61-64

    1 तीमुथियुस की किताब लिखी गयी

    तीतुस को क्रेते में छोड़ा गया (तीतु. 1:5)

    तीतुस की किताब लिखी गयी

  30. 62 से पू.

    याकूब की किताब लिखी गयी

  31. क. 62-64

    1 पतरस की किताब लिखी गयी

  32. क. 64

    2 पतरस की किताब लिखी गयी

  33. क. 65

    रोम में दूसरी बार पौलुस कैद किया गया

    2 तीमुथियुस की किताब लिखी गयी

    तीतुस दलमतिया के लिए रवाना हुआ (2 तीमु. 4:10)

    पौलुस को मार डाला गया

a क. का मतलब है करीब और पू. का मतलब है पूर्व।

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