गीत 17
बढ़ते चलो साक्षियो!
1. जो-शो-जु-नूँ से ग-वा-ही हम दें-गे
य-हो-वा के सै-निक हैं, तै-या-री कर लें!
रू-हा-नी तल-वार हम उ-ठा लें!
शै-ता-नी ज़ं-जी-रें सा-री अब तोड़ दें!
(कोरस)
ब-ढ़ा-ते च-लो क़-दम, हिम्-मत ना हा-रो!
क़-रीब है ज-हान न-या, सब-को ब-ता-ओ!
इस धर-ती पर हम सब जी-एँ-गे ख़ु-शी से
पा-एँ-गे याह से ढे-रों आ-शी-षें!
2. ऐ-शो-आ-राम की ना ज़िं-द-गी जी-एँ
ख़ु-शा-मद सर-का-रों की ना क-भी क-रें
दुन्-या के शा-हों से क्यों डर-ना?
ह-में जंग याह की ता-क़त से ही लड़-ना!
(कोरस)
ब-ढ़ा-ते च-लो क़-दम, हिम्-मत ना हा-रो!
क़-रीब है ज-हान न-या, सब-को ब-ता-ओ!
इस धर-ती पर हम सब जी-एँ-गे ख़ु-शी से
पा-एँ-गे याह से ढे-रों आ-शी-षें!
3. कर-ते य-हो-वा की ख़ा-तिर जाँ नि-सार
र-हें-गे ह-मे-शा उ-सी के व-फ़ा-दार!
शै-ताँ का इल्-ज़ाम है मि-टा-ना!
चा-हे ता-ने मा-रे सा-रा ज़-मा-ना।
(कोरस)
ब-ढ़ा-ते च-लो क़-दम, हिम्-मत ना हा-रो!
क़-रीब है ज-हान न-या, सब-को ब-ता-ओ!
इस धर-ती पर हम सब जी-एँ-गे ख़ु-शी से
पा-एँ-गे याह से ढे-रों आ-शी-षें!
(फिलि. 1:7; 2 तीमु. 2:3, 4; याकू. 1:27 भी देखिए।)