गीत 33
उनसे मत डर!
1. राज की सच्-चा-ई जा फै-ला
सच के प्रे-मी सच सुन लें
शै-ताँ से हम ना ड-रें
पी-छे ना क-दम ह-टे;
कि दुश्-मन को फें-का नी-चे
यी-शु ने रा-जा बन-के
शै-ताँ के अब दिन हैं थो-ड़े
ना कि-सी पे बस च-ले।
(कोरस)
सुन के धम-की बै-रि-यों की
ना स-हम जा-ना क-भी।
तू पुत-ली मे-री आँ-खों की
छू स-के ना को-ई भी।
2. दुश्-मन चा-हे लाख हों ते-रे
चा-हे ता-ने वो मा-रें
या मी-ठी बा-तें क-रें
और धो-खा दे-ना चा-हें।
ना डर-ना, ओ जाँ-बाज़ सै-निक
ते-री ढाल ब-नूँ-गा मैं,
कित-ना ही मुश्-किल हो लड़-ना
जंग में मैं दूँ-गा वि-जय!
(कोरस)
सुन के धम-की बै-रि-यों की
ना स-हम जा-ना क-भी।
तू पुत-ली मे-री आँ-खों की
छू स-के ना को-ई भी।
3. कल मै-दा-ने-जंग में ते-री
मौत भी चा-हे हो जा-ए।
मे-री या-दों में मह-फ़ूज़
र-खूँ पल-कों के सा-ए।
तू व-फ़ा मुझ-से नि-भा-ना
दिल ते-रा ना मा-ने हार।
फिर से जी-वन दूँ-गा तुझ-को
तब फ़िर-दौस का हो दी-दार।
(कोरस)
सुन के धम-की बै-रि-यों की
ना स-हम जा-ना क-भी।
तू पुत-ली मे-री आँ-खों की
छू स-के ना को-ई भी।
(व्यव. 32:10; नहे. 4:14; भज. 59:1; 83:2, 3 भी देखिए।)