थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खिलाना
“रोटियाँ तोड़ने के बाद [यीशु ने] चेलों को बाँट दीं और चेलों ने उन्हें भीड़ में बाँट दिया।”—मत्ती 14:19.
1-3. बताइए कि यीशु ने कैसे बैतसैदा के पास इकट्ठी हुई एक बड़ी भीड़ को खाना खिलाया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिए। (मत्ती 14:14-21 पढ़िए।) यह ईसवी सन् 32 के फसह के त्योहार से बस कुछ ही वक्त पहले की बात है। एक भीड़ जमा है जिसमें करीब 5,000 पुरुष और उनके अलावा स्त्रियाँ और छोटे बच्चे हैं। ये लोग यीशु और उसके चेलों के साथ गलील सागर के उत्तरी तट पर बसे बैतसैदा गाँव के पास एक सुनसान इलाके में इकट्ठा हैं।
2 भीड़ को देखकर यीशु तड़प उठता है। इसलिए वह भीड़ में मौजूद बीमार लोगों को चंगा करता है और लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में बहुत-सी बातें सिखाता है। जब काफी देर होने लगती है तो यीशु के चेले उससे कहते हैं कि वह भीड़ से कहे कि वे आस-पास के गाँवों में जाकर अपने लिए कुछ खाना खरीद लें। मगर यीशु अपने चेलों से कहता है: “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” यीशु के ये शब्द सुनकर वे शायद हैरान रह गए हों, क्योंकि खाने के नाम पर चेलों के पास बस पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ ही हैं!
3 करुणा से भरकर यीशु एक चमत्कार करता है। यही एक ऐसा चमत्कार है, जिसे खुशखबरी की किताबों के चारों लेखकों ने दर्ज़ किया है। (मर. 6:35-44; लूका 9:10-17; यूह. 6:1-13) यीशु चेलों से कहता है कि लोग हरी घास पर पचास-पचास और सौ-सौ की टोलियों में बैठ जाएँ। फिर प्रार्थना में धन्यवाद देकर वह सबके लिए रोटियाँ तोड़ने और मछलियाँ बाँटने लगता है। इसके बाद, लोगों को खुद खाना देने के बजाय, यीशु रोटियाँ और मछलियाँ ‘चेलों में बाँट देता है, और चेले उन्हें भीड़ में बाँट देते हैं।’ सबको पेट-भर खाना मिलता है! ज़रा सोचिए: यीशु थोड़े-से लोगों के हाथों, सिर्फ अपने चेलों के हाथों, हज़ारों को खाना खिलाता है।—पेज 19 पर दिया फुटनोट 1 पढ़िए।a
4. (क) यीशु को किस तरह का खाना देने की ज़्यादा चिंता थी, और क्यों? (ख) हम इस लेख में और अगले लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?
4 लेकिन यीशु को इससे कहीं ज़्यादा, लोगों को आध्यात्मिक खाना देने, यानी परमेश्वर के वचन की सच्चाइयाँ सिखाने की चिंता थी। वह जानता था कि इन सच्चाइयों का ज्ञान लेने से ही उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। (यूह. 6:26, 27; 17:3) जिस करुणा के गुण ने उसे लोगों को रोटी और मछली खिलाने के लिए उकसाया था, उसी गुण ने उसे उकसाया कि वह उन्हें सिखाने में घंटों बिताए। (मर. 6:34) मगर वह जानता था कि धरती पर उसका थोड़ा ही समय बाकी है, और जल्द ही वह स्वर्ग लौट जाएगा। (मत्ती 16:21; यूह. 14:12) तो फिर सवाल उठता है कि वह स्वर्ग से धरती पर अपने चेलों को लगातार आध्यात्मिक खाना कैसे देता? यीशु वही करता जो उसने पहले किया था। वह थोड़े-से लोगों के हाथों बहुतों को खाना खिलाता। लेकिन वे थोड़े-से लोग कौन होते? आइए देखें कि पहली सदी में यीशु ने कैसे थोड़े-से लोगों के ज़रिए अपने बहुत-से अभिषिक्त चेलों को खाना खिलाया। फिर अगले लेख में हम इस सवाल पर चर्चा करेंगे, जो आज हममें से हरेक के लिए बहुत मायने रखता है: हम उन थोड़े-से लोगों की पहचान कैसे कर सकते हैं, जिनके ज़रिए मसीह आज हमें आध्यात्मिक खाना दे रहा है?
थोड़े-से लोगों के हाथों, हज़ारों को खिलाया गया (पैराग्राफ 4 देखिए)
यीशु उन थोड़े-से लोगों को चुनता है
5, 6. (क) यीशु ने क्या गंभीर फैसला लिया जिससे कि उसकी मौत के बाद भी उसके चेलों को आध्यात्मिक खाना मिलता रहे? (ख) यीशु ने अपने चेलों को कैसे तैयार किया ताकि वे उसकी मौत के बाद एक अहम भूमिका निभा सकें?
5 परिवार का ज़िम्मेदार मुखिया कुछ इंतज़ाम करता है, ताकि अगर उसकी मौत हो जाए, तो उसके परिवार को किसी चीज़ की कमी न हो। उसी तरह यीशु ने, जो आगे चलकर मसीही मंडली का मुखिया बनता, कुछ इंतज़ाम किए ताकि उसकी मौत के बाद उसके चेलों को आध्यात्मिक तौर पर कोई कमी न हो। (इफि. 1:22) मिसाल के लिए, अपनी मौत से दो साल पहले, यीशु ने एक गंभीर फैसला लिया। उसने उन थोड़े-से लोगों को चुनना शुरू किया, जिनके ज़रिए वह आगे चलकर बहुतों को खाना खिलाता। आइए देखें क्या हुआ।
6 सारी रात प्रार्थना करने के बाद, यीशु ने अपने चेलों को इकट्ठा किया और उनमें से 12 प्रेषित चुने। (लूका 6:12-16) इन 12 प्रेषितों के साथ उसने अगले दो साल तक काफी वक्त बिताया और उन्हें अपनी बातों और कामों से सिखाया। वह जानता था कि प्रेषितों को बहुत कुछ सीखना है। इसलिए उस वक्त उन्हें ‘चेले’ यानी शिष्य कहा जाता था। (मत्ती 11:1; 20:17) उसने हरेक प्रेषित को अनमोल सलाह दी और प्रचार करने की अच्छी तालीम दी। (मत्ती 10:1-42; 20:20-23; लूका 8:1; 9:52-55) ज़ाहिर है कि वह उन्हें तैयार कर रहा था ताकि वे उसकी मौत और स्वर्ग जाने के बाद एक अहम भूमिका निभा सकें।
7. यीशु ने कैसे यह ज़ाहिर किया कि प्रेषितों की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी क्या होती?
7 प्रेषितों की क्या भूमिका होती? जैसे-जैसे ईसवी सन् 33 का पिन्तेकुस्त का दिन करीब आने लगा, यह साफ हो गया कि प्रेषित ‘निगरानी के पद’ पर सेवा करते। (प्रेषि. 1:20) लेकिन उनकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी क्या होती? दोबारा जी उठाए जाने के बाद यीशु ने प्रेषित पतरस से जो कहा, उससे हमें इस सवाल का जवाब मिलता है। (यूहन्ना 21:1, 2, 15-17 पढ़िए।) दूसरे कुछ प्रेषितों के सामने, यीशु ने पतरस से कहा: “मेरी छोटी भेड़ों को खिला।” ऐसा कहकर यीशु ने इस बात की ओर इशारा किया कि उसके प्रेषित उन थोड़े-से लोगों में से होते, जिनके ज़रिए वह बहुतों को आध्यात्मिक खाना खिलाता। साथ ही, ये शब्द दिखाते हैं कि यीशु अपनी “छोटी भेड़ों” से कितना प्यार करता है!—पेज 19 पर दिया फुटनोट 2 पढ़िए।b
पिन्तेकुस्त के समय से बहुतों को खिलाना
8. पिन्तेकुस्त के दिन नए मसीहियों ने कैसे दिखाया कि वे अच्छी तरह जानते थे कि मसीह किन लोगों को इस्तेमाल कर रहा है?
8 ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त से, दोबारा जी उठाए गए मसीह ने अपने प्रेषितों के ज़रिए दूसरे सभी अभिषिक्त चेलों को आध्यात्मिक खाना देने का इंतज़ाम किया। (प्रेषितों 2:41, 42 पढ़िए।) उस दिन जो यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले, अभिषिक्त मसीही बने थे, वे अच्छी तरह जानते थे कि मसीह इन प्रेषितों के ज़रिए आध्यात्मिक खाना मुहैया करवा रहा है। इसलिए बिना हिचकिचाए, वफादारी दिखाते हुए वे “सब एक मन से प्रेषितों से शिक्षा पाने में लगे रहे।” इन नए मसीहियों में आध्यात्मिक खाने की गहरी लालसा थी, और वे अच्छी तरह जानते थे कि यह उन्हें कहाँ मिलेगा। उन्हें पूरा भरोसा था कि प्रेषित ही उन्हें यीशु की बातों और कामों के बारे में बताते और उन आयतों का मतलब समझाते, जो यीशु पर लागू होती हैं। (पेज 19 पर दिया फुटनोट 3 पढ़िए।c)—प्रेषि. 2:22-36.
9. प्रेषितों ने कैसे दिखाया कि वे जानते थे कि यीशु की भेड़ों को आध्यात्मिक खाना खिलाना उनके लिए ज़्यादा ज़रूरी था?
9 प्रेषितों ने यीशु की भेड़ों को आध्यात्मिक खाना खिलाने की अपनी ज़िम्मेदारी पर हमेशा ध्यान लगाए रखा। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि उन्होंने एक नयी मंडली में उठे नाज़ुक मामले का कैसे हल निकाला, जिससे मंडली में फूट पड़ सकती थी। दिलचस्पी की बात है कि यह मामला भी खाने के बारे में ही था! रोज़ के खाने के बँटवारे में यूनानी भाषा बोलनेवाली विधवाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा था, जबकि इब्रानी भाषा बोलनेवाली विधवाओं को बराबर खाना दिया जा रहा था। प्रेषितों ने इस नाज़ुक मसले को कैसे सुलझाया? पहले जब यीशु ने चमत्कार करके भीड़ को खाना खिलाया था, तब बेशक इन प्रेषितों में से ज़्यादातर ने खाना बाँटने में मदद दी थी। मगर अब वे जानते थे कि उनके लिए ज़्यादा ज़रूरी है, आध्यात्मिक खाना बाँटने पर ध्यान देना। इसलिए उन्होंने सात काबिल भाइयों को नियुक्त किया, ताकि वे सब में बराबर खाना बाँटने के “ज़रूरी काम” की देखरेख कर सकें। इस तरह, उन्होंने अपना ध्यान “वचन सिखाने की सेवा में” लगाए रखा।—प्रेषि. 6:1-6.
10. मसीह ने यरूशलेम में सेवा करनेवाले प्रेषितों और बुज़ुर्गों का कैसे इस्तेमाल किया?
10 ईसवी सन् 49 तक, शासी निकाय में बचे हुए प्रेषितों के अलावा कुछ दूसरे काबिल प्राचीन भी जुड़ गए थे। इन्हें बाइबल में ‘प्रेषित और बुज़ुर्ग’ कहा गया है, जो यरूशलेम में सेवा करते थे। (प्रेषितों 15:1, 2 पढ़िए।) मंडली का मुखिया होने के नाते, मसीह ने काबिल भाइयों से बने इस छोटे-से समूह का इस्तेमाल किया ताकि वे मसीही शिक्षाओं पर उठे मसलों को सुलझाएँ और राज की खुशखबरी का प्रचार करने और सिखाने के काम की निगरानी करें।—प्रेषि. 15:6-29; 21:17-19; कुलु. 1:18.
11, 12. (क) क्या बात दिखाती है कि यहोवा ने उस इंतज़ाम पर आशीष दी जिसके ज़रिए उसका बेटा पहली सदी की मंडलियों को आध्यात्मिक खाना खिला रहा था? (ख) लोग यह कैसे जानते थे कि मसीह किनके ज़रिए मंडलियों को आध्यात्मिक खाना खिला रहा है?
11 यीशु ने पहली सदी की मंडलियों को आध्यात्मिक खाना देने के लिए जो इंतज़ाम ठहराया था, क्या यहोवा ने उस पर आशीष दी? बेशक! हम यह बात इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं? प्रेषितों की किताब बताती है: “इसके बाद अपने सफर में वे [प्रेषित पौलुस और उसके सफरी साथी] जिन-जिन शहरों से गुज़रे वहाँ वे उन आदेशों को मानने के बारे में बताते गए जिनका फैसला यरूशलेम में मौजूद प्रेषितों और बुज़ुर्गों ने किया था। नतीजा यह हुआ कि मंडलियाँ विश्वास में लगातार मज़बूत होती रहीं और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती चली गयी।” (प्रेषि. 16:4, 5) ध्यान दीजिए कि उन मंडलियों में तरक्की हुई क्योंकि उन्होंने यरूशलेम में शासी निकाय का पूरी वफादारी से साथ दिया। क्या यह इस बात का सबूत नहीं कि यहोवा ने उस इंतज़ाम पर आशीष दी, जिसके ज़रिए उसका बेटा मंडलियों को आध्यात्मिक खाना खिला रहा था? आइए हम हमेशा याद रखें कि आध्यात्मिक तरक्की यहोवा की भरपूर आशीष की बदौलत ही मुमकिन हो पाती है।—नीति. 10:22; 1 कुरिं. 3:6, 7.
12 अब तक हमने देखा कि यीशु ने अपने चेलों को आध्यात्मिक खाना खिलाने के लिए वही तरीका अपनाया, जो उसने भीड़ को खाना खिलाने के लिए अपनाया था: उसने थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खिलाया। यीशु के चेले साफ देख सकते थे कि वह किनके ज़रिए उन्हें आध्यात्मिक खाना खिला रहा है। मिसाल के लिए, शासी निकाय के सबसे पहले सदस्य, यानी प्रेषित, यह साबित करने के लिए कि यहोवा ने उन पर अपनी आशीष दी है, कुछ चमत्कार कर सकते थे। प्रेषितों 5:12 कहता है, “प्रेषितों के हाथों से लोगों के बीच बहुत से चमत्कार और आश्चर्य के काम होते रहे।” (पेज 19 पर दिया फुटनोट 4 पढ़िए।d) इसलिए जो मसीही बने, उनके मन में कभी यह सवाल नहीं आया होगा कि ‘वे कौन हैं, जिनके ज़रिए मसीह अपनी भेड़ों को खाना खिला रहा है?’ लेकिन पहली सदी के आखिर तक, हालात बदल गए थे।
पहली सदी में यह साफ ज़ाहिर था कि यीशु मंडली को आध्यात्मिक खाना खिलाने के लिए किसे इस्तेमाल कर रहा है (पैराग्राफ 12 देखिए)
जब जंगली पौधे बहुत थे और गेहूँ की बालें बस थोड़ी-सीं
13, 14. (क) यीशु ने मंडली पर होनेवाले हमले के बारे में क्या चेतावनी दी थी, और उसके शब्द कब पूरे होने लगे? (ख) किन दो जगहों से हमला किया जाता? (पेज 19 पर दिया फुटनोट 5 देखिए।)
13 यीशु ने पहले से बताया था कि मसीही मंडली पर हमला किया जाएगा। याद कीजिए कि गेहूँ और जंगली पौधों की मिसाल देते वक्त यीशु ने चेतावनी दी थी कि अभी-अभी बोए गए गेहूँ (अभिषिक्त मसीही) के बीच बहुत-से जंगली पौधे (नकली मसीही) के बीज बो दिए जाएँगे। उसने कहा कि कुछ वक्त के लिए दोनों को साथ-साथ बढ़ने दिया जाएगा, जब तक कि कटाई का वक्त, यानी “इस व्यवस्था के आखिर” का वक्त नहीं आ जाता। (मत्ती 13:24-30, 36-43) यीशु की कही यह बात पूरी होने में ज़्यादा देर नहीं लगी।—पेज 19 पर दिया फुटनोट 5 पढ़िए।e
14 पहली सदी में सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत शुरू हो गयी, मगर यीशु के वफादार प्रेषित उसे “रोकने का काम” करते रहे। उन्होंने मसीही मंडली को झूठी शिक्षाओं के असर से दूषित नहीं होने दिया। (2 थिस्स. 2:3, 6, 7) लेकिन जैसे ही आखिरी प्रेषित की मौत हो गयी, सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत जड़ पकड़ने लगी और फैलती गयी। सदियों तक गेहूँ और जंगली पौधे साथ-साथ बढ़ते रहे। इस दौरान जंगली पौधे बहुत हो गए जबकि गेहूँ की बालें बस थोड़ी-सी थीं। उस समय संगठित तरीके से लगातार आध्यात्मिक खाना देने का कोई इंतज़ाम नहीं था। लेकिन आगे चलकर एक बदलाव आता। पर सवाल उठता है, कब?
कटाई के दौरान कौन आध्यात्मिक खाना खिलाता?
15, 16. परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में ‘बाइबल विद्यार्थियों’ ने जो मेहनत की, उसका क्या नतीजा निकला? और ‘बाइबल विद्यार्थियों’ के बारे में क्या सवाल उठता है?
15 जब गेहूँ और जंगली पौधों का एक-साथ बढ़ने का समय खत्म होने पर था, तो कुछ लोग बाइबल की सच्चाइयों में गहरी दिलचस्पी लेने लगे। याद कीजिए, सन् 1870 के दशक में सच्चाई की खोज करनेवाले नेकदिल लोगों का एक छोटा-सा समूह, जिन्हें उस वक्त ‘बाइबल विद्यार्थी’ कहा जाता था, इकट्ठा हुआ और उन्होंने बाइबल की क्लास शुरू कीं। बाइबल पर होनेवाली उनकी ये चर्चाएँ, चर्च के नकली मसीहियों और ईसाईजगत के दूसरे पंथों की शिक्षाओं से अलग थीं। इन नेकदिल ‘बाइबल विद्यार्थियों’ ने सच्चाई की खोज करने के लिए नम्र होकर और प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगकर बड़े ध्यान से परमेश्वर के वचन का अध्ययन किया।—मत्ती 11:25.
16 परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में ‘बाइबल विद्यार्थियों’ ने जो मेहनत की, वह रंग लायी। इन वफादार स्त्री-पुरुषों ने झूठी शिक्षाओं का परदाफाश किया और बाइबल की सच्चाइयाँ दूसरों को बतायीं। उन्होंने बाइबल साहित्य प्रकाशित किए और पूरी दुनिया में बाँटे। उनके इस काम ने लोगों का दिल जीत लिया और सच्चाई के भूखे-प्यासे बहुत-से लोगों को इस बात का यकीन हो गया कि यही सच्चाई है। तो फिर एक बहुत-ही दिलचस्प सवाल उठता है: सन् 1914 के पहले के सालों में क्या ‘बाइबल विद्यार्थी’ ही वह समूह था, जिसके बारे में यीशु ने कहा था कि वह उसके ज़रिए अपनी भेड़ों को आध्यात्मिक खाना खिलाएगा? नहीं। उस वक्त गेहूँ और जंगली पौधे साथ-साथ बढ़ ही रहे थे और जिस समूह के ज़रिए यीशु आध्यात्मिक खाना मुहैया कराता, वह अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ था। जंगली पौधे समान नकली मसीहियों को गेहूँ-समान सच्चे मसीहियों से अलग करने का वक्त अभी नहीं आया था।
17. सन् 1914 में कौन-सी अहम घटनाओं की शुरूआत हुई?
17 जैसा हमने पिछले लेख में देखा था, कटाई का वक्त सन् 1914 में शुरू हुआ। उस साल, बहुत-सी अहम घटनाओं की शुरूआत हुई। यीशु राजा बना और आखिरी दिन शुरू हुए। (प्रका. 11:15) सन् 1914 से सन् 1919 की शुरूआत तक, यीशु ने अपने पिता के साथ आकर आध्यात्मिक मंदिर का मुआयना किया और उसे शुद्ध किया, जिसकी उस वक्त बहुत ज़रूरत थी। (पेज 19 पर दिया फुटनोट 6 देखिए।f) (मला. 3:1-4) फिर, सन् 1919 से गेहूँ जमा करने का वक्त शुरू हो गया। क्या आखिरकार वह वक्त आ गया था जब मसीह संगठित तरीके से अपने चेलों को आध्यात्मिक खाना देने के लिए एक समूह ठहराता? जी हाँ!
18. यीशु ने अपनी भविष्यवाणी में क्या इंतज़ाम ठहराने के बारे में बताया था? और आखिरी दिनों के शुरू होने के बाद, क्या ज़रूरी सवाल उठा?
18 अंत के दिनों के बारे में अपनी भविष्यवाणी में यीशु ने कहा था कि वह एक “दास” को ‘सही वक्त पर [आध्यात्मिक] खाना’ देने के लिए ठहराएगा। (मत्ती 24:45-47) यह “दास” कौन होता? ठीक जैसे यीशु ने पहली सदी में किया था, वह एक बार फिर वही तरीका अपनाता, वह थोड़े-से लोगों के हाथों, बहुतों को खाना खिलाता। पर जब आखिरी दिनों की शुरूआत हुई, तो यह ज़रूरी सवाल उठा कि यह थोड़े-से लोग कौन होंगे? इस सवाल पर और यीशु की भविष्यवाणी से जुड़े दूसरे सवालों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
a पैराग्राफ 3: [1] आगे चलकर, एक और मौके पर जब यीशु ने चमत्कार करके 4,000 आदमियों, और उनके अलावा स्त्रियों और बच्चों को खाना खिलाया था, तो उस वक्त भी उसने खाना अपने ‘चेलों को दिया था, और चेलों ने इन्हें भीड़ में बाँट दिया’ था।—मत्ती 15:32-38.
b पैराग्राफ 7: [2] जब पतरस इस धरती पर जिंदा था, तब सभी ‘छोटी भेड़ें,’ जिन्हें खिलाया जाता, उनकी स्वर्ग जाने की आशा थी।
c पैराग्राफ 8: [3] नए मसीही, “सब एक मन से प्रेषितों से शिक्षा पाने में लगे रहे।” यह बात दिखाती है कि प्रेषित नियमित तौर पर सिखाया करते थे। प्रेषितों के ज़रिए सिखायी गयी कुछ बातें, परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी किताबों में हमेशा के लिए दर्ज़ की गयीं, जो अब मसीही यूनानी शास्त्र का हिस्सा हैं।
d पैराग्राफ 12: [4] प्रेषितों के अलावा दूसरों को भी चमत्कार से पवित्र शक्ति के वरदान मिले थे, मगर ज़्यादातर मामलों में देखा गया है कि ये वरदान दूसरों को सीधे प्रेषितों से या फिर किसी प्रेषित की मौजूदगी में मिले थे।—प्रेषि. 8:14-18; 10:44, 45.
e पैराग्राफ 13: [5] प्रेषितों 20:29, 30 में दिए प्रेषित पौलुस के शब्द दिखाते हैं कि मंडली पर दो तरीकों से हमले किए जाते। एक, नकली मसीही (“जंगली पौधे”) सच्चे मसीहियों के “बीच घुस” आते। और दूसरा, सच्चे मसीहियों के “बीच में से” ही कुछ लोग धर्मत्यागी बन जाते, यानी सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत करते और “टेढ़ी-मेढ़ी बातें” कहने लगते।
f पैराग्राफ 17: [6] इस अंक में दिया लेख “देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ,” का पैराग्राफ 6 देखिए, जो पेज 11 पर है।