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  • ia अध्या. 3 पेज 25-32
  • ‘उन सबका पिता जो विश्‍वास करते हैं’

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  • ‘उन सबका पिता जो विश्‍वास करते हैं’
  • उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए
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ia अध्या. 3 पेज 25-32
अब्राम, विश्‍वास करनेवालों का पिता

अध्याय तीन

‘उन सबका पिता जो विश्‍वास करते हैं’

1, 2. (क) नूह के दिनों के बाद से दुनिया कैसे बदल गयी? (ख) अब्राम को यह सब देखकर कैसा लगता था?

अब्राम अपनी नज़रें उठाकर ऊँची मीनार की तरफ देख रहा है जो उसके शहर ऊर पर मानो छा गया है।a वहाँ काफी शोरगुल हो रहा है और धुआँ उठ रहा है। आज फिर चंद्र देवता के पुजारी बलिदान चढ़ा रहे हैं। कल्पना कीजिए कि अब्राम अपना घिन ज़ाहिर करते हुए सिर हिलाता है और मुँह फेरकर वहाँ से चला जाता है। शहर की गलियों में भीड़ है और अब्राम उस भीड़ से गुज़रता हुआ अपने घर की तरफ चला जाता है। उसने रास्ते में ज़रूर सोचा होगा कि यह शहर कैसे मूर्तिपूजा से भरा है। नूह के दिनों के बाद से झूठी उपासना दुनिया के कोने-कोने तक फैल गयी थी!

2 अब्राम का जन्म, कुलपिता नूह की मौत के दो साल बाद हुआ था। जब नूह और उसका परिवार जलप्रलय के बाद जहाज़ से बाहर निकला तो नूह ने यहोवा परमेश्‍वर के लिए एक बलिदान चढ़ाया। तब परमेश्‍वर ने आसमान में मेघ-धनुष दिखाया। (उत्प. 8:20; 9:12-14) उस समय दुनिया में सिर्फ सच्ची उपासना की जाती थी। मगर अब नूह की दसवीं पीढ़ी के लोग जैसे-जैसे धरती के चारों तरफ फैल रहे थे, सच्ची उपासना सिर्फ नाम के लिए रह गयी। हर कहीं लोग झूठे देवताओं को पूज रहे थे। अब्राम का पिता तिरह भी मूर्तियों की पूजा करता था और वह शायद मूर्तियाँ बनाता भी था।​—यहो. 24:2.

अब्राम ने कैसे विश्‍वास की एक बढ़िया मिसाल रखी?

3. (क) समय के गुज़रते अब्राम में कौन-सा गुण खासकर नज़र आने लगा? (ख) हम उससे क्या सीख सकते हैं?

3 मगर अब्राम बहुत अलग था। समय के गुज़रते वह बाकी लोगों से और भी अलग दिखने लगा क्योंकि उसे यहोवा पर विश्‍वास था। उसका विश्‍वास इतना अनोखा था कि बाद में प्रेषित पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से कहा कि ‘वह उन सबका पिता है जो विश्‍वास करते हैं।’ (रोमियों 4:11 पढ़िए।) आइए देखें कि अब्राम ने कैसे अपना विश्‍वास बढ़ाया। तब हम सीख सकेंगे कि हम भी अपना विश्‍वास कैसे बढ़ा सकते हैं।

जलप्रलय के बाद यहोवा की सेवा करना कैसा था?

4, 5. अब्राम ने यहोवा के बारे में किससे सीखा होगा और हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?

4 अब्राम को यहोवा परमेश्‍वर के बारे में कैसे पता चला? उन दिनों धरती पर यहोवा के कुछ वफादार सेवक भी थे। उनमें से एक था शेम। हालाँकि वह नूह का बड़ा बेटा नहीं था, फिर भी उसके तीन बेटों का ज़िक्र करते वक्‍त अकसर सबसे पहले शेम का नाम आता है। यह शायद इसलिए था क्योंकि वह अपने विश्‍वास के लिए जाना जाता था।b जलप्रलय के कुछ समय बाद नूह ने भी यहोवा के बारे में बात करते वक्‍त उसे ‘शेम का परमेश्‍वर’ कहा। (उत्प. 9:26) शेम, यहोवा और शुद्ध उपासना का आदर करता था।।

5 क्या अब्राम शेम को जानता था? शायद। कल्पना कीजिए, जब अब्राम छोटा था तो वह यह जानकर कितना उमंग से भर गया होगा कि उसके पुरखे शेम ने 400 साल से दुनिया देखी है! शेम ने अपनी आँखों से देखा था कि जलप्रलय से पहले की दुनिया में कैसे-कैसे बुरे काम हो रहे थे और फिर कैसे जलप्रलय से सारी बुराइयों का सफाया हो गया। उसने यह भी देखा कि जब धरती पर आबादी बढ़ने लगी तो शुरू के राष्ट्र कैसे बने और निम्रोद ने कैसे बाबेल की मीनार बनवाकर बगावत की थी। वफादार शेम ने इस बगावत में कोई हिस्सा नहीं लिया। इसलिए जब यहोवा ने मीनार बनानेवालों की भाषा में गड़बड़ी डाल दी तो शेम और उसके परिवार की भाषा कायम रही, जो इंसान की शुरू की भाषा थी और जो उसका पिता नूह भी बोलता था। अब्राम उसी परिवार से था। तो बेशक बचपन से उसके दिल में शेम के लिए गहरा आदर रहा होगा। इतना ही नहीं, शेम अब्राम की ज़िंदगी के कई सालों तक ज़िंदा रहा। इसलिए अब्राम ने शायद यहोवा के बारे में शेम से सीखा होगा।

अब्राम ऊर में हो रही मूर्तिपूजा से नज़रें फेर रहा है

अब्राम ऊर में फैली मूर्तिपूजा से दूर रहा

6. (क) अब्राम ने कैसे दिखाया कि जलप्रलय से मिलनेवाला सबक उसके मन में अच्छी तरह बैठ गया था? (ख) अब्राम और सारै ने साथ मिलकर कैसी ज़िंदगी बितायी?

6 अब्राम ने चाहे किसी भी तरह से यहोवा के बारे में जाना हो, एक बात पक्की है कि जलप्रलय से मिलनेवाला सबक उसके मन में अच्छी तरह बैठ गया था। उसने नूह की तरह परमेश्‍वर के साथ-साथ चलने की कोशिश की। इसीलिए अब्राम ने मूर्तिपूजा ठुकरा दी और ऊर के लोगों से, यहाँ तक कि अपने परिवारवालों से भी अलग नज़र आया। मगर वह अकेला नहीं था। उसे एक अच्छा जीवन-साथी मिला। उसने सारै से शादी की, जो न सिर्फ लाजवाब खूबसूरती के लिए बल्कि यहोवा पर अपने मज़बूत विश्‍वास के लिए भी जानी जाती थी।c अब्राम और सारै बेऔलाद थे, फिर भी उन्होंने यहोवा की सेवा साथ-साथ करके बहुत खुशी पायी। उन्होंने अब्राम के भतीजे लूत को गोद लिया जो एक अनाथ था।

7. यीशु के चेलों को किस तरह अब्राम की मिसाल पर चलना चाहिए?

7 अब्राम ने कभी यहोवा को छोड़कर ऊर के लोगों की तरह मूर्तिपूजा नहीं की। वह और सारै अपनी बिरादरी के लोगों से अलग दिखने के लिए तैयार थे। अगर हम भी सच्चा विश्‍वास बढ़ाना चाहते हैं तो हमें उनके जैसा होना चाहिए। हमें दुनिया से अलग दिखने के लिए तैयार रहना चाहिए। यीशु ने कहा था कि उसके चेले ‘दुनिया के नहीं होंगे’ और इस वजह से दुनिया उनसे नफरत करेगी। (यूहन्‍ना 15:19 पढ़िए।) क्या आप कभी इस बात से दुखी हो जाते हैं कि आपके परिवारवालों ने या समाजवालों ने आपको ठुकरा दिया है क्योंकि आपने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया है? अगर हाँ, तो याद रखिए कि आप अब्राम और सारै की मिसाल पर चल रहे हैं जिन्होंने वफादारी से यहोवा की सेवा की थी।

‘तू अपना देश छोड़कर जा’

8, 9. (क) अब्राम के साथ ऐसी कौन-सी घटना घटी जिसे वह ज़िंदगी-भर नहीं भूला होगा? (ख) यहोवा ने अब्राम को क्या संदेश दिया?

8 एक दिन अब्राम के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसे वह ज़िंदगी-भर नहीं भूला होगा। उसे यहोवा परमेश्‍वर से एक संदेश मिला! हालाँकि बाइबल इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं देती कि उसे यह संदेश कैसे मिला, मगर इतना ज़रूर बताती है कि “महिमा से भरपूर परमेश्‍वर ने उसे दर्शन दिया।” (प्रेषितों 7:2, 3 पढ़िए।) शायद परमेश्‍वर के भेजे एक स्वर्गदूत के ज़रिए अब्राम को पूरे जहान के मालिक यहोवा की शानदार महिमा की एक झलक मिली। हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह देखकर अब्राम के शरीर में कैसी सिहरन दौड़ गयी होगी कि जीवित परमेश्‍वर यहोवा उन बेजान मूर्तियों से कितना अलग है जिन्हें दूसरे लोग पूजते थे।

9 यहोवा ने अब्राम को क्या संदेश दिया? “तू अपने देश और नाते-रिश्‍तेदारों को छोड़कर एक ऐसे देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।” यहोवा ने उसे यह नहीं बताया कि उसे किस  देश में जाना है। उसने सिर्फ यह बताया कि वह उस देश में जाए जो वह उसे दिखाएगा। मगर वहाँ जाने से पहले अब्राम को अपना देश और अपने रिश्‍तेदारों को छोड़ना था। पुराने ज़माने में मध्य पूर्वी देशों में एक इंसान के लिए घर-परिवार बहुत मायने रखता था। उन्हें छोड़कर कहीं दूर जाना मौत से भी बदतर माना जाता था!

10. अब्राम और सारै को ऊर छोड़ने के लिए क्या-क्या त्याग करने पड़े?

10 अपना देश छोड़कर जाने के लिए अब्राम को बहुत-से त्याग करने पड़े। सबूत दिखाते हैं कि ऊर काफी फलता-फूलता शहर था। (यह बक्स देखें, “वह शहर जो अब्राम और सारै ने छोड़ा था।”) उस इलाके की खुदाई से पता चला है कि प्राचीन शहर ऊर में बड़े-बड़े घर होते थे जिनमें हर तरह की सहूलियत होती थी। कुछ घरों में तो परिवार के लोगों और नौकरों के लिए 12 या उससे ज़्यादा कमरे होते थे, जो पत्थरों से बने एक भीतरी आँगन के चारों तरफ क्रम से बने होते थे। पूरे शहर में पानी, शौचालय और मल-विसर्जन की अच्छी व्यवस्था थी। यह भी याद रखिए कि अब्राम और सारै जवान नहीं थे। अब्राम शायद 70 पार कर चुका था और सारै 60 पार कर चुकी थी। एक अच्छे पति की तरह अब्राम ने ज़रूर चाहा होगा कि सारै को आराम की ज़िंदगी मिले और उसे किसी चीज़ की कमी न हो। कल्पना कीजिए कि जब उन्हें ऊर छोड़कर जाने के लिए कहा गया, तो उन्होंने आपस में क्या-क्या बातें की होंगी। उनके मन में जो भी सवाल और चिंताएँ उठी होंगी, इस बारे में उन्होंने एक-दूसरे को बताया होगा। और जब सारै आनेवाली हर मुश्‍किल को सहने के लिए तैयार हो गयी तो अब्राम को कितनी खुशी हुई होगी! अब्राम की तरह वह भी अपने घर की आरामदायक ज़िंदगी छोड़ने के लिए तैयार थी।

11, 12. (क) अब्राम और सारै को क्या-क्या तैयारियाँ और फैसले करने थे? (ख) जिस दिन अब्राम को ऊर छोड़ना था उस दिन क्या-क्या हुआ होगा?

11 एक बार जब अब्राम और सारै ने जाने का फैसला कर लिया तो उन्हें बहुत-सी तैयारियाँ करनी थीं। उन्हें काफी सामान बाँधना था और कई इंतज़ाम करने थे। एक अनजान जगह जाने के लिए उन्हें सोचना था कि वे कौन-सी चीज़ें ले जाएँगे और कौन-सी चीज़ें छोड़ देंगे। मगर सामान से ज़्यादा उन्हें परिवार के लोगों के बारे में सोचना था कि वे किन्हें अपने साथ ले जाएँगे। उन्होंने अपने बुज़ुर्ग पिता तिरह को साथ ले जाने और उसकी देखभाल करने का फैसला किया। शायद तिरह उनके साथ जाने के लिए खुशी-खुशी राज़ी हो गया होगा, क्योंकि बाइबल इस घटना का ज़िक्र करते वक्‍त बताती है कि तिरह अपने परिवार को लेकर ऊर से निकला। ऐसा मालूम पड़ता है कि तिरह ने मूर्तिपूजा छोड़ दी थी। अब्राम का भतीजा लूत भी उनके साथ जाता।​—उत्प. 11:31.

12 सारी तैयारियाँ हो गयीं और ऊर छोड़ने का दिन आ गया। कल्पना कीजिए, सुबह का वक्‍त है। शहरपनाह के बाहर, जहाँ पास में नहर है, अब्राम का कारवाँ तैयार खड़ा है। ऊँटों और गधों पर सामान लदा हुआ है, भेड़-बकरियों के झुंड जमा हैं, परिवार के लोग और दास-दासियाँ सब अपनी-अपनी जगह पर खड़े हैं।d वे सब एक नयी जगह जाने के लिए बेसब्र हैं। सबकी नज़रें अब्राम की तरफ हैं कि उसका इशारा मिलते ही रवाना हो जाएँ। आखिरकार, निकलने की घड़ी आ जाती है और कारवाँ ऊर को हमेशा के लिए छोड़कर चल पड़ता है।

13. आज यहोवा के बहुत-से सेवक कैसे अब्राम और सारै जैसा जोश दिखाते हैं?

13 आज यहोवा के बहुत-से सेवक ऐसी जगह जाकर बसने का फैसला करते हैं जहाँ राज के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। दूसरे अपनी सेवा बढ़ाने के लिए एक नयी भाषा सीखने का फैसला करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो एक अलग तरीके से प्रचार करने का फैसला करते हैं जो उनके लिए बिलकुल नया है और आसान नहीं है। इस तरह के फैसले करने के लिए अकसर त्याग की ज़रूरत पड़ती है। उन्हें काफी हद तक अपना चैन और आराम त्यागना पड़ता है। मगर उनका यह जोश और अब्राम और सारै की मिसाल पर चलने की उनकी कोशिश वाकई काबिले-तारीफ है! अगर हम इस तरह अपने विश्‍वास का सबूत दें तो हम यकीन रख सकते हैं कि हम यहोवा को जितना देते हैं उससे कहीं ज़्यादा वह हमें देगा। यहोवा विश्‍वास रखनेवालों को ज़रूर इनाम देता है। (इब्रा. 6:10; 11:6) क्या उसने अब्राम को इनाम दिया?

उन्होंने फरात नदी पार की

14, 15. (क) ऊर से हारान तक का सफर कैसा रहा होगा? (ख) अब्राम ने हारान में कुछ समय के लिए बस जाने का फैसला क्यों किया होगा?

14 धीरे-धीरे मुसाफिरों की टोली को सफर करने की आदत पड़ गयी। कल्पना कीजिए, उनका सफर कैसा रहा होगा। अब्राहम और सारै थोड़ी देर जानवरों पर सफर करते, तो थोड़ी देर पैदल चलते। एक तरफ उनके आपस में बात करने की आवाज़ सुनायी पड़ती, तो दूसरी तरफ जानवरों पर बँधी घंटियों के टन-टन करने की आवाज़ आती। पहली बार सफर करनेवाले भी पड़ाव डालने और पड़ाव उठाने, साथ ही बुज़ुर्ग तिरह को ऊँट या गधे पर चढ़ाकर आराम से बिठाने में धीरे-धीरे माहिर होते गए। वे उत्तर-पश्‍चिम की तरफ सफर करते हुए, फरात नदी के किनारे-किनारे से जाते गए। इस तरह कई हफ्ते गुज़र गए और उन्होंने अपना सफर जारी रखा।

15 सड़क से करीब 960 किलोमीटर सफर करते-करते आखिरकार वे हारान नाम के शहर पहुँचे, जहाँ शंकु के आकार की झोंपड़ियाँ थीं। हारान एक फलता-फूलता शहर था और वहीं से पूरब-पश्‍चिम के इलाकों के व्यापार मार्ग होकर गुज़रते थे। अब्राम का परिवार वहाँ कुछ समय के लिए बस गया, क्योंकि शायद तिरह बहुत कमज़ोर हो गया था और आगे सफर करने की हालत में नहीं था।

16, 17. (क) किस करार की वजह से अब्राम फूला नहीं समाया? (ख) हारान में यहोवा ने अब्राम को क्या आशीष दी?

16 कुछ समय बाद तिरह की मौत हो गयी। वह 205 साल का था। (उत्प. 11:32) इस दुख की घड़ी में जब यहोवा ने अब्राम से दूसरी बार बात की तो उसे बहुत दिलासा मिला। यहोवा ने अब्राम को फिर से वही हिदायतें दीं जो उसने ऊर में दी थीं। साथ ही, उसने अब्राम से किए वादे के बारे में और ज़्यादा जानकारी दी। उसने अब्राम को बताया कि वह एक “बड़ा राष्ट्र” बनेगा और उसी के ज़रिए धरती के सभी कुल आशीष पाएँगे। (उत्पत्ति 12:2, 3 पढ़िए।) जब परमेश्‍वर ने अब्राम के साथ यह करार किया तो वह फूला नहीं समाया। वह समझ गया कि हारान छोड़कर सफर में आगे बढ़ने का समय आ गया है।

17 इस बार उसे और भी ज़्यादा सामान बाँधना था, क्योंकि हारान में यहोवा ने उसे बहुत आशीष दी थी। बाइबल बताती है कि ‘हारान में उन्होंने दास-दासियाँ और धन-संपत्ति हासिल की थी।’ (उत्प. 12:5) अब्राम को इतनी संपत्ति और दास-दासियों की ज़रूरत थी क्योंकि उसे एक बड़ा राष्ट्र बनना था। यहोवा अपने सेवकों को हमेशा दौलत की आशीष नहीं देता, मगर उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए उन्हें जो ज़रूरी है वह देता है। इस तरह जब यहोवा ने उसे मज़बूत किया तो वह अपना कारवाँ लेकर अनजान जगह के लिए आगे निकल पड़ा।

अब्राम और सारै थोड़ा-सा सामान लेकर ऊर छोड़ रहे हैं

अब्राम और सारै के लिए ऊर की आरामदायक ज़िंदगी छोड़ना आसान नहीं था

18. (क) यहोवा के लोगों के इतिहास में एक खास घटना कब घटी? (ख) बाद के सालों में नीसान 14 को और कौन-सी खास घटनाएँ घटीं? (यह बक्स देखें, “बाइबल के इतिहास में एक खास तारीख।”)

18 हारान से कई दिन सफर करने के बाद वे कर्कमीश पहुँचे। यहीं से अकसर एक कारवाँ फरात नदी पार करता था। शायद यही वह जगह थी जहाँ यहोवा के लोगों के इतिहास में एक खास घटना घटी। ज़ाहिर है कि यह घटना ईसा पूर्व 1943 में उस महीने के 14वें दिन घटी जिसे बाद में नीसान कहा गया। उस दिन अब्राम ने अपने कारवाँ के साथ फरात नदी पार की। (निर्ग. 12:40-43) दक्षिण में दूर-दूर तक वह देश फैला था जिसे दिखाने का वादा यहोवा ने अब्राम से किया था। उसी दिन परमेश्‍वर का वह करार लागू हुआ जो उसने अब्राम के साथ किया था।

19. (क) यहोवा ने अब्राम से क्या कहा? (ख) इससे अब्राम को क्या याद आया होगा?

19 अब्राम ने उस देश में पहुँचने के बाद दक्षिण की तरफ सफर किया। उसका कारवाँ शेकेम नाम की जगह के पास रुका जहाँ पास में मोरे के बड़े-बड़े पेड़ थे। वहाँ एक बार फिर यहोवा ने अब्राम से वादा किया। इस बार उसने अब्राम को बताया कि उसका वंश उस देश पर कब्ज़ा करेगा। क्या वंश की बात सुनकर अब्राम को वह भविष्यवाणी याद आयी होगी, जो यहोवा ने अदन में की थी और बताया था कि एक “वंश” आएगा और वह एक दिन सभी इंसानों को छुटकारा दिलाएगा? (उत्प. 3:15; 12:7) शायद। वह थोड़ा-बहुत समझने लगा होगा कि यहोवा के महान मकसद के पूरा होने में उसकी भी एक भूमिका है।

20. अब्राम ने यहोवा से मिले सम्मान के लिए एहसान कैसे ज़ाहिर किया?

20 यहोवा से मिले इस सम्मान के लिए अब्राम दिल से एहसानमंद था। वह उस देश में एक जगह से दूसरी जगह जाकर रहने लगा और उसने ज़रूर एहतियात बरती होगी क्योंकि वहाँ अब भी कनानी लोग रहते थे। उसने यहोवा को अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए जगह-जगह यहोवा के लिए वेदी बनायी। उसने सबसे पहले मोरे के बड़े-बड़े पेड़ों के पास और फिर बेतेल के पास वेदी बनायी। उसने यहोवा का नाम पुकारा और शायद यह सोचकर उसका धन्यवाद किया कि आगे चलकर उसके वंशजों को आशीषें मिलेंगी। उसने आस-पास रहनेवाले कनानियों को प्रचार भी किया होगा। (उत्पत्ति 12:7, 8 पढ़िए।) आगे चलकर जीवन के सफर में उसे और भी बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिससे उसके विश्‍वास की परख हुई। मगर अब्राम अपने घर और उन सुख-सुविधाओं को याद नहीं करता रहा जिन्हें वह छोड़ आया था। उसने हमेशा आगे की तरफ देखा। इब्रानियों 11:10 में अब्राम के बारे में लिखा है, “वह एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है, जिसका रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्‍वर है।”

21. (क) अब्राम की तुलना में हम परमेश्‍वर के राज के बारे में कितना जानते हैं? (ख) आपको क्या करने की प्रेरणा मिली है?

21 उस शहर यानी परमेश्‍वर के राज के बारे में अब्राम को जितनी जानकारी थी, उससे कहीं ज़्यादा जानकारी आज हमारे पास है। यहोवा के सेवकों के नाते हम जानते हैं कि आज वह राज स्वर्ग में हुकूमत कर रहा है और बहुत जल्द इस दुनिया का अंत कर देगा। हम यह भी जानते हैं कि अब्राम से जिस वंश का वादा किया गया था, वह यीशु मसीह है और आज वह उस राज का राजा है। भविष्य में हमें एक और आशीष मिलेगी। हम वह वक्‍त देख पाएँगे जब अब्राहम को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा और वह परमेश्‍वर के मकसद के बारे में वे सारी बातें समझ पाएगा जिनकी उसे सिर्फ धुँधली-सी समझ थी। क्या आप भी देखना चाहेंगे कि यहोवा अपना हर वादा कैसे पूरा करता है? अगर हाँ, तो अब्राम के जैसा जज़्बा दिखाते रहिए। यहोवा की सेवा करने के लिए अपना चैन और आराम त्यागने के लिए तैयार रहिए, उसकी आज्ञा मानिए और यहोवा आपको जो भी ज़िम्मेदारी देता है उसकी दिल से कदर कीजिए। अब्राम ‘उन सबका पिता है जो विश्‍वास करते हैं,’ इसलिए अगर आप उसके विश्‍वास की मिसाल पर चलेंगे तो वह आपका भी पिता ठहरेगा!

वह शहर जो अब्राम और सारै ने छोड़ा था

अगर आप फारस की खाड़ी और बगदाद शहर के बीच जाएँ तो आपको वहाँ मिट्टी से बनी ईंटों का एक ढेर पड़ा हुआ दिखायी देगा। यह ऐसा है मानो वह दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में अकेला पहरा दे रहा हो। यहाँ के डरावने खंडहर कभी आँधी की मार झेलते हैं तो कभी सूरज की तेज़ गरमी से तपते रहते हैं। चारों तरफ सन्‍नाटा-ही-सन्‍नाटा है, सिर्फ रात के वक्‍त कभी-कभी जानवरों के हूँकने की आवाज़ सुनायी देती है। ऊर शहर के नाम पर आज देखने के लिए बस यही रह गया है जो एक ज़माने का ताकतवर शहर था।

मगर चार हज़ार साल पहले फरात नदी के पूर्वी तट पर बसे उस शहर का नज़ारा कुछ और ही था। वह एक फलता-फूलता शहर था! घुमावदार सड़कों पर सफेदी पुते घरों और दुकानों की चमक देखते बनती थी। बाज़ारों में सौदागर और ग्राहक मोल-भाव करते हुए नज़र आते। कारीगर दिन-रात कड़ी मज़दूरी करके ऊन के ढेर से सफेद सूत कातते। गुलाम दूसरी जगहों से आए जहाज़ों से कीमती सामान ढो-ढोकर ले जाते।

यह सारा चहल-पहल एक बहुत बड़ी मीनार के साए में होता था। यह एक गगनचुंबी इमारत थी जो शहर के कोने-कोने से दिखायी देती थी। शहर के लोग इसी मीनार में आकर चंद्र देवता नन्‍ना या सीन की पूजा करते थे। उनका मानना था कि इसी देवता की बदौलत शहर मालामाल हो गया है।

मगर उस शहर में एक ऐसा आदमी भी था जो इस विशाल मीनार से आनेवाले बलिदानों की गंध से घिन करता था। उसका नाम था अब्राम।

बाइबल के इतिहास में एक खास तारीख

जिस दिन अब्राम ने फरात नदी पार की थी, वह बाइबल के इतिहास में एक खास तारीख है। बाद के सालों में कुछ और खास घटनाएँ भी इसी तारीख पर हुई थीं। अब्राम के फरात नदी पार करने के ठीक 430 साल बाद, यानी ईसा पूर्व 1513 के नीसान 14 को यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से आज़ाद किया था ताकि वे जाकर उस देश पर कब्ज़ा करें जिसका वादा परमेश्‍वर ने अब्राम से किया था। (निर्ग. 12:40, 41; गला. 3:17) ईसवी सन्‌ 33 के नीसान 14 को ही यीशु ने अपने प्रेषितों के साथ एक करार किया कि वे उसके साथ स्वर्ग के उस राज में हुकूमत करेंगे जो जल्द ही इंसानों की सारी समस्याओं का हल कर देगा। (लूका 22:29) आज तक यहोवा के साक्षी हर साल यहूदी कैलेंडर के मुताबिक इसी तारीख पर, यानी नीसान 14 को ‘प्रभु का संध्या भोज’ मनाते हैं।​—लूका 22:19.

a सालों बाद परमेश्‍वर ने अब्राम का नाम बदलकर अब्राहम रखा, जिसका मतलब है “भीड़ का पिता।”​—उत्प. 17:5.

b उसी तरह, तिरह के बेटों में भी अकसर अब्राम का ज़िक्र सबसे पहले आता है, इसके बावजूद कि वह बड़ा बेटा नहीं था।

c बाद में परमेश्‍वर ने सारै का नाम बदलकर सारा रखा, जिसका मतलब है “राज-घराने की औरत।”​—उत्प. 17:15.

d कुछ विद्वान इस बात पर शक करते हैं कि अब्राम के ज़माने में ऊँटों को पालतू जानवरों के तौर पर रखा जाता था। लेकिन उनका शक करना बेबुनियाद है। बाइबल की कई आयतों में बताया गया है कि अब्राम के पास ऊँट थे।​—उत्प. 12:16; 24:35.

मनन के लिए सवाल

  • मूर्तिपूजा से दूर रहकर अब्राम ने कैसे अपने विश्‍वास का सबूत दिया?

  • अब्राम ऊर छोड़ने के लिए जिस तरह तैयार हुआ, उसमें क्या बात आपको अच्छी लगी?

  • अब्राम के विश्‍वास की वजह से उसे क्या आशीषें और सम्मान मिला?

  • आप किन तरीकों से दिखाना चाहेंगे कि आपमें अब्राम जैसा विश्‍वास है?

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