मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
1-7 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 7-8
“इसराएलियों की छावनी से मिलनेवाली सीख”
इंसाइट-1 पेज 497 पै 3
मंडली
इसराएल में कुछ पुरुषों को ज़िम्मेदारी का पद दिया गया था और वे पूरी प्रजा की तरफ से प्रतिनिधियों का काम करते थे। (एज 10:14) इसराएल में ‘गोत्रों के प्रधान’ हुआ करते थे। पवित्र डेरा बनने के बाद इन प्रधानों ने अपने-अपने गोत्र की तरफ से चढ़ावा लाकर दिया। (गि 7:1-11) नहेमायाह के दिनों में जब एक करार किया गया तो याजकों, लेवियों और “इसराएली मुखियाओं” ने लोगों की तरफ से करार पर मुहर लगायी और उसे पुख्ता किया। (नहे 9:38–10:27) इसराएली जब वीराने में सफर कर रहे थे, तब उनकी मंडली पर कुछ आदमियों को ठहराया गया था जिन्हें “प्रधान और चुने हुए अधिकारी” कहा गया है। इन्हीं में से 250 आदमी कोरह, दातान, अबीराम और ओन के साथ मिल गए और उन सबने मूसा और हारून के खिलाफ बगावत की। (गि 16:1-3) जब मूसा लोगों को सँभालने की ज़िम्मेदारी अकेले नहीं निभा पा रहा था, तो परमेश्वर के निर्देश पर उसने इसराएली मुखियाओं में से 70 आदमियों को चुना ताकि वे इस काम में उसकी मदद करें। (गि 11:16, 17, 24, 25) लैव्यव्यवस्था 4:15 में भी ‘मंडली के मुखियाओं’ का ज़िक्र है। ऐसा मालूम पड़ता है कि वे लोगों के प्रधान, न्यायी और अधिकारी थे और वे उनके प्रतिनिधि हुआ करते थे।—गि 1:4, 16; यह 23:2; 24:1.
इंसाइट-2 पेज 796 पै 1
रूबेन
इसराएल की छावनी में रूबेन गोत्र के लोग पवित्र डेरे के दक्षिण मे होते थे। इनकी एक तरफ शिमोन गोत्र के लोग होते थे और एक तरफ गाद गोत्र के लोग। जब भी इसराएली पड़ाव उठाकर चलते, तो इन तीन गोत्रोंवाले दल में सबसे आगे रूबेन गोत्र होता था। यह तीन गोत्रोंवाला दल यहूदा, इस्साकार और जबूलून के तीन गोत्रोंवाले दल के पीछे होता था। (गि 2:10-16; 10:14-20) जिस दिन पवित्र डेरे का उद्घाटन हुआ, उस दिन गोत्रों ने इसी क्रम में चढ़ावा लाकर दिया।—गि 7:1, 2, 10-47.
गिनती किताब की झलकियाँ
गिनती 8:25, 26. लेवियों को आज्ञा दी गयी थी कि उम्र ढलने पर वे अपनी सेवा से मुक्त हो जाएँ। इस तरह उनकी उम्र का लिहाज़ किया जाता था, साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाता था कि लेवियों की ज़िम्मेदारी काबिल पुरुष सँभालें। लेकिन वे चाहें तो दूसरे लेवियों की मदद कर सकते थे। यह सच है कि आज मसीही, प्रचार काम से कभी मुक्त नहीं हो सकते, मगर हम ऊपर दिए नियम से एक अनमोल सिद्धांत सीखते हैं। अगर एक मसीही अपनी ढलती उम्र की वजह से कुछेक ज़िम्मेदारियों को नहीं सँभाल सकता तो वह ऐसी सेवा कर सकता है जो उसके बस में है।
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इंसाइट-1 पेज 835
पहलौठे
इसराएलियों के पहलौठे बड़े होकर अपने-अपने घराने के मुखिया बनते, इसलिए वे एक मायने में पूरे राष्ट्र के प्रतिनिधि थे। देखा जाए तो पूरा इसराएल राष्ट्र ही यहोवा के लिए “पहलौठा” राष्ट्र था, क्योंकि यहोवा ने अब्राहम से एक करार किया था। (निर्ग 4:22) जब मिस्र के सभी पहलौठों को मारा डाला गया, तब यहोवा ने इसराएलियों के सभी पहलौठों की जान बचायी थी। इसलिए उसने आज्ञा दी कि इसराएलियों के हर पहलौठे को उसके लिए अलग ठहराया जाए, इंसानों के पहलौठों को और जानवरों के नर पहलौठों को भी। (निर्ग 13:2) इसलिए सभी पहलौठे लड़कों को परमेश्वर के लिए अलग कर दिया गया था।
8-14 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 9-10
“यहोवा अपने लोगों को कैसे राह दिखाता है?”
इंसाइट-1 पेज 398 पै 3
छावनी
इसराएलियों की छावनी बहुत बड़ी थी। फिर भी जब वे पड़ाव उठाकर एक जगह से दूसरी जगह जाते, तो वे बड़े कायदे से जाते थे और उनके बीच अच्छी व्यवस्था होती थी। गिनती अध्याय 33 में करीब 40 जगहों का ज़िक्र मिलता है जहाँ इसराएलियों ने पड़ाव डाले थे। जब तक बादल पवित्र डेरे के ऊपर ठहरा रहता, तब तक वे एक ही जगह पड़ाव डाले रहते। जब बादल आगे बढ़ता, तो वे भी पड़ाव उठाकर आगे बढ़ते। “यहोवा के आदेश पर इसराएली रवाना होते और यहोवा के आदेश पर ही वे अपनी छावनी डालते।” (गि 9:15-23) पूरी छावनी को यहोवा की तरफ से ये आदेश देने के लिए चाँदी की दो तुरहियाँ फूँकी जाती थीं। (गि 10:2, 5, 6) जब भी उन्हें पड़ाव उठाना होता था, तो चढ़ते-उतरते स्वर में तुरहियाँ फूँककर खबर दी जाती थी। ऐसा पहली बार उनके मिस्र से निकलने के ‘दूसरे साल के दूसरे महीने के 20वें दिन’ किया गया, यानी ईसा पूर्व 1512 में। जब भी छावनी एक जगह से दूसरी जगह सफर करती, तो सबसे आगे करार का संदूक ले जाया जाता था। इसके पीछे यहूदा का तीन गोत्रोंवाला दल होता था, जिसमें पहले यहूदा गोत्र जाता और फिर इस्साकार और फिर जबूलून गोत्र। इस दल के पीछे गेरशोन और मरारी के वंशज पवित्र डेरे के कुछ हिस्से ढोकर ले जाते थे। इनके पीछे रूबेन का तीन गोत्रोंवाला दल होता था, जिसमें पहले रूबेन गोत्र जाता और उसके पीछे शिमोन और गाद गोत्र। इस दल के पीछे कहाती लोग पवित्र डेरे की बाकी चीज़ें ढोकर ले जाते थे। इनके पीछे एप्रैम का तीन गोत्रोंवाला दल होता था, जिसमें पहले एप्रैम गोत्र जाता और उसके पीछे मनश्शे और बिन्यामीन गोत्र। सबसे आखिर में दान का तीन गोत्रोंवाला दल होता था, जिसमें पहले दान गोत्र जाता और फिर आशेर और नप्ताली गोत्र। इस क्रम के मुताबिक सबसे आगे-आगे यहूदा का तीन गोत्रोंवाला दल होता था और सबसे पीछे दान का तीन गोत्रोंवाला दल। ये दोनों दल सबसे ताकतवर थे और उनमें लोगों की गिनती बाकी दलों से ज़्यादा थी।—गि 10:11-28.
क्या आप परमेश्वर के मार्गदर्शन के सबूत साफ-साफ पहचानते हैं?
हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें परमेश्वर के मार्गदर्शन की कदर है? प्रेषित पौलुस ने कहा: “तुम्हारे बीच जो अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो और उनके अधीन रहो।” (इब्रा. 13:17) ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। मिसाल के लिए, खुद को मूसा के ज़माने में एक इसराएली की जगह पर रखकर देखिए। कल्पना कीजिए कि खंभे के निर्देशन में आप कुछ समय से चल रहे हैं लेकिन फिर वह अचानक रुक जाता है। वह कब तक रुका रहेगा? एक दिन? एक हफ्ता? या कुछ महीने? आप सोचते हैं: ‘क्या मुझे अपना सारा समान खोल देना चाहिए?’ शुरू-शुरू में तो शायद आप ज़रूरत की सिर्फ कुछ चीज़ें निकालें। लेकिन फिर आपको किसी-न-किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ती रहती है, जिसके लिए आपको शायद फिर से बाकी के सामान में ढूँढ़-ढाँढ़ करनी पड़े। इससे तंग आकर आप शायद सारा सामान खोलकर करीने से लगा दें। मगर तभी आप देखते हैं कि खंभा फिर से उठकर चलने लगा है यानी आपको फिर से समान बाँधना पड़ेगा! ऐसा करना आसान नहीं होगा। फिर भी “जब जब बादल निवासस्थान पर से उठ जाता तब तब इस्राएली प्रस्थान करते।”—गिन. 9:17-22, NHT.
जब हमें परमेश्वर की तरफ से कोई निर्देशन मिलता है, तो हम कैसा रवैया दिखाते हैं? क्या हम भी उन्हें “तब तब” यानी तुरंत लागू करने की कोशिश करते हैं “जब जब” वे हमें दिए जाते हैं? या फिर हम उसी तरह काम करते रहते हैं जैसा कि हम करते आ रहे हैं? हाल ही में घर पर बाइबल अध्ययन चलाने, दूसरी भाषा बोलनेवालों को प्रचार करने, नियमित तौर पर पारिवारिक उपासना करने, अस्पताल संपर्क समितियों को सहयोग देने और अधिवेशनों में अच्छी तरह पेश आने के बारे में जो सलाह दी गयी हैं, क्या हम उनसे वाकिफ हैं? इन्हें मानकर हम परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए अपनी कदर दिखा सकते हैं। ज़रूरी फैसले लेते वक्त हम अपनी बुद्धि पर भरोसा नहीं करते, बल्कि यहोवा और उसके संगठन से मार्गदर्शन लेते हैं। इसके अलावा, जैसे एक बच्चा तूफान में अपने माता-पिता के पास सुरक्षा के लिए दौड़ता है, उसी तरह हम भी इस दुनिया की तूफान जैसी मुश्किलों से बचने के लिए यहोवा के संगठन में शरण लेते हैं।
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इंसाइट-1 पेज 199 पै 3
इकट्ठा होने का इंतज़ाम
इकट्ठा होने की अहमियत। यहोवा ने इसराएलियों के लिए कुछ सभाओं का इंतज़ाम किया था ताकि वहाँ इकट्ठा होकर वे उसकी उपासना कर सकें। फसह मनाने के बारे में यहोवा के एक नियम से पता चलता है कि इन सभाओं में साथ इकट्ठा होना कितना ज़रूरी था। वह नियम यह था कि अगर एक आदमी शुद्ध हालत में है और किसी सफर पर नहीं है, फिर भी वह फसह के लिए इकट्ठा नहीं हुआ है, तो उसे मार डाला जाए। (गि 9:9-14) जब राजा हिजकियाह ने यहूदा और इसराएल राष्ट्र के लोगों को खबर भेजी कि वे फसह मनाने के लिए यरूशलेम आएँ, तो उसने उनसे साफ-साफ कहा, “इसराएल के लोगो, अब्राहम, इसहाक और इसराएल के परमेश्वर यहोवा के पास लौट आओ . . . अब तुम अपने पुरखों की तरह ढीठ मत बनो। यहोवा के अधीन हो जाओ और उसके पवित्र स्थान में आओ जिसे उसने हमेशा के लिए पवित्र किया है और अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करो ताकि उसके क्रोध की आग तुमसे दूर हो जाए। . . . तुम्हारा परमेश्वर यहोवा करुणा से भरा और दयालु है। अगर तुम उसके पास लौटोगे तो वह तुमसे मुँह नहीं फेरेगा।” (2इत 30:6-9) अगर कोई जानबूझकर उस फसह के लिए नहीं गया है, तो इसका मतलब यह था कि उसने परमेश्वर से मुँह मोड़ लिया है। हालाँकि आज मसीहियों को फसह या किसी और त्योहार के लिए इकट्ठा होने की आज्ञा नहीं दी गयी है, मगर उनसे यह ज़रूर कहा गया है कि वे नियमित तौर पर परमेश्वर के लोगों के साथ इकट्ठा होते रहें। पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी, “आओ हम एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें ताकि एक-दूसरे को प्यार और भले काम करने का बढ़ावा दे सकें और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ। और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।”—इब्र 10:24, 25.
15-21 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 11-12
“हमें क्यों कुड़कुड़ाना नहीं चाहिए?”
सुनकर भूलनेवाले मत बनिए
20 यह सच है कि ज़्यादातर मसीही लैंगिक अनैतिकता के फंदे में नहीं फँसते हैं। फिर भी हम सबको सावधान रहने की ज़रूरत है कि कहीं हम भी हमेशा कुड़कुड़ाने का रवैया ना अपना लें, जिससे हम परमेश्वर की मंज़ूरी पाने से चूक जाएं। पौलुस आगाह करता है: “और न हम प्रभु को परखें; जैसा [इस्राएलियों] में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए। और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।” (1 कुरिन्थियों 10:9, 10) इस्राएली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाए, यहाँ तक कि वे यहोवा के खिलाफ भी कुड़कुड़ाए और चमत्कारिक रूप से जो मन्ना उन्हें दिया गया था, उसके लिए शिकायत करने लगे। (गिनती 16:41; 21:5) उनके व्यभिचार पर यहोवा को जितना क्रोध आया था क्या उनके कुड़कुड़ाने पर उसे कम गुस्सा आया? बाइबल में दी गई जानकारी से पता चलता है कि कुड़कुड़ानेवाले बहुत लोगों को साँपों ने डसकर मार डाला। (गिनती 21:6) इससे पहले भी एक अवसर पर कुड़कुड़ानेवाले 14,700 से ज़्यादा विद्रोहियों का विनाश हो गया था। (गिनती 16:49) तो आइए हम यहोवा के इंतज़ामों की बेइज़्ज़ती करके उसके धीरज को कभी न परखें।
“कुड़कुड़ाने से दूर रहिए”
7 इस्राएलियों का रवैया किस कदर बदल चुका था! शुरू-शुरू में जब यहोवा ने उन्हें मिस्र से आज़ाद किया था और उन्हें लाल समुद्र में अपने दुश्मनों से बचाया था, तो उनका दिल एहसान से भर गया था। उन्होंने अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए यहोवा की स्तुति में एक गीत भी गाया था। (निर्गमन 15:1-21) मगर जब उन्हें वीराने में थोड़ी-बहुत परेशानी झेलनी पड़ी और उनमें कनानियों का डर समाया, तो उनके एहसान की भावना को मिटने में ज़रा-भी वक्त न लगा। और उनमें असंतोष की भावना पैदा हो गयी। अपनी आज़ादी के लिए यहोवा को धन्यवाद देने के बजाय, वे उसे दोष देने लगे कि वह उन्हें अच्छी चीज़ों से दूर रख रहा है। इसलिए उनका कुड़कुड़ाना इस बात का सबूत था कि उनमें यहोवा के इंतज़ामों के लिए कदर नहीं थी। इस वजह से यहोवा ने कहा: “यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं?”—गिनती 14:27; 21:5.
इंसाइट-2 पेज 719 पै 4
झगड़ा
कुड़कुड़ाना। कुड़कुड़ानेवालों की बातें सुनकर दूसरे लोग निराश हो जाते हैं और उनका हौसला टूट जाता है। इसराएली मिस्र से निकलने के कुछ ही समय बाद यहोवा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे। वे मूसा और हारून में गलतियाँ ढूँढ़ने लगे जबकि यहोवा ने उन दोनों को उनका अगुवा चुना था। (निर्ग 16:2, 7) एक वक्त ऐसा आया कि उनकी शिकायतें सुनकर मूसा बहुत निराश हो गया। यहाँ तक कि उसने यहोवा से कहा कि वह उसे मार डाले। (गि 11:13-15) जिन लोगों की कुड़कुड़ाने की आदत होती है उनका खुद का भी नुकसान होता है। जब लोग मूसा के बारे में कुड़कुड़ाने लगे, तो यहोवा की नज़र में यह ऐसा था मानो वे यहोवा के बारे में कुड़कुड़ा रहे हैं और उसके अधीन नहीं रहना चाहते। (गि 14:26-30) कुड़कुड़ाने और गलतियाँ ढूँढ़ने की वजह से कई लोगों ने अपनी जान गँवा दी।
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इंसाइट-2 पेज 309
मन्ना
आकार और स्वाद। मन्ना “धनिए के बीज जैसा सफेद था।” वह “दिखने में गुग्गुल पौधे के गोंद की तरह था।” यह गोंद मोम जैसा पारदर्शी पदार्थ होता है और इसका आकार मोती जैसा होता है। मन्ना का स्वाद “शहद से बने पुए जैसा था।” लोग पहले मन्ना को हाथ की चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे और फिर उसे उबालकर खाते थे या उसकी रोटियाँ बनाते थे।—निर्ग 16:23, 31; गि 11:7, 8.
22-28 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 13-14
“विश्वास होने से हम हिम्मत से काम लेंगे”
विश्वास और परमेश्वर के भय के ज़रिए साहसी बनना
5 मगर दो जासूस, यहोशू और कालेब, वादा किए गए देश में जाने के लिए बेताब थे। उन्होंने कहा: कनानी लोग “हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।” (गिनती 14:9) क्या यहोशू और कालेब बेवजह उम्मीद बाँध रहे थे? जी नहीं। उन्होंने खुद दूसरे सभी इस्राएलियों के साथ देखा था कि यहोवा ने कैसे दस विपत्तियाँ लाकर शक्तिशाली साम्राज्य मिस्र को और उनके देवी-देवताओं को बेइज़्ज़त किया था। उन्होंने यह भी देखा था कि यहोवा ने कैसे लाल समुद्र में फिरौन और उसकी सेना को डुबा दिया था। (भजन 136:15) इसलिए दस जासूसों और उनकी बातों में आनेवाले लोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं थी। मगर फिर भी उन्होंने विश्वास की कमी दिखायी। उनके इस रवैए से यहोवा को बहुत दुःख पहुँचा। उसने कहा: “मेरे सब आश्चर्यकर्म देखने पर भी [वे] कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे?”—गिनती 14:11.
6 यहोवा ने साफ-साफ बताया कि इस्राएली क्यों बुज़दिल निकले—उनमें विश्वास की कमी थी। जी हाँ, विश्वास और साहस के बीच एक गहरा नाता है, इतना गहरा कि प्रेरित यहून्ना ने मसीही कलीसिया और उसकी आध्यात्मिक लड़ाई के बारे लिखा: “वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है।” (1 यूहन्ना 5:4) आज, साठ लाख से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों में यहोशू और कालेब की तरह विश्वास है, इसलिए वे पूरी दुनिया में राज्य का सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं। इनमें बूढ़े-जवान, कमज़ोर-ताकतवर, हर तरह के लोग शामिल हैं। आज तक एक भी दुश्मन, इन साहसी लोगों से बनी बड़ी सेना को नहीं रोक पाया है।—रोमियों 8:31.
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इंसाइट-1 पेज 740
वह देश जो परमेश्वर ने इसराएल को दिया था
परमेश्वर ने इसराएल को जो देश दिया था, वह सच में बहुत बढ़िया देश था। इससे पहले कि इसराएली उस देश में जाते, मूसा ने कुछ जासूसों को वहाँ भेजा ताकि वे वहाँ की खबर ले आएँ जब वे जासूस लौटकर आए, तो वे वहाँ से अंजीर, अनार और अंगूरों का एक बड़ा गुच्छा लेकर आए। वह गुच्छा इतना बड़ा था कि उसे दो आदमियों को एक लंबे डंडे पर उठाकर लाना पड़ा। हालाँकि वे जासूस विश्वास न होने की वजह से वहाँ के लोगों से डर गए, मगर उन्होंने उस देश के बारे में एक खबर बिलकुल सही दी: “वहाँ सचमुच दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।”—गि 13:23, 27.
29 मार्च–4 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 15-16
“घमंडी मत बनिए, खुद पर बहुत ज़्यादा भरोसा मत कीजिए”
क्या यहोवा आपको जानता है?
12 बात उस समय की है जब इसराएल जाति वादा किए हुए देश की ओर जा रही थी। कोरह को लगा कि यहोवा के इंतज़ाम में कुछ गड़बड़ है। जब उसने कुछ बदलाव करने की कोशिश की तब इसराएल के 250 प्रधानों ने भी उसका साथ दिया। कोरह और बाकी लोगों को यकीन था कि यहोवा के साथ उनका रिश्ता मज़बूत है। इसलिए उन्होंने मूसा से कहा: “तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है।” (गिन. 16:1-3) उन्हें खुद पर कितना भरोसा और घमंड था! मूसा ने उनसे कहा: “यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है।” (गिनतियों 16:5 पढ़िए।) अगले दिन के खत्म होते-होते कोरह और उसके साथी खाक में मिल गए!—गिन. 16:31-35.
क्या यहोवा आपको जानता है?
11 अब हम मूसा और कोरह के बारे में देखेंगे। यहोवा के इंतज़ामों और फैसलों के लिए उनका रवैया एक-दूसरे से बिलकुल अलग था और इसी बिनाह पर यहोवा ने उनके बारे में अपनी राय कायम की। कोरह कोहाती घराने का एक लेवी था और उसे परमेश्वर से कई आशीषें मिली थीं। जब इसराएली राष्ट्र ने लाल समुद्र पार किया तब वह भी उनमें से एक था और जब सीनै पहाड़ पर इसराएलियों ने मूर्तिपूजा की, तब उसने यहोवा का पक्ष लिया। इसके अलावा, करार के संदूक को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के काम में भी कोरह की एक अहम भूमिका थी। (निर्ग. 32:26-29; गिन. 3:30, 31) वह सालों तक यहोवा का वफादार रहा और बहुत-से इसराएली उसका आदर करते थे।
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महत्त्वपूर्ण बातों को प्राथमिकता दीजिए!
यहोवा ने इस मामले को ज़्यादा गंभीरता से लिया। बाइबल कहती है, “तब यहोवा ने मूसा से कहा, वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए।” (गिनती 15:35) उस व्यक्ति ने जो किया उसे यहोवा ने इतनी गंभीरता से क्यों लिया?
लोगों को छः दिन दिए गए थे जिनमें वे लकड़ी बीन सकते थे, साथ ही रोटी, कपड़ा और मकान की ज़रूरतों को पूरा कर सकते थे। सातवें दिन उन्हें अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों के प्रति पूरा-पूरा ध्यान देना था। जबकि लकड़ी बीनना गलत नहीं था, लेकिन यहोवा की उपासना के लिए अलग रखे गए समय को दूसरे काम में उपयोग करना गलत था। हालाँकि मसीही लोग मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, लेकिन क्या हम इस वाकए से यह सबक नहीं सीखते कि हम आज अपनी प्राथमिकताओं को सही दर्जे में रखें?—फिलिप्पियों 1:10.
5-11 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 17-19
‘मैं ही तेरी विरासत हूँ’
क्या आप यहोवा को अपना भाग बना रहे हैं?
9 ज़रा लेवियों के बारे में सोचिए जिन्हें विरासत में ज़मीन नहीं मिली थी। उन्होंने सच्ची उपासना को जिंदगी में पहली जगह दी थी इसलिए उन्हें अपने गुज़ारे के लिए यहोवा पर निर्भर रहना था। यहोवा ने उनसे कहा था: मैं “तेरा भाग” हूँ। (गिन. 18:20) हालाँकि हम लेवियों और याजकों की तरह परमेश्वर के असली मंदिर में सेवा नहीं करते लेकिन हम उनके जज़्बे की नकल कर सकते हैं जिन्हें यहोवा पर पूरा भरोसा था कि वह उनका खयाल रखेगा। जैसे-जैसे हम आखिरी दिनों के विनाश के नज़दीक पहुँच रहे हैं, हमें यहोवा पर और भी ज़्यादा भरोसा रखने की ज़रूरत है।—प्रका. 13:17.
यहोवा मेरा भाग है
4 लेवियों को सेवा की जो ज़िम्मेदारी मिली, उसका क्या मतलब था? जैसा यहोवा ने कहा कि वह उनका भाग होगा यानी ज़मीन देने के बजाय यहोवा ने उन्हें एक अनमोल ज़िम्मेदारी सौंपी। वह ज़िम्मेदारी, “यहोवा का दिया हुआ याजकपद,” था जो उनका अंश होता। (यहो. 18:7) लेकिन जैसे गिनतियों 18:20 का संदर्भ दिखाता है, इसका यह मतलब नहीं था कि वे पैसे के मोहताज़ होते। (गिनतियों 18:19, 21, 24 पढ़िए।) लेवी जो ‘सेवा करते थे, उसके बदले उनको इस्राएलियों का सब दशमांश निज भाग’ के तौर पर मिलता था। उन्हें इसराएलियों की पैदावार और जानवरों की बढ़ती का 10 प्रतिशत मिलता था। और लेवियों को जो भी मिलता था, वे उसका “उत्तम से उत्तम” दसवाँ भाग याजकों की मदद के लिए देते थे। (गिन. 18:25-29) इसके अलावा, परमेश्वर की उपासना की जगह पर इसराएली जो “पवित्र वस्तुओं की . . . भेंटें” चढ़ाते, वे भी याजकों को मिलती थीं। इस तरह याजक वर्ग के लोग यहोवा पर भरोसा रख सकते थे कि वह उनकी देखरेख ज़रूर करेगा।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
सज02 6/8 पेज 14 पै 2, अँग्रेज़ी
नमक—बहुत अनमोल
नमक किसी चीज़ के टिकाऊ और अटल होने की निशानी माना जाता था। यही वजह है कि जो करार कभी नहीं बदला जाता, उसे बाइबल में “नमक का अटल करार” कहा गया है। (गिनती 18:19) इस तरह का करार करते समय दोनों पक्ष के लोग साथ मिलकर खाना खाते थे और नमक भी खाते थे। यह इस बात की निशानी था कि उनका करार कभी नहीं टूटेगा। मूसा के कानून में यह भी कहा गया था कि वेदी पर बलिदान अर्पित करते समय नमक छिड़का या मिलाया जाए, क्योंकि नमक सड़न से बचाने की निशानी था।
12-18 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 20-21
“जब मुश्किल हो तब भी दीन बने रहिए”
दीन रहिए और यहोवा को खुश कीजिए
19 हम गलतियाँ करने से बचेंगे। एक बार फिर मूसा के बारे में सोचिए। कई सालों तक वह दीन रहा और उसने यहोवा को खुश किया। फिर जब वीराने में 40 साल का मुश्किलों-भरा सफर खत्म होने ही वाला था, तब मूसा दीन रहने से चूक गया। उसकी बहन की अभी-अभी मौत हुई थी और उसे कादेश में दफना दिया गया था। शायद यह वही बहन थी, जिसने मिस्र में उसकी जान बचायी थी। अब इसराएली फिर से कुड़कुड़ाने लगे कि उनकी ठीक से देखभाल नहीं की जा रही है। इस बार वे पानी न मिलने की वजह से “मूसा से झगड़ने लगे।” यहोवा ने मूसा के ज़रिए बड़े-बड़े चमत्कार किए थे और मूसा ने लंबे समय तक निस्वार्थ भाव से इसराएलियों की अगुवाई की थी। फिर भी वे कुड़कुड़ाने लगे। वे न सिर्फ पानी के बारे में, बल्कि मूसा के बारे में भी शिकायत कर रहे थे मानो उसी की वजह से वे प्यासे मर रहे हों।—गिन. 20:1-5, 9-11.
दीन रहिए और यहोवा को खुश कीजिए
20 इस पर मूसा अपना आपा खो बैठा और दीन नहीं रहा। यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी कि वह चट्टान से बोलकर पानी निकाले। लेकिन ऐसा करने के बजाय वह लोगों से कड़वी बातें करने लगा और कहने लगा कि क्या उसे उनके लिए पानी निकालना होगा। फिर उसने दो बार चट्टान पर मारा और उससे पानी उमड़ने लगा। घमंड और गुस्से में आकर मूसा ने कितनी बड़ी गलती की! (भज. 106:32, 33) थोड़े समय के लिए ही सही, मगर दीन न रहने की वजह से मूसा ने वादा किए गए देश में जाने का मौका गँवा दिया।—गिन. 20:12.
21 इस घटना से हम कुछ अहम सबक सीखते हैं। पहला, हमें दीन बने रहने के लिए लगातार मेहनत करनी चाहिए। अगर हम पल-भर के लिए भी ढिलाई बरतें, तो घमंड हम पर हावी हो सकता है और शायद हम कुछ ऐसा कर बैठें, जिसका बाद में हमें बहुत पछतावा हो। दूसरा, तनाव की वजह से दीन रहना मुश्किल हो सकता है, इसलिए जब हम किसी बात से परेशान हों, तब हमें दीन बने रहने की और भी ज़्यादा कोशिश करनी चाहिए।
न्यायी जो सही बात पर अटल बना रहता है
पहली वजह, परमेश्वर ने मूसा को लोगों से बात करने या उन्हें बागी करार देने की हिदायत नहीं दी थी। दूसरी वजह, मूसा और हारून परमेश्वर की महिमा करने में नाकाम रहे। परमेश्वर ने कहा: ‘तुमने मुझे पवित्र नहीं ठहराया।’ (आयत 12) जब मूसा ने कहा, “क्या हम तुम्हारे लिए इसी चट्टान से पानी निकालें?” तो उसने चमत्कार का सारा श्रेय यहोवा को देने के बजाय खुद को और हारून को दिया। तीसरी वजह, यहोवा ने बगावत की वही सज़ा सुनायी, जो उसने बीते समय में दी थी। जब पिछली पीढ़ी के इसराएलियों ने परमेश्वर से बगावत की, तो उसने उन्हें कनान देश जाने की इजाज़त नहीं दी। और इस मौके पर, उसने मूसा और हारून को भी वही दंड दिया। (गिनती 14:22, 23) चौथी वजह, मूसा और हारून इसराएल के अगुवे थे। और जिसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी दी जाती है, उससे ज़्यादा हिसाब भी लिया जाता है।—लूका 12:48.
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क्या आप इंसानों की कमज़ोरियों को यहोवा की नज़र से देखते हैं?
12 यहोवा चाहता तो हारून को उसकी गलतियों के लिए उसी वक्त सज़ा दे सकता था। मगर यहोवा जानता था कि हालाँकि कुछ मौकों पर हारून कमज़ोर पड़ गया था, लेकिन वह बुरा इंसान नहीं था। ऐसा मालूम होता है कि उसने इसलिए गलतियाँ की थीं, क्योंकि वह मुश्किल हालात में था और क्योंकि उसने बुरे लोगों की सुनी थी। मगर हारून अपनी गलतियाँ कबूल करने के लिए तैयार था और उसने यहोवा की ताड़ना भी कबूल की। (निर्ग. 32:26; गिन. 12:11; 20:23-27) हारून यहोवा से बहुत प्यार करता था और उसने सच्चा पश्चाताप किया। इसलिए यहोवा ने उसे माफ कर दिया। यही वजह थी कि सालों बाद भी, हारून और उसके परिवार को यहोवा के वफादार सेवकों के तौर पर याद किया गया।—भज. 115:10-12; 135:19, 20.
19-25 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 22-24
“यहोवा ने शाप को आशीर्वाद में बदल दिया”
“यीशु के बारे में खुशखबरी” का ऐलान करना
5 पहली सदी की तरह, आज भी ज़ुल्म और अत्याचार परमेश्वर के लोगों को प्रचार करने से नहीं रोक पाए हैं। मसीहियों का मुँह बंद करने के लिए कभी उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया, तो कभी उन्हें दूसरे देश में जाकर पनाह लेने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन इस तरह जब मसीहियों को अपना ठिकाना बदलना पड़ा, तब भी हर नयी जगह पर उन्होंने राज का संदेश सुनाकर वहाँ के लोगों को सच्चाई से वाकिफ कराया। मिसाल के लिए, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब यहोवा के साक्षियों को नात्ज़ियों के यातना शिविरों में डाला गया, तो वहाँ भी उन्होंने खुशखबरी सुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इन्हीं यातना शिविरों में एक यहूदी आदमी की मुलाकात साक्षियों से हुई। वह उनके बारे में कहता है, “हालाँकि ये साक्षी यातना शिविरों में थे, फिर भी उनका इरादा फौलाद की तरह मज़बूत था। उन्हें देखकर मुझे यकीन हो चला कि वे जो भी विश्वास करते हैं वह बाइबल से है। फिर मैं खुद भी एक साक्षी बन गया।”
इंसाइट-2 पेज 291
पागलपन
यहोवा के खिलाफ जाने का पागलपन। बिलाम नाम के भविष्यवक्ता ने मोआबी लोगों के राजा बालाक से रकम पाने के लालच में इसराएलियों को शाप देने की कोशिश की। मगर यहोवा ने उसे नाकाम कर दिया। बिलाम की मूर्खता के बारे में प्रेषित पतरस ने लिखा, ‘एक बोझ ढोनेवाले बेज़ुबान जानवर ने इंसान की आवाज़ में बोलकर उस भविष्यवक्ता को पागलपन का काम करने से रोका।’ बिलाम के पागलपन के बारे में बताने के लिए पतरस ने यूनानी शब्द पैराफ्रोनिया इस्तेमाल किया। इस शब्द का मतलब है, “दिमाग ठिकाने न होना।”—2पत 2:15, 16; गि 22:26-31.
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गिनती किताब की झलकियाँ
22:20-22—बिलाम पर यहोवा का कोप क्यों भड़क उठा? यहोवा ने बिलाम नबी से कहा था कि वह इस्राएलियों को शाप न दे। (गिनती 22:12) फिर भी बिलाम, इस्राएलियों को शाप देने के इरादे से बालाक के आदमियों के साथ गया। बिलाम, मोआबी राजा को खुश करके उससे इनाम पाना चाहता था। (2 पतरस 2:15, 16; यहूदा 11) लेकिन जब उसे इस्राएलियों को शाप देने के बजाय आशीष देने के लिए मजबूर किया गया, तब भी उसने राजा से इनाम पाने के वास्ते उसे यह सुझाव दिया कि वह बाल देवता की पूजा करनेवाली औरतों को भेजकर इस्राएली आदमियों को पाप में फँसाए। (गिनती 31:15, 16) बिलाम इतना लालची था कि वह किसी भी हद तक गिर सकता था। इसलिए परमेश्वर का क्रोध उस पर भड़क उठा।
26 अप्रैल–2 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 25-26
“क्या एक अकेले इंसान से कुछ हो सकता है?”
“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”
क्या आपने कभी एक मछुवारे को मछली पकड़ते देखा है? अगर उसे एक खास किस्म की मछली चाहिए, तो वह उसी तालाब में जाता है, जहाँ वह मिलती है। वह सोच-समझकर चारा चुनता है। फिर उसे काँटे में लगाकर पानी में डालता है और इंतज़ार करने लगता है। जैसे ही मछली आती है और चारा खाने लगती है, तो मछुवारा झट-से काँटा उसके जबड़े में फँसाकर उसे ऊपर खींच लेता है।
2 कुछ इसी तरह इंसानों को भी फँसाया जा सकता है। इसराएलियों के साथ हुई एक घटना पर ध्यान दीजिए। वे मोआब के मैदानों में डेरा डाले हुए थे और वादा किए गए देश में जाने ही वाले थे। मोआब के राजा ने बिलाम से वादा किया कि अगर वह इसराएलियों को शाप देगा, तो वह उसे बहुत धन-दौलत देगा। आखिरकार बिलाम को एक ऐसी तरकीब सूझी, जिससे इसराएली खुद अपने ऊपर शाप ले आते। उसने बहुत सोच-समझकर चारा डाला। उसने कुछ जवान मोआबी औरतों को इसराएलियों की छावनी में भेजा, ताकि वे इसराएली आदमियों को लुभाकर उन्हें अनैतिक काम में फँसाएँ।—गिनती 22:1-7; 31:15, 16; प्रकाशितवाक्य 2:14.
“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”
4 आखिर इतने सारे इसराएली इस फँदे में क्यों फँस गए? उनका ध्यान बस अपने शरीर की इच्छाएँ पूरी करने पर लगा था और वे भूल गए कि यहोवा ने उन पर कितने उपकार किए थे। उसने उन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाया था, वीराने में उनकी देखभाल की थी और वादा किए गए देश की सरहद तक सुरक्षित पहुँचाया था। (इब्रानियों 3:12) फिर भी उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और वे अनैतिक काम कर बैठे। इसी घटना का ज़िक्र करते हुए प्रेषित पौलुस ने सलाह दी, ‘हम नाजायज़ यौन-संबंध रखने का पाप न करें, जैसे उनमें से कुछ ने किया था और मारे गए।’—1 कुरिंथियों 10:8.
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इंसाइट-1 पेज 359 पै 1-2
सरहद
इसराएल के गोत्रों में ज़मीन का बँटवारा करने के लिए दो काम किए गए। पहले तो चिट्ठियाँ डाली गयीं और फिर यह देखा गया कि फलाँ गोत्र कितना बड़ा है। शायद चिट्ठियाँ डालकर सिर्फ यह तय किया गया कि फलाँ गोत्र को देश में ज़मीन कहाँ पर मिलनी चाहिए—उत्तर में, दक्षिण में, पूरब में, पश्चिम में, समुदंर किनारे के मैदानी इलाके में या पहाड़ी प्रदेश में। चिट्ठियाँ इसलिए डाली गयीं ताकि जो भी फैसला निकले वह यहोवा का फैसला माना जाए और किसी गोत्र को दूसरे गोत्र से जलन न हो और उनके बीच झगड़े न हों। (नीत 16:33) यहोवा ने चिट्ठियों के ज़रिए अपना फैसला बताकर इस बात का भी ध्यान रखा कि हर गोत्र को इलाका याकूब की भविष्यवाणी के हिसाब से मिले। यह भविष्यवाणी उसने अपनी मौत से पहले की थी और यह उत्पत्ति 49:1-33 में लिखी हुई है।
एक बार जब यह फैसला हो गया कि गोत्रों को कहाँ-कहाँ ज़मीन मिलनी चाहिए, तो इसके बाद यह तय किया गया कि हर गोत्र को कितना बड़ा इलाका मिलना चाहिए। इसके लिए यह देखा गया कि एक गोत्र कितना बड़ा है। यहोवा ने यह निर्देश दिया था, “तुम चिट्ठियाँ डालकर देश की ज़मीन अपने सभी घरानों में बाँट देना। जो समूह बड़ा है उसे विरासत में ज़्यादा ज़मीन देना और जो समूह छोटा है उसे कम देना। चिट्ठियाँ डालकर तय किया जाए कि देश में किसे कहाँ पर विरासत की ज़मीन मिलेगी।” (गि 33:54) हर गोत्र को देश में वहीं पर ज़मीन दी जानी थी जो चिट्ठियों के मुताबिक तय हुआ था। इसमें कोई फेरबदल नहीं किया जाना था। मगर गोत्र बड़ा है या छोटा, यह देखकर उसका इलाका बढ़ाया जा सकता था या घटाया जा सकता था। इसी वजह से जब देखा गया कि यहूदा को मिलनेवाला इलाका कुछ ज़्यादा ही बड़ा है, तो उसे घटा दिया गया। और उसी के इलाके में कहीं-कहीं पर शिमोन गोत्र को ज़मीन दी गयी।—यह 19:9.