मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
1-7 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 18-19
“यहोवा ने बुद्धिमानी से ज़मीन बाँटी”
इंसाइट-1 पेज 359 पै 1
सरहद
इसराएल के गोत्रों में ज़मीन का बँटवारा करने के लिए दो काम किए गए। पहले तो चिट्ठियाँ डाली गयीं और फिर यह देखा गया कि फलाँ गोत्र कितना बड़ा है। शायद चिट्ठियाँ डालकर सिर्फ यह तय किया गया कि फलाँ गोत्र को देश में ज़मीन कहाँ पर मिलनी चाहिए—उत्तर में, दक्षिण में, पूरब में, पश्चिम में, समुंदर किनारे के मैदानी इलाके में या पहाड़ी प्रदेश में। चिट्ठियाँ इसलिए डाली गयीं ताकि जो भी फैसला निकले वह यहोवा का फैसला माना जाए और किसी गोत्र को दूसरे गोत्र से जलन न हो और उनके बीच झगड़े न हों। (नीत 16:33) यहोवा ने चिट्ठियों के ज़रिए अपना फैसला बताकर इस बात का भी ध्यान रखा कि हर गोत्र को इलाका याकूब की भविष्यवाणी के हिसाब से मिले। यह भविष्यवाणी उसने अपनी मौत से पहले की थी और यह उत्पत्ति 49:1-33 में लिखी हुई है।
इंसाइट-1 पेज 1200 पै 1
विरासत
उत्पत्ति 49:5, 7 में ज़िक्र की गयी याकूब की भविष्यवाणी के मुताबिक शिमोन और लेवी गोत्र को अलग से विरासत की ज़मीन नहीं दी गयी। शिमोन गोत्र को यहूदा गोत्र के हिस्से में से ही विरासत की ज़मीन मिली (यह 19:1-9) और लेवी गोत्र को पूरे इसराएल देश में सभी गोत्रों के इलाकों में से 48 शहर दिए गए।
इंसाइट-1 पेज 359 पै 2
सरहद
एक बार जब यह फैसला हो गया कि गोत्रों को कहाँ-कहाँ ज़मीन मिलनी चाहिए, तो इसके बाद यह तय किया गया कि हर गोत्र को कितना बड़ा इलाका मिलना चाहिए। इसके लिए यह देखा गया कि एक गोत्र कितना बड़ा है। यहोवा ने यह निर्देश दिया था, “तुम चिट्ठियाँ डालकर देश की ज़मीन अपने सभी घरानों में बाँट देना। जो समूह बड़ा है उसे विरासत में ज़्यादा ज़मीन देना और जो समूह छोटा है उसे कम देना। चिट्ठियाँ डालकर तय किया जाए कि देश में किसे कहाँ पर विरासत की ज़मीन मिलेगी।” (गि 33:54) हर गोत्र को देश में वहीं पर ज़मीन दी जानी थी जो चिट्ठियों के मुताबिक तय हुआ था। इसमें कोई फेरबदल नहीं किया जाना था। मगर गोत्र बड़ा है या छोटा, यह देखकर उसका इलाका बढ़ाया जा सकता था या घटाया जा सकता था। इसी वजह से जब देखा गया कि यहूदा को मिलनेवाला इलाका कुछ ज़्यादा ही बड़ा है, तो उसे घटा दिया गया। और उसी के इलाके में कहीं-कहीं पर शिमोन गोत्र को ज़मीन दी गयी।—यह 19:9.
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इंसाइट-1 पेज 359 पै 5
सरहद
इसराएल के सात गोत्र यरदन के पश्चिमी इलाके पर कब्ज़ा करने में देरी क्यों कर रहे थे? बाइबल का अध्ययन करनेवालों का कहना है कि इसकी कई वजह हो सकती हैं। एक वजह यह हो सकती है कि इसराएलियों ने अब तक जिन इलाकों पर कब्ज़ा किया था, वहाँ से उन्होंने लूट का खूब सारा माल बटोर लिया था। साथ ही उन्हें इस बात का कोई डर नहीं था कि कनानी उन पर हमला करेंगे, इसीलिए शायद उन्हें लगा कि बाकी इलाकों पर कब्ज़ा करने की कोई जल्दी नहीं है। यह भी हो सकता है कि उन्हें लगा हो कि बाकी इलाकों में दुश्मनों को हराना आसान नहीं होगा, क्योंकि वे गिनती में बहुत थे और ताकतवर भी थे। (यह 13:1-7) इसके अलावा, जिन इलाकों पर वे कब्ज़ा कर चुके थे, उनके मुकाबले इन इलाकों के बारे में उन्हें ज़्यादा नहीं मालूम था, इसलिए वे उन पर कब्ज़ा करने में ढिलाई करने लगे।
8-14 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 20-22
“गलतफहमी एक, सबक अनेक”
अपने साथी से बात करने के लिए क्या ज़रूरी है?
खुली बातचीत से गलतफहमियाँ पैदा ही नहीं होतीं, ना ही हमारी बात का गलत मतलब निकाला जाता है। इसकी एक मिसाल इस्राएल देश के शुरू के इतिहास में देखी जा सकती है। इस्राएलियों के ज़्यादातर गोत्र यरदन नदी के पश्चिम में बस गए मगर रूबेन, गाद और मनश्शे के आधे गोत्र को यरदन के पूर्व में इलाके दिए गए। पूर्व के इन गोत्रों ने यरदन के किनारे पर “देखने के योग्य एक बड़ी वेदी” बनायी। बाकी गोत्रों ने उनके इस काम का गलत मतलब निकाला। उन्हें लगा कि यरदन के पार उनके भाई सच्ची उपासना के खिलाफ जा रहे हैं, इसलिए उन्हें सज़ा देने के लिए वे उनसे लड़ने को तैयार हो गए। मगर लड़ाई पर जाने से पहले उन्होंने पूर्वी गोत्रों से बात करने के लिए अपना एक दल भेजा। यह वाकई अक्लमंदी का काम था! क्यों? क्योंकि उनसे बात करने पर उन्हें पता चला कि वह वेदी ऐसे बलिदान चढ़ाने के लिए नहीं बनायी गयी थी, जिन्हें चढ़ाना परमेश्वर की कानून-व्यवस्था के मुताबिक गलत होता। दरअसल, पूर्वी गोत्रों को डर था कि आगे चलकर पश्चिम के गोत्र उनसे कहेंगे: “यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं है।” इसलिए यह वेदी पश्चिम के गोत्रों को गवाही देती कि यरदन के पूर्व में रहनेवाले उनके भाई भी यहोवा के उपासक हैं। (यहोशू 22:10-29) उन्होंने इस वेदी का नाम साक्षी रखा शायद इसलिए कि वह वेदी इस बात की गवाही देती कि पूर्वी गोत्र, यहोवा को सच्चा परमेश्वर मानते थे।—यहोशू 22:34, फुटनोट।
‘उन बातों की कोशिश कीजिए जिनसे मेल मिलाप हो’
कुछ इस्राएलियों को शायद लगा हो कि रूबेनी, गादी, और मनश्शे के गोत्र यकीनन गुनहगार हैं, इसलिए उन पर अचानक हमला बोल देने में कोई हर्ज़ नहीं। इस तरह, लड़ाई में उनके अपने लोग भी कम मरते। लेकिन जल्दबाज़ी में कदम उठाने के बजाय, उन्होंने पहले अपने भाइयों से बातचीत करने के लिए कुछ आदमी भेजे। इन आदमियों ने उनसे कहा: ‘तुम ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का यह कैसा विश्वासघात किया कि आज तुम ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया?’ दरअसल इस्राएल के इन गोत्रों ने वेदी खड़ी करके कोई विश्वासघात नहीं किया था। तो फिर, यह गलत इलज़ाम सुनकर उन्हें कैसा लगा? क्या वे इलज़ाम लगानेवालों पर बरस पड़े या फिर उनसे बात करना बंद कर दिया? जी नहीं। उन्होंने नरमी से जवाब दिया और बताया कि उन्होंने यह वेदी एक साक्षी के तौर पर बनायी थी, ताकि परमेश्वर की उपासना करने का रास्ता उनके और उनकी संतानों के लिए हमेशा खुला रहे। इस तरह नरमी से जवाब देने से परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता बरकरार रहा और कई बेगुनाहों की जान बच गयी। जी हाँ, शांत होकर बात करने से मसला हल हुआ और उनका आपस में मेल मिलाप हो गया।—यहो. 22:13-34.
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इंसाइट-1 पेज 402 पै 3
कनान
यहोवा ने वादा किए गए देश से सभी कनानियों को एक साथ नहीं मिटाया। इसकी कई वजह थीं। एक तो यह कि देश में जो कनानी रह गए थे, उनसे इसराएलियों को कोई खतरा नहीं था। जब तक इसराएली यहोवा की बात मानते, तब तक वह कनानियों से उनकी रक्षा करता। वैसे भी परमेश्वर ने इसराएलियों से पहले ही कहा था कि वह कनानियों को “थोड़ा-थोड़ा करके” देश से भगाएगा। उस वक्त इसराएलियों की गिनती इतनी ज़्यादा नहीं थी, इसलिए उन्हें पूरे देश के इलाके की ज़रूरत नहीं थी। यहोवा ने एक और वजह से सभी कनानियों को एक साथ नहीं मिटाया। अगर वह उन्हें मिटा देता, तो देश के कुछ इलाके बिलकुल सुनसान हो जाते और वहाँ जंगली जानवरों की गिनती बढ़ जाती।—निर्ग 23:29, 30; व्य 7:22.
15-21 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 23-24
“यहोशू के आखिरी शब्द”
इंसाइट-1 पेज 75
मेल-जोल
इसराएलियों को कनान देश पर कब्ज़ा करने का पूरा अधिकार था, क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। वे उस देश में परदेसियों की तरह नहीं रहनेवाले थे, इसलिए उन्हें कनानी लोगों के साथ कोई करार करने की ज़रूरत नहीं थी। यहोवा ने उनसे साफ-साफ कहा था कि वे उनके साथ कोई करार न करें, क्योंकि वे झूठे देवी-देवताओं को पूजते हैं। (निर्ग 23:31-33; 34:11-16) यहोवा ने उनसे यह भी कहा था कि वे कनानी लोगों से शादी न करें। उनके साथ रिश्ता जोड़ने से वे भी पाप कर बैठते। अपनी पत्नी या दूसरे रिश्तेदारों की देखा-देखी, वे भी झूठे धार्मिक रीति-रिवाज़ मानने लग सकते थे। अगर वे ऐसा करके यहोवा के खिलाफ जाते, तो वह उनकी हिफाज़त नहीं करता और उन्हें आशीष नहीं देता।—व्य 7:2-4; निर्ग 34:16; यह 23:12, 13.
परमेश्वर का वचन बिना पूरा हुए नहीं रहता
19 हमने अपनी आँखों से जो होते देखा है, उसकी बिना पर हम भी यकीनन यह कह सकते हैं: “जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहोशू 23:14) वाकई, यहोवा अपने सेवकों को छुड़ाता है, उनकी हिफाज़त और देखभाल करता है। क्या आप परमेश्वर का कोई भी ऐसा वादा बता सकते हैं, जो उसके ठहराए हुए वक्त पर पूरा न हुआ हो? यह बताना नामुमकिन है। इसलिए हम समझदारी से काम लेते हुए परमेश्वर के वचन पर भरोसा रखते हैं।
20 आनेवाले कल में क्या होगा? यहोवा ने हममें से ज़्यादातर लोगों को इसी धरती पर जीने की आशा दी है, जो खूबसूरत फिरदौस में तबदील की जाएगी। जबकि कुछ लोगों को उसने मसीह के साथ स्वर्ग में राज करने की आशा दी है। हमारी आशा चाहे जो भी हो, यहोशू की तरह वफादार बने रहने की हमारे पास हरेक वजह है। वह दिन दूर नहीं, जब हमारी आशा हकीकत में बदल जाएगी। तब हम भी यहोशू की तरह यहोवा के सभी वादों को याद करके कहेंगे: ‘वे सब के सब पूरे हुए।’
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यहोशू किताब की झलकियाँ
24:2—क्या इब्राहीम का पिता, तेरह मूर्तियों की पूजा करता था? तेरह पहले यहोवा का उपासक नहीं था। वह शायद ऊर के जाने-माने चंद्र-देवता, सिन की पूजा करता था। यहूदी परंपराओं के मुताबिक, तेरह शायद खुद मूर्तियाँ बनाने का काम करता था। लेकिन जब इब्राहीम, परमेश्वर के आज्ञा देने पर ऊर नगर को छोड़कर हारान गया, तो तेरह भी उसके साथ हो लिया।—उत्पत्ति 11:31.
22-28 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 1-3
“दिलेरी और होशियारी का किस्सा”
एहूद एक अत्याचारी के जुए को तोड़ डालता है
एहूद की योजना इस वजह से कामयाब नहीं हुई कि वह चतुर था या उसके दुश्मन काबिल नहीं थे। परमेश्वर अपना मकसद पूरा करने के लिए इंसानों का मोहताज नहीं है। एहूद की कामयाबी की अहम वजह यह थी कि परमेश्वर ने उसका साथ दिया जब उसने परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक उसके लोगों को छुड़ाया और उसकी मरज़ी को पूरा होने से कोई रोक नहीं सकता। एहूद को परमेश्वर ने चुना था, “और जब जब यहोवा [अपने लोगों के] लिये न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रह[ता]।”—न्यायियों 2:18; 3:15.
एहूद एक अत्याचारी के जुए को तोड़ डालता है
एहूद ने सबसे पहले अपने लिए एक ऐसी “तलवार” बनायी जो दोधारी थी और इतनी छोटी कि उसे आसानी से कपड़े के नीचे छिपाया जा सकता था। शायद उसे मालूम था कि उसकी तलाशी ली जाएगी। आम तौर पर दाएँ हाथवाला इंसान, तलवार को अपनी बायीं तरफ रखता ताकि ज़रूरत पड़ने पर उसे फुर्ती से निकाल सके। लेकिन एहूद बैंहत्था था, इसलिए उसने हथियार “अपने वस्त्र के नीचे दाहिनी जांघ पर लटका लिया।” और राजा के पहरेदारों की उस जगह पर तलाशी लेने की गुंजाइश भी कम थी। इसलिए वह बिना किसी रोक-टोक के ‘मोआब के राजा एग्लोन के पास भेंट ले गया।’—न्यायियों 3:16, 17.
राजा एग्लोन के दरबार में एहूद के साथ उसकी पहली मुलाकात में क्या-क्या हुआ, इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं दी गयी है। बाइबल बस इतना बताती है: ‘जब एहूद भेंट दे चुका, तब उसने भेंट लानेवाले को विदा किया।’ (न्यायियों 3:18) भेंट देने के बाद, एहूद भेंट लानेवालों के संग एग्लोन के महल से बाहर कुछ दूर गया और उन्हें विदा करके वापस महल लौटा। वह वापस क्यों लौटा? आखिर वह अपने साथ उन आदमियों को क्यों लाया था? अपनी हिफाज़त के लिए, या वह उस ज़माने का दस्तूर था, या फिर महज़ भेंट उठाकर लाने के लिए? और वह उनके साथ कुछ दूर क्यों गया? क्या वह उन्हें सही-सलामत बाहर पहुँचा देना चाहता था, इससे पहले कि वह अपनी योजना को अंजाम दे? वजह चाहे जो भी रही हो, एहूद बड़ी बहादुरी दिखाते हुए अकेले ही महल में दोबारा लौट आया।
वृत्तांत कहता है: “[एहूद] आप गिलगाल के निकट की खुदी हुई मूरतों के पास लौट गया, और एग्लोन के पास कहला भेजा, कि हे राजा, मुझे तुझ से एक भेद की बात कहनी है।” एहूद को दोबारा राजा के सामने हाज़िर होने की इजाज़त कैसे मिल गयी, इस बारे में बाइबल में कुछ नहीं बताया गया है। क्या पहरेदारों ने एहूद पर शक नहीं किया? या क्या उन्होंने यह सोचकर उसे जाने दिया कि भला एक इस्राएली उनके राजा का क्या बिगाड़ सकता है? क्या एहूद का अकेला जाना ऐसा लगा होगा कि वह अपने ही जाति-भाइयों के साथ गद्दारी कर रहा है? बात चाहे जो हो, एहूद ने अकेले में राजा से बात करने की इजाज़त माँगी, सो उसे मिल गयी।—न्यायियों 3:19.
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न्यायियों किताब की झलकियाँ
2:10-12. हमें नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करना चाहिए, ताकि हम ‘यहोवा के किसी भी उपकार को न भूलें।’ (भजन 103:2) माता-पिताओं को अपने बच्चों के दिल में परमेश्वर के वचन की सच्चाई बिठाना ज़रूरी है।—व्यवस्थाविवरण 6:6-9.
29 नवंबर–5 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 4-5
“यहोवा ने दो औरतों के ज़रिए अपने लोगों को बचाया”
प्र15 8/1 पेज 13 पै 1, अँग्रेज़ी
‘इसराएल में माँ बनकर मैंने उन्हें सँभाला’
कनान के सेनापति सीसरा का नाम सुनते ही इसराएलियों की जान सूख जाती थी। कनान के लोग बहुत बेरहम थे और बहुत ही घिनौने काम करते थे। उनके मंदिरों में औरतें वेश्या का काम करती थीं और आदमी दूसरे आदमियों के साथ संभोग करते थे। वे अपने बच्चों की बलि भी चढ़ा देते थे। सेनापति सीसरा और उसकी सेना ने इसराएलियों का जीना दुश्वार कर दिया था। भविष्यवक्तिन दबोरा के गीत से पता चलता है कि देश में सफर करना बहुत मुश्किल हो गया था और गाँव-के-गाँव खाली हो गए थे। (न्यायियों 5:6, 7) कनानियों के डर से शायद लोग ऐसी बस्तियों में रहने से घबराते थे जिनके चारों तरफ सुरक्षा के लिए कोई दीवार नहीं थी। वे शायद वहाँ खेती-बाड़ी भी नहीं करते थे और अपनी जान बचाने के लिए जंगलों और पहाड़ों में छिपते थे। उन्हें सड़कों पर आने-जाने से भी डर लगा होगा कि कहीं कनानी लोग उन पर हमला न कर दें, उनके बच्चों को उठा न लें या फिर औरतों का बलात्कार न करें।
प्र15 8/1 पेज 13 पै 2, अँग्रेज़ी
‘इसराएल में माँ बनकर मैंने उन्हें सँभाला’
इसराएली यहोवा की बात नहीं मानते थे और बहुत ढीठ हो गए थे, इसलिए यहोवा ने उन्हें कनानी राजा याबीन के हाथ कर दिया। याबीन और सेनापति सीसरा ने इसराएलियों पर बहुत ज़ुल्म किए। ऐसा कई सालों तक चलता रहा। फिर बीस साल बाद इसराएलियों को अपने किए पर अफसोस हुआ और वे यहोवा के पास लौट आए। तब यहोवा ने दबोरा के ज़रिए अपने लोगों की रक्षा की। दबोरा लप्पीदोत नाम के एक आदमी की पत्नी थी। यहोवा ने दबोरा को यह काम सौंपा कि जैसे एक माँ अपने बच्चों की रक्षा करती है, वैसे ही वह इसराएलियों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए। उसने दबोरा से कहा कि वह न्यायी बाराक को बुलवाए और उससे कहे कि वह जाकर सेनापति सीसरा से लड़े। दबोरा ने इसराएलियों को ऐसे सँभाला जैसे एक माँ अपने बच्चों को सँभालती है। इसी घटना का ज़िक्र करते हुए उसने गीत गाया, ‘मैं उनकी मदद के लिए खड़ी हुई, उनकी माँ बनकर मैंने उन्हें सँभाला।’—न्यायियों 4:3, 6, 7; 5:7.
प्र15 8/1 पेज 15 पै 2, अँग्रेज़ी
‘इसराएल में माँ बनकर मैंने उन्हें सँभाला’
याएल के पास ज़्यादा समय नहीं था, उसे जल्दी कदम उठाना था। उसने सेनापति सीसरा से कहा कि वह उसके तंबू में थोड़ा आराम कर ले। सीसरा ने उससे कहा कि अगर कोई आदमी उसके बारे में पूछे, तो वह उसे न बताए कि वह यहाँ है। फिर सीसरा लेट गया और याएल ने उसे कंबल ओढ़ा दिया। जब उसने पानी माँगा, तो याएल ने उसे मलाईवाला दूध दिया। कुछ ही देर में सीसरा गहरी नींद सो गया। उस ज़माने में औरतें भी तंबू लगाने के लिए खूँटी और हथौड़ा चलाने में माहिर होती थीं। याएल ने खूँटी और हथौड़ा लिया और दबे पाँव सीसरा के पास आयी। अब सीसरा की जान उसके हाथ में थी। क्या वह उसे मारकर यहोवा के लोगों को जीत दिलाएगी? अगर वह ज़रा भी हिचकिचाएगी या सोच में पड़ जाएगी कि मैं सीसरा को मारूँ या न मारूँ, तो इतने में सीसरा जाग जाएगा और उसकी जान ले लेगा। तो याएल ने मन में क्या सोचा होगा? यही कि सीसरा ने पिछले 20 सालों से यहोवा के लोगों पर कितने ज़ुल्म किए हैं। अब मुझे यहोवा ने अपने लोगों की मदद करने का मौका दिया है, इसलिए मैं यह मौका हाथ से नहीं जाने दूँगी और सीसरा की जान लेकर ही रहूँगी। बाइबल में नहीं लिखा है कि उसने क्या सोचा था। लेकिन इतना ज़रूर लिखा है कि उसने बिना देर किए सीसरा को मार डाला।—न्यायियों 4:18-21; 5:24-27.
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न्यायियों किताब की झलकियाँ
5:20—आकाश के तारों ने कैसे बाराक की तरफ से लड़ाई की? क्या स्वर्गदूतों ने उसकी मदद की थी या क्या उल्काओं की वर्षा हुई जिसे सीसरा के ज्ञानियों ने मुसीबत की निशानी समझा या क्या ज्योतिषियों की जिन भविष्यवाणियों पर सीसरा ने भरोसा रखा था, वे झूठी निकलीं? बाइबल यह नहीं बताती कि तारों ने कैसे लड़ाई की, लेकिन इतना ज़रूर है कि परमेश्वर ने किसी-न-किसी तरह से इस्राएलियों की मदद की थी।
6-12 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 6-7
“हिम्मत जुटा और जा”
परमेश्वर के बताए उसूलों से आपको लाभ हो सकता है
प्राचीन समय के इब्रानी लोगों का न्यायी, गिदोन ऐसा इंसान था, जिसने अपने बारे में सही नज़रिया रखा और अपनी कीमत को सही-सही आँका। उसने इस्राएलियों का अगुवा बनने की कोशिश नहीं की। और जब उसे वह पद सौंपा गया तो उसने अपनी कमज़ोरियों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह उस पद के लायक नहीं है। उसने कहा: “मेरा कुल तो मनश्शे के गोत्र में सबसे छोटा है और मैं अपने पिता के पूरे घराने में एक मामूली इंसान हूँ।”—न्यायियों 6:12-16.
“यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार”!
अब देखिए मिद्यानियों की छावनी में कैसा तहलका मच जाता है! अचानक, और एक-साथ 300 घड़ों का चूर-चूर होना, 300 नरसिंगों के फूँकने की आवाज़ और उन 300 आदमियों का चिल्लाना, रात की खामोशी को चीरता हुआ पूरे माहौल में आतंक फैला देता है। जब गिदोन के आदमी “यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार” कहकर चिल्लाते हैं तो मिद्यानियों के छक्के छूट जाते हैं। वे भी डर के मारे चीखने-चिल्लाने लगते हैं, जिससे और भी कोलाहल मच जाता है। इस अफरा-तफरी में मिद्यानियों को समझ नहीं आता कि दुश्मन कौन है और दोस्त कौन। मगर गिदोन के 300 आदमी अब भी अपनी-अपनी जगह पर खड़े हैं और देखते हैं कि परमेश्वर दुश्मनों को कैसे उलझन में डाल देता है, जिससे वे आपस में एक-दूसरे का घात कर देते हैं। बचे हुए मिद्यानी भागना शुरू करते हैं। मगर कुछ को बीच रास्ते में ही रोककर मार डाला जाता है। और बाकियों का गिदोन और उसके आदमी दूर-दूर तक पीछा करते हैं और एक-एक को मार गिराते हैं। इस तरह मिद्यानियों का खतरा हमेशा के लिए टल जाता है। आखिरकार, एक लंबे अरसे से चला आ रहा ज़ुल्मों का दौर खत्म हो जाता है!—न्यायियों 7:19-25; 8:10-12, 28.
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न्यायियों किताब की झलकियाँ
6:25-27. गिदोन ने सूझ-बूझ से काम लिया ताकि उसके विरोधी खाहमखाह भड़क न उठें। सुसमाचार का प्रचार करते वक्त, हमें भी सावधान रहना चाहिए कि हमारे बात करने के तरीके से लोगों को बेवजह ठेस न पहुँचे।
13-19 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 8-9
“घमंड मत करो, नम्र बनो”
खटपट हो जाए तो क्या किया जाए?
मिद्यान से जंग करते वक्त गिदोन ने मदद के लिए एप्रैमियों को बुलाया। एप्रैमियों की मदद से गिदोन को फतेह हासिल हुई। लेकिन जंग खतम होने के बाद एप्रैमी गिदोन से बहुत गुस्सा हो गए और शिकायत करने लगे कि मिद्यानियों से लड़ने के लिए गिदोन ने उन्हें जंग से पहले क्यों नहीं बुलाया। बाइबल बताती है “वे गिदोन से झगड़ने लगे।” जवाब में गिदोन ने एप्रैमियों से कहा: “मैं कौन होता हूँ तुम्हारी बराबरी करनेवाला? हम अबीएजेर के आदमियों ने जो किया, उससे कहीं बढ़कर तुम एप्रैमियों ने किया। मिद्यानियों के हाकिम ओरेब और ज़ाएब को परमेश्वर ने तुम्हारे हवाले कर दिया। मैंने जो किया वह तुम्हारे मुकाबले कुछ भी नहीं।” (न्यायियों 8:1-3) सोच-समझकर बोलने से गिदोन ने एप्रैमियों के गुस्से को ठंडा किया जिससे एक घमासान युद्ध होने से बच गया। एप्रैमी लोग शायद घमण्डी थे या खुद को बहुत बड़ा सूरमा समझते थे। खैर वे जैसे भी थे, गिदोन शांति से खटपट या तकरार को रोकने में कामयाब रहा। क्या हम भी उसकी तरह कर सकते हैं?
मर्यादा में रहना क्यों ज़रूरी है?
15 गिदोन ने मर्यादा में रहने की एक बढ़िया मिसाल रखी। जब यहोवा ने उसे यह काम सौंपा कि वह इसराएलियों को मिद्यानियों से बचाए तो गिदोन ने कहा, “मेरा कुल तो मनश्शे के गोत्र में सबसे छोटा है और मैं अपने पिता के पूरे घराने में एक मामूली इंसान हूँ।” (न्यायि. 6:15) लेकिन गिदोन ने यहोवा पर भरोसा रखा और यह काम कबूल किया। फिर गिदोन ने यह जानने की भी कोशिश की कि यहोवा उससे ठीक-ठीक क्या चाहता है और उसने मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की। (न्यायि. 6:36-40) गिदोन बहुत हिम्मतवाला था लेकिन वह बुद्धिमान भी था और सतर्क भी रहता था। (न्यायि. 6:11, 27) बाद में जब लोग चाहते थे कि वह उन पर राज करे तो उसने मना कर दिया। यहोवा ने उससे जो करने के लिए कहा था वह करने के बाद, वह वापस घर लौट गया।—न्यायि. 8:22, 23, 29.
यहोवा के मार्गों पर चलिए
9 परमेश्वर के मित्र बनने के लिए, हमें “नम्र” बनना होगा। (1 पत. 3:8; भज. 138:6) नम्रता का गुण क्यों ज़रूरी है, यह न्यायियों की किताब के अध्याय 9 में बताया गया है। वहाँ गिदोन के बेटे, योताम ने कहा: “किसी युग में वृक्ष किसी का अभिषेक करके अपने ऊपर राजा ठहराने को चले।” उन्होंने एक-एक करके जैतून के पेड़, अंजीर के पेड़ और दाखलता से पूछा कि क्या वे उन पर राज्य करेंगे। मगर उन तीनों ने साफ इनकार कर दिया। लेकिन जब उन्होंने झड़बेरी से पूछा, तो वह खुशी-खुशी राज़ी हो गयी। जैतून और अंजीर के पेड़, साथ ही दाखलता, उन काबिल पुरुषों को दर्शाते थे, जो अपने संगी इस्राएलियों पर हुकूमत करना नहीं चाहते थे। जबकि झड़बेरी, जो सिर्फ ईंधन के तौर पर काम आती है, मगरूर अबीमेलेक की हुकूमत को दर्शाती थी। अबीमेलेक एक हत्यारा था और दूसरों पर राज करने का उस पर जुनून सवार था। हालाँकि उसने “इस्राएल पर तीन वर्ष तक शासन किया” (NHT), मगर आखिर में वह बेवक्त मौत का शिकार हो गया। (न्यायि. 9:8-15, 22, 50-54) यह उदाहरण साफ दिखाता है कि “नम्र” बने रहना लाख गुना बेहतर है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 753 पै 1
एपोद, I
जब गिदोन ने एपोद बनाया, तो उसका इरादा गलत नहीं था। यहोवा ने इसराएलियों को जो जीत दिलायी थी, वह उसे याद रखना चाहता था और यहोवा की महिमा करना चाहता था, इसलिए उसने एपोद बनाया। मगर “वह एपोद, गिदोन और उसके घराने के लिए फंदा साबित हुआ,” क्योंकि इसराएली एपोद को पूजने लगे। (न्या 8:27) लेकिन बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि गिदोन ने भी उसकी पूजा की। बाइबल में उसे परमेश्वर का एक वफादार सेवक बताया गया है। जब प्रेषित पौलुस ने पुराने ज़माने के वफादार गवाहों की बात की, तो उसने गिदोन का भी ज़िक्र किया।—इब्र 11:32; 12:1.
20-26 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 10-12
“यिप्तह का यहोवा के साथ मज़बूत रिश्ता था”
विश्वास बनाए रहने से परमेश्वर की मंज़ूरी मिलती है
9 यिप्तह को शायद यूसुफ की मिसाल से मदद मिली होगी। उसने सीखा होगा कि कैसे यूसुफ ने अपने भाइयों पर दया की, जबकि वे उससे नफरत करते थे। (उत्प. 37:4; 45:4, 5) शायद यूसुफ के उदाहरण पर मनन करने से यिप्तह ऐसा व्यवहार कर पाया जिससे यहोवा खुश हुआ। यिप्तह के भाइयों ने उसके साथ जो किया उससे ज़रूर उसके दिल को चोट पहुँची होगी। पर उसके लिए अपनी भावनाओं से ज़्यादा यह मायने रखता था कि वह यहोवा के नाम और उसके लोगों की खातिर लड़े। (न्यायि. 11:9) उसने ठान लिया था कि वह यहोवा पर से अपना विश्वास उठने नहीं देगा। ऐसा रवैया होने की वजह से उसे और इसराएलियों को यहोवा से आशीषें मिलीं।—इब्रा. 11:32, 33.
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यिप्तह
अम्मोनियों के राजा ने इसराएलियों पर दोष लगाया कि उन्होंने उनका इलाका छीन लिया है। (न्या 11:12, 13) तब यिप्तह ने उसे जो संदेश भिजवाया, उससे पता चलता है कि वह बस एक वीर योद्धा नहीं था, बल्कि उसे इसराएलियों के इतिहास के बारे में भी काफी जानकारी थी। उसे मालूम था कि बीते समय में यहोवा ने अपने लोगों के लिए क्या-क्या किया था। अम्मोनियों ने इसराएलियों पर जो इलज़ाम लगाया था, उसे झूठा साबित करने के लिए यिप्तह ने तीन बातें कहीं: (1) मिस्र से आज़ाद होने पर इसराएलियों ने अम्मोन, मोआब और एदोम के लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था (न्या 11:14-18; व्य 2:9, 19, 37; 2इत 20:10, 11); (2) अम्मोनी जिस इलाके की बात कर रहे थे, वह उनका था ही नहीं। वह तो एमोरियों का था। यहोवा ने इसराएलियों को एमोरियों पर जीत दिलायी थी और उनके राजा और उसके पूरे इलाके को इसराएल के हाथ कर दिया था; (3) पिछले 300 सालों से इसराएली उस इलाके में बसे हुए हैं। इतने सालों में अम्मोनियों ने कभी उसे लेने की कोशिश नहीं की, तो अब वे किस अधिकार से उसे माँग रहे हैं?—न्या 11:19-27.
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यिप्तह
यिप्तह ने अम्मोनियों के राजा को बताया कि इसराएल देश का इलाका वह अम्मोनियों को क्यों नहीं दे सकते। उसने इसकी सबसे खास वजह बतायी। यह इलाका परमेश्वर यहोवा ने इसराएलियों को दिया था, क्योंकि वे उसकी उपासना करनेवाले लोग हैं। वे अम्मोनियों को इसका एक टुकड़ा भी नहीं दे सकते, क्योंकि वे झूठे देवता की उपासना करते हैं।—न्या 11:24; 1रा 11:1, 7, 8, 33; 2रा 23:13.
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यिप्तह
यिप्तह नाजायज़ औलाद नहीं था। ‘यिप्तह की माँ पहले एक वेश्या थी।’ लेकिन ऐसा नहीं था कि यिप्तह के पिता गिलाद ने किसी वेश्या के साथ संबंध रखे थे जिससे यिप्तह पैदा हुआ। अगर ऐसा होता, तो वह नाजायज़ औलाद कहलाता। यिप्तह की माँ शादी से पहले एक वेश्या थी और फिर उसने गिलाद से शादी की, ठीक जैसे राहाब सलमोन से शादी करने से पहले वेश्या थी। यिप्तह की माँ गिलाद की दूसरी पत्नी थी। (न्या 11:1; यह 2:1; मत 1:5) इसका मतलब, यिप्तह नाजायज़ औलाद नहीं था। इसका एक सबूत यह है कि यिप्तह के सौतेले भाइयों ने (गिलाद की पहली पत्नी के बेटों ने) उसे घर से भगा दिया ताकि उसे उनके पिता के घराने में कोई विरासत न मिले। अगर वह नाजायज़ औलाद होता, तो विरासत मिलने का सवाल ही नहीं उठता। (न्या 11:2) यिप्तह नाजायज़ नहीं था, यह हम इसलिए भी कह सकते हैं कि आगे चलकर वह गिलाद के लोगों का अगुवा बना। यिप्तह के भाई उनमें से नामी-गिरामी लोग थे। अगर यिप्तह नाजायज़ होता, तो वे उसे कभी-भी अगुवा नहीं बनने देते। (न्या 11:11) वह नाजायज़ औलाद नहीं था, इसकी तीसरी वजह यह है कि उसने पवित्र डेरे में परमेश्वर के लिए बलि चढ़ायी। (न्या 11:30, 31) अगर वह नाजायज़ होता, तो वह ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि मूसा के कानून के हिसाब से “ऐसा कोई भी आदमी जो नाजायज़ औलाद है, यहोवा की मंडली का हिस्सा नहीं बन सकता। दसवीं पीढ़ी तक उसके वंशजों में से कोई भी यहोवा की मंडली का हिस्सा नहीं बन सकता।”—व्य 23:2.
27 दिसंबर–2 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | न्यायियों 13-14
“मानोह और उसकी पत्नी, माता-पिताओं के लिए एक मिसाल हैं”
माता-पिताओ, अपने बच्चों को शिशुपन से तालीम दीजिए
ज़रा दानियों के कुल के मानोह पर गौर कीजिए, जो पुराने ज़माने के इसराएल में सोरा नाम के नगर में रहता था। मानोह की पत्नी का कोई बच्चा नहीं था, पर यहोवा के स्वर्गदूत ने मानोह की पत्नी को बताया कि वह एक पुत्र को जन्म देगी। (न्यायि. 13:2, 3) इसमें कोई शक नहीं कि यह खबर सुनकर वफादार मानोह और उसकी पत्नी खुशी से झूम उठे होंगे। लेकिन उन्हें कुछ चिंताएँ भी थीं। इसलिए मानोह ने प्रार्थना की: “हे प्रभु, बिनती सुन, परमेश्वर का वह जन जिसे तू ने भेजा था फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्न होनेवाला है उस से हम क्या-क्या करें।” (न्यायि. 13:8) मानोह और उसकी पत्नी को अपने होनेवाले बच्चे की परवरिश की चिंता थी। बेशक, उन्होंने अपने बेटे शिमशोन को, परमेश्वर का कानून सिखाया और उनकी मेहनत रंग लायी। बाइबल बताती है कि यहोवा की पवित्र शक्ति ने शिमशोन की मदद की, जिससे वह इसराएलियों के न्यायी के तौर पर बहुत-से शक्तिशाली काम कर पाया।—न्यायि. 13:25; 14:5, 6; 15:14, 15.
शिमशोन ने यहोवा की शक्ति से जीत पायी!
जैसे-जैसे शिमशोन बड़ा होता गया, “यहोवा की आशीष उसके साथ रही।” (न्यायियों 13:24) एक दिन शिमशोन ने अपने माता-पिता के पास आकर कहा: “तिमना में मैंने एक पलिश्ती लड़की देखी है। मैं चाहता हूँ कि तुम उससे मेरी शादी करवा दो।” (न्यायियों 14:2) सोचिए कि यह बात सुनकर उसके माता-पिता कितने चौंक गए होंगे! उनका बेटा उन ज़ालिमों के हाथों से इस्राएलियों को छुड़ाने के बजाय उनके साथ रिश्ता जोड़ना चाहता है। झूठे देवताओं को पूजनेवाली किसी औरत से शादी करना परमेश्वर के कानून के खिलाफ था। (निर्गमन 34:11-16) इसलिए उसके माता-पिता ने एतराज़ करते हुए कहा: “क्या तुझे हमारे रिश्तेदारों और हमारे लोगों में कोई लड़की नहीं मिली, जो तू खतनारहित पलिश्तियों की लड़की से शादी करना चाहता है?” लेकिन शिमशोन अपनी ज़िद पर अड़ा रहा: “मेरी शादी उसी से करवा दो, वही मेरे लिए सही रहेगी।”—न्यायियों 14:3.
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शिमशोन ने यहोवा की शक्ति से जीत पायी!
वह पलिश्ती स्त्री किस मायने में शिमशोन के लिए सबसे “अच्छी” थी? मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया के मुताबिक, ऐसी बात नहीं कि वह देखने में “खूबसूरत थी और उसका रंग-रूप बहुत लुभावना था, बल्कि वह एक खास मकसद को अंजाम देने के लिए” सबसे अच्छी थी। वह मकसद क्या था? न्यायियों 14:4 बताता है कि शिमशोन “पलिश्तियों के खिलाफ कदम उठाने का रास्ता तैयार कर रहा था” और इसी मकसद से उसने उस स्त्री को अपनी पत्नी बनाना चाहा। दरअसल जब शिमशोन बालिग हुआ, तब से ‘यहोवा की पवित्र शक्ति उस पर ज़बरदस्त तरीके से काम करने लगी’ यानी उसमें काम करने का जोश भरने लगी। (न्यायियों 13:25) तो फिर यह कहना सही होगा कि यहोवा की आत्मा के उकसाने पर ही शिमशोन ने उस पलिश्ती स्त्री से शादी करने की अनोखी गुज़ारिश की। और इसी आत्मा की प्रेरणा से उसने ज़िंदगी-भर इस्राएल में न्यायी होने की ज़िम्मेदारी सँभाली। क्या शिमशोन को वह मौका हाथ लगा जिसकी उसे तलाश थी? यह जानने से पहले आइए देखें कि यहोवा ने कैसे उसे यकीन दिलाया कि वह उसके साथ था।