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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2023
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  • 2-8 जनवरी
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मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2023
mwbr23 जनवरी पेज 1-10

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

© 2022 Christian Congregation of Jehovah’s Witnesses

2-8 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 राजा 22-23

“नम्र रहना क्यों ज़रूरी है?”

प्र00 9/15 पेज 29-30

नम्र योशिय्याह से​—यहोवा खुश था

हुक्म निकलते ही, कारीगर दूसरे दिन तड़के ही मंदिर की मरम्मत करने में जुट जाते हैं। योशिय्याह कितना खुश है कि अब यहोवा की आशीष की वज़ह से उसके मंदिर की मरम्मत की जा रही है, जिसकी तरफ उसके दुष्ट पुरखाओं ने बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया था। मगर अचानक शापान भागा-भागा आता है। वह कुछ बहुत ही ज़रूरी बात कहना चाहता है। और ये क्या, उसके हाथ में एक किताब भी है! शापान राजा योशिय्याह को बताता है कि महायाजक हिलकिय्याह को “यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक” मिली, जो “मूसा के द्वारा” दी गई थी और कितने ही सालों से गायब थी! (2 इतिहास 34:12-18) यह कानून-व्यवस्था की वही पुस्तक थी, जिसे खुद मूसा ने अपने हाथों से लिखा था! यकीनन, यह एक नायाब खोज थी!

अब योशिय्याह उस पुस्तक के हर शब्द को सुनने के लिए बेताब है। शापान पुस्तक पढ़ने लगता है। योशिय्याह ध्यान से सुनता है कि पुस्तक में उसके और उसकी प्रजा के लिए कौन-कौन से नियम दिए गए हैं। उसे खासकर यह बात बहुत पसंद आती है कि इस पुस्तक में यहोवा की सच्ची उपासना पर बहुत ज़ोर दिया गया है। वह इस भविष्यवाणी पर भी गौर करता है कि झूठी उपासना करनेवालों पर भारी विपत्तियाँ आएँगी और उन्हें गुलाम बना लिया जाएगा। जब उसे अहसास होता है कि परमेश्‍वर के ज़्यादातर नियमों पर अमल नहीं किया गया है, तो उसे इतना दुःख और पछतावा होता है कि वह अपने कपड़े फाड़ देता है। फिर वह हिलकिय्याह, शापान और दूसरों को यह हुक्म देता है: ‘इस पुस्तक की बातों के विषय यहोवा से पूछो, क्योंकि यहोवा की बड़ी जलजलाहट हम पर इस कारण भड़की है, कि हमारे पुरखाओं ने इस पुस्तक की बातें नहीं मानीं।’​—2 राजा 22:11-13; 2 इतिहास 34:19-21.

प्र00 9/15 पेज 30 पै 2

नम्र योशिय्याह से​—यहोवा खुश था

हिलकिय्याह, शापान और बाकी के लोग यहोवा की नबिया हुल्दा के पास जाते हैं। तब नबिया उन्हें यहोवा का वचन सुनाती है। वह कहती है कि इस पुस्तक में जिन विपत्तियों के बारे में बताया गया है, वे सारी-की-सारी यहूदा पर आ पड़ेंगी, क्योंकि उन्होंने यहोवा के खिलाफ बगावत की है। मगर योशिय्याह को विपत्ति के दिन देखने नहीं पड़ेंगे क्योंकि वह यहोवा का वचन सुनकर नम्र हुआ है। वह अपने पुरखाओं के संग मिल जाएगा, और शांति से अपनी कब्र को पहुँचाया जाएगा।​—2 राजा 22:14-20; 2 इतिहास 34:22-28.

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प्र01 4/15 पेज 26 पै 3-4

परवरिश चाहे जैसी रही हो, आप कामयाब हो सकते हैं

लेकिन योशिय्याह ने ऐसे बुरे माहौल में पलने और बढ़ने के बावजूद, वह काम किया जो यहोवा की नज़रों में सही था। वह इतना कामयाब राजा रहा कि उसके राज्य के बारे में बाइबल कहती है: “और उसके तुल्य न तो उस से पहिले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी व्यवस्था के अनुसार अपने पूर्ण मन और पूर्ण प्राण और पूर्ण शक्‍ति से यहोवा की ओर फिरा हो।”​—2 राजा 23:19-25.

तो जिनका बचपन अंधकारमय गुज़रा है, ऐसे लोगों को योशिय्याह की ज़िंदगी से कितना हौसला मिल सकता है! हम योशिय्याह के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? और योशिय्याह को किस बात ने मदद दी थी, जिससे वह सही मार्ग पर चलता रहा?

9-15 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 राजा 24-25

“हमेशा याद रखिए कि वक्‍त बहुत कम रह गया है”

प्र01 2/15 पेज 12 पै 2

यहोवा के न्याय करने का दिन निकट है!

2 इसमें कोई शक नहीं कि सपन्याह की भविष्यवाणी का जवान योशिय्याह पर ज़बरदस्त असर हुआ था, क्योंकि उसने यहूदा से झूठी उपासना को पूरी तरह मिटाने के लिए फौरन कदम उठाया था। ऐसा करने से झूठी उपासना तो मिट गयी, मगर लोगों में फैली बुराई पूरी तरह खत्म नहीं हुई, और न ही उन पापों का प्रायश्‍चित हुआ जो योशिय्याह के दादा मनश्‍शे ने किए थे। राजा मनश्‍शे ने तो पूरे “यरूशलेम को निर्दोषों के खून से भर दिया था।” (2 राजा 24:3, 4; 2 इतिहास 34:3) इसलिए यहूदा पर यहोवा के न्याय का दिन ज़रूर आना निश्‍चित था।

प्र07 4/1 पेज 11 पै 10

यिर्मयाह किताब की झलकियाँ

समय सा.यु.पू. 607 है। सिदकिय्याह की हुकूमत का 11वाँ साल चल रहा है। पिछले 18 महीनों से बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को घेर रखा है। नबूकदनेस्सर की हुकूमत के 19वें साल के पाँचवें महीने के सातवें दिन, जल्लादों का प्रधान नबूजरदान, यरूशलेम ‘आता है।’ (2 राजा 25:8) वह यरूशलेम की शहरपनाह के बाहर डेरा डालता है। और शायद वहीं से हालात का जायज़ा लेता है और शहर पर धावा बोलने की तरकीब निकालता है। तीन दिन बाद यानी पाँचवें महीने के दसवें दिन, वह यरूशलेम में ‘घुस आता है।’ और पूरे शहर को आग से फूँक देता है।​—यिर्मयाह 52:12, 13.

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प्र05 8/1 पेज 12 पै 1

दूसरा राजा किताब की झलकियाँ

24:3, 4. मनश्‍शे ने जो मासूमों का खून बहाया था, उसकी वजह से यहोवा ने यहूदा देश को “क्षमा करना न चाहा।” निर्दोष लोगों का खून परमेश्‍वर की नज़र में अनमोल है। इसलिए हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि निर्दोषों का खून बहाने में जिनका हाथ है, उन्हें यहोवा मिटा डालेगा और इस तरह उन निर्दोषों की तरफ से बदला लेगा।​—भजन 37:9-11; 145:20.

16-22 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 1-3

“बाइबल में कथा-कहानियाँ नहीं, सच्ची घटनाएँ लिखी हैं”

प्र09 9/1 पेज 14 पै 1, अँग्रेज़ी

आदम और हव्वा​—क्या वे सच में जीए थे?

अगर हम बाइबल में पहला इतिहास का अध्याय 1 से 9 और लूका का अध्याय 3 देखें, तो हम पाएँगे कि उनमें दो वंशावलियाँ दी गयी हैं। पहली वंशावली में 48 पीढ़ियों का ज़िक्र है और दूसरी में 75 पीढ़ियों का। लूका ने यीशु मसीह की वंशावली दर्ज़ की, जबकि पहला इतिहास की किताब में इसराएल राष्ट्र के शाही खानदान और याजकों के खानदान की वंशावली दर्ज़ है। इन दोनों वंशावलियों में कुछ जाने-माने लोगों के नाम लिखे हैं, जैसे सुलैमान, दाविद, याकूब, इसहाक, अब्राहम, नूह और आदम। ये सारे नाम असली  लोगों के हैं और इन असली  लोगों में आदम का नाम सबसे पहला है।

प्र08 7/1 पेज 17 पै 4

नूह और जलप्रलय का ब्यौरा सच है, कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं

बाइबल में दो जगहों पर दर्ज़ वंशावलियों से पता चलता है कि नूह सचमुच में जीया था। (1 इतिहास 1:4; लूका 3:36) इन वंशावलियों को एज्रा और लूका ने दर्ज़ किया, जो अचूक खोजकर्ता थे। लूका ने दिखाया कि नूह दरअसल यीशु मसीह का पूर्वज है।

प्र09 9/1 पेज 14-15, अँग्रेज़ी

आदम और हव्वा​—क्या वे सच में जीए थे?

उदाहरण के लिए, बाइबल की एक अहम शिक्षा पर ध्यान दीजिए, जो कई चर्चों में सिखायी जाती है। वह है, फिरौती की शिक्षा। इस शिक्षा के मुताबिक यीशु मसीह ने अपना परिपूर्ण जीवन फिरौती के तौर पर दे दिया ताकि लोगों को पाप से छुड़ाए। (मत्ती 20:28; यूहन्‍ना 3:16) शब्द “फिरौती” का मतलब क्या है? फिरौती वह कीमत होती है, जो किसी को छुड़ाने या कोई चीज़ वापस पाने के लिए दी जाती है। यह कीमत हमेशा उस व्यक्‍ति या चीज़ की कीमत के बराबर होती है। इसीलिए बाइबल में कहा गया है कि यीशु ने “फिरौती का बराबर दाम” चुकाने के लिए खुद को दे दिया। (1 तीमुथियुस 2:6) लेकिन हम शायद सोचें, ‘यीशु का जीवन किसके जीवन के बराबर था?’ बाइबल में इसका जवाब दिया गया है, “ठीक जैसे आदम की वजह से सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह की बदौलत सभी ज़िंदा किए जाएँगे।” (1 कुरिंथियों 15:22) जी हाँ, यीशु ने अपना जो परिपूर्ण जीवन बलिदान किया, वह उस परिपूर्ण जीवन के बराबर है जो आदम ने खो दिया था। (रोमियों 5:12) इससे पता चलता है कि अगर आदम सच में न जीया होता, तो यीशु मसीह का बलिदान कोई मायने नहीं रखता।

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इंसाइट-1 पेज 911 पै 3-4

वंशावली

औरतों के नाम: कुछ वंशावलियों में औरतों के नाम इसलिए दर्ज़ किए गए, क्योंकि इतिहास के हिसाब से देखा जाए तो ऐसा करना ज़रूरी था। उत्पत्ति 11:29, 30 में ज़ाहिर है कि सारै (सारा) का ज़िक्र इसलिए किया गया क्योंकि वादा किया गया वंश उसी से आना था, न कि अब्राहम की दूसरी पत्नी से। उन्हीं आयतों में मिलका का भी ज़िक्र है क्योंकि वह इसहाक की पत्नी रिबका की दादी थी। इससे साबित होता है कि रिबका अब्राहम की रिश्‍तेदार थी। यह जानकारी ज़रूरी थी क्योंकि इसहाक को दूसरे राष्ट्रों की किसी लड़की से शादी नहीं करनी थी। (उत 22:20-23; 24:2-4) उत्पत्ति 25:1 में अब्राहम की दूसरी पत्नी कतूरा का नाम दिया गया है। इससे दो बातें पता चलती हैं। पहली, सारा की मौत के बाद अब्राहम ने फिर से शादी की। दूसरी, जब यहोवा ने बच्चे पैदा करने की अब्राहम की शक्‍ति लौटायी थी, उसके 40 साल बाद भी उसकी यह शक्‍ति बनी रही। (रोम 4:19) बाइबल में दी जानकारी से यह भी पता चलता है कि मिद्यानी लोग और अरब की दूसरी जातियों के लोग कतूरा से निकले। यह दिखाता है कि यह सभी लोग इसराएलियों के रिश्‍तेदार थे।

बाइबल में लिआ, राहेल और याकूब की उप-पत्नियों के नाम भी पाए जाते हैं। (उत 35:21-26) इस जानकारी से हम यह समझ पाते हैं कि परमेश्‍वर याकूब के बेटों के साथ जिस तरह पेश आया, उसके पीछे क्या वजह थी। कुछ औरतों के नाम इसलिए भी लिखे गए थे ताकि यह पक्का किया जा सके कि उन्हें जो विरासत दी गयी थी, वह उनके परिवार में ही रहे। (गिन 26:33) तामार, राहाब और रूत का किस्सा एकदम अलग था। उनमें से हरेक बहुत ही अनोखे तरीके से मसीहा यीशु की पुरखिन बनी थी। (उत 38; रूत 1:3-5; 4:13-15; मत 1:1-5)

23-29 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 4-6

“मेरी प्रार्थनाओं से मेरे बारे में क्या पता चलता है?”

प्र11 4/1 पेज 23 पै 3-7

वह ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ है

याबेस प्रार्थना में लगा रहनेवाला इंसान था। अपनी प्रार्थना में सबसे पहले उसने परमेश्‍वर से आशीष माँगी। और फिर उसने तीन गुज़ारिश की, जिससे ज़ाहिर होता है कि उसे परमेश्‍वर पर अटूट विश्‍वास था।

पहली गुज़ारिश में याबेस ने परमेश्‍वर से कहा कि वह ‘उसका देश बढ़ाए।’ (आयत 10) याबेस एक इज़्ज़तदार आदमी था, न कि दूसरों की ज़मीन हड़पनेवाला या उनकी चीज़ों का लालच करनेवाला। देश बढ़ाने की उसकी गुज़ारिश का ताल्लुक ज़मीन से ज़्यादा लोगों से था। वह शायद परमेश्‍वर से कह रहा था कि उसके इलाके की सरहदें बढ़ती जाएँ ताकि उसकी रियासत में ज़्यादा-से-ज़्यादा परमेश्‍वर के सच्चे उपासक हों।

अपनी दूसरी गुज़ारिश में याबेस ने कहा कि परमेश्‍वर का “हाथ” उसके साथ रहे। लाक्षणिक अर्थ में, परमेश्‍वर का हाथ उसकी शक्‍ति है, जिसका इस्तेमाल कर वह अपने उपासकों की मदद करता है। (1 इतिहास 29:12) अपनी आरज़ू पूरी होने के लिए, याबेस यहोवा की तरफ ताक रहा था, जिसका हाथ इतना छोटा नहीं कि वह उस पर विश्‍वास करनेवाले की मदद न कर सके।​—यशायाह 59:1.

याबेस ने अपनी तीसरी गुज़ारिश में कहा, ‘तू मुझे बुराई से ऐसा बचा रख कि मैं उस से पीड़ित न होऊँ।’ ‘मैं उस से पीड़ित न होऊँ’ ये शब्द दिखाते हैं कि याबेस मुश्‍किलों से बचना नहीं चाहता था, बल्कि वह चाहता था कि वह उनमें निराश न हो जाए या उस पर किसी तरह का बुरा असर न हो।

याबेस की प्रार्थना से सच्ची उपासना के लिए उसकी चिंता और प्रार्थना के सुननेवाले पर उसका विश्‍वास और भरोसा ज़ाहिर होता है। यहोवा ने उसकी प्रार्थना का किस तरह जवाब दिया? यह छोटा-सा ब्यौरा इन शब्दों के साथ खत्म होता है, “जो कुछ उस ने मांगा, वह परमेश्‍वर ने उसे दिया।”

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प्र05 10/1 पेज 9 पै 7

पहला इतिहास किताब की झलकियाँ

5:10, 18-22. राजा शाऊल के दिनों में, यरदन के पूरब में रहनेवाले गोत्रों ने हग्रियों को हराया जो गिनती में उनसे दुगने से भी ज़्यादा थे। उन्हें जीत इसलिए मिली क्योंकि उनके शूरवीरों ने यहोवा पर भरोसा रखा और उसकी मदद माँगी। आइए हम भी अपने ताकतवर दुश्‍मनों से आध्यात्मिक लड़ाई लड़ते वक्‍त, यहोवा पर पूरा भरोसा रखें।​—इफिसियों 6:10-17.

30 जनवरी–5 फरवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 7-9

“यहोवा की मदद से आप मुश्‍किल-से-मुश्‍किल काम भी कर सकते हैं”

प्र05 10/1 पेज 9 पै 8

पहला इतिहास किताब की झलकियाँ

9:26, 27. लेवी द्वारपालों को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी दी गयी थी। उनको परमेश्‍वर के मंदिर के पवित्र इलाकों के दरवाज़ों की चाबी दी गयी थी। वे हर दिन दरवाज़े खोलने की अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाते थे। वे भरोसेमंद थे। हमें भी अपने इलाके के लोगों तक खुशखबरी ले जाने और उन्हें यहोवा की उपासना करने में मदद देने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। क्या हमें भी उन लेवी द्वारपालों की तरह भरोसे के लायक नहीं होना चाहिए?

प्र11 9/15 पेज 32 पै 8

क्या आप पीनहास की तरह चुनौतियों का सामना कर सकते हैं?

उन दिनों इसराएल में पीनहास के कंधों पर भारी ज़िम्मेदारी थी पर हिम्मत, समझ और परमेश्‍वर पर भरोसा दिखाकर वह उन चुनौतियों का सामना कर सका। और जिस लगन से पीनहास ने परमेश्‍वर की मंडली की सेवा की, उससे परमेश्‍वर बहुत खुश हुआ। करीब 1,000 साल बाद, एज्रा ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा, “अगले समय में एलीआज़र का पुत्र पीनहास जिसके संग यहोवा रहता था वह उनका प्रधान था।” (1 इति. 9:20) ऐसा हो कि आज यहोवा उनके संग भी रहे, जो उसके लोगों की अगुवाई कर रहे हैं, दरअसल उन सभी मसीहियों के संग जो वफादारी से उसकी सेवा कर रहे हैं।

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प्र10 12/15 पेज 21 पै 6

यहोवा के लिए गीत गाओ!

6 जी हाँ, अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए यहोवा ने ही कहा था कि उसकी महिमा में गीत गाए जाएँ। इन लेवी गवैयों को तो उन ज़िम्मेदारियों से भी छूट दे दी गयी थी, जो आम तौर पर लेवियों को निभानी होती थीं। और ऐसा इसलिए ताकि वे गीतों को सुरों में पिरोने और इनका अभ्यास करने में अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्‍त दे सकें।​—1 इति. 9:33.

6-12 फरवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 10-12

“परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने की इच्छा बढ़ाइए”

प्र12 11/15 पेज 6 पै 12-13

‘मुझ को यह सिखा कि मैं तेरी इच्छा कैसे पूरी करूं’

12 यहोवा के दिए कानून के पीछे क्या सिद्धांत हैं, यह समझने और उनके मुताबिक जीने के मामले में भी दाविद ने हमारे लिए बेहतरीन मिसाल कायम की। ज़रा उस घटना पर ध्यान दीजिए, जब दाविद ने “बेतलेहेम के . . . कुएं का पानी” पीने की इच्छा ज़ाहिर की। दाविद के तीन आदमी अपनी जान पर खेलकर उस शहर में गए जो उस समय पलिश्‍तियों के कब्ज़े में था और वहाँ से पानी भर लाए। मगर ‘दाविद ने उसे पीने से इनकार कर दिया और उसे यहोवा के साम्हने अर्घ करके उण्डेल दिया।’ आखिर क्यों? दाविद समझाता है, “मेरा परमेश्‍वर मुझ से ऐसा करना दूर रखे; क्या मैं इन मनुष्यों का लोहू पीऊं जिन्हों ने अपने प्राणों पर खेला है? ये तो अपने प्राण पर खेलकर उसे ले आए हैं।”​—1 इति. 11:15-19.

13 दाविद मूसा के कानून से जानता था कि खून को खाया नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे यहोवा के सामने उँडेल दिया जाना चाहिए। वह यह भी समझता था कि ऐसा क्यों किया जाना चाहिए। वह जानता था कि “शरीर का प्राण लोहू में रहता है।” मगर यह खून कहाँ था, यह तो पानी था। उसने पानी पीने से क्यों मना कर दिया? दरअसल दाविद खून के बारे में दिए नियम के पीछे छिपा सिद्धांत समझता था। उसकी नज़र में वह पानी उतना ही कीमती था, जितना इन तीन आदमियों का खून। इसलिए वह यह पानी पीने की सोच भी नहीं सकता था। उसे पीने के बजाय, उसने फैसला किया कि वह उसे ज़मीन पर उँडेल देगा।​—लैव्य. 17:11; व्यव. 12:23, 24.

प्र18.06 पेज 17 पै 5-6

परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों से ज़मीर का प्रशिक्षण कीजिए

5 अगर हम परमेश्‍वर के नियमों से फायदा पाना चाहते हैं, तो उन नियमों के बारे में सिर्फ पढ़ना या उन्हें जानना काफी नहीं होगा। हमें उनसे लगाव होना चाहिए और उन्हें मानना चाहिए। बाइबल में लिखा है, “बुराई से नफरत करो और भलाई से प्यार करो।” (आमो. 5:15) पर यह हम कैसे कर सकते हैं? हर मामले को हमें यहोवा की नज़र से देखना होगा। मान लीजिए कि आपको ठीक से नींद नहीं आती। डॉक्टर आपको सलाह देता है कि आप पौष्टिक खाना खाएँ, अच्छी तरह व्यायाम करें और अपने जीने के तरीके में कुछ बदलाव करें। आप उसकी सलाह मानते हैं और आपको नींद आने लगती है। तो क्या इसके बाद से आप डॉक्टर की हर सलाह नहीं मानेंगे?

6 उसी तरह हमारे सृष्टिकर्ता ने हमें नियम दिए हैं, ताकि हम पाप के बुरे अंजामों से बच सकें और अपनी ज़िंदगी सँवार सकें। बाइबल में साफ बताया गया है कि हमें किन कामों को नहीं करना चाहिए, जैसे झूठ बोलना, धोखाधड़ी, चोरी, अनैतिक काम, हिंसा और जादू-टोना। (नीतिवचन 6:16-19 पढ़िए; प्रका. 21:8) जो फायदे हमें यहोवा की आज्ञाएँ मानने से होते हैं, उनकी वजह से यहोवा और उसके नियमों के लिए हमारा लगाव बढ़ने लगता है।

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इंसाइट-1 पेज 1058 पै 5-6

दिल, मन

“पूरे दिल” से सेवा करना: जब एक व्यक्‍ति दो मालिकों की सेवा करने की कोशिश करता है या सोचता कुछ है, करता कुछ और है और इस तरह दूसरों को धोखा देता है, तो बाइबल में उसे ‘दोहरे मनवाला’ या ‘दोरंगे मन से बोलनेवाला’ कहा गया है। (1इत 12:33, फु.; भज 12:2) यीशु ने ऐसे दोहरे मनवाले कपटी लोगों की कड़ी निंदा की।​—मत 15:7, 8.

अगर हम परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं तो हमें दोहरे मनवाला नहीं होना चाहिए, न ही आधे-अधूरे मन से सेवा करनी चाहिए। इसके बजाय हमें पूरे  दिल से सेवा करनी चाहिए। (1इत 28:9) इसमें बहुत मेहनत लगती है क्योंकि हमारा दिल “उतावला” है और इसका “झुकाव बुराई की तरफ होता है।” (यिर्म 17:9, 10; उत 8:21) पूरे दिल से सेवा करने के लिए हमें क्या करना होगा? हमें दिल से प्रार्थना करनी होगी (भज 119:145; विल 3:41), नियमित तौर पर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना होगा (एज 7:10; नीत 15:28), जोश से खुशखबरी सुनानी होगी (यिर्म 20:9 से तुलना करें) और उन लोगों से संगति करनी होगी जो पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं।​—2रा 10:15, 16 से तुलना करें।

13-19 फरवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 13-16

“हिदायतें मानने से कामयाबी मिलती है”

प्र03 5/1 पेज 10-11 पै 12

क्या आप पूछते हैं, “यहोवा कहां है?”

12 जब वाचा का संदूक इस्राएल में वापस लाया गया, उसके बाद कई साल तक वह किर्यत्यारीम में रहा। तब राजा दाऊद ने संदूक को वहाँ से यरूशलेम ले जाना चाहा। उसने इस बारे में इस्राएलियों के प्रधानों से सलाह-मशविरा किया और कहा कि ‘यदि यह उन्हें अच्छा लगे और यहोवा की इच्छा हो,’ तो वह वाचा के संदूक को यरूशलेम ले जाएगा। मगर इस मामले में यहोवा की मरज़ी क्या है, यह जानने के लिए दाऊद ने सही तरह खोज नहीं की। अगर उसने ऐसा किया होता, तो वाचा के संदूक को कभी गाड़ी पर नहीं चढ़ाया जाता। इसके बजाय, लेवी वंश के कहाती उसे अपने कंधों पर उठाकर ले जाते, ठीक जिसकी परमेश्‍वर ने साफ-साफ हिदायत दी थी। यह सच है कि दाऊद हमेशा यहोवा की खोज करता था, मगर इस बार वह ठीक तरीके से यहोवा की खोज करने से चूक गया। इसका नतीजा भयंकर निकला। दाऊद ने बाद में अपनी भूल कबूल करते हुए कहा: “हमारा परमेश्‍वर यहोवा हम पर टूट पड़ा, क्योंकि हम उसकी खोज में नियम के अनुसार न लगे थे।”—1 इतिहास 13:1-3; 15:11-13; गिनती 4:4-6, 15; 7:1-9.

प्र03 5/1 पेज 11 पै 13

क्या आप पूछते हैं, “यहोवा कहां है?”

13 आखिर में, जब ओबेदेदोम के घराने के लेवी संदूक को यरूशलेम ले गए, तब दाऊद का लिखा एक गीत गाया गया। उस गीत के बोल में यह गंभीर चितौनी भी शामिल थी: “यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो। उसके किए हुए आश्‍चर्यकर्म, उसके चमत्कार और न्यायवचन स्मरण करो।”​—1 इतिहास 16:11, 12.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र14 1/15 पेज 10-11 पै 14

युग-युग के राजा यहोवा की उपासना कीजिए

14 दाविद करार का संदूक यरूशलेम ले आया। इस खुशी के मौके पर लेवियों ने यहोवा की महिमा में एक गीत गाया, जिसमें ध्यान देनेवाली एक ज़रूरी बात थी, जो 1 इतिहास 16:31 में दर्ज़ है: “राष्ट्रों में ऐलान करो: ‘यहोवा राजा बना है!’” (एन.डब्ल्यू.) लेकिन कोई सोच सकता है, ‘यहोवा तो पहले से ही युग-युग का राजा है, तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि वह उस वक्‍त राजा बना?’ यहोवा तब राजा बनता है जब वह किसी ठहराए समय पर या किसी हालात से निपटने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है या किसी को अपना प्रतिनिधि नियुक्‍त करता है। यहोवा कैसे राजा बनता है यह समझना बहुत ज़रूरी है। दाविद की मौत से पहले, यहोवा ने उससे वादा किया कि उसका राज हमेशा तक कायम रहेगा: “मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूंगा।” (2 शमू. 7:12, 13) यह वादा तब पूरा हुआ जब 1,000 से ज़्यादा साल बाद दाविद का “वंश” आया। वह कौन था और वह कब राजा बना?

20-26 फरवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 17-19

“उम्मीदें पूरी न होने पर भी खुश रहिए”

प्र06 8/1 पेज 12 पै 1

यहोवा के संगठन की अच्छी बातों के लिए कदर दिखाइए

प्राचीन इस्राएल का दाऊद, उन जाने-माने लोगों में से एक था जिनके बारे में इब्रानी शास्त्र में चर्चा की गयी है। वह एक चरवाहा, संगीतकार, भविष्यवक्‍ता और राजा था। उसे अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरा भरोसा था। दाऊद को यहोवा से गहरा लगाव था, इसलिए उसके दिल में यहोवा के लिए एक भवन बनाने की तमन्‍ना जागी। यह भवन या मंदिर पूरे इस्राएल में सच्ची उपासना की खास जगह होती। दाऊद जानता था कि मंदिर में उपासना के इंतज़ाम से परमेश्‍वर के लोगों को खुशियाँ और आशीषें मिलतीं। इसलिए दाऊद ने अपने गीत में गाया: “क्या ही धन्य है वह; जिसको तू [यहोवा] चुनकर अपने समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनों में बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात्‌ तेरे पवित्र मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थों से तृप्त होंगे।”​—भजन 65:4.

प्र21.08 पेज 22-23 पै 11

आप जो कर पा रहे हैं, उसमें खुशी पाइए

11 दूसरे दास की तरह, हमें जो भी काम दिया जाता है, उसे जी-जान से करना चाहिए। हमें प्रचार काम “ज़ोर-शोर से” करना चाहिए और मंडली का हर काम दिल से करना चाहिए। (प्रेषि. 18:5; इब्रा. 10:24, 25) हमें सभाओं में जवाब देने और विद्यार्थी भाग देने के लिए अच्छी तैयारी करनी चाहिए। अगर हमें मंडली में कोई काम दिया जाता है, तो हमें उसे वक्‍त पर और अच्छी तरह करना चाहिए। हमें किसी भी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए। (नीति. 22:29) जब हम यहोवा की सेवा में कड़ी मेहनत करेंगे, तो यहोवा के साथ हमारी दोस्ती गहरी होगी और हमें और भी खुशी मिलेगी। (गला. 6:4) इसके अलावा, जब किसी और को वही ज़िम्मेदारी मिलती है जो हम चाहते हैं, तो हम उसके साथ खुशी मना पाएँगे।​—रोमि. 12:15; गला. 5:26.

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हम अपने पिता यहोवा से बहुत प्यार करते हैं

क्या यहोवा मुझ पर ध्यान देता है?

क्या आपको कभी-कभी ऐसा लगता है, ‘दुनिया में तो अरबों लोग हैं। इतने सारे लोगों में क्या यहोवा कभी मेरी तरफ ध्यान देता होगा?’ अगर आप ऐसा सोचते हैं, तो यकीन मानिए बहुत-से लोग ऐसा ही महसूस करते हैं। राजा दाविद ने भी लिखा था, “हे यहोवा, इंसान क्या है कि तू उस पर गौर करे? नश्‍वर इंसान क्या है कि तू उस पर ध्यान दे?” (भज. 144:3) मगर दाविद को यकीन था कि यहोवा उसे अच्छी तरह जानता है। (1 इति. 17:16-18) यहोवा अपने वचन और संगठन के ज़रिए आपको भी यकीन दिलाता है कि वह आप पर ध्यान देता है। आप यहोवा के लिए जो प्यार दिखाते हैं, उस पर वह गौर करता है। बाइबल में लिखी कुछ बातें आपको इस बात का भरोसा दिला सकती हैं। जैसे:

• आपके पैदा होने से पहले ही यहोवा ने आप पर ध्यान दिया था।​—भज. 139:16.

• यहोवा जानता है कि आप मन में क्या सोचते हैं और कैसा महसूस करते हैं।​—1 इति. 28:9.

• आपकी हर प्रार्थना को यहोवा खुद सुनता है।​—भज. 65:2.

• आप सही काम करते हैं, तो वह खुश होता है और गलत करते हैं तो उसे दुख होता है।​—नीति. 27:11.

• यहोवा ने खुद आपको अपनी तरफ खींचा है।​—यूह. 6:44.

• यहोवा आपको बहुत अच्छी तरह जानता है, इसलिए अगर आपकी मौत हो जाए, तो वह आपको ज़िंदा कर सकता है। वह आपको फिर से वैसा ही शरीर और दिमाग देगा जैसा आपका अभी है। इसलिए आपकी वही यादें और वही स्वभाव होगा जो अभी आपका है।​—यूह. 11:21-26, 39-44; प्रेषि. 24:15.

27 फरवरी–5 मार्च

पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 20-22

“अच्छी तरह सेवा करने में नौजवानों की मदद कीजिए”

प्र17.01 पेज 29 पै 8

“वे बातें विश्‍वासयोग्य आदमियों को सौंप दे”

8 पहला इतिहास 22:5 पढ़िए। दाविद को शायद लगा हो कि सुलैमान इतने बड़े काम की देखरेख करने के लिए अभी तैयार नहीं है। मंदिर को “आलीशान और सुंदर” होना था और सुलैमान ‘अभी लड़का ही था और उसे कोई तजुरबा नहीं था।’ लेकिन दाविद जानता था कि यहोवा इस खास काम को करने में सुलैमान की मदद करेगा। इसलिए दाविद ने मंदिर के लिए ढेर सारा सामान इकट्ठा करने में सुलैमान की मदद की।

प्र17.01 पेज 29 पै 7

“वे बातें विश्‍वासयोग्य आदमियों को सौंप दे”

7 दाविद दिल से यहोवा के लिए एक मंदिर बनाना चाहता था इसलिए यह सुनकर वह शायद बहुत निराश हुआ होगा कि वह मंदिर नहीं बना पाएगा। लेकिन उसने इस काम में अपने बेटे सुलैमान का पूरा साथ दिया। उसने कारीगरों का इंतज़ाम किया और लकड़ी, लोहा, ताँबा, चाँदी और सोना इकट्ठा किया। उसे यह चिंता नहीं थी कि मंदिर बनाने का श्रेय किसे मिलेगा। और देखा जाए तो आगे चलकर यह मंदिर सुलैमान का मंदिर कहलाया न कि दाविद का। दाविद ने सुलैमान की हिम्मत भी बढ़ायी। उसने कहा, “बेटे, मैं दुआ करता हूँ कि यहोवा तेरे साथ रहे और तू अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए एक भवन बनाने में कामयाब हो, ठीक जैसे उसने तेरे बारे में कहा है।”​—1 इति. 22:11, 14-16.

प्र18.03 पेज 11-12 पै 14-15

माता-पिताओ, क्या आप बपतिस्मा लेने में अपने बच्चे की मदद कर रहे हैं?

14 प्राचीन भी माता-पिताओं की मदद कर सकते हैं। कैसे? जब वे यहोवा की सेवा से जुड़े लक्ष्यों के बारे में बात करते हैं, तो उन्हें हौसला बढ़ानेवाली बातें कहनी चाहिए। एक बहन बताती है कि जब वह छ: साल की थी तो भाई रसल ने उससे बात की थी। उसने कहा, “उन्होंने 15 मिनट तक मेरे लक्ष्यों के बारे में मुझसे बात की।” नतीजा? यह बहन आगे चलकर पायनियर बनी और उसने 70 से भी ज़्यादा साल तक पायनियर सेवा की। इससे साफ पता चलता है कि हौसला बढ़ानेवाली बातों का एक इंसान पर गहरा असर होता है। (नीति. 25:11) प्राचीन एक और तरीके से मदद कर सकते हैं। वे माता-पिताओं और उनके बच्चों को राज-घर के निर्माण या मरम्मत के काम में हाथ बँटाने के लिए बुला सकते हैं। वे बच्चों की उम्र और काबिलीयत को ध्यान में रखते हुए उन्हें कुछ काम दे सकते हैं।

15 दूसरे भाई-बहन भी बच्चों की मदद कर सकते हैं। कैसे? वे बच्चों को नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे बल्कि उनकी अच्छी बातों पर ध्यान देंगे। वे ऐसी बातों पर गौर करेंगे जिनसे पता चलता है कि एक बच्चा यहोवा के करीब जा रहा है। जैसे, क्या उसने सभा में कोई अच्छा जवाब दिया है या विद्यार्थी भाग पेश किया है? क्या उसने स्कूल में किसी को प्रचार किया है या गलत काम के लिए लुभाए जाने पर सही काम किया है? अगर हाँ, तो उसे तुरंत शाबाशी दीजिए। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम सभा से पहले और बाद में मंडली के बच्चों से बात करें। जब हम ऐसा करेंगे तो बच्चे महसूस कर पाएँगे कि वे यहोवा की “बड़ी मंडली” का हिस्सा हैं।​—भज. 35:18.

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प्र05 10/1 पेज 11 पै 5

पहला इतिहास किताब की झलकियाँ

21:13-15. यहोवा स्वर्गदूत को हुक्म देता है कि वह लोगों को नाश करना बंद करे, क्योंकि वह अपने लोगों को तड़पता देखकर खुद दर्द महसूस करता है। वाकई, “उसकी दया बहुत बड़ी है।”

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