वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • mwbr25 जुलाई पेज 1-12
  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • “मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका” के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
  • उपशीर्षक
  • 7-13 जुलाई
  • 14-20 जुलाई
  • 21-27 जुलाई
  • 28 जुलाई–3 अगस्त
  • 4-10 अगस्त
  • 11-17 अगस्त
  • 18-24 अगस्त
  • 25-31 अगस्त
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2025
mwbr25 जुलाई पेज 1-12

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

© 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania

7-13 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 21

खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी के लिए बढ़िया सलाह

प्र03 10/15 पेज 4 पै 5

आप बुद्धिमानी भरे फैसले कैसे कर सकते हैं?

जल्दबाज़ी में किए गए फैसले मूर्खता-भरे साबित हो सकते हैं। नीतिवचन 21:5 चेतावनी देता है: “कामकाजी की कल्पनाओं से केवल लाभ होता है, परन्तु उतावली करनेवाले को केवल घटती होती है।” मसलन, जब लड़के-लड़की कच्ची उम्र में एक-दूसरे के प्यार में अंधे हो जाते हैं, तब उन्हें जल्दबाज़ी में शादी नहीं करनी चाहिए। वरना उन्हें उस कड़वे सच का सामना करना पड़ सकता है जिसके बारे में 18वीं सदी के अँग्रेज़ी नाटककार विलियम कोनग्रेव ने कहा: “जो इंसान जल्दबाज़ी में शादी करता है, वह शायद ज़िंदगी भर पछताए।”

सज 7/08 पेज 7 पै 2, अँग्रेज़ी

शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल कैसे बनाएँ?

नम्र रहिए: “झगड़ालू रवैए या अहंकार की वजह से कुछ न करो, मगर नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो।” (फिलिप्पियों 2:3) अकसर पति-पत्नी के बीच झगड़े अहं की वजह से होते हैं। जब कोई समस्या उठती है तो उसे सुलझाने के बजाय वे इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते हैं। लेकिन अगर वे नम्र रहेंगे, तो वे खुद को सही साबित करने की कोशिश नहीं करेंगे।

प्र06 10/1 पेज 15 पै 13

‘अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रहिए’

13 अगर पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ ठीक तरह से बर्ताव नहीं करते और इस वजह से उनके रिश्‍ते में दरार पैदा हो गयी है, तब क्या? इस समस्या का हल ढूँढ़ निकालने के लिए मेहनत की ज़रूरत है। हो सकता है, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में एक-दूसरे को शब्दों के नश्‍तर चुभाना उनके लिए रोज़ की बात बन गयी है। (नीतिवचन 12:18) जैसे कि हमने पिछले लेख में देखा, ऐसी बातों का भयानक अंजाम हो सकता है। बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “झगड़ालू और चिढ़नेवाली पत्नी के संग रहने से जंगल में रहना उत्तम है।” (नीतिवचन 21:19) अगर आप एक पत्नी हैं और आपके परिवार का माहौल भी कुछ ऐसा ही है, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मेरे स्वभाव की वजह से मेरे पति का जीना दूभर हो गया है?’ बाइबल पतियों से कहती है: “अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।” (कुलुस्सियों 3:19) अगर आप एक पति हैं, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अपनी पत्नी को प्यार और हमदर्दी जताने से चूक जाता हूँ, जिस वजह से वह कहीं और प्यार का आसरा ढूँढ़ने के लिए मजबूर हो जाती है?’ यह बात सच है कि लैंगिक अनैतिकता को किसी भी हाल में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। मगर यह भी सच है कि पति-पत्नी के रिश्‍ते पर ऐसा कहर टूट सकता है। ऐसी नौबत न आए इसके लिए पति-पत्नी को खुलकर आपसी समस्याओं के बारे में बातचीत करनी चाहिए।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र05 1/15 पेज 17 पै 9

परमेश्‍वर के राज्य का दर्शन हकीकत बना

9 किसी ज़माने में, मामूली इंसान के तौर पर गधे पर सवार होकर आनेवाला यीशु अब एक शक्‍तिशाली राजा है। एक दर्शन में उसे घोड़े पर दिखाया गया है। बाइबल के मुताबिक घोड़ा, युद्ध की निशानी है। (नीतिवचन 21:31) प्रकाशितवाक्य 6:2 कहता है: “देखो, एक श्‍वेत घोड़ा है, और उसका सवार धनुष लिए हुए है: और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकला कि और भी जय प्राप्त करे।” इतना ही नहीं, यीशु के बारे में भजनहार दाऊद ने लिखा: “तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिय्योन से बढ़ाएगा। तू अपने शत्रुओं के बीच में शासन कर।”​—भजन 110:2.

14-20 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 22

बच्चों की परवरिश करने के लिए बढ़िया सलाह

प्र20.10 पेज 27-28 पै 7

क्या आपके बच्चे बड़े होकर परमेश्‍वर की सेवा करेंगे?

7 अगर आप शादीशुदा हैं और बच्चे चाहते हैं, तो खुद से पूछिए, ‘क्या हम दोनों नम्र हैं और यहोवा जैसी सोच रखते हैं? क्या यहोवा हम पर भरोसा कर सकता है कि जब हमारा बच्चा होगा, तो हम सही तरीके से उसकी परवरिश करेंगे?’ (भज. 127:3, 4) अगर आपके बच्चे हैं, तो खुद से पूछिए, ‘क्या मैं अपने बच्चों के मन में यह बात बिठा रहा हूँ कि उन्हें मेहनत का काम भी करना चाहिए?’ (सभो. 3:12, 13) ‘क्या मैं उन्हें शैतान की दुनिया से बचाता हूँ? दुनिया में बच्चों के साथ जो घिनौने काम किए जाते हैं और उन पर बुरी बातों का जो असर होता है, क्या मैं उन सबसे बच्चों की रक्षा करता हूँ?’ (नीति. 22:3) अपने बच्चों को इस तरह के खतरों से बचाने के लिए आप बहुत कुछ कर सकते हैं। पर यह भी याद रखिए कि ज़िंदगी में आनेवाली हर मुश्‍किल से आप उन्हें नहीं बचा सकते। आप उन्हें यह ज़रूर सिखा सकते हैं कि वे कैसे बाइबल से सलाह पाकर मुश्‍किलों का सामना कर सकते हैं। (नीतिवचन 2:1-6 पढ़िए।) एक मुश्‍किल तब आ सकती है जब आपके परिवार में कोई सच्चाई छोड़ देता है। ऐसे में बच्चे को परमेश्‍वर के वचन से सिखाइए कि इस तरह के हालात में यहोवा के वफादार रहना क्यों ज़रूरी है। (भज. 31:23) या अगर परिवार में किसी की मौत हो जाए, तो यह दुख झेलना बच्चे के लिए मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे में बच्चे को बाइबल की कुछ ऐसी आयतें दिखाइए जिससे वह अपना दर्द सह पाए।​—2 कुरिं. 1:3, 4; 2 तीमु. 3:16.

प्र19.12 पेज 26 पै 17-19

माता-पिताओ​—बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाइए

17 छुटपन से ही बच्चों को सिखाइए। आप अपने बच्चे को जितनी कम उम्र से सिखाना शुरू करेंगे, उतना अच्छा होगा। (नीति. 22:6) तीमुथियुस के बारे में सोचिए जो बड़े होने के बाद प्रेषित पौलुस के साथ मंडलियों का दौरा करने गया। वह कैसे इस काबिल बन सका? तीमुथियुस की माँ यूनीके और उसकी नानी लोइस ने उसे तब से सिखाना शुरू किया था, जब वह “एक शिशु था।”​—2 तीमु. 1:5; 3:15.

18 कोटे डी आइवरी में रहनेवाले शॉन-क्लॉड और पीस नाम के एक पति-पत्नी ने इस मामले में अच्छी मिसाल रखी। उन्होंने यहोवा से प्यार करने और उसकी सेवा करने में अपने छ: बच्चों की मदद की। आखिर वे ऐसा कैसे कर पाएँ? उन्हें यूनीके और लोइस की मिसाल से काफी मदद मिली। वे बताते हैं, “हमने अपने बच्चों को छुटपन से ही परमेश्‍वर के वचन के बारे में सिखाना शुरू कर दिया था, यानी उनके पैदा होने के तुरंत बाद।”​—व्यव. 6:6, 7.

19 परमेश्‍वर का वचन बच्चों के ‘मन में बिठाने’ का क्या मतलब है? इसका मतलब है, “कोई बात सिखाना और बार-बार उसे दोहराकर बच्चों के मन पर मानो छाप देना।” ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि माता-पिता नियमित तौर पर समय निकालकर अपने बच्चों को सिखाएँ। हो सकता है, कभी-कभी माँ-बाप बच्चों को एक ही बात बताते-बताते परेशान हो जाएँ। फिर भी अगर वे कोशिश करते रहें, तो वे परमेश्‍वर का वचन समझने और उसके मुताबिक चलने में अपने बच्चों की मदद कर रहे होंगे।

प्र06 4/1 पेज 9-10 पै 4

माता-पिताओ​—अपने बच्चों के लिए एक बढ़िया आदर्श बनिए

आम तौर पर बच्चे नादान होते हैं, मगर कुछ ज़िद्दी बन सकते हैं और कुछ में तो गलत रास्ते पर जाने का रुझान भी हो सकता है। (उत्पत्ति 8:21) ऐसे में माता-पिता क्या कर सकते हैं? बाइबल कहती है: “लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है, परन्तु छड़ी की ताड़ना के द्वारा वह उस से दूर की जाती है।” (नीतिवचन 22:15) कुछ लोगों का मानना है कि बच्चों को छड़ी से मारना बेरहमी है और अनुशासन देने का एक दकियानूसी तरीका है। दरअसल बाइबल भी मारने-कूटने और गाली-गलौज करने की निंदा करती है। हालाँकि बाइबल में कभी-कभी “छड़ी” का मतलब पिटाई करना है, मगर कई बार माता-पिता के अधिकार को दर्शाने के लिए “छड़ी” शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। जब माता-पिता इस अधिकार का सही इस्तेमाल करते हैं, यानी अपने बच्चों को प्यार से अनुशासन देते हैं और सख्ती भी बरतते हैं तो इससे बच्चों को हमेशा के फायदे मिलते हैं।​—इब्रानियों 12:7-11.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र21.08 पेज 22-23 पै 11

आप जो कर पा रहे हैं, उसमें खुशी पाइए

11 दूसरे दास की तरह, हमें जो भी काम दिया जाता है, उसे जी-जान से करना चाहिए। हमें प्रचार काम “ज़ोर-शोर से” करना चाहिए और मंडली का हर काम दिल से करना चाहिए। (प्रेषि. 18:5; इब्रा. 10:24, 25) हमें सभाओं में जवाब देने और विद्यार्थी भाग देने के लिए अच्छी तैयारी करनी चाहिए। अगर हमें मंडली में कोई काम दिया जाता है, तो हमें उसे वक्‍त पर और अच्छी तरह करना चाहिए। हमें किसी भी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए। (नीति. 22:29) जब हम यहोवा की सेवा में कड़ी मेहनत करेंगे, तो यहोवा के साथ हमारी दोस्ती गहरी होगी और हमें और भी खुशी मिलेगी। (गला. 6:4) इसके अलावा, जब किसी और को वही ज़िम्मेदारी मिलती है जो हम चाहते हैं, तो हम उसके साथ खुशी मना पाएँगे।​—रोमि. 12:15; गला. 5:26.

21-27 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 23

शराब पीने के बारे में सलाह

प्र04 12/1 पेज 19-20 पै 5-6

शराब के बारे में सही नज़रिया बनाए रखिए

5 मगर कुछ लोगों में कई जाम लेने के बाद भी पियक्कड़पन की निशानियाँ नज़र नहीं आतीं। तो एक इंसान अगर शराब पीए लेकिन यह ध्यान रखे कि वह इतनी न पीए जिससे देखनेवाले को पता चल जाए, तो क्या यह सही होगा? वह इंसान शायद सोचे कि इसमें कोई नुकसान नहीं, लेकिन दरअसल वह खुद को धोखा दे रहा है। (यिर्मयाह 17:9) धीरे-धीरे एक वक्‍त आएगा, जब वह शराब के बगैर नहीं रह पाएगा और “बहुत ज़्यादा शराब का गुलाम” हो जाएगा। (तीतुस 2:3, NW) एक इंसान, शराबी कैसे बनता है, इसके बारे में लेखिका कैरलाइन नैप कहती है: “यह लत समय के चलते और आहिस्ते-आहिस्ते लगती है और इंसान को इसका एहसास तक नहीं होता।” वाकई, ज़्यादा शराब पीना, क्या ही जानलेवा फँदा है!

6 यीशु की चेतावनी पर भी गौर कीजिए: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा।” (लूका 21:34, 35) सिर्फ हद-से-ज़्यादा शराब पीने से ही हम खतरे में नहीं पड़ते। अगर सावधान न रहें तो हम सही मात्रा में पीने से भी शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से ऊँघने लग सकते हैं और आलसी बन सकते हैं। अगर ऐसे हाल में यहोवा का दिन आ गया तो?

इंसाइट-1 पेज 656

पियक्कड़पन

बाइबल में इसे बुरा कहा गया है: बाइबल में पियक्कड़पन, यानी बहुत ज़्यादा शराब पीने को गलत बताया गया है। नीतिवचन के लेखक ने साफ बताया कि इसके कितने बुरे असर होते हैं। उसने कहा, “कौन हाय-हाय करता है? कौन दुखी है? कौन लड़ता-झगड़ता और शिकायतें करता है? किसे बेवजह चोट लगती है? किसकी आँखें लाल रहती हैं? वही जो देर तक दाख-मदिरा पीता है और ऐसी मदिरा ढूँढ़ता है जो नशा बढ़ाती है। दाख-मदिरा के लाल रंग को मत देख, जो प्याले में चमचमाती है और बड़े आराम से गले से उतरती है। आखिर में वह साँप की तरह डसती है और ज़हरीले साँप की तरह ज़हर उगलती है। [ज़्यादा शराब पीने से एक इंसान बीमार पड़ सकता है, जैसे उसका लिवर खराब हो सकता है (liver cirrhosis)। इसका उस पर मानसिक तौर पर भी असर हो सकता है, जैसे उसे कुछ होश नहीं रहता, उसे भ्रम होने लगता है, घबराहट होने लगती है और वह काँपने लगता है। यहाँ तक कि उसकी जान भी जा सकती है।] तेरी आँखें अजीबो-गरीब चीज़ें देखेंगी [उसका दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है], तेरा मन उलटी-सीधी बातें बोलेगा। [उसके मन में जो आता है, वह बोल देता है या कर देता है।]”​—नीत 23:29-33; हो 4:11; मत 15:18, 19.

लेखक ने यह भी बताया कि एक शराबी के साथ क्या होता है, “तुझे लगेगा जैसे तू बीच समुंदर में पड़ा है [उसे लगेगा जैसा वह पानी में डूब रहा है और आखिर में वह बेहोश हो जाता है], जहाज़ के मस्तूल की चोटी पर सोया हुआ है [इतनी ऊँचाई पर होना खतरनाक हो सकता है क्योंकि वहाँ जहाज़ का डोलना सबसे ज़्यादा महसूस होता है। उसी तरह मदहोशी की वजह से उसकी जान खतरे में पड़ सकती है। उसका एक्सिडेंट हो सकता है, उसे स्ट्रोक हो सकता है, किसी के साथ हाथा-पाई हो सकती है वगैरह]। तू कहेगा, ‘उन्होंने मुझे मारा? मुझे तो कोई दर्द नहीं हुआ। उन्होंने मुझे पीटा? मुझे तो कुछ पता नहीं चला। [शराबी को कुछ होश नहीं रहता, यहाँ तक कि जब उसे चोट लगती है तो इसका भी उसे एहसास नहीं होता।] मुझे कब होश आएगा कि मैं एक और जाम पीऊँ?’ [वह इतनी पी लेता है कि नींद लेने के बाद ही उसका नशा उतरता है। पर शराब की लत की वजह से नशा उतरते ही वह फिर से पीने की सोचता है।]” वह अपना सारा पैसा शराब में लुटा देता है। वह ठीक से काम भी नहीं कर पाता और इसलिए वह बिलकुल भी भरोसे के लायक नहीं होता। इन सारी वजहों से वह कंगाल हो जाएगा।​—नीत 23:20, 21, 34, 35.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र04 11/1 पेज 31 पै 2

पाठकों के प्रश्‍न

मसलन, मोटापा पेटूपन की एक निशानी हो सकता है, मगर ज़रूरी नहीं कि हर मोटा इंसान पेटू हो। हो सकता है कि किसी रोग की वजह से उसका वज़न बढ़ गया है। या फिर कई लोगों को अपने माता-पिता से यह विरासत में मिला हो। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि मोटापे की समस्या शरीर से होती है, मगर पेटूपन की समस्या एक इंसान की सोच या उसके दिमाग से होती है। “शरीर में हद-से-ज़्यादा चर्बी होने” को मोटापा कहा जाता है, जबकि पेटूपन “लालचियों की तरह हद-से-ज़्यादा खाने” को कहते हैं। इसलिए एक इंसान पेटू है या नहीं, यह उसके वज़न से नहीं बल्कि खाने की तरफ उसके रवैए से तय किया जाता है। ऐसा भी हो सकता है कि एक इंसान का वज़न सामान्य हो या वह दुबला-पतला हो, मगर फिर भी पेटू हो। और फिर, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एक इंसान का वज़न और आकार कैसा होना चाहिए, इस बारे में लोगों की राय अलग-अलग होती है।

28 जुलाई–3 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 24

मुश्‍किलों का सामना करने के लिए खुद को मज़बूत कीजिए

इंसाइट-2 पेज 610 पै 8

ज़ुल्म

मसीही जानते हैं कि अगर वे धीरज रखें तो उन्हें आशीष मिलेगी। यीशु ने कहा, “सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” (मत 5:10) मसीही यह भी जानते हैं कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा और जिसने यह आशा दी है उसे भी वे जानते हैं। इन सारी बातों के ज्ञान से उन्हें हिम्मत मिलती है। वे यहोवा के वफादार रह पाते हैं, उस वक्‍त भी जब दुश्‍मन उन्हें जान की धमकी देते हैं। इसके अलावा, उन्हें यीशु के बलिदान पर विश्‍वास है, इसलिए वे दुश्‍मनों के हाथों मरने से नहीं डरते। (इब्र 2:14, 15) ज़ुल्म सहते वक्‍त अगर एक मसीही यहोवा का वफादार रहना चाहता है तो ज़रूरी है कि उसकी सोच यीशु जैसी हो। बाइबल में लिखा है, “तुम वैसी सोच और वैसा नज़रिया रखो जैसा मसीह यीशु का था। उसने . . . इस हद तक आज्ञा मानी कि उसने मौत भी, हाँ, यातना के काठ पर मौत भी सह ली।” (फिल 2:5-8) “[यीशु ने] उस खुशी के लिए जो उसके सामने थी, यातना के काठ पर मौत सह ली और शर्मिंदगी की ज़रा भी परवाह नहीं की।”​—इब्र 12:2. 2कुर 12:10; 2थि 1:4; 1पत 2:21-23 भी देखें।

प्र09 12/15 पेज 18 पै 12-13

मुसीबतों के दौर में भी अपनी खुशी बरकरार रखें

12 नीतिवचन 24:10 कहता है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्‍ति बहुत कम है।” एक और नीतिवचन कहता है: “मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।” (नीति. 15:13) कुछ मसीही इस हद तक निराश हो गए कि उन्होंने बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना छोड़ दिया। उनकी प्रार्थनाएँ बस एक खानापूर्ति थीं और वे मसीही भाई-बहनों से दूर-दूर रहने लगे। यह साफ दिखाता है कि ज़्यादा देर तक मायूसी की हालत में रहना हमारे लिए खतरनाक है।​—नीति. 18:1, 14.

13 दूसरी तरफ, अगर हम अच्छी बातों पर ध्यान लगाएँ तो हम ज़िंदगी की उन बातों के बारे में ज़्यादा सोचेंगे जिनसे हम खुशी और आनंद पा सकते हैं। दाविद ने लिखा: “हे मेरे परमेश्‍वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न हूं।” (भज. 40:8) जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तो हमें परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े काम हरगिज़ नहीं छोड़ने चाहिए। दरअसल अपनी उदासी से लड़ने के लिए हमें उन कामों में लगना चाहिए जो हमें खुशी देते हैं। यहोवा हमसे कहता है कि नियमित तौर पर उसका वचन पढ़ने और उसमें खोजबीन करने से हम खुशी और आनंद पा सकते हैं। (भज. 1:1, 2; याकू. 1:25) पवित्र शास्त्र का अध्ययन करने और मसीही सभाओं में जाने से हम ऐसे “मनभावने वचन” सीखते हैं जो हमारा हौसला बढ़ा सकते हैं और दिल को खुशी दे सकते हैं।​—नीति. 12:25; 16:24.

प्र20.12 पेज 15

आपने पूछा

नीतिवचन 24:16 कहता है, “नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा।” क्या इसका यह मतलब है कि अगर एक इंसान बार-बार पाप करे, तो भी परमेश्‍वर उसे माफ कर देगा?

इस आयत में ‘गिरने’ का मतलब पाप करना नहीं है। इसका मतलब है कि एक नेक इंसान चाहे बार-बार मुश्‍किलों और मुसीबतों का सामना करे, तो भी वह सँभल जाएगा। इस मायने में वह गिरकर भी उठ खड़ा होगा।

इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि नीतिवचन 24:16 में पाप करने की बात नहीं की गयी है। इसका यह मतलब है कि एक नेक इंसान की ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें, दुख-तकलीफें आ सकती हैं और ये कई बार आ सकती हैं। हो सकता है, इस दुष्ट दुनिया में वह किसी बीमारी या समस्या का सामना करे। या सरकार उस पर ज़ुल्म ढाए क्योंकि वह यहोवा की उपासना करता है। मगर वह भरोसा रख सकता है कि परमेश्‍वर उसकी मदद करेगा और वह सँभल जाएगा। हमने खुद कितनी बार देखा है कि परमेश्‍वर के लोग चाहे कितनी भी मुश्‍किलें झेलें, लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो जाता है। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि “यहोवा गिरनेवाले सभी लोगों को सँभालता है और उन सबको उठाता है जो झुक गए हैं।”​—भज. 41:1-3; 145:14-19.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र09 10/15 पेज 12

पाठकों के प्रश्‍न

बाइबल के ज़माने में अगर एक आदमी “अपना घर बनाना” चाहता यानी शादी करके अपनी गृहस्थी बसाना चाहता तो उसे अपने आपसे यह पूछना ज़रूरी होता था, ‘क्या मैं अपनी पत्नी और भविष्य में अगर बच्चे हुए तो उनकी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हूँ?’ शादी करने से पहले उसे काम करना होता था। उसे अपने खेत जोतने और फसल पैदा करनी होती थी। इसलिए टुडेज़ इंग्लिश वर्शन साफ और स्पष्ट शब्दों में कहता है: “तब तक अपना घर न बनाना और न गृहस्थी बसाना, जब तक तुम्हारे खेत तैयार न हो जाएँ और तुम्हें यह यकीन न हो जाए कि तुम अपने पैरों पर खड़े हो गए हो।” क्या आज भी यही सिद्धांत लागू होता है?

बिलकुल। जो आदमी घर बसाना चाहता है उसे आनेवाली ज़िम्मेदारी निभाने के लिए अच्छी तरह तैयारी करनी चाहिए। अगर वह काम करने की हालत में है, तो उसे काम करना ही चाहिए। यह बात अलग है कि अपने परिवार की देख-रेख करने में सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान जैसी ज़रूरतें पूरी करना ही शामिल नहीं है। परमेश्‍वर का वचन कहता है कि जो व्यक्‍ति अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं करता, उनसे प्यार नहीं करता, उनकी भावनाओं का खयाल नहीं रखता और परमेश्‍वर के साथ उनके रिश्‍ते को मज़बूत बनाने में मदद नहीं करता, वह अविश्‍वासी से भी बदतर है। (1 तीमु. 5:8) तो अपनी शादी की तैयारी करने से पहले एक आदमी को खुद से कुछ इस तरह के सवाल पूछने चाहिए: ‘क्या मैं इतना कमाता हूँ कि अपने परिवार की बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर सकूँ? क्या मैं उपासना के मामलों में अपने परिवार की अगुवाई करने के लिए तैयार हूँ? क्या मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन चलाने की ज़िम्मेदारी निभा पाऊँगा?’ परमेश्‍वर का वचन ये ज़रूरी ज़िम्मेदारियाँ निभाने पर ज़ोर देता है।​—व्यव. 6:6-8; इफि. 6:4.

जो जवान आदमी शादी करना चाहता है उसे नीतिवचन 24:27 में दिए सिद्धांत पर ध्यान देने की ज़रूरत है। उसी तरह एक जवान स्त्री को भी खुद से पूछना चाहिए कि क्या वह एक पत्नी और माँ की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार है। अगर एक जवान जोड़ा परिवार बढ़ाने की सोच रहा है तो उन्हें भी खुद से पूछना चाहिए कि क्या वे एक माता-पिता की ज़िम्मेदारी ठीक से निभा पाएँगे। (लूका 14:28) परमेश्‍वर की इस हिदायत पर चलने से उसके लोग बहुत-से दुखों से बच सकेंगे और एक खुशहाल पारिवारिक ज़िंदगी जी पाएँगे।

4-10 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 25

अच्छी बोली के लिए बढ़िया सलाह

प्र15 12/15 पेज 19 पै 6-7

अपनी ज़बान से दूसरों की भलाई करें

6 नीतिवचन 25:11 में सही समय पर बोलने की अहमियत के बारे में बताया गया है। वहाँ लिखा है, “जैसे चाँदी की टोकरियों में सोने के सेब हों, वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।” सुनहरे सेब बहुत सुंदर होते हैं, लेकिन ये सेब तब और भी ज़्यादा सुंदर दिखते हैं जब उन्हें चाँदी की टोकरियों में रखा जाता है। उसी तरह, किसी से कुछ कहने के लिए हमारे पास भी शायद कुछ अच्छी बातें हों। लेकिन अगर हम उसे सही समय पर बोलें, तो हम उस व्यक्‍ति की और भी ज़्यादा मदद कर पाएँगे। यह हम कैसे कर सकते हैं?

7 अगर हम गलत समय पर बोलें, तो लोगों को शायद हमारी बात समझ में न आए या हो सकता है वे हमारी बात न मानें। (नीतिवचन 15:23 पढ़िए।) उदाहरण के लिए, मार्च 2011 में आए एक भूकंप और सुनामी से पूर्वी जापान के कई शहर तबाह हो गए। पंद्रह हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी। हालाँकि कई यहोवा के साक्षियों ने अपने परिवार और दोस्तों को खोया था, लेकिन वे बाइबल से उन लोगों की मदद करना चाहते थे जो उनके जैसे हालात में थे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि उस देश में बहुत से लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं और बाइबल के बारे में बहुत कम जानते हैं। इसलिए भाइयों ने उस समय लोगों को पुनरुत्थान के बारे में बताने के बजाय उन्हें दिलासा दिया और यह भी समझाया कि अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है।

प्र15 12/15 पेज 21-22 पै 15-16

अपनी ज़बान से दूसरों की भलाई करें

15 जितना यह मायने रखता है कि हम दूसरों से क्या बात करते हैं, उतना ही यह मायने रखता है कि हम कैसे बात करते हैं। लोग यीशु की बातें सुनना पसंद करते थे क्योंकि वह उनसे बहुत ही प्यार से और नम्रता से बात करता था या ‘दिल जीतनेवाली बातें’ करता था। (लूका 4:22) उसी तरह, जब हम दूसरों से नम्रता से बात करते हैं, तो लोग हमारी बात सुनना और भी पसंद करेंगे और हमारी बात मान भी लेंगे। (नीति. 25:15) अगर हमारे दिल में दूसरों के लिए इज़्ज़त होगी और हमें उनकी भावनाओं का खयाल होगा, तो हम उनसे प्यार से बात करेंगे। यीशु ने भी यही किया। जब उसने देखा कि कैसे एक भीड़ उसकी बातें सुनने के लिए जद्दोजेहद कर रही है, तो वह उन्हें देखकर तड़प उठा और “उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।” (मर. 6:34) और जब लोगों ने उसका अपमान किया, तब भी यीशु ने बदले में उनकी बेइज़्ज़ती नहीं की।​—1 पत. 2:23.

16 हालाँकि हम अपने परिवारवालों से और दोस्तों से प्यार करते हैं, पर हम शायद उनसे रुखाई से बात करें क्योंकि हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। हम शायद सोचें कि उनसे बात करते वक्‍त हमें ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन जब यीशु अपने दोस्तों से बात करता था, तब उसने कभी-भी उनसे रुखाई से बात नहीं की। जब उसके कुछ चेलों ने बहस की कि उनमें सबसे बड़ा कौन है, तो यीशु ने उन्हें बड़े प्यार से सुधारा। उसने एक छोटे बच्चे की मिसाल देकर उन्हें समझाया और उन्हें अपनी सोच सुधारने में मदद दी। (मर. 9:33-37) प्राचीन भी यीशु की मिसाल पर चलकर दूसरों को प्यार से सलाह दे सकते हैं।​—गला. 6:1.

प्र95 4/1 पेज 17 पै 8

प्रेम और भले कार्यों में उत्साहित करना​—कैसे?

8 अपने परमेश्‍वर की सेवा करने में, हम सभी एक दूसरे को उदाहरण के द्वारा उत्साहित कर सकते हैं। निश्‍चय ही यीशु ने अपने सुननेवालों को उत्साहित किया। वह मसीही सेवकाई के काम से प्रेम करता था और उसने सेवकाई को उन्‍नत किया। उसने कहा कि वह उसके लिए भोजन के समान थी। (यूहन्‍ना 4:34; रोमियों 11:13) ऐसा उत्साह फैलनेवाला हो सकता है। उसी तरह, क्या हम सेवकाई में अपनी ख़ुशी को दूसरों पर प्रकट कर सकते हैं? सावधानीपूर्वक एक शेख़ीबाज़ लहज़े को टालते हुए, कलीसिया में दूसरों के साथ अपने अच्छे अनुभवों को बाँटिए। जब आप दूसरों को अपने साथ काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब यह देखिए कि हमारे महान सृष्टिकर्ता, यहोवा के बारे में दूसरों को बताने में वास्तविक ख़ुशी पाने के लिए क्या आप उनकी मदद कर सकते हैं।​—नीतिवचन 25:25.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-2 पेज 399

कोमलता

नीतिवचन 25:28 में एक ऐसे व्यक्‍ति के बारे में बताया गया है जो कोमल स्वभाव का नहीं है। वहाँ लिखा है, “जो अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकता, वह उस शहर की तरह है जिसकी शहरपनाह टूटी पड़ी है।” जो व्यक्‍ति खुद पर काबू नहीं रख पाता वह अपने मन की हिफाज़त नहीं कर पाता। उसके मन में आसानी से गलत बातें आ सकती हैं और नतीजा, वह गलत काम करने लग सकता है।

11-17 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 26

“मूर्ख” से कोसों दूर रहिए

इंसाइट-2 पेज 729 पै 6

बारिश

मौसम: वादा किए गए देश में खासकर दो मौसम होते थे, गरमियों का और सर्दियों का। गरमियों का मौसम सूखा होता था जबकि सर्दियों में बारिश होती थी। (भज 32:4; श्रेष 2:11, फु. से तुलना करें।) करीब अप्रैल के बीच से अक्टूबर के बीच तक बहुत कम बारिश होती थी। इन्हीं महीनों के दौरान फसल की कटाई भी होती थी। इसलिए अगर इस दौरान बारिश होती तो फसल बरबाद हो सकती थी। यही वजह है कि क्यों लोगों को बेमौसम की बारिश नहीं पसंद थी।​—नीत 26:1.

प्र87 10/1 पेज 19 पै 12, अँग्रेज़ी

सुधारे जाने पर शांति पैदा होती है

12 नीतिवचन 26:3 में लिखा है, “घोड़े के लिए चाबुक, गधे के लिए लगाम और मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी होती है।” यह दिखाता है कि कुछ लोगों को सख्ती से सुधारे जाने की ज़रूरत पड़ती है। यही बात इसराएलियों के बारे में सच थी। कई बार यहोवा ने उन्हें नम्र करने के लिए उन मुसीबतों से गुज़रने दिया, जो उन्होंने खुद पर लायी थीं। जैसे, उसने दूसरे राष्ट्रों को उन पर कब्ज़ा करने दिया। (भज 107:11-13) पर कुछ मूर्ख लोग नम्र नहीं होते बल्कि और भी ढीठ हो जाते हैं। उन्हें कितना भी सुधारो, वे नहीं सुधरते।​—नीतिवचन 29:1.

इंसाइट-2 पेज 191 पै 4

लँगड़ा, लँगड़ाना

नीतिवचन: बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा, “जो मूर्ख को कोई काम सौंपता है, वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता है” (यानी खुद को लँगड़ा कर देता है)। (नीत 26:6) जो कोई किसी “मूर्ख” पर भरोसा करता है और उसे काम पर रखता है, वह खुद का ही नुकसान कर रहा होता है। अपना काम पूरा करने के लिए वह जो भी योजनाएँ बनाएगा वे कामयाब नहीं होंगी। और इससे जो भी घाटा होगा, वह भी उसे उठाना पड़ेगा।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-1 पेज 846

मूर्ख

नीतिवचन 26:4 में लिखा है कि हमें ‘मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब नहीं देना चाहिए।’ इसका मतलब है कि जिस तरीके से एक मूर्ख बात करता है, उसी तरीके से हमें उससे बहस नहीं करनी चाहिए। वरना यह दिखाएगा कि हम उसकी गलत बातों से सहमत हैं और हम भी मूर्ख साबित होंगे। लेकिन अगली आयत में ही कहा गया है कि हमें ‘मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब देना चाहिए।’ (नीत 26:5) इसका मतलब है कि हमें मूर्ख को ऐसा जवाब देना चाहिए जिससे ज़ाहिर हो सके कि उसकी दलीलें कितनी बेतुकी हैं। हम अपने जवाब से यह भी दिखा सकते हैं कि यह ज़रूरी नहीं कि उसकी दलीलें उसकी बात सही साबित कर रही हैं।

18-24 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 27

सच्चा दोस्त किसे कहते हैं?

प्र19.09 पेज 5 पै 12

यहोवा अपने नम्र सेवकों को अनमोल समझता है

12 नम्र इंसान हमेशा अच्छी सलाह की कदर करता है। इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। आप सभा में आए हैं और कुछ भाई-बहनों से बात कर रहे हैं। फिर उनमें से एक आपको अलग ले जाता है और बताता है कि आपके दाँत में कुछ खाना फँसा है। यह सुनकर आप शर्मिंदा हो जाते हैं, लेकिन आप उस भाई या बहन के एहसानमंद होंगे कि उसने आपको आकर बताया। शायद आप यह भी सोचें, ‘काश! किसी ने मुझे पहले बता दिया होता।’ उसी तरह जब कोई मसीही हिम्मत जुटाकर हमें सलाह देता है, तो हमें नम्रता से सलाह कबूल करनी चाहिए और उस भाई या बहन का एहसानमंद होना चाहिए। हमें उसे अपना दुश्‍मन नहीं बल्कि अपना दोस्त समझना चाहिए।​—नीतिवचन 27:5, 6 पढ़िए; गला. 4:16.

इंसाइट-2 पेज 491 पै 3

पड़ोसी

नीतिवचन 27:10 में हमें सलाह दी गयी है कि मुसीबत की घड़ी में दूर रहनेवाले किसी रिश्‍तेदार, जैसे अपने सगे भाई की मदद लेने से अच्छा है कि हम किसी करीबी दोस्त की मदद लें। ऐसा इसलिए है क्योंकि शायद वह रिश्‍तेदार हमारी मदद करने की हालत में ना हो। पर जो दोस्त पास रहता है वह शायद हमारी मदद कर पाए। इसलिए हमें ऐसे करीबी दोस्तों की कदर करनी चाहिए और उनकी मदद लेने से नहीं झिझकना चाहिए।

प्र23.09 पेज 9-10 पै 7

नौजवानो, आप कैसी ज़िंदगी चाहते हैं?

7 यहोआश ने जो गलत फैसला लिया उससे एक सबक हम यह सीखते हैं कि हमें उन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। ऐसे दोस्त हमें सही काम करने का बढ़ावा देंगे। और ज़रूरी नहीं कि हम सिर्फ अपनी उम्र के लोगों से दोस्ती करें। हम अपने से छोटों या बड़ों से भी दोस्ती कर सकते हैं। याद है, यहोआश का दोस्त यहोयादा उससे काफी बड़ा था? तो जब दोस्तों की बात आती है, तो सोचिए, ‘क्या मेरे दोस्त यहोवा पर विश्‍वास बढ़ाने में मेरी मदद करते हैं? क्या वे मुझे यहोवा की बात मानने का बढ़ावा देते हैं? क्या वे यहोवा के बारे में और बाइबल की सच्चाइयों के बारे में बात करते हैं? क्या वे खुद यहोवा के स्तर मानते हैं? जब मैं कुछ गलत करता हूँ, तो क्या वे मुझे सुधारते हैं या बस मक्खन लगाते रहते हैं?’ (नीति. 27:5, 6, 17) सच तो यह है, अगर आपके दोस्त यहोवा से प्यार नहीं करते, तो आपको उनसे दोस्ती रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर आपके दोस्त यहोवा से प्यार करते हैं, तो उनका हाथ कभी मत छोड़िए। वे हमेशा आपकी मदद करेंगे।​—नीति. 13:20.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र06 10/1 पेज 6 पै 6

नीतिवचन किताब की झलकियाँ

27:21, NHT. प्रशंसा या तारीफ से एक इंसान की असलियत सामने आती है। वह कैसे? जब किसी अच्छे काम के लिए उसकी तारीफ की जाती है, मगर वह इसके लिए यहोवा का शुक्रिया अदा करता है और उसकी सेवा करते रहने के लिए उकसाया जाता है, तो उस तारीफ से उसकी नम्रता ज़ाहिर होती है। लेकिन तारीफ पाने पर अगर वह खुद को बड़ा समझने लगता है, तो इससे उसमें नम्रता की कमी नज़र आती है।

25-31 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना नीतिवचन 28

दुष्ट और नेक जन में फर्क

प्र93 5/15 पेज 26 पै 2, अँग्रेज़ी

क्या आप पूरे दिल से यहोवा की बात मानते हैं?

“नेक जन शेर की तरह बेखौफ रहता है।” (नीतिवचन 28:1) उसे परमेश्‍वर के वचन पर पूरा विश्‍वास होता है। वह हिम्मत से यहोवा की सेवा में लगा रहता है, फिर चाहे उसके सामने कोई भी खतरा क्यों ना आए।

इंसाइट-2 पेज 1139 पै 3

समझ

जो समझ देनेवाले परमेश्‍वर की नहीं मानते: एक इंसान जब परमेश्‍वर की बात नहीं मानता तो वह फैसले लेते वक्‍त उसके सिद्धांतों को नज़रअंदाज़ करने लगता है। (अय 34:27) वक्‍त के चलते उसे लगता है कि उसके काम गलत नहीं हैं और वह समझ-बूझ खोने लगता है। (भज 36:1-4) कहने को तो वह ईश्‍वर को मानता है, पर करता है इंसानी सोच के मुताबिक। (यश 29:13, 14) वह अपने बुरे व्यवहार को “खेल” समझता है। (नीत 10:23) उसकी सोच टेढ़ी होती है और वह बेवकूफी की बातें सोचता है। उसे लगता है कि परमेश्‍वर, जो अदृश्‍य है, उसके गलत काम नहीं देखता। (भज 94:4-10; यश 29:15, 16; यिर्म 10:21) इस तरह वह मानो कह रहा होता है, “कोई यहोवा नहीं।” (भज 14:1-3) नतीजा, वह सही-गलत में फर्क नहीं कर पाता, किसी भी मामले को ठीक से नहीं देख पाता और ना ही सही फैसले ले पाता है।

इंसाइट-1 पेज 1211 पै 4

निर्दोष रहना, निर्दोष चालचलन, वफादारी

एक नेक इंसान भले ही गरीब हो, पर उसका मोल एक अमीर दुष्ट से कहीं ज़्यादा है। वह यहोवा पर पूरा भरोसा और विश्‍वास करता है, इसलिए वह उसका वफादार रहता है। (भज 25:21) यहोवा वादा करता है कि वह ऐसे वफादार और निर्दोष चाल चलनेवालों के लिए “ढाल” और “मज़बूत गढ़” होगा। (नीत 2:6-8; 10:29; भज 41:12) एक वफादार और निर्दोष व्यक्‍ति हमेशा ऐसे काम करने की कोशिश करता है जिनसे यहोवा खुश होता है, इसलिए वह सही राह पर बना रह पाता है। (भज 26:1-3; नीत 11:5; 28:18) कई बार दुष्ट लोगों की वजह से निर्दोष लोगों को दुख उठाना पड़ता है, पर यह बात यहोवा से नहीं छिपती। वह वादा करता है कि भविष्य में वह निर्दोष लोगों को सुकून की ज़िंदगी देगा। (अय 9:20-22; भज 37:18, 19, 37; 84:11; नीत 28:10) अय्यूब की मिसाल से हम सीखते हैं कि यहोवा के वफादार रहना, दौलतमंद होने से कहीं बढ़कर है। ​—नीत 19:1; 28:6.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र01 12/1 पेज 11-12 पै 2

आप आध्यात्मिक दिल के दौरे से बच सकते हैं

खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा होना। दिल के दौरे का शिकार होने से पहले बहुत-से लोगों को अपने आप पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा होता है कि उनकी सेहत को कुछ नुकसान नहीं हो सकता। कई बार तो वे डॉक्टर के पास दिल की जाँच कराने की बात को टाल देते हैं या इसे हँसी में उड़ाते हुए कहते हैं कि मुझे किसी डॉक्टर की क्या ज़रूरत है। उसी तरह कुछ मसीही सोच सकते हैं कि वे काफी समय से सच्चाई में हैं, इसलिए उनकी आध्यात्मिकता को कोई खतरा नहीं हो सकता। वे शायद तब तक अपने आध्यात्मिक हृदय की जाँच करवाने या खुद-ब-खुद इसका मुआयना करने की बात टालते रहें जब तक कि उन पर कोई विपत्ति न टूट पड़े। लेकिन खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा रखने के बारे में प्रेरित पौलुस की इस बढ़िया सलाह को मन में रखना बेहद ज़रूरी है: “जो समझता है, कि मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े।” इसलिए यह कबूल करना कि हम असिद्ध हैं, साथ ही समय-समय पर अपना आध्यात्मिक मुआयना करना अक्लमंदी होगी।​—1 कुरिन्थियों 10:12; नीतिवचन 28:14.

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें