मुसीबतों के दौर में भी अपनी खुशी बरकरार रखें
“जितने [यहोवा] पर भरोसा रखते हैं वे सब आनन्द करें, वे सर्वदा ऊंचे स्वर से गाते रहें।”—भज. 5:11.
1, 2. (क) आज इंसानों को दुख देनेवाली कुछ मुसीबतें क्या हैं? (ख) इंसानों पर आम तौर से आनेवाली तकलीफों के अलावा, सच्चे मसीहियों को और क्या-क्या सहना पड़ता है?
यहोवा के साक्षी भी वे तमाम मुसीबतें झेलते हैं जो दुनिया में बाकी सब पर आती हैं। परमेश्वर के लोगों में से कई ऐसे हैं जो जुर्म, युद्ध और दूसरी कई नाइंसाफियों के शिकार हुए हैं। कुदरती आफतों, गरीबी, बीमारी और मौत ने भी उन पर कहर ढाया है। प्रेषित पौलुस ने जो लिखा वह कितना सही है: “हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक एक-साथ कराहती और दर्द से तड़पती रहती है।” (रोमि. 8:22) इसके अलावा, हम सभी असिद्ध हैं, इसलिए हम अपनी गलतियों की वजह से भी दुख सहते हैं। पुराने ज़माने के राजा दाविद की तरह हम शायद कहें: “मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाईं मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।”—भज. 38:4.
2 इंसानों पर आम तौर से आनेवाली तकलीफें सहने के अलावा, सच्चे मसीही मानो अपनी यातना की सूली भी उठाकर चल रहे हैं। (लूका 14:27) इसका मतलब है, अपने गुरु यीशु की तरह उसके चेले भी लोगों की नफरत का शिकार होते हैं और उनके ज़ुल्म सहते हैं। (मत्ती 10:22, 23; यूह. 15:20; 16:2) इसलिए यीशु की मिसाल पर चलने के लिए जी-तोड़ संघर्ष करन और धीरज धरने की ज़रूरत है, साथ ही हमें नयी दुनिया की आशीषों का इंतज़ार करने की ज़रूरत है।—मत्ती 7:13, 14; लूका 13:24.
3. हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर को खुश करने के लिए ज़रूरी नहीं कि मसीही, ज़िंदगी में दुख ही झेलते रहें?
3 क्या इसका यह मतलब है कि सच्चे मसीहियों की ज़िंदगी में ज़रा भी खुशी नहीं है? और क्या अंत आने तक हमारी ज़िंदगी पर दुख और मायूसी के काले बादल छाए रहेंगे? जी नहीं, यहोवा चाहता है कि आज भी हम खुश रहें और खुशी-खुशी उसके वादों के पूरा होने का इंतज़ार करें। बाइबल हमें बार-बार बताती है कि सच्ची उपासना करनेवाले लोग खुश रहते हैं। (यशायाह 65:13, 14 पढ़िए।) भजन 5:11 कहता है कि ‘जितने [यहोवा] पर भरोसा रखते हैं वे सब आनन्द करेंगे, वे सर्वदा ऊंचे स्वर से गाते रहेंगे।’ जी हाँ, हम मुसीबतें झेलते हुए भी कुछ हद तक खुशी, मन की शांति और संतोष पा सकते हैं। आइए देखें कि तकलीफों का सामना करते हुए भी खुश रहने में बाइबल कैसे हमारी मदद कर सकती है।
यहोवा—“आनंदित परमेश्वर”
4. जब कोई परमेश्वर का अधिकार ठुकरा देता है, तो परमेश्वर को कैसा महसूस होता है?
4 यहोवा की मिसाल लीजिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर होने के नाते वह पूरे जहान का मालिक है। उसे किसी चीज़ की कमी नहीं और किसी की ज़रूरत भी नहीं। हालाँकि यहोवा के पास असीम शक्ति है, फिर भी उसे उस वक्त ज़रूर कुछ हद तक निराशा हुई होगी जब स्वर्ग में रहनेवाले उसके बेटों में से एक ने उसके खिलाफ बगावत की और शैतान बन गया। और बाद में जब दूसरे स्वर्गदूत भी इस बगावत में शामिल हो गए तो परमेश्वर को ज़रूर दुख हुआ होगा। यह भी सोचिए कि धरती पर उसकी सबसे बेमिसाल सृष्टि, यानी आदम और हव्वा ने जब उससे मुँह फेर लिया तो उसे कितनी तकलीफ महसूस हुई होगी। तब से लेकर आज तक आदम-हव्वा की संतान में से अरबों लोगों ने यहोवा के अधिकार को ठुकरा दिया है।—रोमि. 3:23.
5. खासकर किस बात ने यहोवा को गहरा दुख दिया है?
5 शैतान की बगावत आज भी ज़ोरों पर है। करीब 6,000 साल से यहोवा देखता आया है कि इंसान मूर्तिपूजा, मार-पीट, खून-खराबे और नीच लैंगिक कामों में लगा हुआ है। (उत्प. 6:5, 6, 11, 12) इसके अलावा, परमेश्वर ने अपने बारे में घिनौने झूठ और निंदा की बातें सुनी हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर के सच्चे उपासकों ने भी कई बार उसका दिल दुखाया है। ऐसी एक घटना का ब्यौरा देते हुए बाइबल कहती है: “उन्हों ने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! वे बारंबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।” (भज. 78:40, 41) जब यहोवा के अपने ही लोग उससे मुँह फेर लेते हैं तो उसे कितना दुख होता है, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। (यिर्म. 3:1-10) इससे साफ पता चलता है कि दुनिया में जब कुछ बुरा होता है तो इसे देखकर यहोवा को गहरा दुख होता है।—यशायाह 63:9, 10 पढ़िए।
6. परमेश्वर, दुख देनेवाले हालात का सामना कैसे करता है?
6 मगर दुख और निराशा की भावनाओं को यहोवा खुद पर इतना हावी नहीं होने देता कि आगे कुछ न कर पाए। जब भी मुश्किलें आयीं तो यहोवा ने फौरन कुछ कदम उठाए ताकि जो कुछ बुरा हुआ, उसका असर कम किया जा सके। उसने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनका फायदा काफी वक्त के बाद भविष्य में मिलेगा और जिनकी वजह से परमेश्वर आखिरकार अपना मकसद पूरा करेगा। ऐसे ठोस और सही कदम उठाने की वजह से, यहोवा खुशी-खुशी उस वक्त का इंतज़ार कर रहा है जब उसकी हुकूमत बुलंद की जाएगी और इस वजह से उसके वफादार उपासकों को आशीषें मिलेंगी। (भज. 104:31) जी हाँ, इतनी ज़्यादा बदनामी झेलने के बावजूद भी यहोवा हमेशा की तरह आज भी “आनंदित परमेश्वर” है।—1 तीमु. 1:11; भज. 16:11.
7, 8. जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तब हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
7 यह सच है कि समस्याओं को सुलझाने की यहोवा की काबिलीयत और हमारी काबिलीयत में ज़मीन-आसमान का अंतर है। फिर भी, मुसीबतों का सामना करते वक्त हम यहोवा की मिसाल पर ज़रूर चल सकते हैं। जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो ऐसे में मायूस होना आम बात है, मगर ज़रूरी नहीं कि हम इसी हालत में रहें। हमें यहोवा की छवि में बनाया गया है, इसलिए हमारे पास सोचने-समझने की ताकत और व्यावहारिक बुद्धि है, जिसकी मदद से हम अपनी समस्याओं की जाँच कर सकते हैं और जब मुमकिन हो उन्हें सुलझाने के लिए ठोस और सही कदम उठा सकते हैं।
8 एक ज़रूरी बात जो ज़िंदगी की समस्याओं का सामना करने में हमारी मदद कर सकती है, वह है अपनी हद पहचानना और यह कबूल करना कि कुछ बातें हमारे बस के बाहर हैं। ऐसी बातों के बारे में सोचकर मायूस होने से हमारी निराशा और बढ़ सकती है और हमारी वे तमाम खुशियाँ छिन सकती हैं जो सच्ची उपासना करने से हमें अभी मिल रही हैं। इसलिए अपनी समस्या को सुलझाने के लिए हमारे बस में जो है वह करने के बाद, अच्छा यही रहेगा कि हम उसके बारे में ज़्यादा न सोचें और अपना ध्यान उन कामों पर लगाएँ जिनसे हम कुछ अच्छा हासिल कर पाएँगे। आगे बताए गए बाइबल के किस्से इसी बात की बढ़िया मिसालें हैं।
अपनी हद पहचानना ज़रूरी है
9. हन्ना ने कैसे दिखाया कि उसने अपनी हद पहचानी?
9 हन्ना की मिसाल लीजिए जो आगे जाकर शमूएल भविष्यवक्ता की माँ बनी। मगर काफी वक्त तक जब उसके कोई बच्चा नहीं हुआ था, तो वह अपने बाँझ होने से बहुत दुखी थी। उसकी खिल्ली उड़ायी जाती थी और उसे ताने दिए जाते थे। कभी-कभी वह इतनी निराश हो जाती थी कि वह रोती रहती और खाना नहीं खाती थी। (1 शमू. 1:2-7) एक बार जब हन्ना यहोवा के पवित्र स्थान में गयी तो वह “मन में व्याकुल होकर यहोवा से प्रार्थना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी।” (1 शमू. 1:10) हन्ना ने यहोवा को अपने दिल का हाल सुनाया और फिर एली महायाजक ने उसके पास आकर कहा: “कुशल से चली जा; इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे।” (1 शमू. 1:17) तब हन्ना को ज़रूर यह एहसास हुआ होगा कि जो कुछ उसके बस में था वह उसने किया है। बाँझ होने की समस्या दूर करना उसके बस में नहीं था। इस तरह हन्ना ने अपनी हद पहचानी। इसके बाद वह “चली गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा।”—1 शमू. 1:18.
10. जब पौलुस ने एक ऐसी समस्या का सामना किया जिसे सुलझाना उसके बस में नहीं था, तो उसने क्या किया?
10 प्रेषित पौलुस ने भी दिखाया कि मुसीबतों का सामना करते वक्त वह जानता था कि कुछ बातें उसके बस से बाहर हैं। उसे एक ऐसी तकलीफ थी जो उसे बहुत परेशान कर रही थी। उसने इस तकलीफ को “शरीर में एक काँटा” कहा। (2 कुरिं. 12:7) यह तकलीफ चाहे जिस किस्म की थी, पौलुस ने इसे दूर करने के लिए जो बस में था वह किया और राहत पाने के लिए यहोवा से प्रार्थना भी की। पौलुस ने कितनी बार बिनती की? तीन बार। मगर तीसरी बार परमेश्वर ने पौलुस को बताया कि उसके ‘शरीर के इस काँटे’ को चमत्कार से नहीं निकाला जाएगा। पौलुस ने इस हकीकत को कबूल किया और फिर अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा में लगा दिया।—2 कुरिंथियों 12:8-10 पढ़िए।
11. अपनी तकलीफों का सामना करने में प्रार्थना और मिन्नतें कैसे हमारी मदद करती हैं?
11 बाइबल की इन मिसालों का यह मतलब नहीं कि हम अपनी तकलीफों के बारे में यहोवा से प्रार्थना करना छोड़ दें। (भज. 86:7) इसके बजाय, परमेश्वर का वचन हमसे गुज़ारिश करता है: “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो।” यहोवा हमारी मिन्नतें और बिनतियाँ सुनकर क्या करेगा? बाइबल आगे कहती है: “और परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” (फिलि. 4:6, 7) जी हाँ, यहोवा शायद हमारी तकलीफ दूर न करे, मगर वह हमारी प्रार्थना सुनकर हमारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त ज़रूर करेगा। किसी समस्या के बारे में प्रार्थना करने के बाद, जब शायद हमारा मन शांत हो तब हम ज़्यादा अच्छी तरह देख पाएँगे कि चिंताओं के बोझ से दबे रहना कितना खतरनाक हो सकता है।
परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से खुशी पाइए
12. ज़्यादा देर तक मायूसी की हालत में रहना क्यों नुकसान कर सकता है?
12 नीतिवचन 24:10 कहता है: “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।” एक और नीतिवचन कहता है: “मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।” (नीति. 15:13) कुछ मसीही इस हद तक निराश हो गए कि उन्होंने बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना छोड़ दिया। उनकी प्रार्थनाएँ बस एक खानापूर्ति थीं और वे मसीही भाई-बहनों से दूर-दूर रहने लगे। यह साफ दिखाता है कि ज़्यादा देर तक मायूसी की हालत में रहना हमारे लिए खतरनाक है।—नीति. 18:1, 14.
13. कुछ ऐसे काम क्या हैं जो हमें निराशा दूर करने में मदद दे सकते हैं और कुछ हद तक खुशी दे सकते हैं?
13 दूसरी तरफ, अगर हम अच्छी बातों पर ध्यान लगाएँ तो हम ज़िंदगी की उन बातों के बारे में ज़्यादा सोचेंगे जिनसे हम खुशी और आनंद पा सकते हैं। दाविद ने लिखा: “हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं।” (भज. 40:8) जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तो हमें परमेश्वर की उपासना से जुड़े काम हरगिज़ नहीं छोड़ने चाहिए। दरअसल अपनी उदासी से लड़ने के लिए हमें उन कामों में लगना चाहिए जो हमें खुशी देते हैं। यहोवा हमसे कहता है कि नियमित तौर पर उसका वचन पढ़ने और उसमें खोजबीन करने से हम खुशी और आनंद पा सकते हैं। (भज. 1:1, 2; याकू. 1:25) पवित्र शास्त्र का अध्ययन करने और मसीही सभाओं में जाने से हम ऐसे “मनभावने वचन” सीखते हैं जो हमारा हौसला बढ़ा सकते हैं और दिल को खुशी दे सकते हैं।—नीति. 12:25; 16:24.
14. यहोवा का कौन-सा वादा आज हमें खुशी देता है?
14 परमेश्वर ने हमें ऐसी कई आशीषें दी हैं जिनकी वजह से हम खुश हो सकते हैं। उसका यह वादा कि वह हमारा उद्धार करेगा हमें बेहद खुशी देता है। (भज. 13:5) हम जानते हैं कि आज हमारे साथ चाहे जो कुछ हो, आखिर में वह वक्त ज़रूर आएगा जब परमेश्वर उन सभी को इनाम देगा जो जी-जान से उसकी सेवा करते हैं। (सभोपदेशक 8:12 पढ़िए।) भविष्यवक्ता हबक्कूक को इस बात का पक्का यकीन था जो उसने इन सुंदर शब्दों में बयान किया: “चाहे अंजीर के वृक्षों में फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृक्ष से केवल धोखा पाया जाए और खेतों में अन्न न उपजे, भेड़शालाओं में भेड़-बकरियां न रहें, और न थानों में गाय बैल हों, तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूंगा।”—हब. 3:17, 18.
“क्या ही धन्य है वह प्रजा जिसका परमेश्वर यहोवा है!”
15, 16. भविष्य में मिलनेवाली आशीषों की राह देखते वक्त आज हम परमेश्वर के किन तोहफों का मज़ा ले सकते हैं?
15 हालाँकि हम एक शानदार भविष्य का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन यहोवा यह चाहता है कि इस दौरान हम उन अच्छी चीज़ों का भरपूर आनंद लें जो उसने हमें दी हैं। बाइबल कहती है: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।” (सभो. 3:12, 13) “भलाई करने” में यह भी शामिल है कि हम दूसरों की खातिर अच्छे काम करें। यीशु ने कहा कि लेने से ज़्यादा खुशी देने में है। जब हम अपने पति या पत्नी की खातिर, बच्चों, माता-पिता और दूसरे रिश्तेदारों की खातिर अच्छे काम करते हैं तो हमें गहरा संतोष मिलता है। (नीति. 3:27) अपने मसीही भाई-बहनों के साथ कोमलता से पेश आने, उन्हें मेहमान-नवाज़ी दिखाने और उनकी गलतियाँ माफ करने से हमें बहुत खुशी मिलती है और यहोवा का दिल खुश होता है। (गला. 6:10; कुलु. 3:12-14; 1 पत. 4:8, 9) और जब हम प्रचार के काम में दूसरों की खातिर अपने कई सुख त्यागकर यह सेवा पूरी करते हैं तो हमें वाकई सच्ची खुशी मिलती है।
16 ऊपर बतायी गयी सभोपदेशक किताब की आयत में ज़िंदगी की छोटी-छोटी खुशियों का ज़िक्र किया गया है, जैसे खाना खाने का मज़ा लेना। जी हाँ, तकलीफें झेलते वक्त भी हम ऐसी चीज़ों से खुशियाँ पा सकते हैं जो यहोवा ने हमें तोहफे में दी हैं। डूबते सूरज की लाली, जानवरों की मस्ती-भरी उछल-कूद और कुदरत के हैरतअंगेज़ नज़ारों का मज़ा लेने के लिए हमें कोई कीमत नहीं देनी पड़ती, फिर भी ये नज़ारे देखकर हमारा दिल परमेश्वर के लिए श्रद्धा से भर जाता है और हमें खुशी मिलती है। जब हम इन बातों पर गहराई से सोचते हैं तो यहोवा के लिए हमारा प्यार बढ़ता है क्योंकि सभी अच्छी चीज़ों का देनेवाला वही है।
17. हमें मुसीबतों से पूरी तरह राहत कैसे मिलेगी? उस वक्त के आने तक हमें किस बात से दिलासा मिलता है?
17 अगर हम परमेश्वर से प्यार करें, उसकी आज्ञाओं पर चलें और फिरौती बलिदान पर विश्वास दिखाएँ तो भविष्य में हमें इस असिद्ध ज़िंदगी की तमाम दुख-तकलीफों से पूरी तरह राहत मिलेगी और कभी न मिटनेवाली खुशी भी मिलेगी। (1 यूह. 5:3) उस वक्त के आने तक हम इस बात से दिलासा पाते हैं कि यहोवा पूरी तरह जानता है कि हम किन तकलीफों से गुज़र रहे हैं। दाविद ने लिखा: “मैं तेरी करुणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, तू ने मेरे प्राण के संकटों को जाना है।” (भज. 31:7) यहोवा हमसे बेहद प्यार करता है और यही प्यार उसे उकसाएगा कि हमें मुसीबतों से छुटकारा दिलाए।—भज. 34:19.
18. परमेश्वर के लोगों को क्यों ज़्यादातर खुश रहना चाहिए?
18 यहोवा के वादों के पूरा होने का इंतज़ार करते हुए, आइए हम अपने आनंदित परमेश्वर की मिसाल पर चलें। हम निराशा की भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें क्योंकि ऐसी भावनाएँ हमें परमेश्वर की सेवा करते रहने से रोक सकती हैं। जब समस्याएँ आती हैं तो हम सोचने-समझने की ताकत का और व्यावहारिक बुद्धि का इस्तेमाल करें। यहोवा हमारी मदद करेगा ताकि हम अपनी भावनाओं को काबू में रख सकें और जहाँ तक मुमकिन हो, ऐसे कदम उठाएँ जिनसे हम मुसीबतों के बुरे असर को कम कर सकें। हम परमेश्वर से मिलनेवाली अच्छी चीज़ों का लुत्फ उठाएँ, फिर चाहे ये शरीर की ज़रूरतें पूरी करने से मिलनेवाली छोटी-छोटी खुशियाँ ही क्यों न हों या सच्ची उपासना से मिलनेवाली खुशियाँ। परमेश्वर के करीब बने रहने से हम खुश रह सकेंगे, क्योंकि “क्या ही धन्य है वह प्रजा जिसका परमेश्वर यहोवा है!”—भज. 144:15, NHT.
आपने क्या सीखा?
• मुसीबतों का सामना करते वक्त हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
• अपनी हद पहचानने से मुसीबतों का सामना करने में कैसे हमें मदद मिल सकती है?
• तकलीफें झेलते वक्त हम परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से कैसे खुशी पा सकते हैं?
[पेज 16 पर तसवीरें]
दुनिया में होनेवाली बुराइयों को देखकर यहोवा को गहरा दुख होता है
[चित्र का श्रेय]
© G.M.B. Akash/Panos Pictures
[पेज 18 पर तसवीरें]
यहोवा ने हमें खुश रहने की वजह दी हैं