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g18 अंक 1 पेज 12-13
एक आदमी सोच रहा है कि उसके जीवन का क्या मकसद है

खुशी की राह

ज़िंदगी का मकसद

हम इंसान कई मायनों में अनोखे हैं। हम बहुत कुछ कर सकते हैं, जैसे हम लिख सकते हैं, तसवीरें बना सकते हैं, नयी-नयी चीज़ें ईजाद कर सकते हैं और सोच भी सकते हैं। अकसर हमारे मन में ऐसे सवाल उठते हैं, यह धरती, आसमान, तारे सब कहाँ से आए और क्यों? हम कहाँ से आए? हमारी ज़िंदगी किसलिए है? इस दुनिया का क्या होगा?

कुछ लोग इन सवालों पर ज़्यादा नहीं सोचते। उन्हें लगता है कि हम इन सवालों के जवाब पा ही नहीं सकते। कुछ तो सोचते हैं कि ऐसे सवालों का कोई मतलब नहीं बनता, क्योंकि सभी प्राणी अपने आप विकसित हुए हैं। इतिहास और जीव-विज्ञान के प्रोफेसर विलियम प्रॉवाइन ने दावे के साथ कहा, “न कोई ईश्‍वर है, न ही जीने का कोई मकसद। सही-गलत जैसा कुछ नहीं होता, आप जैसी मरज़ी जीएँ, कोई फर्क नहीं पड़ता।”

मगर कुछ लोग ऐसा नहीं मानते। वे सोचते हैं कि ज़िंदगी का मकसद ज़रूर होगा। उनका कहना है कि विश्‍वमंडल अपने आप नहीं आया होगा, इसे किसी ने बनाया है, क्योंकि सारे ग्रह और तारे निश्‍चित नियमों के हिसाब से चलते हैं और सुंदर ढंग से सजाए गए हैं। इसके अलावा वे प्रकृति में एक-से-एक लाजवाब रचनाएँ देखते हैं, जिनकी नकल करके कई चीज़ें ईजाद की गयी हैं। वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में देखते हैं कि कोई भी जटिल वस्तु अपने आप नहीं बन सकती, बल्कि उसे बुद्धिमानी से और सोच-समझकर बनाया जाता है।

इन तथ्यों की वजह से विकासवाद पर यकीन करनेवाले कुछ लोगों ने इस बारे में गहराई से सोचा और अब उनकी सोच बदल गयी है। जानिए कि ऐसे दो लोगों का क्या कहना है।

तंत्रिका शल्य चिकित्सक डॉ. आलीक्से मारनव। “जहाँ भी मेरी पढ़ाई हुई, वहाँ मुझे नास्तिकता और विकासवाद सिखाया गया। जो भी ईश्‍वर पर विश्‍वास करता, उसे मूर्ख माना जाता था।” लेकिन 1990 से आलीक्से की सोच बदलने लगी।

वे बताते हैं, “मैं हर बात की वजह जानने की कोशिश करता। मैं इंसान के मस्तिष्क के बारे में भी सोचा करता। इस अनोखे अंग की बनावट दुनिया में सबसे जटिल मानी जाती है। मैं जानना चाहता था कि मस्तिष्क किसलिए है, बस इसलिए कि हम ज्ञान लें, हुनर सीखें और फिर मर जाएँ? मुझे इसमें तुक नज़र नहीं आया। मैं सोचने लगा कि हम दुनिया में क्यों हैं? जीवन का मकसद क्या है? बहुत सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि कोई तो है, जिसने सबकुछ बनाया।”

आलीक्से जानना चाहते थे कि हमें क्यों बनाया गया है। उन्होंने बाइबल को भी जाँचा कि इस बारे में उसमें क्या लिखा है और उन्हें बाइबल पर यकीन होने लगा। आलीक्से की पत्नी भी, जो एक डॉक्टर थीं और ईश्‍वर को नहीं मानती थीं, बाइबल पढ़ने लगीं। शुरू में उनका इरादा अपने पति को गलत साबित करना था। मगर आज वे दोनों मानते हैं कि एक परमेश्‍वर है और वे बाइबल पढ़कर समझ गए हैं कि परमेश्‍वर ने इंसानों को क्यों बनाया था।

वैज्ञानिक डॉ ह्‍यूबा यिन। ह्‍यूबा यिन ने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की है। उन्होंने कई साल तक सूरज के बारे में खोजबीन की। वो कहती हैं, “जब वैज्ञानिक कुदरत में पायी जानेवाली प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं, तो वे पाते हैं कि ये प्रक्रियाएँ बहुत ही बढ़िया ढंग से व्यवस्थित हैं, क्योंकि ये सटीक नियमों के हिसाब से चलती हैं। मैं सोचती थी कि ये नियम कहाँ से आए? जब खाना पकाते वक्‍त हमें चूल्हे की छोटी-सी आग का ध्यान रखना पड़ता है कि वह सही मात्रा में हो, तो फिर सूरज जैसे आग के बड़े गोले के बारे में क्या कहा जा सकता है? उसका तापमान नियंत्रित करने के लिए जो नियम हैं, वे किसके बनाए हुए हैं? धीरे-धीरे मुझे यकीन हो गया कि बाइबल में लिखी सबसे पहली बात ही इन सवालों का सही जवाब है। वहाँ लिखा है, ‘शुरूआत में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।’”​—उत्पत्ति 1:1.

यह सच है कि विज्ञान से हम जान पाते हैं कि कोई चीज़ किस तरह काम करती है। जैसे, मस्तिष्क की कोशिकाएँ कैसे काम करती हैं, सूरज में गरमी कैसे पैदा होती है, उसकी रौशनी कैसे फैलती है। पर विज्ञान से हम यह नहीं जान सकते कि धरती, चाँद, तारे अस्तित्व में क्यों हैं, ये नियमों के आधार पर क्यों चलते हैं, हम दुनिया में क्यों हैं। इन सवालों के जवाब बाइबल में ही मिलते हैं, जैसे आलीक्से और ह्‍यूबा ने जाना।

बाइबल कहती है, ‘परमेश्‍वर ने पृथ्वी को यूँ ही नहीं बनाया, बल्कि बसने के लिए रचा।’ (यशायाह 45:18) उसने धरती को एक मकसद से बनाया है, जो जल्द ही पूरा होगा। इससे हमारे मन में आशा जागती है। जानिए कि वह आशा क्या है।

खास मुद्दे

‘परमेश्‍वर ने पृथ्वी को यूँ ही नहीं बनाया, बल्कि बसने के लिए रचा है।’​—यशायाह 45:18.

“हमारे जीने की कोई-न-कोई वजह होनी चाहिए”

मनोविज्ञान के प्रोफेसर विलियम मैकडूगल कहते हैं, “हमारे जीने की कोई-न-कोई वजह होनी चाहिए, तभी हमारे अंदर जीने की तमन्‍ना होगी और हम खुश रहेंगे।” मनोविज्ञान की एक और प्रोफेसर कैरल रिफ का भी कुछ ऐसा ही कहना है। वो बताती हैं, “देखा गया है कि जिन लोगों की ज़िंदगी का एक मकसद होता है, उनकी सेहत काफी अच्छी रहती है। उनमें मानसिक कमज़ोरियों की संभावना बहुत कम होती है . . . हृदय रोग का खतरा भी कम रहता है और अगर उन्हें लकवा मार जाए, तो वे जल्दी ठीक हो जाते हैं . . . और ज़्यादा साल जीते हैं।”

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