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प्रवाह के साथ भाषण देनापरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 4
प्रवाह के साथ भाषण देना
जब आप ऊँची आवाज़ में पढ़ते हैं, तब कुछ शब्दों को बोलते वक्त क्या आप अटक जाते हैं? या सभा के सामने भाषण देते वक्त अकसर आपको सही शब्द नहीं सूझते? अगर ऐसा है, तो आपके बोलने में प्रवाह की कमी है। प्रवाह के साथ बोलनेवाला इंसान बहुत आराम से पढ़ता और बात करता है और उसकी ज़बान से बिना किसी परेशानी के एक लय में शब्द निकलते हैं। मगर इसका यह मतलब नहीं कि वह बिना रुके, बिना सोचे-समझे बोलता ही रहता है। इसके बजाय, उसकी बोली कानों में रस घोलती है और मन को भा जाती है। परमेश्वर की सेवा स्कूल में प्रवाह के साथ बोलने के गुण पर खास ध्यान दिया गया है।
बोलने में प्रवाह ना होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ कारण आगे दिए गए हैं। क्या आपको इनमें से किसी पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है? (1) दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्त, अगर कुछ शब्द आपके लिए नए हैं, तो आपको हिचकिचाहट हो सकती है। (2) जब आप कई जगहों पर कुछ पल रुकने के बाद फिर बोलना शुरू करते हैं, तो भाषण का हर वाक्य झटके के साथ आगे बढ़ेगा। (3) पहले से अच्छी तैयारी न करने से भी यह समस्या खड़ी हो सकती है। (4) किसी समूह के सामने बात करते वक्त, प्रवाह से न बोल पाने की एक आम वजह है, जानकारी को क्रमानुसार न लिख पाना। (5) शब्दों का पूरा ज्ञान न होने की वजह से भी एक इंसान को सही शब्द नहीं सूझते और वह अटक-अटककर बात करता है। (6) अगर बहुत-से शब्द ज़ोर देकर बोले जाते हैं, तब भी प्रवाह में कमी आ सकती है। (7) व्याकरण के नियमों से अच्छी तरह वाकिफ न होना भी इसकी एक वजह है।
अगर आपके भाषण में प्रवाह की कमी होगी, तो सुननेवाले उठकर किंगडम हॉल से बाहर नहीं जाएँगे, मगर हाँ, उनका दिमाग शायद सैर पर निकल जाए। ऐसे में आप जो कहेंगे वह ज़्यादातर बेकार ही जाएगा।
दूसरी तरफ, इस बात का भी ख्याल रहे कि भाषण को दमदार और प्रवाह से देने की कोशिश में आपके बात करने का तरीका इतना रोबीला ना लगे कि सुननेवाले शर्मिंदा महसूस करें। अगर आपके सुननेवाले दूसरी संस्कृति के हैं, तो उन्हें शायद आपके बोलने के तरीके से यह लग सकता है कि आपमें बात करने की ज़रा भी तहज़ीब नहीं है, या फिर आप जो कह रहे हैं, उस पर खुद आपको विश्वास नहीं है। और इस वजह से आप अपने मकसद तक पहुँच नहीं पाएँगे। प्रेरित पौलुस को ही लीजिए। उसे भाषण देने में काफी तजुर्बा था, फिर भी वह कुरिन्थियों के पास “निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ” गया। क्यों? क्योंकि वह नहीं चाहता था कि लोग उसकी तरफ ध्यान दें या उसकी वाह-वाही करें।—1 कुरि. 2:3.
इन आदतों से दूर रहिए। बहुत-से लोगों को बात-बात पर “अ..अ..” या “अम्म” कहने की आदत होती है। दूसरे अपनी हर बात “तो,” “जैसा कि,” “हम देखते हैं” या “आप समझ सकते हैं” जैसे शब्दों से शुरू करते हैं। क्या आपको भी इस तरह के तकिया-कलाम इस्तेमाल करने की आदत है? हो सकता है कि खुद आपको इसका एहसास न हो कि आप कितनी बार ये शब्द कहते हैं। तो फिर, क्यों ना आप किसी से आपकी बातचीत को ध्यान से सुनने के लिए कहें और हर बार जब आप तकिया-कलाम इस्तेमाल करते हैं, तब उसे भी उन्हीं शब्दों को दोहराने के लिए कहें। आप दंग रह जाएँगे कि ऐसे शब्द आपके मुँह से कितनी बार निकलते हैं।
कुछ लोग पढ़ते या बात करते वक्त कई बार एक वाक्य बोलना शुरू करते हैं, मगर बीच में ही रुक जाते हैं और अपने आखिर के कुछ शब्द दोहराने के बाद ही आगे की बात कहते हैं।
कुछ लोग काफी तेज़ी से बात करते हैं। मगर होता यह है कि वे एक विचार को लेकर बोलना शुरू करते हैं और आधे में ही उसे छोड़कर कोई दूसरा विचार बताने लगते हैं। हालाँकि वे अटकते नहीं, लेकिन एक विचार बताकर अचानक दूसरे विचार पर जाने से भी प्रवाह में रुकावट आती है।
सुधार करने के तरीके। अगर ऐन वक्त पर आपकी ज़बान पर सही शब्द नहीं आता, तो आपको अपना शब्द-ज्ञान बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, साथ ही जी-तोड़ मेहनत करनी होगी। प्रहरीदुर्ग, सजग होइए! या दूसरे साहित्य पढ़ते-पढ़ते जब आप ऐसे शब्दों पर आते हैं जो आपके लिए नए हैं, तो उन्हें नोट कर लीजिए। ऐसे शब्दों को शब्दकोश में खोलकर देखिए कि उनका मतलब क्या है और उन्हें कैसे बोला जाता है। फिर इनमें से कुछ शब्दों को अपने शब्द-ज्ञान में जोड़ लीजिए। अगर आपकी भाषा में शब्दकोश नहीं है, तो किसी ऐसे शख्स की मदद लीजिए जिसे उस भाषा का अच्छा ज्ञान हो।
ऊँची आवाज़ में पढ़ने की आदत डालने से भी आप सुधार कर पाएँगे। पढ़ते वक्त मुश्किल शब्दों को नोट कर लीजिए और उन्हें ज़ोर-ज़ोर से कई दफा दोहराइए।
प्रवाह के साथ पढ़ पाने के लिए यह समझना ज़रूरी है कि किस तरह शब्दों को मिलाने से वाक्य का मतलब बनता है। आम तौर पर कई शब्दों को मिलाकर पढ़ने पर ही आप उनके लेखक के विचारों को समझ पाएँगे। ऐसे शब्दों पर खास ध्यान दीजिए। अगर आपको फायदेमंद लगे, तो उन पर निशान लगाइए। याद रखिए कि पढ़कर सुनाने में आपका मकसद सिर्फ शब्दों को सही-सही बोलना नहीं है, बल्कि विचारों को साफ-साफ ज़ाहिर करना भी है। एक वाक्य की इस तरह जाँच करने के बाद, अगले वाक्य पर जाइए। ऐसा करते हुए आप पूरे पैराग्राफ का अध्ययन कीजिए। यह जानने की कोशिश कीजिए कि पूरे पैराग्राफ में एक-के-बाद-एक विचारों को किस तरह पिरोया गया है। फिर ज़ोर से पढ़ने का अभ्यास कीजिए। पैराग्राफ को तब तक बार-बार पढ़िए जब तक कि आप बिना अटके और बिना गलत जगहों पर रुके, आसानी से नहीं पढ़ लेते। इसके बाद दूसरे पैराग्राफ पर जाइए।
अब पढ़ने की अपनी रफ्तार बढ़ाइए। अगर आपको मालूम है कि किस तरह वाक्य में शब्दों को मिलाकर मतलब बनता है, तब आप एक-एक शब्द पढ़ने के बजाय उन्हें मिलाकर पढ़ पाएँगे। साथ ही, आपको पहले से अंदाज़ा हो जाएगा कि अगले शब्द क्या होने चाहिए। तब आप काफी असरदार तरीके से पढ़ने के काबिल होंगे।
कुछ किताबों को बिना किसी तैयारी के पढ़ने की आदत डालना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। मिसाल के लिए, बिना तैयारी के हर दिन का वचन और उसके नीचे दी गयी टिप्पणियाँ ज़ोर से पढ़िए; ऐसा रोज़ कीजिए। अपनी आँखों को एक-एक शब्द पढ़ने के बजाय ऐसे शब्दों को मिलाकर पढ़ने की आदत डलवाइए जिससे पूरे-पूरे विचार ज़ाहिर हों।
अपनी बातचीत में प्रवाह लाने के लिए ज़रूरी है कि आप सोच-समझकर बोलें। हर रोज़ की बातचीत में ऐसा करने की आदत डालिए। पहले यह तय कर लीजिए कि आप कौन-कौन-से विचार, किस क्रम में बताना चाहते हैं; फिर अपनी बात शुरू कीजिए। हड़बड़ाइए मत। एक विचार पूरी तरह व्यक्त करने के बाद ही दूसरे विचार पर बोलना शुरू कीजिए, बीच में ही बात को मत बदलिए। अगर आप छोटे-छोटे सरल वाक्यों का इस्तेमाल करेंगे, तो आपको आसानी होगी।
अगर आपके मन में यह पहले से साफ हो कि आपको क्या कहना है तो शब्द खुद-ब-खुद निकलेंगे। आम तौर पर, हमें बात करने के लिए शब्दों को चुनने की ज़रूरत नहीं पड़ती। प्रवाह के साथ बोलने का अभ्यास करने के लिए अच्छा होगा अगर आप पहले, अपने विचार को मन में पूरी तरह उतार लें, उसके बाद जैसे-जैसे आप बात करते हैं, शब्दों का चुनाव करें। इस तरह जब आप शब्दों के बजाय विचारों पर ध्यान देंगे, तो शब्द खुद-ब-खुद आपकी ज़बान पर आने लगेंगे और आप दिल से बात कर पाएँगे। लेकिन अगर आप विचारों के बदले शब्दों के बारे में सोचने लगेंगे, तो आप रुक-रुककर बात करेंगे। इसलिए अभ्यास कीजिए, तभी जाकर आप प्रवाह के साथ बोलने का गुण निखारने में कामयाब होंगे। यह एक ऐसा गुण है जो असरदार तरीके से बात करने और पढ़ने के लिए बेहद ज़रूरी है।
जब यहोवा ने मूसा को अपनी तरफ से इस्राएल जाति और फिरौन के सामने बात करने के लिए भेजा, तो मूसा को लगा कि वह इस काम के काबिल नहीं है। क्यों? क्योंकि मूसा बोलने में निपुण नहीं था; शायद उसकी बोली में दोष था। (निर्ग. 4:10; 6:12) मूसा ने ज़िम्मेदारी उठाने से इनकार करते हुए कई वजह बतायीं, मगर यहोवा ने उसकी एक न सुनी। यहोवा ने उसके साथ हारून को भेजा ताकि हारून, मूसा की ज़बान बनकर उसके लिए बात करे। इतना ही नहीं, यहोवा ने खुद मूसा को बात करने में मदद दी। नतीजा यह हुआ कि मूसा अलग-अलग जनों और छोटे-छोटे समूहों के सामने ही नहीं, बल्कि पूरी-की-पूरी जाति के सामने भी बोल पाया। यह उसने एक बार नहीं, मगर कई बार किया और वह भी बड़े असरदार ढंग से। (व्यव. 1:1-3; 5:1; 29:2; 31:1, 2, 30; 33:1) अगर आप भी प्रवाह के साथ बोलने के लिए अपनी तरफ से पूरी-पूरी कोशिश करेंगे और यहोवा पर भरोसा रखेंगे, तो आप भी अपनी बोली से परमेश्वर का आदर कर पाएँगे।
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सही ठहरावपरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 5
सही ठहराव
बातचीत में, सही जगह ठहराव देना बेहद ज़रूरी है। इसलिए आप चाहे भाषण दे रहे हों या किसी एक आदमी से बात कर रहे हों, आपको ठहराव के साथ बात करनी चाहिए। अगर आप बिना रुके बात करेंगे, तो विचार साफ-साफ समझ आने के बजाय ऐसा लगेगा कि आप बड़-बड़ कर रहे हैं। सही जगह पर ठहरने से आपकी बात साफ समझ में आती है। ठहराव का इस्तेमाल इस ढंग से भी किया जा सकता है कि लोगों को आपके मुख्य मुद्दे लंबे अरसे तक याद रहें।
आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि आपको कहाँ और कितनी देर ठहरना चाहिए?
विराम-चिन्ह पर ठहरना। विराम-चिन्ह, लिखाई का एक अहम हिस्सा बन गए हैं। इन चिन्हों से हम जान सकते हैं कि वाक्य खत्म होता है या वाक्य एक सवाल है। कुछ भाषाओं में किसी उद्धरण या हवालों को दिखाने के लिए विराम-चिन्ह इस्तेमाल किए जाते हैं। और कुछ विराम-चिन्हों की मदद से हम जान पाते हैं कि वाक्य का एक हिस्सा, दूसरे हिस्से से कैसा जुड़ा हुआ है। जब एक जन किसी लेख या किताब से पढ़ता है, तो ज़ाहिर है कि वह उसमें दिए गए विराम-चिन्ह देख सकता है। लेकिन जब वह दूसरों को पढ़कर सुनाता है, तब उसे ऐसे पढ़ना चाहिए जिससे कि उस लेख में सभी विराम-चिन्हों के मायने उसकी आवाज़ से पता चलें। (ज़्यादा जानकारी के लिए, अध्याय 1, “सही-सही पढ़ना” देखिए।) जब आप उन जगहों पर नहीं रुकते, जहाँ विराम-चिन्ह दिए गए हैं, तो आप जो पढ़ रहे हैं, उसे समझने में लोगों को मुश्किल हो सकती है, यहाँ तक कि उन्हें जानकारी का गलत मतलब समझ आ सकता है।
विराम-चिन्ह के अलावा, एक वाक्य में जिस तरह से विचार बयान किए गए हैं, उससे भी यह पता लगाया जा सकता है कि कहाँ पर रुकना सही होगा। एक बार एक मशहूर संगीतकार ने कहा: “जिस तरह मैं पियानो पर धुन बजाता हूँ, उसमें और दूसरे पियानो बजानेवाले कलाकारों के तरीके में कोई फर्क नहीं है। लेकिन हाँ, धुन के बीच ठहरना ही असली उस्ताद की पहचान कराता है।” यही बात बातचीत पर भी लागू होती है। सही जगह पर ठहरने से अच्छी तरह से तैयार की गयी जानकारी की शोभा बढ़ती है, और आपके सुननेवालों को आपकी जानकारी भी साफ-साफ समझ में आती है।
जब आप पढ़कर सुनाने की तैयारी कर रहे हों, तब जिस लेख को आप पढ़नेवाले हैं, उस पर निशान लगाना आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। जहाँ आपको थोड़ी ही देर रुकना हो, जैसे मानो झिझक दिखाने के लिए, वहाँ पर एक छोटी, खड़ी लकीर खींचिए। और जहाँ थोड़ा लंबा ठहराव देना हो, वहाँ पर पास-पास दो खड़ी लकीरें खींचिए। अगर आपको वाक्य के कुछ हिस्सों को बोलने में दिक्कत हो रही है, जिस वजह से आप बार-बार गलत जगह पर रुक रहे हैं, तो पेंसिल से निशान लगाकर उन सारे शब्दों को जोड़ दीजिए। फिर वाक्य के उन हिस्सों को शुरू से लेकर अंत तक पढ़िए। कई लोग जो भाषण देने में तजुर्बेकार हैं, ऐसा ही करते हैं।
आम तौर पर, हर दिन की बातचीत में ठहराव के साथ बात करने में आपको कोई परेशानी नहीं होती, क्योंकि आप पहले से ही जानते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं। लेकिन, अगर आपको बार-बार बीच में रुकने, यहाँ तक कि जहाँ ज़रूरत नहीं, वहाँ भी रुकने की आदत पड़ चुकी है, तो आपकी बोली में न तो दम होगा, ना ही आप साफ-साफ बोल पाएँगे। इस मामले में आप कैसे सुधार कर सकते हैं, इसके लिए अध्याय 4 में सुझाव दिए गए हैं जिसका शीर्षक है, “प्रवाह के साथ भाषण देना।”
विचार बदलने पर ठहरना। जब आप एक मुख्य मुद्दे से दूसरे मुख्य मुद्दे पर जाते हैं, तब भी आपको ठहरना चाहिए। ऐसा करने से आप सुननेवालों को सोचने, अगली बात के लिए अपना मन तैयार करने, बदलाव को पहचानने और अगले विचार को ज़्यादा अच्छी तरह समझने का मौका देंगे। जिस तरह सड़क के मोड़ पर गाड़ी घुमाने के लिए रफ्तार कम करना ज़रूरी होता है, उसी तरह बातचीत में एक विचार के बाद दूसरे विचार पर जाने से पहले, रुकने की ज़रूरत पड़ती है।
कुछ वक्ता कोई ठहराव दिए बिना एक से दूसरे मुद्दे पर इसलिए तेज़ी से बढ़ जाते हैं, क्योंकि वे कम वक्त में ढेर सारी जानकारी पेश करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोगों की बिना ठहरे बात करने की आदत दिखाती है कि उनकी रोज़मर्रा बातचीत भी ऐसे ही होती होगी। हो सकता है कि उनके आस-पास रहनेवाले बाकी लोग भी इसी तरह बात करते हों। लेकिन ठहराव की कमी से वे असरदार ढंग से सिखा नहीं पाएँगे। अगर आप एक ऐसा विचार बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर याद रखने से लोगों को फायदा होगा, तो उस विचार को खोलकर बताने और उस पर ज़ोर देने के लिए वक्त दीजिए। हमेशा याद रखिए कि अगर आप एकदम साफ तरीके से अपनी बात ज़ाहिर करना चाहते हैं, तो ठहराव का इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी है।
अगर आप एक आउटलाइन से भाषण देने जा रहे हैं, तो उसमें जानकारी का क्रम पहले से इस तरह बिठाया जाता है जिससे यह साफ पता लगे कि मुख्य मुद्दों के बीच आपको कहाँ रुकना है। अगर आपको मैन्यूस्क्रिप्ट पढ़कर भाषण देना है, तो उन जगहों पर निशान लगाइए जहाँ पर एक मुख्य मुद्दा खत्म होता है और दूसरा शुरू होता है।
आम तौर पर विराम-चिन्हों पर कम ठहराव दिया जाता है, जबकि एक विचार से दूसरे पर जाते वक्त थोड़ा ज़्यादा। लेकिन, इतनी भी देर नहीं रुकना चाहिए जिससे लगे कि भाषण को घसीटा जा रहा है। अगर ठहराव ज़्यादा लंबा होगा, तो इससे सुननेवालों को लगेगा कि आपने ठीक से तैयारी नहीं की है और आपको सूझ नहीं रहा कि आगे क्या कहना है।
ज़ोर देने के लिए ठहरना। ज़ोर देने के लिए ठहरना अकसर काफी ज़बरदस्त होता है। किसी वाक्य या सवाल को ज़ोरदार ढंग से बोलने से पहले, या फिर वाक्य या सवाल कहने के बाद इस तरह का ठहराव दिया जाता है। पहले ठहरने से सुननेवालों में आगे की बात जानने की जिज्ञासा पैदा होती है, और बाद में ठहरने से उन्हें कही हुई बात पर सोचने का मौका मिलता है। ठहराव इस्तेमाल करने के इन दोनों तरीकों में फर्क है। इसलिए आपको इनमें से कोई एक तरीका चुनना चाहिए जो असरदार होगा। लेकिन ध्यान रखिए कि सिर्फ उन वाक्यों पर ज़ोर देने के लिए ठहराव का इस्तेमाल किया जाए जो निहायत ज़रूरी हैं, वरना बहुत ज़्यादा ठहराव देकर भाषण देने से इसकी अहमियत घट जाती है।
यीशु की मिसाल लीजिए। जब उसने नासरत के आराधनालय में शास्त्र से ऊँची आवाज़ में पढ़कर सुनाया, तो उसने ठहराव का बहुत बढ़िया तरीके से इस्तेमाल किया। पहले, उसने भविष्यवक्ता यशायाह के चर्मपत्र से वह हिस्सा पढ़ा जहाँ उसके कामों के बारे में लिखा था। फिर जो कुछ उसने पढ़ा, उसका मतलब समझाने से पहले उसने चर्मपत्र को लपेटा और वापस सेवक को दे दिया और बैठ गया। आराधनालय में हाज़िर सभी लोगों की नज़रें उस पर टिकी हुई थीं, तब उसने बोलना शुरू किया: “आज ही यह लेख तुम्हारे साम्हने पूरा हुआ है।”—लूका 4:16-21.
ज़रूरत पड़ने पर ठहरना। कभी-कभी अड़चनों की वजह से भी शायद आपको कुछ देर के लिए अपनी बात रोकनी पड़े। घर-घर प्रचार करते वक्त शायद ट्रैफिक का शोर या बच्चे के रोने की आवाज़ से आपकी बातचीत कुछ देर के लिए रुक जाए। अगर किसी सम्मेलन के दौरान थोड़ा-बहुत शोर-शराबा हो, तो आप आवाज़ ऊँची करके बोलना जारी रख सकते हैं। लेकिन अगर शोर कुछ ज़्यादा ही है और काफी समय तक रहता है, तो ऐसे में आपको रुकना चाहिए। क्योंकि, वैसे भी इतने शोरगुल में सुननेवालों का ध्यान आपकी बात पर नहीं लगेगा। इसलिए ठहराव का अच्छा इस्तेमाल कीजिए ताकि जो अच्छी बातें आप उन्हें बताना चाहते हैं, उनसे वे पूरा फायदा उठा सकें।
जवाब पाने के लिए ठहरना। हालाँकि आप शायद ऐसा भाषण दे रहे हों जिसमें आप सुननेवालों से सवाल-जवाब नहीं कर सकते, मगर फिर भी यह ज़रूरी है कि आप उन्हें ज़बानी नहीं बल्कि मन-ही-मन में जवाब देने का मौका दें। अगर आप कोई ऐसा सवाल पूछते हैं जो सुननेवालों को सोचने पर मजबूर करता है, मगर फिर आप काफी समय तक नहीं रुकते, तो उनको सोचने का मौका नहीं मिलेगा और आपका सवाल पूछना बेकार जाएगा।
सिर्फ स्टेज से बात करते वक्त ही नहीं, बल्कि दूसरों को साक्षी देते वक्त भी ठहराव का इस्तेमाल करना ज़रूरी है। लेकिन कुछ लोग बोलते ही चले जाते हैं, कभी ठहरते नहीं। अगर आपकी भी यही समस्या है, तो भाषण के इस गुण को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कीजिए। इससे आप दूसरों के साथ और भी अच्छी तरह से बात कर पाएँगे, साथ ही प्रचार में बढ़िया ढंग से साक्षी दे पाएँगे। ठहराव, एक पल की खामोशी है और कितना सच कहा गया है कि खामोशी बातचीत को बीच में विराम देती है, खास बातों पर ज़ोर देती है, लोगों को सुनने पर मजबूर करती है और कानों को मधुर लगती है।
हर दिन की बातचीत में दो या ज़्यादा लोग शरीक होते हैं और वे एक-दूसरे को अपने विचार बताते हैं। दूसरे आपकी बात सुनने के लिए तभी तैयार होंगे जब आप खुद उनकी बात ध्यान से सुनेंगे और उनमें दिलचस्पी लेंगे। इसके लिए आपको तब तक रुकना होगा जब तक वे अपनी बात खत्म ना कर लें।
प्रचार काम में, खुद ही बात करने के बजाय दूसरों को भी बोलने का मौका देने से हम ज़्यादा असरदार तरीके से गवाही दे पाते हैं। कई साक्षियों ने पाया है कि घर-मालिक से दुआ-सलाम करने के बाद, बातचीत का विषय बताकर उसके बारे में एक सवाल पूछने से काफी अच्छे नतीजे निकलते हैं। सवाल पूछने के बाद वे कुछ देर रुकते हैं ताकि सामनेवाला जवाब दे सके। जवाब मिलने के बाद वे इसके लिए कदरदानी दिखाते हैं। चर्चा के दौरान भी वे घर-मालिक को बोलने के कई मौके देते हैं। क्योंकि साक्षी अच्छी तरह जानते हैं कि जिस मसले पर वे चर्चा कर रहे हैं, उस पर लोगों की राय जानने के बाद ही वे उनकी बेहतर तरीके से मदद कर पाएँगे।—नीति. 20:5.
यह सच है कि हर कोई आपके सवालों का सही ढंग से जवाब नहीं देगा। यीशु के साथ भी ऐसा हुआ था, फिर भी उसने हार नहीं मानी। वह दूसरों को, यहाँ तक कि अपने विरोधियों को भी बोलने का मौका देने के लिए काफी देर रुकता था। (मर. 3:1-5) दूसरे इंसान को बात करने का मौका देने से उसे सोचने का बढ़ावा मिलता है और इसका नतीजा यह हो सकता है कि वह अपने मन की बात बताए। दरअसल हमारे प्रचार का एक मकसद तो यह है कि दूसरों के दिलों में कदम उठाने की प्रेरणा जगाना। हम उन्हें परमेश्वर के वचन से ज़रूरी मसले बताते हैं जिनकी बिनाह पर उनको फैसला करना होता है।—इब्रा. 4:12.
प्रचार में सही ठहराव के साथ बात करना वाकई एक कला है। जब हम ठहराव का बढ़िया इस्तेमाल करते हैं, तो लोग हमारी बातें अच्छी तरह समझ पाते हैं और अकसर वे उन्हें कभी भूला नहीं पाते हैं।
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सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देनापरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 6
सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देना
जब आप ऊँची आवाज़ में बात करते या किसी को पढ़कर सुनाते हैं, तब सिर्फ एक-एक शब्द सही-सही बोलना काफी नहीं है; बल्कि यह भी ज़रूरी है कि आप वाक्य के खास शब्दों और हिस्सों पर इस तरह ज़ोर दें जिससे सही मतलब साफ-साफ समझ में आ सके।
सही मतलब पर ज़ोर देने के लिए, कुछ या कई शब्दों पर बाकियों से ज़्यादा ज़ोर देना ही काफी नहीं होता। इसके लिए ज़रूरी है, सही शब्दों पर ज़ोर देना। क्योंकि अगर गलत शब्दों पर ज़ोर दिया जाएगा, तो आप जो कह रहे हैं उसका सही मतलब लोगों को समझ नहीं आएगा और उनका ध्यान यहाँ-वहाँ चला जाएगा। भले ही जानकारी कितनी ही बढ़िया क्यों न हो, अगर भाषण में सही मतलब पर ज़ोर न दिया जाए, तो आप सुननेवालों को सही कदम उठाने के लिए प्रेरित करने में कामयाब नहीं हो पाएँगे।
ज़्यादा ज़ोर देने के अलग-अलग तरीके हैं, और आम तौर पर इन्हें मिला-जुलाकर इस्तेमाल किया जाता है। जैसे, आवाज़ को ऊँचा करने से, अपनी आवाज़ में भावनाओं की गहराई ज़ाहिर करने से, धीरे-धीरे, एक-एक शब्द बोलने से, कोई बात बोलने से पहले या बाद में (या दोनों बार) ठहराव देने से और हाव-भाव के साथ चेहरे के भावों का इस्तेमाल करने से। कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं, जिनमें आवाज़ को धीमा करके या स्वर-बल को बढ़ाकर ज़ोर दिया जा सकता है। इन तरीकों में से कौन-सा सही रहेगा, यह पता करने के लिए ध्यान दीजिए कि आप किस तरह की जानकारी पेश कर रहे हैं और हालात कैसे हैं।
यह तय करते वक्त कि कहाँ ज़ोर देने की ज़रूरत है, आगे के मुद्दों पर गौर कीजिए। (1) किसी वाक्य में जिन शब्दों पर ज़्यादा ज़ोर देना है, यह सिर्फ वाक्य के बाकी के हिस्से पर ही नहीं बल्कि आस-पास की जानकारी पर भी निर्भर करता है। (2) किसी नए विचार की शुरूआत दिखाने के लिए भी, मतलब पर ज़ोर देने का तरीका इस्तेमाल किया जा सकता है, चाहे यह भाषण का मुख्य मुद्दा हो या तर्क करने के तरीके में बदलाव हो। इसे किसी दलील का अंत बताने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। (3) एक वक्ता किसी मसले पर अपनी भावनाओं का इज़हार करने के लिए भी मतलब पर ज़ोर देने का तरीका इस्तेमाल कर सकता है। (4) भाषण के मुख्य मुद्दों को उभारने के लिए भी सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देना चाहिए।
अगर भाषण देनेवाला या दूसरों को पढ़कर सुनानेवाला इन तरीकों से मतलब पर ज़ोर देना चाहता है, तो उसे खुद जानकारी को अच्छी तरह समझना होगा और अपने सुननेवालों के मन में इसे बिठाने की पूरी कोशिश करनी होगी। एज्रा के ज़माने में हिदायतें कैसे दी जाती थीं, इस बारे में नहेमायाह 8:8 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है: “[उन्होंने] परमेश्वर की व्यवस्था के विधान की पुस्तक का पाठ किया। उन्होंने उसकी ऐसी व्याख्या की कि लोग उसे समझ सकें। उसका अभिप्राय: क्या है, इसे खोल कर उन्होंने समझाया। उन्होंने यह इसलिए किया ताकि जो पढ़ा जा रहा है, लोग उसे समझ सकें।” इससे साफ ज़ाहिर है कि जिन लोगों ने उस मौके पर परमेश्वर की व्यवस्था पढ़कर लोगों को समझायी थी, उन्हें एहसास था कि पढ़ी जानेवाली बातों को समझने, याद रखने और लागू करने में सुननेवालों की मदद करना कितना ज़रूरी है।
किस वजह से समस्या खड़ी हो सकती है। ज़्यादातर लोग आम बातचीत में अपनी बात का मतलब आसानी से समझा पाते हैं। मगर जब उन्हें किसी और की लिखी बातें पढ़कर समझानी होती हैं, तब उन्हें यह तय करने में परेशानी होती है कि वाक्य के किन शब्दों या हिस्सों पर ज़ोर देना है और किन पर नहीं। अगर सही शब्दों पर ज़ोर देना है, तो उन्हें लेख को बहुत अच्छी तरह समझना होगा। इसके लिए जानकारी का ध्यान से अध्ययन करना ज़रूरी है। इसलिए जब आपको कलीसिया के सामने कुछ जानकारी पढ़कर सुनाने का भाग सौंपा जाए, तो पूरी लगन से इसकी तैयारी कीजिए।
कुछ लोगों को मतलब पर ज़ोर देने के बजाय थोड़े-थोड़े समय बाद शब्दों पर ज़ोर देने की आदत होती है। वे ऐसा करते रहते हैं चाहे इसकी ज़रूरत हो या न हो। दूसरे लोग शायद ‘ने, को, से, का, के लिए, लेकिन’ जैसे संबंधबोधक और संयोजन शब्दों पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर देने के आदी होते हैं। इस तरह ज़ोर देने की आदत से मतलब समझ में नहीं आता और लोगों का ध्यान भटक सकता है।
कुछ वक्ता मतलब पर ज़ोर देने के लिए अपनी आवाज़ ऊँची करके इस तरह बात करते हैं कि सुननेवालों को लगता है कि उन्हें डाँटा-फटकारा जा रहा है। कोई शक नहीं कि ऐसा करने से आम तौर पर अच्छे नतीजे नहीं निकलते। अगर सहजता से मतलब पर ज़ोर न दिया जाए, तो ऐसा लग सकता है कि भाषण देनेवाला सुननेवालों को तुच्छ समझता है। यह कितना बेहतर होगा अगर हम प्यार की बिनाह पर उनसे गुज़ारिश करें और यह समझने में उनकी मदद करें कि जो बताया जा रहा है, वह बाइबल से है और उसका पालन करना उनके बस के बाहर नहीं है!
सुधार करने के तरीके। अकसर जो मतलब पर ज़ोर नहीं दे पाता है, उसे इस कमज़ोरी की खबर तक नहीं होती। ऐसे में किसी और को उसकी इस कमज़ोरी के बारे में बताना चाहिए। अगर इस पहलू पर आपको सुधार करने की ज़रूरत है, तो स्कूल ओवरसियर आपकी मदद करेगा। साथ ही, आप बेझिझक किसी अच्छे वक्ता के पास जाकर उसकी भी मदद ले सकते हैं। उससे कहिए कि वह आपको पढ़ते हुए और बात करते हुए ध्यान से सुने और फिर सुधार करने के सुझाव दे।
सबसे पहले, आपका सलाहकार आपको प्रहरीदुर्ग का एक लेख पढ़कर अभ्यास करने का सुझाव दे सकता है। वह आपको हर वाक्य की जाँच करने को कहेगा, ताकि आप यह जान लें कि आपको पढ़ते वक्त किन शब्दों या शब्द-समूहों पर ज़ोर देना है जिससे सुननेवालों को समझने में आसानी हो। वह शायद आपसे यह भी कहे कि जिन शब्दों को तिरछे अक्षरों में लिखा गया है, उन पर खास ध्यान दें। याद रखिए कि वाक्य में कुछ शब्दों को मिलाकर पढ़ने से ही मतलब समझ में आता है। इसलिए अकसर एक-एक शब्द के बजाय शब्द-समूहों पर ज़ोर देने की ज़रूरत पड़ती है। कुछ भाषाओं में सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देने के लिए विद्यार्थियों से कहा जा सकता है कि वे मात्राओं पर खास ध्यान दें।
कहाँ ज़ोर देना है, उसका अगला कदम सिखाने के लिए आपका सलाहकार शायद कहे कि अब आप वाक्य के आस-पास लिखी बातों पर गौर करें, जो आपको वाक्य को और भी अच्छी तरह समझने में मदद देंगी। पूरे पैराग्राफ का खास विचार क्या है? इस बात को ध्यान में रखते हुए आपको अलग-अलग वाक्यों में किन-किन जगहों पर ज़ोर देना चाहिए? लेख का शीर्षक, और फिर मोटे अक्षरों में दिया वह उपशीर्षक देखिए जिसके तहत पैराग्राफ दिया गया है। इन्हें ध्यान में रखते हुए आप पैराग्राफ में किन शब्दों पर ज़ोर देंगे? आपको इन सभी बातों को ध्यान में रखना होगा। लेकिन ध्यान रहे कि बहुत-से शब्दों पर हद-से-ज़्यादा ज़ोर न दें।
चाहे आप भाषण दे रहे हों या पढ़ रहे हों, आपका सलाहकार आपको शायद पेश की गयी दलीलों के मुताबिक मतलब पर ज़ोर देने को उकसाए। आपको अच्छी तरह पता होना चाहिए कि कोई दलील कब खत्म होती है और यह भी कि कहाँ एक मुख्य विचार खत्म होकर दूसरे की शुरूआत होती है। अगर आप भाषण को इस ढंग से पेश करेंगे कि सुननेवाले इन बातों को आसानी से पहचान पाएँ, तो वे इसकी बहुत कदर करेंगे। ऐसा करने के लिए आप मुख्य मुद्दों और दलीलों के साथ ये शब्द जोड़ सकते हैं जैसे सबसे पहले, उसके बाद, अब, आखिर में, और कुल मिलाकर।
आपका सलाहकार, आपका ध्यान उन विचारों पर भी दिलाएगा जिनको आप खास भावना के साथ बोलना चाहेंगे। इसके लिए हो सकता है कि आपको ऐसे शब्दों पर ज़ोर देना पड़े जैसे बेहद/बहुत, बिलकुल, कतई नहीं, बेशक, अहम/ज़रूरी और हमेशा। आपके ऐसा करने का इस बात पर असर होगा कि सुननेवाले आपकी कही बातों के बारे में क्या महसूस करते हैं। इस बारे में ज़्यादा जानकारी अध्याय 11 में दी गयी है जिसका शीर्षक है, “स्नेह और भावना।”
मतलब पर ज़ोर देने के गुण को बढ़ाने के लिए आपको यह भी बढ़ावा दिया जाएगा कि जिन मुख्य मुद्दों को आप चाहते हैं कि आपके सुननेवाले याद रखें, पहले ज़रूरी है कि आप उन्हें अपने मन में अच्छी तरह बिठा लें। दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्त यह कैसे किया जाना चाहिए, इसकी चर्चा हम अध्याय 7, “खास विचारों पर ज़ोर देना” में करेंगे। और भाषण देते वक्त यह कैसे करना है, इसके बारे में हम अध्याय 37, “मुख्य मुद्दों को उभारना” में देखेंगे।
अगर आप प्रचार में अपनी काबिलीयत निखारने की कोशिश कर रहे हैं, तो इस बात पर खास ध्यान दीजिए कि आप आयतें कैसे पढ़ते हैं। खुद से यह सवाल पूछने की आदत डालिए, ‘मैं यह आयत क्यों पढ़ रहा हूँ?’ सिखानेवाले के लिए शब्दों को सही-सही बोलना, यहाँ तक कि उन्हें भावनाओं के साथ पढ़ना काफी नहीं होता। अगर आप किसी के सवाल का जवाब दे रहे हैं या उसे बुनियादी सच्चाई सिखा रहे हैं, तो आयत के उन शब्दों या हिस्सों पर ज़ोर देना अच्छा होगा जो चर्चा की जा रही बातों का सबूत देते हैं। वरना, आप जिसे पढ़कर सुना रहे हैं, उसे मुद्दा समझ ही नहीं आएगा।
हालाँकि मतलब पर ज़ोर देने के लिए कुछ शब्दों या शब्द-समूहों पर अधिक ज़ोर देना चाहिए, मगर जिन्हें भाषण देने का कम तजुर्बा है, वे शायद इन शब्दों पर ज़रूरत-से-ज़्यादा ज़ोर दें। जिस तरह एक इंसान किसी साज़ पर धुन बजाना सीखता है, तब वह सुर में नहीं बजा पाता, उसी तरह शब्दों पर ज़रूरत-से-ज़्यादा ज़ोर देने का नतीजा भी कानों को अखरता है। मगर जैसे साधना करते-करते एक-एक “धुन” मिलकर “संगीत” बनता है जो सुनने में बड़ा सुरीला लगता है, उसी तरह शब्दों पर सही तरीके से ज़ोर देने के लिए अभ्यास किया जाना चाहिए।
मतलब पर ज़ोर देने के बारे में कुछ बुनियादी बातें सीखने के बाद, आप दूसरे तजुर्बेकार वक्ताओं के बात करने के तरीके पर ध्यान देकर उनसे सीख पाएँगे। कुछ ही समय में आप जान जाएँगे की शब्दों पर कम-ज़्यादा ज़ोर देने से क्या कुछ किया जा सकता है। आप यह भी समझ पाएँगे कि कही गयी बात का मतलब साफ-साफ समझाने के लिए अलग-अलग तरीकों से ज़ोर देने की क्या अहमियत है। सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देने का गुण सीखने से आपके पढ़ने और बोलने की काबिलीयत में ज़्यादा निखार आएगा।
मतलब पर ज़ोर देने के बारे में सिर्फ काम-चलाऊ जानकारी लेकर चुप बैठ जाना काफी नहीं है। असरदार तरीके से बात कर पाने के लिए, आपको लगातार इस हुनर को बढ़ाने की ज़रूरत है। जब तक कि आप इसमें माहिर नहीं हो जाते और यह बातें कानों को अच्छी नहीं लगती, तब तक इसका अभ्यास करते रहिए।
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खास विचारों पर ज़ोर देनापरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 7
खास विचारों पर ज़ोर देना
जो इंसान पढ़ने में हुनरमंद है, उसका ध्यान एक वाक्य पर या वह वाक्य जिस पैराग्राफ में आता है सिर्फ उसी पैराग्राफ पर ही नहीं लगा रहता। इसके बजाय जब वह पढ़ता है, तो पूरे लेख के खास विचारों को मन में रखकर पढ़ता है। इस तरह वह सही जगह पर ज़ोर दे पाता है।
अगर ऐसा न किया जाए तो आप जो भाग पेश कर रहे हैं, उसमें कोई भी मुद्दा अलग नज़र नहीं आएगा। कुछ स्पष्ट नहीं होगा। और भाग खत्म होने के बाद सुननेवालों के पास याद रखने के लिए कोई खास मुद्दा नहीं होगा।
खास विचारों पर ज़ोर देने के गुण पर सही ध्यान देने से, आप बाइबल के किसी भी वृत्तांत को बढ़िया तरीके से पढ़कर उसमें जान डाल सकते हैं। किसी के घर पर बाइबल अध्ययन कराते वक्त या कलीसिया की सभाओं में पैराग्राफ पढ़ते वक्त इस तरह ज़ोर देकर पढ़ने से सुननेवालों पर इसका ज़बरदस्त असर हो सकता है। और खासकर अधिवेशनों में मैन्यूस्क्रिप्ट से भाषण देते वक्त ऐसा करना बेहद ज़रूरी है।
यह कैसे करें। परमेश्वर की सेवा स्कूल में आपको बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने का भाग सौंपा जा सकता है। उसे पढ़ते वक्त आपको कहाँ ज़ोर देना चाहिए? अगर उस भाग में कोई खास विचार या किसी ज़रूरी घटना का ज़िक्र है, तो उसे इस ढंग से पढ़ना ज़्यादा सही होगा जिससे कि वह विचार या घटना अलग नज़र आए।
आपको जो भाग पढ़ना है, वह चाहे कविता के रूप में हो या सामान्य लेख, कहावत हो या कहानी, इससे आपके सुननेवालों को तभी फायदा होगा जब आप इसे अच्छी तरह से पढ़ेंगे। (2 तीमु. 3:16, 17) ऐसा करने के लिए आपको पढ़े जानेवाले हिस्से और अपने सुननेवालों, दोनों पर गौर करने की ज़रूरत होगी।
अगर आपको बाइबल अध्ययन कराते वक्त या कलीसिया की सभा में किसी किताब से पढ़कर सुनाना है, तब आपको किन खास विचारों पर ज़ोर देना चाहिए? किताब में छपे सवालों के जवाबों को खास विचार समझकर उन पर ज़ोर दीजिए। इसके अलावा, उपशीर्षकों के नीचे की जानकारी पढ़ते वक्त उससे मेल खानेवाले विचारों पर भी ज़ोर दीजिए।
आपको हमारी यह सलाह है कि आप कलीसिया में भाषण देने के लिए मैन्यूस्क्रिप्ट का इस्तेमाल करने की आदत न डालें। मगर कभी-कभी, अधिवेशन के कुछ भाषणों के लिए, मैन्यूस्क्रिप्ट दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सभी अधिवेशनों में एक ही तरीके से, एक-समान विचार पेश किए जा सकें। मैन्यूस्क्रिप्ट के खास विचारों पर ज़ोर देने के लिए, भाषण देनेवाले को सबसे पहले जानकारी की बड़े ध्यान से जाँच करनी चाहिए। उसे यह पता लगाना चाहिए कि मुख्य मुद्दे कौन-से हैं। मुख्य मुद्दों का मतलब ऐसे विचार नहीं जो उसे दिलचस्प लगते हों, बल्कि ये वे ज़रूरी विचार हैं जिनके आधार पर जानकारी तैयार की गयी है। कभी-कभी मैन्यूस्क्रिप्ट में एक खास विचार एक ही वाक्य में दिया होता है और इसके बाद कोई वृत्तांत होता है या कुछ दलीलें दी जाती हैं। कई दफा तो सबूत पेश करने के बाद एक ज़बरदस्त बात कहकर खास विचार पेश किया जाता है। मैन्यूस्क्रिप्ट में इन खास विचारों को पहचान लेने के बाद, भाषण देनेवाले को उन पर निशान लगा लेना चाहिए। आम तौर पर ऐसे खास विचार कम यानी ज़्यादा-से-ज़्यादा चार या पाँच होते हैं। निशान लगाने के बाद, उसे इन विचारों को इस तरीके से पढ़ने का अभ्यास करना चाहिए जिससे कि सुननेवाले फौरन भाँप सकें कि हाँ, यही खास विचार हैं। ये विचार बाकी की जानकारी से बिलकुल अलग नज़र आने चाहिए। सही ज़ोर के साथ भाषण देने से, ज़ाहिर है कि ये खास विचार लोगों की याद में बस जाएँगे। और यही, भाषण देनेवाले का मकसद होना चाहिए।
भाषण देनेवाला कई तरीकों से मुख्य मुद्दों पर ज़ोर दे सकता है जिससे सुननेवालों को इन्हें पहचानने में मदद मिले। उनमें से कुछ हैं, बड़े जोश या गहरी भावनाओं के साथ ये मुद्दे बताना, बोलने की रफ्तार में बदलाव लाना, या सही हाव-भाव का इस्तेमाल करना।
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