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  • ‘हर एक बात का एक समय होता है’
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 10/1 पेज 5-10

‘हर एक बात का एक समय होता है’

“हर एक बात का एक अवसर [समय] और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।”—सभोपदेशक ३:१.

१. असिद्ध इंसानों को क्या करने में दिक्कत होती है और इसकी वज़ह से कभी-कभी क्या-क्या हुआ है?

अकसर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा, “काश, मैंने ये पहले ही कर दिया होता।” या कोई काम कर लेने के बाद वे पछताते हुए कहते हैं, “काश, मैं थोड़ा रुक जाता।” ऐसी बातों से पता चलता है कि असिद्ध इंसानों को कई कामों के लिए सही समय चुनने में कितनी दिक्कत होती है। और इस दिक्कत की वज़ह से वे कभी-कभी गलत फैसले कर बैठते हैं, जिससे रिश्‍ते टूट जाते हैं और वे मायूस और बेबस हो जाते हैं। और इसका सबसे बुरा अंजाम यह है कि कुछ लोगों का यहोवा परमेश्‍वर और उसके संगठन पर विश्‍वास कमज़ोर हो जाता है।

२, ३. (क) यहोवा के ठहराए हुए समय को कबूल करना क्यों अक्लमंदी की बात है? (ख) बाइबल की भविष्यवाणियों के पूरा होने के बारे में हमें कौन-सा सही नज़रिया रखना चाहिए?

२ इंसानों की इस दिक्कत की वज़ह यह है कि उनके पास वैसी बुद्धि और अंदरूनी समझ नहीं है जैसी यहोवा के पास है। अगर यहोवा चाहे तो, वह पहले से ही जान सकता है कि उसके हर काम का अंजाम क्या होगा। वह तो “अन्त की बात आदि से” जान सकता है। (यशायाह ४६:१०) और इसीलिए वह सही-सही जानता है कि किसी काम को पूरा करने का सबसे बेहतरीन समय कौन-सा है। मगर हम ठहरे असिद्ध इंसान, जिन्हें सही समय का पता लगाने का कोई अंदाज़ा नहीं है। तो क्या यह अक्लमंदी नहीं होगी कि इस बारे में हम खुद पर भरोसा करने के बजाय यहोवा के ठहराए हुए समय को कबूल करें?

३ जब बाइबल की कुछ भविष्यवाणियों के पूरा होने की बात आती है, तो प्रौढ़ मसीही सब्र से काम लेते हैं और यहोवा के ठहराए हुए समय का इंतज़ार करते हैं। वे वफादारी से यहोवा की सेवा में लगे रहते हैं, और विलापगीत ३:२६ (न्यू हिंदी बाइबल) में लिखी बात को हमेशा ध्यान में रखते हैं: “यह मनुष्य के हित में है, कि वह शांति से प्रभु के उद्धार की प्रतीक्षा करे।” (हबक्कूक ३:१६ से तुलना कीजिए।) साथ ही, उन्हें पूरा विश्‍वास है कि जो न्यायदंड यहोवा ने सुनाया है, “चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी . . . वह निश्‍चय पू[रा] हो[गा] और उस में देर न होगी।”—हबक्कूक २:३.

४. सब्र से काम लेने और यहोवा पर भरोसा रखने में आमोस ३:७ और मत्ती २४:४५ कैसे हमारी मदद करते हैं?

४ लेकिन, अगर हमें बाइबल के कुछ वचन या वॉच टावर संस्था की किताबों में लिखी कुछ बातें अच्छी तरह समझ नहीं आतीं, तो क्या हमें परेशान और अधीर हो जाना चाहिए? नहीं। इसके बजाय, सही समझ पाने के लिए यहोवा के ठहराए हुए समय का इंतज़ार करना ही अक्लमंदी होगी, क्योंकि “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्‍ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।” (आमोस ३:७) परमेश्‍वर का यह वादा कितना बढ़िया है! लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि यहोवा अपना मर्म या अपनी गुप्त बातें सिर्फ उस वक्‍त ज़ाहिर करता है जो उसे ठीक लगता है। ऐसा करने के लिए ही उसने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया है, जो हमें सही “समय पर . . . [आध्यात्मिक] भोजन” देता है। (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती २४:४५) सो, अगर कुछ बातें अभी तक पूरी तरह समझायी नहीं गयी हों, तो हमें बहुत ज़्यादा चिंता करने या उत्तेजित होने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, हम विश्‍वास रख सकते हैं कि अगर हम सब्र से काम लें और यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह अपने विश्‍वासयोग्य दास के द्वारा हमें ‘सही समय’ पर जिसकी ज़रूरत होगी, वह ज़रूर देगा।

५. सभोपदेशक ३:१-८ पर चर्चा करने से हमें क्या फायदा होगा?

५ बुद्धिमान राजा सुलैमान ने ऐसी २८ अलग-अलग बातें बतायीं, जिनका अपना-अपना “समय” ठहराया हुआ है। (सभोपदेशक ३:१-८) सुलैमान ने जो कहा उसका अर्थ समझने से हमें यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि परमेश्‍वर के हिसाब से कुछ कामों के लिए कौन-सा समय सही है और कौन-सा गलत। (इब्रानियों ५:१४) और जब हम यह जान लेते हैं, तो उसके अनुसार हमें अपनी ज़िंदगी को बदलने में मदद मिलेगी।

‘रोने का समय, और हंसने का समय’

६, ७. (क) आज लोग क्यों ‘रोते’ हैं? (ख) आज लोगों की दुर्दशा पर परदा डालने के लिए दुनिया क्या करती है?

६ “रोने का समय, और हंसने का भी समय” होता है। लेकिन रोना किसे पसंद है? किसी को भी नहीं। (सभोपदेशक ३:४) मगर दुःख की बात है कि आज दुनिया हमें बस आँसुओं के अलावा कुछ और नहीं देती। अखबार पढ़िए, टीवी पर देखिए, बस बुरी खबरें ही सुनने को मिलती हैं। आज, स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे दूसरे बच्चों को गोलियों से भून देते हैं, माता-पिता अपने बच्चों के साथ बुरा सलूक करते हैं, आतंकवादी बेकसूर लोगों को अपाहिज बना देते हैं या उनकी जान ले लेते हैं, और जिन्हें लोग प्राकृतिक विपत्तियाँ कहते हैं, वे भी लोगों के जान-माल का नुकसान करती हैं। ये सारी खबरें सुनकर कलेजा काँप उठता है। दाने-दाने को तड़प रहे और सूखकर काँटा हो चुके बच्चों को देखकर और दर-ब-दर की ठोकरें खाते फिर रहे बेघर शरणार्थियों को टीवी पर देखकर दिल दहल जाता है। साथ ही, आज ऐसी नई-नई बातें सुनने को मिलती हैं जिनके बारे में पहले कभी नहीं सुना गया था, जैसे कि पूरी-की-पूरी जाति का जनसंहार, एड्‌स, युद्ध में दुश्‍मन को मारने के लिए कीटाणुओं का इस्तेमाल, एल नीनो तूफान। ये सब अब हमारे दिल में एक अजीब-सी दहशत पैदा करते हैं।

७ इसमें कोई दो राय नहीं कि आज की दुनिया में हर तरफ मुसीबतें और दुःख-ही-दुःख है। और लोगों की इस दुर्दशा पर परदा डालने के लिए मनोरंजन जगत लगातार छिछोरे, बेमतलब के, मार-धाड़वाले और अकसर अश्‍लील कार्यक्रम पेश करता रहता है, ताकि लोग दूसरों की दुःख-तकलीफों की तरफ बिलकुल ध्यान न दें। लेकिन बेवकूफ और बचकानी हरकतोंवाले ऐसे कार्यक्रम देखकर लोग पलभर के लिए हँस ज़रूर लेते हैं, मगर वो सच्ची खुशी नहीं है। सच्ची खुशी परमेश्‍वर की आत्मा का एक फल है जो शैतान की दुनिया बिलकुल भी नहीं दे सकती।—गलतियों ५:२२, २३; इफिसियों ५:३, ४.

८. आज मसीहियों को किस पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, हँसने पर या रोने पर? समझाइए।

८ तो फिर, दुनिया की इस दुर्दशा को देखते हुए हम समझ सकते हैं कि यह सिर्फ हँसी-मज़ाक करने का समय नहीं है। ना ही ये मनोरंजन में डूबने और आध्यात्मिक बातों से ज़्यादा मौज-मस्ती की तरफ ध्यान देने का समय है। (सभोपदेशक ७:२-४ से तुलना कीजिए।) इस बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा कि “इस संसार के बरतनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें।” क्यों? “क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (१ कुरिन्थियों ७:३१) इसलिए सच्चे मसीही हर दिन इस तरह ज़िंदगी जीते हैं जिससे पता चलता है कि उन्हें समय की गंभीरता का एहसास है।—फिलिप्पियों ४:८.

रोते हैं, फिर भी सचमुच खुश हैं!

९. जलप्रलय से पहले के दिनों में कौन-सी अफसोसजनक हालत थी, और हमें किस बात के लिए आगाह किया गया है?

९ जिस पीढ़ी में इस पृथ्वी पर जलप्रलय आया था, उस पीढ़ी के लोग वक्‍त की नज़ाकत को नहीं समझे। वे अपने रोज़मर्रा के काम में मशरूफ थे और “मनुष्यों की बुराई [पर, जो] पृथ्वी पर बढ़ गई” थी, बिलकुल आँसू न बहाए। (उत्पत्ति ६:५) “पृथ्वी . . . उपद्रव से भर गई थी,” और लोग थे कि बिलकुल बेफिक्र हो गए थे। (उत्पत्ति ६:११) यह कितने अफसोस की बात थी! यीशु मसीह ने उस हालत का ज़िक्र किया और भविष्यवाणी की कि हमारे दिनों में भी लोगों की मनोवृत्ति ऐसी ही होगी। उसने आगाह किया: “जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा।”—मत्ती २४:३८, ३९.

१०. हाग्गै के दिनों के इस्राएलियों ने कैसे दिखाया कि वे यहोवा के ठहराए हुए समय की अहमियत नहीं समझ पाए?

१० जलप्रलय के लगभग १,८५० साल बाद, हाग्गै के दिनों में भी बहुत-से इस्राएलियों ने आध्यात्मिक बातों के लिए यूँ ही लापरवाही दिखायी। वे यह समझ नहीं पाए कि वो वक्‍त अपने ही काम-काज में मशरूफ रहने का नहीं बल्कि यहोवा के काम को सबसे ज़्यादा अहमियत देने का है। उनके बारे में लिखा है: “ये लोग कहते हैं कि यहोवा का भवन बनाने का समय नहीं आया है। फिर यहोवा का यह वचन हाग्गै भविष्यद्वक्‍ता के द्वारा पहुंचा, क्या तुम्हारे लिये अपने छतवाले घरों में रहने का समय है, जब कि यह भवन उजाड़ पड़ा है? इसलिये अब सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अपनी अपनी चालचलन पर ध्यान करो।”—हाग्गै १:१-५.

११. हमें अपने-आप से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

११ जिस तरह हाग्गै के दिनों में यहोवा ने इस्राएलियों को कुछ बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी थीं, उसी तरह आज, हम यहोवा के साक्षियों को भी कुछ बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गयी हैं। इसलिए अच्छा होगा अगर हम पूरी गंभीरता से जाँचें कि हम कैसी चाल चलते हैं। क्या हम भी दुनिया की हालत को देखकर और उसकी वज़ह से परमेश्‍वर के नाम पर लग रहे कलंक को देखकर ‘रोते’ हैं? जब लोग कहते हैं कि परमेश्‍वर है ही नहीं या जब वे उसके धर्मी सिद्धांतों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करते हैं, तो क्या हमें दुःख होता है? क्या हम भी, उन लोगों की तरह आहें भरते हैं, जिन्हें २,५०० साल पहले यहेजकेल ने एक दर्शन में देखा था और जिनके माथे पर चिन्ह था? उनके बारे में लिखा है: “यहोवा ने उस से [जिसके पास लिखने की दवात थी] कहा, इस यरूशलेम नगर के भीतर इधर उधर जाकर जितने मनुष्य उन सब घृणित कामों के कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं, उनके माथों पर चिन्ह कर दे।”—यहेजकेल ९:४.

१२. आज के लोगों के लिए यहेजकेल ९:५, ६ का क्या मतलब है?

१२ इस विवरण का हमारे लिए जो मतलब है वह हमें उन छः पुरुषों को, जिनके हाथ में घात करने के हथियार थे, दिए गए निर्देश से पता चलता है: “नगर में उनके पीछे पीछे चलकर मारते जाओ; किसी पर दया न करना और न कोमलता से काम करना। बूढ़े, युवा, कुंवारी, बालबच्चे, स्त्रियां, सब को मारकर नाश करो, परन्तु जिस किसी मनुष्य के माथे पर वह चिन्ह हो उसके निकट न जाना। और मेरे पवित्रस्थान ही से आरम्भ करो।” (यहेजकेल ९:५, ६) हम जानते हैं कि बहुत जल्द बड़ा क्लेश आनेवाला है और परमेश्‍वर न्याय करनेवाला है। और अगर हम दंड पाने से बचना चाहते हैं तो हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि आज दुनिया की दुर्दशा पर “रोने” का समय है।

१३, १४. (क) यीशु ने किस तरह के लोगों को धन्य या खुश कहा? (ख) समझाइए कि क्यों यीशु का वर्णन यहोवा के साक्षियों पर पूरी तरह लागू होता है?

१३ दुनिया की दुर्दशा पर ‘रोने’ का मतलब यह नहीं कि यहोवा के लोग खुश नहीं हैं। वे तो बहुत खुश हैं! दरअसल वे दुनिया के सबसे खुश लोग हैं। यीशु ने बताया कि उनकी खुशी का राज़ क्या है: “धन्य [या खुश] हैं वे, जो मन के दीन [आध्यात्मिक ज़रूरत से सचेत] हैं, . . . जो शोक करते हैं, . . . जो नम्र हैं, . . . जो धर्म के भूखे और पियासे हैं, . . . जो दयावन्त हैं, . . . जिन के मन शुद्ध हैं, . . . जो मेल करवानेवाले हैं, . . . जो धर्म के कारण सताए जाते हैं।” (मत्ती ५:३-१०) और ये साबित करने के लिए ढेरों सबूत हैं कि यह वर्णन एक संगठन के तौर पर यहोवा के साक्षियों पर ही लागू होता है, किसी और धर्म पर नहीं।

१४ खासकर जबसे १९१९ में यहोवा की सच्ची उपासना फिर से शुरू हुई है, तब से उसके लोग और भी खुश हैं या ‘हँस’ रहे हैं। आध्यात्मिक अर्थ में उनमें खुशी की वैसी लहर थी जैसे सा.यु.पू. छठी सदी में बाबुल से लौटनेवालों के दिल में थी: “जब यहोवा सिय्योन से लौटनेवालों को लौटा ले आया, तब हम स्वप्न देखनेवाले से हो गए। तब हम आनन्द से हंसने और जयजयकार करने लगे; . . . यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किए हैं; और इस से हम आनन्दित हैं।” (भजन १२६:१-३) लेकिन, यहोवा के साक्षी ऐसे आध्यात्मिक हर्ष के समय में भी वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान रखते हुए अक्लमंदी से काम करते हैं। जब नयी दुनिया आ जाएगी और सभी लोग “सत्य जीवन को वश में कर” लेंगे, तब रोना हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा और चारों तरफ सिर्फ खुशियाँ-ही-खुशियाँ होंगी।—१ तीमुथियुस ६:१९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

“गले लगाने का समय, और गले लगाने से रुकने का भी समय है”

१५. दोस्त चुनते वक्‍त मसीही किस बात का ध्यान रखते हैं?

१५ मसीही इस बात पर बहुत ध्यान देते हैं कि वे किसे गले लगाकर दोस्त बनाते हैं। वे दोस्त चुनते वक्‍त पौलुस की इस चेतावनी को ध्यान में रखते हैं: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३) और बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।”—नीतिवचन १३:२०.

१६, १७. दोस्ती, डेटिंग, और शादी के बारे में यहोवा के साक्षियों का क्या नज़रिया है और क्यों?

१६ यहोवा के सेवक सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ दोस्ती करते हैं जो उनकी तरह ही यहोवा से और उसकी धार्मिकता से प्रेम करते हैं। और हाँ, उन्हें अपने दोस्तों से मिलना-जुलना अच्छा ज़रूर लगता है, मगर वे दुनिया का नज़रिया नहीं अपनाते। जैसे कुछ देशों में लड़के-लड़कियों को साथ घूमने की, यानी डेटिंग करने की पूरी छूट दी जाती है, लेकिन मसीही बुद्धिमानी से ऐसा नहीं करते। वे डेटिंग को मज़ाक नहीं, बल्कि शादी को मन में रखते हुए उठाया गया गंभीर कदम मानते हैं। और यह कदम सिर्फ तब उठाया जाना चाहिए जब एक व्यक्‍ति हमेशा-हमेशा के बंधन में बंधने के लिए शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक रूप से तैयार हो और हाँ, बाइबल के उसूलों के मुताबिक उस पर कोई बंदिशें न हों।—१ कुरिन्थियों ७:३६.

१७ कुछ लोग शायद कहें कि डेटिंग और शादी के बारे में ये सारे खयालात पुराने हैं। लेकिन यहोवा के साक्षी दोस्त चुनने या डेटिंग और शादी के बारे में अपने फैसले दोस्तों के दबाव में आकर नहीं करते। वे जानते हैं कि “बुद्धि अपने कार्यों से प्रमाणित होती है।” (मत्ती ११:१९, NHT) वे यहोवा की बुद्धि पर भरोसा करते हैं जो जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है और इसलिए वे यहोवा की इस सलाह को मानते हैं कि विवाह “केवल प्रभु में” करें। (१ कुरिन्थियों ७:३९; २ कुरिन्थियों ६:१४) वे बिना सोचे-समझे, जल्दबाज़ी में शादी नहीं कर लेते, ना ही ये सोचकर चलते हैं कि अगर उनमें नहीं पटी, तो वे आसानी से तलाक ले सकते हैं या अलग हो सकते हैं। इसके बजाय, वे बहुत सोच-समझकर और बिना जल्दबाज़ी किए ऐसे साथी की तलाश करते हैं जिसके साथ उनकी निभ सके। क्योंकि वे जानते हैं कि शादी की शपथ ले लेने के बाद, यहोवा का यह नियम उन पर लागू हो जाता है: “वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं: इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती १९:६; मरकुस १०:९.

१८. शादीशुदा ज़िंदगी में सुख पाने के लिए सबसे बढ़िया शुरुआत क्या हो सकती है?

१८ शादी जीवन भर का बंधन है, और इसलिए यह कदम बहुत सोच-समझकर उठाना चाहिए। एक व्यक्‍ति का अपने आप से यह पूछना ठीक होगा, ‘क्या वो सचमुच मेरे लिए ठीक रहेगी?’ लेकिन यह सवाल भी उतना ही ज़रूरी है, ‘क्या मैं वाकई उसके लिए ठीक रहूँगा? क्या मैं एक प्रौढ़ मसीही हूँ? क्या मैं उसकी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा कर सकूँगा?’ शादी का कदम उठानेवाले लड़के-लड़की, दोनों पर यहोवा की तरफ से यह ज़िम्मेदारी है कि वे आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हों, ताकि वे अपनी शादी को एक ऐसा मज़बूत बंधन बना सकें जिससे परमेश्‍वर खुश हो। और हज़ारों मसीही जोड़े इस बात का सबूत दे सकते हैं कि सुखी विवाह की शुरुआत करने का सबसे बढ़िया तरीका है पूरे समय की सेवकाई करना, जिसमें कुछ पाने के बजाय त्याग करने की भावना होती है और यही बात शादीशुदा ज़िंदगी में सुख पाने के लिए भी बहुत ज़रूरी है।

१९. कुछ मसीही क्यों शादी नहीं करते?

१९ कुछ मसीही सुसमाचार के प्रचार को और बढ़ाने की खातिर शादी नहीं करते और इस तरह ‘गले लगाने से रुकते’ हैं। (सभोपदेशक ३:५) कुछ लोग तब तक एक साथी की तलाश नहीं करते जब तक वे खुद आध्यात्मिक रूप से योग्य नहीं हो जाते। और हम ऐसे अविवाहित मसीहियों को नहीं भूलते जो शादी तो करना चाहते हैं, मगर उन्हें अभी तक कोई साथी नहीं मिला है। हमें पूरा विश्‍वास है कि यहोवा इस बात से बहुत खुश है कि वे शादी करने की फिराक में परमेश्‍वर के सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं कर बैठते। हमें भी उनकी वफादारी की कदर करनी चाहिए और जब ज़रूरत हो तब उनका हौसला भी बढ़ाना चाहिए।

२०. कभी-कभी शादीशुदा जोड़े भी क्यों ‘गले लगाने से रुकते’ हैं?

२० क्या शादीशुदा जोड़ों को भी कभी-कभी ‘गले लगाने से रुकना’ चाहिए? शायद कुछ मामलों में हाँ, क्योंकि पौलुस ने कहा: “हे भाइयो, मैं यह कहता हूं, कि समय कम किया गया है, इसलिये चाहिए कि जिन के पत्नी हों, वे ऐसे हों मानो उन के पत्नी नहीं।” (१ कुरिन्थियों ७:२९) पौलुस के कहने का मतलब यह है कि परमेश्‍वर की सेवा में मिली ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए कभी-कभी हमें शादीशुदा ज़िंदगी की खुशियों को कुछ समय के लिए भूलना पड़ता है। अगर हम इस बात को सही नज़र से देखें, तो इससे शादी का बंधन कमज़ोर नहीं, बल्कि और भी मज़बूत होगा, क्योंकि इससे पति-पत्नी, दोनों को हमेशा याद रहेगा कि उनके रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखने के लिए उसमें यहोवा का होना बहुत ज़रूरी है।—सभोपदेशक ४:१२.

२१. बच्चे पैदा करने के मामले में हमें शादीशुदा जोड़ों की आलोचना क्यों नहीं करनी चाहिए?

२१ इसके अलावा, कुछ शादीशुदा जोड़ों ने बच्चे न पैदा करने का फैसला किया है, ताकि वे और भी आज़ादी से परमेश्‍वर की सेवा कर सकें। उनकी इस कुर्बानी के लिए यहोवा उनको इनाम ज़रूर देगा। दरअसल सुसमाचार के प्रचार को बढ़ाने की खातिर, शादी न करने की सलाह बाइबल ज़रूर देती है, मगर इसकी खातिर बच्चे न पैदा करने के बारे में वह सीधे-सीधे कुछ भी नहीं कहती। (मत्ती १९:१०-१२; १ कुरिन्थियों ७:३८. मत्ती २४:१९ और लूका २३:२८-३० से तुलना कीजिए।) इसलिए हर शादीशुदा जोड़े को इस बारे में अपने हालात और अपनी इच्छाओं और जज़्बातों को मद्देनज़र रखते हुए अपना फैसला करना चाहिए। और वे चाहे जो भी फैसला करें, दूसरों को उनके फैसले की बिलकुल भी आलोचना नहीं करनी चाहिए।

२२. क्या पता लगाना हमारे लिए ज़रूरी है?

२२ तो हमने देखा कि “हर एक बात का एक अवसर [समय] और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।” यहाँ तक कि “लड़ाई का समय, और मेल [“शांति,” NHT] का भी समय है।” (सभोपदेशक ३:१, ८) हमारा अगला लेख बताएगा कि यह पता लगाना क्यों ज़रूरी है कि अब ‘लड़ाई का समय है या शांति का।’

क्या आप समझा सकते हैं?

◻ हमारे लिए यह जानना क्यों बहुत ज़रूरी है कि ‘हर एक बात का एक समय होता है’?

◻ आज खासकर ‘रोने का समय’ क्यों है?

◻ हालाँकि आज मसीही ‘रो’ रहे हैं, फिर भी वे सबसे खुश लोग क्यों हैं?

◻ कुछ मसीही कैसे दिखाते हैं कि वे आज के इस समय को ‘गले लगाने से रुकने’ का समय समझते हैं?

[पेज 6, 7 पर तसवीरें]

हालाँकि मसीही इस दुनिया की दुर्दशा पर ‘रोते’ हैं . . .

. . . फिर भी वे असल में दुनिया के सबसे खुश लोग हैं

[पेज 8 पर तसवीर]

सुखी विवाह की शुरुआत करने का सबसे बढ़िया तरीका है पूरे समय की सेवकाई

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