जीवन कहानी
यहोवा के मार्ग में आठ बच्चों की परवरिश करना—मुश्किलें और खुशियाँ
जॉसलिन वैलनटाइन की ज़ुबानी
सन् 1989 में मेरे पति काम के लिए विदेश गए। जाने से पहले उन्होंने मुझसे वादा किया था कि वे मेरे आठ बच्चों की देखरेख के लिए पैसे भेजेंगे। इसके बाद कई हफ्ते गुज़र गए, पर उनका कोई पता-ठिकाना नहीं था। फिर महीने गुज़र गए, मगर उनसे कोई खबर नहीं आयी। मैं खुद को यह कहकर दिलासा देती रही, ‘हालात अच्छे होते ही वे घर लौट आएँगे।’
मेरे पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है तो मैं इन आठ बच्चों को पाल-पोसकर कैसे बड़ा करूँगी, यह चिंता मुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रही थी। मेरे साथ जो हुआ था उसे मैं मानने को तैयार नहीं थी। मैं रात-रात भर जागकर यही सोचती रहती थी कि ‘आखिर वे मेरे और बच्चों के साथ यह अन्याय कैसे कर सकते हैं?’ मगर बाद में मुझे इस कड़वी हकीकत को कबूल करना पड़ा कि उन्होंने हमें छोड़ दिया है। उनको गए कुछ 16 साल बीत चुके हैं मगर आज तक वे घर नहीं लौटे। इसलिए बगैर साथी के मैंने अकेले ही बच्चों की परवरिश की। यह मेरे लिए बड़ी चुनौती थी, मगर बच्चों को यहोवा के मार्ग पर चलते देखकर मुझे बहुत खुशी भी मिली है। इससे पहले कि मैं आपको इन बच्चों की परवरिश के बारे में सुनाऊँ, मैं आपको खुद की परवरिश के बारे में कुछ बताना चाहूँगी।
बाइबल के मार्गदर्शन की तलाश
मेरा जन्म सन् 1938 में केरिबियन सागर के द्वीप, जमैका में हुआ था। हालाँकि पिताजी चर्च के सदस्य नहीं थे, फिर भी वे खुद को एक धार्मिक इंसान मानते थे। अकसर रात के वक्त वे मुझे बाइबल की भजनों की किताब पढ़कर सुनाने के लिए कहते थे। इसलिए जल्द ही मुझे कई भजन मुँह-ज़बानी याद हो गए थे। माँ हमारे इलाके के चर्च की सदस्य थी और कभी-कभी मुझे अपने साथ धार्मिक सभाओं में ले जाती थी।
उन सभाओं में सिखाया जाता था कि परमेश्वर अच्छे लोगों को स्वर्ग में अपने साथ रहने के लिए बुला लेता है और दुष्टों को हमेशा तक नरक की आग में तड़पाता रहता है। हमें यह भी सिखाया गया था कि यीशु परमेश्वर है और वह बच्चों से बहुत प्यार करता है। इन सारी बातों को लेकर मैं उलझन में पड़ गयी थी और मुझे परमेश्वर से डर लगने लगा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ‘अगर परमेश्वर हमसे प्यार करता है, तो वह लोगों को नरक की आग में कैसे तड़पा सकता है?’
मुझे नरक की आग के डरावने सपने सताने लगे। कुछ वक्त बाद, मैंने चिट्ठियों के ज़रिए एक बाइबल कोर्स शुरू किया जिसे सैवेन्थ-डे ऐडवेंटिस्ट चर्च चलाता था। यह चर्च सिखाता था कि दुष्ट लोगों को हमेशा के लिए नहीं तड़पाया जाएगा, बल्कि उन्हें जलाकर खाक में मिला दिया जाएगा। यह शिक्षा मुझे रास आयी और मैं इस चर्च की सभाओं में जाने लगी। मगर आगे चलकर मैंने पाया कि उनकी शिक्षाएँ भी बड़ी उलझन में डालनेवाली थीं। और नैतिकता के बारे में मेरे जो गलत खयालात थे, उसे इस चर्च ने नहीं सुधारा था।
उन दिनों आम तौर पर व्यभिचार को गलत माना जाता था। लेकिन मेरे जैसे कई लोगों का खयाल था कि एक-से-ज़्यादा लोगों के साथ लैंगिक संबंध रखना ही व्यभिचार है, जबकि एक कुँवारे लड़के और कुँवारी लड़की का सिर्फ एक-दूसरे के साथ संबंध रखना पाप नहीं है। (1 कुरिन्थियों 6:9, 10; इब्रानियों 13:4) इस धारणा को मानने की वजह से मैं बिन-ब्याही छः बच्चों की माँ बन गयी थी।
आध्यात्मिक तरक्की करना
सन् 1965 में वेसलिन गुडइसन और ऐथल चेम्बर्स पास ही के बाथ नाम के इलाके में रहने आयीं। वे दोनों पायनियर थीं, यानी पूरे समय की सेवा करनेवाली यहोवा की साक्षी। एक दिन उन्होंने मेरे पिताजी से बातचीत की और जब उन्होंने बाइबल अध्ययन की पेशकश रखी तो पिताजी राज़ी हो गए। जब भी ये साक्षी अध्ययन के लिए आतीं और मैं घर पर होती तो वे मुझे भी बाइबल के बारे में बताती थीं। हालाँकि मैं यहोवा के साक्षियों को शक की निगाहों से देखती थी, फिर भी मैंने बाइबल अध्ययन शुरू किया ताकि उन्हें गलत साबित कर सकूँ।
अध्ययन के दौरान, मैं ढेरों सवाल करती थी और साक्षी बाइबल से मेरे हर सवाल का जवाब देते थे। साक्षियों के साथ अध्ययन करने पर ही मैंने जाना कि मरे हुए अचेत हैं और नरक में नहीं तड़प रहे हैं। (सभोपदेशक 9:5, 10) मैंने यह भी सीखा कि इंसानों के लिए धरती पर फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा है। (भजन 37:11, 29; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) हालाँकि पिताजी ने अध्ययन करना बंद कर दिया, पर मैंने जारी रखा और मैं यहोवा के साक्षियों की सभाओं में हाज़िर होने लगी। ये सभाएँ शांति से और कायदे से चलायी जाती थीं, जिस वजह से मैं यहोवा के बारे में और भी ज़्यादा सीख पायी। मैं साक्षियों की बड़ी-बड़ी सभाओं में भी हाज़िर हुई, जैसे सर्किट सम्मेलनों और ज़िला अधिवेशनों में। इन सभाओं में बाइबल से जो बातें सिखायी जाती थीं, उससे मेरे अंदर यह मज़बूत इरादा पैदा हुआ कि मैं यहोवा की उपासना उसी तरीके से करूँ जैसा वह चाहता है। मगर मेरे आगे एक रुकावट थी।
उस वक्त मैं शादी किए बिना एक आदमी के साथ रहती थी, जो मेरे छः बच्चों में से तीन का पिता था। मगर जब मैंने बाइबल से सीखा कि जिस व्यक्ति से आपकी शादी नहीं हुई है, उसके साथ लैंगिक संबंध रखना परमेश्वर की नज़र में पाप है, तो मेरा ज़मीर मुझे धिक्कारने लगा। (नीतिवचन 5:15-20; गलतियों 5:19) और जैसे-जैसे सच्चाई के लिए मेरा प्यार बढ़ने लगा, तो परमेश्वर के कानूनों के मुताबिक अपनी ज़िंदगी को बदलने की मेरी इच्छा और ज़ोर पकड़ने लगी। आखिरकार मैंने एक फैसला लिया। जिस आदमी के साथ मैं रहती थी, उसे मैंने बताया कि अगर आप चाहते हैं कि हम साथ-साथ रहें तो हमें कानूनी तौर पर शादी करनी होगी, वरना आज के बाद हम साथ में नहीं रह सकते। हालाँकि उसे मेरे धार्मिक विश्वास मंजूर नहीं थे, फिर भी वह शादी के लिए राज़ी हो गया। अगस्त 15, 1970 को, यानी साक्षियों से मेरी पहली मुलाकात के पाँच साल बाद हमने कानूनी तौर पर शादी कर ली। सन् 1970 के दिसंबर में, मैंने पानी में बपतिस्मा लेकर यहोवा को किया अपना समर्पण ज़ाहिर किया।
मैं अपने प्रचार का पहला दिन कभी भूल नहीं सकती। मैं बहुत घबरायी हुई थी क्योंकि मुझे पता नहीं था कि दूसरों के साथ बाइबल पर बातचीत कैसे शुरू करते हैं। इसलिए जब पहले घर-मालिक ने झट-से बातचीत खत्म कर दी तो मैंने चैन की साँस ली। मगर प्रचार करते-करते थोड़ी देर में मेरा डर दूर हो गया। उस दिन प्रचार से लौटते वक्त मेरा मन खुशी से उछल रहा था क्योंकि मैंने कई लोगों को बाइबल की चंद बातें बतायी थीं और उन्हें हमारे बाइबल साहित्य दिए थे।
परिवार की आध्यात्मिकता को मज़बूत रखना
सन् 1977 तक हमारे आठ बच्चे हो गए थे। मैंने ठान लिया था कि मैं अपने बच्चों को यहोवा के सेवक बनने में पूरी-पूरी मदद दूँगी। (यहोशू 24:15) इसलिए परिवार के साथ नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की। कभी-कभी तो मैं थककर इतनी चूर हो जाती थी कि अध्ययन के वक्त जब एक बच्चा पैराग्राफ पढ़ रहा होता तो मेरी आँख लग जाती और फिर बच्चे मुझे नींद से जगाते थे। मगर हम चाहे कितने ही थके क्यों न हों, पारिवारिक अध्ययन कभी नहीं छोड़ते थे।
मैं हमेशा अपने बच्चों के साथ प्रार्थना भी करती थी। और जब वे थोड़े बड़े हो गए तो मैंने उन्हें सिखाया कि वे अपने आप यहोवा से प्रार्थना कैसे कर सकते हैं। मैं इस बात का ध्यान रखती थी कि हर बच्चा सोने से पहले यहोवा से प्रार्थना ज़रूर करे। और जो छोटे बच्चे प्रार्थना करना नहीं जानते थे, उनमें से हरेक के साथ मैं अलग से प्रार्थना करती थी।
शुरू में मेरे पति ने मुझे बच्चों को अपने साथ कलीसिया की सभाओं में ले जाने से मना किया। मगर बाद में उन्होंने विरोध करना कम कर दिया, यह सोचकर कि मेरी गैर-हाज़िरी में उन्हें अकेले बच्चों की देखभाल करनी पड़ेगी। शाम के वक्त उन्हें अपने दोस्तों के यहाँ जाने का बहुत शौक था, मगर मेरे सभा में जाने पर आठों बच्चों को अपने साथ ले जाने की बात उन्हें रास नहीं आयी! बाद में वे बच्चों को सभा के लिए तैयार करने में मेरी मदद भी करने लगे।
जल्द ही बच्चों ने कलीसिया की हर सभा में हाज़िर होने और प्रचार में हिस्सा लेने की अच्छी आदत बना ली। गर्मियों की छुट्टियों में वे अकसर कलीसिया के पायनियरों यानी पूरे समय के सेवकों के साथ प्रचार में जाते थे। इससे मेरे छोटे बच्चों के दिल में कलीसिया के भाई-बहनों और प्रचार काम के लिए सच्चा प्यार बढ़ने लगा।—मत्ती 24:14.
परीक्षा की घड़ियाँ
परिवार की माली हालत सुधारने के लिए मेरे पति विदेश जाकर काम करने लगे। वे ज़्यादातर समय विदेश में रहते थे और समय-समय पर हमसे मिलने आया करते थे। मगर सन् 1989 में हमसे मिलने के बाद, वे दोबारा कभी घर नहीं लौटे। जैसे मैंने पहले बताया था, जब वे हमें छोड़कर चले गए तो मैं पूरी तरह टूट गयी थी। कई दिनों तक मैं रात को रोती रहती और यहोवा से हिम्मत और तसल्ली के लिए गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करती थी। मैं देख सकती थी कि यहोवा ने मेरी दुआओं का जवाब दिया। यशायाह 54:4 और 1 कुरिन्थियों 7:15 जैसी आयतों ने मुझे मन का सुकून और जीने का हौसला दिया। साथ ही, मसीही कलीसिया में मेरे जो रिश्तेदार और दोस्त थे, उन्होंने मेरा ढाढ़स बँधाया और माली तौर पर मेरी मदद की। मैं यहोवा और उसके लोगों से मिली मदद के लिए बहुत एहसानमंद हूँ।
हमारे आगे और भी कुछ परीक्षाएँ आयीं। मेरी एक बेटी को गलत काम करने की वजह से कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया गया। मैं अपने सभी बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ, मगर मेरी वफादारी सबसे पहले यहोवा की तरफ बनती है। इसलिए उस दौरान, मैंने और बाकी बच्चों ने बाइबल की सलाह को सख्ती से माना और उसके साथ वैसे ही पेश आए जैसे एक बहिष्कृत व्यक्ति के साथ पेश आना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 5:11, 13) इस वजह से हमें उन लोगों के कई ताने सहने पड़े जो हमारे मसीही विश्वास को नहीं समझते थे। मगर बाद में जब मेरी बेटी को कलीसिया में बहाल किया गया तो उसके पति ने, जो साक्षी नहीं था, मुझे बताया कि हमें बाइबल के सिद्धांतों पर डटा देखकर वह कायल हो गया था। आज मेरा यह दामाद अपने पूरे परिवार के साथ यहोवा की सेवा कर रहा है।
पैसे की तंगी झेलना
जब मेरे पति ने हमें छोड़ दिया, तब उनकी तरफ से हमें पैसे मिलने बंद हो गए। अब हमारे पास आमदनी का कोई पक्का ज़रिया नहीं था। ऐसे हालात में हमने खाने-पहनने की ज़रूरी चीज़ों में गुज़ारा करके खुश रहना और पैसे के पीछे भागने के बजाय आध्यात्मिक धन को अहमियत देना सीखा। बच्चों ने भी आपस में प्यार से रहना और एक-दूसरे की मदद करना सीखा जिससे वे एक-दूसरे के और करीब आए। जब बड़े बच्चे नौकरी करने लगे तो उन्होंने खुशी-खुशी अपने छोटे भाई-बहनों की मदद की। मेरी सबसे बड़ी बेटी मॉरसेरी ने अपनी छोटी बहन नीकोल को सेकन्डरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने में मदद दी। इसके अलावा, मैं एक पंसारी की छोटी-सी दुकान भी चलाती थी। हमें जो थोड़ा-बहुत पैसा मिलता, उससे मैं परिवार की कुछ ज़रूरतें पूरी कर पाती थी।
यहोवा ने हमें कभी बेसहारा नहीं छोड़ा। एक बार जब मैंने एक मसीही बहन को बताया कि हमारे पास ज़िला अधिवेशन जाने के लिए पैसे नहीं हैं, तो उसने कहा: “बहन वैल, जैसे ही आपको अधिवेशन की खबर मिलती है, तो जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीजिए! बाकी सब बंदोबस्त यहोवा कर देगा।” मैंने उस बहन की बात मानी और वैसा ही किया। वाकई, यहोवा ने हमारे लिए बंदोबस्त किया और आज तक भी कर रहा है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैसे की कमी की वजह से हम सम्मेलन या अधिवेशन में जाने से चूके हों।
सन् 1988 में हरीकेन गिल्बर्ट नाम के तूफान ने जमैका में बड़ी तबाही मचायी। उस वक्त हमें अपना घर छोड़कर पनाह के लिए कहीं और जाना पड़ा। जब तूफान कुछ देर के लिए शांत हुआ तो मैं अपने बेटे के साथ अपने टूटे-फूटे घर को देखने गयी। वहाँ मलबे में छानबीन करते वक्त मैंने एक चीज़ देखी और उसे निकालने लगी। तभी अचानक तेज़ आँधी की आवाज़ सुनाई पड़ी, फिर भी मैं उस चीज़ को छोड़ना नहीं चाहती थी। तब मेरे बेटे ने कहा: “माँ, क्या तुम लूत की पत्नी की तरह बनना चाहती हो? छोड़ो टी.वी. को और भागो यहाँ से!” (लूका 17:31, 32) मेरे बेटे की उस बात ने मुझे हिला दिया और मैंने पानी से तर टी.वी. को वहीं छोड़ा और उसके साथ जान बचाकर भाग गयी।
आज भी जब मुझे वह मंज़र याद आता है कि कैसे मैं एक टी.वी. के लिए अपनी जान खतरे में डालने पर थी, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मगर उस वक्त मेरे बेटे ने जो कहा था, वह याद करके मुझे बड़ी खुशी होती है क्योंकि उससे यही पता चलता है कि वह आध्यात्मिक मायने में कितना सतर्क था। मैं मसीही कलीसिया की बहुत एहसानमंद हूँ क्योंकि यहाँ बाइबल से मिलनेवाली तालीम की बदौलत ही मेरे बेटे ने मुझे उस नाज़ुक घड़ी को समझने में मदद की, वरना मेरी जान को खतरा होता और शायद आध्यात्मिक नुकसान भी होता।
तूफान ने हमारे घर और सारी चीज़ों को तहस-नहस कर दिया था, इसलिए हम बहुत निराश हो गए थे। मगर इस मुसीबत की घड़ी में मसीही भाइयों ने आकर हमारी मदद की। उन्होंने यह कहकर हमारी हिम्मत बँधायी कि हम यहोवा पर भरोसा रखें, और हमेशा की तरह प्रचार काम जोश के साथ करते रहें। जमैका और दूसरे देशों से आए भाइयों ने हमारा घर दोबारा खड़ा किया। उन स्वयंसेवकों का प्यार और उनकी त्याग की भावना हम कभी भूल नहीं सकते।
यहोवा को ज़िंदगी में पहली जगह देना
मेरी बेटी मीलेन अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद नौकरी के साथ-साथ पायनियर सेवा करने लगी। कुछ वक्त बाद, जब उसे एक दूसरी कलीसिया में पायनियर सेवा करने का न्यौता मिला तो उसने कबूल किया। इसलिए उसे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। हालाँकि मीलेन की आमदनी से घर का काफी खर्च पूरा होता था, फिर भी हमें चिंता नहीं हुई क्योंकि हमें यहोवा पर भरोसा था कि अगर हममें से हरेक जन उसके राज्य को पहली जगह देगा तो यकीनन वह हमारी ज़रूरतों का खयाल रखेगा। (मत्ती 6:33) बाद में, मेरे बेटे यूअन को भी पायनियर सेवा करने का न्यौता मिला। वह भी घर चलाने में मदद देता था, मगर हमने उसे बढ़ावा दिया कि वह इस न्यौते को कबूल करे और शुभकामना दी कि यहोवा उसे आशीष दे। मैंने कभी-भी अपने बच्चों को राज्य के कामों के लिए आगे बढ़ने से नहीं रोका। और घर में बचे हम बाकी लोगों को कभी किसी चीज़ का मोहताज नहीं होना पड़ा। इसके बजाय, हमारी खुशियाँ बढ़ती गयीं, और कभी-कभी हम भी दूसरे ज़रूरतमंद भाइयों की मदद कर पाए।
आज यह देखकर मेरा दिल खुशी से झूम उठता है कि मेरे सभी बच्चे ‘सत्य पर चल रहे हैं।’ (3 यूहन्ना 4) मीलेन सफरी काम में अपने पति का साथ दे रही है जो एक सर्किट अध्यक्ष है। मेरी एक और बेटी ऐन्ड्रिया अपने पति के साथ खास पायनियर सेवा कर रही है। और कभी-कभी जब सर्किट अध्यक्ष के बदले उसका पति कलीसियाओं का दौरा करता है तो वह भी उसके साथ जाती है। यूअन और उसकी पत्नी खास पायनियर हैं और वह कलीसिया में प्राचीन है। मेरी एक और बेटी एवॉ-गे अपने पति के साथ जमैका में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में सेवा कर रही है। मेरी दूसरी बेटियाँ जेनीफर, जेनीव और नीकोल अपने-अपने पति और बच्चों के साथ अपनी कलीसियाओं में जोशीले प्रचारक हैं। मेरी बेटी मॉरसेरी मेरे साथ रहती है। हम दोनों पोर्ट मरेन्ट कलीसिया के सदस्य हैं। आज मेरा दामन खुशियों से भरा हुआ है, क्योंकि मेरे आठों बच्चे यहोवा की सेवा कर रहे हैं।
आज ढलती उम्र की वजह से मैं बहुत कमज़ोर हो गयी हूँ। मेरे जोड़ों में दर्द (गठिया) रहता है, फिर भी मुझे पायनियर सेवा से बहुत खुशी मिलती है। मगर कुछ समय से मेरे लिए पैदल चलना मुश्किल हो गया है क्योंकि जहाँ मैं रहती हूँ वह एक पहाड़ी इलाका है। इसलिए प्रचार के लिए जाने में मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मैंने साइकल चलाकर देखी और मुझे लगा कि यह पैदल चलने से ज़्यादा आसान है, इसलिए मैंने एक पुरानी साइकल खरीदी और चलाने लगी। पहले-पहल मेरे बच्चों को यह देखकर बहुत दुःख होता था कि गठिया होने के बावजूद माँ साइकल चला रही है। मगर, प्रचार में मेरी लगन देखकर उन्हें बड़ी खुशी हुई।
मैं जिन लोगों को बाइबल सिखाती हूँ उन्हें सच्चाई को अपनाते देखकर मैं फूली नहीं समाती। मैं हमेशा यहोवा से यही बिनती करती हूँ कि वह मेरे परिवार के सभी लोगों की मदद करे ताकि वे इन अन्तिम दिनों के दौरान और हमेशा-हमेशा तक उसके वफादार बने रहें। “प्रार्थना के सुननेवाले” महान परमेश्वर यहोवा की मैं स्तुति और धन्यवाद करती हूँ, क्योंकि उसी की मदद से मैं तमाम मुश्किलों को पार करते हुए उसके मार्ग में अपने आठ बच्चों की परवरिश कर पायी हूँ।—भजन 65:2.
[पेज 10 पर तसवीर]
अपने बेटे, बहू, बेटियों, दामादों और उनके बच्चों के साथ
[पेज 12 पर तसवीर]
अब मैं साइकल से प्रचार में जाती हूँ