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प्रश्‍न पेटी

● यह सलाह किस लिए दी गयी है कि प्रचारक उसी मण्डली के साथ कार्य करें, जिसके पास वह क्षेत्र है जहाँ प्रचारक रहते हैं?

एक सुव्यवस्थित और ईश्‍वर-शासित रीति से कार्य करना महत्त्वपूर्ण है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “क्योंकि परमेश्‍वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है। . . . सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएँ।”—१ कुरि. १४:३३, ४०.

जब कि परिवहन की कठिनाइयों, नौकरी के अनुसूचित समय या अध्यक्षता में सहायता की ज़रूरत की वजह से कुछेक अपवाद होंगे, आम तौर से उसी मण्डली में जाना सबसे अच्छा होगा, जिसके क्षेत्र में हम रह रहे हैं। इस से क्षेत्र सेवा ज़्यादा सुविधाजनक होती है, और हमें अपने पड़ोस से इतने दूर जाकर किसी ग्रूप के साथ कार्य करने के लिए सफ़र करना नहीं पड़ता है। यह हमें हमारी मण्डली में अन्य लोगों के साथ कार्य करने और नए रूप से दिलचस्पी रखनेवालों को उनके लिए सबसे सुविधाजनक सभाओं में निर्दिष्ट करने के लिए एक बेहतर स्थिति में रखता है। और यह हमारे इलाके में रहनेवाले अन्य भाई-बहनों के साथ नज़दीक़ी संपर्क में रखता है, जो हमारे ज़रूरत के समय में हमारी मदद कर सकेंगे।

हमें स्वतंत्रता की मनोवृत्ति से बचे रहना चाहिए और राज्य के हितों को प्रथम स्थान पर रखना चाहिए, और जो व्यवस्थाएँ बनायी गयी हैं, उनके दायरे में कार्य करते रहना चाहिए। (लूका १६:१०) जब कोई नयी मण्डली बनायी जाती है या जब मण्डली के पुस्तक अध्ययन पुनः व्यवस्थित किए जाएँ, तब हम शायद कुछेक मित्रों के साथ रहना पसंद करेंगे। लेकिन नयी व्यवस्था को स्वीकार करने के द्वारा, हम नए मित्र बना सकते हैं और अपने ईश्‍वर-शासित संबंधों को बढ़ा सकते हैं। और, जब प्रचारक उसी मण्डली के क्षेत्र में रहते हैं, जिस में वे संघटित होते हैं, तब झुण्ड की रखवाली करना और मण्डली की आध्यात्मिक अवस्था सुधारना प्राचीनों के लिए ज़्यादा आसान होता है।

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