बहुत दिया गया है—बहुत माँगा गया है
हम कितने अनुग्रह-प्राप्त हैं कि हमारे पास सच्चाई है! यहोवा के प्रति हमारे समर्पण की वजह से हमें “सुसमाचार सौंपा” गया है। (१ थिस्स. २:४) यह हम पर और अधिक ज़िम्मेदारी लाता है। यीशु ने कहा: “जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत मांगा जाएगा।”—लूका १२:४८ख.
२ ये शब्द कितने सही हैं! चूँकि हम सब परमेश्वर के वचन के ज्ञान से, भाइयों की उत्कृष्ट संगति से, और एक अद्भुत आशा से आशीष-प्राप्त हैं, वस्तुतः यह कहा जा सकता है कि हमें बहुत दिया गया है। उचित रूप से, बदले में बहुत की अपेक्षा की जाती है।
३ माँगों के प्रति सही दृष्टिकोण बनाए रखिए: कुछ लोगों ने निष्कर्ष निकाला है कि हम से बहुत ज़्यादा की अपेक्षा की जाती है। मसीही कलीसिया के सिर के रूप में यीशु मसीह तय करता है कि इसे सही रीति से चलाने के लिए ‘किस चीज़ की ज़रूरत है।’ (इफि. ४:१५, १६, NW) वह हमें यक़ीन दिलाता है कि ‘उसका जूआ सहज और उसका बोझ हलका है।’ (मत्ती ११:२८-३०) जिनकी कमियाँ हैं उनको वह प्रेमपूर्वक कुछ छूट देता है। (लूका २१:१-४) यदि हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे, चाहे हम जितना भी करें, हमें आशीष दी जाएगी।—कुलु. ३:२३, २४.
४ अपने-आप से पूछिए, ‘क्या राज्य हित मेरे जीवन में पहले स्थान पर हैं? क्या मैं अपने समय और अपनी संपत्ति का इस प्रकार प्रयोग कर रहा हूँ जिससे परमेश्वर के नाम की स्तुति और दूसरों का फ़ायदा हो? क्या मैं यह पाता हूँ कि भौतिक चीज़ों का स्वार्थी आनन्द लेने के बजाय मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी यहोवा की सेवा करने में मिलती है?’ इन प्रश्नों के हमारे निष्कपट उत्तर हमारे हृदय के उद्देश्यों को प्रकट करेंगे।—लूका ६:४५.
५ ग़लत कार्य करने के लिए प्रलोभित होने से दूर रहिए: आत्महित, लोभ, और कामुक सुखविलास के प्रेम के ऐसे प्रलोभन और दबाव पहले कभी नहीं रहे हैं। हर दिन हम नैतिक चुनौतियों का और समझौता करने के प्रलोभनों का सामना करते हैं। इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए हमें यहोवा से मदद माँगनी चाहिए। (मत्ती २६:४१) अपनी आत्मा के ज़रिए, वह हमें दृढ़ कर सकता है। (यशा. ४०:२९) परमेश्वर के वचन को रोज़ पढ़ने से भी काफ़ी मदद हासिल होती है। (भज. १:२, ३) आत्म-अनुशासन और आत्म-नियंत्रण भी एक अहम भूमिका निभाते हैं।—१ कुरि. ९:२७.
६ जो भला है उसे प्रेम करना ही काफ़ी नहीं है—लेकिन जो बुरा है उससे हमें घृणा भी करनी चाहिए। (भज. ९७:१०) इसका अर्थ है कि उन बातों के लिए लालसा विकसित न करना जो बुरी हैं। नीतिवचन ६:१६-१९ सात बातों की सूची देता है जिनसे यहोवा घृणा करता है। स्पष्टतः, जो व्यक्ति यहोवा को ख़ुश करना चाहता है उसे ऐसी बातों से घृणा करनी चाहिए। सच्चाई के यथार्थ ज्ञान की आशीष प्राप्त होने की वजह से, अच्छी बातों पर अपना मन लगाए रखते हुए, हममें उस ज्ञान के अनुसार कार्य करने की इच्छा होनी चाहिए।
७ ऐसी परिस्थितियों के लिए प्रार्थना करना उचित होगा जो ‘प्रभु के काम में हमेशा अत्यधिक रूप से व्यस्त रहने’ के लिए अनुकूल हैं। (१ कुरि. १५:५८, NW) अनेक व्यक्तियों ने पाया है कि यहोवा की सेवा में व्यस्त समय-सारणी एक सुरक्षा है क्योंकि यह बेकार चीज़ों के पीछे दौड़ने के लिए हमें बहुत कम समय देती है।
८ सब बातों पर विचार करने के बाद, यहोवा जो हम से माँग करता है वह बिलकुल उचित है। (मीका ६:८) सेवा के हर विशेषाधिकार के लिए आभारी होने का हमारे पास हर कारण है। (इफि. ५:२०) इसलिए हम ‘परिश्रम और यत्न करते रहते हैं,’ विश्वस्त होकर कि हमारा प्रतिफल हम से माँग की गई किसी भी बात से असंख्य गुणा बेहतर होगा।—१ तीमु. ४:१०.