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हमारी राज-सेवा—1996
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सितम्बर के लिए सेवा सभाएँ

सितम्बर २ से आरम्भ होनेवाला सप्ताह

गीत ९८ (९१)

१२ मि: स्थानीय घोषणाएँ। हमारी राज्य सेवकाई से चुनी हुई घोषणाएँ। प्रत्येक व्यक्‍ति को, और विशेषकर कलीसिया पुस्तक अध्ययन संचालकों को, अप्रैल १९९३ की हमारी राज्य सेवकाई लेख “वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो जीवित रहा का अध्ययन करना” पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित कीजिए। लेख के मुख्य मुद्दों को विशिष्ट कीजिए।

१५ मि:“विश्‍वास से चलिए।” सवाल और जवाब।

१८ मि:“सुसमाचार को सकारात्मक मनोवृत्ति से प्रस्तुत करना।” अनुच्छेद १ पर आधारित शुरूआत की टिप्पणियाँ कीजिए। समझाइए कि पारिवारिक जीवन पुस्तक की वैकल्पिक प्रस्तुति के तौर पर, सर्वदा जीवित रहना या सृष्टि पुस्तकें प्रयोग की जा सकती हैं, लेकिन जब तक कलीसिया के पास पारिवारिक पुस्तकें उपलब्ध हैं, इन्हें पहले प्रयोग किया जाना चाहिए। उसके बाद इस लेख के अनुच्छेद २-५ पर चर्चा कीजिए। अच्छी तरह तैयार की गयी प्रस्तुतियाँ प्रदर्शित कीजिए जो दिखाएँ कि पारिवारिक पुस्तक कैसे पेश करें, एक पुनःभेंट, और ज्ञान पुस्तक से एक अध्ययन आरम्भ कैसे करें।

गीत ४८ (२८) और समाप्ति प्रार्थना।

सितम्बर ९ से शुरू होनेवाला सप्ताह

गीत १८ (३६)

१२ मि:स्थानीय घोषणाएँ। लेखा रिपोर्ट। “राज्य का प्रचार कीजिए” पर चर्चा कीजिए।

१८ मि:कलीसिया की १९९६ सेवा वर्ष रिपोर्ट पर पुनर्विचार कीजिए। सेवा ओवरसियर द्वारा एक प्रोत्साहक, जोशपूर्ण भाषण। (हमारी सेवकाई पुस्तक देखिए, पृष्ठ १००-२.) बताइए कि कलीसिया ने कहाँ अच्छा किया, और प्रशंसा कीजिए। दिखाइए कि कैसे नियमित और सहायक पायनियरों की गतिविधि ने स्थानीय रूप से कार्य को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए काफ़ी कुछ किया है। नियमित उपस्थिति के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए, सभा उपस्थिति के आँकड़ों का उल्लेख कीजिए। उन व्यावहारिक लक्ष्यों के बारे में बताइए जिन्हें आनेवाले साल में कलीसिया प्राप्त करने का प्रयास कर सकती है।

१५ मि:“सुसमाचार को सकारात्मक मनोवृत्ति से प्रस्तुत करना।” केवल अनुच्छेद ६-८ पर चर्चा कीजिए, और पहली भेंट और पुनःभेंट दोनों के लिए दुकान-दुकान प्रस्तुतियों को प्रदर्शित कीजिए। (व्यापार क्षेत्र में कार्य करने पर अतिरिक्‍त सुझावों के लिए अक्‍तूबर १९८९ की हमारी राज्य सेवकाई, अंग्रेज़ी, पृष्ठ ४ देखिए।) सभी को प्रोत्साहित कीजिए कि अपनी पुनःभेंटें तत्काल करें।

गीत १२३ (६३) और समाप्ति प्रार्थना।

सितम्बर १६ से आरम्भ होनेवाला सप्ताह

गीत १० (१८)

१५ मि:स्थानीय घोषणाएँ। श्रोतागण के साथ प्रश्‍न बक्स पर चर्चा कीजिए। स्कूल गाइडबुक (अंग्रेज़ी) के अध्ययन ६ से एक या दो मुद्दों को संक्षिप्त रूप से जोड़िए।

१५ मि:“बातचीत और चालचलन में एक आदर्श बनिए।” सवाल और जवाब।

१५ मि:स्कूल में मसीही आचरण। स्कूल के वातावरण में गंभीर फंदे दिखाने के लिए पिता अपने बेटे या बेटी से बात करता है; वह संगति पर नज़र रखने और संदेहास्पद गतिविधियों से दूर रहने की ज़रूरत पर ज़ोर देता है। वह शिक्षा (अंग्रेज़ी) ब्रोशर में पृष्ठ २४ के बक्स पर पुनर्विचार करता है और एक साक्षी के तौर पर एक अच्छा उदाहरण रखने की ज़रूरत को समझाता है। पिता कुछ प्रलोभनों का ज़िक्र करता है जो नशीली दवाओं का प्रयोग करने, डेटिंग, पार्टियों में जाने, या खेल-कूद में भाग लेने के सम्बन्ध में उठते हैं; वे चर्चा करते हैं कि समस्याओं को कैसे टाला जाए। पिता युवा को प्रोत्साहित करता है कि जब उसे समस्याएँ आती हैं तो उसे बताने में देर न करे—वह जानना और सहायता करना चाहता है।

गीत ३२ (१०) और समाप्ति प्रार्थना।

सितम्बर २३ से आरम्भ होनेवाला सप्ताह

गीत २१ (१)

१० मि:स्थानीय घोषणाएँ।

१५ मि:स्थानीय ज़रूरतें। या प्रहरीदुर्ग, फरवरी १५, १९९६, पृष्ठ २७-९ में “जो आप देखते हैं उन बातों के आगे देखिए!” पर आधारित भाषण।

२० मि:“१९९६ ‘ईश्‍वरीय शान्ति के सन्देशवाहक’ ज़िला अधिवेशन।” अनुच्छेद १-१६ पर सवाल-और-जवाब से चर्चा कीजिए। अनुच्छेद १०-११ और १५ पढ़िए।

गीत २१५ (११७) और समाप्ति प्रार्थना।

सितम्बर ३० से आरम्भ होनेवाला सप्ताह

गीत १७१ (५९)

१० मि:स्थानीय घोषणाएँ।

२० मि:“१९९६ ‘ईश्‍वरीय शान्ति के सन्देशवाहक’ ज़िला अधिवेशन।” अनुच्छेद १७-२३ की सवाल-और-जवाब से चर्चा। अनुच्छेद १७-१८ पढ़िए। “ज़िला अधिवेशन अनुस्मारकों” पर पुनर्विचार कीजिए।

१५ मि:अक्‍तूबर के लिए साहित्य भेंट पर पुनर्विचार कीजिए। हम प्रहरीदुर्ग और अवेक! पत्रिकाओं के लिए अभिदान पेश करेंगे। विभिन्‍न मुद्दों पर चर्चा कीजिए, जैसे कि: (१) उद्देश्‍य जिसके लिए ये पत्रिकाएँ प्रकाशित की जाती हैं, जो शुरूआत के पन्‍नों में समझाया गया है। (२) ये अनेक भाषाओं में प्रकाशित होती हैं, जिससे संसार-भर में बाइबल ज्ञान उपलब्ध होता है। (३) प्रहरीदुर्ग व्यक्‍तिगत, पारिवारिक, और सामूहिक अध्ययन के लिए बनायी गयी है। (४) अनेक भिन्‍न धर्मों से जुड़े हुए लोग इन्हें पढ़ते हैं। (५) हम व्यक्‍तिगत रूप से नवीनतम अंकों को ऐसे किसी भी व्यक्‍ति तक पहुँचाएँगे जो सच्चे दिल से उन्हें पढ़ना चाहता है, लेकिन जो एक अभिदान करने में समर्थ नहीं है। (६) वे ख़ासकर व्यस्त लोगों के लिए बनायी गयी हैं। (७) प्रहरीदुर्ग १८७९ से प्रकाशित होती रही है; अवेक! १९१९ से। (८) हमारा एक स्वयंसेवी, शैक्षिक कार्य है, न कि एक वाणिज्यिक व्यापार। इसीलिए, इन पत्रिकाओं के लिए लिया गया चंदा बहुत ही यथोचित है। एक क़दरदान पाठक द्वारा की गयी टिप्पणियाँ बताने से समाप्त कीजिए।—नवम्बर १, १९८६, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ ३२ देखिए।

गीत ३ (३३) और समाप्ति प्रार्थना।

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