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हमारी राज-सेवा—1996
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राज्य का प्रचार कीजिए

इब्रानियों १०:२३ में, हमसे आग्रह किया गया है कि “अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें।” और हमारी आशा परमेश्‍वर के राज्य पर केन्द्रित है। यीशु ने सुस्पष्ट रूप से आज्ञा दी कि राज्य का यह सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाना है। (मर. १३:१०) अपनी सेवकाई में भाग लेते वक़्त हमें यह बात ध्यान में रखने की ज़रूरत है।

२ जब हम लोगों से सम्पर्क करते हैं, हम किसी ऐसे विषय पर बातचीत शुरू करने की कोशिश करते हैं जो उनके लिए रुचिकर या महत्त्वपूर्ण हो। सामान्यतः हम ऐसी बातों का ज़िक्र करते हैं जिनसे वे भली-भाँति परिचित हैं, जैसे कि पड़ोस में अपराध, युवा लोगों की समस्याएँ, जीविका कमाने के बारे में चिन्ताएँ, या सांसारिक मामलों में कोई संकट-स्थिति। क्योंकि अधिकांश लोगों के मन इन “जीवन की चिन्ताओं” पर केन्द्रित हैं, जब हम दिखाते हैं कि हम चिन्तित हैं और उन्हें समझते हैं, तो लोग अकसर वह व्यक्‍त करेंगे जो उनके मन में है। (लूका २१:३४) यह शायद अपनी आशा को बाँटने के लिए हमारे लिए रास्ता खोल दे।

३ लेकिन, अगर हम सावधान नहीं हैं तो बातचीत केवल नकारात्मक बातों पर इस हद तक हो सकती है कि हम अपनी भेंट के उद्देश्‍य—राज्य संदेश का प्रचार करना—को पूरा करने से चूक जाते हैं। हालाँकि हम बुरी परिस्थितियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं जो इतनी कष्टदायक हैं, हमारा लक्ष्य है राज्य की ओर ध्यान आकर्षित करना, जो आख़िरकार मानवजाति की सभी समस्याओं का समाधान करेगा। हमारे पास सचमुच एक अद्‌भुत आशा है जिसे सुनना लोगों के लिए बहुत ही ज़रूरी है। सो जबकि हम शायद पहले इस “कठिन समय” के किसी पहलू पर चर्चा करें, हमें जल्द ही अपने मुख्य संदेश, “सनातन सुसमाचार” पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। इस तरीक़े से हम अपनी सेवकाई को पूरा करेंगे।—२ तीमु. ३:१; ४:५; प्रका. १४:६.

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