हमेशा सभाओं में उपस्थित होना कितना भला है!
पाबंदी की वज़ह से कई सालों तक पूर्वी यूरोप में हमारे भाई खुलेआम सभाएँ नहीं कर पाते थे। मगर जब पाबंदी हटा दी गई, आप ज़रा अंदाज़ा लगाइये कि भाइयों को कितनी खुशी हुई होगी क्योंकि अब वे एक-दूसरे के साथ आज़ादी से मिल सकते थे!
२ एक सर्किट-ओवरसियर ने ऐसी ही एक कलीसिया में अपनी विज़िट के बारे में लिखा: “मंगलवार की शाम को मैंने विज़िट शुरू की और शुरूआत में ही हॉल को गर्म रखनेवाला सिस्टम खराब हो गया। बाहर का तापमान जमा देनेवाला था और अंदर का तापमान पाँच डिग्री सेंटीग्रेड के लगभग था। भाई-बहनों ने कोट, स्कार्फ, दस्ताने, टोपियाँ और बूट पहने हुए थे। उनमें से किसी से भी बाइबल साथ-साथ नहीं पढ़ी जा रही थी क्योंकि पेजों को पलटना नामुमकिन था। मैं मंच पर सूट पहने खड़ा था मगर फिर भी मेरा शरीर ठंड से अकड़ा जा रहा था और बोलते समय मैं अपनी साँसों को देख सकता था। मगर जिस बात ने मुझ पर असर किया वह यह थी कि इतने खराब माहौल के बावजूद एक ने भी शिकायत में चूँ तक नहीं की। और सब भाई कह रहे थे कि सभा में हाज़िर होने में हमें बड़ा मज़ा आया और बहुत खुशी हुई!” वे भाई उस सभा में गैरहाज़िर होने की बात सोच भी नहीं सकते थे!
३ क्या हम भी उनकी तरह सोचते हैं? क्या हम हर हफ्ते सभाओं में आज़ादी से मिलने के मौके की कदर करते हैं? या क्या हम अच्छे हालात के बावजूद सभाओं को कम महत्त्व देते हैं? सभाओं में नियमित रूप से हाज़िर होना शायद आसान न हो या शायद कभी गैरहाज़िर होने के हमारे पास सही कारण भी हों। मगर यह कभी मत भूलिए कि हमारे बीच ऐसे जन भी हैं जिनकी उम्र ज़्यादा है, सेहत बहुत खराब है, अपंग हैं, बहुत ज़्यादा व्यस्त हैं या दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारियाँ हैं मगर फिर भी लगभग सभी लोग सभाओं की अहमियत को देखते हुए हमेशा हाज़िर होते हैं। नकल करने के लिए हमारे पास ये कितने अच्छे उदाहरण हैं!—लूका २:३७ से तुलना कीजिए।
४ चलिए आज से ही सभी सभाओं में हाज़िर होने की अपनी एक आदत बना लें जो सच्ची उपासना को बढ़ावा दे, चाहे वह कलीसिया पुस्तक अध्ययन जैसी छोटी सभा हो या बड़े सम्मेलन और अधिवेशन हों। हमें सभाओं में उपस्थित होने की बात को गंभीरता से क्यों लेना चाहिए? क्योंकि यह परमेश्वर की आज्ञा है कि हम एक-साथ एक-दूसरे से मिला करें। मगर यहाँ कुछ खास कारण भी हैं। हम सभी को परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद और उसके मार्गदर्शन की ज़रूरत है जो हमें सभाओं में मिलते हैं। (मत्ती १८:२०) जब हम सभाओं में संगी विश्वासियों से मिलते हैं और आपस में एक दूसरे के मूल्यवान विश्वास से प्रोत्साहित होते हैं तब हमारी तरक्की होती है।—इब्रा. १०:२४, २५.
५ यीशु के रूपांतरण के समय पतरस ने कहा: “हे स्वामी, हमारा यहां रहना भला है।” (लूका ९:३३) हमें भी अपनी सभी सभाओं के बारे में ऐसा ही महसूस करना चाहिए। वाकई हमेशा सभाओं में उपस्थित होना कितना भला है!