मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
7-13 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 21-22
“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”
“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”
15 जब पौलुस, फिलिप्पुस के घर ठहरा हुआ है तो उनके यहाँ एक और मेहमान आता है जिसका मसीहियों के बीच काफी मान-सम्मान है। वह है, अगबुस। फिलिप्पुस के घर ठहरे सब लोग जानते हैं कि वह एक नबी है। उसने सम्राट क्लौदियुस के दिनों में भविष्यवाणी की थी कि एक बड़ा अकाल पड़ेगा और ऐसा ही हुआ। (प्रेषि. 11:27, 28) इसलिए अब हर किसी के मन में शायद यह सवाल उठ रहा है, ‘अगबुस यहाँ क्यों आया है? वह हमें क्या संदेश देना चाहता है?’ वे बिना पलक झपकाए अगबुस को देखते रहते हैं। अगबुस पौलुस का कमर-बंध लेता है और उससे अपने हाथ-पैर बाँध लेता है। कमर-बंध एक लंबा कपड़ा होता था जिसे लोग अपनी कमर पर बाँधते थे और उसमें पैसा और दूसरी चीज़ें रखते थे। कमर-बंध से अपने हाथ-पैर बाँधने के बाद अगबुस बोलना शुरू करता है। उसका संदेश काफी गंभीर है। वह कहता है: “पवित्र शक्ति यह कहती है, ‘जिस आदमी का यह कमर-बंध है, उसे यहूदी इसी तरीके से यरूशलेम में बाँधेंगे और दूसरी जातियों के लोगों के हवाले कर देंगे।’”—प्रेषि. 21:11.
16 इस भविष्यवाणी से पुख्ता हो जाता है कि पौलुस यरूशलेम ज़रूर जाएगा। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि जब वह यरूशलेम के यहूदियों को प्रचार करेगा तो वे उसे “दूसरी जातियों के लोगों के हवाले” कर देंगे। जब वहाँ मौजूद भाई-बहन सुनते हैं कि पौलुस के साथ ऐसा होगा तो वे परेशान हो उठते हैं, उनके चेहरे फक पड़ जाते हैं। लूका लिखता है: “जब हमने यह सुना, तो हम और उस जगह के लोग भी पौलुस से मिन्नतें करने लगे कि वह यरूशलेम न जाए। इस पर पौलुस ने जवाब दिया: “तुम यह क्या कर रहे हो, तुम क्यों रो-रोकर मेरा दिल कमज़ोर कर रहे हो? यकीन मानो, मैं प्रभु यीशु के नाम की खातिर यरूशलेम में न सिर्फ बंदी होने के लिए बल्कि मारे जाने के लिए भी तैयार हूँ।”—प्रेषि. 21:12, 13.
“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”
17 इस दृश्य की कल्पना कीजिए। फिलिप्पुस के घर जमा सब लोग पौलुस से मिन्नतें कर रहे हैं कि वह यरूशलेम न जाए। लूका भी उससे यही कह रहा है। कुछ तो रोने भी लगते हैं। जब पौलुस देखता है कि वे सभी उसे कितना चाहते हैं और उसके लिए कितने फिक्रमंद हैं तो उसका दिल छू जाता है। मगर वह उन्हें प्यार से समझाता है कि वे अपनी बातों से उसका “दिल कमज़ोर” न करें या जैसे कुछ अनुवाद कहते हैं, ‘उसका दिल न तोड़ें।’ पौलुस अपने इरादे पर अटल है इसलिए भाइयों की मिन्नतों और आँसुओं के बावजूद वह अपना फैसला नहीं बदलता, ठीक जैसे सोर के भाइयों के कहने पर भी वह नहीं माना था। वह उन्हें समझाता है कि उसका यरूशलेम जाना क्यों ज़रूरी है। सचमुच, पौलुस की हिम्मत और उसके अटल इरादे की दाद देनी पड़ेगी! यीशु की तरह पौलुस भी पीछे हटनेवालों में से नहीं है, वह यरूशलेम जाकर ही रहेगा। (इब्रा. 12:2) इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं कि पौलुस को शहीद होने का बड़ा शौक था, लेकिन मसीह यीशु की खातिर वह मौत को भी लगे लगाने को तैयार था और इसे बड़ा सम्मान समझता था।
“यहोवा की मरज़ी पूरी हो”
18 अब भाई क्या करते हैं? चंद शब्दों में कहें तो वे उसके फैसले की इज़्ज़त करते हैं। वाकया कहता है: “जब वह अपनी बात से न टला, तो हम यह कहकर चुप हो गए: ‘यहोवा की मरज़ी पूरी हो।’” (प्रेषि. 21:14) भाइयों ने पौलुस को रोकने की कोशिश ज़रूर की मगर वे अपनी बात पर अड़े नहीं रहे। वे पौलुस की बात मान लेते हैं। हालाँकि उनके लिए ऐसा करना मुश्किल है, मगर वे इस बात को समझते हैं कि यह यहोवा की मरज़ी है। पौलुस ने ऐसा रास्ता चुना है जिसका आखिर में अंजाम मौत है। इसलिए अगर पौलुस के चाहनेवाले उसका इरादा कमज़ोर नहीं करेंगे तो उसके लिए अपनी राह पर आगे बढ़ना आसान होगा।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
“मैं अपनी सफाई में जो तुमसे कहता हूँ वह सुनो”
10 साथ ही, पौलुस ने उन मसीहियों का लिहाज़ किया जिन्हें कुछ यहूदी रीति-रिवाज़ मानने में कोई हर्ज़ नहीं था, जैसे सब्त के दिन काम न करना या कुछ तरह के खान-पान का सेवन न करना। (रोमि. 14:1-6) और पौलुस ने खतना कराने या न कराने के बारे में कोई कायदे-कानून नहीं बनाए। गौरतलब है कि उसने तीमुथियुस का खतना किया ताकि वे यहूदी ठोकर न खाएँ जो जानते थे कि तीमुथियुस का पिता यूनानी था। (प्रेषि. 16:3) खतना करवाएँ या न करवाएँ, यह फैसला हर इंसान पर छोड़ा गया था। पौलुस ने गलातिया के मसीहियों को लिखा: “मसीह यीशु के मामले में न तो खतना कराने की कोई अहमियत है, न ही खतना न कराने की कोई अहमियत है, बल्कि उस विश्वास की है जो प्यार के ज़रिए काम करता है।” (गला. 5:6) लेकिन अगर कोई मसीही यह मानकर खतना करवाता है कि वह अब भी मूसा के कानून के अधीन है या दूसरों को सिखाता है कि यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए खतना करवाना ज़रूरी है, तो यह दिखाएगा कि उसमें विश्वास की कमी है।
11 हालाँकि पौलुस के बारे में सारी अफवाहें सरासर झूठी हैं, फिर भी उन्हें सुनकर कुछ यहूदी मसीहियों को ठेस पहुँची है और वे काफी परेशान हो गए। इसलिए यरूशलेम के बुज़ुर्ग पौलुस को यह हिदायत देते हैं: “हमारे यहाँ चार आदमी ऐसे हैं जिन्होंने मन्नत मानी है। तू इन आदमियों को साथ ले जा और उनके साथ जैसा मूसा के कानून में बताया गया है उसके मुताबिक खुद को शुद्ध कर और उनका खर्च उठा कि वे अपना सिर मुंड़ाएँ। ऐसा करने से हर कोई जान लेगा कि तेरे बारे में उन्होंने जो अफवाहें सुनी थीं वे सच नहीं हैं, बल्कि तू मूसा के कानून को मानता है और उसके मुताबिक ठीक चाल चलता है।”—प्रेषि. 21:23, 24.
12 पौलुस चाहता तो बुज़ुर्गों की सलाह पर एतराज़ जता सकता है। वह चाहे तो कह सकता है कि ये यहूदी भाई दरअसल अफवाहों की वजह से परेशान नहीं हैं, इनकी परेशानी की वजह ये खुद ही हैं क्योंकि ये मूसा के कानून को लेकर जो जोश दिखा रहे हैं वह गलत है। मगर पौलुस ऐसा कुछ नहीं कहता। वह उन प्राचीनों का कहा मानने के लिए तैयार हो जाता है क्योंकि उनकी सलाह परमेश्वर के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है। बहुत पहले उसने एक खत में लिखा था: “जो कानून के अधीन हैं उनके लिए मैं कानून के अधीन जैसा बना ताकि जो कानून के अधीन हैं, उन्हें ला सकूँ, हालाँकि मैं खुद कानून के अधीन नहीं।” (1 कुरिं. 9:20) इसलिए इस मौके पर पौलुस यरूशलेम के उन प्राचीनों की बात मानता है और खुद को “कानून के अधीन” कर लेता है। इस तरह उसने हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी। हमें भी प्राचीनों की हिदायतें माननी चाहिए और अपने तरीके से काम करने की ज़िद नहीं करनी चाहिए।—इब्रा. 13:17.
प्रेष 22:16 अ.बाइ. नोट
उसका नाम लेकर अपने पापों को धो ले: या “अपने पाप धो लो और उसका नाम लो।” एक इंसान जब पानी में बपतिस्मा लेता है, तो उस पानी से उसके पाप नहीं धुल जाते बल्कि यीशु का नाम लेने से धुलते हैं। यीशु का नाम लेने में यह शामिल है कि वह यीशु पर विश्वास करे और अपने विश्वास का सबूत देते हुए वे काम करे जो एक मसीही को करने चाहिए।—प्रेष 10:43; याकू 2:14, 18.
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क्या मसीहियों को हर हफ्ते सब्त मनाना चाहिए?
जब यीशु मसीह मूसा के कानून को पूरा कर चुका है, तो क्या मसीहियों के लिए हर हफ्ते सब्त मनाना ज़रूरी है? इसका जवाब हमें प्रेषित पौलुस की इन बातों से मिलता है: “कोई भी इंसान तुम्हारे लिए तय न करे कि तुम्हें क्या खाना-पीना चाहिए या तुम्हें नए चाँद का दिन या सब्त मनाना चाहिए। क्योंकि ये सब आनेवाली बातों की छाया थीं मगर हकीकत मसीह की है।”—कुलुस्सियों 2:16, 17.
इससे पता चलता है कि परमेश्वर ने अपने सेवकों के लिए जो नियम दिए थे, उसमें काफी बदलाव हुआ था। यह बदलाव क्यों हुआ? क्योंकि मसीहियों पर एक नया कानून लागू हुआ है जिसे “मसीह का कानून” कहा जाता है। (गलातियों 6:2) बहुत पहले मूसा के ज़रिए इसराएलियों को जो कानून दिया गया था, वह यीशु की मौत से रद्द हो चुका था। (रोमियों 10:4; इफिसियों 2:15) तो क्या उस वक्त सब्त का नियम भी रद्द हो गया था? जी हाँ। पौलुस ने कहा कि “हम इस कानून से आज़ाद हो चुके हैं।” फिर उसने दस आज्ञाओं में से एक आज्ञा का ज़िक्र किया। (रोमियों 7:6, 7) इससे पता चलता है कि दस आज्ञाएँ, जिनमें से एक आज्ञा सब्त के बारे में है, रद्द हो चुकी हैं। तो ज़ाहिर है कि मसीहियों को सब्त मनाने की ज़रूरत नहीं है।
मसीहियों को उस तरीके से उपासना नहीं करनी है जैसे मूसा के कानून में इसराएलियों को बताया गया था क्योंकि वह कानून रद्द हो चुका है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। जब एक देश का संविधान कानूनन बदल दिया जाता है, तो उस देश के लोगों से यह माँग नहीं की जाती कि वे पुराने संविधान को मानें। नए संविधान के कुछ कानून शायद पुराने संविधान जैसे ही हों और कुछ शायद बिलकुल अलग हों। इसलिए एक व्यक्ति को नए संविधान से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए ताकि वह जाने कि अब से उसे कौन-से कानून मानने हैं। एक अच्छा नागरिक यह भी जानना चाहेगा कि नया संविधान कब से लागू होता है।
यहोवा परमेश्वर ने इसराएल राष्ट्र को 600 से ज़्यादा कानून दिए थे जिनमें से 10 सबसे खास थे। कुछ कानून नैतिकता को लेकर थे, तो कुछ बलिदानों के बारे में और अच्छी सेहत और सब्त के बारे में थे। लेकिन यीशु ने बताया था कि उसके अभिषिक्त चेलों से मिलकर एक नया “राष्ट्र” बनेगा। (मत्ती 21:43) ईसवी सन् 33 से इस राष्ट्र को भी मानो एक नया संविधान मिला जो कि “मसीह का कानून” था। यह कानून दो खास आज्ञाओं पर आधारित है। वे हैं परमेश्वर से प्यार करना और पड़ोसी से प्यार करना। (मत्ती 22:36-40) ‘मसीह के कानून’ के कुछ नियम इसराएलियों को दिए गए नियमों से मिलते-जुलते हैं तो कुछ नियम बिलकुल हटकर हैं। और मूसा के कानून के कुछ नियम तो हमें मानने की ज़रूरत ही नहीं। जैसे, हर हफ्ते सब्त मनाने का नियम।
14-20 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 23-24
“फसाद की जड़ होने और बगावत भड़काने का इलज़ाम”
“हिम्मत रख!”
5 यीशु ने ऐन वक्त पर पौलुस की हिम्मत बँधायी है। अगले ही दिन 40 से ज़्यादा यहूदी आदमी ‘एक साज़िश रचते हैं और कसम खाते हैं कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक अगर हम अन्न या जल कुछ भी लें, तो हम पर शाप पड़े।’ गौर कीजिए, इन यहूदियों ने ‘एक साज़िश रची’ है और उसे पूरा करने की “कसम खायी” है। जी हाँ, उन्होंने इस प्रेषित को मार डालने की ठान ली है। उनका मानना है कि अगर वे अपनी साज़िश में नाकाम हो गए तो उन्हें शाप लगेगा। (प्रेषि. 23:12-15) उनकी तरकीब यह है कि वे पौलुस को आगे की पूछताछ के लिए महासभा में लाने की माँग करेंगे मानो वे उसके बारे में सारी जानकारी ठीक-ठीक जानना चाहते हों। मगर रास्ते में वे घात लगाए बैठेंगे और पौलुस पर हमला करके उसका काम तमाम कर देंगे। उनकी योजना को महायाजक और बुज़ुर्ग भी मंज़ूरी दे देते है।
6 लेकिन यह राज़ राज़ नहीं रहता। पौलुस के भाँजे को इस साज़िश का पता चल जाता है और वह जाकर पौलुस को बता देता है। तब पौलुस उस जवान से कहता है कि वह जाकर रोमी सेनापति क्लौदियुस लूसियास को इसकी खबर दे। (प्रेषि. 23:16-22) पौलुस के इस भाँजे का नाम बाइबल में नहीं दिया गया है। पर हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ऐसे जवानों से बहुत प्यार करता है जो अपनी जान की परवाह किए बगैर परमेश्वर के लोगों की हिफाज़त के लिए हिम्मत से कदम उठाते हैं और पूरी वफादारी से राज के कामों को आगे बढ़ाने में अपना भरसक करते हैं।
“हिम्मत रख!”
10 जब पौलुस को कैसरिया ले जाया जाता है तो उसे तब तक “हेरोदेस के महल में पहरे में रखा” जाता है जब तक कि यरूशलेम से उसके मुद्दई नहीं आते। (प्रेषि. 23:35) पाँच दिन बाद उसके मुद्दई महायाजक हनन्याह, तिरतुल्लुस नाम का एक वकील और कुछ बुज़ुर्ग कैसरिया पहुँचते हैं। जब वे सब फेलिक्स के सामने हाज़िर होते हैं तो सबसे पहले तिरतुल्लुस, फेलिक्स की तारीफ करता है कि वह यहूदियों के लिए बहुत-से भले काम कर रहा है। वह ज़रूर फेलिक्स की खुशामद करने के लिए ऐसा कहता है। इसके बाद वह असली मुद्दे पर आता है। वह पौलुस पर इलज़ाम लगाना शुरू करता है कि यह आदमी “फसाद की जड़ है, और पूरी दुनिया में यहूदियों को बगावत के लिए भड़काता है और नासरियों के गुट का एक मुखिया है। इसने मंदिर को अपवित्र करने की भी कोशिश की है और हमने इसे पकड़ा था।” इसके बाद दूसरे यहूदी भी पौलुस के ‘खिलाफ बोलने लगते हैं और दावा करने लगते हैं कि ये बातें सही हैं।’ (प्रेषि. 24:5, 6, 9) सरकार के खिलाफ बगावत छेड़ना, खतरनाक गुट का मुखिया होना और मंदिर को अपवित्र करना, ये ऐसे संगीन जुर्म थे जिनकी सज़ा मौत हो सकती थी।
“हिम्मत रख!”
13 आज जब हमारे विरोधी हमारी उपासना को लेकर हम पर झूठे आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि हम लोगों को दंगा मचाने के लिए भड़काते हैं, देशद्रोही हैं या हम एक “खतरनाक पंथ” के लोग हैं और हमें अधिकारियों के सामने खड़ा करते हैं तो हमें भी पौलुस की तरह पेश आना चाहिए। पौलुस ने राज्यपाल से मीठी-मीठी बातें कहकर उसकी खुशामद नहीं की, जैसे तिरतुल्लुस ने की थी। पौलुस विरोधियों के झूठे इलज़ाम सुनकर भड़का नहीं बल्कि शांत रहा और आदर से पेश आया। उसने बड़ी कुशलता से बात की और सबकुछ साफ-साफ और सच-सच बताया। पौलुस ने कहा कि ‘एशिया ज़िले के जिन यहूदियों’ ने मुझ पर मंदिर को दूषित करने का इलज़ाम लगाया, वे इस मुकद्दमे के वक्त यहाँ मौजूद नहीं हैं जबकि कानून के हिसाब से उन्हें यहाँ होना चाहिए और मेरे सामने रहकर मुझ पर इलज़ाम लगाने चाहिए।—प्रेषि. 24:18, 19.
14 पौलुस से हम एक और बात सीखते हैं जो सबसे ज़्यादा गौर करने लायक है। वह अपने विश्वास के बारे में गवाही देने से बिलकुल नहीं झिझका। पौलुस ने एक बार फिर इस मौके पर अपने विश्वास के बारे में बताया कि मरे हुए दोबारा ज़िंदा किए जाएँगे। वह यह सोचकर डरा नहीं कि इसी बात का ज़िक्र करने की वजह से महासभा में हाहाकार मच गया था। (प्रेषि. 23:6-10) लेकिन पौलुस ने अपनी सफाई में मरे हुओं के जी उठने की आशा के बारे में क्यों बताया? क्योंकि पौलुस का पूरा प्रचार यीशु के बारे में था और वह यही सिखा रहा था कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा है। मगर उसके विरोधी इस शिक्षा पर यकीन नहीं करते थे। (प्रेषि. 26:6-8, 22, 23) जी हाँ, असली मसला यही था कि मरे हुए सचमुच ज़िंदा किए जाएँगे या नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो क्या यीशु पर विश्वास करना चाहिए और क्या वह अपनी मौत के बाद सचमुच ज़िंदा किया गया था। सारा बखेड़ा इसी बात को लेकर खड़ा हुआ था।
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प्रेष 23:6 अ.बाइ. नोट
मैं एक फरीसी हूँ: महासभा में पौलुस की बात सुननेवाले कुछ लोग उसे जानते थे। (प्रेष 22:5) जब पौलुस ने कहा कि वह फरीसियों का बेटा है, तो वे जान गए होंगे कि पौलुस इस बात को मान रहा था कि वह भी उन्हीं के खानदान से है। वे देख सकते थे कि पौलुस अपने बारे में कोई गलत जानकारी नहीं दे रहा है। फरीसी जानते थे कि पौलुस एक फरीसी था और अब मसीही बन चुका है। पौलुस भी फरीसियों की तरह मानता था कि मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे। इस मायने में वह खुद को एक फरीसी कह रहा था। वह सदूकियों जैसा नहीं था जो इस शिक्षा को नहीं मानते थे। मरे हुओं के ज़िंदा होने की आशा का ज़िक्र करके वह एक ऐसे मुद्दे पर बात कर रहा था जिस पर फरीसी सहमत होते। पौलुस ने शायद सोचा होगा कि अगर वह इस मुद्दे पर बात करेगा जिस पर फरीसियों और सदूकियों की अलग-अलग राय थी, तो शायद फरीसी उसका साथ देंगे। पौलुस की तरकीब काम कर गयी। (प्रेष 23:7-9) बाद में राजा अग्रिप्पा के सामने अपनी पैरवी करते समय भी पौलुस ने जो कहा, वह प्रेष 23:6 में लिखी बात से मेल खाता है। (प्रेष 26:5) जब उसने रोम से फिलिप्पी के मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तो उसमें भी उसने ज़िक्र किया कि वह फरीसियों के खानदान से है। (फिल 3:5) यह भी गौर करने लायक है कि प्रेष 15:5 में कुछ और मसीहियों का, जो पहले फरीसी थे, इसी तरह ज़िक्र किया गया है।
प्रेष 24:24 अ.बाइ. नोट
द्रुसिल्ला: वह प्रेष 12:1 में बताए हेरोदेस यानी हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम की तीसरी और सबसे छोटी बेटी थी। द्रुसिल्ला का जन्म करीब ईसवी सन् 38 में हुआ था। वह अग्रिप्पा द्वित्तीय और बिरनीके की बहन थी। राज्यपाल फेलिक्स उसका दूसरा पति था। पहले उसकी शादी एमेसा के सीरियाई राजा ऐज़िज़ुस से हुई थी। मगर उसने ऐज़िज़ुस को तलाक दे दिया और करीब ईसवी सन् 54 में फेलिक्स से शादी कर ली। तब शायद वह 16 साल की थी। जब पौलुस ने फेलिक्स के सामने “नेकी, संयम और आनेवाले न्याय के बारे में” बात की, तब शायद द्रुसिल्ला भी वहाँ थी। (प्रेष 24:25) बाद में जब फेलिक्स ने राज्यपाल का पद फेस्तुस को सौंप दिया, तो उसने पौलुस को कैद में ही छोड़ दिया क्योंकि वह “यहूदियों को खुश करना चाहता था।” कुछ लोगों का मानना है कि उसने अपनी जवान पत्नी को खुश करने के लिए ऐसा किया, जो एक यहूदी थी।—प्रेष 24:27.
21-27 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 25-26
“पौलुस ने सम्राट से फरियाद की और राजा हेरोदेस अग्रिप्पा को गवाही दी”
“मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
6 फेस्तुस अपने मतलब के लिए यहूदियों की फरमाइश पूरी करना चाहता है और पौलुस को यरूशलेम भेजना चाहता है। मगर पौलुस जानता है कि वहाँ जाने से उसकी जान को खतरा होगा इसलिए वह रोमी नागरिक के नाते अपने एक अधिकार का इस्तेमाल करता है। वह फेस्तुस से कहता है: “मैं सम्राट के न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ, मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिए। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया है, जैसा कि तुझे खुद अच्छी तरह मालूम हो रहा है। . . . मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!” एक बार जब कोई सम्राट से फरियाद कर देता तो आम तौर पर उसे रद्द करना नामुमकिन था। इसलिए फेस्तुस कहता है: “तू ने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।” (प्रेषि. 25:10-12) एक अधिकारी से इंसाफ न मिलने पर, उससे भी बड़े अधिकारी से फरियाद करके पौलुस ने आज के सच्चे मसीहियों के लिए एक मिसाल रखी। जब हमारे विरोधी ‘कानून की आड़ में उत्पात मचाकर’ हमारे लिए समस्याएँ खड़ी करते हैं तो हम कानून के दिए अधिकारों के बल पर खुशखबरी सुनाने के अपने हक की हिफाज़त करते हैं।—भज. 94:20.
“मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
10 पौलुस बड़े आदर के साथ अपनी सफाई पेश करता है। सबसे पहले वह राजा अग्रिप्पा का धन्यवाद करता है कि उसने उसे अपनी सफाई पेश करने का मौका दिया। वह कहता है कि राजा, यहूदियों के रीति-रिवाज़ों और मसलों का अच्छा जानकार है। फिर पौलुस अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में कहता है: “मैं अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ को मानते हुए, एक फरीसी की ज़िंदगी जीता था।” (प्रेषि. 26:5) फरीसी होने की वजह से पौलुस मसीहा के आने की आस लगाए हुए था। अब वह यीशु का एक चेला बन चुका है और निडरता से कहता है कि यीशु ही वह मसीहा है जिसका लोगों को लंबे अरसे से इंतज़ार था। पौलुस यह भी कहता है कि वह अपने मुद्दइयों की तरह यह मानता है कि परमेश्वर ने उनके बापदादों से जो वादा किया था वह ज़रूर पूरा होगा और इसी बात को लेकर आज उस पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है। यह सब सुनने के बाद पौलुस की बातों में अग्रिप्पा की दिलचस्पी और बढ़ जाती है।
11 इसके बाद पौलुस बीते हुए उन दिनों के बारे में बताता है जब वह मसीहियों पर अत्याचार करता था। वह कहता है: “मैं भी वाकई ऐसा इंसान था, जो सोचा करता था कि यीशु नासरी के नाम का कड़े-से-कड़ा विरोध करना मेरा फर्ज़ है। . . . मैं उनके [मसीह के चेलों के] खिलाफ गुस्से से इस कदर पागल हो गया था कि दूसरे शहरों में भी जाकर उन पर ज़ुल्म ढाने लगा।” (प्रेषि. 26:9-11) पौलुस यहाँ कुछ बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा है। कई लोग जानते हैं कि पौलुस एक वक्त पर सचमुच बहुत ज़ालिम था, उसने मसीहियों को सता-सताकर उनका जीना दुश्वार कर दिया था। (गला. 1:13, 23) इसलिए अग्रिप्पा अब जानना चाहता है कि मसीहियों का यह कट्टर दुश्मन खुद एक मसीही कैसे बन गया।
12 पौलुस बताता है कि वह एक मसीही कैसे बना: “जब मैं . . . प्रधान याजकों से पूरा अधिकार और आज्ञा पाकर दमिश्क जा रहा था, तो हे राजा, दोपहर के वक्त मैंने रास्ते में सूरज के तेज से कहीं बढ़कर तेज़ रौशनी को आकाश से चमकते देखा, जो मेरे और मेरे साथ चलनेवालों के चारों तरफ चमक उठी। और जब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में एक आवाज़ को मुझसे यह कहते सुना, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है? इस तरह विरोध कर तू अपने लिए मुश्किल पैदा कर रहा है।’ मगर मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ और प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।’”—प्रेषि. 26:12-15.
13 चमत्कार से यह दर्शन पाने से पहले पौलुस एक तरह से “अंकुश की नोक पर लात” (फुटनोट) मार रहा था। जिस तरह एक जानवर अंकुश की नोक पर लात मारकर खुद को चोट पहुँचाता है, उसी तरह पौलुस भी परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ काम करके आध्यात्मिक मायने में अपना ही नुकसान कर रहा था। असल में पौलुस दिल का सच्चा था मगर उसे गुमराह किया गया था। इसलिए यीशु ने, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था, दमिश्क के रास्ते में उसे दर्शन दिया और अपनी सोच बदलने में उसकी मदद की।—यूह. 16:1, 2.
14 पौलुस ने वाकई अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए थे। अग्रिप्पा से बात करते वक्त उसने कहा: “मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की आज्ञा न टाली, मगर पहले दमिश्क के लोगों और फिर यरूशलेम के रहनेवालों और पूरे यहूदिया देश में और गैर-यहूदियों को यह संदेश देता रहा कि उन्हें पश्चाताप करना चाहिए और पश्चाताप के योग्य काम करते हुए परमेश्वर की तरफ फिरना चाहिए।” (प्रेषि. 26:19, 20) यीशु मसीह ने दर्शन में पौलुस को जो काम सौंपा था, उसे वह बरसों से करता आया था। इसके क्या अच्छे नतीजे हुए? जिन लोगों ने पौलुस की बतायी खुशखबरी पर यकीन किया उन्होंने बदचलन ज़िंदगी जीना और बेईमानी के काम करना छोड़ दिया और परमेश्वर की तरफ फिर गए। वे देश के अच्छे नागरिक बने और कायदे-कानूनों को मानने लगे।
15 लेकिन पौलुस का विरोध करनेवाले यहूदियों के लिए यह सब कोई मायने नहीं रखता। पौलुस कहता है: “इन्हीं बातों की वजह से यहूदियों ने मुझे मंदिर में पकड़ लिया और मुझे मार डालने की कोशिश की। मगर उस मदद की वजह से जो मुझे परमेश्वर से मिली है, मैं आज के दिन तक छोटे-बड़े सभी को गवाही देता रहा हूँ।”—प्रेषि. 26:21, 22.
16 सच्चे मसीही होने के नाते हमें अपने विश्वास की “पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार” रहना चाहिए (1 पत. 3:15) जब हम अपने विश्वास के बारे में जजों और अधिकारियों से बात करते हैं तो हम भी पौलुस का तरीका अपना सकते हैं क्योंकि इससे अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। पौलुस ने फेस्तुस और अग्रिप्पा को पूरे आदर के साथ बताया कि खुशखबरी से क्या-क्या फायदा हुआ। उसी तरह हम भी अधिकारियों और जजों को बता सकते हैं कि बाइबल की सच्चाइयों ने कैसे हमारी ज़िंदगी सँवार दी है और जिन्होंने हमारा संदेश कबूल किया है उनकी ज़िंदगी में भी कैसे खुशहाली आयी है। यह सब सुनकर हो सकता है हमारे बारे में उनका रवैया बदल जाए और वे हमारे साथ थोड़ी नरमी से पेश आएँ।
“मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
18 पौलुस के पास राज्यपाल की बात का जवाब हाज़िर है। वह कहता है: “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ, मगर मैं सच्चाई की और स्वस्थ मन की बातें कहता हूँ। असल में मैं जिस राजा के सामने निडर होकर बात कर रहा हूँ, वह खुद भी इन बातों के बारे में अच्छी तरह जानता है . . . हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यवक्ताओं की बातों का विश्वास करता है? मैं जानता हूँ कि तू विश्वास करता है।” तब अग्रिप्पा, पौलुस से कहता है: “थोड़ी ही देर में तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा।” (प्रेषि. 26:25-28) अग्रिप्पा ने यह बात सच्चे दिल से कही थी या नहीं यह तो हम नहीं जानते, मगर इससे एक बात साफ है कि पौलुस की गवाही का इस राजा पर गहरा असर हुआ।
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प्रेष 26:14 अ.बाइ. नोट
विरोध करके: शा., “अंकुश पर लात मारकर।” अंकुश एक नुकीला छड़ होता है जिससे एक जानवर को कोंचा जाता है। (न्या 3:31) जब एक बैल को अंकुश से कोंचा जाता है, तो कभी-कभी वह उसका विरोध करता है और अंकुश पर लात मारता है। इस तरह ज़िद करने से उसी को चोट लगती है। इसी से यह कहावत निकली थी, अंकुश पर लात मारना। यह कहावत यूनानी साहित्य में पायी जाती है। शाऊल एक मसीही बनने से पहले मसीहियों का विरोध करता था और उन्हें सताता था। लेकिन मसीही ऐसे लोग थे जिन पर यहोवा की मंज़ूरी थी। तो पौलुस मसीहियों का विरोध करके असल में खुद को ही चोट पहुँचा रहा था। (प्रेष 5:38, 39; 1ती 1:13, 14 से तुलना करें।) सभ 12:11 में एक बुद्धिमान इंसान की बातों की तुलना “अंकुश” से की गयी है, क्योंकि उसकी बातें लोगों को अच्छी सलाह मानने के लिए उभारती हैं।
नयी दुनिया अनुवाद शब्दावली
अंकुश। एक लंबा छड़ जिसका एक सिरा धातु से बना होता था और नुकीला होता था। इससे किसान अपने जानवर को कोंचता था। अंकुश की तुलना बुद्धिमान इंसान की बातों से की गयी है जो सुननेवालों को बुद्धि-भरी सलाह पर चलने के लिए उभारती हैं। ‘अंकुश पर लात मारना’ एक अलंकार है, जो इस बात से लिया गया है कि जब एक ढीठ बैल को बार-बार कोंचा जाता है तो वह इसका विरोध करता है, अंकुश पर लात मारता है और खुद को ही चोट पहुँचाता है।—प्रेष 26:14, फु.; न्या 3:31, फु.
राज्य का संदेश कबूल करने में दूसरों की मदद करें
14 पौलुस जानता था कि अग्रिप्पा एक यहूदी होने का दावा करता था। पौलुस ने यहूदी धर्म के बारे में अग्रिप्पा के ज्ञान की दुहाई देकर, उसके सामने यह तर्क पेश किया कि वह मसीहा की मौत और उसके पुनरुत्थान के बारे में “उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं।” (प्रेरितों 26:22, 23) इसके बाद, उसने सीधे-सीधे अग्रिप्पा से पूछा: “हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं की प्रतीति करता है?” अब अग्रिप्पा धर्म-संकट में पड़ गया। अगर वह कहता कि उसे भविष्यवक्ताओं पर विश्वास नहीं है, तो यहूदी विश्वासी होने का उसका रुतबा खाक में मिल जाता। लेकिन अगर वह पौलुस के तर्क से सहमत हो जाता, तो सबके सामने यह इस बात का सबूत होता कि वह पौलुस का पक्ष ले रहा है और उसे मसीही कहलाने का जोखिम उठाना पड़ता। इसलिए पौलुस ने बुद्धिमानी दिखाते हुए अपने सवाल का खुद ही जवाब दिया: “हां, मैं जानता हूं, कि तू प्रतीति करता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) इस पर अग्रिप्पा के दिल ने उसे क्या कहने को उभारा? उसने कहा: “थोड़े ही समय में तू अपनी दलीलों से मुझे मसीही बनने को कायल कर देगा।” (NW) (प्रेरितों 26:27, 28) हालाँकि अग्रिप्पा मसीही नहीं बना, मगर पौलुस के संदेश का उसके दिल पर काफी हद तक असर पड़ा।—इब्रानियों 4:12.
28 जनवरी–3 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 27-28
“पौलुस जहाज़ से रोम जाता है”
“तुममें से किसी की जान का नुकसान नहीं होगा”
15 पौलुस ने पहले भी जहाज़ में कइयों को गवाही दी होगी और उन्हें भविष्य की “उस आशा” के बारे में बताया होगा ‘जिसका वादा परमेश्वर ने किया था।’ (प्रेषि. 26:6; कुलु. 1:5) लेकिन अब जब जहाज़ के टूटने का खतरा नज़र आ रहा है तो वह उन्हें एक और आशा के बारे में बताता है जिसकी इस वक्त उन्हें खास ज़रूरत है, यानी यह कि वे सब तूफान से ज़िंदा बच जाएँगे। और इस बात पर यकीन दिलाने के लिए वह उन्हें एक ठोस वजह देते हुए कहता है: ‘परमेश्वर का एक दूत रात को मेरे पास आया और उसने मुझसे कहा, “हे पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर खड़ा होगा और देख! जो लोग तेरे साथ जहाज़ में सफर कर रहे हैं, परमेश्वर ने तेरी खातिर दया दिखाकर उन सबकी जान भी बख्श दी है।”’ फिर पौलुस उनसे कहता है, “इसलिए हे लोगो, हिम्मत रखो; क्योंकि मुझे परमेश्वर पर विश्वास है कि जैसा मुझे बताया गया है बिलकुल वैसा ही होगा। मगर, हमारा जहाज़ एक द्वीप के किनारे जा टूटेगा।”—प्रेषि. 27:23-26.
“तुममें से किसी की जान का नुकसान नहीं होगा”
18 यह माल्टा द्वीप है जो सिसिली के दक्षिण में है। (यह बक्स देखिए, “माल्टा कहाँ था?”) इस द्वीप के लोग, जिनकी भाषा और संस्कृति एकदम अलग है इन अनजान मुसाफिरों पर ‘इंसानियत के नाते बहुत कृपा’ करते हैं। (प्रेषि. 28:2) वे इन अजनबियों के लिए आग जलाते हैं जो पानी से तर-बतर हैं और ठंड से ठिठुर रहे हैं। आग इन लोगों को थोड़ी गरमी देती है, इसके बावजूद कि बारिश हो रही है और काफी ठंड है। और यही आग उन्हें एक चमत्कार देखने का भी मौका देती है।
“तुममें से किसी की जान का नुकसान नहीं होगा”
21 माल्टा में पुबलियुस नाम का एक अमीर आदमी रहता है जो बहुत-सी ज़मीनों का मालिक है। वह शायद माल्टा के रोमी अफसरों में सबसे बड़ा अफसर है। लूका इस आदमी को ‘द्वीप का प्रधान’ कहता है। माल्टा से मिले दो लेख भी इस बात को पुख्ता करते हैं कि वहाँ इस तरह की उपाधियाँ हुआ करती थीं। पुबलियुस तीन दिन तक पौलुस और उसके साथियों की खातिरदारी करता है। मगर उस दौरान पुबलियुस का पिता बीमार था। लूका उसकी हालत का बिलकुल सही शब्दों में ज़िक्र करता है। वह लिखता है कि पुबलियुस का पिता “बुखार और पेचिश से बेहाल था।” इस तरह वह उस आदमी की बीमारी की ठीक-ठीक जानकारी देता है। पौलुस उस आदमी के लिए प्रार्थना करता है और उस पर हाथ रखता है तो उसकी बीमारी दूर हो जाती है। यह चमत्कार देखकर वहाँ के लोग पौलुस के पास बहुत-से बीमारों को लाते हैं और वह उन्हें चंगा करता है। फिर लोग पौलुस और उसके साथियों को बहुत-सी ज़रूरत की चीज़ें तोहफे में देते हैं।—प्रेषि. 28:7-10.
उसने ‘अच्छी तरह गवाही दी’
10 सफर करते-करते इन मुसाफिर भाइयों का दल आखिरकार रोम पहुँचता है। रोम में ‘पौलुस को अकेले रहने की इजाज़त मिलती है और उसकी पहरेदारी के लिए एक सैनिक को उसके साथ रखा जाता है।’ (प्रेषि. 28:16) पौलुस के हाथ में ज़ंजीर बाँधकर एक सैनिक के हाथ से जोड़ दी जाती है। आम तौर पर जब किसी आदमी को घर में नज़रबंद रखा जाता तो उसे इसी तरह बाँधकर रखा जाता था ताकि वह भाग न सके। लेकिन ऐसे हालात में भी पौलुस राज के बारे में गवाही देना नहीं छोड़ता। कोई भी ज़ंजीर उसे गवाही देने से नहीं रोक सकती। सफर की थकान मिटाने के लिए सिर्फ तीन दिन आराम करने के बाद वह रोम के यहूदियों के खास आदमियों को बुलवाता है। वह उन्हें अपने बारे में थोड़ी बातें बताता है और फिर गवाही देना शुरू करता है।
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प्रेष 27:9 अ.बाइ. नोट
प्रायश्चित के दिन का उपवास: या “पतझड़ का उपवास।” शा., “उपवास।” जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “उपवास” किया गया है, उसका मतलब मूसा के कानून में बताया गया एकमात्र उपवास है। यह उपवास सालाना प्रायश्चित के दिन रखा जाता था। इसे योम किप्पुर भी कहा जाता था। (इब्रानी में योहम हाक्किपुरीम; “ढाँपने का दिन।”) (लैव 16:29-31; 23:26-32; गि 29:7; शब्दावली में “प्रायश्चित का दिन” देखें।) प्रायश्चित के दिन इसराएलियों को “दुख ज़ाहिर करना” होता था। इसका यह मतलब समझा जाता है कि उन्हें कई सारे त्याग करने थे और उपवास भी करना था। (लैव 16:29, फु.) प्रेष 27:9 में भी “उपवास” की बात की गयी है। इससे भी यही साबित होता है कि प्रायश्चित के दिन लोगों को जो त्याग करने होते थे, उसमें खास तौर से उपवास करना शामिल था। प्रायश्चित का दिन सितंबर के आखिरी दिनों या अक्टूबर के शुरूआती दिनों में से किसी दिन होता था।
प्रेष 28:11 अ.बाइ. नोट
ज़्यूस के बेटों: यूनान और रोम की पौराणिक कथाओं के मुताबिक ‘ज़्यूस के बेटे’ (यूनानी, दियुसकूरी) कास्टर और पोलुक्स थे। वे ज़्यूस (बृहस्पति देवता) और स्पार्टा की रानी लेडा के जुड़वाँ बेटे थे। माना जाता था कि ज़्यूस के बेटे नाविकों के रखवाले हैं और उन्हें समुंदर में आनेवाले खतरों से बचाने की ताकत रखते हैं। जहाज़ के सामने की तरफ बनी इस निशानी के बारे में आयत जो कहती है, उससे साबित होता है कि यह वाकया किसी चश्मदीद गवाह ने लिखा था।