अध्ययन लेख 51
मुश्किलों के दौरान भी आप शांति पा सकते हैं!
“तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों, न ही वे डर के मारे कमज़ोर पड़ें।”—यूह. 14:27.
गीत 112 यहोवा, शांति का परमेश्वर
एक झलकa
1. ‘परमेश्वर की शांति’ क्या है और इससे क्या हो पाता है? (फिलिप्पियों 4:6, 7)
बाइबल में एक ऐसी शांति के बारे में बताया गया है जिसके बारे में दुनिया के लोग नहीं जानते, यह ‘परमेश्वर की शांति’ है। यह एक तरह का सुकून है जो हमें तब मिलता है जब हमारा अपने पिता यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता होता है। ‘परमेश्वर की शांति’ होने से हम सुरक्षित महसूस करते हैं। (फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।) और भाई-बहनों के साथ हमारी अच्छी दोस्ती भी हो जाती है, क्योंकि वे भी यहोवा से प्यार करते हैं। यही नहीं, हम ‘शांति के परमेश्वर’ यहोवा के और भी करीब आ जाते हैं। (1 थिस्स. 5:23) जब हम परमेश्वर को अच्छे-से जानने लगते हैं, उस पर भरोसा करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, तो मुश्किलें आने पर भी हमें ज़्यादा चिंता नहीं होती, क्योंकि हमारे पास ‘परमेश्वर की शांति’ होती है।
2. हम क्यों कह सकते हैं कि मुश्किलें आने पर भी ‘परमेश्वर की शांति’ पाना मुमकिन है?
2 लेकिन जब कोई बीमारी फैलती है, विपत्ति आती है, दंगे-फसाद होते हैं या ज़ुल्म किए जाते हैं, तो डर तो लगता ही है। क्या तब भी हम ‘परमेश्वर की शांति’ पा सकते हैं? ध्यान दीजिए, यीशु ने अपने चेलों से क्या कहा: “तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों, न ही वे डर के मारे कमज़ोर पड़ें।” (यूह. 14:27) कई भाई-बहनों ने यीशु की यह बात मानी है और यहोवा की मदद से वे मुश्किलें आने पर भी शांत रह पाए हैं।
जब कोई बीमारी फैले
3. महामारी फैलने पर हमारी शांति कैसे छिन सकती है?
3 जब भी कोई महामारी फैलती है, तो हमारी दुनिया उलट-पुलट हो जाती है। सोचिए, जब कोविड-19 महामारी फैली, तब क्या हुआ? रातों-रात लोगों की ज़िंदगी बदल गयी। बहुत-से लोगों का एक सर्वे लिया गया और उनमें से आधे से ज़्यादा लोगों ने बताया कि वे ठीक से सो नहीं पा रहे हैं। महामारी शुरू होने के बाद लोगों को बहुत चिंता होने लगी। वे डिप्रेशन में चले गए, खूब शराब पीने लगे और कुछ लोग ड्रग्स लेने लगे। आँकड़े बताते हैं कि घरों में और मार-पीट होने लगी और कई लोगों ने खुदकुशी करने की कोशिश की। अगर आपके इलाके में कोई बीमारी फैल जाए, तो आप क्या कर सकते हैं, ताकि आप ‘परमेश्वर की शांति’ पाएँ और बहुत ज़्यादा चिंता ना करें?
4. यीशु ने आखिरी दिनों के बारे में जो कहा था, उसे ध्यान में रखने से हम शांत कैसे रह सकते हैं?
4 यीशु ने पहले से बताया था कि आखिरी दिनों में “एक-के-बाद-एक कई जगह” महामारियाँ फैलेंगी। (लूका 21:11) यह बात ध्यान में रखने से हम शांत कैसे रह पाते हैं? जब बीमारियाँ फैलती हैं, तो हम हैरान-परेशान नहीं हो जाते, क्योंकि हमें पता है कि ऐसा तो होना ही है। इसलिए अगर हमें ऐसी खबरें सुनने को मिलें, तो आइए हम यीशु की यह सलाह मानें: ‘तुम घबरा न जाना।’—मत्ती 24:6.
अगर आपके इलाके में कोई बीमारी फैली हो, तब बाइबल की ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनने से आपको सुकून मिल सकता है (पैराग्राफ 5)
5. (क) जब कोई बीमारी फैलती है, तो फिलिप्पियों 4:8, 9 के मुताबिक हम किस बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं? (ख) अगर आप बाइबल की ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनें, तो आपको क्या फायदा होगा?
5 जब कोई बीमारी फैलने लगती है, तो हो सकता है कि हम घबरा जाएँ और यह सोच-सोचकर चिंता करने लगें कि आगे क्या होगा। बहन डेज़ी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।b उनके चाचाजी, ताऊजी के बेटे और डॉक्टर की कोविड-19 की वजह से मौत हो गयी। इसलिए बहन को चिंता होने लगी कि कहीं उन्हें भी कोविड ना हो जाए, क्योंकि अगर उन्हें यह लग जाता, तो उनकी बुज़ुर्ग माँ को भी खतरा होता। उन्हें यह भी चिंता थी कि अगर उनकी नौकरी चली गयी, तो वे घर का खर्चा कैसे चलाएँगी। दिन-भर उनके मन में यही सब चलता रहता था और इस वजह से वे ठीक से सो भी नहीं पाती थीं। तो बहन ने क्या किया ताकि वे शांत रह पाएँ? उन्होंने यहोवा से खासकर इस बात के लिए प्रार्थना की कि वह उन्हें मन की शांति दे और वे अच्छी बातों के बारे में सोच सकें। (फिलिप्पियों 4:8, 9 पढ़िए।) फिर उन्होंने बाइबल की ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनी और इस तरह मानो यहोवा को उनसे बात करने दी। वे कहती हैं, “बाइबल की आयतें इस तरह पढ़ी गयी हैं कि उन्हें सुनकर मुझे बहुत सुकून मिला और मैं महसूस कर पायी कि यहोवा मेरी कितनी परवाह करता है।”—भज. 94:19.
6. निजी अध्ययन करने और सभाओं में जाने से आपको क्या फायदा होगा?
6 जब किसी इलाके में कोई बीमारी फैल जाती है, तो ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रहती, बहुत कुछ बदल जाता है। लेकिन चाहे जो हो जाए, निजी अध्ययन करना और सभाओं में जाना मत छोड़िए। हमारे कई वीडियो और प्रकाशनों में आपको ऐसे भाई-बहनों के अनुभव मिलेंगे जो आपकी जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा है। इन अनुभवों से आपको हिम्मत मिलेगी। (1 पत. 5:9) और सभाओं में जाने से आप बाइबल में लिखी बातों पर ध्यान लगा पाएँगे और अच्छी बातों के बारे में सोचेंगे। इससे आपको तो हौसला मिलेगा ही, साथ ही आप दूसरों का भी हौसला बढ़ा पाएँगे। (रोमि. 1:11, 12) जब आप इस बारे में सोचेंगे कि यहोवा ने कैसे उन भाई-बहनों की मदद की जो बीमार थे, घबरा रहे थे या अकेला महसूस कर रहे थे, तो आपका विश्वास बढ़ेगा और आपको यकीन हो जाएगा कि यहोवा आपकी भी मदद करेगा।
7. आप प्रेषित यूहन्ना से क्या सीख सकते हैं?
7 एक और बात, भाई-बहनों से बातचीत करते रहिए। बीमारी फैलने की वजह से हो सकता है, हमें एक-दूसरे से दूरी बनाए रखनी पड़े और तब हम शायद प्रेषित यूहन्ना की तरह महसूस करें। वह अपने दोस्त गयुस से आमने-सामने बैठकर बात करना चाहता था, लेकिन हालात कुछ ऐसे थे कि वह ऐसा नहीं कर सकता था। (3 यूह. 13, 14) इसलिए वह जो कर सकता था, उसने वह किया। उसने गयुस को एक चिट्ठी लिखी। अगर आप भी भाई-बहनों से नहीं मिल पा रहे हैं, तो क्यों ना उनसे फोन पर बात करें, उन्हें वीडियो कॉल करें या उन्हें मैसेज भेजें? जब आप उनसे बात करते रहेंगे, तो आप अकेला महसूस नहीं करेंगे और शांत रह पाएँगे। और अगर आपको बहुत ज़्यादा चिंता हो रही हो, तो आप प्राचीनों से भी बात कर सकते हैं। वे ज़रूर आपका हौसला बढ़ाएँगे।—यशा. 32:1, 2.
जब कोई विपत्ति आए
8. कोई विपत्ति आने पर आपकी शांति कैसे छिन सकती है?
8 क्या आपके यहाँ कभी कोई बाढ़ आयी है, भूकंप आया है या आग लगी है? हो सकता है, उस बारे में सोचकर आप अब भी परेशान हो जाते हों। और अगर उस वक्त आपके किसी दोस्त या रिश्तेदार की मौत हो गयी हो या आपकी चीज़ें बरबाद हो गयी हों, तो आपको बहुत दुख हुआ होगा, शायद आपको गुस्सा भी आया हो। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आपका विश्वास कमज़ोर पड़ गया है या आपको अपनी चीज़ों से बहुत ज़्यादा लगाव है। ऐसे हालात का सामना करना बहुत मुश्किल होता है और ऐसे में शायद मन में उलटी-सीधी बातें आने लगें। शायद लोगों को भी लगे कि आपका दुखी या परेशान होना जायज़ है। (अय्यू. 1:11) लेकिन आप तब भी शांत रह सकते हैं। वह कैसे?
9. यीशु ने क्या कहा जिससे हम विपत्तियों का सामना करने के लिए तैयार रह सकते हैं?
9 दुनिया में कई लोगों को लगता है कि उनके यहाँ कोई विपत्ति नहीं आएगी। लेकिन हम ऐसा नहीं सोचते। हम याद रखते हैं कि यीशु ने हमारे समय के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी। उसने कहा था कि अंत आने से पहले “बड़े-बड़े भूकंप आएँगे” और ऐसी ही दूसरी विपत्तियाँ भी आएँगी। (लूका 21:11) उसने यह भी कहा था कि ‘दुष्टता बढ़ती’ जाएगी। और आज ऐसा ही तो हो रहा है। हमें आए दिन अपराध, हिंसा और आतंकवादी हमलों की खबरें सुनने को मिलती हैं। (मत्ती 24:12) यीशु ने कभी ऐसा नहीं कहा था कि इस तरह की विपत्तियाँ सिर्फ उन लोगों पर आएँगी जिन पर यहोवा की आशीष नहीं है। यहोवा के कई वफादार सेवकों को भी ऐसी ही मुश्किलें झेलनी पड़ी हैं। इसलिए हम मानकर चलते हैं कि हम पर कभी-भी कोई भी विपत्ति आ सकती है। (यशा. 57:1; 2 कुरिं. 11:25) और अगर कोई विपत्ति आती है, तो शायद यहोवा कोई चमत्कार करके हमें ना बचाए, लेकिन हम यकीन रख सकते हैं कि वह शांत रहने में हमारी मदद करेगा।
10. विपत्ति के लिए पहले से तैयारी करके हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है? (नीतिवचन 22:3)
10 अगर हम पहले से तैयारी करें कि किसी विपत्ति के आने पर या कोई हादसा होने पर हम क्या करेंगे, तो जब ऐसा कुछ होगा तब हम शांत रह पाएँगे। पर क्या पहले से तैयारी करने का यह मतलब है कि यहोवा पर हमारा भरोसा कमज़ोर पड़ गया है? नहीं, बल्कि तैयारी करके तो हम दिखाते हैं कि हमें उस पर पूरा भरोसा है। वह इसलिए कि यहोवा खुद चाहता है कि हम विपत्तियों के लिए पहले से तैयारी करें। उसने अपने वचन में यही लिखवाया है। (नीतिवचन 22:3 पढ़िए।) कई बार हमारी पत्रिकाओं में और मंडली की सभाओं में इस बारे में बताया जाता है कि हम विपत्ति के लिए पहले से तैयारी करें।c समय-समय पर इस बारे में घोषणा भी की जाती है। अगर हम अभी से इन हिदायतों को मानेंगे, तो उससे पता चलेगा कि हमें यहोवा पर भरोसा है।
अगर आप विपत्तियों का सामना करने के लिए पहले से तैयारी करें, तो आपकी जान बच सकती है (पैराग्राफ 11)d
11. बहन मारगरेट से आपने क्या सीखा?
11 ध्यान दीजिए कि बहन मारगरेट के साथ क्या हुआ। एक बार उनके घर के पास के जंगल में आग लग गयी। तब अधिकारियों ने आदेश दिया कि वहाँ रहनेवाले सभी लोग उस इलाके को जल्द-से-जल्द खाली कर दें। बहुत सारे लोग एक साथ वहाँ से निकलने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए सड़क पर जाम लग गया। चारों तरफ काला धुआँ छाया हुआ था और बहन मारगरेट अपनी गाड़ी से भी नहीं निकल सकती थीं। लेकिन उन्होंने अपने पर्स में एक नक्शा रखा हुआ था जिस पर उस इलाके से निकलने का एक दूसरा रास्ता था। बहन ने पहले एक बार उस रास्ते को देख भी लिया था, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें दिक्कत ना हो। इस तरह पहले से तैयारी करने की वजह से बहन की जान बच गयी।
12. हमें अधिकारियों और संगठन से मिलनेवाली हिदायतें क्यों माननी चाहिए?
12 सबकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अधिकारी शायद करफ्यू लगा दें, हमें अपना इलाका छोड़ने को कहें या कोई और निर्देश दें। ऐसे में हो सकता है कि कुछ लोग उनकी बात मानने में देरी करें या आना-कानी करने लगें, क्योंकि वे अपनी चीज़ें छोड़कर नहीं जाना चाहते। पर ऐसे में मसीहियों को क्या करना चाहिए? बाइबल में लिखा है, ‘प्रभु की खातिर खुद को इंसान के ठहराए अधिकार के अधीन करो: राजा के अधीन क्योंकि वह सबसे बड़ा अधिकारी है या राज्यपालों के अधीन, जिन्हें उसने भेजा है।’ (1 पत. 2:13, 14) कई बार हमें यहोवा के संगठन से भी हिदायतें मिलती हैं। जैसे हमसे कई बार कहा गया है कि हम प्राचीनों को अपना फोन नंबर और पता दें ताकि ज़रूरत पड़ने पर वे हमसे संपर्क कर सकें। क्या आपने ऐसा किया है? हो सकता है, हमें ये हिदायतें भी मिलें कि हमें अपने घर पर ही रहना है या हमें अपना घर छोड़कर कहीं और जाना है। या शायद हमें बताया जाए कि हमें खाने-पीने की ज़रूरी चीज़ें कैसे मिल सकती हैं या हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं। अगर हम उन हिदायतों को ना मानें तो हमारी जान को तो खतरा होगा ही, साथ ही हम प्राचीनों की जान को भी खतरे में डाल रहे होंगे। याद रखिए, ये वफादार भाई हमारी निगरानी कर रहे हैं, इसलिए हम कभी-भी उनके लिए कोई मुश्किल खड़ी नहीं करना चाहते। (इब्रा. 13:17) ध्यान दीजिए कि इस बारे में बहन मारगरेट ने क्या कहा: “मैंने प्राचीनों की बात मानी, संगठन की हिदायतें मानीं, तभी मेरी जान बच पायी।”
13. जिन भाई-बहनों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है, उन्हें किस बात से खुशी और शांति मिली है?
13 आज कई भाई-बहनों को विपत्ति, युद्ध या दंगों की वजह से अपना इलाका छोड़कर दूसरे इलाके में जाना पड़ा है। पहली सदी में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मसीहियों का विरोध किया गया था और इस वजह से वे तितर-बितर हो गए थे, लेकिन “वे जहाँ कहीं गए, वहाँ वचन की खुशखबरी सुनाते गए।” (प्रेषि. 8:4) उसी तरह आज जिन भाई-बहनों को दूसरी जगह जाना पड़ा है, उन्होंने हालात के हिसाब से खुद को बदला है। उन्होंने तुरंत नए इलाके में जाकर प्रचार करना शुरू कर दिया और कोशिश की कि वे हर सभा में जाएँ। प्रचार करने की वजह से वे अपना ध्यान अपनी मुश्किलों पर नहीं, बल्कि परमेश्वर के राज पर लगा पाए। इससे उन्हें शांति और खुशी मिली है।
जब ज़ुल्म किए जाएँ
14. ज़ुल्मों की वजह से हमारी शांति कैसे छिन सकती है?
14 जब हम भाई-बहनों से मिलते हैं, साथ में प्रचार करते हैं और यहोवा की उपासना करते हैं, तो हमें बहुत सुकून मिलता है और खुशी होती है। लेकिन कई देशों में हमारे भाई-बहन खुलकर यह सब नहीं कर सकते। अगर वे ये काम करते हुए पकड़े जाते हैं, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है या उन पर कई ज़ुल्म किए जाते हैं। जब सरकार इस तरह की पाबंदियाँ लगा देती है, तो हमारी शांति छिन सकती है। शायद हमें चिंता होने लगे या हम यह सोचकर घबराने लगें कि आगे क्या होगा। जब ऐसा कुछ होता है तो थोड़ा-बहुत डर तो लगता ही है, लेकिन हमें हद-से-ज़्यादा नहीं घबराना चाहिए। यीशु ने भी कहा था कि ज़ुल्मों की वजह से हमारा विश्वास डगमगा सकता है। (यूह. 16:1, 2) तो ज़ुल्मों के बावजूद शांत बने रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
15. हमें ज़ुल्मों के बारे में सोचकर डरना क्यों नहीं चाहिए? (यूहन्ना 15:20; 16:33)
15 बाइबल में लिखा है, “जितने भी मसीह यीशु में परमेश्वर की भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।” (2 तीमु. 3:12) लेकिन कई बार हमारे लिए यह बात मानना मुश्किल हो सकता है। शायद हमें लगे कि हम पर तो ज़ुल्म नहीं किए जाएँगे। आंद्रे नाम के एक भाई को भी ऐसा ही लगने लगा। वह जिस देश में रहता है, वहाँ हमारे काम पर रोक लग गयी। तब उसने सोचा, ‘यहाँ तो इतने सारे साक्षी हैं, वे लोग सबको थोड़ी ना गिरफ्तार कर लेंगे।’ लेकिन इस तरह सोचने से उसकी चिंता कम नहीं हुई, उलटा बढ़ गयी। फिर उसने दूसरे भाइयों पर ध्यान दिया। वे ऐसा नहीं सोच रहे थे कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बल्कि उन्होंने सबकुछ यहोवा के हाथ में छोड़ दिया था। इस वजह से उन्हें बहुत ज़्यादा चिंता नहीं हो रही थी। आंद्रे ने सोचा कि वह भी ऐसा ही करेगा और यहोवा पर भरोसा रखेगा। ऐसा करने से आंद्रे को ‘परमेश्वर की शांति’ मिली। वैसे तो उस पर अभी-भी कई मुश्किलें आती हैं, लेकिन वह खुश है। हम भी मुश्किलों के बावजूद शांत रह सकते हैं। यीशु ने भी कहा था कि हम पर ज़ुल्म तो किए जाएँगे, लेकिन इसके बावजूद हम वफादार रह पाएँगे।—यूहन्ना 15:20; 16:33 पढ़िए।
16. हम जहाँ रहते हैं अगर वहाँ हमारे काम पर पाबंदी या रोक लगा दी जाए, तो हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
16 आप जहाँ रहते हैं अगर वहाँ हमारे काम पर पाबंदी या रोक लगा दी जाए, तो समय-समय पर आपको शाखा दफ्तर या प्राचीनों से हिदायतें मिलेंगी। वे ये हिदायतें इसलिए देते हैं ताकि हम सुरक्षित रहें, हमें प्रकाशन मिलते रहें और हम एहतियात बरतते हुए प्रचार करते रह पाएँ। इन हिदायतों को मानने की पूरी कोशिश कीजिए। इन्हें तब भी मानिए जब आपको समझ में ना आ रहा हो कि ये क्यों दी गयी हैं। (याकू. 3:17) किसी भी ऐसे व्यक्ति को भाई-बहनों और मंडली के बारे में जानकारी मत दीजिए जिसे उस बारे में जानने का हक नहीं है।—सभो. 3:7.
मुश्किलों के दौरान भी आप शांति कैसे पा सकते हैं? (पैराग्राफ 17)e
17. प्रेषितों की तरह हम क्या करते रहेंगे?
17 शैतान खासकर इस वजह से हमसे युद्ध कर रहा है, क्योंकि हमें “यीशु की गवाही देने का काम मिला है।” (प्रका. 12:17) लेकिन शैतान और उसकी इस दुष्ट दुनिया से मत डरिए। विरोध के बावजूद लोगों को प्रचार करते रहिए और उन्हें सिखाते रहिए। इससे आपको खुशी और शांति मिलेगी। पहली सदी में भी जब यहूदी महासभा ने प्रेषितों से कहा कि वे प्रचार करना बंद कर दें, तो उन्होंने उन लोगों की सुनने के बजाय परमेश्वर की आज्ञा मानी और प्रचार करते रहे। इससे उन्हें बड़ी खुशी मिली। (प्रेषि. 5:27-29, 41, 42) जब हमारे काम पर पाबंदी लगी हो, तो प्रचार करते वक्त हमें एहतियात तो बरतनी पड़ेगी। (मत्ती 10:16) पर जब हम जितना हो सके उतना प्रचार करने की कोशिश करेंगे तो हमें शांति मिलेगी, क्योंकि हम ऐसा काम कर रहे होंगे जिससे लोगों की जान बच सकती है और यहोवा को खुश कर रहे होंगे।
‘शांति का परमेश्वर आपके साथ रहेगा’
18. कौन हमें सच्ची शांति दे सकता है?
18 यकीन रखिए, हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों ना हों, हम शांत रह सकते हैं। ऐसे वक्त में हमें ‘परमेश्वर की शांति’ की ज़रूरत होती है और यह सिर्फ यहोवा दे सकता है। इसलिए जब कोई बीमारी फैले, विपत्ति आए या आप पर ज़ुल्म किए जाएँ, यहोवा पर भरोसा रखिए। संगठन से मिलनेवाली हिदायतें मानिए और भाई-बहनों के करीब रहिए। यहोवा ने आपको जो अच्छी ज़िंदगी देने का वादा किया है, उसके बारे में सोचते रहिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो ‘शांति का परमेश्वर आपके साथ रहेगा।’ (फिलि. 4:9) आपकी तरह दूसरे भाई-बहन भी कई मुश्किलें झेल रहे हैं। आप उनकी भी मदद कर सकते हैं ताकि वे ‘परमेश्वर की शांति’ पाएँ। इस बारे में हम अगले लेख में बात करेंगे।
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
a यहोवा ने वादा किया है कि जो लोग उससे प्यार करते हैं, उन्हें वह शांति देगा। इस लेख में हम जानेंगे कि ‘परमेश्वर की शांति’ क्या है और हम इसे कैसे पा सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि जब कोई बीमारी फैलती है, विपत्ति आती है या ज़ुल्म किए जाते हैं, तो ‘परमेश्वर की शांति’ होने से हम ऐसे हालात का सामना कैसे कर सकते हैं।
b इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।
c 2017 की सजग होइए! के अंक 5 में दिया लेख “जब कहर टूट पड़े—कुछ कदम उठाएँ और जान बचाएँ” पढ़ें।
d तसवीर के बारे में: एक बहन ने पहले से तैयारी की, इसलिए ज़रूरत पड़ने पर वे तुरंत घर से निकल पायीं।
e तसवीर के बारे में: एक भाई ऐसी जगह रहता है जहाँ हमारे काम पर पाबंदी लगी है। वह एहतियात बरतते हुए गवाही दे रहा है।