अध्ययन लेख 22
गीत 15 यहोवा के पहलौठे की तारीफ करें!
यहोवा का नाम यीशु के लिए कितना मायने रखता था?
“मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा।”—यूह. 17:26.
क्या सीखेंगे?
जब यीशु ने कहा कि उसने लोगों को यहोवा का नाम बताया है, तो उसका क्या मतलब था? और उसने कैसे यहोवा के नाम को पवित्र किया और उस पर लगे इलज़ामों को झूठा साबित किया?
1-2. (क) अपनी मौत से पहले यीशु ने क्या किया? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
नीसान 14, ईसवी सन् 33 की बात है। गुरुवार का दिन है और काफी रात हो चुकी है। यीशु अपने वफादार प्रेषितों के साथ एक घर के ऊपर के कमरे में है और उन्होंने अभी-अभी प्रभु का संध्या-भोज मनाया है। यीशु जानता है कि बहुत जल्द उसे धोखे से पकड़वाया जाएगा, उस पर मुकदमा चलाया जाएगा, सज़ा सुनायी जाएगी और फिर तड़पा-तड़पाकर मार डाला जाएगा। इसलिए वह अपने चेलों की हिम्मत बँधाता है। फिर वहाँ से निकलने से पहले वह उनके साथ मिलकर प्रार्थना करता है। आगे चलकर प्रेषित यूहन्ना ने इस प्रार्थना को अपनी खुशखबरी की किताब में लिखा जिसे हम यूहन्ना अध्याय 17 में पढ़ सकते हैं।
2 इस लेख में हम इसी प्रार्थना पर ध्यान देंगे और इन सवालों के जवाब जानेंगे: अपनी मौत से पहले यीशु को किस बात की चिंता थी? और धरती पर रहते वक्त क्या बात उसके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती थी?
“मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है”
3. यीशु ने अपनी प्रार्थना में क्या कहा और उसके कहने का क्या मतलब था? (यूहन्ना 17:6, 26)
3 यीशु ने अपनी प्रार्थना में कहा, “मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है।” उसने दो बार कहा कि उसने अपने चेलों को यहोवा का नाम बताया है। (यूहन्ना 17:6, 26 पढ़िए।) उसके कहने का क्या मतलब था? क्या उसके चेले नहीं जानते थे कि परमेश्वर का नाम क्या है? यीशु के चेले यहूदी थे और जानते थे कि परमेश्वर का नाम यहोवा है। यह नाम इब्रानी शास्त्र में हज़ारों बार आया था। तो जब यीशु ने कहा कि “मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है,” तो असल में वह कह रहा था कि मैंने उन्हें सिखाया है कि यहोवा कैसा परमेश्वर है, उसमें कौन-कौन से गुण हैं, उसने धरती और इंसानों के लिए क्या सोचा है, उसने क्या कुछ किया है और आगे क्या करेगा। यहोवा के बारे में ये सारी बातें यीशु ही सबसे अच्छी तरह बता सकता था!
4-5. (क) एक उदाहरण देकर समझाइए कि एक व्यक्ति को जानने से उसके नाम के मायने कैसे बदल जाते हैं। (ख) यीशु के चेलों के लिए यहोवा के नाम के मायने कैसे बदल गए?
4 मान लीजिए कि आपकी मंडली में डेविड नाम का एक प्राचीन है जो डॉक्टर भी है। आप डेविड को कई सालों से जानते हैं। एक दिन अचानक आपकी तबियत बहुत खराब हो जाती है और आपको उसी अस्पताल में ले जाया जाता है जहाँ वह काम करता है। वह आपका इलाज करता है और आपकी जान बचा लेता है। इसके बाद आप जब भी डेविड का नाम सुनेंगे, तो आपके मन में क्या आएगा? आप सिर्फ यह नहीं सोचेंगे कि वह आपकी मंडली का एक प्राचीन है, बल्कि यह भी सोचेंगे कि वह कितना अच्छा डॉक्टर है और उसने आपकी जान बचायी थी।
5 उसी तरह यीशु के चेले परमेश्वर का नाम पहले से जानते थे। लेकिन जब यीशु धरती पर आया और उसने सेवा की, तो उसके चेलों के लिए यहोवा के नाम के मायने बदल गए। वह कैसे? वे देख पाए कि यीशु बिलकुल अपने पिता जैसा है। उसने जो कुछ कहा और किया, उससे वे समझ पाए कि उसका पिता यहोवा कैसा है। जी हाँ, यीशु की शिक्षाएँ सुनकर और उसका व्यवहार देखकर चेले यहोवा को अच्छी तरह ‘जान पाए।’—यूह. 14:9; 17:3.
“अपने नाम की खातिर जो तूने मुझे दिया है”
6. जब यीशु ने कहा कि यहोवा ने उसे अपना नाम दिया है, तो उसका क्या मतलब था? (यूहन्ना 17:11, 12)
6 अपने चेलों के बारे में यीशु ने अपने पिता से प्रार्थना में कहा, “अपने नाम की खातिर जो तूने मुझे दिया है, उनकी देखभाल कर।” (यूहन्ना 17:11, 12 पढ़िए।) तो जब यीशु ने कहा कि यहोवा ने उसे ‘अपना नाम दिया है,’ तो क्या उसके कहने का यह मतलब था कि उसका नाम बदल गया है और उसे यहोवा बुलाया जाएगा? जी नहीं। ध्यान दीजिए कि यीशु ने यहोवा से कहा कि वह अपने नाम की खातिर ऐसा करे। इससे पता चलता है कि यीशु का नाम बदलकर यहोवा नहीं हो गया था। तो फिर यीशु के कहने का क्या मतलब था कि ‘तूने मुझे अपना नाम दिया है’? एक तो यह कि वह यहोवा का प्रतिनिधि था और उसकी तरफ से बोलता था। वह अपने पिता के नाम से आया था और उस नाम से उसने बड़े-बड़े चमत्कार किए थे। (यूह. 5:43; 10:25) इसके अलावा यीशु के नाम का मतलब है, “यहोवा उद्धार है,” यानी उसके नाम के मतलब में यहोवा का नाम भी आता है। इसलिए उसने कहा कि पिता ने उसे अपना नाम दिया है।
7. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु यहोवा की तरफ से बोलता था? उदाहरण दीजिए।
7 एक राजदूत अपने देश के राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है। वह उसके नाम से आता है और उसकी तरफ से बोलता है। जब वह कोई बात कहता है, तो यह ऐसा है मानो राष्ट्रपति ने वह बात कही है। उसी तरह यीशु यहोवा का प्रतिनिधि था और उसके नाम से आया था। इसलिए वह जो भी बोलता था, वह मानो पिता की तरफ से था।—मत्ती 21:9; लूका 13:35.
8. धरती पर आने से सदियों पहले यीशु किस मायने में ‘यहोवा के नाम से’ आया था? (निर्गमन 23:20, 21)
8 यीशु अपने पिता यहोवा की तरफ से बोलता था, इसलिए उसे “वचन” भी कहा गया है। वह स्वर्गदूतों और इंसानों तक यहोवा का संदेश पहुँचाता था और उसकी हिदायतें देता था। (यूह. 1:1-3) ऐसा मालूम होता है कि वीराने में यहोवा ने इसराएलियों की हिफाज़त करने और उन्हें राह दिखाने के लिए जिस स्वर्गदूत को भेजा था, वह यीशु ही था। यहोवा ने इसराएलियों से कहा कि उन्हें उस स्वर्गदूत की बात माननी है। क्यों? यहोवा ने कहा, “वह मेरे नाम से तुम्हारे पास आता है।”a (निर्गमन 23:20, 21 पढ़िए।) इससे पता चलता है कि यीशु ‘यहोवा के नाम से,’ यानी उसकी तरफ से बोलता था। और उसने उसका नाम पवित्र करने में और उस पर लगे इलज़ामों को झूठा साबित करने में सबसे अहम भूमिका निभायी।
“पिता अपने नाम की महिमा कर”
9. समझाइए कि यीशु के लिए यहोवा का नाम कितना मायने रखता था।
9 जैसा हमने देखा, धरती पर आने से पहले यीशु के लिए यहोवा का नाम बहुत मायने रखता था। और धरती पर रहते वक्त भी यह नाम उसके लिए बहुत अहमियत रखता था। उसने जो कुछ किया, यहोवा के नाम के लिए किया। अपनी सेवा के आखिर में उसने कहा, “पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब स्वर्ग से तुरंत यहोवा की ज़ोरदार आवाज़ आयी, “मैंने इसकी महिमा की है और फिर से करूँगा।”—यूह. 12:28.
10-11. (क) यीशु ने कैसे यहोवा के नाम की महिमा की? (तसवीर भी देखें।) (ख) यहोवा के नाम को पवित्र करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
10 यीशु ने भी अपने पिता के नाम की महिमा की। कैसे? उसने दूसरों को बताया कि यहोवा कितना अच्छा परमेश्वर है और उसने इंसानों के लिए कितने लाजवाब काम किए हैं। लेकिन यहोवा के नाम की महिमा करने के लिए यह भी ज़रूरी था कि उसका नाम पवित्र किया जाए और उस पर लगे इलज़ामों को झूठा साबित किया जाए। यीशु के लिए यह बात कितनी अहमियत रखती थी, यह हमें आदर्श प्रार्थना से पता चलता है जो उसने अपने चेलों को सिखायी थी। उसने कहा था, “हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए।”—मत्ती 6:9.
11 यहोवा के नाम को पवित्र करने की ज़रूरत क्यों थी? क्योंकि अदन के बाग में शैतान ने यहोवा का अपमान किया और उस पर झूठा इलज़ाम लगाया। उसने दावा किया कि यहोवा झूठा है और आदम-हव्वा को अच्छी चीज़ों से दूर रख रहा है। (उत्प. 3:1-5) शैतान ने यह भी दावा किया कि यहोवा के राज करने का तरीका सही नहीं है। इस तरह उसने यहोवा को बदनाम किया और उस पर कीचड़ उछाला। आगे चलकर अय्यूब के ज़माने में शैतान ने इंसानों पर भी सवाल खड़ा किया। उसने दावा किया कि इंसान स्वार्थी हैं। वे सिर्फ अपने फायदे के लिए यहोवा की सेवा करते हैं। उसने यह भी दावा किया कि इंसान यहोवा से प्यार नहीं करते। अगर उन पर मुश्किलें लायी जाएँ, तो वे यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे। (अय्यू. 1:9-11; 2:4) यह एक बड़ा मसला था और यह साबित करने में वक्त लगता कि कौन झूठा है, शैतान या यहोवा!
यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि यह बहुत ज़रूरी है कि परमेश्वर का नाम पवित्र किया जाए (पैराग्राफ 10)
“मैं अपनी जान देता हूँ”
12. यीशु को यहोवा का नाम बहुत प्यारा था, इसके लिए वह क्या करने को तैयार था?
12 यीशु अपने पिता से बहुत प्यार करता था। वह हर हाल में अपने पिता के नाम को पवित्र करना चाहता था और उस पर लगे इलज़ामों को झूठा साबित करना चाहता था। इसके लिए वह क्या करने को तैयार था? उसने कहा, “मैं अपनी जान देता हूँ।” (यूह. 10:17, 18) अपने पिता की खातिर वह मरने को तैयार था।b आदम-हव्वा की बात करें, तो वे परिपूर्ण थे, लेकिन उन्होंने यहोवा से मुँह मोड़ लिया और शैतान का साथ दिया। वहीं यीशु अपने पिता से इतना प्यार करता था कि वह खुशी-खुशी धरती पर आया और उसने हमेशा यहोवा की बात मानी। (इब्रा. 4:15; 5:7-10) वह यातना के काठ पर आखिरी साँस तक उसका वफादार बना रहा। (इब्रा. 12:2) इस तरह उसने साबित किया कि वह यहोवा से और उसके नाम से कितना प्यार करता था।
13. यीशु क्यों सबसे अच्छी तरह यह साबित कर सकता था कि शैतान झूठा है? (तसवीर भी देखें।)
13 यीशु ने जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी, उससे साबित किया कि शैतान झूठा है, ना कि यहोवा! (यूह. 8:44) यीशु यहोवा को जितनी अच्छी तरह जानता है, उतना और कोई नहीं जानता। अगर शैतान के लगाए इलज़ामों में ज़रा-भी सच्चाई होती, तो यीशु को उस बारे में पता होता। पर वह जानता था कि शैतान के दावे झूठे हैं, इसलिए वह यहोवा के पक्ष में खड़ा रहा और उसके नाम को पवित्र करता रहा। यातना के काठ पर जब उसे एहसास हुआ कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है, तब भी वह अपनी जान देने से पीछे नहीं हटा। आखिरी दम तक वह यहोवा का वफादार रहा।—मत्ती 27:46.c
यीशु ने जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी, उससे साबित किया कि शैतान झूठा है, ना कि यहोवा! (पैराग्राफ 13)
‘जो काम तूने मुझे दिया है मैंने उसे पूरा किया है’
14. यहोवा का वफादार रहने से यीशु को क्या इनाम मिला?
14 अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने प्रार्थना में यहोवा से कहा, ‘जो काम तूने मुझे दिया है मैंने उसे पूरा किया है।’ यीशु को पूरा भरोसा था कि यहोवा उसकी वफादारी के लिए उसे इनाम देगा। (यूह. 17:4, 5) और यहोवा ने ऐसा ही किया। उसने यीशु को कब्र में नहीं छोड़ दिया, बल्कि उसने उसे ज़िंदा किया और स्वर्ग में पहले से भी ऊँचा पद दिया। (प्रेषि. 2:23, 24; फिलि. 2:8, 9) आगे चलकर यहोवा ने यीशु को अपने राज का राजा बनाया। यह राज क्या करेगा? आदर्श प्रार्थना में यीशु ने कहा, “तेरा राज आए। तेरी मरज़ी [यहोवा की मरज़ी] जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो।”—मत्ती 6:10.
15. यीशु आगे क्या करेगा?
15 आगे चलकर यीशु हर-मगिदोन के युद्ध में यहोवा के दुश्मनों से लड़ेगा और दुष्ट लोगों को खत्म कर देगा। (प्रका. 16:14, 16; 19:11-16) उसके बाद यीशु शैतान को “अथाह-कुंड” में फेंक देगा जहाँ वह कुछ नहीं कर पाएगा। (प्रका. 20:1-3) यीशु अपने हज़ार साल के राज के दौरान पूरी धरती पर शांति लाएगा और सभी इंसानों को परिपूर्ण बना देगा। वह मरे हुओं को ज़िंदा करेगा और पूरी धरती को फिरदौस बना देगा। तब जाकर यहोवा का वह मकसद पूरा होगा जो उसने धरती और इंसानों के लिए ठहराया था।—प्रका. 21:1-4.
16. यीशु के हज़ार साल के राज के आखिर में क्या होगा?
16 यीशु के हज़ार साल के राज के आखिर तक पाप का नामो-निशान मिट चुका होगा। हमें फिरौती के आधार पर पापों की माफी माँगने की ज़रूरत नहीं होगी, ना ही परमेश्वर के साथ रिश्ता कायम करने के लिए हमें किसी बिचवई या याजकों की ज़रूरत होगी। हमारे “सबसे आखिरी दुश्मन को मिटा दिया जाएगा, वह है मौत” जो हमें आदम से मिली है। सारी कब्रें खाली हो जाएँगी। मरे हुए दोबारा ज़िंदा हो चुके होंगे। और धरती पर सभी इंसान परिपूर्ण हो गए होंगे।—1 कुरिं. 15:25, 26.
17-18. (क) मसीह के हज़ार साल के राज के आखिर में क्या होगा? (ख) यीशु अपने हज़ार साल के राज के बाद क्या करेगा? (1 कुरिंथियों 15:24, 28) (तसवीर भी देखें।)
17 यीशु के हज़ार साल के राज के बाद क्या होगा? उस समय कुछ बहुत ही खास होगा। यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा। सदियों से यहोवा के नाम को लेकर जो मसला चला आ रहा है, वह हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? अदन के बाग में शैतान ने दावा किया था कि यहोवा झूठा है, वह एक अच्छा राजा नहीं है और इंसानों से प्यार नहीं करता। लेकिन तब से लेकर आज तक यहोवा से प्यार करनेवाले और उसका आदर करनेवाले बहुत-से लोगों ने उसका नाम पवित्र किया है। मसीह के हज़ार साल के राज के आखिर में यहोवा अपने नाम को पूरी तरह पवित्र कर देगा और हमेशा के लिए साबित कर देगा कि वह एक प्यार करनेवाला पिता है।
18 आखिर में यह साबित हो जाएगा कि शैतान ने यहोवा पर जो इलज़ाम लगाए थे, वे झूठे हैं। फिर अपने हज़ार साल के राज के बाद यीशु क्या करेगा? क्या वह शैतान की तरह यहोवा से बगावत करेगा? बिलकुल नहीं! (1 कुरिंथियों 15:24, 28 पढ़िए।) वह अपने पिता यहोवा को राज सौंप देगा और उसके अधीन हो जाएगा। वह खुशी-खुशी सबकुछ अपने पिता के हवाले कर देगा, क्योंकि वह उससे बहुत प्यार करता है।
हज़ार साल की हुकूमत के बाद यीशु खुशी-खुशी यहोवा को राज सौंप देगा (पैराग्राफ 18)
19. यहोवा का नाम यीशु के लिए कितना मायने रखता है?
19 तो हम देख सकते हैं कि क्यों यहोवा ने यीशु को अपना नाम दिया! यीशु अपने पिता यहोवा की तरफ से आया था, वह उसका प्रतिनिधि था और उसने बिलकुल वही किया जैसा पिता चाहता था। उसके लिए यहोवा का नाम कितना मायने रखता था? उसके लिए इस नाम से बढ़कर कुछ नहीं था। इसकी खातिर उसने अपनी जान तक दे दी और अपने हज़ार साल के राज के बाद वह सबकुछ यहोवा को सौंप देगा। अब सवाल है, हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? इस बारे में हम अगले लेख में जानेंगे।
गीत 16 याह की तारीफ करें, मसीहा चुना उसने
a यीशु के अलावा दूसरे स्वर्गदूतों ने भी यहोवा के नाम से या उसकी तरफ से लोगों को संदेश दिए। बाइबल में कई जगहों पर जब स्वर्गदूत लोगों से बात कर रहे थे, तो ऐसे बताया गया है मानो खुद यहोवा बात कर रहा है। (उत्प. 18:1-33) जैसे कुछ आयतों में बताया है कि यहोवा ने मूसा को कानून दिया था, लेकिन दूसरी आयतों से पता चलता है कि यहोवा ने स्वर्गदूतों के ज़रिए यह कानून पहुँचाया था।—लैव्य. 27:34; प्रेषि. 7:38, 53; गला. 3:19; इब्रा. 2:2-4.
b इसके अलावा, यीशु के बलिदान से इंसानों के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खुल गया।
c अप्रैल 2021 की प्रहरीदुर्ग, पेज 30-31 पर दिया लेख, “आपने पूछा” पढ़ें।