मेरे पिता “परमाणु बम द्वारा जेल से बाहर” निकले
अगस्त ६, १९४५ के दिन, सुबह ८:१५ पर हिरोशिमा, जापान पर एक परमाणु-बम विस्फोट हुआ। इस बम-विस्फोट ने उस शहर को तहस-नहस कर दिया और उसकी हज़ारों की जनसंख्या को मिटा दिया। मेरे पिता ने सम्राट की उपासना करने और जापान के सैन्यवाद का समर्थन करने से इनकार किया था, इसलिए वे उस समय हिरोशिमा जेल में एक क़ैदी थे।
उस यादगार सुबह जो हुआ उसका वर्णन पिताजी अकसर करते थे। उन्होंने कहा: “मेरी कोठरी की छत पर रोशनी चमक उठी। फिर मैं ने बहुत ही तेज़ गड़गड़ाहट सुनी मानो सारे पर्वत एक साथ ढह गए हों। कोठरी तुरंत घने अंधियारे से भर गयी। मैं ने अपने सिर को गद्दे के नीचे खिसका लिया ताकि उस चीज़ से बच सकूँ जो गहरे रंग की गैस प्रतीत हो रही थी।
“सात या आठ मिनट बाद, मैं ने गद्दे के नीचे से अपना सिर ऊपर उठाया और पाया कि ‘गैस’ छँट चुकी थी। फिर से रोशनी हो गयी थी। शेल्फ से चीज़ें नीचे गिर गयीं और बड़ी मात्रा में धूल गिरी थी, जिससे सबकुछ बहुत गंदा हो गया था। जेल के चारों ओर की ऊँची दीवार के कारण, बाहर से आग अन्दर नहीं आयी थी।
“मैं ने पीछे की खिड़की से देखा और हक्का-बक्का रह गया! जेल के वर्कशॉप और लकड़ी की इमारतें सब मिट्टी में मिल गयी थीं। फिर मैं ने आगे की छोटी खिड़की से झाँका। सामनेवाले ब्लॉक की कोठरियाँ पूर्णतया नष्ट हो चुकी थीं। जो क़ैदी बच गए थे वे सहायता के लिए पुकार रहे थे। सब तरफ भय और दहशत थी—घोर गड़बड़ी और आतंक का एक दृश्य।”
जब मैं छोटा था तो पिताजी की बातें सुनकर रोमांचित हो जाता जब वे अपने, जैसा कि वे कहते हैं, “परमाणु बम द्वारा जेल से बाहर” निकाले जाने के बारे में बताते। वे यह कहानी दोष की किसी भी भावना के बिना बताते, क्योंकि उनको अन्यायी रूप से क़ैद किया गया था। पिताजी के विरुद्ध इल्ज़ामों के बारे में और उनकी क़ैद के वर्षों के दौरान उनके साथ जैसा बर्ताव किया गया उसके बारे में बताने से पहले, मैं बताना चाहूँगा कि कैसे मेरे माता-पिता तोडाइशा के संपर्क में आए। उस समय जापान में वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी को तोडाइशा कहा जाता था।
एक उद्देश्य की खोज करना
पिताजी किताबों के उत्साहपूर्ण प्रेमी थे, और बचपन से ही उन्होंने अपने आप को शिक्षित करने और अपनी जीवन स्थिति को बेहतर बनाने की क़ोशिश की। जब वे प्राथमिक स्कूल की पाँचवी कक्षा में ही थे, तब वे उत्तरपूर्वी जापान में ईशोनोमोरी में अपने घर से आँख बचाकर भाग निकले। सिर्फ़ एकतरफ़ा टिकट ख़रीदने के लिए पर्याप्त पैसों सहित, वे टोक्यो जानेवाली गाड़ी में सवार हो गए, जहाँ वे शीगेनोबू ओकुमा का नौकर बनने के लिए दृढ़संकल्प थे, जो दो बार जापान के प्रधान मंत्री रह चुके थे। लेकिन जब यह फटेहाल गाँव का लड़का श्री. ओकुमा के घर पहुँचा, तो नौकरी के लिए उसके निवेदन को ठुकरा दिया गया। बाद में पिताजी ने एक दूध की दुकान पर नौकरी हासिल की और वे उसी दुकान में रहते और काम करते थे।
जब वे किशोर ही थे, मेरे पिताजी ने राजनीतिज्ञों और विद्वानों द्वारा दिए गए भाषणों के लिए उपस्थित होना शुरू किया। एक भाषण में बाइबल का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण किताब के तौर पर उल्लेख किया गया। इसलिए पिताजी ने एक पूरी बाइबल प्राप्त की जिसमें अन्योन्य संदर्भ (cross references) और बाइबलीय नक़्शा था। उन्होंने जो पढ़ा उससे वे गहराई से प्रभावित हुए और ऐसा काम करने की इच्छा करने के लिए प्रेरित हुए जिससे सारी मानवजाति को लाभ हो।
आख़िरकार पिताजी घर लौटे, और अप्रैल १९३१ में, जब वे २४ वर्ष के थे, उन्होंने १७-वर्षीया हागीनो से विवाह किया। पिताजी के विवाह करने के कुछ ही समय बाद, एक सम्बन्धी ने उन्हें तोडाइशा द्वारा प्रकाशित साहित्य भेजा। पिताजी ने जो पढ़ा उससे प्रभावित होकर टोक्यो में तोडाइशा को लिखा। जून १९३१ में सेन्डाइ से मातसुई इशी नामक एक पूर्ण-समय सेविका ने ईशोनोमोरी में उनसे भेंट की।a पिताजी ने उससे किताबों का एक सेट स्वीकार किया जिसमें परमेश्वर की वीणा, सृष्टि, और सरकार (अंग्रेज़ी) किताबें भी शामिल थीं।
जीवन में एक उद्देश्य पाना
क़रीब-क़रीब तुरंत ही पिताजी ने समझ लिया कि विभिन्न चर्च शिक्षाएँ, जैसे मानव में एक अमर प्राण होना, दुष्टों का नरकाग्नि में सर्वदा के लिए जलना, और सृष्टिकर्ता का त्रियेक परमेश्वर होना, झूठी थीं। (सभोपदेशक ९:५, १०; यहेजकेल १८:४; यूहन्ना १४:२८) उन्होंने यह भी समझा कि इस संसार का अंत होगा। (१ यूहन्ना २:१७) यह जानने के इच्छुक कि उन्हें क्या करना चाहिए, उन्होंने तोडाइशा के नियुक्त प्रतिनिधि से संपर्क किया और उसने पिताजी को अगस्त १९३१ में भेंट की। उनकी चर्चाओं के परिणामस्वरूप, पिताजी ने बपतिस्मा लिया और उन्होंने यहोवा का पूर्ण-समय सेवक बनने का निर्णय किया।
विस्तृत चर्चाओं के बाद माँ भी क़ायल हो गयीं कि जो कुछ उन्होंने बाइबल से सीखा था वह सत्य था। उन्होंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और अक्तूबर १९३१ में बपतिस्मा लिया। जब मेरे पिता ने अपनी जायदाद की नीलामी करवायी, तो उनके रिश्तेदारों ने सोचा कि उनका दिमाग़ ख़राब हो गया है।
पूर्ण-समय सेवकों के तौर पर जीवन
पिताजी ने नीलामी से प्राप्त सारा पैसा अपनी माँ को दे दिया, और वे और माँ नवम्बर १९३१ में टोक्यो चले गए। यद्यपि उन्हें कोई निर्देश नहीं मिले थे कि कैसे दूसरों से परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार के बारे में बात करें, वहाँ पहुँचने के दूसरे ही दिन उन्होंने प्रचार करना शुरू कर दिया।—मत्ती २४:१४.
उनका जीवन आसान नहीं था। विशेषकर यह मेरी माँ के लिए कठिन था, जो उस वक़्त सिर्फ़ १७ वर्ष की थीं। वहाँ कोई संगी गवाह नहीं थे, कोई सभाएँ नहीं थीं, और कोई कलीसिया नहीं थी—बस था तो सुबह ९ बजे से शाम ४ बजे तक घर-घर बाइबल साहित्य बाँटने का रोज़ाना कार्यक्रम।
वर्ष १९३३ में उनकी प्रचार नियुक्ति टोक्यो से बदलकर कोबे कर दी गयी। फरवरी ९, १९३४ के दिन मैं वहाँ पैदा हुआ। मेरी माँ ने मेरे जन्म के एक महीने पहले तक सेवकाई में उत्साह से काम किया। उसके बाद मेरे माता-पिता यामागूची, ऊबे, कूरे, और आख़िरकार हिरोशिमा गए, और हर जगह लगभग एक साल प्रचार किया।
मेरे माता-पिता को गिरफ़्तार किया जाता है
जैसे-जैसे जापान का सैन्यवाद बढ़ता गया, वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगाया गया और गवाह ‘विशेष ख्प्ताफ़िया सेवा पुलिस’ की सख़्त निगरानी में रखे गए। फिर जून २१, १९३९ के दिन, सारे जापान में यहोवा के गवाहों के पूर्ण-समय सेवकों को गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तार किए जानेवालों में माँ और पिताजी भी थे। मुझे मेरी दादी की देख-रेख में सौंप दिया गया जो ईशोनोमोरी में रहती थीं। आठ महीने हवालात में रखे जाने के बाद, माँ को रिहा किया गया और उन पर अधिकारियों द्वारा निकट रूप से निगाह रखी गयी, और आख़िरकार १९४२ में, मैं उनसे सेन्डाइ में मिल सका।
इसी समय के दौरान, अन्य गवाहों सहित पिताजी से हिरोशिमा पुलिस स्टेशन में ख्प्ताफ़िया पुलिस ने पूछताछ की। गवाहों को बुरी तरह से पीटा गया, क्योंकि उन्होंने सम्राट की उपासना करने या जापान के सैन्यवाद का समर्थन करने से इनकार किया। प्रश्नकर्ता पिताजी को यहोवा की उपासना करने से टस से मस न कर सका।
दो वर्षों से अधिक नज़रबंदी में रखने के बाद, पिताजी पर मुकद्दमा चलाया गया। एक सत्र के दौरान, न्यायाधीश ने पूछा: “मीऊरा, तुम महामहिम, सम्राट के बारे में क्या सोचते हो?”
पिताजी ने जवाब दिया, “महामहिम, सम्राट भी आदम का वंशज है और एक मरनहार, अपरिपूर्ण मानव है।” उस कथन ने न्यायालय के स्टेनोग्राफर को इतना स्तब्ध किया कि उसने वह बात लिखी ही नहीं। असल में अधिकांश जापानी लोग उस समय सम्राट को ईश्वर मानते थे। पिताजी को पाँच साल की क़ैद की सज़ा सुनायी गयी, और न्यायाधीश ने उनसे कहा कि जब तक वह अपने विश्वास को त्याग न देगा, तब तक अपना बाक़ी जीवन क़ैदखाने में ही गुज़ारेगा।
कुछ ही समय बाद, दिसम्बर १९४१ में, जापान ने पर्ल हार्बर, हवाई में अमरीका पर हमला किया। जेल में खाने की कमी हो गयी, और सर्दी के महीनों में, कपड़ों के अभाव के कारण पिताजी को अनेक ठंडी, निद्रारहित रातें गुज़ारनी पड़ीं। यद्यपि वे सारी आध्यात्मिक संगति से कट चुके थे, जेल के पुस्तकालय में वे बाइबल प्राप्त कर सकते थे, और उसे बार-बार पढ़ने के द्वारा उन्होंने आध्यात्मिक ताक़त बनाए रखी।
जब बम गिरा
अगस्त ६, १९४५ के दिन प्रातःकाल, एक क़ैदी पिताजी के साथ किताबें अदल-बदल करना चाहता था। इसकी मनाही थी, लेकिन क्योंकि उस क़ैदी ने पहले ही अपनी किताब को प्रवेश-कक्ष से पिताजी की कोठरी में खिसका दिया था, तो पिताजी ने भी अपनी किताब उस क़ैदी की कोठरी में खिसका दी। सो उस सुबह अपने सामान्यतः अपरिवर्तनीय कार्यक्रम का पालन करने के बजाय, जब बम गिरा तो पिताजी पढ़ रहे थे। सामान्य तौर पर सुबह के उस समय वह अपनी कोठरी में शौचालय जाते थे। धमाके के बाद, पिताजी ने देखा कि शौचालय का क्षेत्र गिरते हुए मलबे से नष्ट हो गया था।
पिताजी को फिर पास के ईवाकूनी जेल ले जाया गया। उसके तुरंत बाद, जापान ने मित्र राष्ट्र सेनाओं के सामने हथियार डाल दिए, और युद्धोत्तर गड़बड़ी के बीच उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। दिसम्बर १९४५ में वे ईशोनोमोरी में घर लौटे। उनका स्वास्थ्य बिगड़ चुका था। वे मात्र ३८ वर्ष के थे, लेकिन एक वृद्ध व्यक्ति की तरह लग रहे थे। पहले तो मैं विश्वास न कर सका कि वे मेरे पिताजी हैं।
उनका विश्वास अब भी मज़बूत
जापान गड़बड़ी की स्थिति में था, और हम नहीं जानते थे कि मुट्ठी भर वफ़ादार गवाह कहाँ बिखर चुके थे। ना ही हमारे पास यहोवा के गवाहों का कोई साहित्य उपलब्ध था। फिर भी, पिताजी ने मुझे सीधे बाइबल से यहोवा के राज्य, नए संसार, और निकट आ रहे हरमगिदोन के युद्ध के बारे में सिखाया।—भजन ३७:९-११, २९; यशायाह ९:६, ७; ११:६-९; ६५:१७, २१-२४; दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:९, १०.
बाद में, जब मुझे हाई स्कूल में विकासवाद सिखाया गया और मैं परमेश्वर के अस्तित्व पर संदेह करने लगा, तो मेरे पिताजी ने परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में मुझे विश्वास दिलाने की कोशिश की। जब मैं विश्वास करने के लिए अनिश्चित था, तो उन्होंने आख़िरकार कहा: “संसार के अधिकांश लोगों ने युद्ध का समर्थन किया और लहू बहाने के दोषी हो गए। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं बाइबल सत्य से जुड़ा रहा और कभी भी न तो सैन्यवाद या सम्राट उपासना का समर्थन किया, ना ही युद्ध का समर्थन किया। सो अपने आप ध्यानपूर्वक विचार करो कि जीवन का सच्चा मार्ग कौन-सा है जिस पर तुम्हें चलना चाहिए।”
यह जानते हुए कि मेरे पिता क्या सिखाते थे और किसके अनुसार जीते थे और उसकी तुलना स्कूल में सीखी हुई बातों से करने पर, मैं देख सका कि विकासवाद सोच-विचार का उचित तरीक़ा नहीं हो सकता। यद्यपि किसी भी विकासवादी ने अपने विश्वास के लिए अपने जीवन को ख़तरे में नहीं डाला होगा, मेरे पिता अपने विश्वास के लिए मरने को तैयार थे।
एक दिन मार्च १९५१ में, युद्ध समाप्त होने के पाँच साल से भी अधिक समय बाद, पिताजी आसाही समाचार-पत्र पढ़ रहे थे। अचानक वे चिल्ला पड़े: “वे आ गए, वे आ गए!” उन्होंने मुझे वह समाचार-पत्र दिखाया। यह लेख यहोवा के गवाहों के पाँच मिशनरियों के बारे में था जो अभी-अभी ओसाका में आए थे। हर्ष से उछलते हुए, पिताजी ने समाचार-पत्र से संपर्क किया और उन्हें पता चला कि यहोवा के गवाहों ने टोक्यो में अपना शाखा दफ़्तर स्थापित किया है। उन्होंने पता हासिल किया और शाखा में भेंट की, और इस प्रकार यहोवा के संगठन के साथ फिर से संपर्क स्थापित किया।
अंत तक वफ़ादार
वर्ष १९५२ में हमारा परिवार सेन्डाइ चला गया। वॉच टावर सोसाइटी के मिशनरी, डॉनल्ड और मेबल हैसलट उसी वर्ष वहाँ आए और वॉचटावर अध्ययन आयोजित करने के लिए एक मकान किराए पर ले लिया। मात्र चार व्यक्ति उस पहली सभा में उपस्थित थे—हैसलट परिवार, मेरे पिता, और मैं। उसके बाद शीनीची और मासाको तोहारा, ऐडलाइन नाको और लिलयन सैमसन, हैसलट परिवार के साथ सेन्डाइ में मिशनरियों के तौर पर मिल गए।
इन मिशनरियों के साथ संगति के द्वारा, हमारे परिवार ने परमेश्वर के वचन और संगठन के ज्ञान में प्रगति की। युद्ध के दौरान हुई बातों से माँ का विश्वास डगमगा गया था। लेकिन जल्द ही सभाओं में जाने और क्षेत्र सेवकाई में भाग लेने के लिए वे भी हमारे साथ आने लगीं। मैं यहोवा परमेश्वर को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित हुआ और अप्रैल १८, १९५३ में बपतिस्मा प्राप्त किया।
युद्ध के बाद पिताजी ने बीमा कंपनी के लिए एक विक्रेता के रूप में काम किया। उनकी क़ैद के उत्तरप्रभावों के बावजूद भी, जिनमें गुर्दे की ख़राबी और उच्च रक्तचाप सम्मिलित थे, उनकी यह तीव्र इच्छा थी कि पायनियर के तौर पर पूर्ण-समय सेवकाई को दुबारा शुरू करें। उन्होंने लगभग उसी समय ऐसा किया जब मेरा बपतिस्मा हुआ। यद्यपि ख़राब स्वास्थ्य ने उन्हें लंबे समय तक पायनियर के तौर पर कार्य करने की अनुमति नहीं दी, सेवकाई के लिए उनके जोश ने मुझे प्रेरित किया कि जिस विश्वविद्यालय में मैं पढ़ता था उसे छोड़कर पूर्ण-समय की सेवा पेशे के तौर पर शुरू करूँ।
नागोया से एक उत्तम युवक, ईसामु सूगीऊरा को मेरे पायनियर साथी के रूप में नियुक्त किया गया। मई १, १९५५ के दिन हमने ख़ास पायनियरों के तौर पर अपनी सेवकाई क्युशु द्वीप पर बेप्पू में शुरू की। उस समय सारे द्वीप पर सिर्फ़ मुट्ठी भर ही गवाह थे। अब, ३९ वर्ष बाद, वहाँ आध्यात्मिक रूप से फलती-फूलती १५ सर्किट हैं और १८,००० से अधिक गवाह द्वीप पर हैं। और सारे जापान में, अब क़रीब-क़रीब २,००,००० गवाह हैं।
वर्ष १९५६ के वसन्त में, ईसामु और मुझे अमरीका में वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड में उपस्थित होने का आमंत्रण मिला। हम आनन्द-विभोर हो उठे। लेकिन, यात्रा की तैयारी के लिए जब मेरे शरीर की डाक्टरी जाँच की गई, तो डाक्टरों ने पाया कि मुझे क्षयरोग है। बहुत ही निराश होकर, मैं सेन्डाइ में घर लौट आया।
तब तक पिताजी का शारीरिक स्वास्थ्य बदतर हो चुका था और वे घर में बिस्तर पर आराम कर रहे थे। हमारा किराए का मकान मात्र नौ-वर्ग-मीटर का एक कमरा था जिसका फ़र्श टाटामी चटाइयों से बना था। मेरे पिता और मैं पास-पास पड़े रहे। क्योंकि पिताजी काम नहीं कर सकते थे, हमारी आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए माँ को कठिन समय से गुज़रना पड़ा।
जनवरी १९५७ में, फ्रेड्रिक डब्ल्यू. फ्रान्ज़, उस समय वॉच टावर संस्था के उपाध्यक्ष, ने जापान में भेंट की, और क्योटो में एक विशेष अधिवेशन आयोजित किया गया। पिताजी ने उपस्थित होने के लिए माँ से आग्रह किया। यद्यपि माँ हमारी बीमार स्थिति में हमें छोड़कर जाने के लिए अनिच्छुक थीं, उन्होंने पिताजी की बात मानी और अधिवेशन के लिए निकल पड़ीं।
उसके तुरंत बाद पिताजी की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती गयी। हम पास-पास लेटे हुए थे, तो मैं चिन्ता करने लगा, और उनसे पूछा कि हम अपने आप को कैसे सँभाल पाएँगे। इस पर पिताजी ने जवाब दिया: “हमने अपनी जान भी जोखिम में डालकर यहोवा की सेवा की है, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। तुम क्यों चिन्ता करते हो? हमें जिस चीज़ की ज़रूरत है यहोवा वह निश्चय ही प्रदान करेगा।” फिर उन्होंने एक बहुत ही कोमल तरीक़े से यह कहकर मुझे समझाया: “अपने आप में ज़्यादा मज़बूत विश्वास विकसित करो।”
मार्च २४, १९५७ के दिन पिताजी ने अपनी आख़री साँस ली। उनकी अंत्येष्टि के बाद मैं उस बीमा कंपनी में गया जिसके लिए उन्होंने काम किया था ताकि बातों को निपटा सकूँ। जैसे मैं लौट रहा था, तो शाखा प्रबंधक ने मुझे एक काग़ज़ का थैला पकड़ा दिया और कहा: “यह तुम्हारे पिताजी का है।”
घर लौटने पर मैं ने उसके अन्दर पैसों की काफ़ी बड़ी रकम पायी। जब मैं ने बाद में प्रबंधक से इसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह पैसा उस प्रीमियम से था जो मासिक तौर पर पिताजी की तनख़्वाह से उनकी जानकारी के बिना कटता था। इस तरह पिताजी के शब्द, “हमें जिस चीज़ की ज़रूरत है यहोवा वह निश्चय ही प्रदान करेगा,” वाक़ई सच हुए। इस बात ने यहोवा की रक्षात्मक परवाह में मेरे विश्वास को बहुत ज़्यादा मज़बूत किया।
दशकों तक निरंतर सेवा
उस पैसे से प्राप्त भौतिक सहायता ने मुझे मदद दी ताकि मैं घर पर पुनःस्वस्थ होने पर ध्यान दे सकूँ। एक वर्ष बाद, १९५८ में माँ को और मुझे ख़ास पायनियरों के तौर पर नियुक्त किया गया। उसके बाद जापान में मैं ने सफ़री ओवरसियर के तौर पर सेवा की, और फिर १९६१ में मुझे गिलियड स्कूल के दस-महीने के कोर्स में उपस्थित होने का विशेषाधिकार मिला। यह स्कूल ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क स्थित यहोवा के गवाहों के मुख्यालय में आयोजित किया गया।
जब मैं जापान लौटा, मैं ने फिर से सफ़री ओवरसियर के तौर पर कलीसियाओं को भेंट देनी शुरू की। फिर १९६३ में, मैं ने यासुको हाबा से विवाह किया, जो टोक्यो में यहोवा के गवाहों के शाखा दफ़्तर में काम कर रही थी। वर्ष १९६५ तक सफ़री कार्य में उसने मेरा साथ दिया, फिर हमें टोक्यो में शाखा दफ़्तर में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया गया। तब से हम दोनों ने इकट्ठे सेवा की है—पहले टोक्यो में शाखा स्थल पर, फिर नूमाज़ू में, और अब एबीना में।
माँ १९६५ तक ख़ास पायनियर सेविका रहीं। तब से वे अनेक लोगों को बाइबल की सच्चाइयों को स्वीकार करने में सहायता देने में काफ़ी सक्रिय रही हैं। उनकी उम्र अब ७९ वर्ष है लेकिन तुलनात्मक रूप से स्वस्थ हैं। हम ख्प्ताश हैं कि वे पास ही रहती हैं और एबीना शाखा दफ़्तर के पास उसी कलीसिया में उपस्थित हो सकती हैं जिसमें हम उपस्थित होते हैं।
हम यहोवा परमेश्वर को सचमुच धन्यवाद देते हैं कि मेरे पिता हिरोशिमा पर परमाणु-बम विस्फोट से बच गए। उन्होंने अपना विश्वास क़ायम रखा, और मेरी यह इच्छा है कि नए संसार में उनका स्वागत करूँ और यह बताऊँ कि हम अरमगिदोन से कैसे बचाए गए, वह युद्ध जिसे देखने की उन्हें कितनी चाहत थी। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६; २१:३, ४)—त्सुतोमू मीऊरा द्वारा बताया गया।
[फुटनोट]
a मातसुई इशी की जीवन कहानी के लिए, कृपया मई १, १९८८ की द वॉचटावर, पृष्ठ २१-५ देखिए।
[पेज 12 पर तसवीरें]
कातसुओ और हागीनो मीऊरा, अपने बेटे त्सुतोमू मीऊरा के साथ
[पेज 16 पर तसवीरें]
त्सुतोमू मीऊरा जापान शाखा दफ़्तर में काम करते हुए
[पेज 14 पर चित्र का श्रेय]
Hiroshima Peace and Culture Foundation from material returned by the United States Armed Forces Instititue of Pathology