घास हरी क्यों होती है प्रकाश-संश्लेषण पर क़रीब से एक नज़र
“घास हरी क्यों होती है?” जब आप बच्चे थे तब शायद आपने यह सवाल पूछा था। क्या आप जवाब से संतुष्ट हुए थे? इसके जैसे बच्चों के सवाल बहुत ही दुर्बोध हो सकते हैं। वे हमें ऐसी रोज़मर्रा की बातों को ज़्यादा ध्यान से देखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं जिन्हें हम महत्त्वपूर्ण नहीं समझते और उन छुपे हुए आश्चर्यों को प्रकट कर सकते हैं जिनके होने का हमें अंदेशा ही नहीं था।
यह समझने के लिए कि घास हरी क्यों होती है, किसी ऐसी चीज़ की कल्पना कीजिए जो शायद लगे कि घास के साथ कोई वास्ता नहीं रखती है। अगर आप कर सकते हैं तो एक श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी की कल्पना कीजिए। श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी के परिचालन में शोर-शराबा नहीं होगा और वह देखने में आकर्षक लगेगी, है ना? प्रदूषण फैलाने के बजाय, यह श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी अपने परिचालन भर से वातावरण को असल में बेहतर बनाएगी। निःसंदेह, यह सब के लिए कुछ उपयोगी वस्तु—वास्तव में अत्यावश्यक वस्तु—उत्पन्न करेगी। ऐसी फ़ैक्टरी सौर शक्ति से चलती, क्या आपको नहीं लगता? इस तरीक़े से, उसे चलने के लिए बिजली की तारों या कोयले अथवा तेल के पहुँचाए जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
निःसंदेह यह सौर-शक्ति से चलनेवाली श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी, मनुष्य की वर्तमान टॆक्नॉलॉजी से कहीं श्रेष्ठ सौर-बैटरियों का प्रयोग करती। बनाने और प्रयोग करने दोनों में वह बहुत ही प्रभावकारी, सस्ती, और प्रदूषण-रहित होती। हालाँकि यह श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी कल्पना की जा सकनेवाली सबसे आधुनिक टॆक्नॉलॉजी का प्रयोग करती, यह ज़ाहिर रूप से ऐसा न करती। न ही इस श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी में आकस्मिक ख़राबियाँ या बिगाड़ होते ना ही इसे उन अन्तहीन शोधनों की ज़रूरत पड़ती जिसकी आज की नवीनतम टॆक्नॉलॉजी माँग करती प्रतीत होती है। हम आशा करते कि श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी पूरी तरह स्वचालित हो, उसे चलाने के लिए मनुष्य के देखने-भालने की आवश्यकता न हो। वास्तव में, यह ख़ुद ही अपनी मरम्मत करती, ख़ुद ही अपना पोषण करती, यहाँ तक कि ख़ुद ही अपनी तरह एक और फ़ैक्टरी उत्पन्न करती।
यह श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी क्या केवल एक विज्ञान-कथा है? महज़ पहुँच से बाहर एक कोरी कल्पना है? जी नहीं, बिलकुल नहीं क्योंकि यह उतनी ही वास्तविक है जितनी कि आपके पैरों के नीचे की घास। असल में, यह आपके पैरों के नीचे की घास ही है, साथ ही आपके ऑफ़िस का फ़र्न और आपकी खिड़की के बाहर का पेड़। असल में, कोई भी हरा पौधा श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी है! सूरज की रोशनी से ईंधन प्राप्त करके, हरे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड, पानी, और खनिज पदार्थों को पृथ्वी पर लगभग सभी जीव-जन्तुओं के लिए भोजन पैदा करने के वास्ते सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग करते हैं। इस दौरान, वे वायुमंडल को ताज़ा करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं और शुद्ध ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
कुल मिलाकर, प्रत्येक वर्ष पृथ्वी के हरे पौधे, अनुमानतः १५० अरब से ४०० अरब टन शर्करा उत्पन्न करते हैं—समस्त मानवजाति की लोह, इस्पात, मोटर, और वायुयान फ़ैक्टरियों के उत्पादन से कहीं ज़्यादा सामग्री। वे सूरज से मिली ऊर्जा को, पानी के अणुओं से हाइड्रोजन परमाणुओं को निकालने के लिए प्रयोग करने के द्वारा ऐसा करते हैं और फिर उन हाइड्रोजन परमाणुओं को हवा के कार्बन डाइऑक्साइड अणुओं से जोड़ देते हैं, और कार्बन डाइऑक्साइड को एक क़िस्म के कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देते हैं, जो शर्करा के रूप में ज्ञात है। इस असाधारण प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है। पौधे अपने नए शर्करा अणुओं को ऊर्जा के लिए प्रयोग कर सकते हैं या भोजन संचयन के लिए उन्हें एक साथ जोड़कर स्टार्च या सैलूलोज़ बना सकते हैं। सैलूलोज़ मज़बूत, रेशेदार पदार्थ होता है जिससे पौधे का तंतु बनता है। ज़रा सोचिए! जब यह बढ़ रहा था, तो वह विशाल सिकोया वृक्ष जो ९० मीटर की ऊँचाई तक पहुँचता है वह वास्तव में हवा से बना था, अर्थात् एक कार्बन डाइऑक्साइड अणु और एक पानी का अणु, एक के बाद एक, अनगिनत करोड़ों सूक्ष्म ‘समनुक्रमों’ में जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहा जाता है। लेकिन कैसे?
“इंजन” पर एक नज़र डालना
सिकोया वृक्ष को वास्तव में हवा से (साथ ही पानी और चंद खनिजों से) बनाना सचमुच आश्चर्यजनक है, लेकिन यह कोई जादू नहीं है। यह एक बुद्धिसम्पन्न कल्पना और टॆक्नॉलॉजी का परिणाम है जो मनुष्य की किसी भी टॆक्नॉलॉजी से कहीं ज़्यादा जटिल है। धीरे-धीरे, वैज्ञानिक प्रकाश-संश्लेषण के काले बक्से में झाँक रहे हैं ताकि अन्दर होनेवाले अतिजटिल जीव-रसायन को आश्चर्य से ताकें। आइए हम उनके साथ उस “इंजन” की एक झाँकी लें जो पृथ्वी पर क़रीब-क़रीब सारे जीवन के लिए ज़िम्मेदार है। संभवतः हमें अपने सवाल का जवाब मिलने लगे “घास हरी क्यों होती है?”
हमारे भरोसेमन्द माइक्रोस्कोप को बाहर निकालकर, आइए एक ठेठ पत्ती को जाँचें। माइक्रोस्कोप के बिना, सारी पत्ती हरी जान पड़ती है, लेकिन यह एक भ्रम है। पौधों के अलग-अलग कोशाणु जो हमें माइक्रोस्कोप में दिखते हैं वे बहरहाल इतने हरे नहीं होते। इसके बजाय, वे ज़्यादातर पारदर्शी होते हैं, लेकिन प्रत्येक में शायद ५० से १०० छोटे-छोटे हरे बिन्दु होते हैं। ये बिन्दु क्लोरोप्लास्ट हैं, जहाँ प्रकाश-संवेदी हरा क्लोरोफिल पाया जाता है और जहाँ प्रकाश-संश्लेषण होता है। क्लोरोप्लास्ट के अन्दर क्या हो रहा है?
क्लोरोप्लास्ट एक छोटी थैली की तरह है जिसमें थाइलाकॉइड नामक और भी छोटी चपटी थैलियाँ हैं। आख़िरकार, घास की हरियाली को हमने ढूँढ निकाला है। हरे क्लोरोफिल अणु, थाइलाकॉइड की सतह में जड़े हुए हैं, बेतरतीबी से नहीं, बल्कि अच्छी तरह व्यवस्थित समनुक्रमों में जिन्हें प्रकाश-व्यवस्थाएँ कहा जाता है। अधिकांश हरे पौधों में दो क़िस्म की प्रकाश-व्यवस्थाएँ होती हैं, जो PSI (प्रकाश-व्यवस्था १) और PSII (प्रकाश-व्यवस्था २) के तौर पर जानी जाती हैं। ये प्रकाश-व्यवस्थाएँ फ़ैक्टरी में विशिष्टीकृत उत्पादन दलों की तरह काम करती हैं, और प्रकाश-संश्लेषण के चरणों के एक ख़ास क्रम को एक-एक दल सँभालता है।
“कूड़ा” जो कूड़ेदान में नहीं जाता
जब सूरज की रोशनी थाइलाकॉइड की सतह पर पड़ती है, तो क्लोरोफिल अणुओं की PSII श्रंखला जिन्हें प्रकाश-एकत्रीकरण समूह कहा जाता है उस रोशनी को प्राप्त करने का इंतज़ार कर रहे हैं। ये अणु एक ख़ास तरंग-दैर्घ्य (wavelength) के लाल प्रकाश को लेने की विशेष दिलचस्पी रखते हैं। थाइलाकॉइड पर भिन्न स्थानों पर, PSI क्रम ऐसे प्रकाश की खोज में रहते हैं जिनकी तरंग-दैर्घ्य कुछ ज़्यादा लम्बी है। इस दौरान, दोनों क्लोरोफिल और कुछ अन्य अणु, जैसे कि कैरोटॆनॉइड, नीला और बैंजनी प्रकाश ले रहे हैं।
तो फिर घास हरी क्यों होती है? जितने तरंग-दैर्घ्य पौधों पर पड़ते हैं, उनमें से केवल हरा प्रकाश उनके लिए काम का नहीं होता, तो बस इसे हमारी ताकती हुई आँखों और कैमरों की ओर पलट दिया जाता है। ज़रा सोचिए! वसन्त की कोमल हरी पत्तियाँ, साथ ही ग्रीष्म की गाढ़े हरे रंग की पत्तियाँ, ऐसे तरंग-दैर्घ्य का परिणाम हैं जिनका पौधे मूल्यांकन नहीं करते लेकिन जो हम मनुष्यों के लिए बहुत ही मूल्यवान हैं! जब हम एक सुन्दर चरागाह या जंगल की ओर ताकते हैं, जिससे जीवन के इस सुखदायक रंग से हमारे प्राण तरो-ताज़ा हो जाते हैं, तो मनुष्य की फ़ैक्ट्रियों के प्रदूषण और कूड़े से अलग, यह “कूड़ा” यानी प्रकाश निश्चय ही कूड़ेदान में नहीं जाता।
हम PSII क्रम में क्लोरोप्लास्ट की ओर वापस आते हैं, सूरज की रोशनी के लाल भाग की ऊर्जा को क्लोरोफिल अणुओं के इलॆक्ट्रॉनों में स्थानांतरित कर दिया गया है जब तक कि, आख़िरकार, किसी इलॆक्ट्रॉन में इतनी ऊर्जा या “उत्तेजना” नहीं आ जाती ताकि वह उस क्रम से कूदकर, थाइलाकॉइड झिल्ली में इंतज़ार कर रहे वाहक अणु से नहीं मिल जाता। जैसे एक नर्तकी एक साथी के बाद दूसरे साथी के पास जाती है, यह इलॆक्ट्रॉन एक वाहक अणु से दूसरे अणु के पास जाता है और धीरे-धीरे उसकी ऊर्जा कम होती जाती है। जब उसकी ऊर्जा काफ़ी कम हो जाती है, तो दूसरी प्रकाश-व्यवस्था, अर्थात् PSI में किसी इलॆक्ट्रॉन की जगह लेने के लिए इसे निश्चित रूप से प्रयोग किया जा सकता है।—रेखाचित्र १ देखिए।
इस दौरान, PSII क्रम में एक इलॆक्ट्रॉन लापता है, जिससे वह घनात्मक रीति से आवेशित हो जाता है और जिस इलॆक्ट्रॉन को उसने खोया उसकी जगह भरने के लिए एक इलॆक्ट्रॉन के लिए तैयार रहता है। उस मनुष्य की तरह जिसे अभी-अभी पता चला है कि उसकी जेब कट गयी है, PSII क्षेत्र जिसे ऑक्सीजन-उत्पादक समूह कहते हैं उत्तेजित हो जाता है। इलॆक्ट्रॉन कहाँ पाया जाए? आहा! पास ही पानी का एक असहाय अणु घूम रहा है। उसे बहुत ही अप्रिय आश्चर्य मिलनेवाला है।
पानी के अणुओं को तोड़कर अलग करना
पानी के अणु में तुलनात्मक रूप से बड़ा ऑक्सीजन परमाणु और दो छोटे हाइड्रोजन परमाणु होते हैं। PSII के ऑक्सीजन-उत्पादक समूह में, मैंगनीज़ धातु के चार आयन होते हैं जो पानी के अणु में हाइड्रोजन परमाणुओं से इलॆक्ट्रॉन निकालते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उस पानी के अणु को तोड़कर दो घनात्मक हाइड्रोजन आयनों (प्रोटोन) को, एक ऑक्सीजन परमाणु और दो इलॆक्ट्रॉनों में परिवर्तित किया जाता है। जब पानी के ज़्यादा अणु टूटते हैं, तो ऑक्सीजन के परमाणु जुड़कर ऑक्सीजन गैस के अणु बनते हैं, जिसे पौधा हवा को हमारे प्रयोग के लिए लौटाता है। हाइड्रोजन आयन थाइलाकॉइड “थैली” के अन्दर जमा होने लगते हैं, जहाँ पौधा उन्हें प्रयोग कर सकता है, और PSII समूह की फिर से आपूर्ति करने के लिए इलॆक्ट्रॉन प्रयोग किए जाते हैं, और यह समूह अब इस चक्र को प्रति सेकंड अनेकों बार दोहराने के लिए अब तैयार है।—रेखाचित्र २ देखिए।
थाइलाकॉइड थैली के अन्दर, हाइड्रोजन आयनों का जमावड़ा बाहर निकलने का रास्ता ढूँढने लगता है। जब कभी पानी का अणु टूटता है तो न केवल दो हाइड्रोजन आयन बढ़ जाते हैं, बल्कि अन्य हाइड्रोजन आयन जब PSI समूह में जा रहे होते हैं, तब उन्हें PSII इलॆक्ट्रॉनों द्वारा थाइलाकॉइड थैली में आने के लिए आकर्षित किया जाता है। जल्द ही, ये हाइड्रोजन आयन एक भरे हुए छत्ते में गुस्सा हुई मधुमक्खियों की तरह भिनभिना रहे हैं। वे बाहर कैसे निकल सकते हैं?
बात यह है कि प्रकाश-संश्लेषण के प्रतिभाशाली बनानेवाले ने एक घूमनेवाला दरवाज़ा दिया है जिससे केवल एक ही तरीक़े से बाहर निकला जा सकता है, एक ख़ास किण्वक के रूप में जिसे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कोशिकीय ईंधन बनाने में प्रयोग किया जाता है जिसका नाम है एटीपी (एडॆनोसीन ट्राइफ़ास्फ़ेट)। जब ये हाइड्रोजन आयन इस घूमनेवाले दरवाज़े से ज़बरदस्ती बाहर निकलते हैं, तो वे प्रयोग हुए एटीपी अणुओं को फिर से आवेशित करने के लिए ज़रूरी ऊर्जा देते हैं। (रेखाचित्र ३ देखिए।) एटीपी अणु छोटी कोशिकीय बैटरियों की तरह होते हैं। वे उस कोशिका में सब प्रकार की प्रक्रियाओं के लिए, ठीक उसी वक़्त, ऊर्जा के छोटे-छोटे विस्फोट करते हैं। बाद में, इन एटीपी अणुओं की प्रकाश-संश्लेषण शर्करा समनुक्रम में ज़रूरत होगी।
एटीपी के अलावा, एक और छोटा अणु शर्करा इकट्ठा करने के लिए अनिवार्य है। इसे एनएडीपीएच (अंग्रेज़ी में निकोटीनामाइड एडॆनाइन डाइन्यूक्लोटाइड फ़ास्फ़ेट का छोटा रूप) कहा जाता है। एनएडीपीएच अणु छोटी सामान-पहुँचानेवाली गाड़ियों की तरह हैं, हरेक अणु में हाइड्रोजन परमाणु होता है जिसका किण्वक इंतज़ार करता है। इस किण्वक को शर्करा का अणु बनाने में मदद करने के लिए हाइड्रोजन परमाणु की ज़रूरत होती है। एनएडीपीएच को उत्पन्न करना PSI समूह का काम है। जहाँ एक प्रकाश-व्यवस्था (PSII) पानी के अणुओं को तोड़ने और उन्हें एटीपी उत्पन्न करने के लिए प्रयोग करने में व्यस्त है, दूसरी प्रकाश-व्यवस्था (PSI) प्रकाश ले रही है और ऐसे इलॆक्ट्रॉन निकाल रही है जिन्हें आख़िरकार एनएडीपीएच उत्पन्न करने में प्रयोग किया जाना है। एटीपी और एनएडीपीएच अणुओं दोनों का थाइलाकॉइड के बाहर की जगह में संचय होता है ताकि आगे चलकर शर्करा समनुक्रम में प्रयोग किए जाएँ।
रात की पाली
प्रकाश-संश्लेषण द्वारा हर साल अरबों टन शर्करा उत्पन्न की जाती है, और फिर भी प्रकाश-संश्लेषण में प्रकाश से चलायी गयीं प्रक्रियाएँ वास्तव में कोई शर्करा पैदा नहीं करतीं। वे केवल एटीपी (“बैटरियाँ”) और एनएडीपीएच (“सामान पहुँचानेवाली गाड़ियाँ”) बनाती हैं। इस समय से, स्ट्रोमा, या थाइलाकॉइडों के बाहर की जगह में किण्वक, एटीपी और एनएडीपीएच का प्रयोग शर्करा बनाने के लिए करते हैं। असल में, पौधा घने अंधियारे में शर्करा बना सकता है! आप क्लोरोप्लास्ट की तुलना दो कर्मचारी-दलों (PSI और PSII) की एक फ़ैक्टरी के साथ कर सकते हैं, जो थाइलाकॉइड के अन्दर बैटरियाँ और सामान पहुँचानेवाली गाड़ियाँ (एटीपी और एनएडीपीएच) बनाती है, जिन्हें बाहर स्ट्रोमा (ख़ास किण्वक) में तीसरे दल द्वारा प्रयोग किया जाना है। (रेखाचित्र ४ देखिए।) यह तीसरा दल स्ट्रोमा की किण्वकों का प्रयोग करते हुए, हाइड्रोजन परमाणुओं और कार्बन डाइऑक्साइड अणुओं को रासायनिक प्रक्रियाओं के एक सुनिश्चित क्रम में जोड़ने के द्वारा शर्करा बनाता है। तीनों दल दिन के समय काम कर सकते हैं, और शर्करा दल रात की पाली में भी काम करता है, कम-से-कम तब तक जब तक कि दिन की पाली से एटीपी और एनएडीपीएच का भण्डार ख़त्म नहीं हो जाता।
आप स्ट्रोमा को एक प्रकार का कोशिकीय जोड़ा बनानेवाला माध्यम समझ सकते हैं, ऐसे परमाणुओं और अणुओं से भरा हुआ जिनका एक दूसरे से “ब्याह” करवाने की ज़रूरत है लेकिन जो कभी-भी अपने आप जुड़ नहीं जाएँगे। कुछ किण्वक बहुत ही दबाव डालकर जोड़ा बनानेवालों के जैसे हैं।a ये प्रोटीन अणु हैं जिनका ख़ास आकार होता है जिसकी वजह से वे बिलकुल सही परमाणुओं या अणुओं को किसी ख़ास प्रक्रिया के लिए जकड़ लेते हैं। लेकिन, वे केवल भावी आण्विक विवाह-साथियों का मेल कराने से संतुष्ट नहीं होते। किण्वक तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक कि वे विवाह होता हुआ नहीं देख लेते, इसलिए वे भावी दम्पति को पकड़ते हैं और अनिच्छुक साथियों को एक दूसरे के सीधे सम्पर्क में ले आते हैं, और एक प्रकार से ज़बरदस्ती की गयी जैव-रासायनिक शादी से उन पर विवाहित अवस्था थोप देते हैं। बन्धन जुड़ जाने के बाद, किण्वक नया अणु छोड़ते हैं और इस प्रक्रिया को दोहराते हैं, बार-बार। स्ट्रोमा में किण्वक अधूरे शर्करा अणुओं को अविश्वसनीय गति से चारों ओर घुमाते हैं, उन्हें पुनःव्यवस्थित करते हैं, एटीपी से उन्हें शक्ति देते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड जोड़ते हैं, हाइड्रोजन जोड़ते हैं और आख़िरकार, त्रि-कार्बन शर्करा को कोशिका में कहीं और आगे ग्लूकोज़ में परिवर्तित होने और अनेक अन्य परिवर्तनों से गुज़रने के लिए भेज देते हैं।—रेखाचित्र ५ देखिए।
घास हरी क्यों होती है?
प्रकाश-संश्लेषण केवल एक मुख्य रासायनिक प्रक्रिया से कहीं ज़्यादा है। यह चकित कर देनेवाली जटिलता और बारीक़ी का जैवरासायनिक तालमेल है। पौधों की जीवन प्रक्रियाएँ (अंग्रेज़ी) पुस्तक इसे इस तरीक़े से कहती है: “सूरज के फ़ोटोन की ऊर्जा को प्रयोग में लाने के लिए, प्रकाश-संश्लेषण उल्लेखनीय और बहुत ही सुव्यवस्थित प्रक्रिया है। पौधे की जटिल बनावट और अत्यधिक पेचीदा जैव-रासायनिक और आनुवंशिक क्रियाओं को, जो प्रकाश-संश्लेषण के कार्य को नियंत्रित करती हैं, फ़ोटोन को फाँसने और उसकी ऊर्जा को रासायनिक रूप देने की मूल प्रक्रिया की विशुद्धि समझा जा सकता है।”
दूसरे शब्दों में, यह जाँचना कि घास हरी क्यों होती है, मानवजाति द्वारा बनायी गयी किसी भी चीज़ से कहीं श्रेष्ठ डिज़ाइन और टॆक्नॉलॉजी को आश्चर्य से ताकना है। ऐसी टॆक्नॉलॉजी जो आत्म-नियंत्रित, आत्म-निर्भर है, अति-सूक्ष्म “मशीनें” जो प्रति सेकंड हज़ारों, या यहाँ तक कि लाखों चक्रों में कार्य करती हैं (बिना किसी शोर, प्रदूषण या कुरूपता के), और सूरज की रोशनी को शर्करा में परिवर्तित करती हैं। हमारे लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ डिज़ाइनर और इंजीनियर—हमारे सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्वर—के मन के एक अंश की झलक पाना है। जब आप अगली बार यहोवा की किसी रमणीय, जीवन क़ायम रखनेवाली, “श्रेष्ठतम फ़ैक्टरी” की सराहना करें, या केवल उस आकर्षक हरी घास पर चलें तो इसके बारे में सोचिएगा।
[फुटनोट]
a कुछ अन्य प्रकार के किण्वक छोटे दबाव डालनेवाले तलाक़ के वक़ील होते हैं; उनका काम होता है अणुओं को तोड़कर अलग करना।
[पेज 25 पर तसवीर]
आंतरिक चित्र: कलरपिक्स, गोडो-फ़ोटो
[पेज 26 पर तसवीर]
प्रकाश-संश्लेषण ने इस पेड़ को कैसे बढ़ाया?
[पेज 27 पर रेखाचित्र]
रेखाचित्र १
[पेज 27 पर रेखाचित्र]
रेखाचित्र २
[पेज 28 पर रेखाचित्र]
रेखाचित्र ३
[पेज 28 पर रेखाचित्र]
रेखाचित्र ४
[पेज 29 पर रेखाचित्र]
रेखाचित्र ५