खाली बसेरे में ख़ुशी से रहना
“हममें से बहुतों के लिए आख़िरी अलगाव एक धक्का होता है चाहे हम उसके लिए कितनी ही अच्छी तरह से तैयार क्यों न हों,” एक माँ ने स्वीकार किया। जी हाँ, एक बच्चे का घर छोड़ जाना चाहे कितना ही निश्चित क्यों न हो, जब वह असल में घर छोड़ता है, तब उस स्थिति से निपटना शायद उतना आसान न हो। एक पिता अपने बेटे को अलविदा कहने के बाद अपनी प्रतिक्रिया के बारे में बताता है: “अपनी ज़िंदगी में पहली बार . . . , मैं फूट-फूटकर रोया।”
बहुत-से माता-पिताओं के लिए उनके बच्चों का घर छोड़ जाना उनके जीवन में बड़ा खालीपन पैदा कर देता है—खुला घाव बना देता है। अपने बच्चों के साथ हर दिन न मिल पाने के कारण, कुछ माता-पिता अकेलेपन, दर्द, और कमी की तीव्र भावनाओं का अनुभव करते हैं। और इस बदलाव को स्वीकार करने में माता-पिता को ही नहीं शायद दूसरों को भी कठिनाई हो रही हो। ऎडवर्ड और एवरल नामक एक दंपति हमें याद दिलाते हैं: “यदि घर पर अभी दूसरे बच्चे हैं, तो उन्हें भी कमी महसूस हो रही होगी।” इस दंपति की सलाह? “उन्हें अपना समय और सहानुभूति दीजिए। यह उन्हें बदलाव को स्वीकार करने में मदद देगा।”
जी हाँ, जीवन चलता रहता है। यदि आपको अपने बाक़ी बच्चों की देखभाल करनी है—साथ ही नौकरी या घरेलू काम करने हैं—तो आप ख़ुद को शोक में डुबा नहीं सकते। इसलिए, आइए कुछ तरीक़े देखें कि जब आपके बच्चे घर छोड़ जाते हैं तब ख़ुशी कैसे पाएँ।
सकारात्मक बातों पर ध्यान लगाइए
बेशक, यदि आप उदास या अकेला महसूस करते हैं और रोना चाहते हैं या अपनी भावनाएँ किसी हमदर्द को बताना चाहते हैं, तो ऐसा ज़रूर कीजिए। बाइबल कहती है: “उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।” (नीतिवचन १२:२५) कभी-कभी दूसरे लोग स्थिति को नयी तरह से देखने में मदद दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, वाल्डीमार और मारीआन नामक एक दंपति सलाह देते हैं: “इसे एक नुक़सान नहीं, बल्कि एक लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करना समझिए।” क्या ही सकारात्मक दृष्टिकोण! “हम ख़ुश हैं कि हम अपने लड़कों को पाल-पोसकर ज़िम्मेदार वयस्क बना सके,” रूडॉल्फ़ और हिल्डा नामक एक दंपति कहते हैं।
क्या आपने अपने बच्चे को “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में” पालने की कोशिश की है? (इफिसियों ६:४, NHT) यदि हाँ, तो भी आपको उसके घर छोड़ जाने के बारे में शायद चिंता हो। लेकिन जो इस तरह अपने बच्चे को प्रशिक्षण देते हैं, उनको बाइबल यह आश्वासन देती है कि “वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” (नीतिवचन २२:६) क्या यह देखना बहुत ही संतोषदायक नहीं कि आपके बच्चे ने आपका प्रशिक्षण स्वीकार किया है? प्रेरित यूहन्ना ने अपने आत्मिक परिवार के बारे में कहा: “मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।” (३ यूहन्ना ४) संभवतः आप भी अपने बच्चे के बारे में ऐसी ही भावनाएँ रख सकते हैं।
सच है, सभी बच्चे मसीही प्रशिक्षण को स्वीकार नहीं करते। यदि यह आपके सयाने बच्चे के बारे में सच है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि माता-पिता के रूप में आप असफल रहे। यदि आपने उसे धर्म के मार्ग में पालने की पूरी कोशिश की है तो अपने आपको बिना बात के मत धिक्कारिये। यह समझिए कि आपके बच्चे को एक सयाने व्यक्ति के रूप में परमेश्वर के सामने ज़िम्मेदारी का अपना भार ख़ुद उठाना है। (गलतियों ६:५) यह आशा रखिए कि शायद कुछ समय बाद वह अपने चुनाव पर फिर से विचार करेगा और वह “तीर” आख़िरकार अपने सही निशाने पर पहुँचेगा।—भजन १२७:४.
आप अभी-भी माता-पिता हैं!
जबकि बच्चे का घर छोड़ जाना बड़ा बदलाव लाता है, इसका यह अर्थ नहीं कि माता-पिता के रूप में आपका काम ख़त्म हो गया। मानसिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञ हाउअर्ड हैलपर्न कहता है: “आप मरते दम तक माता-पिता हैं, लेकिन देने और देखभाल करने की परिभाषा बदलनी पड़ती है।”
बाइबल ने बहुत पहले स्वीकार किया कि बस इसलिए कि बच्चा बड़ा हो गया है, माता-पिता उसकी देखभाल बंद नहीं कर देते। नीतिवचन २३:२२ कहता है: “अपने जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।” जी हाँ, जब माता-पिता ‘बूढ़े’ हो जाते हैं और उनके बच्चे सयाने हो जाते हैं, तब भी माता-पिता अपने बच्चों के जीवन में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। निःसंदेह, कुछ फेर-बदल करने की ज़रूरत होती है। लेकिन समय-समय पर हर संबंध में फेर-बदल करने की ज़रूरत होती है कि उन्हें ताज़ा और संतोषदायक रखा जाए। सो अब जबकि आपके बच्चे सयाने हो गये हैं, उनके साथ अपने संबंध को ज़्यादा सयानों-जैसा बनाने की कोशिश कीजिए। दिलचस्पी की बात है, अध्ययन दिखाते हैं कि जब बच्चे घर छोड़ जाते हैं तब अकसर माता-पिता और बच्चे के बीच का संबंध सुधर जाता है! जब बच्चों को बाहरी दुनिया के दबावों का सामना करना पड़ता है, तब वे अकसर अपने माता-पिता को नये प्रकाश में देखना शुरू करते हैं। हार्टमूट नामक एक जर्मन पुरुष कहता है: “अब मैं अपने माता-पिता को ज़्यादा अच्छी तरह समझता हूँ और मुझे समझ आता है कि क्यों उन्होंने अमुक तरह से व्यवहार किया।”
दख़लअंदाज़ी मत कीजिए
लेकिन, यदि आप अपने सयाने बच्चे के व्यक्तिगत जीवन में दख़लअंदाज़ी करते हैं, तो काफ़ी नुक़सान हो सकता है। (१ तीमुथियुस ५:१३ से तुलना कीजिए।) एक विवाहित स्त्री, जो अपने ससुराल वालों के साथ बहुत तनाव में है, दुःखी होकर कहती है: “हम उनसे प्रेम करते हैं, लेकिन हम अपना ख़ुद का जीवन जीना चाहते हैं और अपने ख़ुद के फ़ैसले करना चाहते हैं।” बेशक, कोई प्रेममय माता-पिता अपने सयाने बच्चे को विपत्ति में पड़ते देख आँख पर पट्टी नहीं बाँध लेंगे। लेकिन आम तौर पर यही सबसे अच्छा होता है कि यदि सलाह न माँगी जाए तो न दें, चाहे वह कितनी ही बुद्धिमानी या भलाई की क्यों न हो। यह ख़ासकर तब सही है जब बच्चे का विवाह हो जाता है।
सजग होइए! (अंग्रेज़ी) ने १९८३ में यह सलाह दी थी: “अपनी बदली हुई भूमिका को स्वीकार कीजिए। जब आपका बच्चा चलने लगता है तब आप उसे गोद में उठाने का काम छोड़ देते हैं। उसी तरह, अब आपको रखवाले का मनपसंद काम छोड़कर सलाहकार का काम करना है। अपने सयाने बच्चे के लिए फ़ैसले करना उतना ही अनुपयुक्त होगा जितना कि उसे डकार दिलाना या माँ का दूध पिलाना। सलाहकार के रूप में, आपकी निश्चित सीमाएँ हैं। अब आप माता-पिता के रूप में अपने अधिकार का दम नहीं भर सकते। (‘यह करो, क्योंकि मैं कह रहा हूँ।’) अपने बच्चे के सयानेपन के लिए आदर दिखाने की ज़रूरत है।”a
आप शायद उन सभी फ़ैसलों से सहमत न हों जो आपका बच्चा या उसका विवाह-साथी करता है। लेकिन विवाह की पवित्रता के लिए आदर दिखाना आपकी मदद कर सकता है कि बहुत चिंता न करें और बिना बात के बीच में न पड़ें। सच्चाई यह है कि जवान दंपतियों को अपनी समस्याएँ आपस में ही सुलझाने देना आम तौर पर सबसे अच्छा होता है। नहीं तो, अपने दामाद या बहू को अनचाही सलाह देने पर बेवज़ह तू-तू-मैं-मैं का डर होता है क्योंकि विवाह के इस नाज़ुक मोड़ पर वह आलोचना के प्रति बहुत संवेदनशील हो सकता या सकती है। ऊपर उल्लिखित सजग होइए! लेख ने आगे सलाह दी: “अंतहीन, बिनमाँगे सुझाव देने की ललक को दबा दीजिए, जो दामाद या बहू को दुश्मन बना सकती है।” सहारा दीजिए—छल-कपट मत कीजिए। अच्छा संबंध बनाए रखने के द्वारा, आप अपने बच्चे के लिए आसान बना देते हैं कि जब उसे सलाह की सचमुच ज़रूरत हो तब वह आपके पास आ सके।
वैवाहिक बंधनों में नयी जान डालिए
अनेक दंपतियों के लिए, खाली बसेरा वैवाहिक सुख को बढ़ाने का मार्ग भी खोल सकता है। सफलतापूर्वक बच्चों को पालने-पोसने में इतना समय और प्रयास लग सकता है कि दंपति अपने ख़ुद के संबंध की उपेक्षा कर देते हैं। एक पत्नी कहती है: “अब जबकि बच्चे जा चुके हैं, कॉनराड और मैं फिर से एक दूसरे से परिचित होने की कोशिश कर रहे हैं।”
बच्चों को सँभालने की हर दिन की ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर, अब आपके पास एक दूसरे के लिए शायद ज़्यादा समय हो। एक माँ ने कहा: ‘अभी मिला यह खाली समय हमें इस पर ज़्यादा ध्यान देने का अवसर देता है कि हम कौन हैं, हम अपने संबंधों के बारे में ज़्यादा सीख सकते हैं, और वो काम शुरू कर सकते हैं जो हमारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं।’ वह आगे कहती है: “यह नयी-नयी बातें सीखने और अविश्वसनीय विकास का समय है, और जबकि ऐसा समय थोड़ा अटपटा हो सकता है, यह बहुत आनंददायी भी होता है।”
कुछ दंपतियों को ज़्यादा आर्थिक स्वतंत्रता भी मिलती है। जो शौक़ और पेशे छूट गये थे उन्हें अब शुरू किया जा सकता है। यहोवा के साक्षियों के बीच, अनेक दंपति अपनी नयी स्वतंत्रता को आध्यात्मिक हितों का पीछा करने के लिए प्रयोग करते हैं। हरमान नामक पिता बताता है कि जब उसके बच्चे घर छोड़ गये, तब उसने और उसकी पत्नी ने तुरंत अपना ध्यान पूर्ण-समय सेवकाई को फिर से शुरू करने पर लगाया।
एक-जनक द्वारा आज़ादी देना
खाली बसेरे में रहने की आदत डालना एक-जनक के लिए ख़ासकर कठिन हो सकता है। दो बच्चों की एकल माँ, रबॆका बताती है: “जब हमारे बच्चे घर छोड़ जाते हैं, तब हमें संगति और प्रेम देने के लिए हमारे पास पति नहीं होता।” एक-जनक ने शायद अपने बच्चों को भावात्मक सहारे का स्रोत पाया हो। और यदि वे घर के ख़र्च के लिए पैसों से मदद दे रहे थे, तो उनका जाना आर्थिक तंगी भी ला सकता है।
कुछ एकल माताएँ कार्य-प्रशिक्षण कार्यक्रम में नाम दर्ज़ करवाने या छोटे-छोटे स्कूल कोर्स लेने के द्वारा आर्थिक रूप से अपनी स्थिति सुधार लेती हैं। लेकिन व्यक्ति अकेलेपन को कैसे दूर करे? एक एकल माँ कहती है: “अपने आपको व्यस्त रखना मेरे लिए कारगर रहा है। बाइबल पढ़ना, अपना घर साफ़ करना, या फुरती से पैदल चलना या दौड़ना, कुछ भी काम किया जा सकता है। लेकिन मेरे लिए अकेलापन दूर करने का सबसे फलदायी तरीक़ा है किसी आध्यात्मिक मित्र से बात करना।” जी हाँ, ‘हृदय खोलिए,’ और नयी तथा संतोषदायी मित्रता कीजिए। (२ कुरिन्थियों ६:१३) जब आप दुःखी होते हैं तब “बिनती और प्रार्थना में लौलीन” रहिए। (१ तीमुथियुस ५:५) आश्वस्त रहिए कि यहोवा बदलाव के इस कठिन दौर में आपको शक्ति और सहारा देगा।
ख़ुशी से आज़ादी देना
आपकी स्थिति जो भी हो, यह समझिए कि जब बच्चे घर छोड़ जाते हैं तब ज़िंदगी ख़त्म नहीं हो जाती। न ही पारिवारिक बंधन टूट जाते हैं। बाइबल में वर्णित स्वस्थ प्रेम इतना मज़बूत होता है कि लोगों को बाँधे रख सकता है, चाहे वे दूर ही क्यों न हों। प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है कि प्रेम “सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:७, ८) जो निःस्वार्थ प्रेम आपने अपने परिवार में विकसित किया है वह बच्चों के घर छोड़ जाने से ही ख़त्म नहीं हो जाएगा।
दिलचस्पी की बात है, जब बच्चों को घर से दूर रहकर घर की याद सताने लगती है या जब उन पर आर्थिक दबाव आने लगते हैं, तब फिर से संपर्क बनाने में अकसर वे ही पहल करते हैं। हान्स और इंग्रीट सलाह देते हैं: “बच्चों को यह बताइए कि आपके घर के दरवाज़े हमेशा खुले हैं।” नियमित रूप से मिलना, चिट्ठियाँ लिखना, या कभी-कभार टॆलिफ़ोन करना आपको संपर्क रखने में मदद देगा। “उनके जीवन में दख़ल दिये बिना उनमें दिलचस्पी दिखाइए,” जैक और नोरा का यह कहना है।
जब बच्चे घर छोड़ जाते हैं, तब आपका जीवन बदल जाता है। लेकिन खाली बसेरे में जीवन व्यस्त, सक्रिय और संतोषदायी हो सकता है। साथ ही, आपके बच्चों के साथ आपका संबंध बदल जाता है। फिर भी, यह सुखद और संतोषप्रद संबंध बना रह सकता है। “माता-पिता से स्वतंत्रता की स्थापना,” प्रोफ़ॆसर जॆफ्री ली और गैरी पीटरसन कहते हैं, “यह अर्थ नहीं रखती कि माता-पिता के लिए प्रेम, निष्ठा, या आदर नहीं रहा। . . . असल में, मज़बूत पारिवारिक बंधन अकसर पूरे जीवन रहते हैं।” जी हाँ, आप हमेशा अपने बच्चों से प्रेम करेंगे, और आप हमेशा उनके माता-पिता रहेंगे। और क्योंकि आपने अपने बच्चों से इतना प्रेम किया है कि उन्हें घर छोड़ने दिया है, आपने असल में उन्हें खोया नहीं है।
[फुटनोट]
a सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के फरवरी ८, १९८३ अंक में, लेख “आप कभी माता-पिता रहना नहीं छोड़ते” देखिए।
[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“अपनी ज़िंदगी में पहली बार . . . , मैं फूट-फूटकर रोया”
[पेज 10 पर बक्स/तसवीरें]
सयाने बच्चों के लिए एक सुझाव—आज़ादी देने में माता-पिता की मदद कीजिए
छोड़ जाना आम तौर पर पीछे छूट जाने से ज़्यादा आसान होता है। सो जबकि आप अपनी स्वतंत्रता और सयानेपन का आनंद लेते हैं, अपने माता-पिता के प्रति कृपालुता और सहानुभूति दिखाइए यदि उन्हें बदलाव को स्वीकार करने में कठिनाई हो रही है। उन्हें आश्वस्त कीजिए कि आप उनसे प्रेम और स्नेह करते रहेंगे। छोटी-सी चिट्ठी लिखना, अचानक कोई उपहार भेजना, या दोस्ताना टॆलिफ़ोन करना उदास माता-पिता को प्रसन्न कर सकता है! अपने जीवन की बड़ी-बड़ी बातों के बारे में उन्हें बताते रहिए। इससे उन्हें पता चलता है कि पारिवारिक बंधन अभी-भी मज़बूत हैं।
जब आप सयाने जीवन के दबावों का सामना करते हैं, तब संभव है कि आप इस बात को पहले से कहीं ज़्यादा अच्छी तरह समझेंगे कि आपको पालने में आपके माता-पिता ने क्या-क्या सहा है। संभव है कि आप अपने माता-पिता को यह बताने के लिए प्रेरित हों: “आपने मेरे लिए जो कुछ किया है उसके लिए शुक्रिया!”