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  • जानकारी हासिल करने से कैसे मदद मिलेगी?
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g98 12/8 पेज 4-7

एड्‌स—कैसे लड़ें

अभी तक तो एड्‌स का कोई इलाज नहीं है। और लगता नहीं कि जल्द ही इसका कोई इलाज निकलेगा। आजकल ऐसी दवाइयाँ निकली हैं जिनसे इन्फॆक्शन इतनी जल्दी नहीं बढ़ता। मगर इस बीमारी से बचने का सबसे बढ़िया इलाज तो यही है कि इस इन्फॆक्शन को लगने ही न दिया जाए। मगर इसकी रोकथाम की बात करने से पहले आइए हम देखें कि एड्‌स वायरस (HIV) कैसे फैलता है और कैसे नहीं फैलता।

एक व्यक्‍ति को चार खास तरीकों से यह इन्फॆक्शन हो सकता है: (१) HIV के मरीज़ को लगाई गई सुईं या सिरिंज इस्तेमाल करने के द्वारा, (२) इन्फॆक्शनवाले व्यक्‍ति की (योनी से, गुदा से) या उसके साथ मौखिक रूप से मैथुन करने के द्वारा, (३) खून चढ़ाने के द्वारा, या खून से बने पदार्थों द्वारा; हालाँकि विकसित देशों में इस तरह इन्फॆक्शन फैलने का खतरा कम हो गया है क्योंकि वहाँ HIV के लिए खून की जाँच की जाती है, और (४) HIV इन्फॆक्शनवाली माताओं के द्वारा, जिनके बच्चों को जन्म से पहले, जन्म लेते वक्‍त, या उनका दूध पीते वक्‍त इन्फॆक्शन हो जाता है।

यू.एस. सॆंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, अभी तक के वैज्ञानिक सबूत बताते हैं कि (१) एड्‌स उस तरह नहीं लगता है जैसे आपको ज़ुकाम लगता है या फ्ल्यू हो जाता है, (२) HIV पॉज़िटिव व्यक्‍ति के पास बैठने, उसे छूने या उससे गले मिलने से आपको एड्‌स नहीं हो सकता, (३) किसी इन्फॆक्शनवाले व्यक्‍ति द्वारा हाथ लगाया गया, बनाया गया, या परोसा गया खाना खाने से आपको एड्‌स नहीं हो सकता, और (४) उनके टॉयलॆट, फोन, कपड़े, या खाने-पीने के बर्तनों को इस्तेमाल करने से आपको एड्‌स नहीं हो सकता। इसके अलावा, CDC कहता है कि यह वायरस मच्छरों के या दूसरे कीड़े-मकौड़ों के काटने से नहीं फैलता।

रोकथाम के तरीके

एड्‌स के वायरस इन्फॆक्शनवाले व्यक्‍ति के खून में रहते हैं। अगर किसी HIV पॉज़िटिव व्यक्‍ति को इंजॆक्शन लगाया जाता है, तो सुईं में और सिरिंज में कुछ खून बचा रह जाता है जिसमें वायरस होते हैं। अगर किसी और को वही सुईं लगाई जाती है तो वो वायरस फैल सकता है। इसलिए अगर आपको सुईं के या सिरिंज के बारे में कोई शक हो, तो डॉक्टर या नर्स से पूछने से कभी मत हिचकिचाइए। आपको यह जानने का हक है क्योंकि यह आपकी ज़िंदगी और मौत का सवाल है।

एड्‌स के वायरस इन्फॆक्शनवाले लोगों के यौन अंगों से निकलनेवाले द्रव्य में, यानी वीर्य में और योनी से निकलनेवाले द्रव्य में भी होते हैं। सो रोकथाम के बारे में CDC कहती है: “लैंगिक संबंध न रखना ही सबसे बढ़िया सुरक्षा है। अगर आप लैंगिक संबंध रखना चाहते हैं तो शादी तक या तब तक इंतज़ार कीजिए जब तक बिना इन्फॆक्शनवाले साथी के साथ लंबे समय तक और भरोसे के लायक रिश्‍ता कायम न हो जाए।”

ध्यान दीजिए कि अगर आपको एड्‌स से बचना है तो हमेशा “भरोसे के लायक रिश्‍ता” बरकरार रखना ज़रूरी है। अगर आप अपनी तरफ से वफादार रहते हैं, लेकिन आपका साथी वफादार नहीं रहता, तब भी आपको खतरा है। और यह खतरा अकसर ऐसे समाज में रहनेवाली औरतों को बहुत ज़्यादा होता है जहाँ मर्द उन पर अधिकार जताते हैं, चाहे वह सेक्स का मामला हो या पैसे का। कुछ देशों में औरतें अपने पति के साथ सॆक्स के बारे में बात तक नहीं कर सकतीं, ‘सेफ सॆक्स’ (सुरक्षित यौन संबंध) के बारे में चर्चा करना तो दूर की बात रही।

मगर, ऐसी सभी औरतें बेबस नहीं हैं। पश्‍चिम अफ्रीका के एक देश की रिपोर्ट बताती है कि ऐसी कुछ औरतें जो अपना गुज़ारा खुद कर लेती हैं, अपने पति से, जिसे यह इन्फॆक्शन हो चुका है, लैंगिक संबंध नहीं रखतीं, और इसके लिए उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती भी नहीं की जाती। न्यू जर्सी, अमरीका में कुछ औरतों ने ऐसे आदमी के साथ सहवास करने से इनकार किया है जो कंडोम नहीं पहनना चाहता। सो, जबकि लैटॆक्स के कंडोम्स HIV और लैंगिक रूप से फैलनेवाली दूसरी बीमारियों से बचाव कर सकते हैं, मगर ज़रूरी यह है कि उन्हें सही तरीके से और हमेशा इस्तेमाल किया जाए।

कब जाँच कराएँ

केरन, जिसके बारे में पिछले लेख में बताया गया था, खुद को एड्‌स से बचाने के लिए शायद ही कुछ कर सकती थी। उसके पति को शादी से काफी साल पहले इन्फॆक्शन हो चुका था, और उनकी शादी भी तब हुई थी जब यह बीमारी और HIV की जाँच अपने शुरुआती चरण में थी। मगर आज तो HIV की जाँच कराना कुछ देशों में एक आम बात हो चुकी है। इसलिए, अगर किसी व्यक्‍ति को शक है कि उसे HIV है या नहीं, तो अक्लमंदी की बात यह होगी कि प्यार-मुहब्बत करने या शादी का इरादा करने से पहले ही वह अपनी जाँच करा ले। केरन सलाह देती है: “बहुत सोच-समझकर और समझदारी से अपना साथी ढूँढ़िए जिससे आप शादी करेंगे। एक ज़रा-सी गलती की आपको बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। आपकी जान भी जा सकती है।”

अगर कोई अपने शादी-शुदा साथी को छोड़, किसी और के साथ सहवास करता है, तो उसके वफादार साथी को बचाने के लिए टॆस्ट कराना बहुत फायदेमंद होगा। क्योंकि इन्फॆक्शन लगने के बाद कम-से-कम छः महीने तक शायद HIV वायरस का पता न चले, इसलिए बार-बार टॆस्ट कराने की ज़रूरत पड़ सकती है। अगर बेवफा साथी के साथ सहवास फिर से शुरू किया जाता है (जिसका मतलब होता है कि वफादार साथी ने उसे माफ कर दिया है) तो इन्फॆक्शन से बचने के लिए कंडोम का इस्तेमाल काफी मददगार साबित हो सकता है।

जानकारी हासिल करने से कैसे मदद मिलेगी?

हालाँकि बाइबल एड्‌स के शुरू होने से हज़ारों साल पहले लिखी गयी थी, फिर भी यह ध्यान देने लायक है कि इसके उसूलों पर चलना हमारे लिए इस बीमारी से सुरक्षा का काम करता है। मिसाल के तौर पर, बाइबल अपने पति-पत्नी के अलावा किसी और के साथ लैंगिक संबंध रखने की सख्त निंदा करती है, और बताती है कि पति-पत्नी को आपस में वफादार होना ही चाहिए, और यह भी कहती है कि मसीहियों को सिर्फ ऐसे मसीहियों से शादी करनी चाहिए जो खुद बाइबल सिद्धांतों पर चलते हैं। (१ कुरिन्थियों ७:३९; इब्रानियों १३:४) यह खून लेने या चढ़ाने की, या किसी चीज़ का नशा करने या उसके आदी हो जाने की मनाही करती है, क्योंकि ऐसी चीज़ें शरीर को दूषित करती हैं।—प्रेरितों १५:२०; २ कुरिन्थियों ७:१.

HIV पॉज़िटिव लोगों के संपर्क में आने से कौन-कौन से खतरे हो सकते हैं, यह अच्छी तरह जान लेना अक्लमंदी की बात होगी। एड्‌स के बारे में सीखने से आदमी खुद को इस बीमारी से ज़्यादा अच्छी तरह बचा सकता है।

एड्‌स ऐक्शन लीग कहता है: “ज़्यादातर मामलों में एड्‌स से बचाव किया जा सकता है। जब तक एड्‌स का कोई इलाज नहीं मिल जाता, तब तक इस बीमारी के बारे में अच्छी जानकारी रखना ही आज [सब के लिए] एकमात्र बचाव है।” (तिरछे टाइप हमारे।) यह अच्छा होगा कि माता-पिता आपस में और अपने बच्चों के साथ एड्‌स के बारे में खुलकर बातचीत करें।

कौन-कौन-से इलाज हैं?

वैसे तो आम तौर पर HIV इन्फॆक्शन लगने के छः से दस साल के बाद ही बीमारी के लक्षण नज़र आते हैं। मगर इस दरमियान शरीर में एक छिपी हुई लड़ाई चलती रहती है। वायरस बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं और बीमारी से लड़नेवाली हमारे शरीर की कोशिकाओं को मार देते हैं। ये कोशिकाएँ भी उनका मुकाबला करती हैं। क्योंकि ये नए वायरस करोड़ों की तादाद में हर रोज़ पैदा होते रहते हैं, इसलिए समय के गुज़रते बीमारी से लड़नेवाली कोशिकाएँ पूरी तरह हार जाती हैं, और हमारे शरीर की बीमारी से लड़ने की ताकत पूरी तरह खत्म हो जाती है।

इस ताकत को बढ़ाने के लिए कई दवाइयाँ बनायी गयी हैं। इन दवाओं के भी बड़े-बड़े नाम होते हैं। इसलिए इनके छोटे नाम रखे जाते हैं, जैसे AZT, DDI, और DDC. हालाँकि कुछ लोगों को लगा कि ये दवाइयाँ बहुत ही फायदेमंद और असरदार साबित होंगी और आगे इस बीमारी को पूरी तरह ठीक कर देंगी, मगर उनके सपने जल्द ही टूटकर बिखर गए। समय के चलते इन दवाइयों का सिर्फ असर ही कम नहीं हो जाता, बल्कि इससे कुछ लोगों को काफी खतरनाक साइड एफॆक्ट्‌स भी होते हैं, जैसे खून में ज़रूरी कोशिकाओं की कमी, खून न जमना, और हाथ-पैर की नसों को नुकसान पहुँचना।

अब नई दवाइयाँ सामने आयी हैं जिन्हें ‘प्रोटीज़ इनहिबिटर्स’ (protease inhibitors) कहा जाता है। डॉक्टर इन्हें वायरस से लड़नेवाली दूसरी ऎन्टिवाइरल (antiviral) दवाइयों के साथ तीन दवाओं की खुराक के रूप में देते हैं। जाँच ने दिखाया है कि जबकि तीन दवाओं की खुराक के इस इलाज से, यानी ट्रिपल थॆरपी (triple therapy) से वायरस मरते तो नहीं, मगर इससे शरीर में इनका बढ़ना काफी कुछ या पूरी तरह रुक जाता है।

इस इलाज से मरीज़ों की सेहत में बहुत सुधार हुआ है। मगर डॉक्टरों का मानना है कि ये दवाइयाँ अगर इन्फॆक्शन लगने की शुरुआत में ही दे दी जाएँ, यानी बीमारी के लक्षण दिखने से पहले ही, तो इनका सबसे बढ़िया असर होता है। जब इस तरह से शुरुआत में ही इलाज किया जाता है, तो इसकी ज़्यादा गुंजाइश हो जाती है कि इस इन्फॆक्शन के आगे चलकर एड्‌स की बीमारी बनने का खतरा शायद हमेशा के लिए टल जाए। क्योंकि यह इलाज अभी नया-नया है, इसलिए यह तो वक्‍त ही बताएगा कि यह इलाज इन्फॆक्शन को कितने समय तक दबाए रख सकता है।

यह इलाज बहुत मँहगा है। तीन ऎन्टिवाइरल दवाओं का और अलग-अलग टॆस्ट कराने का खर्च एक साल में लगभग ४,८०,००० रुपए आता है। ना सिर्फ इसमें पानी की तरह पैसे बहाने पड़ते हैं, बल्कि इस इलाज के लिए मरीज़ को फ्रिज की भी ज़रूरत पड़ती है, साथ ही उसके लिए बिस्तर से उठकर फ्रिज तक बार-बार जाना बहुत ही मुश्‍किल होता है, क्योंकि इन दवाओं को फ्रिज में ही रखा जाना चाहिए। किसी मरीज़ को दिन में दो बार दवाई लेनी पड़ती है, और किसी-किसी को तीन बार। कोई दवाई खाली पेट लेनी पड़ती है, तो कोई खाना खाने के बाद। यह इलाज तब और भी मुश्‍किल बन जाता है जब दूसरे इन्फॆक्शनों से बचने के लिए और भी दवाइयाँ खानी पड़ती हैं, क्योंकि एड्‌स का मरीज़ इतना कमज़ोर हो जाता है कि उसे कोई भी इन्फॆक्शन आसानी से लग सकता है।

डॉक्टरों की सबसे बड़ी चिंता यह रहती है कि अगर मरीज़ ट्रिपल थॆरपी का यह इलाज बंद कर दे, तो क्या होगा। तब तो ये वायरस बिना किसी रोक के बेतहाशा बढ़ते रहेंगे, और इलाज के दौरान जो वायरस बच गए थे, उन पर पहले ली गयी दवाओं का कोई असर नहीं होगा। HIV वायरसों की ऐसी नस्ल को ठीक करना ज़्यादा मुश्‍किल होगा। और-तो-और, वायरसों की इस खतरनाक नस्ल का दूसरे लोगों में भी फैल जाने का खतरा बना रहता है।

क्या वैक्सीन, या टीका इसका इलाज है?

एड्‌स के कुछ रिसर्च करनेवालों का मानना है कि दुनिया भर में एड्‌स की महामारी को रोकने का बस एक ही रास्ता है ऐसा असरदार टीका या वैक्सीन बनाना, जिसके साइड एफॆक्ट्‌स कम-से-कम हों। पीत-ज्वर, खसरे, गलसुए, हल्के खसरे के असरदार टीके बनाने के लिए इन्हीं बीमारियों के कमज़ोर वायरसों का इस्तेमाल किया जाता है। जब किसी कमज़ोर वायरस को शरीर में डाला जाता है, तो बीमारियों से लड़नेवाला हमारा इम्यून सिस्टम उस वायरस को तो नाश करता ही है, मगर साथ में वो ऐसी ताकत भी पैदा कर लेता है जो बीमारी के असली वायरस से भी लड़ सके।

बंदरों पर किए गए हाल के दो टॆस्ट से पता चला है कि HIV के साथ मुश्‍किल यह है कि उनके शरीर में डाला गया कमज़ोर वायरस भी जानलेवा बन सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, टीका लगाने पर वही बीमारी हो सकती है जिससे बचने के लिए उसे लगाया गया था।

टीके की तलाश से बस निराशा ही हाथ लगी है। दवाइयों के ऐसे दर्जनों प्रयोग किए गए हैं जिन्होंने यकीनन छोटे-मोटे वायरसों को पूरी तरह खत्म कर दिया होता। मगर इन सभी दवाओं का HIV पर कोई असर नहीं हुआ है। बात और भी बिगड़ जाती है, क्योंकि HIV का म्यूटेशन (mutation) होता रहता है, यानी HIV वायरस नयी-नयी किस्में पैदा करता रहता है, जिससे इलाज और भी मुश्‍किल हो जाता है। (अभी तक दुनिया भर में HIV की कम-से-कम दस किस्में पायी जाती हैं।) एक और बड़ी परेशानी यह है कि वायरस सीधी तरह से इम्यून सिस्टम की कोशिकाओं पर हमला करता है, जबकि टीके का काम होता है इन्हीं कोशिकाओं को रक्षा करने की ताकत देना।

रिसर्च के लिए पैसे की भी ज़रूरत पड़ती है। वॉशिंगटन की इंटरनैशनल एड्‌स वैक्सीन इनिशिएटिव संस्था ने कहा कि “प्राइवेट इंडस्ट्रीवाले इसमें ज़्यादा हाथ नहीं डालना चाहते।” कहा जाता है कि इसकी वज़ह यह है कि इस टीके से कोई मुनाफा नहीं होगा, क्योंकि ज़्यादातर दवाइयाँ गरीब देशों में ही बेची जाएँगी।

इन सभी मुश्‍किलात के बावजूद, रिसर्च करनेवाले एक असरदार टीके की तलाश में हर तरह की जाँच कर रहे हैं। लेकिन, अभी तक तो लगता है कि एड्‌स के लिए वैक्सीन इतनी जल्दी नहीं बनेगी। और अगर ऐसी असरदार वैक्सीन बन भी जाए, तब शुरू होगा एक और भी मुश्‍किल, खर्चीला और काफी खतरनाक दौर। और वो है उस वैक्सीन को इंसानों पर आज़माकर देखना।

[पेज 5 पर बक्स]

HIV का इन्फॆक्शन किसे हो रहा है?

दुनिया भर में हर रोज़ करीब १६,००० लोगों को HIV का इन्फॆक्शन होता है। कहा जाता है कि इनमें से ९० प्रतिशत से ज़्यादा लोग विकासशील देशों में रहते हैं। इनमें १० में से १ बच्चा है, जिसकी उम्र १५ से भी कम है। बाकी के सभी वयस्क हैं, जिनमें ४० प्रतिशत से ज़्यादा औरतें हैं और इनमें आधे से ज़्यादा औरतों की उम्र १५ से २४ के बीच है।—विश्‍व स्वास्थ्य संगठन और जॉइंट युनाइटॆड नेशंस प्रोग्राम ऑन HIV/AIDS.

[पेज 7 पर बक्स]

कैसे पता लगाएँ कि किसे इन्फॆक्शन है?

आप बस व्यक्‍ति का चेहरा देखकर यह नहीं बता सकते कि उसे HIV है या नहीं। हालाँकि जिन्हें HIV है, और जिनमें उसके लक्षण नज़र नहीं आते, ऐसे लोग शायद हट्टे-कट्टे दिखायी दें, लेकिन ये लोग इस वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं। तो क्या आप किसी भी व्यक्‍ति के सिर्फ कहने से ही मान लेंगे कि उसे HIV नहीं है? ज़रूरी नहीं। कई लोगों को खुद पता नहीं होता कि उन्हें HIV है। और जिन्हें पता होता भी है वे लोग शायद इस बात को छिपाने की कोशिश करते हैं या झूठ भी बोलते हैं। अमरीका में किए गए एक सर्वे से पता चला कि १० में से ४ HIV इन्फॆक्शनवाले लोगों ने अपने उन साथियों से यह बात छिपाए रखी थी जिनके साथ उन्होंने लैंगिक संबंध रखा था।

[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]

HIV और AIDS का रिश्‍ता

HIV का मतलब है “ह्‍यूमन इम्यूनोडॆफिशिएँसी वायरस” (human immunodeficiency virus)। यह वायरस बीमारी से लड़नेवाली शरीर की ताकत को आहिस्ते-आहिस्ते नष्ट कर देता है। AIDS का मतलब है “एक्वायर्ड इम्यूनोडॆफिशिएँसी सिंड्रोम” (acquired immunodeficiency syndrome)। यह HIV इन्फॆक्शन की आखिरी और जानलेवा दशा होती है। इस नाम से ही पता चलता है कि HIV बीमारी से लड़नेवाली शरीर की ताकत को बुरी तरह नुकसान पहुँचाता है। इससे मरीज़ बहुत ही कमज़ोर हो जाता है और उसका शरीर बड़ी आसानी से इन्फॆक्शनों का शिकार बन जाता है। जबकि आम तौर पर शरीर इन इन्फॆक्शनों से आसानी से लड़ सकता है।

[चित्र का श्रेय]

CDC, Atlanta, Ga.

[पेज 7 पर तसवीर]

शादी का इरादा करने से पहले HIV की जाँच करा लेना अक्लमंदी होगी

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