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अगर वह मेरे प्यार के बदले में प्यार न दे? आज ही मुझे सजग होइए! का जुलाई ८ अंक मिला और जब मैंने लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . क्या करूँ अगर वह मेरे प्यार के बदले में प्यार न दे?” देखा तो मैंने तुरंत यहोवा को धन्यवाद दिया कि उसने मेरी प्रार्थना सुन ली। मैंने तय किया है कि अपनी मम्मी के साथ इस लेख पर बातचीत करूँगी और इसमें दी गयी सलाह पर अमल करूँगी। “युवा लोग पूछते हैं . . . ” श्रृंखला सचमुच यहोवा परमेश्‍वर की ओर से एक प्रेममय प्रबंध है।

के. एम., केन्या

मैं २२-वर्षीया युवती हूँ और मुझे आपकी पत्रिका का हर अंक अच्छा लगता है; लेकिन यह पहला लेख है जो मेरे दिल को इतनी गहराई तक छू गया। जब मैंने इसे पढ़ना शुरू किया तो मेरी आँखों में आँसू छलक आये। कुछ समय पहले मेरे अंदर वही भावनाएँ थीं जो आपने बतायी हैं और उनके बारे में मेरे मन में कई प्रश्‍न थे। इस लेख ने मुझे स्थिति को ज़्यादा अच्छी तरह समझने में मदद दी।

आर. बी., लिथुएनिया

जब मैंने यह लेख पढ़ा तो मैंने सोचा, ‘किसी ने मेरी भावनाओं को कैसे समझ लिया?’ मैं यह जानकर बहुत खुश हुई कि यहोवा हमदर्दी से हर बात समझता है। यह पत्रिका आज ही आयी है और जबकि आधी रात हो चुकी है फिर भी मैं आपको लिखकर बताना चाहती हूँ।

ए. एन., जापान

हालाँकि यह लेख खासकर लड़कियों के लिए लिखा गया है परंतु मुझे भी इससे बहुत मदद मिली। एक हफ्ते पहले ही मुझे किसी ने बेरुखी से न कह दिया और उससे मुझे चोट पहुँची है। आपके लेख ने मुझे अपनी भावनाओं पर काबू करने में मदद दी। इससे मुझे सांत्वना मिली और उससे भी बढ़कर मुझे पता चला कि पत्नी चुनते समय मुझे लेने के बारे में नहीं, देने के बारे में सोचना चाहिए।

पी. एच. एस., ब्राज़ील

कोरियन समाज में इस पर बहुत ज़ोर दिया जाता है कि उम्र होते ही लड़की की शादी हो जानी चाहिए। “नवयौवन ढलने” तक रुकना और उसके बाद शादी करना एक मसीही लड़की के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है। (१ कुरिन्थियों ७:३६, NW) बढ़िया सलाह के लिए शुक्रिया।

एस. सी., कोरिया

स्व-चिकित्सा मैं लेख-श्रृंखला “स्व-चिकित्सा—फायदेमंद या नुकसानदेह?” (अगस्त ८, १९९८) देखकर खुश हुआ। इसे बहुत अच्छी तरह लिखा गया है और विषय को संतुलित रूप से प्रस्तुत किया गया है, जो संसार के अधिकतर देशों में फायदेमंद साबित हो सकता है। इसमें बढ़िया तरीके से इस बात के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है कि हमें ‘हर बीमारी का इलाज दवा’ से करने के बजाय स्वस्थ जीवन-शैली अपनाकर अपने स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी खुद उठानी चाहिए।

जे. एम. जे., इंग्लॆंड

इश्‍कबाज़ी लेख “बाइबल का दृष्टिकोण: इश्‍कबाज़ी करने में क्या बुराई है?” (अगस्त ८, १९९८) के लिए धन्यवाद। मेरे इश्‍किया मिजाज़ का मेरे परिवारवालों पर जो असर हुआ उससे वे अभी उबर रहे हैं। मैं अपने परिवार को और खासकर अपनी पत्नी को जो दुःख पहुँचा रहा था उसे नज़रअंदाज़ करता रहा। यदि मैं अपने मसीही भाई-बहनों से कुछ कह सकता हूँ तो वह यह है कि “कृपया हमारे पिता यहोवा की सुनिए, लौट आइए, मदद लीजिए, यहोवा से प्रार्थना कीजिए और बुराई से बहुत, बहुत, बहुत दूर भागिए।”

डी. बी., अमरीका

इस लेख से यह पक्का हो गया कि इश्‍कबाज़ी कोई हलकी-फुलकी बात नहीं। इसके कारण हमारा तलाक हुआ और हमारे परिवार पर बहुत बुरा असर हुआ। इस समस्या में ऐसे मज़ाक का बहुत बड़ा हाथ था जिसमें उस समय कोई बुराई नहीं दिख रही थी। मैं आशा करता हूँ कि यह सलाह उनकी मदद करेगी जो खुद-ब-खुद यह नहीं देख पाते कि उनके व्यवहार, बोली या हाव-भाव से विपरीत लिंग के व्यक्‍ति पर कैसा असर हो सकता है।

ओ. एम., चॆक गणराज्य

यह कई बहनों के दुखते दिल के लिए मानो राहत पहुँचानेवाला मरहम था। इस लेख के माध्यम से हमने जाना है कि यहोवा हमारे अंदर छिपी भावनाओं को देखता है और हमारी परवाह करता है।

ए. एम. पी., स्पेन

उपशीर्षक “भावात्मक संबंध” के नीचे दिया गया अनुच्छेद मेरे लिए नयी बात थी। मेरे पति का कलीसिया की एक बहन से बौद्धिक लगाव हो रहा था क्योंकि उन दोनों की पृष्ठभूमि मिलती-जुलती है। हमारी शादी के १७ सालों में मेरे पति ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मुझे उन पर शक होता, फिर भी मुझे उन पर शक हो रहा था। अपने पति को अपनी भावना बताना मेरे लिए आसान नहीं था। शुरू में तो वह चौंक गये लेकिन फिर उन्होंने मेरी बात समझने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह मुझे और हमारे तीनों बच्चों को चोट नहीं पहुँचाना चाहते हैं और तुरंत उन्होंने उस बहन के साथ मेल-जोल एकदम छोड़ दिया। उनके इस व्यवहार से मुझे बहुत राहत मिली।

डी. टी., कनाडा

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