युवा लोग पूछते हैं . . .. .
लोगों से मिलने-जुलने के डर को मैं कैसे मिटा सकता हूँ?
“शर्मीलापन व्यक्ति को बुत बना देता है। यह एक ऐसा डर है जिससे आपके हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं। आपको इस भावना से लड़ना पड़ता है क्योंकि यह एक हकीकत है।”—रिचर्ड।a
“जब मैं बड़ी हो रही थी तब मैं हद से ज़्यादा शर्माने लगी थी और यह मेरी एक समस्या बन गयी थी। मैं मानो बाकी की दुनिया से कट चुकी थी और मेरी दुनिया सिमटती जा रही थी।”—१८ साल की एलिज़ाबेथ।
‘क्या मुझमें कोई कमी है? आखिर मुझे हो क्या गया है? मैं लोगों से क्यों मिल-जुल नहीं सकती?’ क्या आपके मन में भी कभी-कभी ऐसे सवाल आते हैं? ऊपर ज़िक्र किए गए रिचर्ड की तरह, जब आपकी मुलाकात किसी अजनबी से होती है तो आप शायद बहुत नर्वस हो जाएँ या आपके हाथ-पैर ठंडे पड़ जाएँ। जब आप बड़े-बड़े अधिकारियों या नामी लोगों के सामने होते हैं तो आप शायद डर के मारे काँपने लगें। या फिर आपको शायद इस बात की चिंता हमेशा सताती हो कि लोग आपके बारे में क्या सोचते होंगे। और जब कभी आपको अपनी भावना या राय बताने के लिए कहा जाता है तो आप चुप्पी साध लेते हैं। ट्रेसी नाम की एक युवती यह कबूल करती है, “मुझे ऐसे लोगों के पास जाकर बात करना बहुत मुश्किल लगता है जिन्हें मैं ठीक से नहीं जानती, यह मुझसे नहीं होता।”
ऐसी भावनाओं की वज़ह क्या है? सबसे पहले इस समस्या को समझना बहुत ज़रूरी है क्योंकि तभी हम इस पर काबू पाने की कोशिश कर सकते हैं। (नीतिवचन १:५) एक स्त्री ने कहा: “मुझे मालूम नहीं था कि लोगों को देखकर मुझे क्या हो जाता था। क्यों मैं लोगों के बीच इस कदर बेचैन महसूस करती थी। मगर अब मुझे इसका जवाब मिल गया है क्योंकि मैं जान गयी हूँ कि मेरी समस्या क्या है। सो अब मैं इसका मुकाबला कर सकती हूँ।” सो आइए हम कुछ कारण देखें कि क्यों कुछ युवाओं को, लोगों से मिलने-जुलने में मुश्किल होती है।
एक वज़ह है शर्मीलापन
शायद शर्मीलापन सबसे आम वज़ह है कि क्यों एक युवा, लोगों से दूर-दूर रहता है। जो युवा खुलकर सबसे मिलते-जुलते हैं, उन्हें दोस्तों की कमी नहीं रहती, मगर एक शर्मीला, संकोची युवा बहुत ही अकेला और कटा-कटा-सा महसूस करता है। १८ साल की एलिज़ाबेथ कहती है, “जब मैं बड़ी हो रही थी तब मैं हद से ज़्यादा शर्माने लगी थी और यह मेरी एक समस्या बन गयी थी। मैं मानो बाकी की दुनिया से कट चुकी थी और मेरी दुनिया सिमटती जा रही थी।” डाएना को हाई स्कूल का अपना पहला साल याद है जब उसे काफी तनाव का सामना करना पड़ा था। “अगर लोगों की नज़र मुझ पर पड़ जाती तो मुझे अजीब-सा महसूस होने लगता था, और यह मुझे बिलकुल पसंद नहीं था। एक बार हमारी एक टीचर ने हमसे पूछा था कि हमें बड़ा और मशहूर होना कितना ज़रूरी लगता है और इसे हमें अंक देकर ज़ाहिर करना था। हमें शून्य से पाँच तक अंक देने थे, शून्य का मतलब था कि हमें यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं लगता और पाँच अंक का मतलब था यह हमारे लिए बेहद ज़रूरी था। क्लास की बाकी सभी लड़कियों ने, जो स्कूल में काफी मशहूर थीं, पाँच अंक डाले। जबकि मैंने शून्य डाला। क्योंकि बहुत मशहूर होने के डर ने ही मुझे शर्मीला बना दिया था। यह डर जब इंसान के दिल में बैठ जाता है तो वह लोगों की नज़रों में दिखाई देना नहीं चाहता, ना ही वह यह चाहता है कि सब बस उसे ही घूरें क्योंकि उसे डर रहता है कि अगर लोग उसे करीबी से जान जाएँगे तो कहीं वे उसे पसंद करना न छोड़ दें।”
माना कि थोड़ा-बहुत शर्माना कोई बुरी बात नहीं है। क्योंकि शर्मीलापन और विनम्रता में चोली-दामन का साथ है और ये दोनों ही गुण हमें अपनी सीमाओं का एहसास दिलाते हैं। दरअसल हमें बाइबल में आज्ञा दी गयी है कि हम ‘अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चलें।’ (मीका ६:८) हमें किसी ऐसे व्यक्ति की संगति करना बिलकुल पसंद नहीं होता जो रोबीला व झगड़ालू हो और हमसे कुछ ज़्यादा ही उम्मीद करता हो। इसके बजाय, हमें नम्र या कुछ-कुछ संकोची स्वभाव के व्यक्ति के साथ रहना और संगति करना ज़्यादा पसंद होता है। और हालाँकि यह सच है कि ‘बोलने का समय है,’ मगर “चुप रहने का [भी] समय” होता है। (सभोपदेशक ३:७) जो लोग शर्मीले या संकोची होते हैं उन्हें चुप रहने में ज़्यादा परेशानी नहीं होती। क्योंकि वे ‘सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरे’ होते हैं और दूसरों की बातें अच्छी तरह सुनने की वज़ह से अकसर उनकी तारीफ की जाती है।—याकूब १:१९.
मगर, कई युवाओं के बहुत ही चुप-चुप, शर्मीले या संकोची होने की वज़ह से उन्हें नए-नए दोस्त बनाने में बहुत मुश्किल होती है। और कुछ युवा तो इस कदर शर्मीले या संकोची होते हैं कि वे उस तरह महसूस करते हैं जिसे एक लेखक ने “एक तरह की मन की कैद में खुद को जकड़ना” कहा, यानी बाकी सब लोगों से कटा-कटा रहना।—नीतिवचन १८:१.
शर्मीलापन—एक आम समस्या है
अगर आप बहुत ही शर्मीले हैं, तो घबराइए मत, आप अकेले नहीं हैं। यह बहुत ही आम समस्या है। जब एक हाई-स्कूल और कॉलॆज के विद्यार्थियों पर अध्ययन किया गया, तो यह देखा गया कि “लगभग ८२ प्रतिशत विद्यार्थियों ने अपनी ज़िंदगी के किसी-न-किसी मोड़ पर संकोच ज़रूर महसूस किया है।” (ईस्टवुड एटवोटर द्वारा लिखी एडॉलसॆन्स) शर्मीला होना कोई नयी बात नहीं है। बाइबल में भी कुछ ऐसे लोगों का ज़िक्र हुआ है जो शर्मीले थे। मूसा और तीमुथियुस जैसे खास लोगों को भी इस समस्या से जूझना पड़ा।—निर्गमन ३:११, १३; ४:१, १०, १३; १ तीमुथियुस ४:१२; २ तीमुथियुस १:६-८.
शाऊल की मिसाल लीजिए जो प्राचीन इस्राएल जाति का पहला राजा बना। यूँ तो शाऊल बड़ा बहादुर इंसान था। जब उसके पिता की गदहियाँ कहीं खो गयी थीं, तब वह बड़े साहस के साथ उन्हें बचाने निकल पड़ा। (१ शमूएल ९:३, ४) मगर जब उसे इस्राएल जाति का राजा बनाया गया, तो अचानक से उसे मारे लाज के शर्म आने लगी। जय-जयकार कर रही भीड़ के सामने जाने के बजाय, शाऊल सामान के बीच में जा छिपा!—१ शमूएल १०:२०-२४.
शाऊल का यह शर्मीलापन देखकर हमें शायद आश्चर्य हो कि उसमें आत्म-विश्वास की कितनी कमी थी क्योंकि बाइबल तो कहती है कि वह एक प्रभावशाली, खूबसूरत नौजवान था। अरे, ऊँचाई में तो उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था क्योंकि “वह इतना लम्बा था कि दूसरे लोग उसके कान्धे ही तक आते थे”! (१ शमूएल ९:२) और तो और, परमेश्वर के भविष्यवक्ता ने शाऊल की हौसला-अफज़ाई करते हुए उससे कहा कि यहोवा उसके शासन पर आशीष बरसाएगा। (१ शमूएल ९:१७, २०) मगर फिर भी शाऊल को अपने आप पर पूरा भरोसा नहीं था। जब उससे कहा गया कि उसे राजा बनाया जाएगा तो उसने नम्रता से कहा: “क्या मैं बिन्यामिनी, अर्थात् सब इस्राएली गोत्रों में से छोटे गोत्र का नहीं हूं? और क्या मेरा कुल बिन्यामीनी के गोत्र के सारे कुलों में से छोटा नहीं है? इसलिये तू मुझ से ऐसी बातें क्यों कहता है?”—१ शमूएल ९:२१.
अगर शाऊल जैसे इंसान का आत्म-विश्वास डँवाँडोल हो सकता है तो हमारी बिसात क्या है? हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हमारा आत्म-विश्वास भी कभी-कभी डँवाँडोल हो सकता है। युवा होने की वज़ह से आप ज़िंदगी के ऐसे मोड़ पर हैं जहाँ आपके शरीर में बड़ी तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं। आप तो बस अभी बड़ों की दुनिया में कदम रख ही रहे हैं और उनकी दुनिया के तौर-तरीके और बोल-चाल सीख ही रहे हैं। तब यह स्वाभाविक ही है कि कभी-कभी आपको यह एहसास कुछ ज़्यादा ही होने लगे कि आपके चारों तरफ लोग हैं जो बस आपको ही देख रहे हैं और इस वज़ह से आप शायद थोड़ा असुरक्षित महसूस करें। माता-पिता (अंग्रेज़ी) पत्रिका में डॉ. डेविड एलकाइन्ड ने लिखा: “ज़्यादातर लड़के-लड़कियाँ जब जवानी में कदम रखते हैं तो शर्मीलेपन के एक दौर से गुज़रते हैं। उस दौरान वे मन-ही-मन यह कल्पना कर लेते हैं कि उनके चारों तरफ दर्शक या लोग हैं जो बस उन्हें ही घूर रहे हैं और उनकी हर चाल और हरकत पर नज़र रखे हुए हैं।”
दूसरे साथी आपके बारे में जो कहते हैं उसी की बिना पर अकसर आप खुद के बारे में राय कायम करते हैं। इसलिए आप जैसे कई युवा अपने रूप-रंग को लेकर परेशान हो उठते हैं और अपनी सुंदरता में खामियाँ निकालने लगते हैं। (२ कुरिन्थियों १०:७ से तुलना कीजिए।) मगर अपने रूप-रंग के बारे में हद से ज़्यादा चिंता करना ठीक नहीं है। फ्रांस में, लील्या नाम की एक स्त्री ने इस बारे में अपनी आप-बीती सुनायी: “मुझे भी वही समस्या थी जो दूसरे युवाओं को थी। मेरे चेहरे पर मुँहासे थे! और जब चेहरे पर मुँहासे हों तो दूसरों के सामने जाने की हमारी हिम्मत ही नहीं होती क्योंकि हम इसी चिंता में डूबे रहते हैं कि हम कैसे दिखते हैं।”
तनहाई का दलदल
शर्मीले लोगों के बारे में अकसर गलत राय कायम कर ली जाती है, इसलिए वे आसानी से तनहाई के दलदल में फँस सकते हैं जहाँ वे खुद को अकेला पाते हैं। किताब एडॉलसॆन्स कहती है: “शर्मीले नौजवानों को नए दोस्त बनाने में बहुत दिक्कत होती है क्योंकि लोग उनके संकोची स्वभाव का गलत अर्थ निकालते हैं। और उनके बारे में गलत राय कायम कर लेते हैं, जैसे कि वह गैर-मिलनसार है, वह हमारे रंग में रंगता नहीं, उसे किसी भी चीज़ में दिलचस्पी नहीं, वह दोस्ताना नहीं है, वह खुद को बहुत बड़ा समझता है और बिलकुल ठंडा है। और जब इस गलतफहमी के अनुसार ही उनके साथ सलूक किया जाता है तो ऐसे शर्मीले लोग अपनी तनहाई की दुनिया में और भी ज़्यादा सिमटकर निराश, अकेला और मायूस हो जाते हैं।” ऐसे में वे और भी ज़्यादा संकोची स्वभाव के बन जाते हैं। मगर लोग उनकी इस हालत को समझने के बजाय उलटा उन्हें घमंडी और नक-चढ़ा ही समझते हैं।
हम मसीहियों को खासकर इस बात की चिंता ज़रूर होनी चाहिए कि हम लोगों पर कैसा प्रभाव डालते हैं, क्योंकि हम ‘जगत के लिये तमाशा ठहरे हुए हैं।’ (१ कुरिन्थियों ४:९) क्या आप दूसरों से बातें करते वक्त नज़रें चुराते हैं? क्या आपके हाव-भाव और व्यवहार से लोगों को यही संदेशा मिलता है कि आप किसी से मिलना-जुलना नहीं चाहते और अकेले ही रहना चाहते हैं? तो फिर याद रखिए कि दूसरे आपके व्यवहार का गलत मतलब निकाल सकते हैं और फिर वे आपसे दूर ही रहने लगेंगे। इससे दोस्त बनाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
दूसरी वज़हें
एक और आम समस्या है नाकाम होने का डर। माना कि जब हम कोई नया काम शुरू करते हैं जिसमें हमें कोई तजुर्बा नहीं होता है, तो हमें थोड़ा-बहुत डर या संकोच तो लगता ही है। मगर कुछ युवा हद से ज़्यादा ही डरने लगते हैं। गैल जब जवान थी तब उसे लोगों से मिलने-जुलने का हद से ज़्यादा डर लगता था। इस डर को वह सोशियल-फोबिया कहती थी। वह कहती है: “मैं क्लास में कभी जवाब नहीं देती थी। और मेरे माता-पिता से हमेशा यही शिकायत की जाती थी कि ‘वह अपना हाथ नहीं उठाती है। वह क्लास में मुँह नहीं खोलती है।’ मगर मुझे ऐसा करने में बहुत ही तकलीफ होती थी और मुझे तनाव भी होता था। आप मानेंगे नहीं, ऐसा करना मुझे अब भी कठिन लगता है।” नाकाम होने का डर लोगों को बुत बना सकता है। पीटर नाम का एक लड़का कहता है, “मुझे रात-दिन बस यही चिंता खाए जाती है कि कहीं मैं कोई गलती न कर बैठूँ। मुझे बिलकुल पता नहीं रहता कि मैं कर क्या रहा हूँ।” जब आपके यार-दोस्त आपको बहुत बुरी तरह चिढ़ाते हैं और ताने कसते हैं तो इससे आपके अंदर का डर और भी बढ़ जाता है और यह आपके आत्म-विश्वास को हमेशा-हमेशा के लिए नुकसान पहुँचा सकता है।
इन शर्मीले लोगों में एक और आम समस्या होती है कि इन्हें चार लोगों के साथ उठने-बैठने या बात करने की कला नहीं आती। आप शायद नए व्यक्ति को अपना परिचय देने से हिचकिचाएँ क्योंकि आप इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि आप बात करें भी तो क्या। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि कभी-कभी बड़े लोगों को भी यह पता नहीं होता कि वे क्या बात करें। फ्रॆड नाम का एक व्यापारी कहता है, “व्यापार की दुनिया में मुझे वो सब करना आता है जिसमें मैं माहिर हूँ। इसलिए अगर मैं सिर्फ व्यापार की बात करता हूँ तो मैं बेधड़क बात करता हूँ और सामनेवाले पर अच्छा प्रभाव डालता हूँ। पर जब मैं इन्हीं लोगों के साथ आम बातें करने लगता हूँ तो मुझे घबराहट होने लगती है। लोगों ने शायद मुझे उबाऊ या किताबी भाषा बोलनेवाला या बहुत टॆक्निकल होने का नाम करार दिया होगा या वे सोचते होंगे कि मैं दिलचस्प आदमी नहीं हूँ।”
चाहे आप शर्मीले हों, या आपको चार लोगों के बीच उठने-बैठने या बात करने की कला न आती हो, यह आपकी भलाई के लिए है कि आप और ज़्यादा मिलनसार होना सीखें। बाइबल मसीहियों को “अपना हृदय खोल” देने और दूसरों से भी जान-पहचान बढ़ाने का प्रोत्साहन देती है! (२ कुरिन्थियों ६:१३) मगर आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? इसका जवाब आगे के किसी अंक में दिया जाएगा।
[फुटनोट]
a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
[पेज 16 पर तसवीर]
शर्मीले लोगों को अकसर गैर-मिलनसार समझा जाता है
[पेज 16 पर तसवीर]
नाकाम होने के डर की वज़ह से कुछ युवजन दूसरों से मिलने-जुलने से दूर रहते हैं