नौजवान पूछते हैं
क्या मुझे इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों की लत लग चुकी है?
नीचे दिए अनुभवों में क्या बात एक-सी है?
“मैसेज भेजना मुझे बहुत पसंद है। मेरा मानना है कि इससे बढ़िया चीज़ और कोई हो ही नहीं सकती। आप कह सकते हैं कि इसके बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है।”—अमित.a
“जब मम्मी ने मेरे कमरे के लिए एक टी.वी. खरीदकर दिया, तो मैं खुशी से झूम उठी। रात में सोने के बजाय मैं घंटों टी.वी. देखती हूँ। परिवार के लोगों और दोस्तों के साथ वक्त बिताने से ज़्यादा मैं टी.वी. देखना पसंद करती हूँ।”—शुभांगी.
“कुछ समय पहले मुझे कहीं भी जाने की या कुछ करने की इच्छा नहीं होती थी क्योंकि मैं यही सोचती रहती थी कि कहीं किसी ने मेरी वेब साइट पर कुछ नयी चीज़ तो नहीं भेजी। अगर बीच रात में मेरी आँख खुल जाती थी, तो मैं इंटरनेट पर जाती थी। जब भी मौका मिलता, मैं अपने ब्लॉग पर नयी जानकारी डाल देती थी।”—अकांक्षा.
इन तीनों नौजवानों की बातें पढ़कर आपको क्या लगता है, इनमें से किसे इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों की लत लग चुकी है?
❑ अमित ❑ शुभांगी ❑ अकांक्षा
जब आपके मम्मी-पापा ने अपनी जवानी में कदम रखा था, उस वक्त इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों के नाम पर बस टी.वी. और रेडियो हुआ करते थे। फोन भी थे पर सिर्फ बात करने के लिए और ये बस दिवारों पर लटके नज़र आते थे। क्या यह आपको बाबा-आदम के ज़माने की बात लगती है? अकांक्षा नाम की एक लड़की को भी ऐसा ही लगता है। वह कहती है, “मेरे मम्मी-पापा के ज़माने में ऐसा कुछ नहीं था जो आज है। उन्हें तो पता ही नहीं कि उनके मोबाइल फोन में क्या-क्या है और उसे सही तरह से कैसे चलाएँ।”
आज आप मोबाइल फोन पर क्या कुछ नहीं कर सकते, दूसरों से बात कर सकते हैं, गाने सुन सकते हैं, टी.वी. देख सकते हैं, गेम्स खेल सकते हैं, दोस्तों को ई-मेल भेज सकते हैं, फोटो ले सकते हैं, यहाँ तक कि इंटरनेट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आप कंप्यूटर, मोबाइल, टी.वी. और इंटरनेट के ज़माने में पैदा हुए हैं और इसलिए शायद आपको लगे कि इन चीज़ों में घंटों बिताना कोई बड़ी बात नहीं, जबकि आपके मम्मी-पापा को लगे कि आपको इन चीज़ों की लत लग चुकी है। अगर वे आपके सामने अपनी यह चिंता ज़ाहिर करते हैं, तो ऐसे में यह कहकर उनकी बात मत टाल दीजिए कि वे हकीकत से रू-ब-रू नहीं। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा था, “जो बिना बात सुने उत्तर देता है, उसके लिए यह मूर्खता और लज्जा की बात है।”—नीतिवचन 18:13, NHT.
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके मम्मी-पापा क्यों इतनी फिक्र करते हैं? आगे एक नमूना दिया गया है जिसकी मदद से आप खुद को परख सकते हैं कि कहीं आपको किसी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों की लत तो नहीं लग चुकी है।
खुद को परखिए—‘क्या मुझे लत लग चुकी है?’
एक विश्वकोश लत की परिभाषा इस तरह देता है, “एक ऐसा व्यवहार, जिसे एक व्यक्ति बिना खुद पर काबू रखे और आदत से मजबूर होने की वजह से कई दफा दोहराता है, और जिसे वह न तो छोड़ पाता है और ना ही छोड़ना चाहता है, यह जानते हुए भी कि उसके बुरे नतीजे होंगे।” इस परिभाषा के मद्देनज़र, लेख की शुरुआत में बताए तीनों जवान इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों के आदी हैं या हो चुके हैं। आपके बारे में क्या? आइए इस परिभाषा के हर पहलू को करीबी से जाँचें। आगे दिए हवालों को पढ़िए और देखिए कि क्या आपने भी कभी कुछ ऐसा कहा है या ऐसा कोई काम किया है। इसके बाद, खाली जगह पर अपना जवाब लिखिए।
ऐसा व्यवहार, जिस पर कोई काबू नहीं। “मैं घंटों-घंटों इलेक्ट्रॉनिक गेम्स खेलता था। इससे मेरी रातों की नींद उड़ जाती थी। दूसरों से बातचीत करते वक्त भी मैं बस गेम्स के बारे में ही बात करता था। मैं परिवार से कटा-कटा रहने लगा था और वीडियो गेम्स की अपनी ही दुनिया में खो जाता था।”—सागर।
आपकी राय में, हर दिन इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का इस्तेमाल करने में कितना समय बिताना सही है? ______
आपको इसमें कितना समय बिताना चाहिए, इस बारे में आपके मम्मी-पापा की क्या राय है? ______
आप हर दिन मोबाइल पर मैसेज भेजने, टी.वी. देखने, वेब साइट पर तसवीरें डालने या अपनी राय देने, इलेक्ट्रॉनिक गेम्स खेलने और ऐसे ही दूसरे कामों में कुल मिलाकर कितना वक्त बिताते हैं? ______
ऊपर लिखे आपके जवाबों को देखने के बाद क्या आप कहेंगे कि आप इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का हद-से-ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं?
❑ हाँ ❑ नहीं
ऐसा व्यवहार, जिसे एक व्यक्ति न तो छोड़ पाता है और ना ही छोड़ना चाहता है। “मम्मी-पापा हमेशा मुझे मैसेज-पर-मैसेज भेजते हुए देखते हैं और कहते हैं कि मैं मोबाइल में कुछ ज़्यादा ही वक्त गँवा रहा हूँ। लेकिन मेरी उम्र के बच्चों के मुकाबले, मैं बहुत ही कम मैसेज भेजता हूँ। हाँ, यह सच है कि मैं मम्मी-पापा से ज़्यादा मैसेज भेजता हूँ। लेकिन मेरी उनसे क्या बराबरी, वे तो 40 साल के हैं और मैं बस 15 साल का हूँ।”—अमित।
क्या कभी आपके मम्मी-पापा या दोस्तों ने आपसे कहा है कि आप मोबाइल या दूसरी किसी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ का इस्तेमाल करने में कुछ ज़्यादा ही वक्त बिताते हैं?
❑ हाँ ❑ नहीं
क्या आपके साथ ऐसा हो रहा है कि आप इस आदत को न तो छोड़ पा रहे हैं और ना ही छोड़ना चाहते हैं?
❑ हाँ ❑ नहीं
बुरे अंजाम। “मेरे दोस्त वक्त-बेवक्त एक-दूसरे को मैसेज भेजते रहते हैं, गाड़ी चलाते वक्त भी। उन्हें अपनी जान की कोई परवाह नहीं!”—रेखा।
“जब मेरे हाथ में पहली बार मोबाइल फोन आया, तो मैं चौबीसों घंटे किसी-न-किसी से बात करती रहती थी या मैसेज भेजती रहती थी। इस वजह से परिवार के लोगों के साथ, यहाँ तक कि कुछ दोस्तों के साथ भी मेरा रिश्ता बिगड़ने लगा। अब मैंने गौर किया है कि जब भी मैं अपने दोस्तों के साथ होती हूँ, तो अकसर वे मुझे बीच में ही टोकते हैं और कहते हैं, ‘ज़रा एक मिनट रुकना। मुझे एक मैसेज भेजना है।’ यही वजह है, मेरी उनके साथ पक्की दोस्ती नहीं है।”—प्रियंका।
क्या आप कभी गाड़ी चलाते वक्त या क्लास के दौरान मैसेज पढ़ते या भेजते हैं?
❑ हाँ ❑ नहीं
क्या आप परिवार के लोगों या दोस्तों से बात करते वक्त बार-बार ई-मेल, फोन या मैसेज पढ़ने या भेजने के लिए बीच में ही बातचीत रोक देते हैं?
❑ हाँ ❑ नहीं
क्या आप इलेक्ट्रॉनिक चीज़ का इस्तेमाल करने के इतने दीवाने हो गए हैं कि आपकी नींद पूरी नहीं होती या पढ़ाई में आपका मन नहीं लगता?
❑ हाँ ❑ नहीं
सही तालमेल कैसे बिठाएँ
अगर आप कंप्यूटर, मोबाइल फोन या दूसरी कोई इलेक्ट्रॉनिक चीज़ इस्तेमाल करते हैं, तो खुद से आगे दिए चार सवाल पूछिए। अगर आप हर सवाल के आगे दी बाइबल की सलाह मानें और कुछ आसान से सुझावों पर अमल करें, तो इससे आपकी हिफाज़त हो सकती है और आप इन चीज़ों का इस्तेमाल करने में खुद पर काबू पा सकते हैं।
1. मैसेज या तसवीर किस तरह की है? “जो बातें सच्ची हैं, जो बातें गंभीर सोच-विचार के लायक हैं, जो बातें नेकी की हैं, जो बातें पवित्र और साफ-सुथरी हैं, जो बातें चाहने लायक हैं, जो बातें अच्छी मानी जाती हैं, जो सद्गुण हैं और जो बातें तारीफ के लायक हैं, लगातार उन्हीं पर ध्यान देते रहो।”—फिलिप्पियों 4:8.
ऐसा कीजिए: दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखिए और उनके साथ हौसला-बढ़ानेवाली बातें और खबरें बाँटिए।—नीतिवचन 25:25; इफिसियों 4:29.
ऐसा मत कीजिए: दूसरों के साथ नुकसानदेह गपशप मत कीजिए, गंदे मैसेज या तसवीरें दूसरों को मत भेजिए, और अश्लील वीडियो या प्रोग्राम मत देखिए।—कुलुस्सियों 3:5; 1 पतरस 4:15.
2. मैं इन चीज़ों का इस्तेमाल कब करता हूँ? ‘हर काम का एक समय है।’—सभोपदेशक 3:1.
ऐसा कीजिए: तय कीजिए कि आप फोन करने, मैसेज भेजने, टी.वी. देखने या गेम्स खेलने में कितना समय बिताएँगे। दूसरों के लिए लिहाज़ दिखाते हुए खास मौकों पर अपना फोन या दूसरी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें बंद कर दीजिए, जैसे उपासना के लिए सभाओं में हाज़िर होते वक्त। आप मैसेज का जवाब सभाओं के बाद भी भेज सकते हैं।
ऐसा मत कीजिए: अपने परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताने, साथ ही अध्ययन या उपासना से जुड़े दूसरे काम करने के लिए आपने पहले से जो समय तय कर रखा है, उस दौरान इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का इस्तेमाल मत कीजिए।—इफिसियों 5:15-17; फिलिप्पियों 2:4.
3. मेरी दोस्ती किन लोगों के साथ है? “धोखा न खाओ। बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।”—1 कुरिंथियों 15:33.
ऐसा कीजिए: मोबाइल या दूसरी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का इस्तेमाल उन लोगों के साथ दोस्ती गाँठने में कीजिए, जो आपको अच्छी आदतें डालने का बढ़ावा देते हैं।—नीतिवचन 22:17.
ऐसा मत कीजिए: खुद को धोखे में मत रखिए। आप जिन लोगों को ई-मेल या मैसेज भेजते हैं, जिन लोगों को आप टी.वी., वीडियो पर देखते हैं या जिनके साथ आप इंटरनेट पर बातचीत करते हैं, जल्द ही आप उनके स्तर, बोली और सोच को अपना लेंगे।—नीतिवचन 13:20.
4. मैं इसमें कितना वक्त बिताता हूँ? ‘पहचानो कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।’—फिलिप्पियों 1:10.
ऐसा कीजिए: हिसाब रखिए कि आप इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों में कितना समय बिताते हैं।
ऐसा मत कीजिए: जब आपके दोस्त या परिवारवाले कहते हैं कि आप इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों पर कुछ ज़्यादा ही वक्त बिता रहे हैं, तो उनकी बातों को हलका समझकर नज़रअंदाज़ मत कीजिए।—नीतिवचन 26:12.
इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों का सही इस्तेमाल करने के बारे में सागर, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, यूँ कहता है: “मोबाइल और दूसरी चीज़ों का इस्तेमाल करने में बड़ा मज़ा आता है, लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए। मैंने अपना सबक सीख लिया है। अब मैं टेकनॉलजी को परिवार और दोस्तों के साथ अपने रिश्ते में दरार बनने नहीं दूँगा।” (g11-E 01)
“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं
[फुटनोट]
a इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
[पेज 17 पर बक्स/तसवीरें]
आपके हमउम्र क्या कहते हैं
“मेरे मम्मी-पापा मुझे कहते थे, ‘जब देखो तुम मोबाइल से ही चिपके रहते हो। जी करता है तुम्हारा फोन तुम्हारे हाथ पर ही चिपका दें!’ पहले मुझे लगा कि वे मज़ाक कर रहे हैं, लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि वे वाकई गुस्सा हैं। अब मैंने मैसेज भेजना कम कर दिया है और सच कहूँ, मैं पहले कभी इतना खुश नहीं था, जितना आज हूँ।”
“मुझे लगता था कि जब भी मुझे मौका मिलता है मुझे इंटरनेट पर अपने मैसेज देख लेने चाहिए। इस वजह से मैं अपने होमवर्क और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाती थी। लेकिन अब मैंने इंटरनेट इस्तेमाल करना कम कर दिया है। ऐसा लगता है मानो एक भारी बोझ मेरे सिर पर से हट गया। कोई भी काम एक हद में रहकर करना वाकई फायदेमंद होता है।”
[तसवीरें]
जोवॉरने
मरीया
[पेज 18 पर बक्स]
“मुझे सोशल नेटवर्क वेब साइट की लत लग चुकी थी”
“कुछ साल पहले, हमारा पूरा परिवार एक दूसरे शहर में जाकर बस गया। मैं अपने पुराने दोस्तों से दोस्ती बनाए रखना चाहती थी। उन्होंने मुझे सुझाया कि मैं एक फोटो-शेरिंग वेब साइट (एक वेब साइट जिसमें तसवीरें डाली जा सकती हैं, ताकि दूसरे भी देख सकें) की सदस्य बन जाऊँ। मैंने सोचा कि उनके साथ संपर्क में रहने का यह बढ़िया तरीका है। इसमें मुझे कोई नुकसान नज़र नहीं आया, क्योंकि मैंने सोचा, साइट पर मैं सिर्फ अपने दोस्तों से बात करूँगी, किसी अजनबी से तो नहीं।”
“शुरू-शुरू में सबकुछ ठीक चला। मैं हफ्ते में एक बार इंटरनेट पर जाकर अपने दोस्तों के फोटो देखती थी और उन पर अपनी राय देती थी। और वे मेरे डाले हुए फोटो के बारे में जो भी लिखते थे उन्हें पढ़ती थी। लेकिन जल्द ही मुझे इसकी लत लग गयी। मैं हर वक्त इंटरनेट से चिपकी रहने लगी और मुझे इसका एहसास तक नहीं हुआ। मेरे दोस्तों के दोस्तों ने गौर किया कि मैं अकसर इंटरनेट पर होती हूँ, इसलिए वे भी मुझे अपना दोस्त बनाने के लिए मैसेज भेजने लगे। आप तो जानते ही हैं कि अगर आपका दोस्त कहता है कि फलाँ व्यक्ति के साथ दोस्ती करना सही रहेगा, तो आप फौरन उसे भी अपना दोस्त बना लेते हैं। इस तरह जल्द ही आपके पचासों दोस्त बन जाते हैं।”
“कुछ ही समय में ऐसा हुआ कि मैं हमेशा ऑन-लाइन जाने की सोचने लगी। जब मैं वेब साइट पर होती थी, तब भी मेरे मन में यही चलता रहता था कि मैं दोबारा कब अपने मैसेज चेक करूँगी और कब नयी तसवीरें साइट पर डालूँगी। फिर कुछ मैसेज वगैरह पढ़ती, कुछ वीडियो साइट पर डालती। और देखते-ही-देखते कई घंटे यूँ ही उड़न छू हो जाते।”
“यह पहचानने में मुझे करीब डेढ़ साल लगे कि मुझे इंटरनेट की लत लग चुकी है। पर अब मैं खुद पर काबू रखती हूँ कि ज़्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल न करूँ। साथ ही, मैं सिर्फ उन्हीं को दोस्त बनाती हूँ, जिनसे मैं आमने-सामने मिलती हूँ और जो मेरी ही तरह सही उसूलों पर चलते हैं। मेरा यह फैसला मेरे कुछ दोस्तों को समझ नहीं आता, लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने अपना सबक सीख लिया है।”—दीपिका।
[पेज 18 पर बक्स]
क्यों न आप अपने माता-पिता से पूछें?
अगर आप मनोरंजन के बारे में अपने मम्मी-पापा से बात करें, तो उनकी राय जानकर शायद आपको ताज्जुब हो। शेरल नाम की एक लड़की कहती है, “एक बार मेरे पापा को लगा कि मेरी एक गाने की सी.डी. सही नहीं है। मैंने पापा से पूछा कि क्या हम साथ बैठकर पूरी सी.डी. सुनें। वे राज़ी हो गए। पूरी सी.डी. सुनने के बाद पापा ने कहा कि उन्हें सी.डी. में कोई भी बुरी बात नहीं लगी।”
आगे दी जगह में लिखिए कि आप अपने मम्मी-पापा से इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों के बारे में क्या सवाल पूछना चाहते हैं।
[पेज 19 पर बक्स]
माता-पिता के लिए एक पैगाम
क्या आपका किशोर बच्चा मैसेज भेजने या पढ़ने में या फिर इंटरनेट पर बहुत ज़्यादा वक्त बिताता है? क्या उसकी दोस्ती आपसे ज़्यादा अपने एम.पी.3 प्लेयर से है? अगर हाँ, तो आप क्या कर सकते हैं?
आप शायद सोचें कि आपको अपने बच्चे से उसका मोबाइल या एम.पी.3 प्लेयर ले लेना चाहिए। लेकिन यह मत मान बैठिए कि सभी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें बुरे होती हैं। शायद आप भी ऐसी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें इस्तेमाल करते हों, जो आपके माँ-बाप के ज़माने में मौजूद नहीं थीं। इसलिए अगर आपके पास कोई गंभीर और वाजिब कारण न हो, तो अपने बच्चे की इलेक्ट्रॉनिक चीज़ें ज़ब्त मत कीजिए। इसके बजाय, उन्हें इन चीज़ों का समझदारी से और हद में रहकर इस्तेमाल करना सिखाइए। आप यह कैसे कर सकते हैं?
अपने बच्चे के साथ बैठकर इस बारे में बात कीजिए। पहले उसे अपनी चिंता बताइए। फिर उसकी बात सुनिए। (नीतिवचन 18:13) तीसरा, कुछ कारगर हल निकालिए। कड़ी बंदिशें लगाने से मत डरिए, मगर साथ ही लिहाज़ भी दिखाइए। (फिलिप्पियों 4:5) दीपिका जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहती है: “जब मैसेज का मसला उठा, तो मम्मी-पापा ने मुझसे मेरा फोन नहीं छिना, बल्कि मुझे कुछ हिदायतें दीं। उन्होंने जिस तरह मामला निपटाया, उससे मैंने सीखा कि मुझे मैसेज पढ़ने या भेजने के बारे में सही नज़रिया बनाए रखना चाहिए। अब मैं अकेले में भी ज़्यादा मैसेज वगैरह नहीं भेजती।”
तब क्या जब कुछ हिदायतें देने पर आपका बच्चा सफाई देने लगता है? यह मत सोचिए कि आपके बच्चे ने आपकी सलाह नहीं मानी। इसके बजाय, धीरज रखिए और उसे सोचने के लिए थोड़ा वक्त दीजिए। हो सकता है, आपकी सलाह उसे मंज़ूर हो और वह ज़रूरी बदलाव करने के लिए तैयार हो। कई किशोर बच्चे हेले नाम की लड़की की तरह महसूस करते हैं, जो कहती है, “जब मम्मी-पापा ने कहा कि मुझे कंप्यूटर की लत लग चुकी है, तो पहले मुझे गुस्सा आया। लेकिन बाद में मैंने इस बारे में सोचा और मुझे एहसास हुआ कि मम्मी-पापा सही कह रहे हैं।”
[पेज 18 पर तसवीर]
क्या आप इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों के गुलाम हैं या वे आपकी?