अध्ययन ४
आवाज़ और ठहराव
१, २. हमें क्यों पर्याप्त आवाज़ में बोलना चाहिए?
जब तक दूसरे आराम से आपकी बात सुन न सकें तब तक आप जो कहते हैं उसका महत्त्व उन्हें प्राप्त नहीं होता। दूसरी ओर, यदि आपकी आवाज़ बहुत तेज़ है तो यह श्रोतागण को परेशान कर सकती है और इस प्रकार जो उत्तम विचार आपने तैयार किए हैं उनसे उन्हें विचलित कर सकती है। पर्याप्त आवाज़ के बारे में चिन्तित होने की हमारी ज़रूरत अनेक राज्यगृहों में स्पष्ट है जहाँ सभाओं में सभागृह के आगे से टिप्पणी करनेवालों की आवाज़ पीछे बैठे लोगों को अकसर सुनाई नहीं देती। कभी-कभार मंच से बोलनेवाले व्यक्ति की भी आवाज़ पर्याप्त नहीं होती और इस कारण वह श्रोतागण को प्रेरित करने से चूक जाता है। क्षेत्र सेवा में भी हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो ऊँचा सुनते हैं और अन्य आवाज़ें हैं जिनसे हमें तेज़ होना है, चाहे वे उन घरों से हों जहाँ हम भेंट कर रहे हैं या बाहर से हों। यह सब सूचित करता है कि हमें उचित आवाज़ पर ध्यानपूर्वक विचार करने की ज़रूरत है।
२ आराम से सुनाई देने लायक ऊँची। पहली बात यह निर्धारित करने में कि कितनी आवाज़ इस्तेमाल की जानी चाहिए, सबसे बेहतर इस सवाल से परखा जाता है, क्या आवाज़ का ज़रूरी बल इस्तेमाल किया गया था? अर्थात्, क्या आगे बैठे लोगों को अभिभूत किए बग़ैर आपकी आवाज़ पीछे की पंक्ति तक सुनाई दे रही थी? नए विद्यार्थी के लिए यह शायद पर्याप्त विचार हो, लेकिन जो प्रगति कर चुके हैं उन्हें इस बात के निम्नलिखित पहलुओं में भी प्रवीण होने की कोशिश करनी चाहिए। स्कूल ओवरसियर को निश्चित करना चाहिए कि किस हद तक हर विद्यार्थी को इस गुण पर सलाह दी जाएगी।
३-१०. कौन-सी परिस्थितियाँ हमें यह निर्धारित करने में मदद देंगी कि हमें कितना ऊँचा बोलना चाहिए?
३ परिस्थितियों के अनुसार आवाज़। एक वक्ता को उन बदलती परिस्थितियों के बारे में अवगत होना चाहिए जिनमें वह बात कर रहा है। यह समझ की उसकी क्षमता को बढ़ाता है, उसे अधिक नम्य बनाता है और उसे अधिक आराम से अपने श्रोतागण की दिलचस्पी को जगाने और उसे बनाए रखने देता है।
४ हर सभागृह के साथ और श्रोताओं की संख्या के साथ परिस्थितियाँ बदलती हैं। परिस्थितियों पर क़ाबू रखने के लिए आपको अपनी आवाज़ पर क़ाबू रखना है। एक नए दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्ति की बैठक में बात करने से ज़्यादा ऊँची आवाज राज्यगृह में भाषण देने के लिए ज़रूरी है। इसके अलावा, जब राज्यगृह भरा हुआ होता है, जैसे कि एक सेवा सभा में, तब ज़्यादा ऊँची आवाज़ की ज़रूरत होती है, उसकी तुलना में जब एक छोटा समूह सभागृह में आगे बैठता है, जैसे कि एक क्षेत्र सेवा के लिए सभा में।
५ लेकिन ये परिस्थितियाँ भी हमेशा समान नहीं होती हैं। सभागृह के बाहर और अन्दर आकस्मिक आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं। एक कार का गुज़रना, नज़दीक से एक ट्रेन का गुज़रना, जानवरों की तेज़ आवाज़ें, बच्चों का रोना, किसी का देर से आना—ये सब आपकी आवाज़ के बल में समंजन की माँग करते हैं। इन्हें पहचानने और आवाज़ में इनकी क्षतिपूर्ति करने से चूकना, कुछ बात, संभवतः एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे, के छूट जाने का कारण होगा।
६ अनेक कलीसियाओं में आवाज़ के लिए ध्वनि-विस्तार उपकरण होते हैं। लेकिन यदि उसका सावधानी से इस्तेमाल नहीं किया जाता है और आवाज़ में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, तो शायद विद्यार्थी को इन परिस्थितियों के प्रति विचारशीलता की कमी के लिए सलाह देनी पड़े। (माइक्रोफ़ोन के इस्तेमाल के बारे में स्कूल गाइडबुक (अंग्रेज़ी) अध्ययन १३ देखिए।)
७ कभी-कभी एक वक्ता मात्र अपनी आवाज़ की गुणवत्ता की वजह से आवाज़ के इस विषय में प्रवीण होना मुश्किल पाएगा। यदि यह आपकी समस्या है और आपकी आवाज़ दूर तक नहीं जाती है तो स्कूल ओवरसियर सलाह देते वक़्त इसे याद रखेगा। वह शायद कुछ अभ्यास या प्रशिक्षण का कार्यक्रम सुझाए जो आपकी आवाज़ को विकसित करने और बलवन्त करने में मदद देगा। लेकिन, आपकी आवाज़ की गुणवत्ता अपने आप में सलाह का एक अलग मुद्दा है और आपकी आवाज़ की ऊँचाई के बारे में विचार करते वक़्त उस पर ज़ोर नहीं दिया जाएगा।
८ किसी भी एक भाषण में सभी संभव परिस्थितियों की जाँच नहीं की जा सकती। सलाह वर्तमान भाषण पर दी जानी चाहिए, न कि हर किसी संभावना पर जो उठ सकती है। लेकिन, यदि ज़रूरत प्रतीत हो, तो स्कूल ओवरसियर शायद विद्यार्थी को उन संभावित समस्याओं के बारे में चिताए जिनका वह भिन्न परिस्थितियों में सामना कर सकता है, हाँलाकि विद्यार्थी को अपने वर्तमान भाषण के लिए सराहना दी जाती है और उसकी सलाह परची पर “अ” चिन्हित किया जाता है।
९ कोई विद्यार्थी यह कैसे निर्धारित कर सकता है कि उसकी आवाज़ पर्याप्त है कि नहीं? श्रोतागण की प्रतिक्रिया एक सबसे अच्छी नाप है। एक अनुभवी वक्ता अपनी प्रस्तावना के दौरान सभागृह के पीछे की ओर बैठे लोगों को ध्यानपूर्वक देखेगा और उनके मुखभाव और आम मनोवृत्ति से निर्धारित कर सकेगा कि क्या वे आराम से सुन पा रहे हैं कि नहीं, और वह उसके अनुसार अपनी आवाज़ को बदलेगा। एक बार जब वह सभागृह को “भाँप” लेता है, उसे और कोई समस्या नहीं होती।
१० एक और तरीक़ा है उसी कार्यक्रम के अन्य वक्ताओं को ध्यानपूर्वक देखना। क्या उनकी बात आराम से सुनाई देती है। वे कितनी आवाज़ इस्तेमाल कर रहे हैं। अपनी आवाज़ को उसके अनुसार बदलिए।
११, १२. विषय के लिए उपयुक्त आवाज़ होना क्यों ज़रूरी है?
११ विषय के लिए उपयुक्त आवाज़। आवाज़ की हमारी चर्चा के इस पहलू को स्वर-परिवर्तन नहीं समझना चाहिए। इस वक़्त हमारी दिलचस्पी मात्र चर्चा किए जा रहे अमुक विषय के लिए आवाज़ के अनुरूप होने में है। उदाहरण के लिए, यदि शास्त्रवचनों से श्राप पढ़े जा रहे थे तो स्पष्टतः भाइयों के बीच प्रेम पर सलाह के बारे में पढ़ने से विद्यार्थी की आवाज़ अलग होगी। यशायाह ३६:११ की आयत १२ और १३ के साथ तुलना कीजिए और उन कथनों को जिस तरह कहा गया होगा उसकी भिन्नताओं पर ध्यान दीजिए। आवाज़ को विषय के अनुरूप किया जाना चाहिए लेकिन इसे कभी भी हद से ज़्यादा नहीं किया जाना चाहिए।
१२ यह निर्णय करने में कि आप कितनी आवाज़ इस्तेमाल करेंगे, अपने विषय और अपने उद्देश्य का ध्यानपूर्वक विश्लेषण कीजिए। यदि आप अपने श्रोतागण के विचार को बदलना चाहते हैं तो उन्हें बहुत ज़्यादा आवाज़ से भगा मत दीजिए। लेकिन, यदि आप उन्हें जोशीले कार्य के लिए उकसाना चाहते हैं तो शायद आवाज़ तेज़ हो सकती है। यदि विषय ज़ोर की माँग करता है तो उसे बहुत धीमी आवाज़ में बोल कर कमज़ोर न कीजिए।
१३-१६. ठहराव के महत्त्व को बताइए। १७-२१. चिन्हांकन के लिए ठहराव के महत्त्व को समझाइए।
१३ अपने भाषण की प्रस्तुति में उचित जगहों पर ठहराव उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि पर्याप्त आवाज़। उनके बिना, कथनों के अर्थ आसानी से अस्पष्ट हो जाते हैं और मुख्य मुद्दे जिन्हें आपके श्रोतागण को याद रखना है स्थायी छाप छोड़ने में असफल हो जाते हैं। ठहराव आपको विश्वास और संतुलन प्रदान करते हैं, बेहतर श्वास संचालन करने देते हैं, और भाषण के कठिन भागों में आत्मसंयम प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते हैं। ठहराव श्रोतागण को दिखाते हैं कि स्थिति आपके नियंत्रण में है, कि आप अत्यधिक घबराए हुए नहीं हैं, कि आप अपने श्रोतागण को ध्यान में रख रहे हैं, और कि आपके पास कुछ ऐसी बात है जो आप चाहते हैं कि वे सुनें और याद रखें।
१४ एक नए वक्ता को प्रभावकारी रीति से ठरहाव करने की योग्यता प्राप्त करने में बिलकुल समय नहीं गँवाना चाहिए। पहले, आपको विश्वस्त होना पड़ेगा कि जो आपको कहना है वह महत्त्वपूर्ण है और कि आप चाहते हैं कि वह याद रखा जाए। एक माँ जब अपने बच्चे को सुधारती है तो अकसर अपनी टिप्पणियों से पहले ऐसा कुछ कहती है जिससे उसका ध्यान आकर्षित होता है। वह तब तक आगे बात नहीं करेगी जब तक कि वह बच्चा उसकी ओर पूरा ध्यान नहीं देता। तब उसके मन में जो है वह उसे कहती है। वह यह निश्चित करना चाहती है कि जो वह कह रही है, बच्चा उसकी अवहेलना नहीं करेगा और कि वह उसे याद रखेगा।
१५ कुछ लोग कभी नहीं रुकते, अपनी साधारण बातचीत में भी नहीं। यदि यह आपकी समस्या है तो आप इस गुण को क्षेत्र में अपनी सेवकाई की प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए विकसित करना चाहेंगे। वहाँ हमारा वक्तव्य वार्तालाप के रूप में है। उस तरह रुकने के लिए, जिससे गृहस्वामी हस्तक्षेप नहीं करेगा परन्तु सुनेगा और इंतज़ार करेगा, सही तरह के ठहराव की ज़रूरत है। लेकिन ठहराव में कौशल और निपुणता बातचीत में उतनी ही ज़रूरी है और उतनी ही प्रतिफलदायक है जितनी कि जब यह योग्यता मंच पर से इस्तेमाल की जाती है।
१६ भाषण में बहुत ज़्यादा विषय होना ठहराव के उचित इस्तेमाल के सम्बन्ध में एक गंभीर समस्या है। इससे दूर रहिए। ठहराव के लिए समय दीजिए; ये अनिवार्य हैं।
१७-२१. चिन्हांकन के लिए ठहराव के महत्त्व को समझाइए।
१७ चिन्हांकन के लिए ठहराव। चिन्हांकन के लिए ठहराव का सरल अर्थ है विचार की स्पष्टता के लिए ठहराव; सम्बन्धित विचारों को अलग करने के लिए ठहराव; वाक्यांशों को तथा उपवाक्यों, वाक्यों और अनुच्छेदों के अन्त को सूचित करने के लिए ठहराव। अकसर ऐसे परिवर्तन आवाज़ में बदलाहट के ज़रिए भी सूचित किए जा सकते हैं, लेकिन जो कहा जा रहा है उसको मौखिक चिन्हांकन देने के लिए भी ठहराव प्रभावकारी होते हैं। और चूँकि अल्पविराम और अर्धविराम का वाक्य विभाजनों में अलग-अलग महत्त्व है, अतः ठहराव भी उनके इस्तेमाल के अनुसार अलग होना चाहिए।
१८ ग़लत जगह पर ठहराव वाक्य के विचार को पूरी तरह बदल सकता है। लूका २३:४३ (NW) के यीशु के शब्द इस बात का एक उदाहरण है, “आज मैं तुझ से सच कहता हूँ, तू मेरे साथ परादीस में होगा।” यदि “आज” और “मैं” के बीच एक अल्पविराम या ठहराव होता तो एक पूर्णतः अलग विचार आता, जैसे इस पाठ की सामान्य ग़लत व्याख्या से प्रमाणित होता है। अतः, उद्देश्य किया गया विचार संचारित करने के लिए सही ठहराव अनिवार्य है।
१९ जब आप पढ़ते हैं तब सभी लिखित चिन्हांकन का पालन करने के द्वारा आशु भाषण देते वक़्त मौखिक रूप से ठहराव करना सीखिए। एकमात्र लिखित चिन्हांकन जिसे पढ़ते वक़्त कभी-कभी अनदेखा किया जा सकता है वह है अल्पविराम। अल्पविराम पर रुकने या न रुकने का अकसर आप चयन कर सकते हैं। परन्तु अर्धविराम, पूर्णविराम, उद्धरण चिन्ह, तथा अनुच्छेद विभाजन सब का पालन किया जाना चाहिए।
२० एक हस्तलिपि या बाइबल के एक भाग को पढ़ते वक़्त आप उस पर चिन्ह लगाना शायद सहायक पाएँ। वाक्यांशों के बीच एक छोटी तिरछी रेखा खींचिए जहाँ एक संक्षिप्त विराम (शायद मात्र एक झिझक) को शामिल किया जाना है; एक अधिक लम्बे विराम के लिए दो रेखाएँ या एक “X”।
२१ यदि, दूसरी ओर, आप अपने अभ्यास पठन में पाते हैं कि आपके लिए कुछ वाक्य अटपटे हैं और आप बार-बार ग़लत जगहों पर रुकते हैं, तो आप पेन्सिल से चिन्ह बना सकते हैं जिससे आप एक वाक्यांश के सभी शब्दों को एक साथ जोड़ सकते हैं। फिर, जब आप पढ़ते हैं, तो जब तक आप एक साथ गठित शब्दों के आख़िरी शब्द तक नहीं आ जाते तब तक न तो रुकिए ना ही हिचकिचाइए। अनेक अनुभवी वक्ता ऐसा करते हैं।
२२-२४. विचार बदलने के लिए ठहराव क्यों ज़रूरी है?
२२ विचार बदलने के लिए ठहराव। एक मुख्य मुद्दे से अगले मुख्य मुद्दे की ओर जाते वक़्त एक ठहराव श्रोतागण को विचार करने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, यह ग़लतफ़हमी से बचाता है। यह मन को अपने आप को समंजित करने, विचारों में परिवर्तन को समझने और प्रस्तुत किए जा रहे नए विचार के विकास को समझने का अवसर प्रदान करता है। वक्ता के लिए विचारों को बदलते वक़्त ठहराव उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि एक गाड़ी के चालक को मोड़ लेते वक़्त धीमा होना महत्त्वपूर्ण है।
२३ आशु भाषण में, विषय को रूपरेखा में इस रीति से व्यवस्थित किया जाना चाहिए कि वह मुख्य मुद्दों के बीच ठहराव की अनुमति दे। इसे भाषण की निरन्तरता या सम्बद्धता में बाधा नहीं डालनी चाहिए, लेकिन विचारों को इतनी अच्छी तरह से व्यवस्थित होना चाहिए कि आप एक ख़ास मुद्दे को शिखर तक पहुँचा सकें, रुक सकें, और फिर एक नए विचार की ओर जा सकें। यदि ज़रूरी हो तो आपको याद दिलाने के लिए ऐसे शिखर और परिवर्तन आपकी रूपरेखा में भी चिन्हित किए जा सकते हैं।
२४ विचार बदलने के लिए ठहराव साधारणतः चिन्हांकन के लिए ठहराव से लम्बे होते हैं; लेकिन एक भाषण में लम्बे ठहरावों को हद से ज़्यादा नहीं किया जाना चाहिए नहीं तो प्रस्तुति खिंच जाएगी। इसके अलावा वे बनावटी प्रतीत होंगे।
२५-२८. समझाइए कि कैसे ठहराव हमें किसी मुद्दे पर ज़ोर देने में और साथ ही साथ बाधा डालनेवाली परिस्थितियों से निपटने में मदद देता है।
२५ ज़ोर देने के लिए ठहराव। ज़ोर देने के लिए ठहराव अकसर एक नाटकीय ठहराव होता है। यह उत्सुकता उत्पन्न करता है या यह श्रोतागण को विचार करने का मौक़ा प्रदान करता है।
२६ एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे से पहले ठहरना उत्सुकता उत्पन्न करता है। बाद का ठहराव उस विचार के पूर्ण महत्त्व को गहराई तक बैठ जाने की अनुमति देता है। ठहराव के ये दो प्रयोग एक समान नहीं है, अतः आपको निश्चित करना है कि किसी ख़ास अवसर पर कौन-सा सबसे उपयुक्त है या दोनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
२७ ज़ोर देने के लिए ठहराव अति महत्त्वपूर्ण कथनों तक ही सीमित होना चाहिए, नहीं तो उनका महत्त्व खो जाता है।
२८ ठहरना जब परिस्थितियाँ इसकी माँग करती हैं। रुकावटें अकसर एक वक्ता से क्षणिक रूप से रुकने की माँग करती हैं। यदि शोर-शराबा बहुत ज़्यादा है और आप अपनी आवाज़ तेज़ कर सकते हैं और भाषण जारी रख सकते हैं तो सामान्यतः यह सबसे बेहतर होगा। लेकिन यदि एक रुकावट भाषण को पूर्णतः रोकने के लिए पर्याप्त है तो आपको रुकना चाहिए। आपका श्रोतागण आपकी परवाह की क़दर करेगा। इसके अलावा अनेक मामलों में वे वास्तव में सुन नहीं रहे हैं क्योंकि उस तात्कालिक रुकावट ने उनका ध्यान भंग किया है। अतः यह निश्चित करने के लिए कि आपका श्रोतागण, आप जिन अच्छी बातों को उन्हें बताना चाहते हैं उसका पूरा-पूरा फ़ायदा प्राप्त करते हैं, प्रभावकारी रीति से ठहराव का प्रयोग कीजिए।