अध्याय 5
सही ठहराव
बातचीत में, सही जगह ठहराव देना बेहद ज़रूरी है। इसलिए आप चाहे भाषण दे रहे हों या किसी एक आदमी से बात कर रहे हों, आपको ठहराव के साथ बात करनी चाहिए। अगर आप बिना रुके बात करेंगे, तो विचार साफ-साफ समझ आने के बजाय ऐसा लगेगा कि आप बड़-बड़ कर रहे हैं। सही जगह पर ठहरने से आपकी बात साफ समझ में आती है। ठहराव का इस्तेमाल इस ढंग से भी किया जा सकता है कि लोगों को आपके मुख्य मुद्दे लंबे अरसे तक याद रहें।
आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि आपको कहाँ और कितनी देर ठहरना चाहिए?
विराम-चिन्ह पर ठहरना। विराम-चिन्ह, लिखाई का एक अहम हिस्सा बन गए हैं। इन चिन्हों से हम जान सकते हैं कि वाक्य खत्म होता है या वाक्य एक सवाल है। कुछ भाषाओं में किसी उद्धरण या हवालों को दिखाने के लिए विराम-चिन्ह इस्तेमाल किए जाते हैं। और कुछ विराम-चिन्हों की मदद से हम जान पाते हैं कि वाक्य का एक हिस्सा, दूसरे हिस्से से कैसा जुड़ा हुआ है। जब एक जन किसी लेख या किताब से पढ़ता है, तो ज़ाहिर है कि वह उसमें दिए गए विराम-चिन्ह देख सकता है। लेकिन जब वह दूसरों को पढ़कर सुनाता है, तब उसे ऐसे पढ़ना चाहिए जिससे कि उस लेख में सभी विराम-चिन्हों के मायने उसकी आवाज़ से पता चलें। (ज़्यादा जानकारी के लिए, अध्याय 1, “सही-सही पढ़ना” देखिए।) जब आप उन जगहों पर नहीं रुकते, जहाँ विराम-चिन्ह दिए गए हैं, तो आप जो पढ़ रहे हैं, उसे समझने में लोगों को मुश्किल हो सकती है, यहाँ तक कि उन्हें जानकारी का गलत मतलब समझ आ सकता है।
विराम-चिन्ह के अलावा, एक वाक्य में जिस तरह से विचार बयान किए गए हैं, उससे भी यह पता लगाया जा सकता है कि कहाँ पर रुकना सही होगा। एक बार एक मशहूर संगीतकार ने कहा: “जिस तरह मैं पियानो पर धुन बजाता हूँ, उसमें और दूसरे पियानो बजानेवाले कलाकारों के तरीके में कोई फर्क नहीं है। लेकिन हाँ, धुन के बीच ठहरना ही असली उस्ताद की पहचान कराता है।” यही बात बातचीत पर भी लागू होती है। सही जगह पर ठहरने से अच्छी तरह से तैयार की गयी जानकारी की शोभा बढ़ती है, और आपके सुननेवालों को आपकी जानकारी भी साफ-साफ समझ में आती है।
जब आप पढ़कर सुनाने की तैयारी कर रहे हों, तब जिस लेख को आप पढ़नेवाले हैं, उस पर निशान लगाना आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। जहाँ आपको थोड़ी ही देर रुकना हो, जैसे मानो झिझक दिखाने के लिए, वहाँ पर एक छोटी, खड़ी लकीर खींचिए। और जहाँ थोड़ा लंबा ठहराव देना हो, वहाँ पर पास-पास दो खड़ी लकीरें खींचिए। अगर आपको वाक्य के कुछ हिस्सों को बोलने में दिक्कत हो रही है, जिस वजह से आप बार-बार गलत जगह पर रुक रहे हैं, तो पेंसिल से निशान लगाकर उन सारे शब्दों को जोड़ दीजिए। फिर वाक्य के उन हिस्सों को शुरू से लेकर अंत तक पढ़िए। कई लोग जो भाषण देने में तजुर्बेकार हैं, ऐसा ही करते हैं।
आम तौर पर, हर दिन की बातचीत में ठहराव के साथ बात करने में आपको कोई परेशानी नहीं होती, क्योंकि आप पहले से ही जानते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं। लेकिन, अगर आपको बार-बार बीच में रुकने, यहाँ तक कि जहाँ ज़रूरत नहीं, वहाँ भी रुकने की आदत पड़ चुकी है, तो आपकी बोली में न तो दम होगा, ना ही आप साफ-साफ बोल पाएँगे। इस मामले में आप कैसे सुधार कर सकते हैं, इसके लिए अध्याय 4 में सुझाव दिए गए हैं जिसका शीर्षक है, “प्रवाह के साथ भाषण देना।”
विचार बदलने पर ठहरना। जब आप एक मुख्य मुद्दे से दूसरे मुख्य मुद्दे पर जाते हैं, तब भी आपको ठहरना चाहिए। ऐसा करने से आप सुननेवालों को सोचने, अगली बात के लिए अपना मन तैयार करने, बदलाव को पहचानने और अगले विचार को ज़्यादा अच्छी तरह समझने का मौका देंगे। जिस तरह सड़क के मोड़ पर गाड़ी घुमाने के लिए रफ्तार कम करना ज़रूरी होता है, उसी तरह बातचीत में एक विचार के बाद दूसरे विचार पर जाने से पहले, रुकने की ज़रूरत पड़ती है।
कुछ वक्ता कोई ठहराव दिए बिना एक से दूसरे मुद्दे पर इसलिए तेज़ी से बढ़ जाते हैं, क्योंकि वे कम वक्त में ढेर सारी जानकारी पेश करने की कोशिश करते हैं। कुछ लोगों की बिना ठहरे बात करने की आदत दिखाती है कि उनकी रोज़मर्रा बातचीत भी ऐसे ही होती होगी। हो सकता है कि उनके आस-पास रहनेवाले बाकी लोग भी इसी तरह बात करते हों। लेकिन ठहराव की कमी से वे असरदार ढंग से सिखा नहीं पाएँगे। अगर आप एक ऐसा विचार बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर याद रखने से लोगों को फायदा होगा, तो उस विचार को खोलकर बताने और उस पर ज़ोर देने के लिए वक्त दीजिए। हमेशा याद रखिए कि अगर आप एकदम साफ तरीके से अपनी बात ज़ाहिर करना चाहते हैं, तो ठहराव का इस्तेमाल करना बेहद ज़रूरी है।
अगर आप एक आउटलाइन से भाषण देने जा रहे हैं, तो उसमें जानकारी का क्रम पहले से इस तरह बिठाया जाता है जिससे यह साफ पता लगे कि मुख्य मुद्दों के बीच आपको कहाँ रुकना है। अगर आपको मैन्यूस्क्रिप्ट पढ़कर भाषण देना है, तो उन जगहों पर निशान लगाइए जहाँ पर एक मुख्य मुद्दा खत्म होता है और दूसरा शुरू होता है।
आम तौर पर विराम-चिन्हों पर कम ठहराव दिया जाता है, जबकि एक विचार से दूसरे पर जाते वक्त थोड़ा ज़्यादा। लेकिन, इतनी भी देर नहीं रुकना चाहिए जिससे लगे कि भाषण को घसीटा जा रहा है। अगर ठहराव ज़्यादा लंबा होगा, तो इससे सुननेवालों को लगेगा कि आपने ठीक से तैयारी नहीं की है और आपको सूझ नहीं रहा कि आगे क्या कहना है।
ज़ोर देने के लिए ठहरना। ज़ोर देने के लिए ठहरना अकसर काफी ज़बरदस्त होता है। किसी वाक्य या सवाल को ज़ोरदार ढंग से बोलने से पहले, या फिर वाक्य या सवाल कहने के बाद इस तरह का ठहराव दिया जाता है। पहले ठहरने से सुननेवालों में आगे की बात जानने की जिज्ञासा पैदा होती है, और बाद में ठहरने से उन्हें कही हुई बात पर सोचने का मौका मिलता है। ठहराव इस्तेमाल करने के इन दोनों तरीकों में फर्क है। इसलिए आपको इनमें से कोई एक तरीका चुनना चाहिए जो असरदार होगा। लेकिन ध्यान रखिए कि सिर्फ उन वाक्यों पर ज़ोर देने के लिए ठहराव का इस्तेमाल किया जाए जो निहायत ज़रूरी हैं, वरना बहुत ज़्यादा ठहराव देकर भाषण देने से इसकी अहमियत घट जाती है।
यीशु की मिसाल लीजिए। जब उसने नासरत के आराधनालय में शास्त्र से ऊँची आवाज़ में पढ़कर सुनाया, तो उसने ठहराव का बहुत बढ़िया तरीके से इस्तेमाल किया। पहले, उसने भविष्यवक्ता यशायाह के चर्मपत्र से वह हिस्सा पढ़ा जहाँ उसके कामों के बारे में लिखा था। फिर जो कुछ उसने पढ़ा, उसका मतलब समझाने से पहले उसने चर्मपत्र को लपेटा और वापस सेवक को दे दिया और बैठ गया। आराधनालय में हाज़िर सभी लोगों की नज़रें उस पर टिकी हुई थीं, तब उसने बोलना शुरू किया: “आज ही यह लेख तुम्हारे साम्हने पूरा हुआ है।”—लूका 4:16-21.
ज़रूरत पड़ने पर ठहरना। कभी-कभी अड़चनों की वजह से भी शायद आपको कुछ देर के लिए अपनी बात रोकनी पड़े। घर-घर प्रचार करते वक्त शायद ट्रैफिक का शोर या बच्चे के रोने की आवाज़ से आपकी बातचीत कुछ देर के लिए रुक जाए। अगर किसी सम्मेलन के दौरान थोड़ा-बहुत शोर-शराबा हो, तो आप आवाज़ ऊँची करके बोलना जारी रख सकते हैं। लेकिन अगर शोर कुछ ज़्यादा ही है और काफी समय तक रहता है, तो ऐसे में आपको रुकना चाहिए। क्योंकि, वैसे भी इतने शोरगुल में सुननेवालों का ध्यान आपकी बात पर नहीं लगेगा। इसलिए ठहराव का अच्छा इस्तेमाल कीजिए ताकि जो अच्छी बातें आप उन्हें बताना चाहते हैं, उनसे वे पूरा फायदा उठा सकें।
जवाब पाने के लिए ठहरना। हालाँकि आप शायद ऐसा भाषण दे रहे हों जिसमें आप सुननेवालों से सवाल-जवाब नहीं कर सकते, मगर फिर भी यह ज़रूरी है कि आप उन्हें ज़बानी नहीं बल्कि मन-ही-मन में जवाब देने का मौका दें। अगर आप कोई ऐसा सवाल पूछते हैं जो सुननेवालों को सोचने पर मजबूर करता है, मगर फिर आप काफी समय तक नहीं रुकते, तो उनको सोचने का मौका नहीं मिलेगा और आपका सवाल पूछना बेकार जाएगा।
सिर्फ स्टेज से बात करते वक्त ही नहीं, बल्कि दूसरों को साक्षी देते वक्त भी ठहराव का इस्तेमाल करना ज़रूरी है। लेकिन कुछ लोग बोलते ही चले जाते हैं, कभी ठहरते नहीं। अगर आपकी भी यही समस्या है, तो भाषण के इस गुण को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कीजिए। इससे आप दूसरों के साथ और भी अच्छी तरह से बात कर पाएँगे, साथ ही प्रचार में बढ़िया ढंग से साक्षी दे पाएँगे। ठहराव, एक पल की खामोशी है और कितना सच कहा गया है कि खामोशी बातचीत को बीच में विराम देती है, खास बातों पर ज़ोर देती है, लोगों को सुनने पर मजबूर करती है और कानों को मधुर लगती है।
हर दिन की बातचीत में दो या ज़्यादा लोग शरीक होते हैं और वे एक-दूसरे को अपने विचार बताते हैं। दूसरे आपकी बात सुनने के लिए तभी तैयार होंगे जब आप खुद उनकी बात ध्यान से सुनेंगे और उनमें दिलचस्पी लेंगे। इसके लिए आपको तब तक रुकना होगा जब तक वे अपनी बात खत्म ना कर लें।
प्रचार काम में, खुद ही बात करने के बजाय दूसरों को भी बोलने का मौका देने से हम ज़्यादा असरदार तरीके से गवाही दे पाते हैं। कई साक्षियों ने पाया है कि घर-मालिक से दुआ-सलाम करने के बाद, बातचीत का विषय बताकर उसके बारे में एक सवाल पूछने से काफी अच्छे नतीजे निकलते हैं। सवाल पूछने के बाद वे कुछ देर रुकते हैं ताकि सामनेवाला जवाब दे सके। जवाब मिलने के बाद वे इसके लिए कदरदानी दिखाते हैं। चर्चा के दौरान भी वे घर-मालिक को बोलने के कई मौके देते हैं। क्योंकि साक्षी अच्छी तरह जानते हैं कि जिस मसले पर वे चर्चा कर रहे हैं, उस पर लोगों की राय जानने के बाद ही वे उनकी बेहतर तरीके से मदद कर पाएँगे।—नीति. 20:5.
यह सच है कि हर कोई आपके सवालों का सही ढंग से जवाब नहीं देगा। यीशु के साथ भी ऐसा हुआ था, फिर भी उसने हार नहीं मानी। वह दूसरों को, यहाँ तक कि अपने विरोधियों को भी बोलने का मौका देने के लिए काफी देर रुकता था। (मर. 3:1-5) दूसरे इंसान को बात करने का मौका देने से उसे सोचने का बढ़ावा मिलता है और इसका नतीजा यह हो सकता है कि वह अपने मन की बात बताए। दरअसल हमारे प्रचार का एक मकसद तो यह है कि दूसरों के दिलों में कदम उठाने की प्रेरणा जगाना। हम उन्हें परमेश्वर के वचन से ज़रूरी मसले बताते हैं जिनकी बिनाह पर उनको फैसला करना होता है।—इब्रा. 4:12.
प्रचार में सही ठहराव के साथ बात करना वाकई एक कला है। जब हम ठहराव का बढ़िया इस्तेमाल करते हैं, तो लोग हमारी बातें अच्छी तरह समझ पाते हैं और अकसर वे उन्हें कभी भूला नहीं पाते हैं।