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अध्ययन १३

भाव बलाघात और स्वर-परिवर्तन

१, २. भाव बलाघात एक भाषण में क्या करता है?

भाव बलाघात और स्वर-परिवर्तन एक साथ मिलकर भाषण को अर्थपूर्ण और आनन्दप्रद बनाते हैं। उनके बिना विचार विकृत हो जाते हैं और दिलचस्पी कम हो जाती है। क्योंकि साधारणतः भाव बलाघात देने में प्रवीण होना इन दोनों में से ज़्यादा आसान है, हम उस पर पहले ध्यान देंगे।

२ याद रखिए कि भाव बलाघात को क्या निष्पन्‍न करना है। यह शब्दों या विचारों पर ऐसे ज़ोर देने के लिए है कि वह सही अर्थ संचारित करे और आपके श्रोतागण को उनका तुलनात्मक महत्त्व सूचित करे। कभी-कभी जो ज़ोर दिया जाना है वह मात्र कम या ज़्यादा होता है, लेकिन ऐसे भी समय होते हैं जब उसे और परिष्कृत होने की ज़रूरत होती है।

३-७. बताइए कि एक व्यक्‍ति अच्छी तरह भाव बलाघात कैसे सीख सकता है।

३ वाक्यों में विचार-संचारक शब्दों पर ज़ोर दिया गया। ज़ोर कहाँ देना है इसका साधारणतः अर्थ है किन शब्दों पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। इसमें उन शब्दों को पहचानना शामिल है जो विचार संचारित करते हैं और सही ज़ोर या बल देकर, उनके आस-पास के शब्दों से उन्हें विशिष्ट किया जाता है। यदि विचार-संचारक शब्दों के बजाय अन्य शब्दों पर ज़ोर दिया जाता है तो अर्थ अस्पष्ट या विकृत होगा।

४ अधिकांश व्यक्‍ति अपनी साधारण, दैनिक बातचीत में अपना अर्थ स्पष्ट बताते हैं। जब तक कि आपको सम्बन्धबोधक शब्दों पर ज़ोर देने के जैसे कोई ख़ास व्यवहार-वैचित्र्य नहीं है, आपको इस पहलू पर कोई ख़ास समस्या नहीं होनी चाहिए। ग़लत जगह ज़ोर देने की कोई भी गंभीर समस्या साधारणतः ऐसे किसी व्यवहार-वैचित्र्य के कारण होती है। यदि आपकी यह समस्या है तो उस पर परिश्रमपूर्वक कार्य कीजिए। साधारणतः ऐसी आदतें एक या दो भाषणों में बदली नहीं जा सकतीं, अतः आपका सलाहकार आपको रोके नहीं रखेगा यदि आपका ग़लत जगह ज़ोर देना इतना स्पष्ट नहीं है कि वह आपके अर्थ को विकृत करता है। लेकिन सबसे ज़ोरदार और प्रभावकारी भाषण के लिए, इस पर कार्य करते रहिए जब तक कि आप सही जगह ज़ोर देने में पूर्णतः प्रवीण नहीं हो जाते।

५ साधारणतः एक पूर्णतः आशु भाषण की तुलना में जन-पठन के लिए तैयारी करते वक़्त भाव बलाघात के बारे में अधिक ध्यानपूर्ण विचार करने की ज़रूरत है। यह एक भाषण में शास्त्रवचनों के पठन के बारे में उतना ही सच है जितना कि कलीसिया प्रहरीदुर्ग अध्ययन के लिए अनुच्छेदों को पढ़ना। जब पठन होता है तो जिस विषय को हम पढ़ते हैं वह साधारणतः और किसी का लिखा होता है और इसलिए भाव बलाघात पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। अतः हमें इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए, उसके विचार को जाँचना चाहिए और उन अभिव्यक्‍तियों को दोहराना चाहिए जब तक कि वे हमारे लिए स्वाभाविक नहीं बन जातीं।

६ ज़ोर या भाव बलाघात कैसे दिया जाता है? अनेक तरीक़े हैं, और इन्हें अकसर मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है: तेज़ आवाज़ से, अधिक गंभीरता या भावना से, स्वर को कम करने से, सुर को बढ़ाने से, धीरे और रुक-रुककर बोलने से, गति बढ़ाने से, किसी कथन के पहले या बाद में (या दोनों जगह) रुकने से, हाव-भाव और मुखभाव से।

७ सबसे पहले इस बात के बारे में विचार कीजिए कि क्या आप सही जगह पर ज़ोर दे रहे हैं और सही हद तक दे रहे हैं ताकि मुख्य शब्द विशिष्ट लगें। सो अपना विषय तैयार करते वक़्त, मुख्य शब्दों को रेखांकित कीजिए यदि आप उसे पढ़ेंगे। यदि आप आशु भाषण दे रहे हैं तो विचारों को अपने मन में स्पष्ट समझिए। अपने नोट्‌स में मुख्य शब्दों को लिखिए और उन पर ज़ोर दीजिए।

८, ९. यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि मुख्य विचारों पर ज़ोर दिया जाए?

८ भाषण के मुख्य विचारों पर ज़ोर दिया गया। भाव बलाघात के इस पहलू की अकसर कमी होती है। ऐसे मामलों में भाषण में कोई शिखर नहीं होते। कोई भी बात दूसरी बातों से विशिष्ट नहीं होती। जब भाषण की समाप्ति हो जाती है तो किसी भी बात को विशिष्ट रूप से याद करना अकसर असम्भव होता है। हालाँकि उन्हें विशिष्ट करने के उद्देश्‍य से मुख्य मुद्दे अच्छी तरह तैयार किए गए हैं, प्रस्तुति में उन पर सही ज़ोर देने से चूकना उन्हें उस हद तक कमज़ोर कर सकता है कि शायद उनका महत्त्व खो जाए।

९ इस समस्या पर विजय पाने के लिए, आपको पहले अपने विषय की ध्यानपूर्वक जाँच करनी होगी। भाषण का सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्या है? उसके बाद सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या है? यदि आपके भाषण का सारांश एक या दो वाक्यों में कहने को कहा जाए तो आप क्या कहेंगे? मुख्य बातों को पहचानने का यह एक सबसे अच्छा तरीक़ा है। इनको पहचानने के बाद, उन्हें अपने नोट्‌स या हस्तलिपि पर लिख लीजिए। अब आप बात को शिखरों के तौर पर इन मुद्दों की ओर बढ़ा सकते हैं। ये आपके भाषण के शिखर हैं और यदि विषय की सही रूपरेखा बनाई गई है और आप उन पर अच्छी तरह ज़ोर देकर प्रस्तुत करते हैं तो मुख्य विचार याद रखे जाएँगे। भाषण देने में यही आपका उद्देश्‍य है।

१०-१२. समझाइए कि स्वर-परिवर्तन का क्या अर्थ है?

१० साधारण भाव बलाघात आप जो कह रहे हैं उसे समझने में श्रोतागण को मदद देता है, परन्तु ज़ोर देने में विविधता जो स्वर-परिवर्तन प्रदान करता है सुनने में यह उनके लिए आनन्ददायक बना सकता है। क्या आप अपनी क्षेत्र सेवकाई में और कलीसिया में जो भाषण देने का आपको विशेषाधिकार प्राप्त होता है उनमें स्वर-परिवर्तन का अच्छा इस्तेमाल करते हैं?

११ स्वर-परिवर्तन सुर, गति या बल में समय-समय पर किया गया परिवर्तन है जो दिलचस्पी को बनाए रखने और वक्‍ता के तौर पर आपके क्रमिक विचारों और भावनाओं को प्रदर्शित करने के उद्देश्‍य से किया जाता है। आपके उद्देश्‍य को सबसे अच्छी तरह पूरा करने के लिए, आपको उतने विभिन्‍न प्रकार के स्वर-परिवर्तन करने चाहिए जिनका एक ख़ास भाषण अनुमति देगा। स्वर-परिवर्तन की उच्च श्रेणी में आप, घटते क्रम में, उत्सुकता, उत्साह, और तीव्र दिलचस्पी व्यक्‍त कर सकते हैं। मध्य श्रेणी में है, थोड़ी दिलचस्पी, जबकि निचली श्रेणी में हैं गंभीरता और औपचारिकता।

१२ किसी भी स्थिति में आप अत्यधिक अभिव्यक्‍तियों के कारण नाटकीय प्रतीत होना नहीं चाहेंगे। हमारा भाषण दिलचस्पी जगानेवाला होना चाहिए, रूढ़िवादी पादरियों की तरह भक्‍तिपूर्णतः गंभीर अथवा तम्बुओं में मिलनेवाले प्रचारकों की तरह भावात्मक रूप से उत्तेजित नहीं। राज्य संदेश के लिए उचित गरिमा और आदर ऐसे किसी भी अमसीही प्रदर्शनों से हमें दूर रखेगा।

१३, १४. बल में विविधता का क्या अर्थ है?

१३ बल में विविधता। शायद स्वर-परिवर्तन का सबसे आसान तरीक़ा है अपनी आवाज़ के बल को बदलना। यह शिखर तक पहुँचने और आपके भाषण के मुख्य मुद्दों पर ज़ोर देने का एक तरीक़ा है। लेकिन, मात्र अपनी आवाज़ को बढ़ाने से ही आपके मुद्दें हमेशा विशिष्ट नहीं होंगे। कुछ मामलों में यह शायद उन्हें अधिक विशिष्ट करे, लेकिन जिस अतिरिक्‍त ज़ोर के साथ ये प्रस्तुत किए जाते हैं वह आपके उद्देश्‍य को शायद नाक़ामयाब करे। शायद आपके मुद्दे एक जोशीली आवाज़ से अधिक स्नेह-भाव और सरगर्मी की माँग करें। ऐसे मामलों में, अपनी आवाज़ को कम कीजिए परन्तु उसकी गहराई को बढ़ाइए। यदि आप चिन्ता या डर व्यक्‍त कर रहे हैं तो भी वही बात सच होगी।

१४ जबकि बल में परिवर्तन स्वर-परिवर्तन के लिए ज़रूरी है, यह सावधानी बरती जानी चाहिए कि आवाज़ इतनी धीमी न हो कि कुछ लोगों को सुनाई न दे। ना ही आवाज़ उस हद तक बढ़ायी जानी चाहिए कि वह अरुचिकर हो जाए।

१५-१७. गति में विविधता एक भाषण को कैसे बेहतर बनाती है?

१५ गति में विविधता। बहुत ही कम नए वक्‍ता मंच पर अपनी गति बदलते हैं। हम अपनी दैनिक बातचीत में निरन्तर ऐसा करते हैं क्योंकि हमारे शब्द जैसे हम उनके बारे में सोचते हैं या जैसे उनकी ज़रूरत होती है वैसे सहज ही निकलते हैं। लेकिन मंच पर एक नया वक्‍ता साधारणतः अपने आपको ऐसा करने नहीं देगा। वह अपने शब्दों और वाक्यांशों को अत्यधिक सावधानी से तैयार करता है, और इसलिए सभी शब्द एक ही रफ़्तार से आते हैं। एक रूपरेखा से बात करना इस कमज़ोरी को ठीक करने में मदद देगा।

१६ आपके भाषण की मुख्य धारा एक संतुलित गति की होनी चाहिए। छोटे मुद्दे, वृत्तांत, अधिकांश दृष्टान्त, इत्यादि आपको गति बढ़ाने देंगे। अधिक महत्त्वपूर्ण तर्क, शिखर और मुख्य मुद्दे साधारणतः धीमी प्रस्तुति की माँग करते हैं। कुछ मामलों में, विशेषकर ख़ास ज़ोर देने के लिए, आप धीमी, जानकार बल का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप शायद पूर्णतः रुक भी जाएँ, ठहराव करें, जो गति में एक पूर्ण परिवर्तन है।

१७ सावधान। कभी इतना तेज़ न बोलिए कि आपकी कथन-शैली सही न हो। निजी अभ्यास सत्रों में एक सर्वोत्तम अभ्यास है ऊँची आवाज़ में उतना तेज़ पढ़ने की कोशिश करना जितना आप बिना हड़बड़ाए पढ़ सकते हैं। उसी अनुच्छेद को बार-बार दोहराइए, बिना हड़बड़ाए या अपने उच्चारण को अस्पष्ट किए बग़ैर हर बार अपनी गति बढ़ाइए। फिर शब्दों को तोड़ने के बजाय स्व - रों को ल - म्बा खीं - च - ते हुए जितना धीमा हो सकता है उतना धीमा पढ़ने की कोशिश कीजिए। फिर अदल-बदल कर और अनियमित रीति से अपनी गति बढ़ाइए और कम कीजिए जब तक कि आपकी आवाज़ नम्य नहीं हो जाती और जो आप उससे करवाना चाहते हैं वह नहीं करता। फिर जब आप बोलेंगे, जो आप बोल रहे हैं उसके अर्थ के अनुसार गति में बदलाहट अपने आप आ जाएगी।

१८-२०. समझाइए कि एक व्यक्‍ति कैसे सुर में विविधता ला सकता है।

१८ सुर में विविधता। सुर में परिवर्तन लाना संभवतः सबसे मुश्‍किल तरीक़े का स्वर-परिवर्तन है। जी हाँ, हम हमेशा सुर को थोड़ा-सा बढ़ाकर शब्दों पर ज़ोर देते हैं जिसके साथ-साथ साधारणतः बल में भी थोड़ी वृद्धि होती है। हम शब्द को मानो मारते हैं।

१९ लेकिन सुर में इतने परिवर्तन से ज़्यादा की माँग की जाती है यदि आपको स्वर-परिवर्तन के इस पहलू से सर्वोत्तम फ़ायदा प्राप्त करना है। उत्पत्ति १८:३-८ और १९:६-९ को ऊँची आवाज़ में पढ़ने की कोशिश कीजिए। इन आयतों में जो गति और सुर के विभिन्‍न परिवर्तनों की माँग की गई है उस पर ध्यान दीजिए। शोक या चिन्ता की तुलना में उत्तेजना तथा उत्साह की हमेशा ऊँचे सुर में अभिव्यक्‍ति होती है। जब ये भावनाएँ आपके विषय में आती हैं तो उन्हें उसके अनुसार व्यक्‍त कीजिए।

२० बोली के इस पहलू में कमज़ोरी का एक मुख्य कारण आवाज़ में पर्याप्त विविधता का न होना है। यदि यह आपकी समस्या है तो इस पर कार्य कीजिए। इस अध्ययन में इससे पहले सुझाए गए अभ्यास जैसा एक अभ्यास इस्तेमाल करके देखिए। लेकिन इस मामले में, गति में विविधता लाने के बजाय सुर को बढ़ाने और घटाने पर कार्य कीजिए।

२१-२४. स्वर-परिवर्तन को विचार या भावना के अनुरूप क्यों होना चाहिए?

२१ विचार या भावना के अनुरूप स्वर-परिवर्तन। इस गुण की हमारी चर्चा से अब तक यह बात स्पष्ट होती है कि मात्र विविधता के लिए ही आवाज़ में परिवर्तन नहीं किए जा सकते। आपकी अभिव्यक्‍तियाँ आप जो कह रहे हैं उसकी भावना के अनुसार होनी चाहिए। तो फिर, स्वर-परिवर्तन कहाँ से शुरू होता है? स्पष्टतः यह उस विषय के साथ शुरू होता है जिसे प्रस्तुत करने के लिए आपने तैयारी की है। यदि आपके भाषण में तर्क के सिवाय कुछ नहीं है या प्रोत्साहन के सिवाय कुछ नहीं है, तो आपकी प्रस्तुति में बहुत कम विविधता होगी। अतः उसे ख़त्म करने के बाद अपनी रूपरेखा की जाँच कीजिए और यह निश्‍चित कीजिए कि उसमें एक दिलचस्पी जगानेवाली तथा अर्थपूर्ण प्रस्तुति के सभी तत्व शामिल हैं।

२२ लेकिन कभी-कभी अपने भाषण के बीच में आपको गति में परिवर्तन की ज़रूरत महसूस होती है। आपको लगता है कि आपका भाषण बहुत धीमा चल रहा है। आप क्या कर सकते हैं? यहाँ फिर आशु भाषण का फ़ायदा है। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं आप अपने विषय का रूप बदल सकते हैं। कैसे? एक तरीक़ा होगा बात करना छोड़कर बाइबल से एक पाठ पढ़ना। या आप शायद एक कथन को एक सवाल में बदल दें और ज़ोर देने कि लिए एक ठहराव दें। शायद आप एक दृष्टान्त शामिल करें, और इसे अपनी रूपरेखा में किसी तर्क का एक रूपांतरण बनाएँ।

२३ जी हाँ, भाषण के दौरान इस्तेमाल किए गए ये तरीक़े अनुभवी वक्‍ताओं के लिए हैं। परन्तु अपनी नियुक्‍ति के लिए अपने विषय की पूर्वतैयारी करते वक़्त आप उन्हीं विचारों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

२४ कहा गया है कि स्वर-परिवर्तन भाषण का मसाला है। यदि सही तरह का और सही मात्रा में इसे इस्तेमाल किया जाए तो यह आपके श्रोतागण के लिए आपके विषय को स्वादिष्ट और रुचिकर बनाएगा।

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