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अध्याय 6

सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

शब्दों और शब्द-समूहों पर इस ढंग से ज़ोर दीजिए जिससे कि सुननेवाले, बात का सही मतलब आसानी से समझ सकें।

इसकी क्या अहमियत है?

सही मतलब पर ज़ोर देने से वक्‍ता, सुननेवालों का ध्यान बाँध पाता है और उन्हें कायल या फिर कदम उठाने के लिए प्रेरित कर पाता है।

जब आप ऊँची आवाज़ में बात करते या किसी को पढ़कर सुनाते हैं, तब सिर्फ एक-एक शब्द सही-सही बोलना काफी नहीं है; बल्कि यह भी ज़रूरी है कि आप वाक्य के खास शब्दों और हिस्सों पर इस तरह ज़ोर दें जिससे सही मतलब साफ-साफ समझ में आ सके।

सही मतलब पर ज़ोर देने के लिए, कुछ या कई शब्दों पर बाकियों से ज़्यादा ज़ोर देना ही काफी नहीं होता। इसके लिए ज़रूरी है, सही शब्दों पर ज़ोर देना। क्योंकि अगर गलत शब्दों पर ज़ोर दिया जाएगा, तो आप जो कह रहे हैं उसका सही मतलब लोगों को समझ नहीं आएगा और उनका ध्यान यहाँ-वहाँ चला जाएगा। भले ही जानकारी कितनी ही बढ़िया क्यों न हो, अगर भाषण में सही मतलब पर ज़ोर न दिया जाए, तो आप सुननेवालों को सही कदम उठाने के लिए प्रेरित करने में कामयाब नहीं हो पाएँगे।

ज़्यादा ज़ोर देने के अलग-अलग तरीके हैं, और आम तौर पर इन्हें मिला-जुलाकर इस्तेमाल किया जाता है। जैसे, आवाज़ को ऊँचा करने से, अपनी आवाज़ में भावनाओं की गहराई ज़ाहिर करने से, धीरे-धीरे, एक-एक शब्द बोलने से, कोई बात बोलने से पहले या बाद में (या दोनों बार) ठहराव देने से और हाव-भाव के साथ चेहरे के भावों का इस्तेमाल करने से। कुछ ऐसी भी भाषाएँ हैं, जिनमें आवाज़ को धीमा करके या स्वर-बल को बढ़ाकर ज़ोर दिया जा सकता है। इन तरीकों में से कौन-सा सही रहेगा, यह पता करने के लिए ध्यान दीजिए कि आप किस तरह की जानकारी पेश कर रहे हैं और हालात कैसे हैं।

यह तय करते वक्‍त कि कहाँ ज़ोर देने की ज़रूरत है, आगे के मुद्दों पर गौर कीजिए। (1) किसी वाक्य में जिन शब्दों पर ज़्यादा ज़ोर देना है, यह सिर्फ वाक्य के बाकी के हिस्से पर ही नहीं बल्कि आस-पास की जानकारी पर भी निर्भर करता है। (2) किसी नए विचार की शुरूआत दिखाने के लिए भी, मतलब पर ज़ोर देने का तरीका इस्तेमाल किया जा सकता है, चाहे यह भाषण का मुख्य मुद्दा हो या तर्क करने के तरीके में बदलाव हो। इसे किसी दलील का अंत बताने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। (3) एक वक्‍ता किसी मसले पर अपनी भावनाओं का इज़हार करने के लिए भी मतलब पर ज़ोर देने का तरीका इस्तेमाल कर सकता है। (4) भाषण के मुख्य मुद्दों को उभारने के लिए भी सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देना चाहिए।

अगर भाषण देनेवाला या दूसरों को पढ़कर सुनानेवाला इन तरीकों से मतलब पर ज़ोर देना चाहता है, तो उसे खुद जानकारी को अच्छी तरह समझना होगा और अपने सुननेवालों के मन में इसे बिठाने की पूरी कोशिश करनी होगी। एज्रा के ज़माने में हिदायतें कैसे दी जाती थीं, इस बारे में नहेमायाह 8:8 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है: “[उन्होंने] परमेश्‍वर की व्यवस्था के विधान की पुस्तक का पाठ किया। उन्होंने उसकी ऐसी व्याख्या की कि लोग उसे समझ सकें। उसका अभिप्राय: क्या है, इसे खोल कर उन्होंने समझाया। उन्होंने यह इसलिए किया ताकि जो पढ़ा जा रहा है, लोग उसे समझ सकें।” इससे साफ ज़ाहिर है कि जिन लोगों ने उस मौके पर परमेश्‍वर की व्यवस्था पढ़कर लोगों को समझायी थी, उन्हें एहसास था कि पढ़ी जानेवाली बातों को समझने, याद रखने और लागू करने में सुननेवालों की मदद करना कितना ज़रूरी है।

किस वजह से समस्या खड़ी हो सकती है। ज़्यादातर लोग आम बातचीत में अपनी बात का मतलब आसानी से समझा पाते हैं। मगर जब उन्हें किसी और की लिखी बातें पढ़कर समझानी होती हैं, तब उन्हें यह तय करने में परेशानी होती है कि वाक्य के किन शब्दों या हिस्सों पर ज़ोर देना है और किन पर नहीं। अगर सही शब्दों पर ज़ोर देना है, तो उन्हें लेख को बहुत अच्छी तरह समझना होगा। इसके लिए जानकारी का ध्यान से अध्ययन करना ज़रूरी है। इसलिए जब आपको कलीसिया के सामने कुछ जानकारी पढ़कर सुनाने का भाग सौंपा जाए, तो पूरी लगन से इसकी तैयारी कीजिए।

कुछ लोगों को मतलब पर ज़ोर देने के बजाय थोड़े-थोड़े समय बाद शब्दों पर ज़ोर देने की आदत होती है। वे ऐसा करते रहते हैं चाहे इसकी ज़रूरत हो या न हो। दूसरे लोग शायद ‘ने, को, से, का, के लिए, लेकिन’ जैसे संबंधबोधक और संयोजन शब्दों पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर देने के आदी होते हैं। इस तरह ज़ोर देने की आदत से मतलब समझ में नहीं आता और लोगों का ध्यान भटक सकता है।

कुछ वक्‍ता मतलब पर ज़ोर देने के लिए अपनी आवाज़ ऊँची करके इस तरह बात करते हैं कि सुननेवालों को लगता है कि उन्हें डाँटा-फटकारा जा रहा है। कोई शक नहीं कि ऐसा करने से आम तौर पर अच्छे नतीजे नहीं निकलते। अगर सहजता से मतलब पर ज़ोर न दिया जाए, तो ऐसा लग सकता है कि भाषण देनेवाला सुननेवालों को तुच्छ समझता है। यह कितना बेहतर होगा अगर हम प्यार की बिनाह पर उनसे गुज़ारिश करें और यह समझने में उनकी मदद करें कि जो बताया जा रहा है, वह बाइबल से है और उसका पालन करना उनके बस के बाहर नहीं है!

सुधार करने के तरीके। अकसर जो मतलब पर ज़ोर नहीं दे पाता है, उसे इस कमज़ोरी की खबर तक नहीं होती। ऐसे में किसी और को उसकी इस कमज़ोरी के बारे में बताना चाहिए। अगर इस पहलू पर आपको सुधार करने की ज़रूरत है, तो स्कूल ओवरसियर आपकी मदद करेगा। साथ ही, आप बेझिझक किसी अच्छे वक्‍ता के पास जाकर उसकी भी मदद ले सकते हैं। उससे कहिए कि वह आपको पढ़ते हुए और बात करते हुए ध्यान से सुने और फिर सुधार करने के सुझाव दे।

सबसे पहले, आपका सलाहकार आपको प्रहरीदुर्ग का एक लेख पढ़कर अभ्यास करने का सुझाव दे सकता है। वह आपको हर वाक्य की जाँच करने को कहेगा, ताकि आप यह जान लें कि आपको पढ़ते वक्‍त किन शब्दों या शब्द-समूहों पर ज़ोर देना है जिससे सुननेवालों को समझने में आसानी हो। वह शायद आपसे यह भी कहे कि जिन शब्दों को तिरछे अक्षरों में लिखा गया है, उन पर खास ध्यान दें। याद रखिए कि वाक्य में कुछ शब्दों को मिलाकर पढ़ने से ही मतलब समझ में आता है। इसलिए अकसर एक-एक शब्द के बजाय शब्द-समूहों पर ज़ोर देने की ज़रूरत पड़ती है। कुछ भाषाओं में सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देने के लिए विद्यार्थियों से कहा जा सकता है कि वे मात्राओं पर खास ध्यान दें।

कहाँ ज़ोर देना है, उसका अगला कदम सिखाने के लिए आपका सलाहकार शायद कहे कि अब आप वाक्य के आस-पास लिखी बातों पर गौर करें, जो आपको वाक्य को और भी अच्छी तरह समझने में मदद देंगी। पूरे पैराग्राफ का खास विचार क्या है? इस बात को ध्यान में रखते हुए आपको अलग-अलग वाक्यों में किन-किन जगहों पर ज़ोर देना चाहिए? लेख का शीर्षक, और फिर मोटे अक्षरों में दिया वह उपशीर्षक देखिए जिसके तहत पैराग्राफ दिया गया है। इन्हें ध्यान में रखते हुए आप पैराग्राफ में किन शब्दों पर ज़ोर देंगे? आपको इन सभी बातों को ध्यान में रखना होगा। लेकिन ध्यान रहे कि बहुत-से शब्दों पर हद-से-ज़्यादा ज़ोर न दें।

चाहे आप भाषण दे रहे हों या पढ़ रहे हों, आपका सलाहकार आपको शायद पेश की गयी दलीलों के मुताबिक मतलब पर ज़ोर देने को उकसाए। आपको अच्छी तरह पता होना चाहिए कि कोई दलील कब खत्म होती है और यह भी कि कहाँ एक मुख्य विचार खत्म होकर दूसरे की शुरूआत होती है। अगर आप भाषण को इस ढंग से पेश करेंगे कि सुननेवाले इन बातों को आसानी से पहचान पाएँ, तो वे इसकी बहुत कदर करेंगे। ऐसा करने के लिए आप मुख्य मुद्दों और दलीलों के साथ ये शब्द जोड़ सकते हैं जैसे सबसे पहले, उसके बाद, अब, आखिर में, और कुल मिलाकर।

आपका सलाहकार, आपका ध्यान उन विचारों पर भी दिलाएगा जिनको आप खास भावना के साथ बोलना चाहेंगे। इसके लिए हो सकता है कि आपको ऐसे शब्दों पर ज़ोर देना पड़े जैसे बेहद/बहुत, बिलकुल, कतई नहीं, बेशक, अहम/ज़रूरी और हमेशा। आपके ऐसा करने का इस बात पर असर होगा कि सुननेवाले आपकी कही बातों के बारे में क्या महसूस करते हैं। इस बारे में ज़्यादा जानकारी अध्याय 11 में दी गयी है जिसका शीर्षक है, “स्नेह और भावना।”

मतलब पर ज़ोर देने के गुण को बढ़ाने के लिए आपको यह भी बढ़ावा दिया जाएगा कि जिन मुख्य मुद्दों को आप चाहते हैं कि आपके सुननेवाले याद रखें, पहले ज़रूरी है कि आप उन्हें अपने मन में अच्छी तरह बिठा लें। दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्‍त यह कैसे किया जाना चाहिए, इसकी चर्चा हम अध्याय 7, “खास विचारों पर ज़ोर देना” में करेंगे। और भाषण देते वक्‍त यह कैसे करना है, इसके बारे में हम अध्याय 37, “मुख्य मुद्दों को उभारना” में देखेंगे।

अगर आप प्रचार में अपनी काबिलीयत निखारने की कोशिश कर रहे हैं, तो इस बात पर खास ध्यान दीजिए कि आप आयतें कैसे पढ़ते हैं। खुद से यह सवाल पूछने की आदत डालिए, ‘मैं यह आयत क्यों पढ़ रहा हूँ?’ सिखानेवाले के लिए शब्दों को सही-सही बोलना, यहाँ तक कि उन्हें भावनाओं के साथ पढ़ना काफी नहीं होता। अगर आप किसी के सवाल का जवाब दे रहे हैं या उसे बुनियादी सच्चाई सिखा रहे हैं, तो आयत के उन शब्दों या हिस्सों पर ज़ोर देना अच्छा होगा जो चर्चा की जा रही बातों का सबूत देते हैं। वरना, आप जिसे पढ़कर सुना रहे हैं, उसे मुद्दा समझ ही नहीं आएगा।

हालाँकि मतलब पर ज़ोर देने के लिए कुछ शब्दों या शब्द-समूहों पर अधिक ज़ोर देना चाहिए, मगर जिन्हें भाषण देने का कम तजुर्बा है, वे शायद इन शब्दों पर ज़रूरत-से-ज़्यादा ज़ोर दें। जिस तरह एक इंसान किसी साज़ पर धुन बजाना सीखता है, तब वह सुर में नहीं बजा पाता, उसी तरह शब्दों पर ज़रूरत-से-ज़्यादा ज़ोर देने का नतीजा भी कानों को अखरता है। मगर जैसे साधना करते-करते एक-एक “धुन” मिलकर “संगीत” बनता है जो सुनने में बड़ा सुरीला लगता है, उसी तरह शब्दों पर सही तरीके से ज़ोर देने के लिए अभ्यास किया जाना चाहिए।

मतलब पर ज़ोर देने के बारे में कुछ बुनियादी बातें सीखने के बाद, आप दूसरे तजुर्बेकार वक्‍ताओं के बात करने के तरीके पर ध्यान देकर उनसे सीख पाएँगे। कुछ ही समय में आप जान जाएँगे की शब्दों पर कम-ज़्यादा ज़ोर देने से क्या कुछ किया जा सकता है। आप यह भी समझ पाएँगे कि कही गयी बात का मतलब साफ-साफ समझाने के लिए अलग-अलग तरीकों से ज़ोर देने की क्या अहमियत है। सही तरीके से मतलब पर ज़ोर देने का गुण सीखने से आपके पढ़ने और बोलने की काबिलीयत में ज़्यादा निखार आएगा।

मतलब पर ज़ोर देने के बारे में सिर्फ काम-चलाऊ जानकारी लेकर चुप बैठ जाना काफी नहीं है। असरदार तरीके से बात कर पाने के लिए, आपको लगातार इस हुनर को बढ़ाने की ज़रूरत है। जब तक कि आप इसमें माहिर नहीं हो जाते और यह बातें कानों को अच्छी नहीं लगती, तब तक इसका अभ्यास करते रहिए।

यह कैसे सीखें

  • वाक्यों में खास शब्दों और शब्द-समूहों को पहचानने का अभ्यास कीजिए। इसके लिए आस-पास के वाक्यों पर खास ध्यान दीजिए।

  • इस तरीके से ज़ोर दीजिए जिससे (1) नए विचार की शुरूआत और (2) आप जो कह रहे हैं, उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं, यह पता लग सके।

  • जब आप कोई आयत पढ़ते हैं, तो उन शब्दों पर ज़ोर देने की आदत डालिए जो चर्चा किए जा रहे मुद्दे को साबित करते हों।

अभ्यास: (1) ऐसी दो आयतें चुनिए जो आप प्रचार में अकसर इस्तेमाल करते हैं। यह तय कीजिए कि हरेक आयत से आप क्या साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। फिर उन आयतों को ज़ोर से पढ़िए। पढ़ते वक्‍त आयतों के उन शब्दों या शब्द-समूहों पर ज़ोर दीजिए, जो आपके मुद्दों को साबित करती हैं। (2) इब्रानियों 1:1-14 का अध्ययन कीजिए। इस अध्याय में दी गयी दलील को साफ-साफ समझाने के लिए “भविष्यद्वक्‍ताओं” (आयत 1), “पुत्र” (आयत 2), और “स्वर्गदूतों” (आयतें 4, 5) जैसे शब्दों पर खास ज़ोर देने की ज़रूरत क्यों है? इस अध्याय की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, ऊँची आवाज़ में मतलब पर ज़ोर देते हुए पढ़िए।

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