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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
be अध्याय 1 पेज 83-पेज 85 पैरा. 3

अध्याय 1

सही-सही पढ़ना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

पेज पर जो लिखा है, वही पढ़िए और ज़ोर से पढ़िए। पूरे या आधे शब्द छोड़ देने और एक शब्द के बदले दूसरा शब्द बोलने की गलती मत कीजिए। शब्दों का सही उच्चारण कीजिए। विराम-चिन्हों और मात्राओं पर ध्यान दीजिए।

इसकी क्या अहमियत है?

ध्यान से और सही-सही पढ़ना, लोगों को बाइबल का सही ज्ञान सिखाने का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा है।

बाइबल कहती है, परमेश्‍वर की यह मरज़ी है कि हर तरह के लोग “सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमु. 2:4) परमेश्‍वर की इस मरज़ी के मुताबिक, हम लोगों को सही ज्ञान देने के लिए जब ज़ोर से बाइबल पढ़कर सुनाते हैं, तब हमें बहुत ध्यान देना चाहिए।

बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाले साहित्य को ज़ोर से पढ़ना एक ऐसी काबिलीयत है जो बूढ़े-जवान सभी में होनी चाहिए। यहोवा के साक्षी होने के नाते, दूसरों को यहोवा और उसके मार्गों के बारे में सिखाना हमारी ज़िम्मेदारी है। जब हम इस ज़िम्मेदारी को पूरा करते हैं, तो अकसर ऐसे कई मौके आते हैं, जब हमें किसी एक जन या एक छोटे-से समूह के सामने पढ़ना पड़ता है। ऐसी पढ़ाई हम अपने घर में भी करते हैं। परमेश्‍वर की सेवा स्कूल में बूढ़े-जवान सभी भाई-बहनों को ऐसे कई अवसर मिलेंगे, जब वे ज़ोर से पढ़ने की अपनी काबिलीयत निखारने के लिए सलाह पा सकेंगे।

बाइबल पढ़कर सुनाना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है, फिर चाहे आप किसी एक को पढ़कर सुना रहे हों या पूरी कलीसिया को। बाइबल, परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा एक ग्रंथ है। यही नहीं, “परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल [है], . . . और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” (इब्रा. 4:12) इसमें ज्ञान का ऐसा अनमोल खज़ाना है जो कहीं और ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। इसी से ही एक इंसान एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर को जान सकता है और उसके साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम कर सकता है। इसी के ज्ञान की मदद से वह जीवन की समस्याओं का सामना करने में कामयाब हो सकता है। परमेश्‍वर के इस वचन में यह भी समझाया गया है कि परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता क्या है। इसलिए हमारा लक्ष्य होना चाहिए, बाइबल को पूरे जतन के साथ बेहतरीन तरीके से पढ़ना।—भज. 119:140; यिर्म. 26:2.

सही-सही कैसे पढ़ें। असरदार तरीके से पढ़ने में कई कदम शामिल हैं जिनमें सबसे पहला है, सही-सही पढ़ना। इसका मतलब है, पेज पर जो लिखा है, शब्द-ब-शब्द वही पढ़ने की कोशिश करना। इसलिए इस बात पर ध्यान दें कि पढ़ते वक्‍त कुछ शब्दों को छोड़ न दें, आधे-अधूरे शब्द न पढ़ें और ऐसे शब्द को दूसरा शब्द समझकर न पढ़ें, जो मिलते-जुलते हैं।

शब्दों को ठीक-ठीक पढ़ने के लिए आपको संदर्भ जानने की ज़रूरत है। इसके लिए बड़े ध्यान से तैयारी करनी होती है। कुछ वक्‍त के बाद, जब आप इस काबिल हो जाएँगे कि आगे जो आना चाहिए, उसका अंदाज़ा लगा सकें और यह जान सकें कि तर्क किस दिशा में जा रहा है, तब सही-सही पढ़ने की आपकी काबिलीयत और बढ़ जाएगी।

विराम-चिन्ह और मात्राएँ, एक भाषा के लेखन में खास अहमियत रखते हैं। विराम-चिन्ह से पता लग सकता है कि पढ़ते वक्‍त कहाँ और कितनी देर तक रुकना है, साथ ही कहाँ पर आवाज़ में उतार या चढ़ाव लाना है। कुछ भाषाओं में ऐसा होता है कि अगर इन चिन्हों के मुताबिक आवाज़ में बदलाव न लाया जाए, तो एक सवाल, वाक्य लग सकता है या फिर एक वाक्य का मतलब ही पूरी तरह बदल सकता है। कभी-कभी तो विराम-चिन्ह बस इसलिए इस्तेमाल किए जाते हैं, क्योंकि व्याकरण इसकी माँग करता है। जहाँ मात्राओं की बात आती है, तो कई भाषाओं में इन पर ध्यान दिए बिना सही-सही पढ़ना नामुमकिन हो जाता है। अक्षरों की मात्राओं से पता चलता है कि उन्हें किस तरीके से बोलना है। इसलिए आपकी भाषा में विराम-चिन्ह और मात्राएँ कैसे इस्तेमाल किए जाते हैं, यह अच्छी तरह जान लीजिए। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पढ़ाई से दूसरों को फायदा हो, तो ऐसा करना बेहद ज़रूरी है। याद रखिए कि आपका मकसद सिर्फ शब्द पढ़ना नहीं बल्कि विचार ज़ाहिर करना है।

सही-सही पढ़ने की काबिलीयत बढ़ाने के लिए, अभ्यास कीजिए। इसके लिए बस पहले एक पैराग्राफ लीजिए और उसे तब तक बार-बार पढ़िए, जब तक आप उसे बिना कोई गलती किए पढ़ नहीं लेते। सभी पैराग्राफ को इसी तरह पढ़ते जाइए। आखिर में, एक भी शब्द छोड़े बिना, उसे दोहराए या उसकी जगह गलत शब्द पढ़े बिना एक ही दफे में कई पेज पढ़ने की कोशिश कीजिए। यह सब कुछ करने के बाद, किसी से कहिए कि आपकी पढ़ाई ध्यान से सुने ताकि वह बता सके कि आपने कहाँ-कहाँ गलतियाँ की हैं।

कुछ मामलों में, आँखों की कमज़ोरी या फिर कम रोशनी की वजह से लोगों को पढ़ने में दिक्कत होती है। अगर आप इन मुश्‍किलों को दूर करने के लिए कुछ करें, तो बेशक आपको पढ़ने में ज़्यादा सहूलियत होगी।

कलीसिया के जो भाई अच्छी तरह पढ़ते हैं, उन्हें कुछ वक्‍त बाद कलीसिया के पुस्तक अध्ययन और प्रहरीदुर्ग अध्ययन में पढ़कर सुनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है। ऐसी ज़िम्मेदारी को सही से निभाने के लिए सिर्फ शब्दों को ठीक-ठीक बोल देना काफी नहीं है। अगर आप कलीसिया में दूसरों के सामने असरदार ढंग से पढ़ना चाहते हैं, तो सबसे पहले, आपको निजी तौर पर पढ़ने की अच्छी आदत डालनी होगी। आपको यह समझना होगा कि हर शब्द अहमियत रखता है। अगर कुछ शब्द छूट जाएँगे, तो जो कहा गया है उसकी सही तसवीर नहीं मिलेगी। और खुद के लिए पढ़ते वक्‍त, अगर आप शब्दों को गलत पढ़ेंगे तब भी आपको वाक्य का सही मतलब समझ नहीं आएगा। आपके गलत पढ़ने की वजह यह हो सकती है कि आपने मात्राओं पर या शब्दों के आस-पास की जानकारी पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए वाक्य के हरेक शब्द का मतलब समझने की कोशिश कीजिए कि उसे किन शब्दों के साथ इस्तेमाल किया गया है, वाक्य में उसका क्या मतलब बनता है। यह भी गौर कीजिए कि विराम-चिन्हों के इस्तेमाल से कैसे वाक्य का मतलब बदल सकता है। याद रखिए कि शब्दों को मिलाकर पढ़ने से सही विचार समझ आते हैं। इसलिए ज़ोर से पढ़ते वक्‍त एक-एक शब्द को रुककर पढ़ने के बजाय वाक्य के हिस्सों को और कई शब्दों को मिलाकर पढ़ें। अगर आप चाहते हैं कि आपके पढ़ने से दूसरे सही ज्ञान पाएँ, तो इसके लिए ज़रूरी कदम है, जो आप पढ़ रहे हैं, उसे खुद अच्छी तरह समझना।

प्रेरित पौलुस ने एक तजुर्बेकार मसीही प्राचीन को लिखा: ‘पढ़ने की तरफ ध्यान लगाए रह।’ (1 तीमु. 4:13, हिन्दुस्तानी बाइबल) जी हाँ, पढ़ना एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हम सभी सुधार कर सकते हैं।

विराम-चिन्ह

पूर्ण विराम (।) का मतलब है पूरी तरह रुकना।

कौमा या अल्प विराम (,) आम तौर पर इसका मतलब है कि थोड़ी देर ठहरना, क्योंकि इस चिन्ह के आगे और भी कुछ लिखा होता है।

सेमिकोलॅन या अर्द्ध विराम (;) का मतलब है पूर्ण विराम से कम समय और अल्प विराम से ज़्यादा समय के लिए ठहरना।

कोलॅन या अपूर्ण विराम (:) के बाद कोई सूची आती है या किसी के शब्दों का हवाला दिया होता है; इसमें ठहरने की ज़रूरत है, मगर आवाज़ में उतार या चढ़ाव लाने की ज़रूरत नहीं होती।

एक्सक्लमेशन मार्क या विस्मय-बोधक चिन्ह (!) का मतलब है, गहरी भावनाओं के साथ बोलना।

प्रश्‍न चिन्ह (?) आम तौर पर इसका मतलब है, वाक्य को ज़ोर से या आवाज़ में ज़्यादा चढ़ाव लाते हुए पढ़ना।

उद्धरण चिन्ह (“ ” या ‘ ’) के बीच आनेवाले शब्दों को पढ़ने से पहले रुकना चाहिए (अगर ये शब्द वाक्य का भाग हैं, तो बहुत कम समय के लिए रुकिए; अगर पूरा वाक्य है, तो ज़्यादा समय के लिए रुकिए)।

डैश (—) को वाक्य में तब इस्तेमाल किया जाता है जब कुछ शब्दों को बाकी से अलग करना हो। आम तौर पर इसके लिए आवाज़ या पढ़ने की रफ्तार बदलनी पड़ती है।

पैरन्थीसिस या कोष्ठक ( ) और ब्रैकेट [ ] में कुछ ऐसे शब्द अलग रखे जाते हैं जिन्हें धीमी आवाज़ में पढ़ना है। कोष्ठक में दिए उन किताबों के नाम पढ़ने की ज़रूरत नहीं जहाँ से जानकारी ली गयी है। और वाक्य का मतलब पूरी तरह समझाने के लिए जब ब्रैकेट में कुछ शब्द लिखे जाते हैं, तो उन्हें पढ़ने के लिए आवाज़ बदलने की ज़रूरत नहीं है।

कामयाब कैसे हों

  • अभ्यास कीजिए! अभ्यास कीजिए! अभ्यास कीजिए! और ऊँची आवाज़ में कीजिए।

  • जब आप पढ़ते हैं तो किसी से कहिए कि वह गौर से सुने और आपकी गलतियाँ बताए।

  • निजी अध्ययन करते वक्‍त ध्यान से पढ़ने के लिए खुद के साथ सख्ती बरतिए।

  • एक-एक शब्द पढ़ने के बजाय कई शब्दों को मिलाकर पढ़ना सीखिए।

अभ्यास: मत्ती 5 से 7 अध्याय को पढ़ने की अच्छी तैयारी करने के बाद, अपने किसी दोस्त या परिवार के सदस्य से कहिए कि वह अपनी बाइबल खोले और जब आप पढ़ते हैं, तो आपके साथ-साथ बाइबल में पढ़े। उससे कहिए कि हर बार जब आप (1) कोई शब्द छोड़ें, (2) किसी शब्द को गलत पढ़ें या गलत क्रम में पढ़ें, या (3) किसी मात्रा या विराम-चिन्ह को नज़रअंदाज़ कर जाएँ, जिसके लिए ठहरने या आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाने की ज़रूरत है, तो वह आपको रोके। अगर आप दस-दस मिनट के लिए दो या तीन दफा इस तरह पढ़ेंगे, तो आपको बहुत फायदा होगा।

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