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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 10

जोश

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

आप जो कह रहे हैं, वह कितनी अहमियत रखता है, इसके बारे में एक सजीव भाषण के ज़रिए अपनी गहरी भावनाएँ दिखाइए।

इसकी क्या अहमियत है?

जोश के साथ भाषण देने से सुननेवालों की दिलचस्पी बरकरार रखी जा सकती है; साथ ही उनमें कोई कदम उठाने की प्रेरणा जगायी जा सकती है। आप जो कुछ कह रहे हैं, अगर आपमें उसके लिए जोश होगा, तो आपके सुननेवाले भी जोश से भर जाएँगे।

जोश, भाषण में जान डालता है। यह सच है कि भाषण में फायदेमंद जानकारी का होना ज़रूरी है, मगर लोगों का ध्यान खींचने के लिए पूरे जोश के साथ एक जानदार भाषण पेश करना भी बहुत ज़रूरी है। आप चाहे किसी भी माहौल में पले-बड़े हों या आपका स्वभाव कैसा भी क्यों न हो, आप अपने अंदर जोश का गुण पैदा कर सकते हैं।

भावनाओं के साथ बात कीजिए। जब यीशु ने एक सामरी स्त्री से बात की, तब उसने बताया कि जो कोई यहोवा की उपासना करना चाहता है, उसे “आत्मा और सच्चाई” से उपासना करनी चाहिए। (यूह. 4:24) इसका मतलब है कि परमेश्‍वर की उपासना एहसान-भरे दिल से की जानी चाहिए, और यह परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई के मुताबिक होनी चाहिए। अगर एक इंसान के दिल में यहोवा की उपासना की गहरी कदर है, तो यह उसके बात करने के लहज़े से साफ ज़ाहिर होगी। वह दूसरों को यहोवा के प्यार भरे इंतज़ामों के बारे में बताने के लिए बेताब होगा। उसके हाव-भाव और चेहरे के भाव, यहाँ तक कि उसकी आवाज़ से पता चलेगा कि उसकी भावनाएँ क्या हैं।

लेकिन, ऐसा क्यों होता है कि एक भाषण देनेवाला, हालाँकि यहोवा से प्यार करता है और वह जो कह रहा है, उस पर उसे पूरा विश्‍वास है, फिर भी वह जोश के साथ भाषण नहीं दे पाता? दरअसल, उसके लिए यह तैयारी करना ही काफी नहीं कि वह क्या-क्या बोलेगा। उसे अपने भाषण के विषय में पूरी तरह डूब जाना चाहिए और उसके दिल में इसके लिए गहरा जज़्बा होना चाहिए। मान लीजिए, उसे यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर भाषण देना है। भाषण देते वक्‍त उसके दिमाग में छुड़ौती बलिदान के बारे में सिर्फ ढेर सारी जानकारी नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे यह समझने की ज़रूरत है कि बलिदान खुद उसके लिए और उसके सुननेवालों के लिए क्या मायने रखता है। उसे याद करना चाहिए कि जब उसने इस बेजोड़ इंतज़ाम के बारे में सीखा, तब उसका दिल कैसे यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के लिए एहसानमंदी से भर गया था। यीशु के छुड़ौती बलिदान की बदौलत जो उज्ज्वल भविष्य की आशा इंसान को मिली है, उसके बारे में भी उसे सोचना चाहिए, जब आनेवाली नयी दुनिया यानी फिरदौस में सभी इंसान पूरी खुशी के साथ सिद्ध और स्वस्थ ज़िंदगी जी सकेंगे। इस तरह अपने भाषण के लिए उसे अपने दिल में भावनाएँ पैदा करनी चाहिए।

इस्राएल के एक शास्त्री और शिक्षक, एज्रा के बारे में बाइबल कहती है कि उसने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में . . . सिखाने के लिये अपना मन लगाया था।” (एज्रा 7:10) बाइबल की मूल भाषा के जिन शब्दों का अनुवाद “मन लगाया” किया गया है, उनका शाब्दिक अर्थ है “अपने हृदय को तैयार किया।” एज्रा की तरह अगर हम न सिर्फ भाषण की तैयारी करें बल्कि अपने हृदय को भी तैयार करें, तो हम दिल से बात कर पाएँगे। इस तरह सच्चाई के बारे में हमारे दिल से निकले शब्दों से सुननेवालों में सच्चाई के लिए सच्चा प्रेम बढ़ सकेगा।

सुननेवालों को ध्यान में रखिए। जोश दिखाने का एक और अहम पहलू है, आपको इस बात का पूरा यकीन होना कि जो कुछ आप बताने जा रहे हैं, वह सुननेवालों के लिए बेहद ज़रूरी है। इसके लिए भाषण की तैयारी करते वक्‍त, सिर्फ अच्छी जानकारी इकट्ठा करना काफी नहीं। उससे भी बढ़कर आपको मार्गदर्शन के लिए यहोवा से प्रार्थना करने की ज़रूरत होंगे ताकि आप जानकारी को इस ढंग से पेश कर सकें जिससे सुननेवालों को ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा पहुँचे। (भज. 32:8; मत्ती 7:7, 8) आपके सुननेवालों को इस जानकारी की ज़रूरत क्यों है? इससे उन्हें क्या फायदा पहुँचेगा? इसे किस तरीके से पेश करने पर वे इसकी अहमियत को समझ पाएँगे? इन बातों की जाँच कीजिए।

जब तक आपको जानकारी से कोई ऐसी बात नहीं मिल जाती जो खुद आपमें जोश भर दे, तब तक उसे और अच्छा बनाने में लगे रहिए। ज़रूरी नहीं कि आप कोई नयी जानकारी पेश करें, मगर हाँ, आप अपने विषय को नए अंदाज़ में पेश कर सकते हैं। अगर आप कुछ ऐसा तैयार करेंगे जिससे वाकई यहोवा के साथ लोगों का रिश्‍ता मज़बूत होगा, वे उसके इंतज़ामों की कदर करेंगे और इस पुरानी दुनिया में ज़िंदगी की तकलीफों का सामना करना सीखेंगे, साथ ही प्रचार काम में असरदार बनेंगे, तो आपने जोश के साथ भाषण देने के लिए काफी कुछ जुटा लिया है।

अगर आपको लोगों के सामने पढ़कर सुनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, तब आपको क्या करना चाहिए? पूरे जोश के साथ पढ़ने के लिए, शब्दों का ठीक उच्चारण करना और सही मतलब देने के लिए उन्हें मिलाकर पढ़ना काफी नहीं। आपको जो पढ़ना है, उसका अध्ययन कीजिए। अगर आपको बाइबल से पढ़ना है, तो उसके बारे में कुछ खोजबीन कीजिए। देखिए कि आपको उसका सही मतलब समझ में आया है या नहीं। ध्यान दीजिए कि आपको और सुननेवालों को इससे क्या-क्या फायदे हो सकते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सुननेवालों को पढ़कर सुनाइए।

क्या आप प्रचार के लिए तैयारी कर रहे हैं? चर्चा के विषय और जिन आयतों का इस्तेमाल करने की आप सोच रहे हैं, उन पर विचार कीजिए। इस बात पर भी गौर कीजिए कि लोगों के मन में क्या चल रहा है। आजकल समाचारों में क्या आ रहा है? और लोग किन समस्याओं से जूझ रहे हैं? जब आप लोगों को यह दिखाने के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं कि परमेश्‍वर के वचन में उन्हीं समस्याओं का हल बताया गया है जिनकी चिंता उन्हें खाए जा रही है, तो उन्हें इस बारे में बताने के लिए आप उत्सुक होंगे और आपके अंदर खुद-ब-खुद जोश पैदा होगा।

सजीव भाषण देने के ज़रिए जोश दिखाइए। सजीव भाषण देने से आपका जोश साफ नज़र आएगा। आपका जोश, आपके चेहरे के भाव से साफ दिखायी देना चाहिए। आपकी बातों से आपका विश्‍वास झलकना चाहिए, घमंड या अक्खड़पन नहीं।

इसमें संतुलन की ज़रूरत है। कुछ लोग हर बात को लेकर उत्तेजित हो जाते हैं। ऐसे लोगों को यह समझाए जाने की ज़रूरत है कि जब एक इंसान बहुत बड़े-बड़े शब्द इस्तेमाल करता है या ज़्यादा ही जज़्बाती हो जाता है, तो सुननेवालों का ध्यान उसके संदेश पर नहीं बल्कि उस पर चला जाता है। दूसरी तरफ, कुछ शर्मीले लोगों को यह बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है कि वे खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करें।

जोश एक आग की तरह है, जिसे फैलने में देर नहीं लगती। अगर आप भाषण देते वक्‍त सुननेवालों के साथ नज़र मिलाकर और जोश से बात करेंगे, तो वे भी उत्साहित होंगे। अप्पुलोस के भाषण देने का तरीका सजीव था, इसलिए उसे एक निपुण वक्‍ता कहा गया है। अगर आप परमेश्‍वर की आत्मा से परिपूर्ण हैं, तो सुननेवाले आपके सजीव भाषण से ज़रूर प्रेरित होंगे।—प्रेरि. 18:24, 25; रोमि. 12:11, NHT.

जानकारी के हिसाब से जोश दिखाना। ध्यान रहे कि भाषण के शुरू से लेकर आखिर तक जोश का ऊँचा स्तर बरकरार रखने की ज़रूरत नहीं है। वरना लोग आपकी बात सुनते-सुनते दिमागी तौर पर थक जाएँगे। फिर चर्चा की जा रही बातों के मुताबिक कदम उठाने के लिए आप जो भी प्रोत्साहन देंगे, उसे सुनने के लिए उनमें कोई ताकत बाकी न रहेगी। यह दिखाता है कि तैयारी करते वक्‍त आपको ऐसी जानकारी चुननी चाहिए जिसमें अलग-अलग भावनाएँ ज़ाहिर करने की गुंजाइश हो। लेकिन इस अंदाज़ में बात न करें, मानो आप मन से भाषण न दे रहे हों। अगर आपने बड़े ध्यान से भाषण की जानकारी चुनी हैं, तो आपको उससे गहरा लगाव होगा। मगर दूसरी तरफ कुछ ऐसे मुद्दे होते हैं जो स्वाभाविक तौर पर जोश की माँग करते हैं। इसलिए इन सारे मुद्दों को पूरे भाषण में बड़ी खूबसूरती के साथ पिरो लेना चाहिए।

मुख्य मुद्दों को खासकर जोश के साथ पेश किया जाना चाहिए। आपके भाषण में ऐसी बुलंदियाँ होनी चाहिए जिनसे भाषण के खास मुद्दे उभरकर सामने आए। इन बुलंदियों तक पहुँचने के लिए आपको दलीलें पेश करनी होती है। ये बुलंदियाँ अकसर सुननेवालों को कोई कदम उठाने के लिए उकसाती हैं। पेश की गयी जानकारी पर अपने सुननेवालों का विश्‍वास बिठाने के बाद, आपको उनमें जोश भरने की और उन्हें यह दिखाने की ज़रूरत है कि जो कहा गया है, उस पर अमल करने के कितने फायदे हैं। जब आप जोश के साथ बात करेंगे, तो आप सुननेवालों के दिलों तक पहुँच पाएँगे। आपको भाषण के हर हिस्से में ज़बरदस्ती जोश दिखाने की ज़रूरत नहीं है, यह तभी दिखाया जाना चाहिए जब जानकारी इसकी माँग करे।

यह कैसे पैदा करें

  • अपने भाषण की जानकारी ही नहीं बल्कि अपने हृदय को भी तैयार कीजिए; इस तरह आप पूरी भावनाओं के साथ भाषण दे पाएँगे।

  • आपके भाषण के मुद्दों से आपके सुननेवालों को कैसे फायदा होगा, इस पर बड़े ध्यान से सोचिए।

  • भाषण के उन हिस्सों को पहचानिए जिन्हें खासकर जोश के साथ बताने की ज़रूरत है।

  • आपके बात करने का तरीका जानदार हो। ख्याल रखें कि आपकी भावनाएँ आपके चेहरे से भी ज़ाहिर हों। पूरे दमखम और उत्साह के साथ बात कीजिए।

अभ्यास: यहोशू 1 और 2 अध्याय की जाँच करके देखिए कि इस वृत्तांत को पढ़ते वक्‍त आप कहाँ और कैसे सही जोश का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे ज़ोर से और सही जोश के साथ पढ़ने का अभ्यास कीजिए।

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